सूरह ता-हा के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है. इस में 135 आयतें हैं
- इस सूरह के आरंभ में यह दोनों अक्षर आये है इस लिये इस का यह नाम रखा गया है।
- इस में वह्यी और रिसालत का उद्देश्य बताया गया है। और जो नहीं मानते उन्हें चेतावनी दी गई है, और मूसा (अलैहिस्सलाम) को रिसालत देने और उन के विरोधियों का दुष्परिणाम बताया गया है। साथ ही प्रलय की दशा का भी वर्णन किया गया है ताकि नबूवत के विरोधी सावधान हों।
- इस में आदम (अलैहिस्सलाम) की कथा का वर्णन करते हुये यह बताया गया है कि जब मनुष्य इस धरती पर आया तभी यह बात उजागर कर दी गई थी कि मनुष्य को सीधी राह दिखाने के लिये वह्यी तथा रिसालत का क्रम भी जारी किया जायेगा फिर जो सीधी राह अपनायेगा वही शैतान के कुपथ से सुरक्षित रहेगा।
- इस में अल्लाह की आयतों से विमुख होने का बुरा अन्त बताया गया है। तथा नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और आप के माध्यम से ईमान बालों को सहन और दृढ़ रहने के निर्देश दिये गये हैं। और दिलासा दी गई है कि अन्तिम तथा अच्छा परिणाम उन्हीं के लिये है।
- और अन्त में विरोधियों की आपत्तियों का उत्तर दिया गया है।
सूरह ताहा हिंदी में | Surah Taha in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
مَا أَنزَلْنَا عَلَيْكَ الْقُرْآنَ لِتَشْقَىٰ ﴾ 2 ﴿
मा अन्ज़ल्ना अ़लैकल् – कुरआ-न लितश्क़ा
हमने नहीं अवतरित किया है आपपर क़ुर्आन इस लिए कि आप दुःखी हों[1]। 1. अर्थात विरोधियों के ईमान न लाने पर।
إِلَّا تَذْكِرَةً لِّمَن يَخْشَىٰ ﴾ 3 ﴿
इल्ला तज्कि-रतल्-लिमंय्यख़्शा
परन्तु ये उसकी शिक्षा के लिए है, जो डरता[1] हो। 1. अर्थात ईमान न लाने तथा कुकर्मों के दुष्परिणाम से।
تَنزِيلًا مِّمَّنْ خَلَقَ الْأَرْضَ وَالسَّمَاوَاتِ الْعُلَى ﴾ 4 ﴿
तन्ज़ीलम्-मिम् मन् ख़-लक़ल्अर्-ज़ वस्समावातिल – अुला
उतारा जाना उस ओर से है, जिसने उत्पत्ति की है धरती तथा उच्च आकाशों की।
الرَّحْمَٰنُ عَلَى الْعَرْشِ اسْتَوَىٰ ﴾ 5 ﴿
अर्रह्मानु अ़लल्-अ़रशिस्तवा
जो अत्यंत कृपाशील, अर्श पर स्थिर है।
لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا وَمَا تَحْتَ الثَّرَىٰ ﴾ 6 ﴿
लहू मा फ़िस्समावाति व मा फ़िल-अर्जि व मा बैनहुमा व मा तह्तस्सरा
उसी का[1] है, जो आकाशों, जो धरती में, जो दोनों के बीच तथा जो भूमि के नीचे है। 1. अर्थात उसी के स्वामित्व में तथा उसी के अधीन है।
وَإِن تَجْهَرْ بِالْقَوْلِ فَإِنَّهُ يَعْلَمُ السِّرَّ وَأَخْفَى ﴾ 7 ﴿
व इन् तज्हर् बिल्क़ौलि फ-इन्नहू यल्मुस्सिर्-र व अख़्फ़ा
यदि तुम उच्च स्वर में बात करो, तो वास्तव में, वह जानता है भेद को तथा अत्यधिक छुपे भेद को।
اللَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ لَهُ الْأَسْمَاءُ الْحُسْنَىٰ ﴾ 8 ﴿
अल्लाहु ला इला-ह इल्ला हु-व, लहुल अस्माउल-हुस्ना
वही अल्लाह है, नहीं है कोई वंदनीय (पूज्य) परन्तु वही। उसी के उत्तम नाम हैं।
وَهَلْ أَتَاكَ حَدِيثُ مُوسَىٰ ﴾ 9 ﴿
व हल अता-क हदीसु मूसा
और (हे नबी!) क्या आपको मूसा की बात पहुँची?
إِذْ رَأَىٰ نَارًا فَقَالَ لِأَهْلِهِ امْكُثُوا إِنِّي آنَسْتُ نَارًا لَّعَلِّي آتِيكُم مِّنْهَا بِقَبَسٍ أَوْ أَجِدُ عَلَى النَّارِ هُدًى ﴾ 10 ﴿
इज् रआ नारन् फ़का-ल लिअह़्लिहिम्कुसू इन्नी आनस्तु नारल्-लअ़ल्ली आतीकुम् मिन्हा बि-क़-बसिन् औ अजिदु अ़लन्नारि हुदा
जब उसने देखी एक अग्नि, फिर कहा अपने परिवार सेः रुको, मैंने एक अग्नि देखी है, सम्भव है कि मैं तुम्हारे पास उसका कोई अंगार लाऊँ अथवा पा जाऊँ आग पर मार्ग की कोई सूचना[1]। 1. यह उस समय की बात है, जब मूसा अपने परिवार के साथ मद्यन नगर से मिस्र आ रहे थे और मार्ग भूल गये थे।
فَلَمَّا أَتَاهَا نُودِيَ يَا مُوسَىٰ ﴾ 11 ﴿
फ़-लम्मा अताहा नूदि-य या मूसा
फिर जब वहाँ पहुँचा, तो पुकारा गयाः हे मूसा!
