सूरह मरियम के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है, इस में 98 आयतें हैं।
- इस सूरह में ईसा (अलैहिस्सलाम ) की माँ मरयम (अलैहस्सलाम ) और ईसा (अलैहिस्सलाम ) के जन्म की कथा का वर्णन किया गया है। इसी से इस का नाम मर्यम है। इस में सर्वप्रथम यया (अलैहिस्सलाम ) के जन्म की चर्चा है, उस के पश्चात् ईसा (अलैहिस्सलाम ) के जन्म का वर्णन है। और ईसाईयों को उन के विभेद पर सावधान किया गया है।
- इस में इब्राहीम ( अलैहिस्सलाम ) के तौहीद के प्रचार और उन के हिज़रत करने और मुसा (अलैहिस्सलाम ) तथा अन्य नबियों की चर्चा की गई है, और उन की शिक्षाओं के बिरोधियों के विनाश से सावधान किया गया है । और उन को मानने पर सफलता की शुभसूचना दी गई है। तथा नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को सहन करने और सुदृढ़ रहने का निर्देश दिया गया है। परलोक के इन्कारियों के संदेहों को दूर करते हुये ईमान और विश्वास के लिये कुछ स्थितियों का वर्णन किया गया है।
- जब मक्का से कुछ मुसलमान नबूवत के पाँचवें वर्ष हिज़रत कर के हब्शा पहुँचे और मक्का के काफिरों ने कुछ व्यक्तियों को वापिस लाने के लिये भेजा जिन्हों ने उन्हें धर्म बदल लेने का दोषी बताया तो वहाँ के ईसाई राजा नजाशी को जअफर (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने इसी सूरह की आरंभिक आयतें सुनाईं जिसे सुन कर वह रोने लगा, और कहाः यह और जो ईसा (अलैहिस्सलाम ) लाये थे एक ही नूर (प्रकाश) की दो किरणें हैं। और भूमी से एक तिनका ले कर कहाः ईसा (अलैहिस्सलाम ) इस से कुछ भी अधिक नहीं थे। फिर काफिरों के प्रतिनिधियों को निष्फल वापिस कर दिया। (सीरत इब्ने हिशाम 1 | 334, 338)
हदीस में है कि पुरुषों में बहुत से पूर्ण हुये और स्त्रियों में मर्यम बिन्त इमरान और फ़िरऔन की पत्नी आसिया ही पूर्ण हुयीं। (सहीह बुखारी: 3411, मुस्लिम, 2431 )
दूसरी हदीस में है कि प्रत्येक शिशु जब जन्म लेता है तो शैतान उस के बाजू में अपनी दो उंगलियों से कचोके लगाता है, (तो वह चीख़ कर रोता है), ईसा (अलैहिस्सलाम ) के सिवा शैतान जब उन्हें कचोके लगाने लगा तो पर्दे ही में कचोका लगा दिया। (सहीह बुखारी, 3286, मुस्लिम, 2431)
Surah Maryam in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
ذِكْرُ رَحْمَتِ رَبِّكَ عَبْدَهُ زَكَرِيَّا ﴾ 2 ﴿
ज़िकरू रहमति रब्बिका अब्दहू ज़-करिय्या
ये आपके पालनहार की दया की चर्चा है, अपने भक्त ज़करिय्या पर।
إِذْ نَادَىٰ رَبَّهُ نِدَاءً خَفِيًّا ﴾ 3 ﴿
इज़ नादा रब्बहू निदाअन ख़फिय्या
जबकि उसने अपने पालनहार से विनय की, गुप्त विनय।
قَالَ رَبِّ إِنِّي وَهَنَ الْعَظْمُ مِنِّي وَاشْتَعَلَ الرَّأْسُ شَيْبًا وَلَمْ أَكُن بِدُعَائِكَ رَبِّ شَقِيًّا ﴾ 4 ﴿
क़ाला रब्बि इन्नी व-हनल अज्मु मिन्नी वश तअल रअ’सु शैबौ वलम अकुम बिदुआइ-क रब्बि शक़िय्या
उसने कहाः मेरे पालनहार! मेरी अस्थियाँ निर्बल हो गयीं, सिर बुढ़ापे से सफेद[1] हो गया है तथा मेरे पालनहार! कभी ऐसा नहीं हुआ कि तुझसे प्रार्थना करके निष्फल हुआ हूँ।
1. अर्थात पूरे बाल सफ़ेद हो गये।
وَإِنِّي خِفْتُ الْمَوَالِيَ مِن وَرَائِي وَكَانَتِ امْرَأَتِي عَاقِرًا فَهَبْ لِي مِن لَّدُنكَ وَلِيًّا ﴾ 5 ﴿
व इन्नी खिफ्तुल मवालिया मिव वराई व कानतिम रअती आक़िरन फ़हब ली मिल लदुनका वलिय्या
और मुझे अपने भाई-बंदों से भय[1] है, अपने (मरण) के पश्चात् तथा मेरी पत्नी बाँझ है, अतः मुझे अपनी ओर से एक उत्तराधिकारी प्रदान कर दे।
1. अर्थात दुराचार और बुरे व्यवहार का।
يَرِثُنِي وَيَرِثُ مِنْ آلِ يَعْقُوبَ ۖ وَاجْعَلْهُ رَبِّ رَضِيًّا ﴾ 6 ﴿
य रिसुनी व यरिसु मिन आलि यअ’क़ूब वज अल्हु रब्बि रदिय्या
वह मेरा उत्तराधिकारी हो तथा याक़ूब के वंश का उत्तराधिकारी[1] हो और हे मेरे पालनहार! उसे प्रिय बना दे।
1. अर्थात नबी हो। आदरणीय ज़करिय्या (अलैहिस्सलाम) याक़ूब (अलैहिस्सलाम) के वंश में थे।
يَا زَكَرِيَّا إِنَّا نُبَشِّرُكَ بِغُلَامٍ اسْمُهُ يَحْيَىٰ لَمْ نَجْعَل لَّهُ مِن قَبْلُ سَمِيًّا ﴾ 7 ﴿
या ज़ करिय्या इन्ना नुबश शिरुका बि गुलामि निसमुहु यहया लम नजअल लहू मिन क़ब्लु समिय्या
हे ज़करिय्या! हम तुझे एक बालक की शुभ सूचना दे रहे हैं, जिसका नाम यह़्या होगा। हमने नहीं बनाया है, इससे पहले उसका कोई समनाम।
قَالَ رَبِّ أَنَّىٰ يَكُونُ لِي غُلَامٌ وَكَانَتِ امْرَأَتِي عَاقِرًا وَقَدْ بَلَغْتُ مِنَ الْكِبَرِ عِتِيًّا ﴾ 8 ﴿
