بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
وَلَمَّا جَاءَهُمْ رَسُولٌ مِّنْ عِندِ اللَّـهِ مُصَدِّقٌ لِّمَا مَعَهُمْ نَبَذَ فَرِيقٌ مِّنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ كِتَابَ اللَّـهِ وَرَاءَ ظُهُورِهِمْ كَأَنَّهُمْ لَا يَعْلَمُونَ ﴾ 101 ﴿
व लम्मा जाअहुम् रसूलुम् मिन् अिन्दिल्लाहि मुसद्दिकुल-लिमा म-अहुम् न-ब-ज़ फरीकुम मिनल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब किताबल्लाहि वरा-अ जुहूरिहिम् क-अन्नहुम् ला यअ्लमून
तथा जब उनके पास अल्लाह की ओर से एक रसूल, उस पुस्तक का समर्थन करते हुए, जो उनके पास है, आ गया,[1] तो उनके एक समुदाय ने जिनहें पुस्तक दी गयी, अल्लाह की पुस्तक को ऐसे पीछे डाल दिया, जैसे वे कुछ जानते ही न हों। 1. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम क़ुर्आन के साथ आ गये।
وَاتَّبَعُوا مَا تَتْلُو الشَّيَاطِينُ عَلَىٰ مُلْكِ سُلَيْمَانَ ۖ وَمَا كَفَرَ سُلَيْمَانُ وَلَـٰكِنَّ الشَّيَاطِينَ كَفَرُوا يُعَلِّمُونَ النَّاسَ السِّحْرَ وَمَا أُنزِلَ عَلَى الْمَلَكَيْنِ بِبَابِلَ هَارُوتَ وَمَارُوتَ ۚ وَمَا يُعَلِّمَانِ مِنْ أَحَدٍ حَتَّىٰ يَقُولَا إِنَّمَا نَحْنُ فِتْنَةٌ فَلَا تَكْفُرْ ۖ فَيَتَعَلَّمُونَ مِنْهُمَا مَا يُفَرِّقُونَ بِهِ بَيْنَ الْمَرْءِ وَزَوْجِهِ ۚ وَمَا هُم بِضَارِّينَ بِهِ مِنْ أَحَدٍ إِلَّا بِإِذْنِ اللَّـهِ ۚ وَيَتَعَلَّمُونَ مَا يَضُرُّهُمْ وَلَا يَنفَعُهُمْ ۚ وَلَقَدْ عَلِمُوا لَمَنِ اشْتَرَاهُ مَا لَهُ فِي الْآخِرَةِ مِنْ خَلَاقٍ ۚ وَلَبِئْسَ مَا شَرَوْا بِهِ أَنفُسَهُمْ ۚ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ ﴾ 102 ﴿
वत्त-बअू मा तत्लुश्शयातीनु अ़ला मुल्कि सुलैमा-न वमा क-फ़-र सुलैमानु व लाकिन्नश्शयाती-न क-फरू युअल्-लि-मूनन्-नासस्-सिह-र , वमा उन्ज़ि-ल अलल् म-ल-कैनि बिबाबि-ल हारू-त व मारू-त , वमा युअल्लिमानि मिन् अ-हदिन् हत्ता यकूला इन्नमा नह्नू फ़ित्नतुन् फ़ला तक्फुर , फ़-य-तअल्लमू-न मिन्हुमा मा युफ़र्रिकू-न बिही बैनल-मरइ व जौजिही , वमा हुम् बिज़ार्री-न बिही मिन् अ-हदिन इल्ला बि-इज्निल्लाहि , व य-तअल्लमू-न मा यजुर्रूहुम् वला यन्फ़अुहुम , व लकद् अलिमू ल-मनिश्तराहु मा लहू फ़िल्आख़िरति मिन् खलाकिन् , व लबिअ्-स मा शरौ बिही अन्फु-सहुम , लौ कानू यअलमून
तथा सुलैमान के राज्य में शैतान जो मिथ्या बातें बना रहे थे, उनका अनुसरण करने लगे। जबकि सुलैमान ने कभी कुफ़्र (जादू) नहीं किया, परन्तु कुफ़्र तो शैतानों ने किया, जो लोगों को जादू सिखा रहे थे तथा वे उन बातों का (अनुसरण करने लगे) जो बाबिल (नगर) के दो फ़रिश्तों; हारूत और मारूत पर उतारी गयीं, जबकि वे दोनों किसी को जादू नहीं सिखाते, जब तक ये न कह देते कि हम केवल एक परीक्षा हैं, अतः, तू कुफ़्र में न पड़। फिर भी वे उन दोनों से वो चीज़ सीखते, जिसके द्वारा वे पति और पत्नी के बीच जुदाई डाल दें और वे अल्लाह की अनुमति बिना इसके द्वारा किसी को कोई हानि नहीं पहुँचा सकते थे, परन्तु फिर भी ऐसी बातें सीखते थे, जो उनके लिए हानिकारक हों और लाभकारी न हों और वे भली-भाँति जानते थे कि जो इसका ख़रीदार बना, परलोक में उसका कोई भाग नहीं तथा कितना बुरा उपभोग्य है, जिसके बदले वे अपने प्राणों का सौदा कर रहे हैं[1], यदि वे जानते होते! 1. इस आयत का दूसरा अर्थ यह भी किया गया है कि सुलैमान ने कुफ़्र नहीं किया, परन्तु शैतानों ने कुफ़्र किया, वह मानव को जादू सिखाते थे। और न दो फ़रिशतों पर जादू उतारा गया, उन शैतानों या मानव में से हारूत तथा मारूत जादू सिखाते थे। (तफ़्सीरे क़ुर्तुबी) ।जिस ने प्रथम अनुवाद किया है, उस का यह विचार है कि मानव के रूप में दो फ़रिश्तों को उन की परीक्षा के लिये भेजा गया था। सुलैमान अलैहिस्सलाम एक नबी और राजा हुये हैं। आप दावूद अलैहिस्सलाम के पुत्र थे।
وَلَوْ أَنَّهُمْ آمَنُوا وَاتَّقَوْا لَمَثُوبَةٌ مِّنْ عِندِ اللَّـهِ خَيْرٌ ۖ لَّوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ ﴾ 103 ﴿
व लौ अन्नहुम् आमनू वत्तकौ ल-मसू-बतुम् मिन् अिन्दिल्लाहि खैरून् , लौ कानू यअ्लमून *
और यदि वे ईमान लाते और अल्लाह से डरते, तो अल्लाह के पास इसका जो प्रतिकार (बदला) मिलता, वह उनके लिए उत्तम होता, यदि वे जानते होते।
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَقُولُوا رَاعِنَا وَقُولُوا انظُرْنَا وَاسْمَعُوا ۗ وَلِلْكَافِرِينَ عَذَابٌ أَلِيمٌ ﴾ 104 ﴿
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तकूलू राअिना व कूलुन्जुर्ना वस्मअू , व लिल्काफ़िरी-न अज़ाबुन अलीम
हे ईमान वालो! तुम 'राइना'[1] न कहो, 'उन्ज़ुरना' कहो और ध्यान से बात सुनो तथा काफ़िरों के लिए दुखदायी यातना है। 1. इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सभा में यहूदी भी आ जाते थे। और मुसलमानों को आप से कोई बात समझनी होती तो "राइना" कहते, अर्थात हम पर ध्यान दीजिये, या हमारी बात सुनिये। इब्रानी भाषा में इस का बुरा अर्थ भी निकलता था, जिस से यहूही प्रसन्न होते थे, इस लिये मुसलमानों को आदेश दिया गया कि इस के स्थान पर तुम "उन्ज़ुरना" कहा करो। अर्थात हमारी ओर देखिये। (तफ़्सीरे क़ुर्तुबी)
مَّا يَوَدُّ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ وَلَا الْمُشْرِكِينَ أَن يُنَزَّلَ عَلَيْكُم مِّنْ خَيْرٍ مِّن رَّبِّكُمْ ۗ وَاللَّـهُ يَخْتَصُّ بِرَحْمَتِهِ مَن يَشَاءُ ۚ وَاللَّـهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيمِ ﴾ 105 ﴿
मा यवद्दुल्लज़ी-न क-फरू मिन अहलिल्-किताबि व ललमुश्रिकी-न अंय्यु नज्ज़-ल अलैकुम् मिन् खैरिम्-मिर्रब्बिकुम , वल्लाहु यख़्तस्सु बिरहमतिहि मंय्यशा-उ , वल्लाहु जुलफ़ज्लिल-अज़ीम
अह्ले किताब में से जो काफ़िर हो गये तथा जो मिश्रणवादी हो गये, वे नहीं चाहते कि तुम्हारे पालनहार की ओर से तुमपर कोई भलाई उतारी जाये और अल्लाह जिसपर चाहे, अपनी विशेष दया करता है और अल्लाह बड़ा दानशील है।
مَا نَنسَخْ مِنْ آيَةٍ أَوْ نُنسِهَا نَأْتِ بِخَيْرٍ مِّنْهَا أَوْ مِثْلِهَا ۗ أَلَمْ تَعْلَمْ أَنَّ اللَّـهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ ﴾ 106 ﴿
मा नन्सखू मिन् आयतिन् औ नुन्सिहा नअ्ति बिखैरिम् मिन्हा औ मिस्लिहा , अलम् तअ्लम् अन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन् क़दीर
हम अपनी कोई आयत निरस्त कर देते अथवा भुला देते हैं, तो उससे उत्तम अथवा उसके समान लाते हैं। क्या तुम नहीं जानते कि अल्लाह जो चाहे[1], कर सकता है? 1. इस आयत में यहूदियों के तौरात के आदेशों के निरस्त किये जाने तथा ईसा अलैहिस्सलाम और मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की नुबुव्वत के इन्कार का खण्डन किया गया है।
أَلَمْ تَعْلَمْ أَنَّ اللَّـهَ لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۗ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ اللَّـهِ مِن وَلِيٍّ وَلَا نَصِيرٍ ﴾ 107 ﴿
अलम् तअ्लम् अन्नल्ला-ह लहू मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि , वमा लकुम् मिन् दुनिल्लाहि मिंव्वलिय्यिंव वला नसीर
क्या तुम ये नहीं जानते कि आकाशों तथा धरती का राज्य अल्लाह ही के लिए है और उसके सिवा तुम्हारा कोई रक्षक और सहायक नहीं है?
أَمْ تُرِيدُونَ أَن تَسْأَلُوا رَسُولَكُمْ كَمَا سُئِلَ مُوسَىٰ مِن قَبْلُ ۗ وَمَن يَتَبَدَّلِ الْكُفْرَ بِالْإِيمَانِ فَقَدْ ضَلَّ سَوَاءَ السَّبِيلِ ﴾ 108 ﴿
अम् तुरीदू-न अन् तस्अलू रसूलकुम् कमा सुइ-ल मूसा मिन् कब्लु , वमंय्-य-तबद्दलिल-कुफ्-र बिल्ईमानि फ़-कद् ज़ल-ल सवाअस्सबील
क्या तुम चाहते हो कि अपने रसुल से उसी प्रकार प्रश्न करो, जैसे मूसा से प्रश्न किये जाते रहे? और जो व्यक्ति ईमान की नीति को कुफ़्र से बदल लेगा, तो वह सीधी डगर से विचलित हो गया।
وَدَّ كَثِيرٌ مِّنْ أَهْلِ الْكِتَابِ لَوْ يَرُدُّونَكُم مِّن بَعْدِ إِيمَانِكُمْ كُفَّارًا حَسَدًا مِّنْ عِندِ أَنفُسِهِم مِّن بَعْدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُمُ الْحَقُّ ۖ فَاعْفُوا وَاصْفَحُوا حَتَّىٰ يَأْتِيَ اللَّـهُ بِأَمْرِهِ ۗ إِنَّ اللَّـهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ ﴾ 109 ﴿
वद्-द कसीरूम मिन् अहलिल-किताबि लौ यरूद्दूनकुम् मिम्-बअदि ईमानिकुम् कुफ्फारन् ह-सदम् मिन् अिन्दि अन्फुसिहिम् मिम्-बअ्दि मा तबय्य-न लहुमुल-हक्कु फ़अफू वस्फ़हू हत्ता यअ्तियल्लाहु बिअमरिही , इन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन् क़दीर •
अहले किताब में से बहुत-से चाहते हैं कि तुम्हारे ईमान लाने के पश्चात् अपने द्वेष के कारण तुम्हें कुफ़्र की ओर फेंक दें। जबकि सत्य उनके लिए उजागर हो गया। फिर भी तुम क्षमा से काम लो और जाने दो। यहाँ तक कि अल्लाह अपना निर्णय कर दे। निश्चय अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ ۚ وَمَا تُقَدِّمُوا لِأَنفُسِكُم مِّنْ خَيْرٍ تَجِدُوهُ عِندَ اللَّـهِ ۗ إِنَّ اللَّـهَ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ ﴾ 110 ﴿
व अक़ीमुस्सला-त व आतुज्जका-त , वमा तुकद्दिमू लिअन्फुसिकुम मिन् खैरिन् तजिदूहु अिन्दल्लाहि , इन्नल्ला-ह बिमा तअ्मलू-न बसीर
तथा तुम नमाज़ की स्थापना करो और ज़कात दो और जो भी भलाई अपने लिए किये रहोगे, उसे अल्लाह के यहाँ पाओगे। तुम जो कुछ कर रहे हो, अल्लाह उसे देख रहा है।
وَقَالُوا لَن يَدْخُلَ الْجَنَّةَ إِلَّا مَن كَانَ هُودًا أَوْ نَصَارَىٰ ۗ تِلْكَ أَمَانِيُّهُمْ ۗ قُلْ هَاتُوا بُرْهَانَكُمْ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ ﴾ 111 ﴿
व कालू लंय्यदखुलल जन्न-त इल्ला मन् का-न हूदन् औ नसारा , तिल-क अमानिय्युहुम , कुल हातू बुरहानकुम् इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
तथा उन्होंने कहा कि कोई स्वर्ग में कदापि नहीं जायेगा, जब तक यहूदी अथवा नसारा[1] (ईसाई) न हो। ये उनकी कामनायें हैं। उनसे कहो कि यदि तुम सत्यवादी हो, तो कोई प्रमाण प्रस्तुत करो। 1. अर्थात यहूदियों ने कहा कि केवल यहूदी जायेंगे और ईसाईयों ने कहा कि केवल ईसाई जायेंगे।
بَلَىٰ مَنْ أَسْلَمَ وَجْهَهُ لِلَّـهِ وَهُوَ مُحْسِنٌ فَلَهُ أَجْرُهُ عِندَ رَبِّهِ وَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ ﴾ 112 ﴿
बला , मन् अस्ल-म वज्हहू लिल्लाहि व हु-व मुह्सिनुन् फ़-लहू अज्रूहू अिन्-द रब्बिही वला ख़ौफुन अलैहिम व ला हुम् यह्ज़नून *