إِنِّي أَنَا رَبُّكَ فَاخْلَعْ نَعْلَيْكَ ۖ إِنَّكَ بِالْوَادِ الْمُقَدَّسِ طُوًى ﴾ 12 ﴿
इन्नी अ-न रब्बु-क फ़ख़्लअ् नअ् लै-क इन्न-क बिल्वादिल्-मुक़द्दसि तुवा
वास्तव में, मैं ही तेरा पालनहार हूँ, तू उतार दे अपने दोनों जूते, क्योंकि तू पवित्र वादी (उपत्यका) “तुवा” में है।
وَأَنَا اخْتَرْتُكَ فَاسْتَمِعْ لِمَا يُوحَىٰ ﴾ 13 ﴿
व अनख़्तरतु-क फ़स्तमिअ् लिमा यूहा
और मैंने तुझे चुन[1] लिया है। अतः ध्यान से सुन, जो वह़्यी की जा रही है। 1. अर्थात नबी बना दिया।
إِنَّنِي أَنَا اللَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا أَنَا فَاعْبُدْنِي وَأَقِمِ الصَّلَاةَ لِذِكْرِي ﴾ 14 ﴿
इन्ननी अनल्लाहु ला इला-ह इल्ला अ-न फ़अ्बुद्नी व अक़िमिस्सला-त लिज़िक्री
निःसंदेह मैं ही अल्लाह हूँ, मेरे सिवा कोई पूज्य नहीं, तो मेरी ही इबादत (वंदना) कर तथा मेरे स्मरण (याद) के लिए नमाज़ की स्थापना[1] कर। 1. इबादत में नमाज़ सम्मिलित है, फिर भी उस का महत्व दिखाने के लिये उस का विशेष आदेश दिया गया है।
إِنَّ السَّاعَةَ آتِيَةٌ أَكَادُ أُخْفِيهَا لِتُجْزَىٰ كُلُّ نَفْسٍ بِمَا تَسْعَىٰ ﴾ 15 ﴿
इन्नस्सा-अ़-त आति-यतुन् अकादु उख़्फीहा लितुज़्ज़ा कुल्लु नफ़्सिम्-बिमा तस्आ
निश्चय प्रलय आने वाली है, मैं उसे गुप्त रखना चाहता हूँ, ताकि प्रतिकार (बदला) दिया जाये, प्रत्येक प्राणी को उसके प्रयास के अनुसार।
فَلَا يَصُدَّنَّكَ عَنْهَا مَن لَّا يُؤْمِنُ بِهَا وَاتَّبَعَ هَوَاهُ فَتَرْدَىٰ ﴾ 16 ﴿
फ़ला यसुद्दन्न – क अन्हा मल्ला युअ्मिनु बिहा वत्त-ब-अ़ हवाहु फ़-तरदा
अतः, तुम्हें न रोक दे, उस ( के विश्वास) से, जो उसपर ईमान (विश्वास) नहीं रखता और अनुसरण किया अपनी इच्छा का, अन्यथा तेरा नाश हो जायेगा।
وَمَا تِلْكَ بِيَمِينِكَ يَا مُوسَىٰ ﴾ 17 ﴿
व मा तिल-क बि-यमीनि-क या मूसा
और हे मूसा! ये तेरे दाहिने हाथ में क्या है?
لَ هِيَ عَصَايَ أَتَوَكَّأُ عَلَيْهَا وَأَهُشُّ بِهَا عَلَىٰ غَنَمِي وَلِيَ فِيهَا مَآرِبُ أُخْرَىٰ ﴾ 18 ﴿
का-ल हि-य अ़सा-य अ-तवक्क-उ अ़लैहा व अहुश्शु बिहा अ़ला-ग़-नमी व लि – य फ़ीहा मआरिबु उखरा
उत्तर दियाः ये मेरी लाठी है; मैं इसपर सहारा लेता हूँ, इससे अपनी बकरियों के लिए पत्ते झाड़ता हूँ तथा मेरी इसमें दूसरी आवश्यक्तायें (भी) हैं।
قَالَ أَلْقِهَا يَا مُوسَىٰ ﴾ 19 ﴿
का – ल अल्क़िहा या मूसा
कहाः इसे फेंकिए, हे मूसा!
فَأَلْقَاهَا فَإِذَا هِيَ حَيَّةٌ تَسْعَىٰ ﴾ 20 ﴿
फ़- अल्काहा फ़-इज़ा हि-य हय्यतुन् तस्आ
तो उसने उसे फेंक दिया और सहसा वह एक सर्प थी, जो दोड़ रहा था।
قَالَ خُذْهَا وَلَا تَخَفْ ۖ سَنُعِيدُهَا سِيرَتَهَا الْأُولَىٰ ﴾ 21 ﴿
का-ल खुज्हा व ला त-ख़फू सनुईदुहा सी-र तहल्- ऊला
कहाः पकड़ ले इसे, और डर नहीं, हम इसे फेर देंगे, इसकी प्रथम स्थिति की ओर।
وَاضْمُمْ يَدَكَ إِلَىٰ جَنَاحِكَ تَخْرُجْ بَيْضَاءَ مِنْ غَيْرِ سُوءٍ آيَةً أُخْرَىٰ ﴾ 22 ﴿
वज़्मुम् य-द-क इला जनाहि-क तख्रुज् बैज़ा-अ मिन् गैरि सूइन् आ-यतन् उख़रा
और अपना हाथ लगा दे अपनी कांख (बग़ल) की ओर, वह निकलेगा चमकता हुआ बिना किसी रोग के, ये दूसरा चमत्कार है।
لِنُرِيَكَ مِنْ آيَاتِنَا الْكُبْرَى ﴾ 23 ﴿
लिनुरि-य-क मिन् आयातिनल् कुब्रा
ताकि हम तुझे दिखायें, अपनी बड़ी निशानियाँ।
اذْهَبْ إِلَىٰ فِرْعَوْنَ إِنَّهُ طَغَىٰ ﴾ 24 ﴿
इज़्हब् इला फ़िरऔ़-न इन्नहू तग़ा *
तुम फ़िरऔन के पास जाओ, वह विद्रोही हो गया है।
قَالَ رَبِّ اشْرَحْ لِي صَدْرِي ﴾ 25 ﴿
का-ल रब्बिश् रह ली सद्री
मूसा ने प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! खोल दे, मेरे लिए मेरा सीना।
وَيَسِّرْ لِي أَمْرِي ﴾ 26 ﴿
व यस्सिर ली अम्री
तथा सरल कर दे, मेरे लिए मेरा काम।
وَاحْلُلْ عُقْدَةً مِّن لِّسَانِي ﴾ 27 ﴿
वह्लुल् अुक्द-तम् मिल्-लिसानी
और खोल दे, मेरी ज़ुबान की गाँठ।
وَاجْعَل لِّي وَزِيرًا مِّنْ أَهْلِي ﴾ 29 ﴿
वज्अ़ल् ली वज़ीरम्-मिन् अह़्ली
तथा बना दे, मेरा एक सहायक मेरे परिवार में से।
اشْدُدْ بِهِ أَزْرِي ﴾ 31 ﴿
शदुद् बिही अजूरी
उसके द्वारा दृढ़ कर दे मेरी शक्ति को।
وَأَشْرِكْهُ فِي أَمْرِي ﴾ 32 ﴿
व अश्रिक्हु फ़ी अमरी
और साझी बना दे, उसे मेरे काम में।
كَيْ نُسَبِّحَكَ كَثِيرًا ﴾ 33 ﴿
कै नुसब्बि-ह-क कसीरंव्
ताकि हम दोनों तेरी पवित्रता का गान अधिक करें।
وَنَذْكُرَكَ كَثِيرًا ﴾ 34 ﴿
व नज़्कु-र-क कसीरा
तथा तुझे अधिक स्मरण (याद) करें।
إِنَّكَ كُنتَ بِنَا بَصِيرًا ﴾ 35 ﴿
इन्न – क कुन्त बिना बसीरा
निःसंदेह, तू हमें भली प्रकार देखने-भालने वाला है।
قَالَ قَدْ أُوتِيتَ سُؤْلَكَ يَا مُوسَىٰ ﴾ 36 ﴿
का-ल क़द् ऊती-त सुअ्ल-क या मूसा
अल्लाह ने कहाः हे मूसा! तेरी सब माँग पूरी कर दी गयी।
وَلَقَدْ مَنَنَّا عَلَيْكَ مَرَّةً أُخْرَىٰ ﴾ 37 ﴿
व ल-क़द् मनन्ना अ़लै-क मर्रतन् उख्रा