क़ाला रब्बि अन्ना यकूनु ली गुलामुव व कानतिम रअती आक़िरौ वक़द बलग्तू मिनल कि-बरि इतिय्या
उसने (आश्यर्य से) कहाः मेरे पालनहार! कहाँ से मेरे यहाँ कोई बालक होगा, जबकि मेरी पत्नि बाँझ है और मैं बुढ़ापे की चरम सीमा को जा पहुँचा हूँ।
قَالَ كَذَٰلِكَ قَالَ رَبُّكَ هُوَ عَلَيَّ هَيِّنٌ وَقَدْ خَلَقْتُكَ مِن قَبْلُ وَلَمْ تَكُ شَيْئًا ﴾ 9 ﴿
क़ाला कज़ालिका क़ाला रब्बुका हुवा अलय्या हय्यिनुव वक़द खलक तुका मिन क़ब्लु वलम तकु शैआ
उसने कहाः ऐसा ही होगा, तेरे पालनहार ने कहा हैः ये मेरे लिए सरल है, इससे पहले मैंने तेरी उत्पत्ति की है, जबकि तू कुछ नहीं था।
قَالَ رَبِّ اجْعَل لِّي آيَةً ۚ قَالَ آيَتُكَ أَلَّا تُكَلِّمَ النَّاسَ ثَلَاثَ لَيَالٍ سَوِيًّا ﴾ 10 ﴿
क़ाला रब्बिज अल ली आयह, काला आयतुका अल्ला तुकल्लिमन नासा सलासा लयालिन सविय्या
उस (ज़करिय्या) ने कहाः मेरे पालनहार! मेरे लिए कोई लक्षण (चिन्ह) बना दे। उसने कहाः तेरा लक्षण ये है कि तू बोल नहीं सकेगा, लोगों से निरंतर तीन रातें[1]।
1. रात से अभिप्राय दिन तथा रात दोनों ही हैं। अर्थात जब बिना किसी रोग के लोगों से बात नहीं कर सकोगे तो यह शुभ सूचना का लक्षण होगा।
فَخَرَجَ عَلَىٰ قَوْمِهِ مِنَ الْمِحْرَابِ فَأَوْحَىٰ إِلَيْهِمْ أَن سَبِّحُوا بُكْرَةً وَعَشِيًّا ﴾ 11 ﴿
फ़ ख़राजा अला क़ौमिही मिनल मिहराबि फ़औहा इलैहिम अन सब्बिहू बुकरतौ व अशिय्या
फिर वह मेह़राब (चाप) से निकलकर अपनी जाति के पास आया और उन्हें संकेत द्वारा आदेश दिया कि उस (अल्लाह) की पवित्रता का वर्णन करो, प्रातः तथा संध्या।
يَا يَحْيَىٰ خُذِ الْكِتَابَ بِقُوَّةٍ ۖ وَآتَيْنَاهُ الْحُكْمَ صَبِيًّا ﴾ 12 ﴿
या यहया खुज़िल किताबा बिकुव्वह, व आतैनाहुल हुक्मा सबिय्या
हे यह़्या[1]! इस पुस्तक (तौरात) को थाम ले और हमने उसे बचपन ही में ज्ञान (प्रबोध) प्रदान किया।
1. अर्थात जब यह़्या का जन्म हो गया और कुछ बड़ा हुआ तो अल्लाह ने उसे तौरात का ज्ञान दिया।
وَحَنَانًا مِّن لَّدُنَّا وَزَكَاةً ۖ وَكَانَ تَقِيًّا ﴾ 13 ﴿
व हनानम मिल लदुन्ना व ज़कातव व काना तक़िय्या
तथा अपनी ओर से प्रेम भाव तथा पवित्रता (प्रदान की) और वह बड़ा संयमी (सदाचारी) था।
وَبَرًّا بِوَالِدَيْهِ وَلَمْ يَكُن جَبَّارًا عَصِيًّا ﴾ 14 ﴿
व बर्रम बि वालिदैहि वलम यकुन जब्बारन असिय्या
तथा अपनी माता-पिता के साथ सुशील था। वह क्रुर तथा अवज्ञाकारी नहीं था।
وَسَلَامٌ عَلَيْهِ يَوْمَ وُلِدَ وَيَوْمَ يَمُوتُ وَيَوْمَ يُبْعَثُ حَيًّا ﴾ 15 ﴿
व सलामुन अलैहि यौमा वुलिदा व यौमा यमूतु व यौमा युब असु हय्या
उसपर शान्ति है, जिस दिन उसने जन्म लिया और जिस दिन मरेगा और जिस दिन पुनः जीवित किया जायेगा।
وَاذْكُرْ فِي الْكِتَابِ مَرْيَمَ إِذِ انتَبَذَتْ مِنْ أَهْلِهَا مَكَانًا شَرْقِيًّا ﴾ 16 ﴿
वज्कुर फ़िल किताबि मरयम, इजिन त-बज़त मिन अहलिहा मकानन शर क़िय्या
तथा आप, इस पुस्तक (क़ुर्आन) में मर्यम[1] की चर्चा करें, जब वह अपने परिजनों से अलग होकर एक पूर्वी स्थान की ओर आयीं।
1. मर्यम आदरणीय इम्रान की पुत्री, दावूद अलैहिस्सलाम के वंश से थीं। उन के जन्म के विषय में सूरह आले इमरान देखिये।
فَاتَّخَذَتْ مِن دُونِهِمْ حِجَابًا فَأَرْسَلْنَا إِلَيْهَا رُوحَنَا فَتَمَثَّلَ لَهَا بَشَرًا سَوِيًّا ﴾ 17 ﴿
फत त-खज़त मिन दूनिहिम हिजाबन फ़ अरसलना इलैहा रूहना फ़ तमस्सला लहा ब-शरन सविय्या
फिर उनकी ओर से पर्दा कर लिया, तो हमने उसकी ओर अपनी रूह़ (आत्मा)[1] को भेजा, तो उसने उसके लिए एक पूरे मनुष्य का रूप धारण कर लिया।
1. इस से अभिप्रेत फ़रिश्ते जिब्रील (अलैहिस्सलाम) हैं।
قَالَتْ إِنِّي أَعُوذُ بِالرَّحْمَٰنِ مِنكَ إِن كُنتَ تَقِيًّا ﴾ 18 ﴿
क़ालत इन्नी अऊजु बिर रहमानि इन कुन्ता तक़िय्या
उसने कहाः मैं शरण माँगती हूँ अत्यंत कृपाशील की तुझ से, यदि तुझे अल्लाह का कुछ भी भय हो।
قَالَ إِنَّمَا أَنَا رَسُولُ رَبِّكِ لِأَهَبَ لَكِ غُلَامًا زَكِيًّا ﴾ 19 ﴿
क़ाला इन्नमा अना रसूलु रब्बिकि लि अ-हबा लकि गुलामन ज़किय्या
उसने कहाः मैं तेरे पालनहार का भेजा हुआ हूँ, ताकि तुझे एक पुनीत बालक प्रदान कर दूँ।
قَالَتْ أَنَّىٰ يَكُونُ لِي غُلَامٌ وَلَمْ يَمْسَسْنِي بَشَرٌ وَلَمْ أَكُ بَغِيًّا ﴾ 20 ﴿
क़ालत अन्ना यकूनु ली गुलामुव वलम यम्सस्नी ब-शरुव वलम अकु बगिय्या
वह बोलीः ये कैसे हो सकता है कि मेरे बालक हों, जबकि किसी पुरुष ने मुझे स्पर्श भी नहीं किया है और न मैं व्यभिचारिणी हूँ?