क्यों नहीं?[1] जो भी स्वयं को अल्लाह की आज्ञा पालन के लिए समर्पित कर देगा तथा सदाचारी होगा, तो उसके पालनहार के पास उसका प्रतिफल है और उनपर कोई भय नहीं होगा और न वे उदासीन होंगे। 1. स्वर्ग में प्रवेश का साधारण नियम अर्थात मुक्ति एकेश्वरवाद तथा सदाचार पर आधारित है, किसी जाति अथवा गिरोह पर नहीं।
وَقَالَتِ الْيَهُودُ لَيْسَتِ النَّصَارَىٰ عَلَىٰ شَيْءٍ وَقَالَتِ النَّصَارَىٰ لَيْسَتِ الْيَهُودُ عَلَىٰ شَيْءٍ وَهُمْ يَتْلُونَ الْكِتَابَ ۗ كَذَٰلِكَ قَالَ الَّذِينَ لَا يَعْلَمُونَ مِثْلَ قَوْلِهِمْ ۚ فَاللَّـهُ يَحْكُمُ بَيْنَهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فِيمَا كَانُوا فِيهِ يَخْتَلِفُونَ ﴾ 113 ﴿
व कालतिल यहूदु लैसतिन्नसारा अला शैइवं व कालतिन्नसारा लैसतिल यहूदु अला शैइंव व हुम् यतलूनल्किता-ब , कज़ालि-क कालल्लज़ी-न ला यअलमू-न मिस्-ल कौलिहिम् फ़ल्लाहु यह्कुमु बैनहुम् यौमल-कियामति फ़ीमा कानू फ़ीहि यख़्तलिफून
तथा यहूदियों ने कहा कि ईसाईयों के पास कुछ नहीं और ईसाईयों ने कहा कि यहूदियों के पास कुछ नहीं है। जबकि वे धर्म पुस्तक[1] पढ़ते हैं। इसी जैसी बात उन्होंने भी कही, जिनके पास धर्म पुस्तक का कोई ज्ञान[2] नहीं। ये जिस विषय में विभेद कर रहे हैं, उसका निर्णय अल्लाह प्रलय के दिन उनके बीच कर देगा। 1. अर्थात तौरात तथा इंजील जिस में सब नबियों पर ईमान लाने का आदेश दिया गया है। 2. धर्म पुस्तक से अज्ञान अरब थे, जो यह कहते थे कि मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास कुछ नहीं है।
وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّن مَّنَعَ مَسَاجِدَ اللَّـهِ أَن يُذْكَرَ فِيهَا اسْمُهُ وَسَعَىٰ فِي خَرَابِهَا ۚ أُولَـٰئِكَ مَا كَانَ لَهُمْ أَن يَدْخُلُوهَا إِلَّا خَائِفِينَ ۚ لَهُمْ فِي الدُّنْيَا خِزْيٌ وَلَهُمْ فِي الْآخِرَةِ عَذَابٌ عَظِيمٌ ﴾ 114 ﴿
व मन् अज्लमु मिम्मम्-म-न-अ मसाजिदल्लाहि अंय्युज्क-र फ़ीहस्मुहू व-सआ फी खराबिहा , उलाइ-क मा-का-न लहुम् अय्यद्खुलूहा इल्ला ख़ा-इफ़ी-न , लहुम् फ़िद्दुन्या खिज्युंव व-लहुम् फ़िल् आखिरति अ़ज़ाबुन अज़ीम
और उससे बड़ा अत्याचारी कौन होगा, जो अल्लाह की मस्जिदों में उसके नाम का वर्णन करने से रोके और उन्हें उजाड़ने का प्रयत्न करे?[1] उन्हीं के लिए योग्य है कि उसमें डरते हुए प्रवेश करें, उन्हीं के लिए संसार में अपमान है और उन्हीं के लिए आख़िरत (परलोक) में घोर यातना है। 1. जैसे मक्का वासियों ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आप के साथियों को सन् 6 हिजरी में काबा में आने से रोक दिया। या ईसाईयों ने बैतुल मुक़द्दस् को ढाने में बुख़्त नस्सर (राजा) की सहायता की।
وَلِلَّـهِ الْمَشْرِقُ وَالْمَغْرِبُ ۚ فَأَيْنَمَا تُوَلُّوا فَثَمَّ وَجْهُ اللَّـهِ ۚ إِنَّ اللَّـهَ وَاسِعٌ عَلِيمٌ ﴾ 115 ﴿
व लिल्लाहिल् मश्रिकु वल्-मग्रिबु फ़-अैनमा तुवल्लू फ़-सम्-म वज्हुल्लाहि , इन्नल्ला-ह वासिअन् अलीम
तथा पूर्व और पश्चिम अल्लाह ही के हैं; तुम जिधर भी मुख करो[1], उधर ही अल्लाह का मुख है और अल्लाह विशाल अति ज्ञानी है। 1. अर्थात अल्लाह के आदेशानुसार तुम जिधर भी रुख करोगे, तुम्हें अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त होगी।
وَقَالُوا اتَّخَذَ اللَّـهُ وَلَدًا ۗ سُبْحَانَهُ ۖ بَل لَّهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ كُلٌّ لَّهُ قَانِتُونَ ﴾ 116 ﴿
व कालुत्-तख़ज़ल्लाहु व लदन सुब्हानहू , बल-लहू मा फिस्समावाति वल्अर्जि , कुल्लुल्लहू कानितून
तथा उन्होंने कहा[1] कि अल्लाह ने कोई संतान बना ली। वह इससे पवित्र है। आकाशों तथा धरती में जो भी है, वह उसी का है और सब उसी के आज्ञाकारी हैं। 1. अर्थात यहूद और नसारा तथा मिश्रणवादियों ने।
بَدِيعُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ وَإِذَا قَضَىٰ أَمْرًا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُ كُن فَيَكُونُ ﴾ 117 ﴿
बदीअुस्समावाति वलअर्जि , व इज़ा कज़ा अम्रन् फ़-इन्नमा यकूलु लहू कुन् फ़-यकून
वह आकाशों तथा धरती का अविष्कारक है। जब वह किसी बात का निर्णय कर लेता है, तो उसके लिए बस ये आदेश देता है कि "हो जा।" और वह हो जाती है।
وَقَالَ الَّذِينَ لَا يَعْلَمُونَ لَوْلَا يُكَلِّمُنَا اللَّـهُ أَوْ تَأْتِينَا آيَةٌ ۗ كَذَٰلِكَ قَالَ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِم مِّثْلَ قَوْلِهِمْ ۘ تَشَابَهَتْ قُلُوبُهُمْ ۗ قَدْ بَيَّنَّا الْآيَاتِ لِقَوْمٍ يُوقِنُونَ ﴾ 118 ﴿
व कालल्लज़ी-न ला यअलमू-न लौ ला युकल्लिमुनल्लाहु औ तअतीना आयतुन् , कज़ालि-क कालल्लज़ी-न मिन् कब्लिहिम् मिस्-ल कौलिहिम् , तशा-बहत् कुलू बुहुम , कद् बय्यन्नल – आयाति लिकौमिंय्यूकिनून
तथा उन्होंने कहा जो ज्ञान[1] नहीं रखते कि अल्लाह हमसे बात क्यों नहीं करता या हमारे पास कोई आयत क्यों नहीं आती? इसी प्रकार की बात इनसे पूर्व के लोगों ने कही थी। इनके दिल एक समान हो गये। हमने उनके लिए निशानियाँ उजागर कर दी हैं, जो विश्वास रखते हैं। 1. अर्थात अरब के मिश्रणवादियों ने।
إِنَّا أَرْسَلْنَاكَ بِالْحَقِّ بَشِيرًا وَنَذِيرًا ۖ وَلَا تُسْأَلُ عَنْ أَصْحَابِ الْجَحِيمِ ﴾ 119 ﴿
इन्ना अरसल्ना-क बिल्हक्कि बशीरंव व-नज़ीरंव वला तुस्अलु अन् अस्हाबिल जहीम
(हे नबी!) हमने आपको सत्य के साथ शुभ सूचना देने तथा सावधान[1] करने वाला बनाकर भेजा है और आपसे नारकियों के विषय में प्रश्न नहीं किया जायेगा। 1. अर्थात सत्य ज्ञान के अनुपालन पर स्वर्ग की सूचना देने, तथा इन्कार पर नरक से सावधान करने के लिये। इस के पश्चात् भी कोई न माने तो आप उस के उत्तरदायी नहीं हैं।
وَلَن تَرْضَىٰ عَنكَ الْيَهُودُ وَلَا النَّصَارَىٰ حَتَّىٰ تَتَّبِعَ مِلَّتَهُمْ ۗ قُلْ إِنَّ هُدَى اللَّـهِ هُوَ الْهُدَىٰ ۗ وَلَئِنِ اتَّبَعْتَ أَهْوَاءَهُم بَعْدَ الَّذِي جَاءَكَ مِنَ الْعِلْمِ ۙ مَا لَكَ مِنَ اللَّـهِ مِن وَلِيٍّ وَلَا نَصِيرٍ ﴾ 120 ﴿
व लन् तर्जा अन्कल्-यहूदु व लन्-नसारा हत्ता तत्तबि-अ मिल्ल-तहुम , कुल इन्-न हुदल्लाहि हुवल्-हुदा , व-ल-इनित्त-बअ-त अहवा-अहुम् बअ्दल्लज़ी जाअ-क मिनल-अिल्मि मा ल-क मिनल्लाहि मिव्वलिय्यिंव वला नसीर
(हे नबी!) आपसे यहूदी तथा ईसाई सहमत (प्रसन्न) नहीं होंगे, जब तक आप उनकी रीति पर न चलें। कह दो कि सीधी डगर वही है, जो अल्लाह ने बताई है और यदि आपने उनकी आकांक्षाओं का अनुसरण किया, इसके पश्चात कि आपके पास ज्ञान आ गया, तो अल्लाह (की पकड़) से आपका कोई रक्षक और सहायक नहीं होगा।
الَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ يَتْلُونَهُ حَقَّ تِلَاوَتِهِ أُولَـٰئِكَ يُؤْمِنُونَ بِهِ ۗ وَمَن يَكْفُرْ بِهِ فَأُولَـٰئِكَ هُمُ الْخَاسِرُونَ ﴾ 121 ﴿
अल्लज़ी-न आतैनाहुमुल्-किता-ब यत्लूनहू हक्-क तिलावतिही , उलाइ-क युअ्मिनू-न बिही , व मंय्यक्फुर बिही फ़-उलाइ-क हुमुल ख़ासिरून *
और हमने जिन्हें पुस्तक प्रदान की है और उसे वैसे पढ़ते हैं, जैसे पढ़ना चाहिये, वही उसपर ईमान रखते हैं और जो उसे नकारते हैं, वही क्षतिग्रस्तों में से हैं।
يَا بَنِي إِسْرَائِيلَ اذْكُرُوا نِعْمَتِيَ الَّتِي أَنْعَمْتُ عَلَيْكُمْ وَأَنِّي فَضَّلْتُكُمْ عَلَى الْعَالَمِينَ ﴾ 122 ﴿
या बनी इस्-राई लज्कुरू निअ्मतियल्लती अन्अम्तु अलैकुम् व अन्नी फज्ज़ल्तुकुम् अलल आलमीन
हे बनी इस्राईल! मेरे उस पुरस्कार को याद करो, जो मैंने तुमपर किया है और ये कि तुम्हें (अपने युग के) संसार-वसियों पर प्रधानता दी थी।
وَاتَّقُوا يَوْمًا لَّا تَجْزِي نَفْسٌ عَن نَّفْسٍ شَيْئًا وَلَا يُقْبَلُ مِنْهَا عَدْلٌ وَلَا تَنفَعُهَا شَفَاعَةٌ وَلَا هُمْ يُنصَرُونَ ﴾ 123 ﴿
वत्तकू यौमल्ला-तज्ज़ी नफ़्सुन् अन्नफसिन् शैअंव वला युक्बलु मिन्हा अदलुंव वला तन्फ़अुहा शफाअतुंव वला हुम् युन्सरून
तथा उस दिन से डरो, जब कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के कुछ काम नहीं आयेगा और न उससे कोई अर्थदण्ड स्वीकार किया जायेगा और न उसे कोई अनुशंसा (सिफ़ारिश) लाभ पहुँचायेगी और न उनकी कोई सहायता की जायेगी।
وَإِذِ ابْتَلَىٰ إِبْرَاهِيمَ رَبُّهُ بِكَلِمَاتٍ فَأَتَمَّهُنَّ ۖ قَالَ إِنِّي جَاعِلُكَ لِلنَّاسِ إِمَامًا ۖ قَالَ وَمِن ذُرِّيَّتِي ۖ قَالَ لَا يَنَالُ عَهْدِي الظَّالِمِينَ ﴾ 124 ﴿
व इज़िब्तला इब्राही-म रब्बुहू बि-कलिमातिन् फ़-अ-तम्म- हुन्-न , का-ल इन्नी जाअिलु-क लिन्नासि इमामन् , का-ल व मिन् जुर्रिय्यती , का-ल ला यनालु अह्दिज्-ज़ालिमीन
और (याद करो) जब इब्राहीम की उसके पालनहार ने कुछ बातों से परीक्षा ली और वह उसमें पूरा उतरा, तो उसने कहा कि मैं तुम्हें सब इन्सानों का इमाम (धर्मगुरु) बनाने वाला हूँ। (इब्राहीम ने) कहाः तथा मेरी संतान से भी। (अल्लाह ने कहाः) मेरा वचन उनके लिए नहीं, जो अत्याचारी[1] हैं। 1. आयत में अत्याचार से अभिप्रेत केवल मानव पर अत्याचार नहीं, बल्कि सत्य को नकारना तथा शिर्क करना भी अत्याचार में सम्मिलित है।
وَإِذْ جَعَلْنَا الْبَيْتَ مَثَابَةً لِّلنَّاسِ وَأَمْنًا وَاتَّخِذُوا مِن مَّقَامِ إِبْرَاهِيمَ مُصَلًّى ۖ وَعَهِدْنَا إِلَىٰ إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ أَن طَهِّرَا بَيْتِيَ لِلطَّائِفِينَ وَالْعَاكِفِينَ وَالرُّكَّعِ السُّجُودِ ﴾ 125 ﴿
व इज् जअल्-नल्-बै-त मसा-बतल् लिन्नासि व अमनन् , वत्तखिजू मिम् मक़ामि इब्राही-म मुसल्लन् , व अहिद्ना इला इब्राही-म व इस्माअी-ल अन् तह्हिरा बैति-य लित्ता-इफ़ी-न वल् आकिफ़ी-न वर्रूक्क-अिस्सुजूद
और (याद करो) जब हमने इस घर (अर्थातःकाबा) को लोगों के लिए बार-बार आने का केंद्र तथा शांति स्थल निर्धारित कर दिया तथा ये आदेश दे दिया कि 'मक़ामे इब्राहीम' को नमाज़ का स्थान[1] बना लो तथा इब्राहीम और इस्माईल को आदेश दिया कि मेरे घर को तवाफ़ (परिक्रमा) तथा एतिकाफ़[2] करने वालों और सज्दा तथा रुकू करने वालों के लिए पवित्र रखो। 1. "मक़ामे इब्राहीम" से तात्पर्य वह पत्थर है, जिस पर खड़े हो कर उन्हों ने काबा का निर्माण किया। जिस पर उन के पदचिन्ह आज भी सुरक्षित हैं। तथा तवाफ़ के पश्चात् वहाँ दो रकअत नमाज़ पढ़नी सुन्नत है। 2. "एतिकाफ़" का अर्थ किसी मस्जिद में एकांत में हो कर अल्लाह की इबादत करना है।
وَإِذْ قَالَ إِبْرَاهِيمُ رَبِّ اجْعَلْ هَـٰذَا بَلَدًا آمِنًا وَارْزُقْ أَهْلَهُ مِنَ الثَّمَرَاتِ مَنْ آمَنَ مِنْهُم بِاللَّـهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ ۖ قَالَ وَمَن كَفَرَ فَأُمَتِّعُهُ قَلِيلًا ثُمَّ أَضْطَرُّهُ إِلَىٰ عَذَابِ النَّارِ ۖ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ ﴾ 126 ﴿