और हम उपकार कर चुके हैं तुमपर एक बार और[1] (भी)। 1. यह उस समय की बात है जब मूसा का जन्म हुआ। उस समय फ़िरऔन का आदेश था कि बनी इस्राईल में जो भी शिशु जन्म ले, उसे वध कर दिया जाये।
إِذْ أَوْحَيْنَا إِلَىٰ أُمِّكَ مَا يُوحَىٰ ﴾ 38 ﴿
इज़ औहैना इला उम्मि- क मा यूहा
जब हमने उतार दिया, तेरी माँ के दिल में, जिसकी वह़्यी (प्रकाश्ना) की जा रही है।
أَنِ اقْذِفِيهِ فِي التَّابُوتِ فَاقْذِفِيهِ فِي الْيَمِّ فَلْيُلْقِهِ الْيَمُّ بِالسَّاحِلِ يَأْخُذْهُ عَدُوٌّ لِّي وَعَدُوٌّ لَّهُ ۚ وَأَلْقَيْتُ عَلَيْكَ مَحَبَّةً مِّنِّي وَلِتُصْنَعَ عَلَىٰ عَيْنِي ﴾ 39 ﴿
अनिक्ज़ि फीहि फित्ताबूति फक्ज़ि फ़ीहि फ़िल्यम्मि फल्युल्किहिल्-यम्मु बिस्साहिलि यअ्खुज्हु अदुव्वुल्ली व अदुव्वुल्लहू, व अल्कैतु अ़लै-क म-हब्बतम्-मिन्नी व लितुस्न- अ़ अ़ला ऐनी
कि इसे रख दे ताबूत (सन्दूक़) में, फिर उसे नदी में डाल दे, फिर नदी उसे किनारे लगा देगी, जिसे उठा लेगा मेरा शत्रु तथा उसका शत्रु[1] और मैंने डाल दिया तुझपर अपनी ओर से विशेष[2]प्रेम, ताकि तेरा पालन-पोषण मेरी रक्षा में हो। 1. इस से तात्पर्य मिस्र का राजा फ़िरऔन है। 2. अर्थात तुम्हें सब का प्रिय अथवा फ़िरऔन का भी प्रिय बना दिया।
إِذْ تَمْشِي أُخْتُكَ فَتَقُولُ هَلْ أَدُلُّكُمْ عَلَىٰ مَن يَكْفُلُهُ ۖ فَرَجَعْنَاكَ إِلَىٰ أُمِّكَ كَيْ تَقَرَّ عَيْنُهَا وَلَا تَحْزَنَ ۚ وَقَتَلْتَ نَفْسًا فَنَجَّيْنَاكَ مِنَ الْغَمِّ وَفَتَنَّاكَ فُتُونًا ۚ فَلَبِثْتَ سِنِينَ فِي أَهْلِ مَدْيَنَ ثُمَّ جِئْتَ عَلَىٰ قَدَرٍ يَا مُوسَىٰ ﴾ 40 ﴿
इज् तम्शी उख़्तु-क फ़-तकूलु हल् अदुल्लुकुम् अ़ला मंय्यक्फुलुहू फ़-रजअ्ना-क इला उम्मि-क कै तकर् र ऐनुहा व ला तहज़ न, व क़तल्-त नफ़्सन् फ़-नज्जैना क मिनल्-ग़म्मि व फ़तन्ना क फुतूनन्, फ़-लबिस् त सिनी-न फ़ी अह़्लि मद य-न सुम्-म जिअ् -त अला क़-दरिंय् या मूसा
जब चल रही थी तेरी बहन[1], फिर कह रही थीः क्या मैं तुम्हें उसे बता दूँ, जो इसका लालन-पालन करे? फिर हमने पुनः तुम्हें पहुँचा दिया तुम्हारी माँ के पास, ताकि उसकी आँख ठण्डी हो और उदासीन न हो तथा हे मूसा! तूने मार दिया एक व्यक्ति को, तो हमने तुझे मुक्त कर दिया चिन्ता[1]से और हमने तेरी भली-भाँति परीक्षा ली। फिर तू रह गया वर्षों मद्यन के लोगों में, फिर तू (मद्यन से) अपने निश्चित समय पर आ गया। 1. अर्थात संदूक़ के पीछे नदी के किनारे। 2. अर्थात एक फ़िरऔनी को मारा और वह मर गया, तो तुम मद्यन चले गये, इस का वर्णन सूरह क़स़स़ में आयेगा।
وَاصْطَنَعْتُكَ لِنَفْسِي ﴾ 41 ﴿
वस्त-नअ्तु-क लिनफ़्सी
और मैंने बना लिया है तुझे विश्ष अपने लिए।
اذْهَبْ أَنتَ وَأَخُوكَ بِآيَاتِي وَلَا تَنِيَا فِي ذِكْرِي ﴾ 42 ﴿
इज्हब् अन्-त व अखू क बिआयाती व ला तनिया फ़ी ज़िक्री
जा तू और तेरा भाई, मेरी निशानियाँ लेकर और दोनों आलस्य न करना मेरे स्मरण (याद) में।
اذْهَبَا إِلَىٰ فِرْعَوْنَ إِنَّهُ طَغَىٰ ﴾ 43 ﴿
इज्हबा इला फ़िरऔ-न इन्नहू तग़ा
तुम दोनों फ़िरऔन के पास जाओ, वास्तव में, वह उल्लंघन कर गया है।
فَقُولَا لَهُ قَوْلًا لَّيِّنًا لَّعَلَّهُ يَتَذَكَّرُ أَوْ يَخْشَىٰ ﴾ 44 ﴿
फ़कूला लहू कौलल्-लय्यिनल्-लअ़ल्लहू य-तज़क्करू औ यख़्शा
फिर उससे कोमल बोल बोलो, कदाचित् वह शिक्षा ग्रहण करे अथवा डरे।
قَالَا رَبَّنَا إِنَّنَا نَخَافُ أَن يَفْرُطَ عَلَيْنَا أَوْ أَن يَطْغَىٰ ﴾ 45 ﴿
क़ाला रब्बना इन्नना नख़ाफु अंय्यफरू-त अ़लैना औ अंय्यत्ग़ा
दोनों ने कहाः हे हमारे पालनहार! हमें भय है कि वह हमपर अत्याचार अथवा अतिक्रमण कर दे।
قَالَ لَا تَخَافَا ۖ إِنَّنِي مَعَكُمَا أَسْمَعُ وَأَرَىٰ ﴾ 46 ﴿
का-ल ला तख़ाफ़ा इन्ननी म अ़कुमा अस्मअु व अरा
उस (अल्लाह) ने कहाः तुम भय न करो, मैं तुम दोनों के साथ हूँ, सुनता तथा देखता हूँ।
فَأْتِيَاهُ فَقُولَا إِنَّا رَسُولَا رَبِّكَ فَأَرْسِلْ مَعَنَا بَنِي إِسْرَائِيلَ وَلَا تُعَذِّبْهُمْ ۖ قَدْ جِئْنَاكَ بِآيَةٍ مِّن رَّبِّكَ ۖ وَالسَّلَامُ عَلَىٰ مَنِ اتَّبَعَ الْهُدَىٰ ﴾ 47 ﴿
फ़अ्तियाहु फ़कूला इन्ना रसूला रब्बि-क फ़-अर्सिल् म- अ़ना बनी इस्राई-ल व ला तुअ्ज्जिब्हुम्, कद् जिअ्ना-क बिआयतिम् मिर्रब्बि-क, वस्सलामु अ़ला मनित्त-बअ़ल्-हुदा
तुम उसके पास जाओ और कहो कि हम तेरे पालनहार के रसूल हैं। अतः, हमारे साथ बनी इस्राईल को जाने दे और उन्हें यातना न दे, हम तेरे पास तेरे पालनहार की निशानी लाये हैं और शान्ति उसके लिए है, जो मार्गदर्शन का अनुसरण करे।
إِنَّا قَدْ أُوحِيَ إِلَيْنَا أَنَّ الْعَذَابَ عَلَىٰ مَن كَذَّبَ وَتَوَلَّىٰ ﴾ 48 ﴿
इन्ना कद् ऊहि-य इलैना अन्नल अज़ा-ब अला मन् कज़्ज़ -ब व तवल्ला
वास्तव में, हमारी ओर वह़्यी (प्रकाशना) की गई है कि यातना उसी के लिए है, जो झुठलाये और मुख फेरे।
قَالَ فَمَن رَّبُّكُمَا يَا مُوسَىٰ ﴾ 49 ﴿
का-ल फ़-मर्रब्बुकुमा या मूसा
उसने कहाः हे मूसा! कौन है तुम दोनों का पालनहार?
