بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
وَإِذَا ضَرَبْتُمْ فِى ٱلْأَرْضِ فَلَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَن تَقْصُرُوا۟ مِنَ ٱلصَّلَوٰةِ إِنْ خِفْتُمْ أَن يَفْتِنَكُمُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ إِنَّ ٱلْكَٰفِرِينَ كَانُوا۟ لَكُمْ عَدُوًّا مُّبِينًا ﴾ 101 ﴿
व इज़ा ज़रब्तुम् फ़िल् अर्ज़ि फ़्लै-स अलैकुम् जुनाहुन् अन् तक़्सुरू मिनस्सलाति, इन् ख़िफ्तुम् अंय्यफ्ति नकुमुल्लज़ी-न क-फरू, इन्नल्-काफिरी-न कानू लकुम अदुव्वम-मुबीना
और जब तुम धरती में यात्रा करो, तो नमाज़[1] क़स्र (संक्षिप्त) करने में तुमपर कोई दोष नहीं, यदि तुम्हें डर हो कि काफ़िर तुम्हें सतायेंगे। वास्तव में, काफ़िर तुम्हारे खुले शत्रु हैं। 1. क़स्र का अर्थ चार रक्अत वाली नमाज़ को दो रक्अत पढ़ना है। यह अनुमति प्रत्येक यात्रा के लिये है, शत्रु का भय हो, या न हो।
وَإِذَا كُنتَ فِيهِمْ فَأَقَمْتَ لَهُمُ ٱلصَّلَوٰةَ فَلْتَقُمْ طَآئِفَةٌ مِّنْهُم مَّعَكَ وَلْيَأْخُذُوٓا۟ أَسْلِحَتَهُمْ فَإِذَا سَجَدُوا۟ فَلْيَكُونُوا۟ مِن وَرَآئِكُمْ وَلْتَأْتِ طَآئِفَةٌ أُخْرَىٰ لَمْ يُصَلُّوا۟ فَلْيُصَلُّوا۟ مَعَكَ وَلْيَأْخُذُوا۟ حِذْرَهُمْ وَأَسْلِحَتَهُمْ وَدَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ لَوْ تَغْفُلُونَ عَنْ أَسْلِحَتِكُمْ وَأَمْتِعَتِكُمْ فَيَمِيلُونَ عَلَيْكُم مَّيْلَةً وَٰحِدَةً وَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ إِن كَانَ بِكُمْ أَذًى مِّن مَّطَرٍ أَوْ كُنتُم مَّرْضَىٰٓ أَن تَضَعُوٓا۟ أَسْلِحَتَكُمْ وَخُذُوا۟ حِذْرَكُمْ إِنَّ ٱللَّهَ أَعَدَّ لِلْكَٰفِرِينَ عَذَابًا مُّهِينًا ﴾ 102 ﴿
व इज़ा कुन् त फ़ीहिम् फ़-अक़म्-त लहुमुस्सला-त फ़ल्तक़ुम् ताइ-फतुम् मिन्हुम् म-अ-क वल्यअ्ख़ुज़ू अस्लि-ह तहुम्, फ़-इज़ा स-जदू फ़ल्यकूनू मिंव्वरा-इकुम्, वल्तअ्ति ताइ-फतुन् उख़्रा लम् युसल्लू फ़्ल्युसल्लू म-अ-क वल्यअ्ख़ुज़ू हिज़्रहुम् व अस्लि-ह-तहुम्, वद्दल्लज़ी-न क-फरू लौ तग़्फुलू-न अन् अस्लि-हतिकुम् व अम्ति-अतिकुम फ़-यमीलू-न अलैकुम् मै-लतंव्वाहि-दतन्, व ला जुना-ह अलैकुम् इन् का-न बिकुम् अज़म्-मिम्-म-तरिन् औ कुन्तुम मरज़ा अन् त-ज़अू अस्लि-ह-तकुम्, व ख़ुज़ू हिज़्रकुम्, इन्नल्ला-ह-अ-अद्-द लिल्काफ़िरी-न अज़ाबम् मुहीना
तथा (हे नबी!) जब आप (रणक्षेत्र में) उपस्थित हों और उनके लिए नमाज़ की स्थापना करें, तो उनका एक गिरोह आपके साथ खड़ा हो जाये और अपने अस्त्र-शस्त्र लिए रहें और जब वे सज्दा कर लें, तो तुम्हारे पीछे हो जायें तथा दूसरा गिरोह आये, जिसने नमाज़ नहीं पढ़ी है और आपके साथ नमाज़ पढ़ें और अपने अस्त्र-शस्त्र लिए रहें। काफ़िर चाहते हैं कि तुम अपने शस्त्रों से निश्चेत हो जाओ, तो तुमपर यकायक धावा बोल दें। फिर तुमपर कोई दोष नहीं, यदि वर्षा के कारण तुम्हें दुःख हो अथवा तुम रोगी रहो कि अपने शस्त्र[1] उतार दो तथा अपने बचाव का ध्यान रखो। निःसंदेह अल्लाह ने काफ़िरों के लिए अपमानकारी यातना तैयार कर रखी है। 1. इस का नाम "सलातुल ख़ौफ़" अर्थात भय के समय की नमाज़ है। जब रणक्षेत्र में प्रत्येक समय भय लगा रहे, तो उस (समय नमाज़ पढ़ने) की विधि यह है कि सेना के दो भाग कर लें। एक भाग को नमाज़ पढ़ायें, तथा दूसरा शत्रु के सम्मुख खड़ा रहे, फिर (पहले गिरोह के एक रक्अत पूरी होने के बाद) दूसरा आये और नमाज़ पढ़े। इस प्रकार प्रत्येक गिरोह की एक रक्अत और इमाम की दो रक्अत होंगी। ह़दीसों में इस की और भी विधियाँ आईं हैं। और यह युध्द की स्थितियों पर निर्भर है।
فَإِذَا قَضَيْتُمُ ٱلصَّلَوٰةَ فَٱذْكُرُوا۟ ٱللَّهَ قِيَٰمًا وَقُعُودًا وَعَلَىٰ جُنُوبِكُمْ فَإِذَا ٱطْمَأْنَنتُمْ فَأَقِيمُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ إِنَّ ٱلصَّلَوٰةَ كَانَتْ عَلَى ٱلْمُؤْمِنِينَ كِتَٰبًا مَّوْقُوتًا ﴾ 103 ﴿
फ-इज़ा क़ज़ैतुमुस्सला-त फ़ज़्कुरूल्ला-ह क़ियामंव्-व क़ुअूदंव्-व अला जुनूबिकुम्, फ-इज़त्मअ्नन्तुम् फ-अक़ीमुस्सला-त, इन्नस्सला-त कानत् अलल् मुअ्मिनी-न किताबम् मौक़ूता
फिर जब तुम नमाज़ पूरी कर लो, तो खड़े, बैठे, लेटे प्रत्येक स्थिति में अल्लाह का स्मरण करो और जब तुम शान्त हो जाओ, तो पूरी नमाज़ पढ़ो। निःसंदेह, नमाज़ ईमान वालों पर निर्धारित समय पर अनिवार्य की गयी है।
وَلَا تَهِنُوا۟ فِى ٱبْتِغَآءِ ٱلْقَوْمِ إِن تَكُونُوا۟ تَأْلَمُونَ فَإِنَّهُمْ يَأْلَمُونَ كَمَا تَأْلَمُونَ وَتَرْجُونَ مِنَ ٱللَّهِ مَا لَا يَرْجُونَ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا ﴾ 104 ﴿
व ला तहिनू फिब्तिग़ा-इल्-क़ौमि, इन् तकूनू तअ्लमू-न फ़-इन्नहुम् यअ्लमू-न कमा तअ्लमू-न, व तरजू-न मिनल्लाहि मा ला यरजू-न, व कानल्लाहु अ़लीमन् हकीमा*
तथा तुम (शत्रु) जाति का पीछा करने में सिथिल न बनो, यदि तुम्हें दुःख पहुँचा है, तो तुम्हारे समान उन्हें भी दुःख पहुँचा है तथा तुम अल्लाह से जो आशा[1] रखते हो, वो आशा वे नहीं रखते तथा अल्लाह अति ज्ञानी तत्वज्ञ है। 1. अर्थात प्रतिफल तथा सहायता और समर्थन की।
إِنَّآ أَنزَلْنَآ إِلَيْكَ ٱلْكِتَٰبَ بِٱلْحَقِّ لِتَحْكُمَ بَيْنَ ٱلنَّاسِ بِمَآ أَرَىٰكَ ٱللَّهُ وَلَا تَكُن لِّلْخَآئِنِينَ خَصِيمًا ﴾ 105 ﴿
इन्ना अन्ज़ल्ना इलैकल्-किता-ब बिल्-हक़्क़ि लि-तह़्कु-म बैनन्नासि बिमा अराकल्लाहु, व ला तकुल लिल-खाइनी-न खसीमा
(हे नबी!) हमने आपकी ओर इस पुस्तक (क़ुर्आन) को सत्य के साथ उतारा है, ताकि आप, लोगों के बीच उसके अनुसार निर्णय करें, जो अल्लाह ने आपको बताया है, और आप विश्वासघातियों के पक्षधर न[1] बनें। 1. यहाँ से, अर्थात आयत 105 से 113 तक, के विषय में भाष्यकारों ने लिखा है कि एक व्यक्ति ने एक अन्सारी की कवच (ज़िरह) चुरा ली। और जब देखा कि उस का भेद खुल जायेगा, तो उस का आरोप एक यहूदी पर लगा दिया। और उस के क़बीले के लोग भी उस के पक्षधर हो गये। और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आये, और कहा कि आप इसे निर्दोष घोषित कर दें। और उन की बातों के कारण समीप था कि आप उसे निर्दोष घोषित कर के यहूदी को अपराधी बना देते कि आप को सावधान करने के लिये यह आयतें उतरीं। (इब्ने जरीर) इन आयतों का साधारण भावार्थ यह है कि मुसलमान न्यायधीश को चाहीये कि किसी पक्ष का इस लिये पक्षपात न करे कि वह मुसलमान है। और दूसरा मुसलमान नहीं है, बल्कि उसे हर ह़ाल में निष्पक्ष हो कर न्याय करना चाहीये।
وَٱسْتَغْفِرِ ٱللَّهَ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ غَفُورًا رَّحِيمًا ﴾ 106 ﴿
वस्तग़्फिरिल्ला-ह, इन्नल्ला-ह का-न ग़फूरर्रहीमा
तथा अल्लाह से क्षमा याचना करते रहें, निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।
وَلَا تُجَٰدِلْ عَنِ ٱلَّذِينَ يَخْتَانُونَ أَنفُسَهُمْ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ مَن كَانَ خَوَّانًا أَثِيمًا ﴾ 107 ﴿
व ला तुजादिल् अनिल्लज़ी-न यख़्तानू-न अन्फु-सहुम, इन्नल्ला-ह ला युहिब्बु मन् का-न ख़व्वानन् असीमा
और उनका पक्ष न लें, जो स्वयं अपने साथ विश्वासघात करते हों, निःसंदेह अल्लाह विश्वासघाती, पापी से प्रेम नहीं करता[1]। 1. आयत का भावार्थ यह है कि न्यायधीश को ऐसी बात नहीं करनी चाहिये, जिस में किसी का पक्षपात हो।
يَسْتَخْفُونَ مِنَ ٱلنَّاسِ وَلَا يَسْتَخْفُونَ مِنَ ٱللَّهِ وَهُوَ مَعَهُمْ إِذْ يُبَيِّتُونَ مَا لَا يَرْضَىٰ مِنَ ٱلْقَوْلِ وَكَانَ ٱللَّهُ بِمَا يَعْمَلُونَ مُحِيطًا ﴾ 108 ﴿
यस्तख़्फू-न मिनन्नासि व ला यस्तख़्फू-न मिनल्लाहि व हु-व म-अहुम् इज़् युबय्यितू-न मा ला यरज़ा मिनल्क़ौलि, व कानल्लाहु बिमा यअ्मलू-न मुहीता
वे (अपने करतूत) लोगों सो छुपा सकते हैं,परन्तु अल्लाह से नहीं छुपा सकते और वह उनके साथ होता है, जब वे रात में उस बात का परामर्श करते हैं, जिससे वह प्रसन्न नहीं[1] होता तथा अल्लाह उसे घेरे हुए है, जो वे कर रहे हैं। 1. आयत का भावार्थ यह है कि मुसलमानों को अपना सहधर्मी अथवा अपनी जाति या परिवार का होने के कारण किसी अपराधी का पक्षपात नहीं करना चाहिये। क्योंकि संसार न जाने, परन्तु अल्लाह तो जानता है कि कौन अपराधी है, कौन नहीं।
هَٰٓأَنتُمْ هَٰٓؤُلَآءِ جَٰدَلْتُمْ عَنْهُمْ فِى ٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا فَمَن يُجَٰدِلُ ٱللَّهَ عَنْهُمْ يَوْمَ ٱلْقِيَٰمَةِ أَم مَّن يَكُونُ عَلَيْهِمْ وَكِيلًا ﴾ 109 ﴿
हा-अन्तुम् हा-उला-इ जादल्तुम अन्हुम् फिल्हयातिद्दुन्या, फ-मंय्युजादिलुल्ला-ह अन्हुम् यौमल-क़ियामति अम्-मंय्यकूनु अलैहिम् वकीला
सुनो! तुम ही वो हो कि सांसारिक जीवन में उनकी ओर से झगड़ लिए। तो परलय के दिन उनकी ओर से कौन अल्लाह से झगड़ेगा और कौन उनका अभिभाषक (प्रतिनिधि) होगा?