व इज् का-ल इब्राहीमु रब्बिज्अ़ल हाज़ा ब-लदन् आमिनंव्-वरज़ुक् अहलहू मिनस्-स-मराति मन् आम-न मिन्हुम् बिल्लाहि वलयौमिल आखिरि , का-ल वमन् क-फ-र फ़-उमत्तिअु़हू कलीलन सुम्-म अज्तरर्रूहू इला अज़ाबिन्नारि , व बिअसल्-मसीर
और (याद करो) जब इब्राहीम ने अपने पालनहार से प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! इस छेत्र को शांति का नगर बना दे तथा इसके वासियों को, जो उनमें से अल्लाह और अंतिम दिन (प्रलय) पर ईमान रखे, विभिन्न प्रकार की उपज (फलों) से आजीविका प्रदान कर। (अल्लाह ने) कहाः तथा जो काफ़िर है, उसे भी मैं थोड़ा लाभ दूंगा, फिर उसे नरक की यातना की ओर बाध्य कर दूँगा और वह बहुत बुरा स्थान है।
وَإِذْ يَرْفَعُ إِبْرَاهِيمُ الْقَوَاعِدَ مِنَ الْبَيْتِ وَإِسْمَاعِيلُ رَبَّنَا تَقَبَّلْ مِنَّا ۖ إِنَّكَ أَنتَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ ﴾ 127 ﴿
व इज् यरफ़अु़ इब्राहीमुल् कवाअि-द् मिनल बैति व इस्माअीलु , रब्बना तकब्बल मिन्ना , इन्न-क अन्तस्समीअुल-अलीम
और (याद करो) जब इब्राहीम और इस्माईल इस घर की नींव ऊँची कर रहे थे तथा प्रार्थना कर रहे थेः हे हमारे पालनहार! हमसे ये सेवा स्वीकार कर ले। तू ही सब कुछ सुनता और जानता है।
رَبَّنَا وَاجْعَلْنَا مُسْلِمَيْنِ لَكَ وَمِن ذُرِّيَّتِنَا أُمَّةً مُّسْلِمَةً لَّكَ وَأَرِنَا مَنَاسِكَنَا وَتُبْ عَلَيْنَا ۖ إِنَّكَ أَنتَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ ﴾ 128 ﴿
रब्बना वज्अल्ना मुस्लिमैनि ल-क व मिन् जुर्रिय्यतिना उम्मतम् मुस्लि-मतल ल-क व अरिना मनासि-क-ना व तुब् अलैना इन्न-क अन्तत्तव्वाबुर्-रहीम
हे हमारे पालनहार! हम दोनों को अपना आज्ञाकारी बना तथा हमारी संतान से एक ऐसा समुदाय बना दे, जो तेरा आज्ञाकारी हो और हमें हमारे (हज्ज की) विधियाँ बता दे तथा हमें क्षमा कर। वास्तव में, तू अति क्षमी, दयावान् है।
رَبَّنَا وَابْعَثْ فِيهِمْ رَسُولًا مِّنْهُمْ يَتْلُو عَلَيْهِمْ آيَاتِكَ وَيُعَلِّمُهُمُ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَيُزَكِّيهِمْ ۚ إِنَّكَ أَنتَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ ﴾ 129 ﴿
रब्बना वब्अस् फ़ीहिम् रसूलम् मिन्हुम यत्लू अलैहिम् आयाति-क व युअल्लिमुहुमुल-किता-ब वल-हिक्म-त व-युज़क्कीहिम , इन्न-क अन्तल अज़ीजुल-हकीम *
हे हमारे पालनहार! उनके बीच उन्हीं में से एक रसूल भेज, जो उन्हें तेरी आयतें सुनाये और उन्हें पुस्तक (क़ुर्आन) तथा ह़िक्मत (सुन्नत) की शिक्षा दे और उन्हें शुध्द तथा आज्ञाकारी बना दे। वास्तव में, तू ही प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ[1] है। 1. यह इब्राहीम तथा इस्माईल अलैहिमस्सलाम की प्रार्थना का अंत है। एकरसूल से अभिप्रेत मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं। क्यों कि इस्माईल अलैहिस्सलाम की संतान में आप के सिवा कोई दूसरा रसूल नहीं हुआ। ह़दीस में है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः मैं अपने पिता इब्राहीम की प्रार्थना, ईसा की शुभ सूचना, तथा अपनी माता का स्वप्न हूँ। आप की माता आमिना ने गर्भ अवस्था में एक स्वप्न देखा कि मुझ से एक प्रकाश निकला, जिस से शाम (देश) के भवन प्रकाशमान हो गये। (देखियेः ह़ाकिमः2600) इस को उन्हों ने सह़ीह़ कहा है। और इमान ज़हबी ने इस की पुष्टि की है।
وَمَن يَرْغَبُ عَن مِّلَّةِ إِبْرَاهِيمَ إِلَّا مَن سَفِهَ نَفْسَهُ ۚ وَلَقَدِ اصْطَفَيْنَاهُ فِي الدُّنْيَا ۖ وَإِنَّهُ فِي الْآخِرَةِ لَمِنَ الصَّالِحِينَ ﴾ 130 ﴿
व मंय्यरगबु अम्-मिल्लति इब्राही-म इल्ला मन् सफ़ि-ह नफ्सहू , व-ल-कदिस्तफैनाहु फिद्दुन्या व इन्नहू फ़िल-आखिरति लमिनस्सालिहीन
तथा कौन होगा, जो ईब्राहीम के धर्म से विमुख हो जाये, परन्तु वही जो स्वयं को मूर्ख बना ले? जबकि हमने उसे संसार में चुन[1] लिया तथा आख़िरत (परलोक) में उसकी गणना सदाचारियों में होगी। 1. अर्थात मार्गदर्शन देने तथा नबी बनाने के लिये निर्वाचित कर लिया।
إِذْ قَالَ لَهُ رَبُّهُ أَسْلِمْ ۖ قَالَ أَسْلَمْتُ لِرَبِّ الْعَالَمِينَ ﴾ 131 ﴿
इज़ का-ल लहू रब्बुहू असलिम् का-ल अस्लम्तु लि-रब्बिल् आलमीन
तथा (याद करो) जब उसके पालनहार ने उससे कहाः मेरा आज्ञाकारी हो जा। तो उसने तुरन्त कहाः मैं विश्व के पालनहार का आज्ञाकारी हो गया।
وَوَصَّىٰ بِهَا إِبْرَاهِيمُ بَنِيهِ وَيَعْقُوبُ يَا بَنِيَّ إِنَّ اللَّـهَ اصْطَفَىٰ لَكُمُ الدِّينَ فَلَا تَمُوتُنَّ إِلَّا وَأَنتُم مُّسْلِمُونَ ﴾ 132 ﴿
व वस्सा बिहा इब्राहीमु बनीहि व यअकूबु , या बनिय्-य इन्नल्लाहस्तफ़ा लकुमुद्दी-न फ़ला तमूतुन्-न इल्ला व अन्तुम् मुस्लिमून
तथा इब्राहीम ने अपने पुत्रों को तथा याक़ूब ने, इसी बात पर बल दिया कि हे मेरे पुत्रो! अल्लाह ने तुम्हारे लिए ये धर्म (इस्लाम) निर्वाचित कर दिया है। अतः मरते समय तक तुम इसी पर स्थिर रहना।
أَمْ كُنتُمْ شُهَدَاءَ إِذْ حَضَرَ يَعْقُوبَ الْمَوْتُ إِذْ قَالَ لِبَنِيهِ مَا تَعْبُدُونَ مِن بَعْدِي قَالُوا نَعْبُدُ إِلَـٰهَكَ وَإِلَـٰهَ آبَائِكَ إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ وَإِسْحَاقَ إِلَـٰهًا وَاحِدًا وَنَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ ﴾ 133 ﴿
अम् कुन्तुम् शु-हदा-अ इज् ह-ज़-र यअकूबल-मौतु इज़् का-ल लि-बनीहि मा तअबुदू-न मिम्-बअ्दी , कालू नअ्बुदु इलाह-क व इला-ह आबाइ-क इब्राही-म व इस्माअी़-ल व इसहा-क इलाहंव्-वाहिदंव-व नह्नु लहू मुस्लिमून
क्या तुम याक़ूब के मरने के समय उपस्थित थे; जब याक़ूब ने अपने पुत्रों से कहाः मेरी मृत्यु के पश्चात् तुम किसकी इबादत (वंदना) करोगे? उन्होंने कहाः हम तेरे तथा तेरे पिता इब्राहीम और इस्माईल तथा इस्ह़ाक़ के एकमात्र पूज्य की इबादत (वंदना) करेंगे और उसी के आज्ञाकारी रहेंगे।
تِلْكَ أُمَّةٌ قَدْ خَلَتْ ۖ لَهَا مَا كَسَبَتْ وَلَكُم مَّا كَسَبْتُمْ ۖ وَلَا تُسْأَلُونَ عَمَّا كَانُوا يَعْمَلُونَ ﴾ 134 ﴿
तिल-क उम्मतुन् कद् ख़लत् लहा मा क-सबत् व लकुम् मा क-सब्तुम् व ला तुस्अ्लू-न अम्मा कानू यअ्मलून
ये एक समुदाय था, जो जा चुका। उन्होंने जो कर्म किये, वे उनके लिए हैं तथा जो तुमने किये, वे तुम्हारे लिए और उनके किये का प्रश्न तुमसे नहीं किया जायेगा।
وَقَالُوا كُونُوا هُودًا أَوْ نَصَارَىٰ تَهْتَدُوا ۗ قُلْ بَلْ مِلَّةَ إِبْرَاهِيمَ حَنِيفًا ۖ وَمَا كَانَ مِنَ الْمُشْرِكِينَ ﴾ 135 ﴿
व कालू कूनू हूदन् औ नसारा तह्तदू , कुल बल मिल्ल-त इब्राही-म हनीफ़न् , व मा का-न मिनल् – मुश्रिकीन
और वे कहते हैं कि यहूदी हो जाओ अथवा ईसाई हो जाओ, तुम्हें मार्गदर्शन मिल जायेगा। आप कह दें, नहीं! हम तो एकेश्वरवादी इब्राहीम के धर्म पर हैं और वह मिश्रणवादियों में से नहीं था।
قُولُوا آمَنَّا بِاللَّـهِ وَمَا أُنزِلَ إِلَيْنَا وَمَا أُنزِلَ إِلَىٰ إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ وَالْأَسْبَاطِ وَمَا أُوتِيَ مُوسَىٰ وَعِيسَىٰ وَمَا أُوتِيَ النَّبِيُّونَ مِن رَّبِّهِمْ لَا نُفَرِّقُ بَيْنَ أَحَدٍ مِّنْهُمْ وَنَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ ﴾ 136 ﴿
कूलू आमन्ना बिल्लाहि वमा उन्जि-ल इलैना वमा उन्ज़ि-ल इला इब्राही-म व इस्माअी-ल व इस्हा-क व यअकू-ब वल-अस्बाति वमा ऊति-य मूसा व अीसा वमा ऊतियन्नबिय्यू-न मिर्रब्बिहिम् ला नुफ़र्रिकु बै-न अ-हदिम्-मिन्हुम् व नह्नु लहू मुस्लिमून
(हे मुसलमानो!) तुम सब कहो कि हम अल्लाह पर ईमान लाये तथा उसपर जो (क़ुर्आन) हमारी ओर उतारा गया और उसपर जो इब्राहीम, इस्माईल, इस्ह़ाक़, याक़ूब तथा उनकी संतान की ओर उतारा गया और जो मूसा तथा ईसा को दिया गया तथा जो दूसरे नबियों को, उनके पालनहार की ओर से दिया गया। हम इनमें से किसी के बीच अन्तर नहीं करते और हम उसी के आज्ञाकारी हैं।
فَإِنْ آمَنُوا بِمِثْلِ مَا آمَنتُم بِهِ فَقَدِ اهْتَدَوا ۖ وَّإِن تَوَلَّوْا فَإِنَّمَا هُمْ فِي شِقَاقٍ ۖ فَسَيَكْفِيكَهُمُ اللَّـهُ ۚ وَهُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ ﴾ 137 ﴿
फ़-इन् आमनू बिमिस्लि मा आमन्तुम् बिही फ़-कदिहतदौ व इन तवल्लौ फ-इन्नमा हुम् फ़ी शिकाकिन् फ़-स-यक्फी-कहुमुल्लाहु व-हुवस्समीअुल अलीम
तो यदि वे तुम्हारे ही समान ईमान ले आयें, तो वे मार्गदर्शन पा लेंगे और यदि विमुख हों, तो वे विरोध में लीन हैं। उनके विरुध्द तुम्हारे लिए अल्लाह बस है और वह सब सुनने वाला और जानने वाला है।
صِبْغَةَ اللَّـهِ ۖ وَمَنْ أَحْسَنُ مِنَ اللَّـهِ صِبْغَةً ۖ وَنَحْنُ لَهُ عَابِدُونَ ﴾ 138 ﴿
सिब-गतल्लाहि व मन् अहसनु मिनल्लाहि सिब-गतंव व नह्नु लहू आबिदून
तुम सब अल्लाह के रंग[1] (स्वभाविक धर्म) को ग्रहण कर लो और अल्लाह के रंग से अच्छा किसका रंग होगा? हम तो उसी की इबादत (वंदना) करते हैं। 1. इस में ईसाई धर्म की (बैप्टिज़म) की परम्परा का खण्डन है। ईसाईयों ने पीले रंग का जल बना रखा था। जब कोई ईसाई होता या उन के यहाँ कोई शिशु जन्म लेता तो उस में स्नान करा के ईसाई बनाते थे। अल्लाह के रंग से अभिप्राय एकेश्वरवाद पर आधारित स्वभाविक धर्म इस्लाम है। (तफ़्सीरे क़ुर्तुबी)
قُلْ أَتُحَاجُّونَنَا فِي اللَّـهِ وَهُوَ رَبُّنَا وَرَبُّكُمْ وَلَنَا أَعْمَالُنَا وَلَكُمْ أَعْمَالُكُمْ وَنَحْنُ لَهُ مُخْلِصُونَ ﴾ 139 ﴿
कुल अतुहाज्जू-नना फ़िल्लाहि व हुव रब्बुना व रब्बुकुम् व लना अअ्मालुना व लकुम् अअ्मालुकुम व नह्नु लहू मुख़्लिसून
(हे नबी!) कह दो कि क्या तुम हमसे अल्लाह के (एक होने के) विषय में झगड़ते हो, जबकि वही हमारा तथा तुम्हारा पालनहार है?[1] फिर हमारे लिए हमारा कर्म है और तुम्हारे लिए तुम्हारा कर्म है और हम तो बस उसी की इबादत (वंदना) करने वाले हैं। 1. फिर वंदनीय भी केवल वही है।
أَمْ تَقُولُونَ إِنَّ إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ وَالْأَسْبَاطَ كَانُوا هُودًا أَوْ نَصَارَىٰ ۗ قُلْ أَأَنتُمْ أَعْلَمُ أَمِ اللَّـهُ ۗ وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّن كَتَمَ شَهَادَةً عِندَهُ مِنَ اللَّـهِ ۗ وَمَا اللَّـهُ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ ﴾ 140 ﴿
अम् तकूलू-न इन्-न इब्राही-म व इस्माअी-ल व इस्हा-क व यअ्कू-ब वल्-अस्बा-त कानू हूदन औ नसारा , कुल अ-अन्तुम् अअ्लमु अमिल्लाहु व मन् अ़ज्लमु मिम्मन् क-त-म शहा-दतन् अिन्दहू मिनल्लाहि , व मल्लाहु बिग़ाफ़िलिन् अम्मा तअ्मलून
(हे अह्ले किताब!) क्या तुम कहते हो कि इब्राहीम, इस्माईल, इस्ह़ाक़, याक़ूब तथा उनकी संतान यहूदी या ईसाई थी? उनसे कह दो कि तुम अधिक जानते हो अथवा अल्लाह? और उससे बड़ा अत्याचारी कौन होगा, जिसके पास अल्लाह का साक्ष्य हो और उसे छुपा दे? और अल्लाह तुम्हारे करतूतों से अचेत तो नहीं है[1]। 1. इस में यहूदियों तथा ईसाईयों के इस दावे का खण्डन किया गया है कि इब्राहीम अलैहिस्सलाम आदि नबी यहूदी अथवा ईसाई थे।