قَالَ رَبُّنَا الَّذِي أَعْطَىٰ كُلَّ شَيْءٍ خَلْقَهُ ثُمَّ هَدَىٰ ﴾ 50 ﴿
क़ा-ल रब्बुनल्लज़ी अअ्ता कुल् ल शैइन् ख़ल्क़हू सुम् -म हदा
मूसा ने कहाः हमारा पालनहार वह है, जिसने प्रत्येक वस्तु को उसका विशेष रूप प्रदान किया, फिर मार्गदर्शन[1] दिया। 1. आयत का भावार्थ यह है कि अल्लाह ने प्रत्येक जीव जन्तु के योग्य उस का रूप बनाया है। और उस के जीवन की आवश्यक्ता के अनुसार उसे खाने पीने तथा निवास की विधि समझा दी है।
قَالَ فَمَا بَالُ الْقُرُونِ الْأُولَىٰ ﴾ 51 ﴿
का-ल फ़मा बालुल्-कुरूनिल ऊला
उसने कहाः फिर उनकी दशा क्या होनी है, जो पूर्व के लोग हैं?
قَالَ عِلْمُهَا عِندَ رَبِّي فِي كِتَابٍ ۖ لَّا يَضِلُّ رَبِّي وَلَا يَنسَى ﴾ 52 ﴿
काल अिल्मुहा अिन्-द रब्बी फ़ी किताबिन् ला यज़िल्लु रब्बी व ला यन्सा
मूसा ने कहाः उसका ज्ञान मेरे पालनहार के पास एक लेख्य में सुरक्षित है, मेरा पालनहार न तो चूकता है और न[1] भूलता है। 1. अर्थात उन्हों ने जैसा किया होगा, उन के आगे उन का परिणाम आयेगा।
الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ مَهْدًا وَسَلَكَ لَكُمْ فِيهَا سُبُلًا وَأَنزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَخْرَجْنَا بِهِ أَزْوَاجًا مِّن نَّبَاتٍ شَتَّىٰ ﴾ 53 ﴿
अल्लज़ी ज अ़-ल लकुमुल्-अर्-ज़ मह्दंव-व स-ल-क लकुम् फ़ीहा सुबुलंव्व अन्ज़-ल मिनस्समा-इ मा-अन्, फ़- अख़रज्ना बिही अज्वाजम् मिन् नबातिन् शत्ता
जिसने तुम्हारे लिए धरती को बिस्तर बनाया और तुम्हारे चलने के लिए उसमें मार्ग बनाये और तुम्हारे लिए आकाश से जल बरसाया, फिर उसके द्वारा विभिन्न प्रकार की उपज निकाली।
كُلُوا وَارْعَوْا أَنْعَامَكُمْ ۗ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّأُولِي النُّهَىٰ ﴾ 54 ﴿
कुलू वरऔ़ अन्आ़-मकुम्, इन्- न फ़ी ज़ालि- क लआयातिल् लि – उलिन्नुहा *
तुम स्वयं खाओ तथा अपने पशुओं को चराओ, वस्तुतः, इसमें बहुत-सी निशानियाँ हैं बुध्दिमानों के लिए।
مِنْهَا خَلَقْنَاكُمْ وَفِيهَا نُعِيدُكُمْ وَمِنْهَا نُخْرِجُكُمْ تَارَةً أُخْرَىٰ ﴾ 55 ﴿
मिन्हा ख़लक़्नाकुम् व फ़ीहा नुअीदुकुम् व मिन्हा नुख्रिजुकुम् ता – रतन् उखरा
इसी (धरती) से हमने तुम्हारी उत्पत्ति की है, इसीमें तुम्हें वापस ले जायेंगे और इसीसे तुम सबको पुनः[1] निकालेंगे। 1. अर्थात प्रलय के दिन पुनः जीवित निकालेंगे।
وَلَقَدْ أَرَيْنَاهُ آيَاتِنَا كُلَّهَا فَكَذَّبَ وَأَبَىٰ ﴾ 56 ﴿
व ल-कद् अरैनाहु आयातिना कुल्लहा फ़-कज़्ज़-ब व अबा
और हमने उसे दिखा दी अपनी सभी निशानियाँ, फिर भी उसने झुठला दिया और नहीं माना।
قَالَ أَجِئْتَنَا لِتُخْرِجَنَا مِنْ أَرْضِنَا بِسِحْرِكَ يَا مُوسَىٰ ﴾ 57 ﴿
का-ल अजिअ्तना लितुख़रि-जना मिन् अरज़िना बिसिहरि-क या मूसा
उसने कहाः क्या तू हमारे पास इसलिए आया है कि हमें हमारी धरती (देश) से अपने जादू (के बल) से निकाल दे, हे मूसा?