قَالَ كَذَٰلِكِ قَالَ رَبُّكِ هُوَ عَلَيَّ هَيِّنٌ ۖ وَلِنَجْعَلَهُ آيَةً لِّلنَّاسِ وَرَحْمَةً مِّنَّا ۚ وَكَانَ أَمْرًا مَّقْضِيًّا ﴾ 21 ﴿
क़ाला कज़ालिका क़ाला रब्बुका हुवा अलैया हय्यिन, व लिनज अ-लहू आयतल लिन नासि वरह मतम मिन्ना, वकान अमरम मक़ दिय्या
फ़रिश्ते ने कहाः ऐसा ही होगा, तेरे पालनहार का वचन है कि वह मेरे लिए अति सरल है और ताकि हम उसे लोगों के लिए एक लक्षण (निशानी)[1] बनायें तथा अपनी विशेष दया से और ये एक निश्चित बात है।
1. अर्थात अपने सामर्थ्य की निशानी कि हम नर-नारी के योग के बिना भी स्त्री के गर्भ से शिशु की उत्पित्ति कर सकते हैं।
۞ فَحَمَلَتْهُ فَانتَبَذَتْ بِهِ مَكَانًا قَصِيًّا ﴾ 22 ﴿
फ़ हमलत्हु फन त-बज़त बिही मकानन क़सिय्या
फिर वह गर्भवती हो गई तथा उस (गर्भ को लेकर) दूर स्थान पर चली गयी।
فَأَجَاءَهَا الْمَخَاضُ إِلَىٰ جِذْعِ النَّخْلَةِ قَالَتْ يَا لَيْتَنِي مِتُّ قَبْلَ هَٰذَا وَكُنتُ نَسْيًا مَّنسِيًّا ﴾ 23 ﴿
फ़ अजा अहल मख़ादु इला जिज़इन नख्लह क़ालत या लैतनी मित्तु क़ब्ला हाज़ा व कुन्तु नस्यम मन्सिय्या
फिर प्रसव पीड़ा उसे एक खजूर के तने तक लायी, कहने लगीः क्या ही अच्छा होता, मैं इससे पहले ही मर जाती और भूली-बिसरी हो जाती।
فَنَادَاهَا مِن تَحْتِهَا أَلَّا تَحْزَنِي قَدْ جَعَلَ رَبُّكِ تَحْتَكِ سَرِيًّا ﴾ 24 ﴿
फ़ नादाहा मिन तह्तिहा अल्ला तह्ज़नी क़द ज-अला रब्बुकि तहतकि सरिय्या
तो उसके नीचे से पुकारा[1] कि उदासीन न हो, तेरे पालनहार ने तेरे नीचे[2] एक स्रोत बहा दिया है।
1. अर्थात जिब्रील फ़रिश्ते ने घाटी के नीचे से आवाज़ दी। 2 . अर्थात मर्यम के चरणों के नीचे।
وَهُزِّي إِلَيْكِ بِجِذْعِ النَّخْلَةِ تُسَاقِطْ عَلَيْكِ رُطَبًا جَنِيًّا ﴾ 25 ﴿
व हुज़ज़ी इलैकि बिजिज़ इन नख्लति तुसाक़ित अलैकि रु-तबन जनिय्या
और हिला दे अपनी ओर खजूर के तने को, तुझपर गिरायेगा वह ताज़ी पकी खजूरें[1]।
1. अल्लाह ने अस्वभाविक रूप से आदरणीय मर्यम के लिये, खाने-पीने की व्यवस्था कर दी।
فَكُلِي وَاشْرَبِي وَقَرِّي عَيْنًا ۖ فَإِمَّا تَرَيِنَّ مِنَ الْبَشَرِ أَحَدًا فَقُولِي إِنِّي نَذَرْتُ لِلرَّحْمَٰنِ صَوْمًا فَلَنْ أُكَلِّمَ الْيَوْمَ إِنسِيًّا ﴾ 26 ﴿
फ़ कुली वशरबी व क़र्री ऐना, इम्मा तारा यिन्ना मिनल ब-शरी अहदन फक़ूली इन्नी नज़रतु लिर रहमानि सौमन फलन उकल्लिमल यौमा इन्सिय्या
अतः, खा, पी तथा आँख ठण्डी कर। फिर यदि किसी पुरुष को देखे, तो कह देः वास्तव में, मैंने मनौती मान रखी है, अत्यंत कृपाशील के लिए व्रत की। अतः, मैं आज किसी मनुष्य से बात नहीं करूँगी।
فَأَتَتْ بِهِ قَوْمَهَا تَحْمِلُهُ ۖ قَالُوا يَا مَرْيَمُ لَقَدْ جِئْتِ شَيْئًا فَرِيًّا ﴾ 27 ﴿
फ़ अतत बिही क़ौमहा तहमिलुह, कालू या मरयमु लक़द जिअ’ति शैअन फ़रिय्या
फिर उस (शिशु ईसा) को लेकर अपनी जाति में आयी, सबने कहाः हे मर्यम! तूने बहुत बुरा किया।
يَا أُخْتَ هَارُونَ مَا كَانَ أَبُوكِ امْرَأَ سَوْءٍ وَمَا كَانَتْ أُمُّكِ بَغِيًّا ﴾ 28 ﴿
या उख़ता हारूना मा काना अबूकिम रअ सौइव वमा कानत उम्मुकि बगिय्या
हे हारून की बहन[1]! तेरा पिता कोई बुरा व्यक्ति न था और न तेरी माँ व्यभिचारिणी थी।
1. अर्थात हारून अलैहिस्सलाम के वंशज की पुत्री। अरबों के यहाँ किसी क़बीले का भाई होने का अर्थ उस क़बीले और वंशज का व्यक्ति लिया जाता था।
فَأَشَارَتْ إِلَيْهِ ۖ قَالُوا كَيْفَ نُكَلِّمُ مَن كَانَ فِي الْمَهْدِ صَبِيًّا ﴾ 29 ﴿
फ़ अशारत इलैह, क़ालू कैफ़ा नुकल्लिमु मन काना फ़िल महदि सबिय्या
मर्यम ने उस (शिशु) की ओर संकेत किया। लोगों ने कहाः हम कैसे उससे बात करें, जो गोद में पड़ा हुआ एक शिशु है?
قَالَ إِنِّي عَبْدُ اللَّهِ آتَانِيَ الْكِتَابَ وَجَعَلَنِي نَبِيًّا ﴾ 30 ﴿
क़ाला इन्नी अब्दुल लाह, आतानियल किताब व जअलनी नबिय्या
वह (शिशु) बोल पड़ाः मैं अल्लाह का भक्त हूँ। उसने मुझे पुस्तक (इन्जील) प्रदान की है तथा मुझे नबी बनाया है[1]।
1. अर्थात मुझे पुस्तक प्रदान करने और नबी बनाने का निर्णय कर दिया है।
وَجَعَلَنِي مُبَارَكًا أَيْنَ مَا كُنتُ وَأَوْصَانِي بِالصَّلَاةِ وَالزَّكَاةِ مَا دُمْتُ حَيًّا ﴾ 31 ﴿
व ज-अलनी मुबारकन ऐनमा कुन्तु व औसानी बिस सलाति वाज़ ज़काति मा दुम्तु हय्या
तथा मुझे शुभ बनाया है, जहाँ रहूँ और मुझे आदेश दिया है नमाज़ तथा ज़कात का, जब तक जीवित रहूँ।
وَبَرًّا بِوَالِدَتِي وَلَمْ يَجْعَلْنِي جَبَّارًا شَقِيًّا ﴾ 32 ﴿
व बर्रम बिवालिदती वलम यज अल्नी जब्बारन शक़िय्या