وَمَن يَعْمَلْ سُوٓءًا أَوْ يَظْلِمْ نَفْسَهُۥ ثُمَّ يَسْتَغْفِرِ ٱللَّهَ يَجِدِ ٱللَّهَ غَفُورًا رَّحِيمًا ﴾ 110 ﴿
व मंय्यअ्मल सूअन् औ यज़्लिम् नफ्सहू सुम्-म यस्तग़्फिरिल्ला-ह यजिदिल्ला-ह ग़फूरर्रहीमा
जो व्यक्ति कोई कुकर्म करेगा अथवा अपने ऊपर अत्याचार करेगा, फिर अल्लाह से क्षमा याचना करेगा, तो वह उसे अति क्षमी दयावान् पायेगा।
وَمَن يَكْسِبْ إِثْمًا فَإِنَّمَا يَكْسِبُهُۥ عَلَىٰ نَفْسِهِۦ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا ﴾ 111 ﴿
व मंय्यकसिब इस्मन् फ-इन्नम यकसिबुहू अला नफ्सिही, व कानल्लाहु अलीमन् हकीमा
और जो व्यक्ति कोई पाप करता है, तो अपने ऊपर करता[1] है तथा अल्लाह अति ज्ञानी तत्वज्ञ है। 1. भावार्थ यह है कि जो अपराध करता है, उस के अपराध का दुष्परिणाम उसी के ऊपर है। अतः तुम यह न सोचो कि अपराधी के अपने सहधर्मी अथवा संबंधी होने के कारण, उस का अपराध सिध्द हो गया, तो हम पर भी धब्बा लग जायेगा।
وَمَن يَكْسِبْ خَطِيٓـَٔةً أَوْ إِثْمًا ثُمَّ يَرْمِ بِهِۦ بَرِيٓـًٔا فَقَدِ ٱحْتَمَلَ بُهْتَٰنًا وَإِثْمًا مُّبِينًا ﴾ 112 ﴿
व मंय्यक्सिब ख़ती-अतन् औ इस्मन् सुम-म् यर्मि बिही बरीअन् फ-क़दिह़्त-म-ल बुह्तानंव्-व इस्मम्-मुबीना*
और जो व्यक्ति कोई चूक अथवा पाप स्वयं करे और किसी निर्दोष पर उसका आरोप लगा दे, तो उसने मिथ्या दोषारोपन तथा खुले पाप का[1] बोझ अपने ऊपर लाद लिया। 1. अर्थात स्वयं पाप कर के दूसरे पर आरोप लगाना दुहरा पाप है।
وَلَوْلَا فَضْلُ ٱللَّهِ عَلَيْكَ وَرَحْمَتُهُۥ لَهَمَّت طَّآئِفَةٌ مِّنْهُمْ أَن يُضِلُّوكَ وَمَا يُضِلُّونَ إِلَّآ أَنفُسَهُمْ وَمَا يَضُرُّونَكَ مِن شَىْءٍ وَأَنزَلَ ٱللَّهُ عَلَيْكَ ٱلْكِتَٰبَ وَٱلْحِكْمَةَ وَعَلَّمَكَ مَا لَمْ تَكُن تَعْلَمُ وَكَانَ فَضْلُ ٱللَّهِ عَلَيْكَ عَظِيمًا ﴾ 113 ﴿
व लौ ला फज़्लुल्लाहि अलै-क व रह्-मतुहू ल-हम्मत्ता-इ-फतुम् मिन्हुम् अंय्युज़िल्लू-क, व मा युज़िल्लू-न इल्ला’ अन्फु-सहुम् व मा यज़िर्रून-क मिन शैइन्, व अन्ज़लल्लाहु अलैकल्-किता-ब वल्हिक्म-त व अल्ल-म-क मालम् तकुन् तअ्लमु, व का-न फज़्लुल्लाहि अलै-क अज़ीमा •
और (हे नबी!) यदि आपपर अल्लाह की दया तथा कृपा न होती, तो उनके एक गिरोह ने संकल्प ले लिया था कि आपको कुपथ कर दें[1] और वे स्वयं को ही कुपथ कर रहे थे। तथा वे आपको कोई हानि नहीं पहुँचा सकते। क्योंकि अल्लाह ने आपपर पुस्तक (क़ुर्आन) तथा हिक्मत (सुन्नत) उतारी है और आपको उसका ज्ञान दे दिया है, जिसे आप नहीं जानते थे तथा ये आपपर अल्लाह की बड़ी दया है। 1. कि आप निर्देष को अपराधी समझ लें।
لَّا خَيْرَ فِى كَثِيرٍ مِّن نَّجْوَىٰهُمْ إِلَّا مَنْ أَمَرَ بِصَدَقَةٍ أَوْ مَعْرُوفٍ أَوْ إِصْلَٰحٍۭ بَيْنَ ٱلنَّاسِ وَمَن يَفْعَلْ ذَٰلِكَ ٱبْتِغَآءَ مَرْضَاتِ ٱللَّهِ فَسَوْفَ نُؤْتِيهِ أَجْرًا عَظِيمًا ﴾ 114 ﴿
ला ख़ै-र फी कसीरिम् मिन्नज्वाहुम् इल्ला मन् अ-म-र बि-स-द-क़तिन् औ मअ्-रूफिन् औ इस्लाहिम् बैनन्नासि, व मंय्यफ्अल ज़ालिकब् तिग़ा-अ मरज़ातिल्लाहि फ़सौ-फ़ नुअ्तीहि अज्रन् अज़ीमा
उनके अधिकांश सरगोशी में कोई भलाई नहीं होती, परन्तु जो दान, सदाचार या लोगों में सुधार कराने का आदेश दे और जो कोई ऐसे कर्म अल्लाह की प्रसन्नता के लिए करेगा, तो हम उसे बहुत भारी प्रतिफल प्रदान करेंगे।
وَمَن يُشَاقِقِ ٱلرَّسُولَ مِنۢ بَعْدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُ ٱلْهُدَىٰ وَيَتَّبِعْ غَيْرَ سَبِيلِ ٱلْمُؤْمِنِينَ نُوَلِّهِۦ مَا تَوَلَّىٰ وَنُصْلِهِۦ جَهَنَّمَ وَسَآءَتْ مَصِيرًا ﴾ 115 ﴿
व मंय्युशाक़िक़िर्रसू-ल मिम्-बअ्दि मा तबय्य-न लहुल्हुदा व यत्तबिअ् ग़ै-र सबीलिल् मुअ्मिनी-न नुवल्लिही मा तवल्ला व नुस्लिही जहन्न-म, व साअत् मसीरा *
तथा जो व्यक्ति अपने ऊपर मार्गदर्शन उजागर हो जाने के[1] पश्चात् रसूल का विरोध करे और ईमान वालों की राह के सिवा (दूसरी राह) का अनुसरण करे, तो हम उसे वहीं फेर[2] देंगे, जिधर फिरा है और उसे नरक में झोंक देंगे तथा वह बुरा निवास स्थान है। 1. ईमान वालों से अभिप्राय नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सह़ाबा (साथी) हैं। 2. विद्वानों ने लिखा है कि यह आयत भी उसी मुनाफ़िक़ से संबंधित है। क्योंकि जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस के विरुध्द दण्ड का निर्णय कर दिया तो वह भाग कर मक्का के मिश्रणवादियों से मिल गया। (तफ़्सीरे क़ुर्तुबी) फिर भी इस आयत का आदेश साधारण है।
إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَغْفِرُ أَن يُشْرَكَ بِهِۦ وَيَغْفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَن يَشَآءُ وَمَن يُشْرِكْ بِٱللَّهِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَٰلًۢا بَعِيدًا ﴾ 116 ﴿
इन्नल्ला-ह ल यग़्फिरू अंय्युश्र-क बिही व यग़्फिरू मा दू-न ज़ालि-क लि-मंय्यशा-उ, व मय्युश्रिक् बिल्लाहि फ़-क़द् ज़ल-ल ज़लालम् बईदा
निःसंदेह, अल्लाह इसे क्षमा[1] नहीं करेगा कि उसका साझी बनाया जाये और इसके सिवा जिसे चाहेगा, क्षमा कर देगा तथा जो अल्लाह का साझी बनाता है, वह (दरअसल) कुपथ में बहुत दूर चला गया। 1. अर्थात शिर्क (मिश्रणवाद) अक्षम्य पाप है।
إِن يَدْعُونَ مِن دُونِهِۦٓ إِلَّآ إِنَٰثًا وَإِن يَدْعُونَ إِلَّا شَيْطَٰنًا مَّرِيدًا ﴾ 117 ﴿
इंय्यद्अू-न मिन् दूनिही इल्ला इनासन् व इंय्यद्अू-न इल्ला शैतानम् मरीदा
वे (मिश्रणवादी), अल्लाह के सिवा देवियों ही को पुकारते हैं और धिक्कारे हुए शैतान को पुकारते हैं।
لَّعَنَهُ ٱللَّهُ وَقَالَ لَأَتَّخِذَنَّ مِنْ عِبَادِكَ نَصِيبًا مَّفْرُوضًا ﴾ 118 ﴿
ल-अ-नहुल्लाहु • व का-ल ल-अत्तखिज़न्-न मिन् अिबादि-क नसीबम् मफ्रूज़ा
जिसे अल्लाह ने धिक्कार दिया है और जिसने कहा था कि मैं तेरे भक्तों से एक निश्चित भाग लेकर रहूँगा।
وَلَأُضِلَّنَّهُمْ وَلَأُمَنِّيَنَّهُمْ وَلَءَامُرَنَّهُمْ فَلَيُبَتِّكُنَّ ءَاذَانَ ٱلْأَنْعَٰمِ وَلَءَامُرَنَّهُمْ فَلَيُغَيِّرُنَّ خَلْقَ ٱللَّهِ وَمَن يَتَّخِذِ ٱلشَّيْطَٰنَ وَلِيًّا مِّن دُونِ ٱللَّهِ فَقَدْ خَسِرَ خُسْرَانًا مُّبِينًا ﴾ 119 ﴿
व ल-उज़िल्लन्नहुम् व ल-उमन्नियन्नहुम् व ल-आमुरन्नहुम फ-ल युबत्ति कुन-न आज़ानल-अन् आमि व ला-आमुरन्नहुम् फ़-लयुग़य्यिरून्-न ख़ल्कल्लाहि, व मंय्यत्तखिज़िश्शैता-न वलिय्यम् मिन् दूनिल्लाहि फ़-क़द् ख़सि-र ख़ुसरानम् मुबीना
और उन्हें अवश्य बहकाऊँगा, कामनायें दिलाऊँगा और आदेश दूँगा कि वे पशुओं के कान चीर दें तथा उन्हें आदेश दूँगा, तो वे अवश्य अल्लाह की संरचना में परिवर्तन[1] कर देंगे तथा जो शैतान को अल्लाह के सिवा सहायक बनायेगा, वह खुली क्षति में पड़ जायेगा। 1. इस के बहुत से अर्थ हो सकते हैं। जैसे गोदना, गुदवाना, स्त्री का पुरुष का आचरण और स्वभाव बनाना, इसी प्रकार पुरुष का स्त्री का आचरण तथा रूप धारण करना आदि।
يَعِدُهُمْ وَيُمَنِّيهِمْ وَمَا يَعِدُهُمُ ٱلشَّيْطَٰنُ إِلَّا غُرُورًا ﴾ 120 ﴿
यअिदुहुम् व युमन्नीहिम्, व मा यअिदुहुमुश्शैतानु इल्ला ग़ुरूरा
वह उन्हें वचन देता तथा कामनाओं में उलझाता है और उन्हें जो वचन देता है, वह धोखे के सिवा कुछ नहीं है।
أُو۟لَٰٓئِكَ مَأْوَىٰهُمْ جَهَنَّمُ وَلَا يَجِدُونَ عَنْهَا مَحِيصًا ﴾ 121 ﴿
उलाइ-क मअ्वाहुम् जहन्नमु, व ला यजिदू न अन्हा महीसा
उन्हीं का निवास स्थान नरक है और वे उससे भागने की कोई राह नहीं पायेंगे।
وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّٰلِحَٰتِ سَنُدْخِلُهُمْ جَنَّٰتٍ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدًا وَعْدَ ٱللَّهِ حَقًّا وَمَنْ أَصْدَقُ مِنَ ٱللَّهِ قِيلًا ﴾ 122 ﴿
वल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्सालिहाति सनुद्ख़िलुहुम् जन्नातिन् तज्री मिन् तह़्तिहल-अन्हारू ख़ालिदी-न फ़ीहा अ-बदन्, वअ्दल्लाहि हक़्क़न, व मन् अस्दक़ु मिनल्लाहि क़ीला
तथा जो लोग ईमान लाये और सत्कर्म किये, हम उन्हें ऐसे स्वर्गों में प्रवेश देंगे, जिनमें नहरें प्रवाहित होंगी। वे उनमें सदावासी होंगे। ये अल्लाह का सत्य वचन है और अल्लाह से अधिक सत्य कथन किसका हो सकता है?