فَلَنَأْتِيَنَّكَ بِسِحْرٍ مِّثْلِهِ فَاجْعَلْ بَيْنَنَا وَبَيْنَكَ مَوْعِدًا لَّا نُخْلِفُهُ نَحْنُ وَلَا أَنتَ مَكَانًا سُوًى ﴾ 58 ﴿
फ-लनअ् तियन्न-क बिसिहरिम्-मिस्लिही फ़ज्अल् बैनना व बैन – क मौअिदल् ला नुख्लिफुहू नह्नु व ला अन्-त मकानन् सुवा
फिर तो हम तेरे पास अवश्य इसीके समान जादू लायेंगे, अतः हमारे और अपने बीच एक समय निर्धारित कर ले, जिसके विरुध्द न हम करेंगे और न तुम, एक खुले मैदान में।
قَالَ مَوْعِدُكُمْ يَوْمُ الزِّينَةِ وَأَن يُحْشَرَ النَّاسُ ضُحًى ﴾ 59 ﴿
काल मौअिदुकुम यौमुज़्ज़ीनति व अंय्युह्श रन्नासु जुहा
मूसा ने कहाः तुम्हारा निर्धारित समय शोभा (उत्सव) का दिन[1] है तथा ये कि लोग दिन चढ़े एकत्र हो जायेँ। 1. इस से अभिप्राय उन का कोई वार्षिक उत्सव (मेले) का दिन था।
فَتَوَلَّىٰ فِرْعَوْنُ فَجَمَعَ كَيْدَهُ ثُمَّ أَتَىٰ ﴾ 60 ﴿
फ़- तवल्ला फ़िरऔनु फ़-ज-म-अ़ कैदहू सुम्-म अता
फिर फ़िरऔन लौट गया,[1] अपने हथकण्डे एकत्र किये और फिर आया। 1. मूसा के सत्य को न मान कर, मुक़ाबले की तैयारी में व्यस्त हो गया।
قَالَ لَهُم مُّوسَىٰ وَيْلَكُمْ لَا تَفْتَرُوا عَلَى اللَّهِ كَذِبًا فَيُسْحِتَكُم بِعَذَابٍ ۖ وَقَدْ خَابَ مَنِ افْتَرَىٰ ﴾ 61 ﴿
का – ल लहुम् मूसा वै-लकुम ला तफ़्तरू अ़लल्लाहि कज़िबन् फ्युस्हि-तकुम् बि-अ़ज़ाबिन व क़द्ख़ा-ब मनिफ़्तरा
मूसा ने उन (जादूगरों) से कहाः तुम्हारा विनाश हो! अल्लाह पर मिथ्या आरोप न लगाओ कि वह तुम्हारा किसी यातना द्वारा सर्वनाश कर दे और वह निष्फल ही रहा है, जिसने मिथ्यारोपण किया।
فَتَنَازَعُوا أَمْرَهُم بَيْنَهُمْ وَأَسَرُّوا النَّجْوَىٰ ﴾ 62 ﴿
फ़-तनाज़अू अम्-रहुम् बैनहुम् व अ-सर्रुन्नज्वा
फिर[1] उनके बीच विवाद हो गया और वे चुपके-चुपके गुप्त मंत्रणा करने लगे। 1. अर्थात मूसा (अलैहिस्सलाम) की बात सुन कर उन में मतभेद हो गया। कुछ ने कहा कि यह नबी की बात लग रही है। और कुछ ने कहा कि यह जादूगर है।
قَالُوا إِنْ هَٰذَانِ لَسَاحِرَانِ يُرِيدَانِ أَن يُخْرِجَاكُم مِّنْ أَرْضِكُم بِسِحْرِهِمَا وَيَذْهَبَا بِطَرِيقَتِكُمُ الْمُثْلَىٰ ﴾ 63 ﴿
कालू इन् हाज़ानि लसाहिरानि युरीदानि अंय्युख्रिजाकुम् मिन् अर्जिकुम् बिसिहरिहिमा व यज़्हबा बि-तरी-क़ति-कुमुल्-मुस्ला
कुछ ने कहाः ये दोनों वास्तव में, जादूगर हैं, दोनों चाहते हैं कि तुम्हें तुम्हारी धरती से अपने जादू द्वारा निकाल दें और तुम्हारी आदर्श प्रणाली का अन्त कर दें।
فَأَجْمِعُوا كَيْدَكُمْ ثُمَّ ائْتُوا صَفًّا ۚ وَقَدْ أَفْلَحَ الْيَوْمَ مَنِ اسْتَعْلَىٰ ﴾ 64 ﴿
फ़- अज्मिअू कैदकुम् सुम्मअ्तू सफ़्फ़न् व कद् अफ़्ल – हल्यौ – म मनिस्तअ्ला
अतः अपने सब उपाय एकत्र कर लो, फिर एक पंक्ति में होकर आ जाओ और आज वही सफल हो गया, जो ऊपर रहा।
قَالُوا يَا مُوسَىٰ إِمَّا أَن تُلْقِيَ وَإِمَّا أَن نَّكُونَ أَوَّلَ مَنْ أَلْقَىٰ ﴾ 65 ﴿
क़ालू या मूसा इम्मा अन् तुल्कि – य व इम्मा अन् नकू न अव्व-ल मन् – अल्क़ा
उन्होंने कहाः हे मूसा! तू फेंकता है या पहले हम फेंकें?
قَالَ بَلْ أَلْقُوا ۖ فَإِذَا حِبَالُهُمْ وَعِصِيُّهُمْ يُخَيَّلُ إِلَيْهِ مِن سِحْرِهِمْ أَنَّهَا تَسْعَىٰ ﴾ 66 ﴿
क़ा – ल बल् अल्कू फ़-इज़ा हिबालुहुम् व अिसिय्युहुम् युख़य्यलु इलैहि मिन् सिहरिहिम् अन्नहा तस्आ
मूसा ने कहाः बल्कि तुम्हीं फेंको। फिर उनकी रस्सियाँ तथा लाठियाँ उसे लग रही थीं कि उनके जादू (के बल) से दौड़ रही हैं।
فَأَوْجَسَ فِي نَفْسِهِ خِيفَةً مُّوسَىٰ ﴾ 67 ﴿
फ़- औज – स फ़ी नफ्सिही ख़ी फ़तम् – मूसा
इससे मूसा अपने मन में डर गया[1]। 1. मूसा अलैहिस्सलाम को यह भय हुआ कि लोग जादूगरों के धोखे में न आ जायें।
قُلْنَا لَا تَخَفْ إِنَّكَ أَنتَ الْأَعْلَىٰ ﴾ 68 ﴿
कुल्ना ला तख़फ् इन्न-क अन्तल्-अअ्ला
हमने कहाः डर मत, तूही ऊपर रहेगा।
وَأَلْقِ مَا فِي يَمِينِكَ تَلْقَفْ مَا صَنَعُوا ۖ إِنَّمَا صَنَعُوا كَيْدُ سَاحِرٍ ۖ وَلَا يُفْلِحُ السَّاحِرُ حَيْثُ أَتَىٰ ﴾ 69 ﴿
व अल्कि मा फ़ी यमीनि – क तल्क़फ् मा स-नअू, इन्नमा स-नअू कैदु साहिरिन्, व ला युफ्लिहुस्साहिरू हैसु अता
और फेंक दे, जो तेरे दायें हाथ में है, वह निगल जायेगा, जो कुछ उन्होंने बनाया है। वह केवल जादू का स्वाँग बनाकर लाए हैं तथा जादूगर सफल नहीं होता, जहाँ से आये।
فَأُلْقِيَ السَّحَرَةُ سُجَّدًا قَالُوا آمَنَّا بِرَبِّ هَارُونَ وَمُوسَىٰ ﴾ 70 ﴿
फ़- उल्कियस्स ह – रतु सुज्ज – दन् कालू आमन्ना बिरब्बि हारू – न व मूसा
अन्ततः, जादूगर सज्दे में गिर गये, उन्होंने कहा कि हम ईमान लाये हारून तथा मूसा के पालनहार पर।
قَالَ آمَنتُمْ لَهُ قَبْلَ أَنْ آذَنَ لَكُمْ ۖ إِنَّهُ لَكَبِيرُكُمُ الَّذِي عَلَّمَكُمُ السِّحْرَ ۖ فَلَأُقَطِّعَنَّ أَيْدِيَكُمْ وَأَرْجُلَكُم مِّنْ خِلَافٍ وَلَأُصَلِّبَنَّكُمْ فِي جُذُوعِ النَّخْلِ وَلَتَعْلَمُنَّ أَيُّنَا أَشَدُّ عَذَابًا وَأَبْقَىٰ ﴾ 71 ﴿