तथा आपनी माँ का सेवक (बनाया है) और उसने मुझे क्रूर तथा अभागा[1] नहीं बनाया है।
1. इस में यह संकेत है कि माता-पिता के साथ दुर्व्यहार करना क्रूरता तथा दुर्भाग्य है।
وَالسَّلَامُ عَلَيَّ يَوْمَ وُلِدتُّ وَيَوْمَ أَمُوتُ وَيَوْمَ أُبْعَثُ حَيًّا ﴾ 33 ﴿
वस सलामु अलैया यौमा वुलित्तु व यौमा अमूतु व यौमा उब असु हय्या
तथा शान्ति है मुझपर, जिस दिन मैंने जन्म लिया, जिस दिन मरूँगा और जिस दिन पुनः जीवित किया जाऊँगा।
ذَٰلِكَ عِيسَى ابْنُ مَرْيَمَ ۚ قَوْلَ الْحَقِّ الَّذِي فِيهِ يَمْتَرُونَ ﴾ 34 ﴿
ज़ालिका ईसब्नु मरयम क़ौलल हक्किल लज़ी फीहि यमतरून
ये है ईसा मर्यम का सुत, यही सत्य बात है, जिसके विषय में लोग संदेह कर रहे हैं।
مَا كَانَ لِلَّهِ أَن يَتَّخِذَ مِن وَلَدٍ ۖ سُبْحَانَهُ ۚ إِذَا قَضَىٰ أَمْرًا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُ كُن فَيَكُونُ ﴾ 35 ﴿
मा काना लिल लाहि अय यत तखिज़ा मिव व-लदिन सुबहानह, इज़ा क़दा अमरन फ़ इन्नमा यक़ूलु लहू कुन फ़यकून
अल्लाह का ये काम नहीं कि अपने लिए कोई संतान बनाये, वह पवित्र है! जब वह किसी कार्य का निर्णय करता है, तो उसके सिवा कुछ नहीं होता कि उसे आदेश दे किः "हो जा" और वह हो जाता है।
وَإِنَّ اللَّهَ رَبِّي وَرَبُّكُمْ فَاعْبُدُوهُ ۚ هَٰذَا صِرَاطٌ مُّسْتَقِيمٌ ﴾ 36 ﴿
व इन्नल लाहा रब्बी व रब्बुकुम फ़अ’बुदूह हाज़ा सिरातुम मुस्तक़ीम
और (ईसा ने कहाः) वास्तव में, अल्लाह मेरा पालनहार तथा तुम्हारा पालनहार है, अतः, उसी की इबादत (वंदना) करो, यही सुपथ (सीधी राह) है।
فَاخْتَلَفَ الْأَحْزَابُ مِن بَيْنِهِمْ ۖ فَوَيْلٌ لِّلَّذِينَ كَفَرُوا مِن مَّشْهَدِ يَوْمٍ عَظِيمٍ ﴾ 37 ﴿
फ़ख त-लफल अह्ज़ाबू मिम बैनिहिम, फ़वैलुल लिल लज़ीना कफ़रू मिम मश हादि यौमिन अज़ीम
फिर सम्प्रदायों[1] ने आपस में विभेद किया, तो विनाश है उनके लिए, जो काफ़िर हो गये, एक बड़े दिन के आ जाने के कारण।
1. अर्थात अह्ले किताब के सम्प्रदायों ने ईसा अलैहिस्सलाम की वास्तविक्ता जानने के पश्चात् उन के विषय में विभेद किया। यहूदियों ने उसे जादूगर तथा वर्णसंकर कहा। और ईसाईयों के एक सम्प्रदाय ने कहा कि वह स्वयं अल्लाह है। दूसरे ने कहाः वह अल्लाह का पुत्र है। और उन के तीसरे कैथुलिक सम्प्रदाय ने कहा कि वह तीन में का तीसरा है। बड़े दिन से अभिप्राय प्रलय का दिन है।
أَسْمِعْ بِهِمْ وَأَبْصِرْ يَوْمَ يَأْتُونَنَا ۖ لَٰكِنِ الظَّالِمُونَ الْيَوْمَ فِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ ﴾ 38 ﴿
अस्मिअ’ बिहिम व अबसिर यौमा यअ’तूनना लाकिनिज़ ज़ालिमूनल यौमा फ़ी दलालिम मुबीन
वे भली-भाँति सुनेंगे और देखेंगे, जिस दिन हमारे पास आयेंगे, परन्तु अत्याचारी आज खुले कुपथ में हैं।
وَأَنذِرْهُمْ يَوْمَ الْحَسْرَةِ إِذْ قُضِيَ الْأَمْرُ وَهُمْ فِي غَفْلَةٍ وَهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ ﴾ 39 ﴿
व अन्ज़िरहुम यौमल हसरति इज़ कुदियल अमरु वहुम फ़ी ग़फ्लतिव वहुम ला युअ’मिनून
और (हे नबी!) आप उन्हें संताप के दिन से सावधान कर दें, जब निर्णय[1] कर दिया जायेगा, जबकि वे अचेत हैं तथा ईमान नहीं ला रहे हैं।
1. अर्थात प्रत्येक के कर्मानुसार उस के लिये नरक अथवा स्वर्ग का निर्णय कर दिया जायेगा। फिर मौत को एक भेड़ के रूप में वध कर दिया जायेगा। तथा घोषणा कर दी जायेगी कि हे स्वर्गियो! तुम्हें सदा रहना है, और अब मौत नहीं है। और हे नारकियो! तुम्हें सदा नरक में रहना है, अब मौत नहीं है। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस संख्याः4730)
إِنَّا نَحْنُ نَرِثُ الْأَرْضَ وَمَنْ عَلَيْهَا وَإِلَيْنَا يُرْجَعُونَ ﴾ 40 ﴿
इन्ना नहनु नरिसुल अरदा वमन अलैहा व इलैना यूर जऊन
निश्चय हम ही उत्तराधिकारी होंगे धरती के तथा जो उसके ऊपर है और हमारी ही ओर सब प्रत्यागत किये जायेंगे।
وَاذْكُرْ فِي الْكِتَابِ إِبْرَاهِيمَ ۚ إِنَّهُ كَانَ صِدِّيقًا نَّبِيًّا ﴾ 41 ﴿
वज्कुर फ़िल किताबि इब्राहीम, इन्नहू काना सिद्दीक़न नबिय्या
तथा आप चर्चा कर दें इस पुस्तक (क़ुर्आन) में इब्राहीम की। वास्तव में, वह एक सत्यवादी नबी था।
إِذْ قَالَ لِأَبِيهِ يَا أَبَتِ لِمَ تَعْبُدُ مَا لَا يَسْمَعُ وَلَا يُبْصِرُ وَلَا يُغْنِي عَنكَ شَيْئًا ﴾ 42 ﴿
इज़ क़ाला लि अबीहि या अबति लिमा तअ’बुदु माला यस्मऊ वला युब्सिरू वला युग्नी अनका शैआ
जब उसने कहा अपने पिता सेः हे मेरे प्रिय पिता! क्यों आप उसे पूजते हैं, जो न सुनता है, न देखता है और न आपके कुछ काम आता?