لَّيْسَ بِأَمَانِيِّكُمْ وَلَآ أَمَانِىِّ أَهْلِ ٱلْكِتَٰبِ مَن يَعْمَلْ سُوٓءًا يُجْزَ بِهِۦ وَلَا يَجِدْ لَهُۥ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَلِيًّا وَلَا نَصِيرًا ﴾ 123 ﴿
लै-स बि-अमानिय्यिकुम् व ला अमानिय्यि अह्-लिल्-किताबि, मंय्यअ्मल् सूअंय्युज्-ज़ बिही, व ला यजिद् लहू मिन् दूनिल्लाहि वलिय्यंव्-व ला नसीरा
(ये प्रतिफल) तुम्हारी कामनाओं तथा अहले किताब की कामनाओं पर निर्भर नहीं। जो कोई भी दुष्कर्म करेगा, वह उसका कुफल पायेगा तथा अल्लाह के सिवा अपना कोई रक्षक और सहायक नहीं पायेगा।
وَمَن يَعْمَلْ مِنَ ٱلصَّٰلِحَٰتِ مِن ذَكَرٍ أَوْ أُنثَىٰ وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَأُو۟لَٰٓئِكَ يَدْخُلُونَ ٱلْجَنَّةَ وَلَا يُظْلَمُونَ نَقِيرًا ﴾ 124 ﴿
व मंय्यअ्मल् मिनस्सालिहाति मिन् ज़-करिन् औ उन्सा व हु-व मुअ्मिनुन् फ़-उलाइ-क यद्ख़्रुलूनल्-जन्न-त व ला युज़्लमू-न नक़ीरा
तथा जो सत्कर्म करेगा, वह नर हो अथवा नारी, फिर ईमान भी[1] रखता होगा, तो वही लोग स्वर्ग में प्रवेश पायेंगे और तनिक भी अत्याचार नहीं किये जायेंगे। 1. अर्थात सत्कर्म का प्रतिफल सत्य आस्था और ईमान पर आधारित है कि अल्लाह तथा उस के नबियों पर ईमान लाया जाये। तथा ह़दीसों से विद्वित होता है कि एक बार मुसलमानों और अहले किताब के बीच विवाद हो गया। यहूदियों ने कहा कि हमारा धर्म सब से अच्छा है। मुक्ति केवल हमारे ही धर्म में है। मुसलमानों ने कहा कि हमारा धर्म सब से अच्छा और अन्तिम धर्म है। उसी पर यह आयत उतरी। (इब्ने कसीर)
وَمَنْ أَحْسَنُ دِينًا مِّمَّنْ أَسْلَمَ وَجْهَهُۥ لِلَّهِ وَهُوَ مُحْسِنٌ وَٱتَّبَعَ مِلَّةَ إِبْرَٰهِيمَ حَنِيفًا وَٱتَّخَذَ ٱللَّهُ إِبْرَٰهِيمَ خَلِيلًا ﴾ 125 ﴿
व मन् अह़्सनु दीनम् मिम्-मन् अस्ल-म वज्हहू लिल्लाहि व हु-व मुह़्सिनुंव्-वत्त-ब-अ मिल्ल-त इब्राही-म हनीफन्, वत्त ख़ज़ल्लाहु इब्राही-म ख़लीला
तथा उस व्यक्ति से अच्छा किसका धर्म हो सकता है, जिसने स्वयं को अल्लाह के लिए झुका दिया, वह एकेश्वरवादी भी हो और एकेश्वरवादी इब्राहीम के धर्म का अनुसरण कर रहा हो? और अल्लाह ने इब्राहीम को अपना विशुध्द मित्र बना लिया।
وَلِلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ وَكَانَ ٱللَّهُ بِكُلِّ شَىْءٍ مُّحِيطًا ﴾ 126 ﴿
व लिल्लाहि मा फिस्समावाति व मा फिल्अर्ज़ि, व कानल्लाहु बिकुल्लि शैइम् मुहीता *
तथा अल्लाह ही का है, जो कुछ आकाशों तथा धरती में है और अल्लाह प्रत्येक चीज़ को अपने नियंत्रण में लिए हुए है।
وَيَسْتَفْتُونَكَ فِى ٱلنِّسَآءِ قُلِ ٱللَّهُ يُفْتِيكُمْ فِيهِنَّ وَمَا يُتْلَىٰ عَلَيْكُمْ فِى ٱلْكِتَٰبِ فِى يَتَٰمَى ٱلنِّسَآءِ ٱلَّٰتِى لَا تُؤْتُونَهُنَّ مَا كُتِبَ لَهُنَّ وَتَرْغَبُونَ أَن تَنكِحُوهُنَّ وَٱلْمُسْتَضْعَفِينَ مِنَ ٱلْوِلْدَٰنِ وَأَن تَقُومُوا۟ لِلْيَتَٰمَىٰ بِٱلْقِسْطِ وَمَا تَفْعَلُوا۟ مِنْ خَيْرٍ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِهِۦ عَلِيمًا ﴾ 127 ﴿
व यस्तफ्तू न-क फिन्निसा-इ, कुलिल्लाहु युफ्तीकुम् फ़ीहिन्-न व मा युत्ला अलैकुम् फ़िल-किताबि फ़ी यतामन्निसा-इल्लाती ला तुअ्तूनहुन्न मा कुति-ब लहुन्- न व तर्ग़बू-न अन् तन्किहूहुन्-न वल्-मुस्तज़्अ़फी-न मिनल्-विल्दानि व अन् तक़ूमू लिल्यतामा बिल्क़िस्ति, व मा तफ्अलू मिन् ख़ैरिन् फ़-इन्नल्ला-ह का-न बिही अलीमा
(हे नबी!) वे स्त्रियों के बारे में आपसे धर्मादेश पूछ रहे हैं। आप कह दें कि अल्लाह उनके बारे में तुम्हें आदेश देता है और वे आदेश भी हैं, जो इससे पूर्व पुस्तक (क़ुर्आन) में तुम्हें, उन अनाथ स्त्रियों के बारे में सुनाये गये हैं, जिनके निर्धारित अधिकार तुम नहीं देते और उनसे विवाह करने की रुची रखते हो तथा उन बच्चों के बारे में भी, जो निर्बल हैं तथा (ये भी आदेश देता है कि) अनाथों के लिए न्याय पर स्थिर रहो[1] तथा तुम जो भी भलाई करते हो, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है। 1. इस्लाम से पहले यदि अनाथ स्त्री सुन्दर होती तो उस का संरक्षक, यदि उस का विवाह उस से हो सकता हो, तो उस से विवाह कर लेता परन्तु उसे महर (विवाह उपहार) नहीं देता। और यदि सुन्दर नहीं हो तो दूसरे से उसे विवाह नहीं करने देता था। ताकि उस का धन उसी के पास रह जाये। इसी प्रकार अनाथ बच्चों के साथ भी अत्याचार और अन्याय किया जाता था, जिन से रोकने के लिये यह आयत उतरी। (इब्ने कसीर)
وَإِنِ ٱمْرَأَةٌ خَافَتْ مِنۢ بَعْلِهَا نُشُوزًا أَوْ إِعْرَاضًا فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِمَآ أَن يُصْلِحَا بَيْنَهُمَا صُلْحًا وَٱلصُّلْحُ خَيْرٌ وَأُحْضِرَتِ ٱلْأَنفُسُ ٱلشُّحَّ وَإِن تُحْسِنُوا۟ وَتَتَّقُوا۟ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًا ﴾ 128 ﴿
व इनिम्-र अतुन् खाफत् मिम् बअ्लिहा नुशूज़न औ इअ्-राज़न फला जुना-ह अलैहिमा अंय्युस्लिहा बैनाहुमा सुल्हन, वस्सुल्हु खैरून्, व उहज़ि-रतिल् अन्फुसुश्शुह्-ह, व इन् तुह़्सिनू व तत्तक़ू फ़-इन्नल्ला-ह का-न बिमा तअ्मलू-न ख़बीरा
और यदि किसी स्त्री को अपने पति से दुर्व्यवहार अथवा विमुख होने की शंका हो, तो उन दोनों पर कोई दोष नहीं कि आपस में कोई संधि कर लें और संधि कर लेना ही अच्छा[1] है। लोभ तो सभी में होता है। यदि तुम एक-दूसरे के साथ उपकार करो और (अल्लाह से) डरते रहो, तो निःसंदेह तुम जो कुछ कर रहे हो, अल्लाह उससे सूचित है। 1. अर्थ यह है कि स्त्री, पुरुष की इच्छा और रूचि पर ध्यान दे। तो यह संधि की रीति अलगाव से अच्छी है।
وَلَن تَسْتَطِيعُوٓا۟ أَن تَعْدِلُوا۟ بَيْنَ ٱلنِّسَآءِ وَلَوْ حَرَصْتُمْ فَلَا تَمِيلُوا۟ كُلَّ ٱلْمَيْلِ فَتَذَرُوهَا كَٱلْمُعَلَّقَةِ وَإِن تُصْلِحُوا۟ وَتَتَّقُوا۟ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ غَفُورًا رَّحِيمًا ﴾ 129 ﴿
व लन् तस्ततीअू अन् तअ्दिलू बैनन्निसा-इ व लौ हरस्तुम् फला तमीलू कुल्लल्-मैलि फ़-त ज़रूहा कल्- मुअल्ल-क़ति, व इन् तुस्लिहू व तत्तक़ू फ़-इन्नल्ला-ह का-न ग़फूरर्रहीमा
और यदि तुम अपनी पत्नियों के बीच न्याय करना चाहो, तो भी ऐसा कदापि नहीं कर[1] सकोगे। अतः एक ही की ओर पूर्णतः झुक[2] न जाओ और (शेष को) बीच में लटकी हुई न छोड़ दो और यदि (अपने व्यवहार में) सुधार[3] रखो और (अल्लाह से) डरते रहो, तो निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील दयावन् है। 1. क्यों कि यह स्वभाविक है कि मन का आकर्षण किसी एक की ओर होगा। 2. अर्थात जिस में उस के पति की रूचि न हो, और न व्यवहारिक रूप से बिना पति के हो। 3. अर्थात सब के साथ व्यवहार तथा सहवास संबंध में बराबरी करो।
وَإِن يَتَفَرَّقَا يُغْنِ ٱللَّهُ كُلًّا مِّن سَعَتِهِۦ وَكَانَ ٱللَّهُ وَٰسِعًا حَكِيمًا ﴾ 130 ﴿
व इंय्य-तफर्रक़ा युग़्निल्लाहु कुल्लम्-मिन् स-अतिही, व कानल्लाहु वासिअ़न् हकीमा
और यदि दोनों अलग हो जायें, तो अल्लाह प्रत्येक को अपनी दया से (दूसरे से) निश्चिंत[1] कर देगा और अल्लाह बड़ा उदार तत्वज्ञ है। 1. अर्थात यदि निभाव न हो सके तो विवाह बंधन में रहना आवश्यक नहीं। दोनों अलग हो जायें, अल्लाह दोनों के लिये पति तथा पत्नी की व्यवस्था बना देगा।
وَلِلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ وَلَقَدْ وَصَّيْنَا ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْكِتَٰبَ مِن قَبْلِكُمْ وَإِيَّاكُمْ أَنِ ٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَإِن تَكْفُرُوا۟ فَإِنَّ لِلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ وَكَانَ ٱللَّهُ غَنِيًّا حَمِيدًا ﴾ 131 ﴿
व लिल्लाहि मा फिस्समावाति व मा फिल्अर्ज़ि, व ल-क़द् वस्सैनल्लज़ी-न ऊतुल-किता-ब मिन् क़ब्लिकुम् व इय्याकुम् अनित्तक़ुल्ला-ह, व इन् तक्फुरु फ़-इन्-न लिल्लाहि मा फ़िस्समावाति व मा फ़िल्अर्ज़ि, व कानल्लाहु ग़निय्यन् हमीदा
तथा अल्लाह ही का है, जो आकाशों और धरती में है और हमने तुमसे पूर्व अहले किताब को तथा (खुद) तुम्हें आदेश दिया है कि अल्लाह से डरते रहो। यदि तुम कुफ्र (अवज्ञा) करोगे, तो निःसंदेह जो कुछ आकाशों तथा धरती में है, वह अल्लाह ही का है तथा अल्लाह निस्पृह[1] प्रशंसित है। 1. अर्थात उस की अवैज्ञा से तुम्हारा ही बिगड़ेगा।
وَلِلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلًا ﴾ 132 ﴿
व लिल्लाहि मा फिस्समावाति व मा फ़िल्अर्ज़ि, व कफ़ा बिल्लाहि वकीला
तथा अल्लाह ही का है, जो कुछ आकाशों तथा धरती में है और अल्लाह काम बनाने के लिए बस है।
إِن يَشَأْ يُذْهِبْكُمْ أَيُّهَا ٱلنَّاسُ وَيَأْتِ بِـَٔاخَرِينَ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ ذَٰلِكَ قَدِيرًا ﴾ 133 ﴿
इंय्यशअ् युज़्हिब्कुम् अय्युहन्नासु व यअ्ति बिआ-ख़री-न, व कानल्लाहु अला ज़ालि-क क़दीरा
और वह चाहे तो, हे लोगो! तुम्हें ले जाये[1] और तुम्हारे स्थान पर दूसरों को ला दे तथा अल्लाह ऐसा कर सकता है। 1. अर्थात तुम्हारी अवैज्ञा के कारण तुम्हें ध्वस्त कर दे और दूसरे आज्ञाकारियों को पैदा कर दे।
مَّن كَانَ يُرِيدُ ثَوَابَ ٱلدُّنْيَا فَعِندَ ٱللَّهِ ثَوَابُ ٱلدُّنْيَا وَٱلْءَاخِرَةِ وَكَانَ ٱللَّهُ سَمِيعًۢا بَصِيرًا ﴾ 134 ﴿
मन् का-न युरीदु सवाबद्दुन्या फ-अिन्दल्लाहि सवाबुद्दुन्या वल्आख़ि-रति, व कानल्लाहु समीअम्-बसीरा *
जो सांसारिक प्रतिकार (बदला) चाहता हो, तो अल्लाह के पास संसार तथा परलोक दोनों का प्रतिकार (बदला) है तथा अल्लाह सबकी बात सुनता और सबके कर्म देख रहा है।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ كُونُوا۟ قَوَّٰمِينَ بِٱلْقِسْطِ شُهَدَآءَ لِلَّهِ وَلَوْ عَلَىٰٓ أَنفُسِكُمْ أَوِ ٱلْوَٰلِدَيْنِ وَٱلْأَقْرَبِينَ إِن يَكُنْ غَنِيًّا أَوْ فَقِيرًا فَٱللَّهُ أَوْلَىٰ بِهِمَا فَلَا تَتَّبِعُوا۟ ٱلْهَوَىٰٓ أَن تَعْدِلُوا۟ وَإِن تَلْوُۥٓا۟ أَوْ تُعْرِضُوا۟ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًا ﴾ 135 ﴿
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू कूनू कव्वामी-न बिल्क़िस्ति शु-हदा-अ लिल्लाहि व लौ अला अन्फुसिकुम् अविल-वालिदैनि वल् अक़्रबी-न, इंय्यकुन् ग़निय्यन् औ फ़कीरन् फल्लाहु औला बिहिमा, फला तत्तबिअुल्-हवा अन् तअ्दिलू, व इन् तल्वू औ तुअ्-रिज़ू फ-इन्नल्ला-ह का-न बिमा तअ्मलू-न ख़बीरा
हे ईमान वालो! न्याय के साथ खड़े रहकर अल्लाह के लिए साक्षी (गवाह) बन जाओ। यद्यपि साक्ष्य (गवाही) तुम्हारे अपने अथवा माता पिता और समीपवर्तियों के विरुध्द हो, यदि कोई धनी अथवा निर्धन हो, तो अल्लाह तुमसे अधिक उन दोनों का हितैषी है। अतः अपनी मनोकांक्षा के लिए न्याय से न फिरो। यदि तुम बात घुमा फिरा कर करोगे अथवा साक्ष्य देने से कतराओगे, तो निःसंदेह अल्लाह उससे सूचित है, जो तुम करते हो।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ ءَامِنُوا۟ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَٱلْكِتَٰبِ ٱلَّذِى نَزَّلَ عَلَىٰ رَسُولِهِۦ وَٱلْكِتَٰبِ ٱلَّذِىٓ أَنزَلَ مِن قَبْلُ وَمَن يَكْفُرْ بِٱللَّهِ وَمَلَٰٓئِكَتِهِۦ وَكُتُبِهِۦ وَرُسُلِهِۦ وَٱلْيَوْمِ ٱلْءَاخِرِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَٰلًۢا بَعِيدًا ﴾ 136 ﴿
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू आमिनू बिल्लाहि व रसूलिही वल्-किताबिल्लज़ी नज़्ज़-ल अला रसूलिही वल्-किताबिल् लज़ी अन्ज़-ल मिन क़ब्लु, व मंय्यक्फुर बिल्लाहि व मलाइ-कतिही व कुतुबिही व रूसुलिही वल्यौमिल-आख़िरी फ़-क़द् ज़ल-ल ज़लालम्-बईदा
हे ईमान वालो! अल्लाह, उसके रसूल और उस पुस्तक (क़ुर्आन) पर, जो उसने अपने रसूल पर उतारी है तथा उन पुस्तकों पर, जो इससे पहले उतारी हैं, ईमान लाओ। जो अल्लाह, उसके फ़रिश्तों, उसकी पुस्तकों और अन्त दिवस (प्रलय) को अस्वीकार करेगा, वह कुपथ में बहुत दूर जा पड़ेगा।
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ثُمَّ كَفَرُوا۟ ثُمَّ ءَامَنُوا۟ ثُمَّ كَفَرُوا۟ ثُمَّ ٱزْدَادُوا۟ كُفْرًا لَّمْ يَكُنِ ٱللَّهُ لِيَغْفِرَ لَهُمْ وَلَا لِيَهْدِيَهُمْ سَبِيلًۢا ﴾ 137 ﴿
इन्नल्लज़ी-न आमनू सुम् म क-फरू सुम्-म आमनू सुम्-म क-फरू सुम्मज़्-दादू कुफ्रल्लम् यकुनिल्लाहु लि-यग़्फि-र लहुम् व ला लि-यह्दि-यहुम् सबीला
निःसंदेह जो ईमान लाये, फिर काफ़िर हो गये, फिर ईमान लाये, फिर काफ़िर हो गये, फिर कुफ़्र में बढ़ते ही चले गये, तो अल्लाह उन्हें कदापि क्षमा नहीं करेगा और न उन्हें सीधी डगर दिखायेगा।
بَشِّرِ ٱلْمُنَٰفِقِينَ بِأَنَّ لَهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا ﴾ 138 ﴿
बश्शिरिल्-मुनाफिक़ी-न बिअन्-न लहुम् अज़ाबन् अलीमा
(हे नबी!) आप मुनाफ़िक़ों (द्विधावादियों) को शुभ सूचना सुना दें कि उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।
ٱلَّذِينَ يَتَّخِذُونَ ٱلْكَٰفِرِينَ أَوْلِيَآءَ مِن دُونِ ٱلْمُؤْمِنِينَ أَيَبْتَغُونَ عِندَهُمُ ٱلْعِزَّةَ فَإِنَّ ٱلْعِزَّةَ لِلَّهِ جَمِيعًا ﴾ 139 ﴿
अल्लज़ी-न यत्तख़िज़ूनल्-काफ़िरी-न औलिया-अ मिन् दूनिल्-मुअ्मिनी-न, अ-यब्तग़ू-न अिन्दहुमुल्-अिज़्ज़-त फ-इन्नल-अिज़्ज़-त लिल्लाहि जमीआ़
जो ईमान वालों को छोड़कर, काफ़िरों को अपना सहायक मित्र बनाते हैं, क्या वे उनके पास मान सम्मान चाहते हैं? तो निःसंदेह सब मान सम्मान अल्लाह ही के लिए[1] है। 1. अर्थात अल्लाह के अधिकार में है, काफ़िरों के नहीं।
وَقَدْ نَزَّلَ عَلَيْكُمْ فِى ٱلْكِتَٰبِ أَنْ إِذَا سَمِعْتُمْ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ يُكْفَرُ بِهَا وَيُسْتَهْزَأُ بِهَا فَلَا تَقْعُدُوا۟ مَعَهُمْ حَتَّىٰ يَخُوضُوا۟ فِى حَدِيثٍ غَيْرِهِۦٓ إِنَّكُمْ إِذًا مِّثْلُهُمْ إِنَّ ٱللَّهَ جَامِعُ ٱلْمُنَٰفِقِينَ وَٱلْكَٰفِرِينَ فِى جَهَنَّمَ جَمِيعًا ﴾ 140 ﴿
व क़द् नज़्ज़-ल अ़लैकुम् फ़िल्किताबि अन् इज़ा समिअ्तुम् आयातिल्लाहि युक्फरू बिहा व युस्तह्ज़उ बिहा फला तक़्अुदू म-अ़हुम् हत्ता यख़ूज़ू फ़ी हदीसिन् ग़ैरिही, इन्नकुम् इज़म्-मिस्लुहुम, इन्नल्ला-ह जामिअुल-मुनाफ़िक़ी-न वल्काफिरी-न फ़ी जहन्नम जमीआ
और उस (अल्लाह) ने तुम्हारे लिए अपनी पुस्तक (क़ुर्आन) में ये आदेश उतार[1] दिया है कि जब तुम सुनो कि अल्लाह की आयतों को अस्वीकार किया जा रहा है तथा उनका उपहास किया जा रहा है, तो उनके साथ न बैठो, यहाँ तक कि वे दूसरी बात में लग जायें। निःसंदेह, तुम उस समय उन्हीं के समान हो जाओगे। निश्चय अल्लाह मुनाफ़िक़ों (द्विधावादियों) तथा काफ़िरों, सबको नरक में एकत्र करने वाला है। 1. अर्थात सूरह अन्आम आयत संख्या 68 में।