का – ल आमन्तुम् लहू कब् – ल अन् आज़ – न लकुम् इन्नहू ल कबीरू कुमुल्लज़ी अल्ल म कुमुस्- सिह्-र फ़-ल – उक़त्तिअ़न् – न ऐदि यकुम् व अर्जु – लकुम् मिन् खिलाफिंव् – व ल – उसल्लिबन्नकुम् फी जुजूअिन्नखलि व ल – तअ्लमुन् न अय्युना अशद्दु अ़ज़ाबंव् – व अब्का
फ़िरऔन बालाः क्या तुमने उसका विश्वास कर लिया, इससे पूर्व कि मैं तुम्हें आज्ञा दूँ? वास्तव में, वह तुम्हारा बड़ा (गुरू) है, जिसने तुम्हें जादू सिखाया है। तो मैं अवश्य कटवा दूँगा तुम्हारे हाथों तथा पावों को, विपरीत दिशा[1] से और तुम्हें सूली दे दूँगा खजूर के तनों पर तथा तुम्हें अवश्य ज्ञान हो जायेगा कि हममें से किसकी यातना अधिक कड़ी तथा स्थायी है। 1. अर्थात दाहिना हाथ और बायाँ पैर अथवा बायाँ हाथ और दाहिना पैर।
قَالُوا لَن نُّؤْثِرَكَ عَلَىٰ مَا جَاءَنَا مِنَ الْبَيِّنَاتِ وَالَّذِي فَطَرَنَا ۖ فَاقْضِ مَا أَنتَ قَاضٍ ۖ إِنَّمَا تَقْضِي هَٰذِهِ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا ﴾ 72 ﴿
कालू लन् नुअ्सि-र-क अ़ला मा जा अना मिनल् – बय्यिनाति वल्लज़ी फ़-त-रना फ़क्ज़ि मा अन्-त काज़िन्, इन्नमा तक़्ज़ी हाज़िहिल्- हयातद् – दुन्या
उन्होंने कहाः हम तुझे कभी उन खुली निशानियों (तर्कों) पर प्रधानता नहीं देंगे, जो हमारे पास आ गयी हैं और न उस (अल्लाह) पर, जिसने हमें पैदा किया है, तू जो करना चाहे, कर ले, तू बस इसी सांसारिक जीवन में आदेश दे सकता है।
إِنَّا آمَنَّا بِرَبِّنَا لِيَغْفِرَ لَنَا خَطَايَانَا وَمَا أَكْرَهْتَنَا عَلَيْهِ مِنَ السِّحْرِ ۗ وَاللَّهُ خَيْرٌ وَأَبْقَىٰ ﴾ 73 ﴿
इन्ना आमन्ना बिरब्बिना लिय्गफ़ि-र लना ख़तायाना व मा अक्रह्तना अ़लैहि मिनस्सिहरि, वल्लाहु ख़ैरूंव्-व अब्का
हम तो अपने पालनहार पर ईमान लाये हैं, ताकि वह क्षमा कर दे, हमारे लिए, हमारे पापों को तथा जिस जादू पर तूने हमें बाध्य किया और अल्लाह सर्वोत्तम तथा अनन्त[1] है। 1. और तेरा राज्य तथा जीवन तो साम्यिक है।
إِنَّهُ مَن يَأْتِ رَبَّهُ مُجْرِمًا فَإِنَّ لَهُ جَهَنَّمَ لَا يَمُوتُ فِيهَا وَلَا يَحْيَىٰ ﴾ 74 ﴿
इन्नहू मंय्यअ्ति रब्बहू मुजरिमन् फ़ – इन् – न लहू जहन्न-म, ला यमूतु फ़ीहा व ला यह़्या
वास्तव में, जो जायेगा अपने पालनहार के पास पापी बनकर, तो उसी के लिए नरक है, जिसमें न वह मरेगा और न जीवित रहेगा[1]। 1. अर्थात उसे जीवन का कोई सुख नहीं मिलेगा।
وَمَن يَأْتِهِ مُؤْمِنًا قَدْ عَمِلَ الصَّالِحَاتِ فَأُولَٰئِكَ لَهُمُ الدَّرَجَاتُ الْعُلَىٰ ﴾ 75 ﴿
व मंय्यअ्तिही मुअ्मिनन् कद् अ़मिलस्सालिहाति फ़ – उलाइ – क लहुमुद् द रजातुल अुला
तथा जो उसके पास ईमान लेकर आयेगा, तो उन्हीं के लिए उच्च श्रेणियाँ होंगी।
جَنَّاتُ عَدْنٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا ۚ وَذَٰلِكَ جَزَاءُ مَن تَزَكَّىٰ ﴾ 76 ﴿
जन्नातु अद्निन् तज्री मिन् तह़्तिहल्-अन्हारू ख़ालिदी – न फ़ीहा, व ज़ालि क जज़ा-उ मन् तज़क्का *
स्थायी स्वर्ग जिन में नहरें बहती होंगी, जिस में सदावासी होंगे, और यही उस का प्रतिफल है जो पवित्र हो गया।
وَلَقَدْ أَوْحَيْنَا إِلَىٰ مُوسَىٰ أَنْ أَسْرِ بِعِبَادِي فَاضْرِبْ لَهُمْ طَرِيقًا فِي الْبَحْرِ يَبَسًا لَّا تَخَافُ دَرَكًا وَلَا تَخْشَىٰ ﴾ 77 ﴿
व ल – कद् औहैना इला मूसा अन् अस्रि बिअिबादी फ़ज़रिब लहुम् तरीक़न फ़िल्बहरि य – बसल् ला तख़ाफु द-रकंव् – व ला तख़्शा
और हम ने मूसा की ओर वह्यी की, कि रातों-रात चल पड़ मेरे भक्तों को ले कर, और उन के लिये सागर में सूखा मार्ग बना ले [2], तुझे पा लिये जाने का कोई भय नहीं होगा और न डरेगा। 2. इस का सविस्तार वर्णन सूरह शुअरा 26 में आ रहा है।
فَأَتْبَعَهُمْ فِرْعَوْنُ بِجُنُودِهِ فَغَشِيَهُم مِّنَ الْيَمِّ مَا غَشِيَهُمْ ﴾ 78 ﴿
फ़-अत्ब-अ़हुम् फ़िरऔ़नु बिजुनूदिही फ़- ग़शि – यहुम् मिनल्- यम्मि मा ग़शि – यहुम्
फिर उन का पीछा किया फिरऔन ने अपनी सेना के साथ, तो उन पर सागर छा गया जैसा कुछ छा गया।
وَأَضَلَّ فِرْعَوْنُ قَوْمَهُ وَمَا هَدَىٰ ﴾ 79 ﴿
व अज़ल्-ल फ़िरऔ़नु क़ौ-महू व मा हदा
और कुपथ कर दिया फिरऔन ने अपनी जाति को और सुपथ नहीं दिखाया।
يَا بَنِي إِسْرَائِيلَ قَدْ أَنجَيْنَاكُم مِّنْ عَدُوِّكُمْ وَوَاعَدْنَاكُمْ جَانِبَ الطُّورِ الْأَيْمَنَ وَنَزَّلْنَا عَلَيْكُمُ الْمَنَّ وَالسَّلْوَىٰ ﴾ 80 ﴿
या बनी इस्राई-ल क़द् अन्जैनाकुम् मिन् अ़दुव्विकुम् व वाअ़द्नाकुम् जानिबत्तूरिल्-ऐम-न व नज़्ज़ल्ना अ़लैकुमुल्-मन्-न वस्सल्वा
हे इस्राईल के पुत्रो ! हम ने तुम्हें मुक्त कर दिया तुम्हारे शत्रु से, और वचन दिया तुम्हें तूर पर्वत से दाहिनी [3] ओर का, तथा तुम पर उतारा "मन्त्र" तथा "सलवा" | [4] 3 अर्थात् तुम पर तौरात उतारने के लिये । 4 मन्त्र तथा सल्वा के भाष्य के लिये देखियेः बकरा, आयतः 57|