يَا أَبَتِ إِنِّي قَدْ جَاءَنِي مِنَ الْعِلْمِ مَا لَمْ يَأْتِكَ فَاتَّبِعْنِي أَهْدِكَ صِرَاطًا سَوِيًّا ﴾ 43 ﴿
या अ-बति इन्नी क़द जाअनी मिनल इल्मि मा लम यअ’तिका फत तबिअ’नी अह्दिका सिरातन सविय्या
हे मेरे पिता! मेरे पास वह ज्ञान आ गया है, जो आपके पास नहीं आया, अतः आप मेरा अनुसरण करें, मैं आपको सीधी राह दिखा दूँगा।
يَا أَبَتِ لَا تَعْبُدِ الشَّيْطَانَ ۖ إِنَّ الشَّيْطَانَ كَانَ لِلرَّحْمَٰنِ عَصِيًّا ﴾ 44 ﴿
या अबति ला तअ’बुदिश शैतान, इन्नश शैताना काना लिर रहमानि असिय्या
हे मेरे प्रिय पिता! शैतान की पूजा न करें, वास्तव में, शैतान अत्यंत कृपाशील (अल्लाह) का अवज्ञाकारी है।
يَا أَبَتِ إِنِّي أَخَافُ أَن يَمَسَّكَ عَذَابٌ مِّنَ الرَّحْمَٰنِ فَتَكُونَ لِلشَّيْطَانِ وَلِيًّا ﴾ 45 ﴿
या अ-बति इन्नी अख़ाफु अय यमस सका अज़ाबुम मिनर रहमानि फ़ तकूना लिश शैतानि वलिय्या
हे मेरे पिता! वास्तव में, मुझे भय हो रहा है कि आपको अत्यंत कृपाशील की कोई यातना आ लगे, तो आप शैतान के मित्र हो जायेंगे[1]।
1. अर्थात अब मैं आप को संबोधित नहीं करूँगा।
قَالَ أَرَاغِبٌ أَنتَ عَنْ آلِهَتِي يَا إِبْرَاهِيمُ ۖ لَئِن لَّمْ تَنتَهِ لَأَرْجُمَنَّكَ ۖ وَاهْجُرْنِي مَلِيًّا ﴾ 46 ﴿
क़ाला अरागिबुन अंता अन आलि-हती या इब्राहीम, लइल लम तन्तहि ल अरजुमन नका वह जुरनी मलिय्या
उसने कहाः क्या तू हमारे पूज्यों से विमुख हो रहा है? हे इब्राहीम! यदि तू (इससे) नहीं रुका, तो मैं तुझे पत्थरों से मार दूँगा और तू मुझसे विलग हो जा, सदा के लिए।
قَالَ سَلَامٌ عَلَيْكَ ۖ سَأَسْتَغْفِرُ لَكَ رَبِّي ۖ إِنَّهُ كَانَ بِي حَفِيًّا ﴾ 47 ﴿
क़ाला सलामुन अलै-क सअस्तग फिरू लका रब्बी, इन्नहू काना बी हफ़िय्या
(इब्राहीम) ने कहाः सलाम[1] है आपको! मैं क्षमा की प्रार्थना करता रहूँगा आपके लिए अपने पालनहार से, मेरा पालनहार मेरे प्रति बड़ा करुणामय है।
1. इस्ह़ाक़ इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पुत्र तथा याक़ूब के पिता थे, इन्हीं के वंश को बनी इस्राईल कहते हैं।
وَأَعْتَزِلُكُمْ وَمَا تَدْعُونَ مِن دُونِ اللَّهِ وَأَدْعُو رَبِّي عَسَىٰ أَلَّا أَكُونَ بِدُعَاءِ رَبِّي شَقِيًّا ﴾ 48 ﴿
व अअ’ तज़िलुकुम वमा तदऊना मिन दूनिल लाहि व अदऊ रब्बी, असा अल्ला अकूना बि दुआइ रब्बि शक़िय्या
तथा मैं तुम सभीको छोड़ता हूँ और जिसे तुम पुकारते हो अल्लाह के सिवा और प्रार्थना करता रहूँगा अपने पालनहार से। मुझे विश्वास है कि मैं अपने पालनहार से प्रार्थना करके असफल नहीं हूँगा।
فَلَمَّا اعْتَزَلَهُمْ وَمَا يَعْبُدُونَ مِن دُونِ اللَّهِ وَهَبْنَا لَهُ إِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ ۖ وَكُلًّا جَعَلْنَا نَبِيًّا ﴾ 49 ﴿
फलम मअ’ त-ज़लहुम वमा यअ’बुदूना मिन दूनिल लाहि वहब्ना लहू इस्हाक़ा व यअक़ू-ब वकुल्लन जअलना नबिय्या
फिर जब उन्हें छोड़ दिया तथा जिन्हें वे अल्लाह के सिवा पुकार रहे थे, तो हमने उसे प्रदान कर दिया इस्ह़ाक़ तथा याक़ूब, और हमने प्रत्येक को नबी बना दिया।
وَوَهَبْنَا لَهُم مِّن رَّحْمَتِنَا وَجَعَلْنَا لَهُمْ لِسَانَ صِدْقٍ عَلِيًّا ﴾ 50 ﴿
व वहब्ना लहुम मिर रहमतिना व जअल्ना लहुम लिसाना सिद्क़िन अलिय्या
तथा हमने प्रदान की, उन सबको, अपनी दया में से और हमने बना दी, उनकी शुभ चर्चा सर्वोच्च।
وَاذْكُرْ فِي الْكِتَابِ مُوسَىٰ ۚ إِنَّهُ كَانَ مُخْلَصًا وَكَانَ رَسُولًا نَّبِيًّا ﴾ 51 ﴿
वज्कुर फ़िल किताबि मूसा, इन्नहू काना मुख्लसव व काना रसूलन नबिय्या
और आप इस पुस्तक में मूसा की चर्चा करें। वास्तव में, वह चुना हुआ तथा रसूल एवं नबी था।
وَنَادَيْنَاهُ مِن جَانِبِ الطُّورِ الْأَيْمَنِ وَقَرَّبْنَاهُ نَجِيًّا ﴾ 52 ﴿
व नादैनाहु मिन जानिबित तूरिल ऐमनि व क़र रब्नाहु नजिय्या
और हमने उसे पुकारा तूर पर्वत के दायें किनारे से तथा उसे समीप कर लिया रहस्य की बात करते हूए।
وَوَهَبْنَا لَهُ مِن رَّحْمَتِنَا أَخَاهُ هَارُونَ نَبِيًّا ﴾ 53 ﴿
व वहबना लहू मिर रहमतिना अख़ाहू हारू-न नबिय्या
और हमने प्रदान किया उसे अपनी दया में से, उसके भाई हारून को नबी बनाकर।
وَاذْكُرْ فِي الْكِتَابِ إِسْمَاعِيلَ ۚ إِنَّهُ كَانَ صَادِقَ الْوَعْدِ وَكَانَ رَسُولًا نَّبِيًّا ﴾ 54 ﴿
व कुर फ़िल किताबि इस्माईल, इन्नहू काना सदिक़ल वअ’दि व का-न रसूलन नबिय्या
तथा इस पुस्तक में इस्माईल[1] की चर्चा करो, वास्तव में, वह वचन का पक्का तथा रसूल-नबी था।
1. आप इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बड़े पुत्र थे, इन्हीं से अरबों का वंश चला और आप ही के वंश से अंतिम नबी मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) नबी बना कर भेजे गये हैं।
وَكَانَ يَأْمُرُ أَهْلَهُ بِالصَّلَاةِ وَالزَّكَاةِ وَكَانَ عِندَ رَبِّهِ مَرْضِيًّا ﴾ 55 ﴿
वकान यअ’मुरु बिस सलाति वज़ ज़काति वकाना इन्दा रब्बिही मर दिय्या
और आदेश देता था अपने परिवार को नमाज़ तथा ज़कात का और अपने पालनहार के यहाँ प्रिय था।