ٱلَّذِينَ يَتَرَبَّصُونَ بِكُمْ فَإِن كَانَ لَكُمْ فَتْحٌ مِّنَ ٱللَّهِ قَالُوٓا۟ أَلَمْ نَكُن مَّعَكُمْ وَإِن كَانَ لِلْكَٰفِرِينَ نَصِيبٌ قَالُوٓا۟ أَلَمْ نَسْتَحْوِذْ عَلَيْكُمْ وَنَمْنَعْكُم مِّنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ فَٱللَّهُ يَحْكُمُ بَيْنَكُمْ يَوْمَ ٱلْقِيَٰمَةِ وَلَن يَجْعَلَ ٱللَّهُ لِلْكَٰفِرِينَ عَلَى ٱلْمُؤْمِنِينَ سَبِيلًا ﴾ 141 ﴿
अल्लज़ी-न य-तरब्बसू-न बिकुम्, फ़-इन् का-न लकुम फ़त्हुम् मिनल्लाहि क़ालू अलम् नकुम् म-अकुम्, व इन् का-न लिल्काफ़िरी-न नसीबुन्, कालू अलम् नस्तह़्विज़् अलैकुम् व नम् नअ्कुम् मिनल-मुअ्मिनी-न, फ़ल्लाहु यह़्कुमु बैनकुम् यौमल-क़ियामति, व लंय्यज्-अलल्लाहु लिल्काफ़िरी-न अलल्-मुअ्मिनी न सबीला*
जो तुम्हारी प्रतीक्षा में रहा करते हैं; यदि तुम्हें अल्लाह की सहायता से विजय प्राप्त हो, तो कहते हैं, क्या हम तुम्हारे साथ न थे? और यदि उन (काफ़िरों) का पल्ला भारी रहे, तो कहते हैं कि क्या हम तुमपर छा नहीं गये थे और तुम्हें ईमान वालों से बचा (नहीं) रहे थे? तो अल्लाह ही प्रलय के दिन तुम्हारे बीच निर्णय करेगा और अल्लाह काफ़िरों के लिए ईमान वालों पर कदापि कोई राह नहीं बनायेगा[1]। 1. अर्थात द्विधावादी काफ़िरों की कितनी ही सहायता करें, उन की ईमान वालों पर स्थायी विजय नहीं होगी। यहाँ से द्विधावादियों के आचरण और स्वभाव की चर्चा की जा रही है।
إِنَّ ٱلْمُنَٰفِقِينَ يُخَٰدِعُونَ ٱللَّهَ وَهُوَ خَٰدِعُهُمْ وَإِذَا قَامُوٓا۟ إِلَى ٱلصَّلَوٰةِ قَامُوا۟ كُسَالَىٰ يُرَآءُونَ ٱلنَّاسَ وَلَا يَذْكُرُونَ ٱللَّهَ إِلَّا قَلِيلًا ﴾ 142 ﴿
इन्नल् -मुनाफ़िक़ी-न युख़ादिअूनल्ला-ह व हु-व ख़ादिअुहुम्, व इज़ा क़ामू इलस्-सलाति क़ामू कुसाला, युराऊनन्ना-स व ला यज़्कुरूनल्ला-ह इल्ला क़लीला
वास्तव में, मुनाफ़िक (द्विधावादी) अल्लाह को धोखा दे रहे हैं, जबकी, वही उन्हें धोखे में डाल रहा[1] है और जब वे नमाज़ के लिए खड़े होते हैं, तो आलसी होकर खड़े होते हैं, वे लोगों को दिखाते हैं और अल्लाह का स्मरण थोड़ा ही करते हैं। 1. अर्थात उन्हें अवसर दे रहा है, जिसे वह अपनी सफलता समझते हैं। आयत 139 से यहाँ तक मुनाफ़िक़ों के कर्म और आचरण से संबंधित जो बातें बताई गई हैं, वह चार हैः 1. वेह मुसलमानों की सफलता पर विश्वास नहीं रखते। 2. मुसलमानों को सफलता मिले तो उन के साथ हो जाते हैं, और काफ़िरों को मिले तो उन के साथ। 3. नमाज़ मन से नहीं, बल्कि केवल दिखाने के लिये पढ़ते हैं। 4. वह ईमान और कुफ़्र के बीच द्विधा में रहते हैं।
مُّذَبْذَبِينَ بَيْنَ ذَٰلِكَ لَآ إِلَىٰ هَٰٓؤُلَآءِ وَلَآ إِلَىٰ هَٰٓؤُلَآءِ وَمَن يُضْلِلِ ٱللَّهُ فَلَن تَجِدَ لَهُۥ سَبِيلًا ﴾ 143 ﴿
मुज़ब्ज़बी-न बै-न ज़ालि-क, ला इला-हा-उला-इ व ला इला हा-उला-इ, व मंय्युज़्लिलिल्लाहु फलन् तजि-द लहू सबीला
वह इसके बीच द्विधा में पड़े हुए हैं, न इधर न उधर। दरअसल, जिसे अल्लाह कुपथ कर दे, आप उसके लिए कोई राह नहीं पा सकेंगे।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَتَّخِذُوا۟ ٱلْكَٰفِرِينَ أَوْلِيَآءَ مِن دُونِ ٱلْمُؤْمِنِينَ أَتُرِيدُونَ أَن تَجْعَلُوا۟ لِلَّهِ عَلَيْكُمْ سُلْطَٰنًا مُّبِينًا ﴾ 144 ﴿
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तत्तख़िज़ुल-काफ़िरी-न औलिया-अ मिन् दूनिल मुअ्मिनी-न अतुरीदू-न अन् तज्अलू लिल्लाहि अलैकुम् सुल्तानम् मुबीना
हे ईमान वालो! ईमान वालों को छोड़कर काफ़िरों को सहायक मित्र न बनाओ। क्या तुम अपने विरुध्द अल्लाह के लिए खुला तर्क बनाना चाहते हो?
إِنَّ ٱلْمُنَٰفِقِينَ فِى ٱلدَّرْكِ ٱلْأَسْفَلِ مِنَ ٱلنَّارِ وَلَن تَجِدَ لَهُمْ نَصِيرًا ﴾ 145 ﴿
इन्नल् मुनाफ़िक़ी-न फ़िद्दरकिल्-अस्फ़लि मिनन्नारि, व लन् तजि-द लहुम् नसीरा
निश्चय मुनाफ़िक़ (द्विधावादी) नरक की सबसे नीची श्रेणी में होंगे और आप उनका कोई सहायक नहीं पायेंगे।
إِلَّا ٱلَّذِينَ تَابُوا۟ وَأَصْلَحُوا۟ وَٱعْتَصَمُوا۟ بِٱللَّهِ وَأَخْلَصُوا۟ دِينَهُمْ لِلَّهِ فَأُو۟لَٰٓئِكَ مَعَ ٱلْمُؤْمِنِينَ وَسَوْفَ يُؤْتِ ٱللَّهُ ٱلْمُؤْمِنِينَ أَجْرًا عَظِيمًا ﴾ 146 ﴿
इल्लल्लज़ी-न ताबू व अस्लहू वअ्त-समू बिल्लाहि व अख़्लसू दीनहुम् लिल्लाहि फ़-उलाइ-क मअल्- मुअ्मिनी-न, व सौ-फ युअ्तिल्लाहुल मुअ्मिनी-न अज्रन् अज़ीमा
परन्तु जिन्होंने क्षमा याचना कर ली, अपना सुधार कर लिया, अल्लाह को सुदृढ़ पकड़ लिया और अपने धर्म को विशुध्द कर लिया, तो वे लोग ईमान वालों के साथ होंगे और अल्लाह ईमान वालों को बहुत बड़ा प्रतिफल प्रदान करेगा।
مَّا يَفْعَلُ ٱللَّهُ بِعَذَابِكُمْ إِن شَكَرْتُمْ وَءَامَنتُمْ وَكَانَ ٱللَّهُ شَاكِرًا عَلِيمًا ﴾ 147 ﴿
मा यफ्अलुल्लाहु बि-अज़ाबिकुम् इन् शकरतुम् व आमन्तुम्, व कानल्लाहु शाकिरन् अलीमा
अल्लाह को क्या पड़ी है कि तुम्हें यातना दे, यदि तुम कृतज्ञ रहो तथा ईमान रखो और अल्लाह[1] बड़ा गुणग्राही अति ज्ञानी है। 1. इस आयत में यह संकेत है कि अल्लाह, कुफल और सुफल मानव कर्म के परिणाम स्वरूप देता है। जो उस के निर्धारित किये हुये नियम का परिणाम होता है। जिस प्रकार संसार की प्रत्येक चीज़ का एक प्रभाव होता है, ऐसे ही मानव के प्रत्येक कर्म का भी एक प्रभाव होता है।
لَّا يُحِبُّ ٱللَّهُ ٱلْجَهْرَ بِٱلسُّوٓءِ مِنَ ٱلْقَوْلِ إِلَّا مَن ظُلِمَ وَكَانَ ٱللَّهُ سَمِيعًا عَلِيمًا ﴾ 148 ﴿
ला युहिब्बुल्लाहुल-जह्-र बिस्सू-इ मिनल्-कौलि इल्ला मन् ज़ुलि-म, व कानल्लाहु समीअन् अलीमा
अल्लाह को अपशब्द (बुरी बात) की चर्चा नहीं भाती, परन्तु जिसपर अत्याचार किया गया[1] हो और अल्लाह सब सुनता और जानता है। 1. आयत में कहा गया है कि किसी व्यक्ति में कोई बुराई हो तो उस की चर्चा न करते फिरो। परन्तु उत्पीड़ित व्यक्ति अत्याचारी के अत्याचार की चर्चा कर सकता है।
إِن تُبْدُوا۟ خَيْرًا أَوْ تُخْفُوهُ أَوْ تَعْفُوا۟ عَن سُوٓءٍ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَفُوًّا قَدِيرًا ﴾ 149 ﴿
इन् तुब्बू ख़ैरन् औ तुख़्फूहु औ तअ्फू अन् सूइन् फ़-इन्नल्ला-ह का-न अ़फुव्वन् कदीरा
यदि तुमकोई भली बात खुल कर करो, उसे छुपाकर करो या किसी बुराई को क्षमा कर दो, (याद रखो कि) निःसंदेह अललाह अति क्षमी, सर्व शक्तिशाली है।
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَكْفُرُونَ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ وَيُرِيدُونَ أَن يُفَرِّقُوا۟ بَيْنَ ٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ وَيَقُولُونَ نُؤْمِنُ بِبَعْضٍ وَنَكْفُرُ بِبَعْضٍ وَيُرِيدُونَ أَن يَتَّخِذُوا۟ بَيْنَ ذَٰلِكَ سَبِيلًا ﴾ 150 ﴿
इन्नल्लज़ी-न यक्फुरू-न बिल्लाहि व रूसुलिही व युरीदू-न अंय्युफ़र्रिकू बैनल्लाहि व रूसुलिही व यक़ूलू -न नुअ्मिनु बि-बअ्जिंव-व नक्फुरु बि-बअ्जिंव व युरीदू-न अंय्यत्तख़िज़ू बै-न ज़ालि-क सबीला
जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों के साथ (अविश्वास) कुफ़्र करते हैं और चाहते हैं कि अल्लाह तथा उसके रसूलों के बीच अन्तर करें तथा कहते हैं कि हम कुछ पर ईमान रखते हैं और कुछ के साथ कुफ़्र करते हैं और इसके बीच राह[1] अपनाना चाहते हैं। 1. नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ह़दीस है कि सब नबी भाई हैं, उन के बाप एक और मायें अलग अलग हैं। सब का धर्म एक है, और हमारे बीच कोई नबी नहीं है। (सह़ीह़ बुख़ारीः3443)
أُو۟لَٰٓئِكَ هُمُ ٱلْكَٰفِرُونَ حَقًّا وَأَعْتَدْنَا لِلْكَٰفِرِينَ عَذَابًا مُّهِينًا ﴾ 151 ﴿
उलाइ-क हुमुल काफ़िरू-न हक़्क़न्, व अअ्तद्ना लिल्काफ़िरी-न अज़ाबम् मुहीना
वही शुध्द काफ़िर हैं और हमने काफ़िरों के लिए अपमानकारी यातना तैयार कर रखी है।
وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ وَلَمْ يُفَرِّقُوا۟ بَيْنَ أَحَدٍ مِّنْهُمْ أُو۟لَٰٓئِكَ سَوْفَ يُؤْتِيهِمْ أُجُورَهُمْ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا ﴾ 152 ﴿
वल्लज़ी-न आमनू बिल्लाहि व रूसुलिही व लम् युफ़र्रिकू बै-न अ-हदिम् मिन्हुम् उलाइ-क सौ-फ युअ्तीहिम् उजूरहुम्, व कानल्लाहु ग़फूरर्रहीमा *
तथा जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाये और उनमें से किसी के बीच अन्तर नहीं किया, तो उन्हीं को, हम उनका प्रतिफल प्रदान करेंगे तथा अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।
يَسْـَٔلُكَ أَهْلُ ٱلْكِتَٰبِ أَن تُنَزِّلَ عَلَيْهِمْ كِتَٰبًا مِّنَ ٱلسَّمَآءِ فَقَدْ سَأَلُوا۟ مُوسَىٰٓ أَكْبَرَ مِن ذَٰلِكَ فَقَالُوٓا۟ أَرِنَا ٱللَّهَ جَهْرَةً فَأَخَذَتْهُمُ ٱلصَّٰعِقَةُ بِظُلْمِهِمْ ثُمَّ ٱتَّخَذُوا۟ ٱلْعِجْلَ مِنۢ بَعْدِ مَا جَآءَتْهُمُ ٱلْبَيِّنَٰتُ فَعَفَوْنَا عَن ذَٰلِكَ وَءَاتَيْنَا مُوسَىٰ سُلْطَٰنًا مُّبِينًا ﴾ 153 ﴿
यस्अलु-क अह्लुल किताबि अन् तुनज्ज़िल अलैहिम् किताबम् मिनस-समा इ फ़ क़द् स-अलू मूसा अक्ब-र मिन् ज़ालि-क फ़कालू अरिनल्ला-ह जहर-तन् फ-अ ख़ज़त्हुमुस्साअि-क़तु बिज़ुल्मिहिम्, सुम्मत्त-ख़ज़ुल्-अिज्-ल मिम्-बअ्दि मा जाअत्हुमुल् बय्यिनातु फ़- अफ़ौना अन् ज़ालि-क, व आतैना मूसा सुल्तानम् मुबीना
(हे नबी!) आपसे अहले किताब माँग करते हैं कि आप उनपर आकाश से कोई पुस्तक उतार दें, तो इन्होंने मूसा से इससे भी बड़ी माँग की थी; उन्होंने कहा था कि हमें अल्लाह को प्रत्यक्ष[1] दिखा दो, तो इनके अत्याचारों के कारण, इन्हें बिजली ने धर लिया, फिर इन्होंने खुली निशानियाँ आने के पश्चात् बछड़े को पूज्य बना लिया, फिर हमने इसे भी क्षमा कर दिया और हमने मूसा को खुला प्रभुत्व प्रदान किया। 1. अर्थात आँखों से दिखा दो।
وَرَفَعْنَا فَوْقَهُمُ ٱلطُّورَ بِمِيثَٰقِهِمْ وَقُلْنَا لَهُمُ ٱدْخُلُوا۟ ٱلْبَابَ سُجَّدًا وَقُلْنَا لَهُمْ لَا تَعْدُوا۟ فِى ٱلسَّبْتِ وَأَخَذْنَا مِنْهُم مِّيثَٰقًا غَلِيظًا ﴾ 154 ﴿
व रफअ् ना फौक़हुमुत्तू-र बिमीसाक़िहिम् व क़ुल्ना लहुमुद्खुलुल्बा-ब सुज्जदंव्-व क़ुल्ना लहुम् ला तअ्दू फिस्सब्ति व अख़ज़्ना मिन्हुम मीसाक़न् ग़लीज़ा
और हमने (उनसे वचन लेने के लिए) उनके ऊपर तूर (पर्वत) उठा दिया तथा हमने उनसे कहाः द्वार में सज्दा करते हुए प्रवेश करो तथा हमने उनसे कहा कि शनिवार[1] के विषय में अति न करो और हमने उनसे दृढ़ वचन लिया। 1. देखियेः सूरह बक़रह आयतः65
فَبِمَا نَقْضِهِم مِّيثَٰقَهُمْ وَكُفْرِهِم بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ وَقَتْلِهِمُ ٱلْأَنۢبِيَآءَ بِغَيْرِ حَقٍّ وَقَوْلِهِمْ قُلُوبُنَا غُلْفٌۢ بَلْ طَبَعَ ٱللَّهُ عَلَيْهَا بِكُفْرِهِمْ فَلَا يُؤْمِنُونَ إِلَّا قَلِيلًا ﴾ 155 ﴿
फबिमा नक़्ज़िहिम् मीसाक़हुम् व कुफ्रिहिम् बिआयातिल्लाहि व क़त्लिहिमुल अम्बिया-अ बिग़ैरि हक़्क़िंव् व क़ौलिहिम् क़ुलूबुना ग़ुल्फुन्, बल् त-बअल्लाहु अलैहा बिकुफ्रिहिम् फला युअ्मिनू-न इल्ला क़लीला
तो उनके अपना वचन भंग करने, उनके अल्लाह की आयतों के साथ कुफ़्र करने, उनके नबियों को अवैध वध करने तथा उनके ये कहने के कारण कि हमारे दिल बंद हैं। ( ऐसी बात नहीं है) बल्कि अल्लाह ने उनके दिलों पर मुहर लगा दी है। अतः इनमें से थोड़े ही इमान लायेंगे।
وَبِكُفْرِهِمْ وَقَوْلِهِمْ عَلَىٰ مَرْيَمَ بُهْتَٰنًا عَظِيمًا ﴾ 156 ﴿
व बिकुफ्रिहिम् व क़ौलिहिम् अला मर य-म बुह़्तानन् अज़ीमा
तथा उनके कुफ़्र और मर्यम पर घोर आरोप लगाने के कारण।
وَقَوْلِهِمْ إِنَّا قَتَلْنَا ٱلْمَسِيحَ عِيسَى ٱبْنَ مَرْيَمَ رَسُولَ ٱللَّهِ وَمَا قَتَلُوهُ وَمَا صَلَبُوهُ وَلَٰكِن شُبِّهَ لَهُمْ وَإِنَّ ٱلَّذِينَ ٱخْتَلَفُوا۟ فِيهِ لَفِى شَكٍّ مِّنْهُ مَا لَهُم بِهِۦ مِنْ عِلْمٍ إِلَّا ٱتِّبَاعَ ٱلظَّنِّ وَمَا قَتَلُوهُ يَقِينًۢا ﴾ 157 ﴿
व क़ौलिहिम् इन्ना क़तल्नल्-मसी-ह ईसब्-न मर य-म रसूलल्लाहि, व मा क़-तलूहु व मा स-लबूहु व लाकिन् शुब्बि-ह लहुम, व इन्नल्लज़ीनख़्त लफू फ़ीहि लफ़ी शक्किम् मिन्हु, मा लहुम् बिही मिन् अिल्मिन् इल्लत्तिबाअज़्ज़न्नि, व मा क़-तलूहु यक़ीना
तथा उनके (गर्व से) कहने के कारण कि हमने अल्लाह के रसूल, मर्यम के पुत्र, ईसा मसीह़ को वध कर दिया, जबकि (वास्तव में) उसे वध नहीं किया और न सलीब (फाँसी) दी, परन्तु उनके लिए (इसे) संदिग्ध कर दिया गया। निःसंदेह, जिन लोगों ने इसमें विभेद किया, वे भी शंका में पड़े हुए हैं और उन्हें इसका कोई ज्ञान नहीं, केवल अनुमान के पीछे पड़े हुए हैं और निश्चय उसे उन्होंने वध नहीं किया है।
بَل رَّفَعَهُ ٱللَّهُ إِلَيْهِ وَكَانَ ٱللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا ﴾ 158 ﴿
बर्र-फ-अहुल्लाहु इलैहि, व कानल्लाहु अज़ीज़न् हकीमा
बल्कि अल्लाह ने उसे अपनी ओर आकाश में उठा लिया है तथा अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।
وَإِن مِّنْ أَهْلِ ٱلْكِتَٰبِ إِلَّا لَيُؤْمِنَنَّ بِهِۦ قَبْلَ مَوْتِهِۦ وَيَوْمَ ٱلْقِيَٰمَةِ يَكُونُ عَلَيْهِمْ شَهِيدًا ﴾ 159 ﴿
व इम्-मिन् अहलिल्-किताबि इल्ला ल-युअ्मिनन्-न बिही कब्-ल मौतिही, व यौमल्-क़ियामति यकूनु अलैहिम् शहीदा
और सभी अहले किताब उस (ईसा) के मरण से पहले उसपर अवश्य ईमान[1] लायेंगे और प्रलय के दिन वह उनके विरुध्द साक्षी[2] होगा। 1. अर्थात प्रलय के समीप ईसा अलैहिस्सलाम के आकाश से उतरने पर उस समय के सभी अहले किताब उन पर ईमान लायेंगे, और वह उस समय मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अनुयायी होंगे। सलीब तोड़ देंगे, और सुअरों को मार डालेंगे, तथा इस्लाम के नियमानुसार निर्णय और शासन करेंगे। (सह़ीह़ बुख़ारीः2222,3449, मुस्लिमः155,156) 2. अर्थात ईसा अलैहिस्सलाम प्रलय के दिन ईसाईयों के बारे में साक्षी होंगे। (देखियेः सूरह माइदा, आयतः117)
فَبِظُلْمٍ مِّنَ ٱلَّذِينَ هَادُوا۟ حَرَّمْنَا عَلَيْهِمْ طَيِّبَٰتٍ أُحِلَّتْ لَهُمْ وَبِصَدِّهِمْ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ كَثِيرًا ﴾ 160 ﴿
फ-बिज़ुल्मिम्-मिनल्लज़ी-न हादू हर्रम् ना अलैहिम् तय्यिबातिन् उहिल्लत् लहुम् व बि-सद्दिहिम् अन् सबीलिल्लाहि कसीरा
यहूदियों के (इसी) अत्याचार के कारण हमने उनपर स्वच्छ खाद्य पदार्थों को ह़राम (वर्जित) कर दिया, जो उनके लिए ह़लाल (वैध) थे तथा उनके बहुधा अल्लाह की राह से रोकने के कारण।