تِلْكَ أُمَّةٌ قَدْ خَلَتْ ۖ لَهَا مَا كَسَبَتْ وَلَكُم مَّا كَسَبْتُمْ ۖ وَلَا تُسْأَلُونَ عَمَّا كَانُوا يَعْمَلُونَ ﴾ 141 ﴿
तिल-क उम्मतुन् कद् ख़लत् लहा मा क-सबत् व लकुम् मा क-सब्तुम् वला तुस्अलू-न अम्मा कानू यअ्मलून *
ये एक समुदाय था, जो जा चुका। उनके लिए उनका कर्म है तथा तुम्हारे लिए तुम्हारा कर्म है। तुमसे उनके कर्मों के बारे में प्रश्न नहीं किया जायेगा[1]। 1. अर्थात तुहारे पूर्वजों के सदाचारों से तुम्हें कोई लाभ नहीं होगा, और न उन के पापों के विषय में तुम से प्रश्न किया जायेगा। अतः अपने कर्मों पर ध्यान दो।
سَيَقُولُ السُّفَهَاءُ مِنَ النَّاسِ مَا وَلَّاهُمْ عَن قِبْلَتِهِمُ الَّتِي كَانُوا عَلَيْهَا ۚ قُل لِّلَّـهِ الْمَشْرِقُ وَالْمَغْرِبُ ۚ يَهْدِي مَن يَشَاءُ إِلَىٰ صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ ﴾ 142 ﴿
सयकूलुस्-सुफहा-उ मिनन्नासि मा वल्लाहुम् अन् किब्लतिहिम मुल्लती कानू अलैहा , कुल लिल्लाहिल-मश्रिकु वल्मग्रिबु , यह्दी मंय्यशा-उ इला सिरातिम्-मुस्तकीम
शीघ्र ही मूर्ख लोग कहेंगे कि उन्हें जिस क़िबले[1] पर वे थे, उससे किस बात ने फेर दिया? (हे नबी!) उन्हें बता दो कि पूर्व और पश्चिम सब अल्लाह के हैं। वह जिसे चाहे, सीधी राह पर लगा देता है। 1. नमाज़ में मुख करने की दिशा।
وَكَذَٰلِكَ جَعَلْنَاكُمْ أُمَّةً وَسَطًا لِّتَكُونُوا شُهَدَاءَ عَلَى النَّاسِ وَيَكُونَ الرَّسُولُ عَلَيْكُمْ شَهِيدًا ۗ وَمَا جَعَلْنَا الْقِبْلَةَ الَّتِي كُنتَ عَلَيْهَا إِلَّا لِنَعْلَمَ مَن يَتَّبِعُ الرَّسُولَ مِمَّن يَنقَلِبُ عَلَىٰ عَقِبَيْهِ ۚ وَإِن كَانَتْ لَكَبِيرَةً إِلَّا عَلَى الَّذِينَ هَدَى اللَّـهُ ۗ وَمَا كَانَ اللَّـهُ لِيُضِيعَ إِيمَانَكُمْ ۚ إِنَّ اللَّـهَ بِالنَّاسِ لَرَءُوفٌ رَّحِيمٌ ﴾ 143 ﴿
व कज़ालि-क जअ़ल्नाकुम् उम्मतंव व-स-तल्लितकूनू शु-हदा-अलन-नासि व यकूनर्रसूलु अलैकुम् शहीदन् , वमा जअल्नल-किब्लतल्लती कुन्-त अ़लैहा इल्ला लिनअ्ल-म मंय्यत्तबिअुर्रसू-ल मिम्-मंय्यन्कलिबु अला अकिबैहि , व इन् कानत् ल-कबी-रतन् इल्ला अलल्लज़ी-न हदल्लाहु वमा कानल्लाहु लियुजी-अ ईमानकुम , इन्नल्ला-ह बिन्नासि ल-रऊफु़र्रहीम
और इसी प्रकार हमने तुम्हें मध्यवर्ती उम्मत (समुदाय) बना दिया; ताकि तुम, सबपर साक्षी[1] बनो और रसूल तुमपर साक्षी हों और हमने वह क़िबला जिसपर तुम थे, इसीलिए बनाया था, ताकि ये बात खोल दें कि कौन (अपने धर्म से) फिर जाता है और ये बात बड़ी भारी थी, परन्तु उनके लिए नहीं, जिन्हें अल्लाह ने मार्गदर्शन दे दिया है और अल्लाह ऐसा नहीं कि तुम्हारे ईमान (अर्थात बैतुल मक़्दिस की दिशा में नमाज़ पढ़ने) को व्यर्थ कर दे[2], वास्तव में अल्लाह लोगों के लिए अत्यंत करुणामय तथा दयावान् है। 1. साक्षी होने का अर्थ जैसा कि ह़दीस में आया है यह है कि प्रलय के दिन नूह़ अलैहिस्सलाम को बुलाया जायेगा और उन से प्रश्न किया जायेगा कि क्या तुमने अपनी जाति को संदेश पहुँचाया? वह कहेंगेः हाँ। फिर उन की जाति से प्रश्न किया जायेगा, तो वे कहेंगे कि हमारे पास सावधान करने के लिये कोई नहीं आया। तो अल्लाह तआला नूह़ अलैहिस्सलाम से कहेगा कि तुम्हारा साक्षी कौन है? वह कहेंगेः मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और उन की उम्मत। फिर आप की उम्मत साक्ष्य देगी कि नूह़ ने अल्लाह का संदेश पहुँचाया है। और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तुम पर अर्थात मुसलमानों पर साक्षी होंगे। (सह़ीह़ बुख़ारीः4486) 2.अर्थात उस का फल परदान करेगा।
قَدْ نَرَىٰ تَقَلُّبَ وَجْهِكَ فِي السَّمَاءِ ۖ فَلَنُوَلِّيَنَّكَ قِبْلَةً تَرْضَاهَا ۚ فَوَلِّ وَجْهَكَ شَطْرَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ ۚ وَحَيْثُ مَا كُنتُمْ فَوَلُّوا وُجُوهَكُمْ شَطْرَهُ ۗ وَإِنَّ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ لَيَعْلَمُونَ أَنَّهُ الْحَقُّ مِن رَّبِّهِمْ ۗ وَمَا اللَّـهُ بِغَافِلٍ عَمَّا يَعْمَلُونَ ﴾ 144 ﴿
कद् नरा तक़ल्लु-ब वज्हि-क फ़िस्समा-इ फ़-ल-नुवल्लियन्न-क किब्लतन् तर्जा़हा फ़-वल्लि वज्ह-क शत्रल-मस्जिदिल्-हराम , व हैसु मा कुन्तुम् फ़-वल्लू वुजू-हकुम् शतरहू , व इन्नल्लज़ी-न ऊतुल्किता-ब ल-यअ्लमू-न अन्नहुल-हक्कु मिरब्बिहिम , व मल्लाहु बिग़ाफ़िलिन् अम्मा यअ्मलून
(हे नबी!) हम आपके मुख को बार-बार आकाश की ओर फिरते देख रहे हैं। तो हम अवश्य आपको उस क़िबले (काबा) की ओर फेर देंगे, जिससे आप प्रसन्न हो जायें। तो (अब) अपने मुख मस्जिदे ह़राम की ओर फेर लो[1] तथा (हे मुसलमानों!) तुम भी जहाँ रहो, उसी की ओर मुख किया करो और निश्चय अह्ले किताब जानते हैं कि ये उनके पालनहार की ओर से सत्य है[2] और अल्लाह उनके कर्मों से असूचित नहीं है। 1. नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मक्का से मदीना परस्थान करने के पश्चात्, बैतुल मक़्दिस की ओर मुख कर के नमाज़ पढ़ते रहे। फिर आप को काबा की ओर मुख कर के नमाज़ पढ़ने का आदेश दिया गया। 2. क्योंकि अन्तिम नबी के गुणों में उन की पुस्तकों में बताया गया है कि वह क़िबला बदल देंगे।
وَلَئِنْ أَتَيْتَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ بِكُلِّ آيَةٍ مَّا تَبِعُوا قِبْلَتَكَ ۚ وَمَا أَنتَ بِتَابِعٍ قِبْلَتَهُمْ ۚ وَمَا بَعْضُهُم بِتَابِعٍ قِبْلَةَ بَعْضٍ ۚ وَلَئِنِ اتَّبَعْتَ أَهْوَاءَهُم مِّن بَعْدِ مَا جَاءَكَ مِنَ الْعِلْمِ ۙ إِنَّكَ إِذًا لَّمِنَ الظَّالِمِينَ ﴾ 145 ﴿
व लइन् अतै तल्लज़ी-न ऊतुल-किता-ब बिकुल्लि आ-यतिम्मा तबिअू किब्ल-त-क वमा अन्-त बिता-बिअिन् किब्ल-तहुम् वमा बअ्जुहुम् बिताबिअि़न् किब्ल-त बअ्ज़िन , व ल-इनित्तबअ्-त अहवा-अहुम् मिम्-बअदि मा जाअ-क मिनल्-अिल्मि इन्न क इज़ल् लमिनज्जालिमीन •
और यदि आप अह्ले किताब के पास प्रत्येक प्रकार की निशानी ला दें, तब भी वे आपके क़िबले का अनुसरण नहीं करेंगे और न आप उनके क़िबले का अनुसरण करेंगे और न उनमें से कोई दूसरे के क़िबले का अनुसरण करेगा और यदि ज्ञान आने के पश्चात् आपने उनकी आकांक्षाओं का अनुसरण किया, तो आप अत्याचारियों में से हो जायेंगे।
الَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ يَعْرِفُونَهُ كَمَا يَعْرِفُونَ أَبْنَاءَهُمْ ۖ وَإِنَّ فَرِيقًا مِّنْهُمْ لَيَكْتُمُونَ الْحَقَّ وَهُمْ يَعْلَمُونَ ﴾ 146 ﴿
अल्लज़ी-न आतैनाहुमुल्-किता-ब यअ्रिफूनहू कमा यअरिफू-न अब्ना-अहुम , व इन्-न फ़रीकम्-मिन्हुम् ल-यक्तुमूनल-हक्क व हुम् यअ्लमून
जिन्हें हमने पुस्तक दी है, वे आपको ऐसे ही[1] पहचानते हैं, जैसे अपने पुत्रों को पहचानते हैं और उनका एक समुदाय जानते हुए भी सत्य को छुपा रहा है। 1. आप के उन गुणों के कारण जो उन की पुस्तकों में अंतिम नबी के विषय में वर्णित किये गये हैं।
الْحَقُّ مِن رَّبِّكَ ۖ فَلَا تَكُونَنَّ مِنَ الْمُمْتَرِينَ ﴾ 147 ﴿
अल्हक्कु मिर्रब्बि-क फला तकूनन्-न मिनल-मुम्तरीन *
सत्य वही है, जो आपके पालनहार की ओर से उतारा गया। अतः, आप कदापि संदेह करने वालों में न हों।
وَلِكُلٍّ وِجْهَةٌ هُوَ مُوَلِّيهَا ۖ فَاسْتَبِقُوا الْخَيْرَاتِ ۚ أَيْنَ مَا تَكُونُوا يَأْتِ بِكُمُ اللَّـهُ جَمِيعًا ۚ إِنَّ اللَّـهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ ﴾ 148 ﴿
व लिकुल्लिव्विज्हतुन हु-व मुवल्लीहा फ़स्तबिकुल-खैराति , ऐ-न मा तकूनू यअ्ति बिकुमुल्लाहु जमीअ़न् , इन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन् क़दीर
प्रत्येक के लिए एक दिशा है, जिसकी ओर वह मुख कर हा है। अतः तुम भलाईयों में अग्रसर बनो। तुम जहाँ भी रहोगे, अल्लाह तुम सभी को (प्रलय के दिन) ले आयेगा। निश्चय अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
وَمِنْ حَيْثُ خَرَجْتَ فَوَلِّ وَجْهَكَ شَطْرَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ ۖ وَإِنَّهُ لَلْحَقُّ مِن رَّبِّكَ ۗ وَمَا اللَّـهُ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ ﴾ 149 ﴿
व मिन् हैसु ख़रज्-त फ़-वल्लि वज्ह-क शत्रल मस्जिदिल्-हराम , व इन्नहू लल्हक्कु मिर्रब्बि-क , व मल्लाहु बिग़ाफ़िलिन् अम्मा तअ्मलून
और आप जहाँ भी निकलें, अपना मुख मस्जिदे ह़राम की ओर फेरें। निःसंदेह ये आपके पालनहार की ओर से सत्य (आदेश) है और अल्लाह तुम्हारे कर्मों से असूचित नहीं है।
وَمِنْ حَيْثُ خَرَجْتَ فَوَلِّ وَجْهَكَ شَطْرَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ ۚ وَحَيْثُ مَا كُنتُمْ فَوَلُّوا وُجُوهَكُمْ شَطْرَهُ لِئَلَّا يَكُونَ لِلنَّاسِ عَلَيْكُمْ حُجَّةٌ إِلَّا الَّذِينَ ظَلَمُوا مِنْهُمْ فَلَا تَخْشَوْهُمْ وَاخْشَوْنِي وَلِأُتِمَّ نِعْمَتِي عَلَيْكُمْ وَلَعَلَّكُمْ تَهْتَدُونَ ﴾ 150 ﴿
व मिन् हैसु ख़रज्-त फ़-वल्लि वज्ह-क शत्रल् मस्जिदिल्-हराम , व हैसु मा कुन्तुम् फ़-वल्लू वुजूहकुम् शत्रहू लिअल्ला यकू-न लिन्नासि अलैकुम् , हुज्जतुन् , इल्लल्लज़ी-न ज़-लमू मिन्हुम् फला तख़शौहुम् वख़्शौनी , व लि-उतिम्-म निअ्मती अलैकुम् व लअल्लकुम् तह्तदून
और आप जहाँ से भी निकलें, अपना मुख मस्जिदे ह़राम की ओर फेरें और (हे मुसलमानों!) तुम जहाँ भी रहो, अपने मुखों को उसी की ओर फेरो; ताकि उन्हें तुम्हारे विरुध्द किसी विवाद का अवसर न मिले, मगर उन लोगों के अतिरिक्त, जो अत्याचार करें। अतः उनसे न डरो। मुझी से डरो और ताकि मैं तुमपर अपना पुरस्कार (धर्म विधान) पूरा कर दूँ और ताकि तुम सीधी डगर पाओ।
كَمَا أَرْسَلْنَا فِيكُمْ رَسُولًا مِّنكُمْ يَتْلُو عَلَيْكُمْ آيَاتِنَا وَيُزَكِّيكُمْ وَيُعَلِّمُكُمُ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَيُعَلِّمُكُم مَّا لَمْ تَكُونُوا تَعْلَمُونَ ﴾ 151 ﴿
कमा अर्-सल्ना फीकुम् रसूलम्-मिन्कुम् यत्लू अलैकुम् आयातिना व युज़क्कीकुम् व युअ़ल्लिमुकुमुल-किता-ब वल्हिक्म-त व युअल्लिमुकुम् मा लम् तकूनू तअ्लमून
जिस प्रकार हमने तुम्हारे लिए तुम्हीं में से एक रसूल भेजा, जो तुम्हें हमारी आयतें सुनाता तथा तुम्हें शुध्द आज्ञाकारी बनाता है और तुम्हें पुस्तक (कुर्आन) तथा ह़िक्मत (सुन्नत) सिखाता है तथा तुम्हें वो बातें सिखाता है, जो तुम नहीं जानते थे।
فَاذْكُرُونِي أَذْكُرْكُمْ وَاشْكُرُوا لِي وَلَا تَكْفُرُونِ ﴾ 152 ﴿
फज्कुरूनी अज्कुर्कुम् वश्कुरूली वला तक्फुरून *