وَاذْكُرْ فِي الْكِتَابِ إِدْرِيسَ ۚ إِنَّهُ كَانَ صِدِّيقًا نَّبِيًّا ﴾ 56 ﴿
वज़कुर फ़िल किताबि इदरीस, इन्नहू का-न सिद दीक़न नबिय्या
तथा इस पुस्तक में इद्रीस की चर्चा करो, वास्तव में, वह सत्यवादी नबी था।
وَرَفَعْنَاهُ مَكَانًا عَلِيًّا ﴾ 57 ﴿
व रफ़अ’नाहू मकानन अलिय्या
तथा हमने उसे उठाया उच्च स्थान पर।
أُولَٰئِكَ الَّذِينَ أَنْعَمَ اللَّهُ عَلَيْهِم مِّنَ النَّبِيِّينَ مِن ذُرِّيَّةِ آدَمَ وَمِمَّنْ حَمَلْنَا مَعَ نُوحٍ وَمِن ذُرِّيَّةِ إِبْرَاهِيمَ وَإِسْرَائِيلَ وَمِمَّنْ هَدَيْنَا وَاجْتَبَيْنَا ۚ إِذَا تُتْلَىٰ عَلَيْهِمْ آيَاتُ الرَّحْمَٰنِ خَرُّوا سُجَّدًا وَبُكِيًّا ۩ ﴾ 58 ﴿
उलाइकल लज़ीना अन अमल लाहू अलैहिम मिनन नबिय्यीना मिन जुर रिय्यति आदम, व मिम्मन हमलना मअ नूह, वमिन ज़ुर रिय्यति इब्राही-म व इसराई-ल व मिम्मन हदैना वज तबैना, इज़ा तुतला अलैहिम आयातुर रहमानि ख़र्रू सुज्जदौ व बुकिय्या (Sajda)
यही वो लोग हैं, जिनपर अल्लाह ने पुरस्कार किया, नबियों में से, आदम की संतति में से तथा उनमें से, जिन्हें हमने (नाव पर) सवार किया नूह़ के साथ तथा इब्राहीम और इस्राईल की संतति में से तथा उनमें से जिन्हें हमने मार्गदर्शन दिया और चुन लिया, जब इनके समक्ष पढ़ी जाती थी अत्यंत कृपाशील की आयतें, तो वे गिर जाया करते थे सज्दा करते हुए तथा रोते हुए।
فَخَلَفَ مِن بَعْدِهِمْ خَلْفٌ أَضَاعُوا الصَّلَاةَ وَاتَّبَعُوا الشَّهَوَاتِ ۖ فَسَوْفَ يَلْقَوْنَ غَيًّا ﴾ 59 ﴿
फ़ ख़-लफ़ मिम बअ’दिहिम खल्फुन अदाउस सलाता वत त-बउश श-हवाति फ़ सौफ़ा यल्क़ौना ग़य्या
फिर इनके पश्चात् ऐसै कपूत पैदा हुए, जिन्होंने गंवा दिया नमाज़ को तथा अनुसरण किया मनोकांक्षाओं का, तो वे शीघ्र ही कुपथ (के परिणाम) का सामना करेंगे।
إِلَّا مَن تَابَ وَآمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَأُولَٰئِكَ يَدْخُلُونَ الْجَنَّةَ وَلَا يُظْلَمُونَ شَيْئًا ﴾ 60 ﴿
इल्ला मन ताबा आमना व अमिला सालिहन फ़ उलाइका यद् खुलूनल जन्नता वला युज्लमूना शैआ
परन्तु जिन्होंने क्षमा माँग ली तथा ईमान लाये और सदाचार किये, तो वही स्वर्ग में प्रवेश करेंगे और उनपर तनिक अत्याचार नहीं किया जायेगा।
جَنَّاتِ عَدْنٍ الَّتِي وَعَدَ الرَّحْمَٰنُ عِبَادَهُ بِالْغَيْبِ ۚ إِنَّهُ كَانَ وَعْدُهُ مَأْتِيًّا ﴾ 61 ﴿
जन्नाति अदनि निल लती व अदर रह्मानु इबादहू बिल गैब, इन्नहू काना वअ’दुहू मअ’तिय्या
स्थायी बिन देखे स्वर्ग, जिनका परोक्षतः वचन अत्यंत कृपाशील ने अपने भक्तों को दिया है, वास्तव में, उसका वचन पूरा होकर रहेगा।
لَّا يَسْمَعُونَ فِيهَا لَغْوًا إِلَّا سَلَامًا ۖ وَلَهُمْ رِزْقُهُمْ فِيهَا بُكْرَةً وَعَشِيًّا ﴾ 62 ﴿
ला यस्म ऊना फ़ीहा लगवन इल्ला सलामा व लहुम रिज्क़ुहुम फ़ीहा बुकरतव व अशिय्या
वे नहीं सुनेंगे, उसमें कोई बक्वास, सलाम के सिवा तथा उनके लिए उसमें जीविका होगी प्रातः और संध्या।
تِلْكَ الْجَنَّةُ الَّتِي نُورِثُ مِنْ عِبَادِنَا مَن كَانَ تَقِيًّا ﴾ 63 ﴿
तिल्कल जन्नतुल लती नूरिसु मिन इबादिना मन कान तक़िय्या
यही वो स्वर्ग है, जिसका हम उत्तराधिकारी बना देंगे, अपने भक्तों में से उसे, जो आज्ञाकारी हो।
وَمَا نَتَنَزَّلُ إِلَّا بِأَمْرِ رَبِّكَ ۖ لَهُ مَا بَيْنَ أَيْدِينَا وَمَا خَلْفَنَا وَمَا بَيْنَ ذَٰلِكَ ۚ وَمَا كَانَ رَبُّكَ نَسِيًّا ﴾ 64 ﴿
वमा न-तनज़ ज़लु इल्ला बिअमरि रब्बिक, लहू मा बैना ऐदीना वमा ख़ल्फ़ना वमा बैना ज़ालिक, वमा काना रब्बुका नसिय्या
और हम[1] नहीं उतरते, परन्तु आपके पालनहार के आदेश से, उसी का है, जो हमारे आगे तथा पीछे है और जो इसके बीच है और आपका पालनहार भूलने वाला नहीं है।
1. ह़दीस के अनुसार एक बार नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने (फ़रिश्ते) जिब्रील से कहा कि क्या चीज़ आप को रोक रही है कि आप मुझ से और अधिक मिला करें। इसी पर यह आयत अवतरित हुई। ( सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस संख्याः4731)
رَّبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا فَاعْبُدْهُ وَاصْطَبِرْ لِعِبَادَتِهِ ۚ هَلْ تَعْلَمُ لَهُ سَمِيًّا ﴾ 65 ﴿
रब्बुस समावाति वल अरदि वमा बैनहुमा फ़अ’बुद्हू वस तबिर लि इबादतिह, हल तअ’लमु लहू समिय्या
आकाशों तथा धरती का पालनहार तथा जो उन दोनों के बीच है। अतः उसी की इबादत (वंदना) करें तथा उसकी इबादत पर स्थित रहें। क्या आप उसके समक्ष किसी को जानते हैं?
وَيَقُولُ الْإِنسَانُ أَإِذَا مَا مِتُّ لَسَوْفَ أُخْرَجُ حَيًّا ﴾ 66 ﴿
व यक़ूलुल इंसानु अइज़ा मा मित्तु लसौफ़ा उख़रजू हय्या
तथा मनुष्य कहता है कि क्या जब मैं मर जाऊँगा, तो फिर निकाला जाऊँगा जीवित होकर?
أَوَلَا يَذْكُرُ الْإِنسَانُ أَنَّا خَلَقْنَاهُ مِن قَبْلُ وَلَمْ يَكُ شَيْئًا ﴾ 67 ﴿
अ वला यज्कुरुल इंसानु इन्ना ख़लक्नाहु मिन क़ब्लु वलम यकु शैआ
क्या मनुष्य याद नहीं रखता कि हम ही ने उसे इससे पूर्व उत्पन्न किया है, जबकि वह कुछ (भी) न था?