وَأَخْذِهِمُ ٱلرِّبَوٰا۟ وَقَدْ نُهُوا۟ عَنْهُ وَأَكْلِهِمْ أَمْوَٰلَ ٱلنَّاسِ بِٱلْبَٰطِلِ وَأَعْتَدْنَا لِلْكَٰفِرِينَ مِنْهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا ﴾ 161 ﴿
व अख़्ज़िहिमुर्रिबा व क़द् नुहू अन्हु व अक्लिहिम् अम्वालन्नासि बिल्बातिलि, व अअ्-तद्- ना लिल्काफ़िरी-न मिन्हुम् अज़ाबन् अलीमा
तथा उनके ब्याज लेने के कारण जबकि उन्हें उससे रोका गया था और उनके लोगों का धन अवैध रूप से खाने के कारण। हमने उनमें से काफ़िरों के लिए दुःखदायी यातना तैयार कर रखी है।
لَّٰكِنِ ٱلرَّٰسِخُونَ فِى ٱلْعِلْمِ مِنْهُمْ وَٱلْمُؤْمِنُونَ يُؤْمِنُونَ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيْكَ وَمَآ أُنزِلَ مِن قَبْلِكَ وَٱلْمُقِيمِينَ ٱلصَّلَوٰةَ وَٱلْمُؤْتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَٱلْمُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْءَاخِرِ أُو۟لَٰٓئِكَ سَنُؤْتِيهِمْ أَجْرًا عَظِيمًا ﴾ 162 ﴿
लाकिनिर्रासिखू-न फिल्अिल्मि मिन्हुम् वल्मुअ्मिनू-न युअ्मिनू-न बिमा उन्ज़ि-ल इलै-क व मा उन्ज़ि-ल मिन् क़ब्लि-क वल्मुक़ीमीनस्सला-त वल्मुअ्तूनज़्ज़का-त वल्मुअ्मिनू-न बिल्लाहि वल्यौमिल्-आखिरि, उलाइ-क सनुअ्तीहिम् अज्रन् अज़ीमा *
परन्तु जो उनमें से ज्ञान में पक्के हैं तथा वे ईमान वाले, जो आपकी ओर उतारी गयी (पुस्तक क़ुर्आन) तथा आपसे पूर्व उतारी गई (पुस्तक) पर ईमान रखते हैं और जो नमाज़ की स्थापना करने वाले, ज़कात देने वाले और अल्लाह तथा अन्तिम दिन पर ईमान रखने वाले हैं, उन्हीं को हम बहुत बड़ा प्रतिफल प्रदान करेंगे।
إِنَّآ أَوْحَيْنَآ إِلَيْكَ كَمَآ أَوْحَيْنَآ إِلَىٰ نُوحٍ وَٱلنَّبِيِّۦنَ مِنۢ بَعْدِهِۦ وَأَوْحَيْنَآ إِلَىٰٓ إِبْرَٰهِيمَ وَإِسْمَٰعِيلَ وَإِسْحَٰقَ وَيَعْقُوبَ وَٱلْأَسْبَاطِ وَعِيسَىٰ وَأَيُّوبَ وَيُونُسَ وَهَٰرُونَ وَسُلَيْمَٰنَ وَءَاتَيْنَا دَاوُۥدَ زَبُورًا ﴾ 163 ﴿
इन्ना औहैना इलै-क कमा औहैना इला नूहिंव्वन्नबिय्यी न मिम्-बअ्दही, व औहैना इला इब्राही-म व इस्माई-ल व इस्हा-क़ व यअ्क़ू-ब वल्अस्बाति व अीसा व अय्यू-ब व यूनु-स व हारू-न व सुलैमा-न, व आतैना दावू-द ज़बूरा
(हे नबी!) हमने आपकी ओर वैसे ही वह़्यी भेजी है, जैसे नूह़ और उसके पश्चात के नबियों के पास भेजी और इब्राहीम, इस्माईल, इस्ह़ाक़, याक़ूब तथा उसकी संतान, ईसा, अय्यूब, यूनुस, हारून और सुलैमान के पास वह़्यी भेजी और हमने दावूद को ज़बूर प्रदान[1] की थी। 1. वह़्य का अर्थ, संकेत करना, दिल में कोई बात डाल देना, गुप्त रूप से कोई बात कहना तथा संदेश भेजना है। ह़ारिस रज़ियल्लाहु अन्हु ने प्रश्न कियाः अल्लाह के रसूल आप पर वह़्य कैसे आती है? आप ने कहाः कभी निरन्तर घंटी की ध्वनि जैसे आती है, जो मेरे लिये बहुत भारी होती है। और यह दशा दूर होने पर मुझे सब बात याद रहती है। और कभी फ़रिश्ता मनुष्य के रूप में आकर मुझ से बात करता है तो मैं उसे याद कर लेता हूँ। (सह़ीह़ बुख़ारीः2, मुस्लिमः2333)
وَرُسُلًا قَدْ قَصَصْنَٰهُمْ عَلَيْكَ مِن قَبْلُ وَرُسُلًا لَّمْ نَقْصُصْهُمْ عَلَيْكَ وَكَلَّمَ ٱللَّهُ مُوسَىٰ تَكْلِيمًا ﴾ 164 ﴿
व रूसुलन् क़द् क़सस्-नाहुम् अलै-क मिन् क़ब्लु व रूसुलल्लम् नक़्सुस्हुम अलै-क, व कल्लमल्लाहु मूसा तक्लीमा
कुछ रसूल तो ऐसे हैं, जिनकी चर्चा हम इससे पहले आपसे कर चुके हैं और कुछ की चर्चा आपसे नहीं की है और अल्लाह ने मूसा से वास्तव में बात की।
رُّسُلًا مُّبَشِّرِينَ وَمُنذِرِينَ لِئَلَّا يَكُونَ لِلنَّاسِ عَلَى ٱللَّهِ حُجَّةٌۢ بَعْدَ ٱلرُّسُلِ وَكَانَ ٱللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا ﴾ 165 ﴿
रूसुलम् मुबश्शिरी-न व मुन्ज़िरीन लिअल्ला यकू-न लिन्नासि अलल्लाहि हुज्जतुम्-बअ्दर्रूसुलि, व कानल्लाहु अज़ीज़न् हकीमा
ये सभी रसूल शुभ सूचना सुनाने वाले और डराने वाले थे, ताकि इन रसूलों के (आगमन के) पश्चात् लोगों के लिए अल्लाह पर कोई तर्क न रह[1] जाये और अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है। 1. अर्थात कोई अल्लाह के सामने ये न कह सके कि हमें मार्गदर्शन देने के लिये कोई नहीं आया।
لَّٰكِنِ ٱللَّهُ يَشْهَدُ بِمَآ أَنزَلَ إِلَيْكَ أَنزَلَهُۥ بِعِلْمِهِۦ وَٱلْمَلَٰٓئِكَةُ يَشْهَدُونَ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ شَهِيدًا ﴾ 166 ﴿
लाकिनिल्लाहु यश्हदु बिमा अन्ज़-ल इलै-क अन्ज़-लहू बिअिल्मिही वल्मलाइ-कतु यशहदू-न, व कफ़ा बिल्लाहि शहीदा
(हे नबी!) (आपको यहूदी आदि नबी न मानें) परन्तु अल्लाह उस (क़ुर्आन) के द्वारा, जिसे आपपर उतारा है, साक्ष्य (गवाही) देता है (कि आप नबी हैं)। उसने इसे अपने ज्ञान के साथ उतारा है तथा फ़रिश्ते साक्ष्य देते हैं और अल्लाह का साक्ष्य ही बहुत है।
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَصَدُّوا۟ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ قَدْ ضَلُّوا۟ ضَلَٰلًۢا بَعِيدًا ﴾ 167 ﴿
इन्नल्लज़ी-न क-फरू व सद्दू अन् सबीलिल्लाहि क़द् ज़ल्लू ज़लालम् बईदा
वास्तव में, जिन्होंने कुफ़्र किया और अल्लाह की राह[1] से रोका, वे सुपथ से बहुत दूर जा पड़े। 1. अर्थात इस्वलाम से रोका।
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَظَلَمُوا۟ لَمْ يَكُنِ ٱللَّهُ لِيَغْفِرَ لَهُمْ وَلَا لِيَهْدِيَهُمْ طَرِيقًا ﴾ 168 ﴿
इन्नल्लज़ी-न क-फरू व ज़-लमू लम् यकुनिल्लाहु लियग़्फि-र लहुम् व ला लियह़्दी-यहुम् तरीक़ा
निःसंदेह जो काफ़िर हो गये और अत्याचार करते रह गये, तो अल्लाह ऐसा नहीं है कि उन्हें क्षमा कर दे तथा न उन्हें कोई राह दिखायेगा।
إِلَّا طَرِيقَ جَهَنَّمَ خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدًا وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرًا ﴾ 169 ﴿
इल्ला तरी-क़ जहन्न-म ख़ालिदी-न फीहा अ-बदन्, व का-न ज़ालि-क अलल्लाहि यसीरा
परन्तु नरक की राह, जिसमें वे सदावासी होंगे और ये अल्लाह के लिए सरल है।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ قَدْ جَآءَكُمُ ٱلرَّسُولُ بِٱلْحَقِّ مِن رَّبِّكُمْ فَـَٔامِنُوا۟ خَيْرًا لَّكُمْ وَإِن تَكْفُرُوا۟ فَإِنَّ لِلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا ﴾ 170 ﴿
या अय्युहन्नासु क़द् जा अकुमुर्रसूलु बिल्हक़्क़ि मिर्रब्बिकुम् फआमिनू ख़ैरल्लकुम्, व इन तक्फुरू-फ़-इन्-न लिल्लाहि मा फिस्समावाति वल्अर्ज़ि, व कानल्लाहु अलीमन् हक़ीमा
हे लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से रसूल सत्य लेकर[1] आ गये हैं। अतः, उनपर ईमान लाओ, यही तुम्हारे लिए अच्छा है तथा यदि कुफ़्र करोगे, तो (याद रखो कि) अल्लाह ही का है, जो आकाशों तथा धरती में है और अल्लाह बड़ा ज्ञानी गुणी है। 1. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस्लाम धर्म ले कर आ गये। यहाँ पर यह बात विचारणीय है कि क़ुर्आन ने किसी जाति अथवा देशवासी को संबोधित नहीं किया है। वह कहता है कि आप पूरे मानव विश्व के नबी हैं। तथा इस्लाम और क़ुर्आन पूरे मानव विश्व के लिये सत्धर्म है, जो उस अल्लाह का भेजा हुआ सत्धर्म है, जिस की आज्ञा के अधीन यह पूरा विश्व है। अतः तुम भी उस की आज्ञा के अधीन हो जाओ।