كُلُوا مِن طَيِّبَاتِ مَا رَزَقْنَاكُمْ وَلَا تَطْغَوْا فِيهِ فَيَحِلَّ عَلَيْكُمْ غَضَبِي ۖ وَمَن يَحْلِلْ عَلَيْهِ غَضَبِي فَقَدْ هَوَىٰ ﴾ 81 ﴿
कुलू मिन् तय्यिबाति मा रज़क़्नाकुम् व ला तत्ग़ौ फ़ीहि फ़-यहिल्-ल अ़लैकुम् ग़-ज़बी व मंय्यहलिल् अ़लैहि ग़-ज़बी फ़-क़द् हवा
खाओ उन स्वच्छ चीज़ों में से जो जीविका हम ने तुम्हें दी है, तथा उल्लंघन न करो उस में, अन्यथा उतर जायेगा तुम पर मेरा प्रकोप । तथा जिस पर उतर जायेगा मेरा प्रकोप, तो निःसंदेह वह गिर गया।
وَإِنِّي لَغَفَّارٌ لِّمَن تَابَ وَآمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا ثُمَّ اهْتَدَىٰ ﴾ 82 ﴿
व इन्नी ल ग़फ़्फ़ारूल्-लिमन् ता-ब व आम-न व अ़मि-ल सालिहन् सुम्मह्-तदा
और मैं निश्चय बड़ा क्षमाशील हूँ उस के लिये जिस ने क्षमा याचना की, तथा ईमान लाया और सदाचार किया फिर सुपथ पर रहा।
وَمَا أَعْجَلَكَ عَن قَوْمِكَ يَا مُوسَىٰ ﴾ 83 ﴿
व मा अअ्ज-ल क अ़न् क़ौमि-क या मूसा
और हे मूसा ! क्या चीज़ तुम्हें ले आ अपनी जाति से पहले? [1] 1 अर्थात् तुम पर्वत की दाहिनी ओर अपनी जाति से पहले क्यों आ गये और उन्हें पीछे क्यों छोड़ दिया?
قَالَ هُمْ أُولَاءِ عَلَىٰ أَثَرِي وَعَجِلْتُ إِلَيْكَ رَبِّ لِتَرْضَىٰ ﴾ 84 ﴿
क़ा-ल हुम् उला-इ अ़ला अ-सरी व अ़जिल्तु इलै-क रब्बि लितरज़ा
उस ने कहाः वे मेरे पीछे आ ही रहे हैं, और मैं तेरी सेवा में शीघ्र आ गया, हे मेरे पालनहार ! ताकि तू प्रसन्न हो जाये।
قَالَ فَإِنَّا قَدْ فَتَنَّا قَوْمَكَ مِن بَعْدِكَ وَأَضَلَّهُمُ السَّامِرِيُّ ﴾ 85 ﴿
क़ा-ल फ़-इन्ना क़द् फ़तन्ना क़ौम-क मिम् बअ्दि-क व अज़ल्लहुमुस् – सामिरिय्यु
अल्लाह ने कहाः हम ने परीक्षा में डाल दिया तेरी जाति को तेरे (आने के) पश्चात्, और कुपथ कर दिया है उन को सामरी [2] ने। 2.सामरी बनी इस्राईल के एक व्यक्ति का नाम है।
فَرَجَعَ مُوسَىٰ إِلَىٰ قَوْمِهِ غَضْبَانَ أَسِفًا ۚ قَالَ يَا قَوْمِ أَلَمْ يَعِدْكُمْ رَبُّكُمْ وَعْدًا حَسَنًا ۚ أَفَطَالَ عَلَيْكُمُ الْعَهْدُ أَمْ أَرَدتُّمْ أَن يَحِلَّ عَلَيْكُمْ غَضَبٌ مِّن رَّبِّكُمْ فَأَخْلَفْتُم مَّوْعِدِي ﴾ 86 ﴿
फ़-र-ज-अ़ मूसा इला क़ौमिही ग़ज़्बा – न असिफ़न्, का – ल या क़ौमि अलम् यअिद्कुम् रब्बुकुम् वअ्दन् ह -सनन्, अ-फ़ता-ल अ़लैकुमुल्-अ़ह्दु अम् अरत्तुम् अंय्यहिल् – ल अ़लैकुम् ग़-ज़बुम् मिर्रब्बिकुम्फ़ – अख़्लफ़्तुम् मौअिदी
तो मूसा वापिस आया अपनी जाति की ओर अति कुद्ध-शोकातुर हो कर । उस ने कहाः हे मेरी जाति के लोगो ! क्या तुम्हें वचन नहीं दिया था तुम्हारे पालनहार ने एक अच्छा वचन?[3]तो क्या तुम्हें बहुत दिन लग [4] गये? अथवा तुम ने चाहा कि उतर जाये तुम पर कोई प्रकोप तुम्हारे पालनहार की ओर से? अतः तुम ने मेरे वचन [1] को भंग कर दिया। 3.अर्थात् धर्म-पुस्तक तौरात देने का वचन । 4.अर्थात् वचन की अवधि दीर्घ प्रतीत होने लगी। 1.अर्थात् मेरे वापिस आने तक, अल्लाह की इबादत पर स्थिर रहने की जो प्रतिज्ञा की थी।
قَالُوا مَا أَخْلَفْنَا مَوْعِدَكَ بِمَلْكِنَا وَلَٰكِنَّا حُمِّلْنَا أَوْزَارًا مِّن زِينَةِ الْقَوْمِ فَقَذَفْنَاهَا فَكَذَٰلِكَ أَلْقَى السَّامِرِيُّ ﴾ 87 ﴿
कालू मा अख़्लफ्ना मौअि-द-क बिमल्किना व लाकिन्ना हुम्मिल्ना औज़ारम् मिन् ज़ीनतिल् -क़ौमि फ – क़ज़फ़्नाहा फ़- कज़ालि- क अल्क़स् – सामिरिय्यु
उन्हों ने उत्तर दिया कि हम ने नहीं भंग किया है तेरा वचन अपनी इच्छा से, परन्तु हम पर लाद दिया गया था जाति [2] के आभूषणों का बोझ, तो हम ने उसे फेंक[3] दिया, और ऐसे ही फेंक [4] दिया सामरी ने । 2.जाति से अभिप्रेत फिरऔन की जाति है, जिन के आभूषण उन्हों ने उधार ले रखे थे। 3.अर्थात् अपने पास रखना नहीं चाहा, और एक अग्नि कुण्ड में फेंक दिया। 4.अर्थात् जो कुछ उस के पास था।
فَأَخْرَجَ لَهُمْ عِجْلًا جَسَدًا لَّهُ خُوَارٌ فَقَالُوا هَٰذَا إِلَٰهُكُمْ وَإِلَٰهُ مُوسَىٰ فَنَسِيَ ﴾ 88 ﴿
फ़- अख़्र – ज लहुम् अिज़्लन् ज – सदल् – लहू खुवारून् फ़क़ालू हाज़ा इलाहुकुम् व इलाहु मूसा फ़ – नसि – य
फिर वह [5] निकाल लाया उन के लिये एक बछड़े की मूर्ति जिस की गाय जैसी ध्वनि (आवाज़) थी, तो सब ने कहाः यह है तुम्हारा पूज्य तथा मूसा का पूज्य, (परन्तु) मूसा इसे भूल गया है। 5.अर्थात् सामरी ने आभुषणों को पिघला कर बछड़ा बना लिया।
أَفَلَا يَرَوْنَ أَلَّا يَرْجِعُ إِلَيْهِمْ قَوْلًا وَلَا يَمْلِكُ لَهُمْ ضَرًّا وَلَا نَفْعًا ﴾ 89 ﴿
अ फ़ला यरौ-न अल्ला यरजिअु इलैहिम् कौलंव् – व ला यम्लिकु लहुम् ज़ररंव – व ला नफ्आ़*
तो क्या वे नहीं देखते कि वह न उन की किसी बात का उत्तर देता है, और न अधिकार रखता है उन के लिये किसी हानि का न किसी लाभ का? [6] 6.फिर वह पूज्य कैसे हो सकता है?