فَوَرَبِّكَ لَنَحْشُرَنَّهُمْ وَالشَّيَاطِينَ ثُمَّ لَنُحْضِرَنَّهُمْ حَوْلَ جَهَنَّمَ جِثِيًّا ﴾ 68 ﴿
फ़ वरब्बिका लनह शुरन नहूम वश शयातीना सुम्मा लनुह दिरन नहुम हौला जहन्नमा जिसिय्या
तो आपके पालनहार की शपथ! हम उन्हें अवश्य एकत्र कर देंगे और शैतानों को, फिर उन्हें अवश्य उपस्थित कर देंगे, नरक के किनारे मुँह के बल गिरे हुए।
ثُمَّ لَنَنزِعَنَّ مِن كُلِّ شِيعَةٍ أَيُّهُمْ أَشَدُّ عَلَى الرَّحْمَٰنِ عِتِيًّا ﴾ 69 ﴿
सुम्मा लननज़ि अन्ना मिन कुल्लि शीअतिन अय्युहुम अशद्दु अलर रहमानि इतिय्या
फिर हम अलग कर लेंगे, प्रत्येक समुदाय से, उनमें से उसे, जो अत्यंत कृपाशील का अधिक अवज्ञाकारी था।
ثُمَّ لَنَحْنُ أَعْلَمُ بِالَّذِينَ هُمْ أَوْلَىٰ بِهَا صِلِيًّا ﴾ 70 ﴿
सुम्मा लनहनु अअ’लमु बिल लज़ीना हुम औला बिहा सिलिय्या
फिर हम ही भली-भाँति जानते हैं कि कौन अधिक योग्य है उसमें झोंक दिये जाने के।
وَإِن مِّنكُمْ إِلَّا وَارِدُهَا ۚ كَانَ عَلَىٰ رَبِّكَ حَتْمًا مَّقْضِيًّا ﴾ 71 ﴿
वइम मिन्कुम इल्ला वारिदुहा, काना अला रब्बिका हत्मम मक़दिय्या
और नहीं है तुममें से कोई, परन्तु वहाँ गुज़रने वाला[1] है, ये आपके पालनहार पर अनिवार्य है, जो पूरा होकर रहेगा।
1. अर्थात नरक से जिस पर एक पुल बनाया जायेगा। उस पर से सभी ईमान वालों और काफ़िरों को अवश्य गुज़रना होगा। यह और बात है कि ईमान वालों को इस से कोई हानि न पहुँचे। इस की व्याख्या सह़ीह़ ह़दीसों में वर्णित है।
ثُمَّ نُنَجِّي الَّذِينَ اتَّقَوا وَّنَذَرُ الظَّالِمِينَ فِيهَا جِثِيًّا ﴾ 72 ﴿
सुम्मा नुनज्जिल लज़ीनत तक़ौ व न-ज़रुज़ ज़ालिमीना फ़ीहा जिसिय्या
फिर हम उन्हें बचा लेंगे, जो डरते रहे तथा उसमें छोड़ देंगे अत्याचारियों को मुँह के बल गिरे हुए।
وَإِذَا تُتْلَىٰ عَلَيْهِمْ آيَاتُنَا بَيِّنَاتٍ قَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلَّذِينَ آمَنُوا أَيُّ الْفَرِيقَيْنِ خَيْرٌ مَّقَامًا وَأَحْسَنُ نَدِيًّا ﴾ 73 ﴿
व इज़ा तुतला अलैहिम आयातुना बय्यिनातिन क़ालल लज़ीना कफ़रू लिल लज़ीना आमनू अय्युल फरीक़ैनि खैरुम मक़ामौ वअहसनु नदिय्या
तथा जब उनके समक्ष हमारी खुली आयतें पढ़ी जाती हैं, तो काफ़िर ईमान वालों से कहते हैं कि (बताओ) दोनों सम्प्रदायों में किसकी दशा अच्छी है और किसकी मज्लिस (सभा) अधिक भव्य है?
وَكَمْ أَهْلَكْنَا قَبْلَهُم مِّن قَرْنٍ هُمْ أَحْسَنُ أَثَاثًا وَرِئْيًا ﴾ 74 ﴿
वकम अहलक्ना क़ब्लहुम मिन क़रनिन हुम अहसनु असासव व रि’अया
जबकि हम ध्वस्त कर चुके हैं, इनसे पहले बहुत-सी जातियों को, जो इनमें उत्तम थीं संसाधन तथा मान-सम्मान में।
قُلْ مَن كَانَ فِي الضَّلَالَةِ فَلْيَمْدُدْ لَهُ الرَّحْمَٰنُ مَدًّا ۚ حَتَّىٰ إِذَا رَأَوْا مَا يُوعَدُونَ إِمَّا الْعَذَابَ وَإِمَّا السَّاعَةَ فَسَيَعْلَمُونَ مَنْ هُوَ شَرٌّ مَّكَانًا وَأَضْعَفُ جُندًا ﴾ 75 ﴿
क़ुल मन काना फ़िद दलालति फ़ल यम्दुद लहुर रहमानु मददा, हत्ता इज़ा रऔ मा यूअदूना इम्मल अज़ाबा व इम्मस साअह, फ़ स यअ’लमूना मन हुवा शररुम मकानौ व अदअफु जुन्दा
(हे नबी!) आप कह दें कि जो कुपथ में ग्रस्त होता है, अत्यंत कृपाशील उसे अधिक अवसर देता है। यहाँ तक कि जब उसे देख लें, जिसका वचन दिये जाते हैं; या तो यातना को अथवा प्रलय को, उस समय उन्हें ज्ञान हो जायेगा कि किसकी दशा बुरी और किसका जत्था अधिक निर्बल है।
وَيَزِيدُ اللَّهُ الَّذِينَ اهْتَدَوْا هُدًى ۗ وَالْبَاقِيَاتُ الصَّالِحَاتُ خَيْرٌ عِندَ رَبِّكَ ثَوَابًا وَخَيْرٌ مَّرَدًّا ﴾ 76 ﴿
व यज़ीदुल लाहुल लज़ीनह तदौ हुदा, वल बाक़ियातुस सालिहातु खैरुन इन्दा रब्बिका सवाबौ व खैरुम मरद दा
और अल्लाह उन्हें, जो सुपथ हों, मार्गदर्शन में आधिक कर देता है और शेष रह जाने वाले सदाचार ही उत्तम हैं, आपके पालनहार के समीप कर्म-फल में तथा उत्तम हैं परिणाम के फलस्वरूप।
أَفَرَأَيْتَ الَّذِي كَفَرَ بِآيَاتِنَا وَقَالَ لَأُوتَيَنَّ مَالًا وَوَلَدًا ﴾ 77 ﴿
अफ़ा रऐतल लज़ी कफ़रा बि आयातिना वक़ाला लऊ तयन्ना मालौ वव लदा
(हे नबी!) क्या आपने उसे देखा, जिसने हमारी आयतों के साथ कुफ़्र (अविश्वास) किया तथा कहाः मैं अवश्य धन तथा संतान दिया जाऊँगा?
أَطَّلَعَ الْغَيْبَ أَمِ اتَّخَذَ عِندَ الرَّحْمَٰنِ عَهْدًا ﴾ 78 ﴿
अत त-लअल गैबा अमित तख़ाज़ा इन्दर रहमानि अहदा
क्या वह अवगत हो गया है परोक्ष से अथवा उसने अत्यंत दयाशील से कोई वचन ले रखा है?
كَلَّا ۚ سَنَكْتُبُ مَا يَقُولُ وَنَمُدُّ لَهُ مِنَ الْعَذَابِ مَدًّا ﴾ 79 ﴿
कल्ला, सनक तुबु मा यक़ूलु व नमुद्दु लहू मिनल अजाबि मद्दा
कदापि नहीं, हम लिख लेंगे, जो वह कहता है और हम अधिक करते जायेंगे उसकी यातना को अत्यधिक।
وَنَرِثُهُ مَا يَقُولُ وَيَأْتِينَا فَرْدًا ﴾ 80 ﴿
व नरिसुहू मा यक़ूलु व यअ’तीना फ़रदा
और हम ले लेंगे जिसकी वह बात कर रहा है और वह हमारे पास अकेला[1] आयेगा।
1. इन आयतों के अवतरित होने का कारण यह बताया गया है कि ख़ब्बाब बिन अरत्त का आस बिन वायल (काफ़िर) पर कुछ ऋण था। जिसे माँगने के लिये गये तो उस ने कहाः मैं तुझे उस समय तक नहीं दूँगा जब तक मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ कुफ़्र नहीं करेगा। उन्हों ने कहा कि यह काम तो तू मर कर पुनः जीवित हो जाये, तब भी नहीं करँगा। उस ने कहाः क्या मैं मरने के पश्चात् पुनः जीवित कर दिया जाऊँगा? ख़ब्बाब ने कहाः हाँ। आस ने कहाः वहाँ मुझे धन और संतान मिलेगी तो तुम्हारा ऋण चुका दूँगा। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस संख्याः 4732)
وَاتَّخَذُوا مِن دُونِ اللَّهِ آلِهَةً لِّيَكُونُوا لَهُمْ عِزًّا ﴾ 81 ﴿
वत तख़जू मिन दूनिल लाहि आलि हतल लियकूनू लहुम इज्ज़ा
तथा उन्होंने बना लिए हैं अल्लाह के सिवा बहुत-से पूज्य, ताकि वे उनके सहायक हों।
كَلَّا ۚ سَيَكْفُرُونَ بِعِبَادَتِهِمْ وَيَكُونُونَ عَلَيْهِمْ ضِدًّا ﴾ 82 ﴿
कल्ला, सयक फुरूना बि इबादातिहिम व यकूनूना अलैहिम दिद्दा
ऐसा कदापि नहीं होगा, वे सब इसकी पूजा (उपासना) का अस्वीकार कर[1] देंगे और उनके विरोधी हो जायेंगे।
1. अर्थात प्रलय के दिन।
أَلَمْ تَرَ أَنَّا أَرْسَلْنَا الشَّيَاطِينَ عَلَى الْكَافِرِينَ تَؤُزُّهُمْ أَزًّا ﴾ 83 ﴿
अलम तरा अन्ना अरसल नश शयातीना अलल काफ़िरीना तउज्ज़ुहुम अज्ज़ा
क्या आपने नहीं देखा कि हमने भेज दिया है शैतानों को काफ़िरों पर, जो उन्हें बराबर उकसाते रहते हैं?