अतः, मुझे याद करो[1], मैं तुम्हें याद करूँगा[2] और मेरे आभारी रहो और मेरे कृतघ्न न बनो। 1. अर्थात मेरी आज्ञा का अनुपालन और मेरी अराधना करो। 2. अर्थात अपनी क्षमा और पुरस्कार द्वारा।
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اسْتَعِينُوا بِالصَّبْرِ وَالصَّلَاةِ ۚ إِنَّ اللَّـهَ مَعَ الصَّابِرِينَ ﴾ 153 ﴿
या अय्युहल्लज़ी-न आमनुस्तअी़नू बिस्सब्रि वस्सलाति , इन्नल्ला-ह मअ़स्साबिरीन
हे ईमान वालो! धैर्य तथा नमाज़ का सहारा लो, निश्चय अल्लाह धैर्यवानों के साथ है।
وَلَا تَقُولُوا لِمَن يُقْتَلُ فِي سَبِيلِ اللَّـهِ أَمْوَاتٌ ۚ بَلْ أَحْيَاءٌ وَلَـٰكِن لَّا تَشْعُرُونَ ﴾ 154 ﴿
वला तकूलू लिमंय्युक्त़लु फ़ी सबीलिल्लाहि अम्वातुन् , बल् अह्याउंव् वला-किल्ला तश्अुरून
तथा जो अल्लाह की राह में मारे जायें, उन्हें मुर्दा न कहो, बल्कि वे जीवित हैं, परन्तु तुम (उनके जीवन की दशा) नहीं समझते।
وَلَنَبْلُوَنَّكُم بِشَيْءٍ مِّنَ الْخَوْفِ وَالْجُوعِ وَنَقْصٍ مِّنَ الْأَمْوَالِ وَالْأَنفُسِ وَالثَّمَرَاتِ ۗ وَبَشِّرِ الصَّابِرِينَ ﴾ 155 ﴿
व ल-नब्लु वन्नकुम् बिशैइम् मिनल्खौफि वल्जूअि़ व नक्सिम् मिनल अम्वालि वल्-अन्फुसि वस्स-मराति , व बश्शिरिस्साबिरीन
तथा हम अवश्य कुछ भय, भूक तथा धनों और प्राणों तथा खाद्य पदार्थों की कमी से तुम्हारी परीक्षा करेंगे और धैर्यवानों को शुभ समाचार सुना दो।
الَّذِينَ إِذَا أَصَابَتْهُم مُّصِيبَةٌ قَالُوا إِنَّا لِلَّـهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَاجِعُونَ ﴾ 156 ﴿
अल्लज़ी-न इज़ा असाबतहुम् मुसीबतुन् कालू इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिअून
जिनपर कोई आपदा आ पड़े, तो कहते हैं कि हम अल्लाह के हैं और हमें उसी के पास फिर कर जाना है।
أُولَـٰئِكَ عَلَيْهِمْ صَلَوَاتٌ مِّن رَّبِّهِمْ وَرَحْمَةٌ ۖ وَأُولَـٰئِكَ هُمُ الْمُهْتَدُونَ ﴾ 157 ﴿
उलाइ-क अलैहिम सलवातुम् मिर्रब्बिहिम् व रहमतुन् , व उलाइ-क हुमुल्-मुह्तदून
इन्हीं पर इनके पालनहार की कृपायें तथा दया हैं और यही सीधी राह पाने वाले हैं।
إِنَّ الصَّفَا وَالْمَرْوَةَ مِن شَعَائِرِ اللَّـهِ ۖ فَمَنْ حَجَّ الْبَيْتَ أَوِ اعْتَمَرَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِ أَن يَطَّوَّفَ بِهِمَا ۚ وَمَن تَطَوَّعَ خَيْرًا فَإِنَّ اللَّـهَ شَاكِرٌ عَلِيمٌ ﴾ 158 ﴿
इन्नस्सफा वल्मर्व-त मिन् शआ-इरिल्लाहि फ़-मन् हज्जल्बै-त अविअ्त-म-र फ़ला जुना-ह अलैहि अंय्यत्तव्व-फ़ बिहिमा , व मन् त-तव्व-अ खैरन् फ़-इन्नल्ला-ह शाकिरून् अलीम
बेशक सफ़ा तथा मरवा पहाड़ी[1] अल्लाह (के धर्म) की निशानियों में से हैं। अतः जो अल्लाह के घर का ह़ज या उमरह करे, तो उसपर कोई दोष नहीं कि उन दोनों का फेरा लगाये और जो स्वेच्छा से भलाई करे, तो निःसंदेह अल्लाह उसका गुणग्राही अति ज्ञानी है। 1. यह दो पर्वत हैं जो काबा की पूर्वी दिशा में स्थित हैं। जिनके बीच सात फेरे लगाना ह़ज्ज तथा उमरे का अनिवार्य कर्म है। जिस का आरंभ सफ़ा पर्वत से करना सुन्नत है।
إِنَّ الَّذِينَ يَكْتُمُونَ مَا أَنزَلْنَا مِنَ الْبَيِّنَاتِ وَالْهُدَىٰ مِن بَعْدِ مَا بَيَّنَّاهُ لِلنَّاسِ فِي الْكِتَابِ ۙ أُولَـٰئِكَ يَلْعَنُهُمُ اللَّـهُ وَيَلْعَنُهُمُ اللَّاعِنُونَ ﴾ 159 ﴿
इन्नल्लजी-न यक़्तुमू-न मा अन्जल्ना मिनल् बय्यिनाति वल्हुदा मिम्-बअदि मा बय्यन्नाहु लिन्नासि फिल्-किताबि उलाइ-क यल् अनुहुमुल्लाहु व यल् अनुहुमुल्-लाअिनून
तथा जो हमारी उतारी हुई आयतों (अन्तिम नबी के गुणों) तथा मार्गदर्शन को, इसके पश्चात् कि हमने पुस्तक[1] में उसे लोगों के लिए उजागर कर दिया है, छुपाते हैं, उन्हीं को अल्लाह धिक्कारता है[2] तथा सब धिक्कारने वाले धिक्कारते हैं। 1. अर्थात तौरात, इंजील आदि पुस्तकों में। 2. अल्लाह के धिक्कारने का अर्थ अपनी दया से दूर करना है।
إِلَّا الَّذِينَ تَابُوا وَأَصْلَحُوا وَبَيَّنُوا فَأُولَـٰئِكَ أَتُوبُ عَلَيْهِمْ ۚ وَأَنَا التَّوَّابُ الرَّحِيمُ ﴾ 160 ﴿
इल्लल्लज़ी-न ताबू व अस्लहू व बय्यनू फ़-उलाइ-क अतूबु अलैहिम् व अ-नत्तव्वाबुर्रहीम
जिन लोगों ने तौबा (क्षमा याचना) कर ली और सुधार कर लिया और उजागर कर दिया, तो मैं उनकी तौबा स्वीकार कर लूँगा तथा मैं अत्यंत क्षमाशील, दयावान् हूँ।
إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا وَمَاتُوا وَهُمْ كُفَّارٌ أُولَـٰئِكَ عَلَيْهِمْ لَعْنَةُ اللَّـهِ وَالْمَلَائِكَةِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ ﴾ 161 ﴿
इन्नल्लज़ी-न क-फरू व मातू व हुम् कुफ्फारून् उलाइ-क अलैहिम् लअ्-नतुल्लाहि वल् मलाइ-कति वन्नासि अज्मअी़न
वास्तव में, जो काफ़िर (अविश्वासी) हो गये और इसी दशा में मरे, तो वही हैं, जिनपर अल्लाह तथा फ़रिश्तों और सब लोगों की धिक्कार है।
خَالِدِينَ فِيهَا ۖ لَا يُخَفَّفُ عَنْهُمُ الْعَذَابُ وَلَا هُمْ يُنظَرُونَ ﴾ 162 ﴿
ख़ालिदी-न फ़ीहा ला युख्फ्फु अन्हुमुल्-अज़ाबु व ला हुम् युन्ज़रून
वह इस (धिक्कार) में सदावासी होंगे, उनसे यातना मंद नहीं की जायेगी और न उनको अवकाश दिया जायेगा।
وَإِلَـٰهُكُمْ إِلَـٰهٌ وَاحِدٌ ۖ لَّا إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ الرَّحْمَـٰنُ الرَّحِيمُ ﴾ 163 ﴿
व इलाहुकुम् इलाहुंव-वाहिदुन् ला इला-ह इल्ला हुवर्रह्मानुर्रहीम *
और तुम्हारा पूज्य एक ही[1] पूज्य है, उस अत्यंत दयालु, दयावान के सिवा कोई पूज्य नहीं। 1. अर्थात जो अपने अस्तित्व तथा नामों और गुणों तथा कर्मों में अकेला है।
إِنَّ فِي خَلْقِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَاخْتِلَافِ اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ وَالْفُلْكِ الَّتِي تَجْرِي فِي الْبَحْرِ بِمَا يَنفَعُ النَّاسَ وَمَا أَنزَلَ اللَّـهُ مِنَ السَّمَاءِ مِن مَّاءٍ فَأَحْيَا بِهِ الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا وَبَثَّ فِيهَا مِن كُلِّ دَابَّةٍ وَتَصْرِيفِ الرِّيَاحِ وَالسَّحَابِ الْمُسَخَّرِ بَيْنَ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يَعْقِلُونَ ﴾ 164 ﴿
इन्-न फ़ी ख़ल्किस्समावाति वलअर्ज़ि वख्तिलाफ़िल्लैलि वन्नहारि वल्फु़ल्किल्लती तजरी फ़िल्बहरि बिमा यन्फअुन्ना-स व मा अन्ज़लल्लाहु मिनस्समा-इ मिम्मा-इन् फ़-अह्या बिहिल् अर्-ज़ बअ्-द मौतिहा व बस्-स फ़ीहा मिन् कुल्लि दाब्बतिन् व तसरीफ़िर्रियाहि वस्सहाबिल मुसख्खरि बैनस्समा-इ वल् अर्जि लआयातिल लिकौमिंय्यअकिलून
बेशक आकाशों तथा धरती की रचना में, रात तथा दिन के एक-दूसरे के पीछे निरन्तर आने-जाने में, उन नावों में, जो मानव के लाभ के साधनों को लिए, सागरों में चलती-फिरती हैं और वर्षा के उस पानी में, जिसे अल्लाह आकाश से बरसाता है, फिर धरती को उसके द्वारा, उसके मरण् (सूखने) के पश्चात् जीवित करता है और उसमें प्रत्येक जीवों को फैलाता है तथा वायुओं को फेरने में और उन बादलों में, जो आकाश और धरती के बीच उसकी आज्ञा[1] के अधीन रहते हैं, (इन सब चीज़ों में) अगणित निशानियाँ (लक्ष्ण) हैं, उन लोगों के लिए, जो समझ-बूझ रखते हैं। 1. अर्थात इस विश्व की पूरी व्यवस्था इस बात का तर्क और प्रमाण है कि इस का व्यवस्थापक अल्लाह ही एक मात्र पूज्य तथा अपने गुण कर्मों में यक्ता है। अतः पूजा-अर्चना भी उसी एक की होनी चाहिये। यही समझ-बूझ का निर्णय है।
وَمِنَ النَّاسِ مَن يَتَّخِذُ مِن دُونِ اللَّـهِ أَندَادًا يُحِبُّونَهُمْ كَحُبِّ اللَّـهِ ۖ وَالَّذِينَ آمَنُوا أَشَدُّ حُبًّا لِّلَّـهِ ۗ وَلَوْ يَرَى الَّذِينَ ظَلَمُوا إِذْ يَرَوْنَ الْعَذَابَ أَنَّ الْقُوَّةَ لِلَّـهِ جَمِيعًا وَأَنَّ اللَّـهَ شَدِيدُ الْعَذَابِ ﴾ 165 ﴿
व मिनन्नासि मंय्यत्तख़िजु मिन् दूनिल्लाहि अन्दादंय्युहिब्बू-नहुम् कहुब्बिल्लाहि , वल्लज़ी-न आमनू अशद्दू हुब्बल-लिल्लाहि , व लौ यरल्लज़ी-न ज़-लमू इज् यरौनल-अज़ा-ब अन्नल-कुव्व-त लिल्लाहि जमीअंव व अन्नल्ला-ह शदीदुल् अ़ज़ाब
कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो अल्लाह के सिवा दूसरों को उसका साझी बनाते हैं और उनसे, अल्लाह से प्रेम करने जैसा प्रेम करते हैं तथा जो ईमान लाये, वे अल्लाह से सर्वाधिक प्रेम करते हैं और क्या ही अच्छा होता, यदि ये अत्याचारी यातना देखने के समय[1] जो बात जानेंगे, इसी समय[2] जानते कि सब शक्ति तथा अधिकार अल्लाह ही को है और अल्लाह का दण्ड भी बहुत कड़ा है, (तो अल्लाह के सिवा दूसरे की पूजा अराधना नहीं करते।) 1. अर्थात प्रलय के दिन। 2. अर्थात संसार ही में।
إِذْ تَبَرَّأَ الَّذِينَ اتُّبِعُوا مِنَ الَّذِينَ اتَّبَعُوا وَرَأَوُا الْعَذَابَ وَتَقَطَّعَتْ بِهِمُ الْأَسْبَابُ ﴾ 166 ﴿
इज् त-बर्र अल्लज़ीनत्तु बिअ़ू मिनल्लज़ीनत् त-बअू व र-अवुल अज़ा-ब व त कत्तअत् बिहिमुल अस्बाब
जब ये दशा[1] होगी कि जिनका अनुसरण किया गया[2], वे अपने अनुयायियों से विरक्त हो जायेंगे और उनके आपस के सभी सम्बंध[3] टूट जायेंगे। 1. अर्थात प्रलय के दिन। 2. अर्थात संसार में जिन प्रमुखों का अनुसरण किया गया। 3. अर्थात सामीप्य, अनुसरण तथा धर्म आदि के।
وَقَالَ الَّذِينَ اتَّبَعُوا لَوْ أَنَّ لَنَا كَرَّةً فَنَتَبَرَّأَ مِنْهُمْ كَمَا تَبَرَّءُوا مِنَّا ۗ كَذَٰلِكَ يُرِيهِمُ اللَّـهُ أَعْمَالَهُمْ حَسَرَاتٍ عَلَيْهِمْ ۖ وَمَا هُم بِخَارِجِينَ مِنَ النَّارِ ﴾ 167 ﴿
व कालल्लज़ीनत्त-बअू लौ अन्-न लना कर्रतन् फ़-न-तबर्र-अ मिन्हुम् कमा तबर्रअू मिन्ना , कज़ालि-क युरीहिमुल्लाहु अअ्मालहुम् ह-सरातिन् अलैहिम् , व मा हुम् बिख़ारिजी-न मिनन्नार *
तथा जो अनुयायी होंगे, वे ये कामना करेंगे कि एक बार और हम संसार में जाते, तो इनसे ऐसे ही विरक्त हो जाते, जैसे ये हमसे विरक्त हो गये हैं! ऐसे ही अल्लाह उनके कर्मों को उनके लिए संताप बनाकर दिखाएगा और वे अग्नि से निकल नहीं सकेंगे।
يَا أَيُّهَا النَّاسُ كُلُوا مِمَّا فِي الْأَرْضِ حَلَالًا طَيِّبًا وَلَا تَتَّبِعُوا خُطُوَاتِ الشَّيْطَانِ ۚ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُّبِينٌ ﴾ 168 ﴿
या अय्युहन्नासु कुलू मिम्मा फिल् अर्ज़ि हलालन् तय्यिबंव-वला तत्तबिअू खुतुवातिश्शैतानि , इन्नहू लकुम् अदुव्वुम् मुबीन
हे लोगो! धरती में जो ह़लाल (वैध) स्वच्छ चीज़ें हैं, उन्हें खाओ और शैतान की बताई राहों पर न चलो[1], वह तुम्हारा खुला शत्रु है। 1. अर्थात उस की बताई बातों को न मानो।
إِنَّمَا يَأْمُرُكُم بِالسُّوءِ وَالْفَحْشَاءِ وَأَن تَقُولُوا عَلَى اللَّـهِ مَا لَا تَعْلَمُونَ ﴾ 169 ﴿
इन्नमा यअ्मुरूकुम् बिस्सू-इ वल्-फहशा-इ व अन् तकूलू अलल्लाहि मा ला तअ्लमून
वह तुम्हें बुराई तथा निर्लज्जा का आदेश देता है और ये कि अल्लाह पर उस चीज़ का आरोप[1] धरो, जिसे तुम नहीं जानते हो। 1. अर्थात वैध को अवैध करने आदि का।