يَٰٓأَهْلَ ٱلْكِتَٰبِ لَا تَغْلُوا۟ فِى دِينِكُمْ وَلَا تَقُولُوا۟ عَلَى ٱللَّهِ إِلَّا ٱلْحَقَّ إِنَّمَا ٱلْمَسِيحُ عِيسَى ٱبْنُ مَرْيَمَ رَسُولُ ٱللَّهِ وَكَلِمَتُهُۥٓ أَلْقَىٰهَآ إِلَىٰ مَرْيَمَ وَرُوحٌ مِّنْهُ فَـَٔامِنُوا۟ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ وَلَا تَقُولُوا۟ ثَلَٰثَةٌ ٱنتَهُوا۟ خَيْرًا لَّكُمْ إِنَّمَا ٱللَّهُ إِلَٰهٌ وَٰحِدٌ سُبْحَٰنَهُۥٓ أَن يَكُونَ لَهُۥ وَلَدٌ لَّهُۥ مَا فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلًا ﴾ 171 ﴿
या अह़्लल्-किताबि ला तग़्लू फ़ी दीनिकुम् व ला तक़ूलू अलल्लाहि इल्लल्-हक़्-क़, इन्नमल्-मसीहु ईसब्नु मर्य-म रसूलुल्लाहि व कलि-मतुहू, अल्क़ाहा इला मर्य-म व रूहुम्-मिन्हु, फ़आमिनू बिल्लाहि व रूसुलिही, व ला तक़ूलू सलासतुन, इन्तहू ख़ैरल्लकुम, इन्नमल्लाहु इलाहुंव्वाहिदुन्, सुब्हानहू अंय्यकू-न लहू व-लदुन् • लहू मा फिस्समावाति व मा फिल्अर्ज़ि व कफ़ा बिल्लाहि वकीला *
हे अहले किताब (ईसाईयो!) अपने धर्म में अधिकता न[1] करो और अल्लाह पर केवल सत्य ही बोलो। मसीह़ मर्यम का पुत्र केवल अल्लाह का रसूल और उसका शब्द है, जिसे (अल्लाह ने) मर्यम की ओर डाल दिया तथा उसकी ओर से एक आत्मा[2] है, अतः, अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाओ और ये न कहो कि (अल्लाह) तीन हैं, इससे रुक जाओ, यही तुम्हारे लिए अच्छा है, इसके सिवा कुछ नहीं कि अल्लाह ही अकेला पूज्य है, वह इससे पवित्र है कि उसका कोई पुत्र हो, आकाशों तथा धरती में जो कुछ है, उसी का है और अल्लाह काम बनाने[3] के लिए बहुत है। 1. अर्थात ईसा अलैहिस्सलाम को रसूल से पूज्य न बनाओ, और यह न कहो कि वह अल्लाह का पुत्र है, और अल्लाह तीन हैं- पिता और पुत्र तथा पवित्रातमा। 2. अर्थात ईसा अल्लाह का एक भक्त है, जिसे अपने शब्द (कुन) अर्थात "हो जा" से उत्पन्न किया है। इस शब्द के साथ उस ने फ़रिश्ते जिब्रील को मर्यम के पास भेजा, और उस ने उस में अल्लाह की अनुमति से यह शब्द फूँक दिया, और ईसा अलैहिस्सलाम पैदा हुये। (इब्ने कसीर) 3. अर्थात उसे क्या आवश्यक्ता है कि संसार में किसी को अपना पुत्र बना कर भेजे।
لَّن يَسْتَنكِفَ ٱلْمَسِيحُ أَن يَكُونَ عَبْدًا لِّلَّهِ وَلَا ٱلْمَلَٰٓئِكَةُ ٱلْمُقَرَّبُونَ وَمَن يَسْتَنكِفْ عَنْ عِبَادَتِهِۦ وَيَسْتَكْبِرْ فَسَيَحْشُرُهُمْ إِلَيْهِ جَمِيعًا ﴾ 172 ﴿
लंय्यस्तन्किफल्-मसीहु अंय्यकू-न अब्दल्-लिल्लाहि व लल्मला-इ कतुल मुक़र्रबू-न, व मंय्यस्तन्किफ् अन्, अिबादतिही व यस्तक्बिर् फ-सयह्शुरूहुम् इलैहि जमीआ़
मसीह़ कदापि अल्लाह का दास होने को अपमान नहीं समझता और न (अल्लाह के) समीपवर्ती फ़रिश्ते। जो व्यक्ति उसकी (वंदना को) अपमान समझेगा तथा अभिमान करेगा, तो उन सभी को वह अपने पास एकत्र करेगा।
فَأَمَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّٰلِحَٰتِ فَيُوَفِّيهِمْ أُجُورَهُمْ وَيَزِيدُهُم مِّن فَضْلِهِۦ وَأَمَّا ٱلَّذِينَ ٱسْتَنكَفُوا۟ وَٱسْتَكْبَرُوا۟ فَيُعَذِّبُهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا وَلَا يَجِدُونَ لَهُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ وَلِيًّا وَلَا نَصِيرًا ﴾ 173 ﴿
फ अम्मल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्-सालिहाति फ़-युवफ्फीहिम् उजूरहुम् व यज़ीदुहुम् मिन् फज़्लिही, व अम्मल्लज़ीनस् तन्कफू वस्तक्बरू फ़-युअ़ज़्ज़िबुहुम् अज़ाबन् अलीमाव्, व ला यजिदू-न लहुम मिन् दूनिल्लाहि वलिय्यंव्-व ला नसीरा
फिर जो लोग ईमान लाये तथा सत्कर्म किये, तो उन्हें उनका भरपूर प्रतिफल देगा और उन्हें अपनी दया से अधिक भी देगा।[1] परन्तु जिन्होंने (वंदना को) अपमान समझा और अभिमान किया, तो उन्हें दुःखदायी यातना देगा तथा अल्लाह के सिवा वह कोई रक्षक और सहायक नहीं पायेगा। 2. यहाँ "अधिक" से अभिप्राय स्वर्ग में अल्लाह का दर्शन है। (सह़ीह मुस्लिमः181, तिर्मिज़ीः2552)
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ قَدْ جَآءَكُم بُرْهَٰنٌ مِّن رَّبِّكُمْ وَأَنزَلْنَآ إِلَيْكُمْ نُورًا مُّبِينًا ﴾ 174 ﴿
या अय्युहन्नासु क़द् जा-अकुम् बुरहानुम् मिर्रब्बिकुम् व अन्ज़ल्ना इलैकुम् नूरम् मुबीना
हे लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से खुला प्रमाण[1] आ गया है और हमने तुम्हारी ओर खुली वह़्यी[2] उतार दी है। 1. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम। 2. अर्थात क़ुर्आन शरीफ़। (इब्ने जरीर)
فَأَمَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ بِٱللَّهِ وَٱعْتَصَمُوا۟ بِهِۦ فَسَيُدْخِلُهُمْ فِى رَحْمَةٍ مِّنْهُ وَفَضْلٍ وَيَهْدِيهِمْ إِلَيْهِ صِرَٰطًا مُّسْتَقِيمًا ﴾ 175 ﴿
फ-अम्मल्लज़ी-न आमनू बिल्लाहि वअ्त-समू बिही फ-सयुद्ख़िलुहुम् फी रह़्मतिम् मिन्हु व फ़ज़्लिंव्-व यह़्दीहिम् इलैहि सिरातम् मुस्तक़ीमा
तो जो लोग अल्लाह पर ईमान लाये तथा इस (क़ुर्आन) को दृढ़ता से पकड़ लिया, वे उन्हीं को अपनी दया तथा अनुग्रह से (स्वर्ग) में प्रवेश देगा और उन्हें अपनी ओर सीधी राह दिखा देगा।
يَسْتَفْتُونَكَ قُلِ ٱللَّهُ يُفْتِيكُمْ فِى ٱلْكَلَٰلَةِ إِنِ ٱمْرُؤٌا۟ هَلَكَ لَيْسَ لَهُۥ وَلَدٌ وَلَهُۥٓ أُخْتٌ فَلَهَا نِصْفُ مَا تَرَكَ وَهُوَ يَرِثُهَآ إِن لَّمْ يَكُن لَّهَا وَلَدٌ فَإِن كَانَتَا ٱثْنَتَيْنِ فَلَهُمَا ٱلثُّلُثَانِ مِمَّا تَرَكَ وَإِن كَانُوٓا۟ إِخْوَةً رِّجَالًا وَنِسَآءً فَلِلذَّكَرِ مِثْلُ حَظِّ ٱلْأُنثَيَيْنِ يُبَيِّنُ ٱللَّهُ لَكُمْ أَن تَضِلُّوا۟ وَٱللَّهُ بِكُلِّ شَىْءٍ عَلِيمٌۢ ﴾ 176 ﴿
यस्तफ्तून-क, क़ुलिल्लाहु युफ्तीकुम् फिल्-कलालति, इनिम् रूउन् ह-ल-क लै-स लहू व लदुंव्-व लहू उख़्तुन् फ़-लहा निस्फु मा त-र-क, व हु-व यरिसुहा इल्लम् यकुल्लहा व लदुन्, फ-इन् का-नतस् नतैनि फ़-लहुमस्-सुलुसानि मिम्मा त-र-क, व इन् कानू इख़्वतररिजालंव्-व निसाअन् फ़-लिज़्ज़-करि मिस्लु हज़्ज़िल् उन्सयैनि, युबय्यिनुल्लाहु लकुम् अन् तज़िल्लू, वल्लाहु बिकुल्लि शैइन् अलीम *
(हे नबी!) वे आपसे कलाला के विषय में आदेश चाहते हैं, तो आप कह दें कि वह कलाला के विषय में तुम्हें आदेश दे रहा है कि यदि कोई ऐसा पुरुष मर जाये, जिसके संतान न हों, (और न पिता-दादा हो।) और उसके एक बहन हों, तो उसके लिए उसके छोड़े हुए धन का आधा है और वह (पुरुष) उसके पूरे धन का वारिस होगा, यदि उस (बहन) के कोई संतान न हों, (और न पिता और दादा हो)। और यदि उसकी दो (अथवा अधिक) बहनें हों, तो उन्हें छोड़े हुए धन का दो तिहाई मिलेगा। यदि भाई-बहन दोनों हों, तो नर (भाई) को दो नारियों (बहनों) के बराबर[1] (भाग) मिलेगा। अल्लाह तुम्हारे लिए आदेश उजागर कर रहा है, ताकि तुम कुपथ न हो जाओ तथा अल्लाह सब कुछ जानता है। 1. कलाला की मीरास का नियम आयत संख्या 12 में आ चुका है, जो उस के तीन प्रकार में से एक के लिये था। अब यहाँ शेष दो प्रकारों का आदेश बताया जा रहा है। अर्थात यदि कलाला के सगे भाई-बहन हों अथवा अल्लाती ( जो एक पिता तथा कई माता से हों) तो उन के लिये यह आदेश है।