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Surah Naas In Hindi Image

114. सूरह अन-नास

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सूरह नास के संक्षिप्त विषय

यह सूरह मक्की है, इस में 6 आयतें हैं।

  • इस में पाँच बार ((नास)) शब्द आने के कारण इस का यह नाम है। जिस का अर्थ इन्सान है।
  • इस की आयत 1 से 3 तक शरण देने वाले के गुण बताये गये हैं।
  • आयत 4 में जिस की बुराई से पनाह (शरण) मांगी गई है उस के घातक शत्रु होने से सावधान किया गया है।
  • आयत 5 में बताया गया है कि वह इन्सान के दिल पर आक्रमण करता है।
  • आयत 6 में सावधान किया गया है कि यह शत्र जिन्न तथा इन्सान दोनों में होते हैं।
  • हदीस में है कि नबी (सल्लल्लाह अलैहि व सल्लम) हर रात जब बिस्तर पर जाते तो सूरह इख्लास और यह और इस के पहले की सूरह (अर्थातः फलक) पढ़ कर अपनी दोनों हथेलियाँ मिला कर उन पर फूंकते, फिर जितना हो सके दोनों को अपने शरीर पर फेरते। सिर से आरंभ करते और फिर आगे के शरीर से गुज़ारते। ऐसा आप तीन बार करते थे| (सहीह बुख़ारी: 6319, 5748)

Surah Naas in Hindi

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بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ

बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम

अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।

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قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ النَّاسِ ﴾ 1 ﴿

कुल अऊजु बिरब्बिन नास

(हे नबी!) कहो कि मैं इन्सानों के पालनहार की शरण में आता हूँ।

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مَلِكِ النَّاسِ ﴾ 2 ﴿

मलिकिन नास

जो सारे इन्सानों का स्वामी है।

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إِلَـٰهِ النَّاسِ ﴾ 3 ﴿

इलाहिन नास

जो सारे इन्सानों का पूज्य है।[1] 1. (1-3) यहाँ अल्लाह को उस के तीन गुणों के साथ याद कर के उस की शरण लेने की शिक्षा दी गई है। एक उस का सब मानव जाति का पालनहार और स्वामी होना। दूसरे उस का सभी इन्सानों का अधिपति और शासक होना। तीसरे उस का इन्सानों का सत्य पूज्य होना। भावार्थ यह है कि उस अल्लाह की शरण माँगता हूँ जो इन्सानों का पालनहार, शासक और पूज्य होने के कारण उन पर पूरा नियंत्रण और अधिकार रखता है। जो वास्तव में उस बुराई से इन्सानों को बचा सकता है जिस से स्वयं बचने और दूसरों को बचाने में सक्षम है उस के सिवा कोई है भी नहीं जो शरण दे सकता हो।

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مِن شَرِّ الْوَسْوَاسِ الْخَنَّاسِ ﴾ 4 ﴿

मिन शर रिल वसवा सिल खन्नास

भ्रम डालने वाले और छुप जाने वाले (राक्षस) की बुराई से।

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الَّذِي يُوَسْوِسُ فِي صُدُورِ النَّاسِ ﴾ 5 ﴿

अल्लज़ी युवस विसु फी सुदूरिन नास

जो लोगों के दिलो में भ्रम डालता रहता है।

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مِنَ الْجِنَّةِ وَالنَّاسِ ﴾ 6 ﴿

मिनल जिन्नति वन नास

जो जिन्नों में से है और मनुष्यों में से भी।[1] 1. (4-6) आयत संख्या 4 में 'वस्वास' शब्द का प्रयोग हुआ है। जिस का अर्थ है दिलों में ऐसी बुरी बातें डान देना कि जिस के दिल में डाली जा रही हों उसे उस का ज्ञान भी न हो। और इसी प्रकार आयत संख्या 4 में 'ख़न्नास' का शब्द प्रोग हुआ है। जिस का अर्थ है सुकड़ जाना, छुप जाना, पीछे हट जाना, धीरे धीरे किसी को बुराई के लिये तैयार करना आदि। अर्थात दिलों में भ्रम डालने वाला, और सत्य के विरुध्द मन में बुरी भावनायें उत्पन्न करने वाला। चाहे वह जिन्नों में से हो, अथवा मनुष्यों में से हो। इन सब की बुराईयों से हम अल्लाह की शरण लेते हैं जो हमारा स्वामी और सच्चा पूज्य है।