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ اتَّبِعُوا مَا أَنزَلَ اللَّـهُ قَالُوا بَلْ نَتَّبِعُ مَا أَلْفَيْنَا عَلَيْهِ آبَاءَنَا ۗ أَوَلَوْ كَانَ آبَاؤُهُمْ لَا يَعْقِلُونَ شَيْئًا وَلَا يَهْتَدُونَ ﴾ 170 ﴿
व इज़ा की-ल लहुमुत्तबिअू मा अन्ज़लल्लाहु कालू बल् नत्तबिअु़ मा अल्फ़ैना अलैहि आबा-अना , अ-व लौ का-न आबाअुहुम् ला यअ्किलू-न शैअंव व ला यह्तदून
और जब उनसे[1] कहा जाता है कि जो (क़ुर्आन) अल्लाह ने उतारा है, उसपर चलो, तो कहते हैं कि हम तो उसी रीति पर चलेंगे, जिसपर अपने पूर्वजों को पाया है। क्या यदि उनके पूर्वज कुछ न समझते रहे तथा कुपथ पर रहे हों, (तब भी वे उन्हीं का अनुसरण करते रहेंगे?) 1. अर्थात अह्ले किताब तथा मिश्रणवादियों से।
وَمَثَلُ الَّذِينَ كَفَرُوا كَمَثَلِ الَّذِي يَنْعِقُ بِمَا لَا يَسْمَعُ إِلَّا دُعَاءً وَنِدَاءً ۚ صُمٌّ بُكْمٌ عُمْيٌ فَهُمْ لَا يَعْقِلُونَ ﴾ 171 ﴿
व म-सलुल्लज़ी-न क-फरू क-म-सलिल्लज़ी यन्अिकु बिमा ला यस्मअु इल्ला दुआअंव व निदाअन् , सुम्मुम् बुक्मुन् अुम्युन् फहुम् ला यअ्किलून
उनकी दशा जो काफ़िर हो गये, उसके समान है, जो उसे (अर्थात पशु को) पुकारता है, जो हाँक-पुकार के सिवा कुछ[1] नहीं सुनता, ये (काफ़िर) बहरे, गोंगे तथा अंधे हैं। इसलिए कुछ नहीं समझते। 1. अर्थात ध्वनि सुनता है परन्तु बात का अर्ध नहीं समझता।
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُلُوا مِن طَيِّبَاتِ مَا رَزَقْنَاكُمْ وَاشْكُرُوا لِلَّـهِ إِن كُنتُمْ إِيَّاهُ تَعْبُدُونَ ﴾ 172 ﴿
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू कुलू मिन् तय्यिबाति मा रज़क़्नाकुम् वश्कुरू लिल्लाहि इन् कुन्तुम् इय्याहु तअ्बुदून
हे ईमान वालो! उन स्वच्छ चीज़ों में से खाओ, जो हमने तुम्हें दी हैं तथा अल्लाह की कृतज्ञता का वर्णन करो, यदि तुम केवल उसी की इबादत (वंदना) करते हो।
إِنَّمَا حَرَّمَ عَلَيْكُمُ الْمَيْتَةَ وَالدَّمَ وَلَحْمَ الْخِنزِيرِ وَمَا أُهِلَّ بِهِ لِغَيْرِ اللَّـهِ ۖ فَمَنِ اضْطُرَّ غَيْرَ بَاغٍ وَلَا عَادٍ فَلَا إِثْمَ عَلَيْهِ ۚ إِنَّ اللَّـهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ ﴾ 173 ﴿
इन्नमा हर्र-म अलैकुमुल-मै-त-त वद्द-म व लह्मल खिन्ज़ीरि व मा उहिल्-ल बिही लिगैरिल्लाहि फ़-मनिज्तुर्-र गै-र बागिंव व ला आदिन् फला इस्-म अलैहि , इन्नल्ला-ह गफूर्रहीम
(अल्लाह) ने तुमपर मुर्दार[1] तथा (बहता) रक्त और सुअर का माँस तथा जिसपर अल्लाह के सिवा किसी और का नाम पुकारा गया हो, उन्हें ह़राम (निषेध) कर दिया है। फिर भी जो विवश हो जाये, जबकि वह नियम न तोड़ रहा हो और आवश्यक्ता की सीमा का उल्लंघन न कर रहा हो, तो उसपर कोई दोष नहीं। अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।[1] 1. जिसे धर्म विधान के अनुसार वध न किया गया हो, अधिक विवरण सूरह माइदह में आ रहा है। 2.अर्थात ऐसा विवश व्यक्ति जो ह़लाल जीविका न पा सके उस के लिये निषेध नहीं कि वह अपनी आवश्यक्तानुसार ह़राम चीज़ें खा ले। परन्तु उस पर अनिवार्य है कि वह उस की सीमा का उल्लंघन न करे और जहाँ उसे ह़लाल जीविका मिल जाये वहाँ ह़राम खाने से रुक जाये।
إِنَّ الَّذِينَ يَكْتُمُونَ مَا أَنزَلَ اللَّـهُ مِنَ الْكِتَابِ وَيَشْتَرُونَ بِهِ ثَمَنًا قَلِيلًا ۙ أُولَـٰئِكَ مَا يَأْكُلُونَ فِي بُطُونِهِمْ إِلَّا النَّارَ وَلَا يُكَلِّمُهُمُ اللَّـهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَلَا يُزَكِّيهِمْ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ ﴾ 174 ﴿
इन्नल्लज़ी-न यक़्तुमू-न मा अन्जलल्लाहु मिनल्-किताबि व यश्तरू-न बिहि स-मनन् कलीलन् उलाइ-क मा यअ्कुलू-न फ़ी बुतूनिहिम् इल्लन्ना-र व ला युकल्लिमुहुमुल्लाहु यौमल कियामति व ला युज़क्कीहिम व लहुम् अज़ाबुन अलीम
वास्तव में, जो लोग अल्लाह की उतारी पुस्तक (की बातों) को छुपा रहे हैं और उनके बदले तनिक मूल्य प्राप्त कर लेते हैं, वे अपने उदर में केवल अग्नि भर रहे हैं तथा अल्लाह उनसे बात नहीं करेगा और न उन्हें विशुध्द करेगा और उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।
أُولَـٰئِكَ الَّذِينَ اشْتَرَوُا الضَّلَالَةَ بِالْهُدَىٰ وَالْعَذَابَ بِالْمَغْفِرَةِ ۚ فَمَا أَصْبَرَهُمْ عَلَى النَّارِ ﴾ 175 ﴿
उला-इकल्लज़ीनश्त-रवुज् जलाल-त बिल्हुदा वल-अज़ा-ब बिल् मग्फि-रति फमा अस्ब-रहुम् अलन्नार
यही वे लोग हैं, जिन्होंने सुपथ (मार्गदर्शन) के बदले कुपथ खरीद लिया है तथा क्षमा के बदले यातना। तो नरक की अग्नि पर वे कितने सहनशील हैं?
ذَٰلِكَ بِأَنَّ اللَّـهَ نَزَّلَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ ۗ وَإِنَّ الَّذِينَ اخْتَلَفُوا فِي الْكِتَابِ لَفِي شِقَاقٍ بَعِيدٍ ﴾ 176 ﴿
जालि-क बिअन्नल्ला-ह नज्जलल्-किता-ब बिल्हक्कि , व इन्नल्लज़ीनख़्त-लफू फ़िल्-किताबि लफ़ी शिकाकिम्-बअीद • *
इस यातना के अधिकारी वे इसलिए हुए कि अल्लाह ने पुस्तक सत्य के साथ उतारी और जो पुस्तक में विभेद कर बैठे, वे वास्तव में, विरोध में बहुत दुर निकल गये।
لَّيْسَ الْبِرَّ أَن تُوَلُّوا وُجُوهَكُمْ قِبَلَ الْمَشْرِقِ وَالْمَغْرِبِ وَلَـٰكِنَّ الْبِرَّ مَنْ آمَنَ بِاللَّـهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَالْمَلَائِكَةِ وَالْكِتَابِ وَالنَّبِيِّينَ وَآتَى الْمَالَ عَلَىٰ حُبِّهِ ذَوِي الْقُرْبَىٰ وَالْيَتَامَىٰ وَالْمَسَاكِينَ وَابْنَ السَّبِيلِ وَالسَّائِلِينَ وَفِي الرِّقَابِ وَأَقَامَ الصَّلَاةَ وَآتَى الزَّكَاةَ وَالْمُوفُونَ بِعَهْدِهِمْ إِذَا عَاهَدُوا ۖ وَالصَّابِرِينَ فِي الْبَأْسَاءِ وَالضَّرَّاءِ وَحِينَ الْبَأْسِ ۗ أُولَـٰئِكَ الَّذِينَ صَدَقُوا ۖ وَأُولَـٰئِكَ هُمُ الْمُتَّقُونَ ﴾ 177 ﴿
लैसल्बिर्-र अन् तुवल्लू वुजू-हकुम् कि-बलल्-मशरिकि वल्-मग्रिबि व लाकिन्नल्-बिर्-र मन् आम-न बिल्लाहि वल्यौमिल् आखिरि वल्मलाइ-कति वल्किताबि वन्नबिय्यी-न व आतल्मा-ल अला हुब्बिही ज़विल्कुरबा वल्यतामा वल्मसाकी-न वब्नस्सबीलि वस्सा-इली-न व फिर्रिकाबि , व अक़ामस्सला-त व आतज्ज़का-त वल्मूफू-न बि-अहदिहिम इज़ा आ-हदू वस्साबिरी-न फिल्-बअ्सा-इ वज़्ज़र्रा-इ व हीनल्-बअ्सि , उलाइ-कल्लज़ी-न स-दकू , व उलाइ-क हुमुल्-मुत्तकून
भलाई ये नहीं है कि तुम अपना मुख पूर्व अथवा पश्चिम की ओर फेर लो! भला कर्म तो उसका है, जो अल्लाह और अन्तिम दिन (प्रलय) पर ईमान लाया तथा फ़रिश्तों, सब पुस्तकों, नबियों पर (भी ईमान लाया), धन का मोह रखते हुए, समीपवर्तियों, अनाथों, निर्धनों, यात्रियों तथा याचकों (फकीरों) को और दास मुक्ति के लिए दिया, नमाज़ की स्थापना की, ज़कात दी, अपने वचन को, जब भी वचन दिया, पूरा करते रहे एवं निर्धनता और रोग तथा युध्द की स्थिति में धैर्यवान रहे। यही लोग सच्चे हैं तथा यही (अल्लाह से) डरते[1] हैं। 1. इस आयत का भावार्थ यह है कि नमाज़ में क़िब्ले की ओर मुख करना अनिवार्य है, फिर भी सत्धर्म इतना ही नहीं कि धर्म की किसी एक बात को अपना लिया जाये। सत्धर्म तो सत्य आस्था, सत्कर्म और पूरे जीवन को अल्लाह की आज्ञा के अधीन कर देने का लाम है।
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُتِبَ عَلَيْكُمُ الْقِصَاصُ فِي الْقَتْلَى ۖ الْحُرُّ بِالْحُرِّ وَالْعَبْدُ بِالْعَبْدِ وَالْأُنثَىٰ بِالْأُنثَىٰ ۚ فَمَنْ عُفِيَ لَهُ مِنْ أَخِيهِ شَيْءٌ فَاتِّبَاعٌ بِالْمَعْرُوفِ وَأَدَاءٌ إِلَيْهِ بِإِحْسَانٍ ۗ ذَٰلِكَ تَخْفِيفٌ مِّن رَّبِّكُمْ وَرَحْمَةٌ ۗ فَمَنِ اعْتَدَىٰ بَعْدَ ذَٰلِكَ فَلَهُ عَذَابٌ أَلِيمٌ ﴾ 178 ﴿
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू कुति-ब अलैकुमुल्-किसासु फ़िल्कत्ला , अल्हुर्रू बिल्हुर्रि वल्अ़ब्दु बिल्अ़ब्दि वल्-उन्सा बिल्-उन्सा , फ़-मन् अुफ़ि-य लहू मिन् अख़ीहि शैउन् फ़त्तिबाअुम् बिल्मअ्रूफि व अदाउन् इलैहि बि-इहसानिन् , ज़ालि-क तख्फीफुम् मिर्रब्बिकुम् व रहमतुन् , फ़-मनिअ्तदा बअ्-द ज़ालि-क फ़-लहू अ़ज़ाबुन अलीम
हे ईमान वालो! तुमपर निहत व्यक्तियों के बारे में क़िसास (बराबरी का बदला) अनिवार्य[1] कर दिया गया है। स्वतंत्र का बदला स्वतंत्र से लिया जायेगा, दास का दास से और नारी का नारी से। जिस अपराधी के लिए उसके भाई की ओर से कुछ क्षमा कर[2] दिया जाये, तो उसे सामान्य नियम का अनुसरण (अनुपालन) करना चाहिये। निहत व्यक्ति के वारिस को भलाई के साथ दियत (अर्थदण्ड) चुका देना चाहिये। ये तुम्हारे पालनहार की ओर से सुविधा तथा दया है। इसपर भी जो अत्याचार[3] करे, तो उसके लिए दुःखदायी यातना है। 1. अर्थात यह नहीं हो सकता कि निहत की प्रधानता अथवा उच्च वंश का होने के कारण कई व्यक्ति मार दिये जायें, जैसा कि इस्लाम से पूर्व जाहिलिय्यत की रीति थी कि एक के बदले कई को ही नहीं, यदि निर्बल क़बीला हो तो, पूरे क़बीले ही को मार दिया जाता था। इस्लाम ने यह नियम बना दिया कि स्वतंत्र तथा दास और नर नारी सब मानवता में बराबर हैं। अतः बदले में केवल उसी को मारा जाये जो अपराधी है। वह स्वतंत्र हो या दास, नर हो या नारी। (संक्षिप्त, इब्ने कसीर) 2. क्षमा दो प्रकार से हो सकता हैः एक तो यह कि निहत के लोग अपराधी को क्षमा कर दें। दूसरा यह कि क़िसास को क्षमा कर के दियत (अर्थदण्ड) लेना स्वीकार कर लें। इसी स्थिति में कहा गया है कि नियमानुसार दियत (अर्थदण्ड) चुका दे। 3. अर्थात क्षमा कर देने या दियत लेने के पश्चात् भी अपराधी को मार डाले तो उसे क़िसास में हत किया जायेगा।
وَلَكُمْ فِي الْقِصَاصِ حَيَاةٌ يَا أُولِي الْأَلْبَابِ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ ﴾ 179 ﴿
व लकुम् फिल्क़िसासि हयातुंय्या उलिल्-अल्बाबि लअल्लकुम तत्तकून
और हे समझ वालो! तुम्हारे लिए क़िसास (के नियम में) जीवन है, ताकि तुम रक्तपात से बचो।[1] 1. क्योंकि इस नियम के कारण कोई किसी को हत करने का साहस नहीं करेगा। इस लिये इस के कारण समाज शांतिमय हो जायेगा। अर्थात एक क़िसास से लोगों के जीवन की रक्षा होगी। जैसा कि उन देशों में जहाँ क़िसास का नियम है देखा जा सकता है। क़ुर्आन ओर सेकेत करते हुये यह कहता है कि क़िसास नियम के अन्दर वास्तव में जीवन है।
كُتِبَ عَلَيْكُمْ إِذَا حَضَرَ أَحَدَكُمُ الْمَوْتُ إِن تَرَكَ خَيْرًا الْوَصِيَّةُ لِلْوَالِدَيْنِ وَالْأَقْرَبِينَ بِالْمَعْرُوفِ ۖ حَقًّا عَلَى الْمُتَّقِينَ ﴾ 180 ﴿
कुति-ब अलैकुम् इज़ा ह-ज़-र अ-ह-दकुमुल्मौतु इन् त-र-क खै-रनिल वसिय्यतु लिल्वालिदैनि वल-अक़्रबी-न बिल्मअ्रूफि हक़्कन अलल्-मुत्तक़ीन