فَلَا تَعْجَلْ عَلَيْهِمْ ۖ إِنَّمَا نَعُدُّ لَهُمْ عَدًّا ﴾ 84 ﴿
फला तअ’जल अलैहिम इन्नमा नउद्दु लहुम अददा
अतः शीघ्रता न करें उनपर[1], हम तो केवल उनके दिन गिन रहे हैं।
1. अर्थात यातना के आने का। और इस के लिये केवल उन की आयु पूरी होने की देर है।
يَوْمَ نَحْشُرُ الْمُتَّقِينَ إِلَى الرَّحْمَٰنِ وَفْدًا ﴾ 85 ﴿
यौमा नह्शुरुल मुत्तक़ीना इलर रहमानि वफ्दा
जिस दिन हम एकत्र कर देंगे, आज्ञाकारियों को, अत्यंत कृपाशील की ओर अतिथि बनाकर।
وَنَسُوقُ الْمُجْرِمِينَ إِلَىٰ جَهَنَّمَ وِرْدًا ﴾ 86 ﴿
व नसूक़ुल मुजरिमीना इला जहन्नमा विरदा
तथा हांक देंगे पापियों को नरक की ओर प्यासे पशुओं के समान।
لَّا يَمْلِكُونَ الشَّفَاعَةَ إِلَّا مَنِ اتَّخَذَ عِندَ الرَّحْمَٰنِ عَهْدًا ﴾ 87 ﴿
ला यमलिकू नश शफ़ाअता इल्ला मनित तखाज़ा इन्दर रहमानि अहदा
वह (काफ़िर) अभिस्तावना का अधिकार नहीं रखेंगे, परन्तु जिसने बना लिया हो अत्यंत कृपाशील के पास कोई वचन[1]।
1. अर्थात अल्लाह की अनुमति से वही सिफ़ारिश करेगा जो ईमान लाया है।
وَقَالُوا اتَّخَذَ الرَّحْمَٰنُ وَلَدًا ﴾ 88 ﴿
व क़ालुत त-खज़र रहमानु व-लदा
तथा उन्होंने कहा कि बना लिया है अत्यंत कृपाशील ने अपने लिए एक पुत्र[1]।
1. अर्थात ईसाईयों ने- जैसा कि इस सूरह के आरंभ में आया है- ईसा अलैहिस्सलाम को अल्लाह का पुत्र बना लिया। और इस भ्रम में पड़ गये कि उन्हों ने मनुष्य के पापों का प्रायश्चित चुका दिया। इस आयत में इसी कुपथ का खण्डन किया जा रहा है।
वास्तव में, तुम एक भारी बात घड़ लाये हो। ﴾ 89 ﴿
लक़द जिअ’तुम शैअन इद्दा
वास्तव में, तुम एक भारी बात घड़ लाये हो।
تَكَادُ السَّمَاوَاتُ يَتَفَطَّرْنَ مِنْهُ وَتَنشَقُّ الْأَرْضُ وَتَخِرُّ الْجِبَالُ هَدًّا ﴾ 90 ﴿
तकादुस समावातु यता फ़त तरना मिन्हु व तन्शक़ क़ुल अरदु व तखिर रुल जिबालु हद्दा
समीप है कि इस कथन के कारण आकाश फट पड़े तथा धरती चिर जाये और गिर जायेँ पर्वत कण-कण होकर।
أَن دَعَوْا لِلرَّحْمَٰنِ وَلَدًا ﴾ 91 ﴿
अन दऔ लिर रहमानि व-लदा
कि वे सिध्द करने लगे अत्यंत कृपाशील के लिए संतान।
وَمَا يَنبَغِي لِلرَّحْمَٰنِ أَن يَتَّخِذَ وَلَدًا ﴾ 92 ﴿
वमा यम्बगी लिर रहमानि अय यत तखिज़ा व-लदा
तथा नहीं योग्य है अत्यंत कृपाशील के लिए कि वह कोई संतान बनाये।
إِن كُلُّ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ إِلَّا آتِي الرَّحْمَٰنِ عَبْدًا ﴾ 93 ﴿
इन कुल्लू मन फिस समावाति वल अरदि इल्ला आतिर रहमानि अब्दा
प्रत्येक जो आकाशों तथा धरती में हैं, आने वाले हैं, अत्यंत कृपाशील की सेवा में दास बनकर।
لَّقَدْ أَحْصَاهُمْ وَعَدَّهُمْ عَدًّا ﴾ 94 ﴿
लक़द अह्साहुम व अद्दहुम अददा
उसने उन्हें नियंत्रण में ले रखा है तथा उन्हें पूर्णतः गिन रखा है।
وَكُلُّهُمْ آتِيهِ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فَرْدًا ﴾ 95 ﴿
व कुल्लुहुम आतीहि यौमल क़ियामति फ़रदा
और प्रत्येक उसके समक्ष आने वाला है, प्रलय के दिन, अकेला[1]।
1. अर्थात उस दिन कोई किसी का सहायक न होगा। और न ही किसी को उस का धन-संतान लाभ देगा।
إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ سَيَجْعَلُ لَهُمُ الرَّحْمَٰنُ وُدًّا ﴾ 96 ﴿
इन्नल लज़ीना आमनू व अमिलुस सालिहाति सयज अलु लहुमुर रहमानु वुद्दा
निश्चय जो ईमान वाले हैं तथा सदाचार किये हैं, शीघ्र बना देगा, उनके लिए अत्यंत कृपाशील (दिलों में)[1] प्रेम।
1. अर्थात उन के ईमान और सदाचार के कारण, लोग उन से प्रेम करने लगेंगे।
فَإِنَّمَا يَسَّرْنَاهُ بِلِسَانِكَ لِتُبَشِّرَ بِهِ الْمُتَّقِينَ وَتُنذِرَ بِهِ قَوْمًا لُّدًّا ﴾ 97 ﴿
फ़ इन्नमा यस सरनाहु बि लिसानिका लितुबश शिरा बिहिल मुत्तक़ीना व तुन्ज़िरा बिही क़ौमल लुद्दा
अतः (हे नबी!) हमने सरल बना दिया है, इस (क़ुर्आन) को आपकी भाषा में, ताकि आप इसके द्वारा शुभ सूचना दें संयमियों (आज्ञाकारियों) को तथा सतर्क कर दें विरोधियों को।
وَكَمْ أَهْلَكْنَا قَبْلَهُم مِّن قَرْنٍ هَلْ تُحِسُّ مِنْهُم مِّنْ أَحَدٍ أَوْ تَسْمَعُ لَهُمْ رِكْزًا ﴾ 98 ﴿
वकम अहलकना क़ब्लहुम मिन करनिन हल तुहिस्सु मिन्हुम मिन अहदिन अव तसमऊ लहुम रिक्ज़ा
तथा हमने ध्वस्त कर दिया है, इनसे पहले बहुत सी जातियों को, तो क्या आप देखते हैं, उनमें किसी को अथवा सुनते हैं, उनकी कोई ध्वनि?