और जब तुममें से किसी के निधन का समय हो और वह धन छोड़ रहा हो, तो उसपर माता-पिता और समीपवर्तियों के लिए साधारण नियमानुसार वसिय्यत (उत्तरदान) करना अनिवार्य कर दिया गया है। ये आज्ञाकारियों के लिए सुनिश्चित[1] है। 1. यह वसिय्यत (मीरास) की आयत उतरने से पहले अनिवार्य थी, जिसे (मीरास) की आयत से निरस्त कर दिया गया। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन है कि अल्लाह ने प्रतयेक अधिकारी को उस का अधिकार दे दिया है, अतः अब वारिस के लिये कोई वसिय्यत नहीं है। फिर जो वारिस न हो तो उसे भी तिहाई धन से अधिक की वसिय्यत उचित नहीं है। (सह़ीह़ बुख़ारीः4577, सुनन अबू दावूदः2870, इब्ने माजाः2210)
فَمَن بَدَّلَهُ بَعْدَ مَا سَمِعَهُ فَإِنَّمَا إِثْمُهُ عَلَى الَّذِينَ يُبَدِّلُونَهُ ۚ إِنَّ اللَّـهَ سَمِيعٌ عَلِيمٌ ﴾ 181 ﴿
फ़-मम् बद्-द लहू बअ्-द मा समि-अहू फ़-इन्नमा इस्मुहू अलल्लज़ी-न युबद्दिलूनहू , इन्नल्ला-ह समीअुन अलीम
फिर जिसने वसिय्यत सुनने के पश्चात उसे बदल दिया, तो उसका पाप उनपर है, जो उसे बदलेंगे और अल्लाह सब कुछ सुनता-जानता है।
فَمَنْ خَافَ مِن مُّوصٍ جَنَفًا أَوْ إِثْمًا فَأَصْلَحَ بَيْنَهُمْ فَلَا إِثْمَ عَلَيْهِ ۚ إِنَّ اللَّـهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ ﴾ 182 ﴿
फ़-मन् खा-फ़ मिम्-मूसिन् ज-नफ़न् औ इस्मन् फ़-अस्ल-ह बैनहुम् फला इस-म अलैहि , इन्नल्ला-ह गफूरूर्रहीम *
फिर जिसे डर हो कि वसिय्यत करने वाले ने पक्षपात या अत्याचार किया है, फिर उसने उनके बीच सुधार करा दिया, तो उसपर कोई पाप नहीं। निश्चय अल्लाह अति क्षमाशील तथा दयावान् है।
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ ﴾ 183 ﴿
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू कुति-ब अलैकुमुस्-सियामु कमा कुति-ब अलल्लज़ी-न मिन् कब्लिकुम् लअल्लकुम् तत्तकून
हे ईमान वालो! तुमपर रोज़े[1] उसी प्रकार अनिवार्य कर दिये गये हैं, जैसे तुमसे पूर्व के लोगों पर अनिवार्य किये गये, ताकि तुम अल्लाह से डरो। 1. रोज़े को अर्बी भाषा में "सौम" कहा जाता है, जिस का अर्थ रुकना तथा त्याग देना है। इस्लाम में रोज़ा सन् दो हिजरी में अनिवार्य किया गया। जिस का अर्थ है प्रत्यूष (भोर) से सूर्यास्त तक रोज़े की निय्यत से खाने पीन तथा संभोग आदि चीजों से रुक जाना।
أَيَّامًا مَّعْدُودَاتٍ ۚ فَمَن كَانَ مِنكُم مَّرِيضًا أَوْ عَلَىٰ سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِّنْ أَيَّامٍ أُخَرَ ۚ وَعَلَى الَّذِينَ يُطِيقُونَهُ فِدْيَةٌ طَعَامُ مِسْكِينٍ ۖ فَمَن تَطَوَّعَ خَيْرًا فَهُوَ خَيْرٌ لَّهُ ۚ وَأَن تَصُومُوا خَيْرٌ لَّكُمْ ۖ إِن كُنتُمْ تَعْلَمُونَ ﴾ 184 ﴿
अय्यामम्-मअदूदातिन् , फ़-मन् का-न मिन्कुम् मरीज़न् औ अला स-फ़रिन् फ-अिद्दतुम मिन् अय्यामिन् उ-ख-र , व अलल्लज़ी-न युतीकूनहू फ़िदयतुन् तआमु मिस्कीनिन् , फ़-मन् त-तव्व-अ खैरन फहु-व खैरूल्लहू , व अन् तसूमू खैरूल्लकुम् इन् कुन्तुम् तअ्लमून
वह गिनती के कुछ दिन हैं। फिर यदि तुममें से कोई रोगी अथवा यात्रा पर हो, तो ये गिनती, दूसरे दिनों से पूरी करे और जो उस रोज़े को सहन न कर सके[1], वह फ़िद्या (प्रायश्चित्त) दे, जो एक निर्धन को खाना खिलाना है और जो स्वेच्छा भलाई करे, वह उसके लिए अच्छी बात है। यदी तुम समझो, तो तुम्हारे लिए रोज़ा रखना ही अच्छा है। 1. अर्थात अधिक बुढ़ापे अथवा ऐसे रोग के कारण जिस से आरोग्य होने की आशा न हो तो प्रत्येक रोज़े के बदले एक निर्धन को खाना खिला दिया करें।
شَهْرُ رَمَضَانَ الَّذِي أُنزِلَ فِيهِ الْقُرْآنُ هُدًى لِّلنَّاسِ وَبَيِّنَاتٍ مِّنَ الْهُدَىٰ وَالْفُرْقَانِ ۚ فَمَن شَهِدَ مِنكُمُ الشَّهْرَ فَلْيَصُمْهُ ۖ وَمَن كَانَ مَرِيضًا أَوْ عَلَىٰ سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِّنْ أَيَّامٍ أُخَرَ ۗ يُرِيدُ اللَّـهُ بِكُمُ الْيُسْرَ وَلَا يُرِيدُ بِكُمُ الْعُسْرَ وَلِتُكْمِلُوا الْعِدَّةَ وَلِتُكَبِّرُوا اللَّـهَ عَلَىٰ مَا هَدَاكُمْ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ ﴾ 185 ﴿
शहरू र-मज़ानल्लज़ी उन्ज़ि-ल फ़ीहिल्कुरआनु हुदल्लिन्नासि व बय्यिनातिम्-मिनल्हुदा वल्फुरकानि फ़-मन् शहि-द मिन्कुमुश्शह्-र फ़ल्यसुम्हु , व मन् का-न मरीज़न औ अला स-फ़रिन् फ़अिद्दतुम् मिन् अय्यामिन उ-ख-र , युरीदुल्लाहु बिकुमुल युस्-र व ला युरीदु बिकुमुल् अुस्-र व लितुक्मिलुल अिद्द-त व लितुकब्बिरूल्ला-ह अला मा हदाकुम् व लअल्लकुम् तश्कुरून
रमज़ान का महीना वह है, जिसमें क़ुर्आन उतारा गया, जो सब मानव के लिए मार्गदर्शन है तथा मार्गदर्शन और सत्योसत्य के बीच अन्तर करने के खुले प्रमाण रखता है। अतः जो व्यक्ति इस महीने में उपस्थित[1] हो, वह उसका रोज़ा रखे, फिर यदि तुममें से कोई रोगी[2] अथवा यात्रा[3] पर हो, तो उसे दूसरे दिनों में गिनती पुरी करनी चाहिए। अल्लाह तुम्हारे लिए सुविधा चाहता है, तंगी (असुविधा) नहीं चाहता और चाहता है कि तुम गिनती पूरी करो तथा इस बातपर अल्लाह की महिमा का वर्णन करो कि उसने तुम्हें मार्गदर्शन दिया और (इस प्रकार) तुम उसके कृतज्ञ[4] बन सको। 1. अर्थात अपने नगर में उपस्थित हो। 2. अर्थात रोग के कारण रोज़े न रख सकता हो। 3. अर्थात इतनी दूर की यात्रा पर हो जिस में रोज़ा न रखने की अनुमति हो। 4. इस आयत में रोज़े की दशा तथा गिनती पूरी करने पर प्रार्थना करने की प्रेरणा दी गयी है।
وَإِذَا سَأَلَكَ عِبَادِي عَنِّي فَإِنِّي قَرِيبٌ ۖ أُجِيبُ دَعْوَةَ الدَّاعِ إِذَا دَعَانِ ۖ فَلْيَسْتَجِيبُوا لِي وَلْيُؤْمِنُوا بِي لَعَلَّهُمْ يَرْشُدُونَ ﴾ 186 ﴿
व इज़ा स-अ-ल-क अिबादी अन्नी फ़-इन्नी क़रीबुन् , उजीबु दअ्-वतद्दाअि इज़ा दआ़नि फ़ल्यस्तजीबू ली वल्युअमिनू बी लअल्लहुम् यरशुदून
(हे नबी!) जब मेरे भक्त मेरे विषय में आपसे प्रश्न करें, तो उन्हें बता दें कि निश्चय मैं समीप हूँ। मैं प्रार्थी की प्रार्थना का उत्तर देता हूँ। अतः, उन्हें भी चाहिये कि मेरे आज्ञाकारी बनें तथा मुझपर ईमान (विश्वास) रखें, ताकि वे सीधी राह पायें।
أُحِلَّ لَكُمْ لَيْلَةَ الصِّيَامِ الرَّفَثُ إِلَىٰ نِسَائِكُمْ ۚ هُنَّ لِبَاسٌ لَّكُمْ وَأَنتُمْ لِبَاسٌ لَّهُنَّ ۗ عَلِمَ اللَّـهُ أَنَّكُمْ كُنتُمْ تَخْتَانُونَ أَنفُسَكُمْ فَتَابَ عَلَيْكُمْ وَعَفَا عَنكُمْ ۖ فَالْآنَ بَاشِرُوهُنَّ وَابْتَغُوا مَا كَتَبَ اللَّـهُ لَكُمْ ۚ وَكُلُوا وَاشْرَبُوا حَتَّىٰ يَتَبَيَّنَ لَكُمُ الْخَيْطُ الْأَبْيَضُ مِنَ الْخَيْطِ الْأَسْوَدِ مِنَ الْفَجْرِ ۖ ثُمَّ أَتِمُّوا الصِّيَامَ إِلَى اللَّيْلِ ۚ وَلَا تُبَاشِرُوهُنَّ وَأَنتُمْ عَاكِفُونَ فِي الْمَسَاجِدِ ۗ تِلْكَ حُدُودُ اللَّـهِ فَلَا تَقْرَبُوهَا ۗ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ اللَّـهُ آيَاتِهِ لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَتَّقُونَ ﴾ 187 ﴿
उहिल-ल लकुम् लै-लतस्सियामिर्र-फसु इला निसा-इकुम , हुन्-न लिबासुल्लकुम् व अन्तुम् लिबासुल् – लहुन्-न अलिमल्लाहु अन्नकुम् कुन्तुम् तख़्तानू-न अन्फु-सकुम् फ़ता-ब अलैकुम् व अफ़ा अन्कुम् फल्आ-न बाशिरूहुन्-न वब्तगू मा क-तबल्लाहु लकुम् व कुलू वश्रबू हत्ता य-तबय्यन लकुमुल्खैतुल् अब्यजु़ मिनल्खैतिल् अस्वदि मिनल्-फ़ज्रि सुम्-म अतिम्मुस् सिया-म इलल्लैलि व ला तुबाशिरूहुन्-न व अन्तुम् आकिफू-न फिल्-मसाजिदि , तिल-क हुदूदुल्लाहि फ़ला तकरबूहा , कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु आयातिही लिन्नासि लअल्लहुम् यत्तकून
तुम्हारे लिए रोज़े की रात में अपनी स्त्रियों से सहवास ह़लाल (उचित) कर दिया गया है। वे तुम्हारा वस्त्र[1] हैं तथा तुम उनका वस्त्र हो, अल्लाह को ज्ञान हो गया है कि तुम अपना उपभोग[2] कर रहे थे। उसने तुम्हारी तौबा (क्षमा याचना) स्वीकार कर ली तथा तुम्हें क्षमा कर दिया। अब उनसे (रात्रि में) सहवास करो और अल्लाह के (अपने भाग्य में) लिखे की खोज करो और रात्रि में खाओ तथा पिओ, यहाँ तक की भोर की सफेद धारी रात की काली धारी से उजागर हो[3] जाये, फिर रोज़े को रात्रि (सूर्यास्त) तक पूरा करो और उनसे सहवास न करो, जब मस्जिदों में ऐतिकाफ़ (एकान्तवास) में रहो। ये अल्लाह की सीमायें हैं, इनके समीप भी न जाओ। इसी प्रकार अल्लाह लोगों के लिए अपनी आयतों को उजागर करता है, ताकि वे (उनके उल्लंघन से) बचें। 1. इस से पति पत्नि के जीवन साथी, तथा एक की दूसरे के लिये आस्श्यक्ता को दर्शाया गया है। 2. अर्थात पत्नि से सहवास कर रहे थे। 3. इस्लाम के आरंभिक युग में रात्रि में सो जाने के पश्चात् रमज़ान में खाने पीने तथा स्त्री से सहवास की अनुमति नहीं थी। इस आयत में इन सब की अनुमति दी गयी है।
وَلَا تَأْكُلُوا أَمْوَالَكُم بَيْنَكُم بِالْبَاطِلِ وَتُدْلُوا بِهَا إِلَى الْحُكَّامِ لِتَأْكُلُوا فَرِيقًا مِّنْ أَمْوَالِ النَّاسِ بِالْإِثْمِ وَأَنتُمْ تَعْلَمُونَ ﴾ 188 ﴿
व ला तअकुलू अम्वा-लकुम् बैनकुम् बिल्बातिलि व तुद् लू बिहा इलल्-हुक्कामि लितअ्कुलू फरीकम् मिन् अम्वालिन्नासि बिल्इस्मि व अन्तुम् तअ्लमून *
तथा आपस में एक-दूसरे का धन अवैध रूप से न खाओ और न अधिकारियों के पास उसे इस धेय से ले जाओ कि लोगों के धन का कोई भाग, जान-बूझ कर पाप[1] द्वारा खा जाओ। 1. इस आयत में यह संकेत है कि यदि कोई व्यक्ति दूसरों के स्वत्व और धन से तथा अवैध धन उपार्जन से स्वयं को रोक न सकता हो, तो इबादत का कोई लाभ नहीं।
يَسْأَلُونَكَ عَنِ الْأَهِلَّةِ ۖ قُلْ هِيَ مَوَاقِيتُ لِلنَّاسِ وَالْحَجِّ ۗ وَلَيْسَ الْبِرُّ بِأَن تَأْتُوا الْبُيُوتَ مِن ظُهُورِهَا وَلَـٰكِنَّ الْبِرَّ مَنِ اتَّقَىٰ ۗ وَأْتُوا الْبُيُوتَ مِنْ أَبْوَابِهَا ۚ وَاتَّقُوا اللَّـهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ ﴾ 189 ﴿
यस्अलून-क अनिल-अहिल्लति , कुल हि-य मवाकीतु लिन्नासि वल्-हज्जि , व लैसल्बिर्रू बि-अन्तअ्तुल-बुयू-त मिन् जुहूरिहा व ला किन्नल्बिर्-र मनित्तका वअ्तुल्-बुयू-त मिन् अब्वाबिहा वत्तकुल्ला-ह लअल्लकुम् तुफ़्लिहून
(हे नबी!) लोग आपसे चंद्रमा के (घटने-बढ़ने) के विषय में प्रश्न करते हैं? तो आप कह दें, इससे लोगों को तिथियों के निर्धारण तथा ह़ज के समय का ज्ञान होता है और ये कोई भलाई नहीं है कि घरों में उनके पीछे से प्रवेश करो, परन्तु भलाई तो अल्लाह की अवज्ञा से बचने में है। घरों में उनके द्वारों से आओ तथा अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम[1] सफल हो जाओ। 1. इस्लाम से पूर्व अरब में यह प्रथा थी कि जब ह़ज्ज का एह़राम बाँध लेते तो अपने घरों में द्वार से प्रवेश न कर के पीछे से प्रवेश करते थे। इस अंधविश्वास के खण्डन के लिये यह आयत उतरी कि भलाई इन रीतियों में नहीं बल्कि अल्लाह से डरने और उस के आदेशों के उल्लंघन से बचने में है।
وَقَاتِلُوا فِي سَبِيلِ اللَّـهِ الَّذِينَ يُقَاتِلُونَكُمْ وَلَا تَعْتَدُوا ۚ إِنَّ اللَّـهَ لَا يُحِبُّ الْمُعْتَدِينَ ﴾ 190 ﴿
व कातिलू फी सबीलिल्लाहिल्लज़ी-न युक़ातिलू-नकुम् व ला तअ्तदू , इन्नल्ला-ह ला युहिब्बुल – मुअ्तदीन
तथा अल्लाह की राह में, उनसे युध्द करो, जो तुमसे युध्द करते हों और अत्याचार न करो, अल्लाह अत्याचारियों से प्रेम नहीं करता।
وَاقْتُلُوهُمْ حَيْثُ ثَقِفْتُمُوهُمْ وَأَخْرِجُوهُم مِّنْ حَيْثُ أَخْرَجُوكُمْ ۚ وَالْفِتْنَةُ أَشَدُّ مِنَ الْقَتْلِ ۚ وَلَا تُقَاتِلُوهُمْ عِندَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ حَتَّىٰ يُقَاتِلُوكُمْ فِيهِ ۖ فَإِن قَاتَلُوكُمْ فَاقْتُلُوهُمْ ۗ كَذَٰلِكَ جَزَاءُ الْكَافِرِينَ ﴾ 191 ﴿
वक़्तुलूहुम् हैसू सकि़फ़्तुमूहुम् व अख्रिजूहुम मिन् हैसु अख्रजूकुम वल्फ़ित्नतु अशद्दु मिनल्-क़त्लि व ला तुकातिलूहुम् अिन्दल-मस्जिदिल्-हरामि हत्ता युकातिलूकुम फ़ीहि , फ़-इन् का तलूकुम् फ़क़्तुलूहुम् , कज़ालि-क जजा़उल-काफिरीन
और उन्हें हत करो, जहाँ पाओ और उन्हें निकालो, जहाँ से उन्होंने तुम्हें निकाला है, इसलिए कि फ़ितना[1] (उपद्रव), हत करने से भी बुरा है और उनसे मस्जिदे ह़राम के पास युध्द न करो, जब तक वे तुमसे वहाँ युध्द[2] न करें। परन्तु, यदि वे तुमसे युध्द करें, तो उनकी हत्या करो, यही काफ़िरों का बदला है। 1. अर्थात अधर्म, मिश्रणवाद और सत्धर्म इस्लाम से रोकना। 2. अर्थात स्वयं युध्द का आरंभ न करो।
فَإِنِ انتَهَوْا فَإِنَّ اللَّـهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ ﴾ 192 ﴿
फ-इनिन्-तहौ फ़-इन्नल्ला-ह गफूरूर्रहीम
फिर यदि वे (आक्रमण करने से) रुक जायें, तो अल्लाह अति क्षमी, दयावान् है।
وَقَاتِلُوهُمْ حَتَّىٰ لَا تَكُونَ فِتْنَةٌ وَيَكُونَ الدِّينُ لِلَّـهِ ۖ فَإِنِ انتَهَوْا فَلَا عُدْوَانَ إِلَّا عَلَى الظَّالِمِينَ ﴾ 193 ﴿
व कातिलूहुम् हत्ता ला तकू-न फ़ित्नतुंव व यकूनद्दीनु लिल्लाहि , फ-इनिन्-तहौ फला अुद्वा-न इल्ला अलज़्-ज़ालिमीन
तथा उनसे युध्द करो, यहाँ तक कि फ़ितना न रह जाये और धर्म केवल अल्लाह के लिए रह जाये, फिर यदि वे रुक जायें, तो अत्याचारियों के अतिरिक्त किसी और पर अत्याचार नहीं करना चाहिए।
الشَّهْرُ الْحَرَامُ بِالشَّهْرِ الْحَرَامِ وَالْحُرُمَاتُ قِصَاصٌ ۚ فَمَنِ اعْتَدَىٰ عَلَيْكُمْ فَاعْتَدُوا عَلَيْهِ بِمِثْلِ مَا اعْتَدَىٰ عَلَيْكُمْ ۚ وَاتَّقُوا اللَّـهَ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّـهَ مَعَ الْمُتَّقِينَ ﴾ 194 ﴿
अश्शहरूल्-हरामु बिश्शह्रिल्-हरामि वल्-हुरूमातु किसासुन् , फ़-मनिअ्तदा अलैकुम् फअ्तदू अलैहि बिमिस्लि मअ्तदा अलैकुम् वत्तकुल्ला-ह वअ्लमू अन्नल्ला-ह म-अल्मुत्तक़ीन
सम्मानित[1] मास, सम्मानित मास के बदले है और सम्मानित विषयों में बराबरी है। अतः, जो तुमपर अतिक्रमण (अत्याचार) करे, तो तुम भी उसपर उसी के समान (अतिक्रमण) करो तथा अल्लाह के आज्ञाकारी रहो और जान लो कि अल्लाह आज्ञाकारियों के साथ है। 1. सम्मानित मासों से अभिप्रेत चार अर्बी महीनेः ज़ुलक़ादह, ज़ुलहिज्जह, मुह़र्रम तथा रजब हैं। इब्राहीम अलैहिस्सलाम के युग से इन मासों का आदर सम्मान होता आ रहा है। आयत का अर्थ यह है कि कोई सम्मानित स्थान अथवा युग में अतिक्रमण करे तो उसे बराबरी का बदला दिया जाये।
وَأَنفِقُوا فِي سَبِيلِ اللَّـهِ وَلَا تُلْقُوا بِأَيْدِيكُمْ إِلَى التَّهْلُكَةِ ۛ وَأَحْسِنُوا ۛ إِنَّ اللَّـهَ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ ﴾ 195 ﴿
व अन्फ़िकू फ़ी सबीलिल्लाहि व ला तुल्कू बिऐदीकुम् इलत्तह्लु-कति , व अह्-सिनू इन्नल्ला-ह युहिब्बुल-मुहसिनीन
तथा अल्लाह की राह (जिहाद) में धन ख़र्च करो और अपने-आपको विनाश में न डालो तथा उपकार करो, निश्चय अल्लाह उपकारियों से प्रेम करता है।
وَأَتِمُّوا الْحَجَّ وَالْعُمْرَةَ لِلَّـهِ ۚ فَإِنْ أُحْصِرْتُمْ فَمَا اسْتَيْسَرَ مِنَ الْهَدْيِ ۖ وَلَا تَحْلِقُوا رُءُوسَكُمْ حَتَّىٰ يَبْلُغَ الْهَدْيُ مَحِلَّهُ ۚ فَمَن كَانَ مِنكُم مَّرِيضًا أَوْ بِهِ أَذًى مِّن رَّأْسِهِ فَفِدْيَةٌ مِّن صِيَامٍ أَوْ صَدَقَةٍ أَوْ نُسُكٍ ۚ فَإِذَا أَمِنتُمْ فَمَن تَمَتَّعَ بِالْعُمْرَةِ إِلَى الْحَجِّ فَمَا اسْتَيْسَرَ مِنَ الْهَدْيِ ۚ فَمَن لَّمْ يَجِدْ فَصِيَامُ ثَلَاثَةِ أَيَّامٍ فِي الْحَجِّ وَسَبْعَةٍ إِذَا رَجَعْتُمْ ۗ تِلْكَ عَشَرَةٌ كَامِلَةٌ ۗ ذَٰلِكَ لِمَن لَّمْ يَكُنْ أَهْلُهُ حَاضِرِي الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ ۚ وَاتَّقُوا اللَّـهَ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّـهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ ﴾ 196 ﴿
व अतिम्मुल्-हज्-ज वल्-अुमर-त लिल्लाहि , फ़-इन् उहसिरतुम् फ़-मस्तै-स-र मिनल-हदयि व ला तहलिकू़ रूऊ-सकुम् हत्ता यब्लुगल-हदयु महिल्लहू फ़-मन् का-न मिन्कुम् मरीज़न औ बिही अज़म्-मिर्रअ्सिही फ़-फिदयतुम्-मिन् सियामिन् औ स-द-क़तिन् औ नुसुकिन् फ़-इज़ा अमिन्तुम फ़-मन् तमत्त-अ बिल्-उम्रति इलल-हज्जि फ़-मस्तै-स-र मिनल-हद्-यि फ़-मल्लम् यजिद् फ़सियामु सलासति अय्यामिन् फिल्-हज्जि व सब्-अतिन् इज़ा रजअ्तुम , तिल-क अ-श-रतुन् कामि-लतुन् , ज़ालि-क लिमल्-लम् यकुन् अहलुहू हाज़िरिल्-मस्जिदिल हरामि , वत्तकुल्ला-ह वअ्लमू अन्नल्ला-ह शदीदुल-अिकाब *
तथा ह़ज और उमरह अल्लाह के लिए पूरा करो और यदि रोक दिये जाओ[1], तो जो क़ुर्बानी सुलभ हो (कर दो) और अपने सिर न मुँडाओ, जब तक कि क़ुर्बानी अपने स्थान तक न पहुँच[2] जाये, यदि तुममें से कोई व्यक्ति रोगी हो या उसके सिर में कोई पीड़ा हो (और सिर मुँडा ले), तो उसके बदले में रोज़ा रखना या दान[3] देना या क़ुर्बानी देना है और जब तुम निर्भय (शान्त) रहो, तो जो उमरे से ह़ज तक लाभान्वित[4] हो, वह जो क़ुर्बानी सुलभ हो, उसे करे और जिसे उपलब्ध न हो, वह तीन रोज़े ह़ज के दिनों में रखे और सात, जब रखे, जब तुम (घर) वापस आओ। ये पूरे दस हुए। ये उसके लिए है, जो मस्जिदे ह़राम का निवासी न हो और अल्लाह से डरो तथा जान लो कि अल्लाह की यातना बहुत कड़ी है। 1. अर्थात शत्रु अथवा रोग के कारण। 2. अर्थात क़ुरबानी न कर लो। 3.जो तीन रोज़े अथवा तीन निर्धनों को खिलाना या एक बकरे की क़ुर्बानी देना है। (तफ्सीरे क़ुर्तुबी) 4. लाभान्वित होने का अर्थ यह है कि उमरे का एह़राम बाँधे, और उस के कार्यक्रम पूरे कर के एह़राम खोल दे, और जो चीजें एह़राम की स्थिति में अवैध थीं, उन से लाभान्वित हो। फिर ह़ज्ज के समय उस का एह़राम बाँधे, इसे (ह़ज्ज तमत्तुअ) कहा जाता है। (तफ़्सीरे क़ुर्तुबी)
الْحَجُّ أَشْهُرٌ مَّعْلُومَاتٌ ۚ فَمَن فَرَضَ فِيهِنَّ الْحَجَّ فَلَا رَفَثَ وَلَا فُسُوقَ وَلَا جِدَالَ فِي الْحَجِّ ۗ وَمَا تَفْعَلُوا مِنْ خَيْرٍ يَعْلَمْهُ اللَّـهُ ۗ وَتَزَوَّدُوا فَإِنَّ خَيْرَ الزَّادِ التَّقْوَىٰ ۚ وَاتَّقُونِ يَا أُولِي الْأَلْبَابِ ﴾ 197 ﴿
अल्हज्जु अश्हुरूम्-मअलूमातुन् फ-मन् फ़-र-ज़ फ़ीहिन्नल-हज़्-ज फला र-फ-स व ला फु-सू-क व ला जिदा-ल फ़िल्-हज्जि , व मा तफ्अलू मिन् खैरिय् यअ्लम्हुल्लाहु , व तज़व्वदू फ़-इन्-न खैरज्जादित्तक्वा वत्तकूनि या उलिल-अल्बाब
ह़ज के महीने प्रसिध्द हैं, जो व्यक्ति इनमें ह़ज का निश्चय कर ले, तो (ह़ज के बीच) काम वासना तथा अवज्ञा और झगड़े की बातें न करे तथा तुम जो भी अच्छे कर्म करोगे, उसका ज्ञान अल्लाह को हो जायेगा और अपने लिए पाथेय बना लो, उत्तम पाथेय अल्लाह की आज्ञाकारिता है तथा हे समझ वालो! मुझी से डरो।
لَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَن تَبْتَغُوا فَضْلًا مِّن رَّبِّكُمْ ۚ فَإِذَا أَفَضْتُم مِّنْ عَرَفَاتٍ فَاذْكُرُوا اللَّـهَ عِندَ الْمَشْعَرِ الْحَرَامِ ۖ وَاذْكُرُوهُ كَمَا هَدَاكُمْ وَإِن كُنتُم مِّن قَبْلِهِ لَمِنَ الضَّالِّينَ ﴾ 198 ﴿
लै-स अलैकुम् जुनाहुन् अन् तब्तगू फज्लम्-मिर्रब्बिकुम , फ़-इज़ा अफज्तुम् मिन् अ-रफ़ातिन् फज्कुरूल्ला-ह अिन्दल-मश्अ़रिल् हरामि वज्कुरुहू कमा हदाकुम् व इन् कुन्तुम् मिन् कब्लिही ल-मिनज्जाल्लीन
तथा तुमपर कोई दोष[1] नहीं कि अपने पालनहार के अनुग्रह की खोज करो, फिर जब तुम अरफ़ात[2] से चलो, तो मश्अरे ह़राम (मुज़दलिफ़ह) के पास अल्लाह का स्मरण करो, जिस प्रकार अल्लाह ने तुम्हें बताया है। यद्यपि इससे पहले तुम कुपथों में से थे। 1. अर्थात व्यापार करने में कोई दोष नहीं है। 2. अरफ़ात उस स्थान का नाम है जिस में ह़ाजी 9 ज़िलह़िज्जा को विराम करते तथा सूर्यास्त के पश्चात् वहाँ से वापिस होते हैं।
ثُمَّ أَفِيضُوا مِنْ حَيْثُ أَفَاضَ النَّاسُ وَاسْتَغْفِرُوا اللَّـهَ ۚ إِنَّ اللَّـهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ ﴾ 199 ﴿
सुम्-म अफ़ीजू मिन् हैसु अफ़ाज़न्नासु वस्तग् फिरूल्ला-ह , इन्नल्ला-ह गफूरूर्रहीम
फिर तुम[1] भी वहीं से फिरो, जहाँ से लोग फिरते हैं तथा अल्लाह से क्षमा माँगो। निश्चय अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है। 1. यह आदेश क़ुरैश के उन लोगों को दिया गया है जो मुज़्दलिफ़ह ही से वापिस चले आते थे। और अरफ़ात नहीं जाते थे। (तफ़्सीरे क़ुर्तुबी)
فَإِذَا قَضَيْتُم مَّنَاسِكَكُمْ فَاذْكُرُوا اللَّـهَ كَذِكْرِكُمْ آبَاءَكُمْ أَوْ أَشَدَّ ذِكْرًا ۗ فَمِنَ النَّاسِ مَن يَقُولُ رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا وَمَا لَهُ فِي الْآخِرَةِ مِنْ خَلَاقٍ ﴾ 200 ﴿
फ़-इज़ा क़जैतुम् मनासि-ककुम् फज्कुरूल्ला-ह क-ज़िक्रिकुम् आबा-अकुम् औ अशद्-द ज़िक्रन् , फ़-मिनन्नासि मंय्यकूलू रब्बना आतिना फ़िद्दुन्या व मा लहू फिल-आख़ि-रति मिन् ख़लाक़
और जब तुम अपने ह़ज के मनासिक (कर्म) पूरे कर लो, तो जिस प्रकार पहले अपने पूर्वजों की चर्चा करते रहे, उसी प्रकार बल्कि उससे भी अधिक अल्लाह का स्मरण[1] करो। उनमें से कुछ ऐसे हैं, जो ये कहते हैं कि हे हमारे पालनहार! (हमें जो देना है,) संसार ही में दे दे। अतः ऐसे व्यक्ति के लिए परलोक में कोई भाग नहीं है। 1. जाहिलिय्यत में अरबों की यह रीति थी कि ह़ज्ज पूरा करने के पश्चात् अपने पुर्वजों के कर्मों की चर्चा कर के उन पर गर्व किया करते थे। तथा इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस का अर्थ यह किया है कि जिस प्रकार शिशु अपने माता पिता को गुहारता, पुकारता है, उसी प्रकार तुम अल्लाह को गुहारो और पुकारो। (तफ़्सीरे क़ुर्तुबी)