وَلَقَدْ قَالَ لَهُمْ هَارُونُ مِن قَبْلُ يَا قَوْمِ إِنَّمَا فُتِنتُم بِهِ ۖ وَإِنَّ رَبَّكُمُ الرَّحْمَٰنُ فَاتَّبِعُونِي وَأَطِيعُوا أَمْرِي ﴾ 90 ﴿
व ल – क़द् का – ल लहुम् हारूनु मिन् क़ब्लु या क़ौमि इन्नमा फुतिन्तुम् बिही व इन् – न रब्बकुमुर् रह़्मानु फत्तबिअूनी व अतीअू अम्री
और कह दिया था हारून ने इस से पहले ही कि हे मेरी जाति के लोगो ! तुम्हारी परीक्षा की गई है इस के द्वारा, और वास्तव में तुम्हारा पालनहार अत्यंत कृपाशील है। अतः मेरा अनुसरण करो तथा मेरे आदेश का पालन करो।
قَالُوا لَن نَّبْرَحَ عَلَيْهِ عَاكِفِينَ حَتَّىٰ يَرْجِعَ إِلَيْنَا مُوسَىٰ ﴾ 91 ﴿
कालू लन् नब्र – ह अ़लैहि आ़किफ़ी – न हत्ता यर्जि – अ़ इलैना मूसा
उन्हों ने कहाः हम सब उसी के पुजारी रहेंगे जब तक (तूर से) हमारे पास मूसा वापिस न आ जाये ।
قَالَ يَا هَارُونُ مَا مَنَعَكَ إِذْ رَأَيْتَهُمْ ضَلُّوا ﴾ 92 ﴿
का-ल या हारूनु मा म-न अ़-क इज् रऐ – तहुम् जल्लू
मूसा ने कहाः हे हारून ! किस बात ने तुझे रोक दिया जब तू ने उन्हें देखा कि कुपथ हो गये?
أَلَّا تَتَّبِعَنِ ۖ أَفَعَصَيْتَ أَمْرِي ﴾ 93 ﴿
अल्ला तत्तबि-अ़नि, अ-फ़ अ़सै-त अम्री
कि मेरा अनुसरण न करे? क्या तू ने अवैज्ञा कर दी मेरे आदेश की?
قَالَ يَا ابْنَ أُمَّ لَا تَأْخُذْ بِلِحْيَتِي وَلَا بِرَأْسِي ۖ إِنِّي خَشِيتُ أَن تَقُولَ فَرَّقْتَ بَيْنَ بَنِي إِسْرَائِيلَ وَلَمْ تَرْقُبْ قَوْلِي ﴾ 94 ﴿
का – ल यब्नउम् – म ला तअ्खुज् बिलिह़् यती व ला बिरअ्सी इन्नी ख़शीतु अन् तकू-ल फ़र्रक्-त बै-न बनी इस्राई-ल व लम् तरकुब् क़ौली
उस ने कहाः मेरे माँ जाये भाई! मेरी दाढ़ी न पकड़ और न मेरा सिर । वास्तव में मुझे भय हुआ कि आप कहेंगे कि तू ने विभेद उत्पन्न कर दिया बनी इस्राईल में, और[1] प्रतीक्षा नहीं की मेरी बात (आदेश) की. 1.(देखियेः सूरह आराफ, आयतः 142)
قَالَ فَمَا خَطْبُكَ يَا سَامِرِيُّ ﴾ 95 ﴿
का-ल फ़मा ख़त्बु- क या सामिरिय्यु
(मूसा ने) पूछाः तेरा समाचार क्या है, हे सामरी?
قَالَ بَصُرْتُ بِمَا لَمْ يَبْصُرُوا بِهِ فَقَبَضْتُ قَبْضَةً مِّنْ أَثَرِ الرَّسُولِ فَنَبَذْتُهَا وَكَذَٰلِكَ سَوَّلَتْ لِي نَفْسِي ﴾ 96 ﴿
का – ल बसुरतु बिमा लम् यब्सुरू बिही फ़-क़बज्तु क़ब्ज़ – तम् मिन् अ- सरिर्रसूलि फ़- नबज्तुहा व कज़ालि- क सव्वलत् ली नफ़्सी
उस ने कहाः मैं ने वह चीज़ देखी जिसे उन्हों ने नहीं देखा, तो मैं ने लेली एक मुट्ठी रसूल के पचिन्ह से, फिर उसे फेंक दिया, और इसी प्रकार सुझा दिया मुझे[2] मेरे मन ने । 2.अधिकांश भाष्यकारों ने रसूल से अभिप्राय जिब्रील (फरिश्ता) लिया है। और अर्थ यह है कि सामरी ने यह बात बनाई कि जब उस ने फिरऔन और उस की सेना के डूबने के समय जिब्रील (अलैहिस्सलाम) को घोड़े पर सवार वहाँ देखा तो उन के घोड़े के पचिन्ह की मिट्टी रख ली। और जब सोने का बछड़ा बना कर उस धूल को उस पर फेंक दिया तो उस के प्रभाव से उस में से एक प्रकार की आवाज़ निकलने लगी जो उन के कुपथ होने का कारण बनी।
قَالَ فَاذْهَبْ فَإِنَّ لَكَ فِي الْحَيَاةِ أَن تَقُولَ لَا مِسَاسَ ۖ وَإِنَّ لَكَ مَوْعِدًا لَّن تُخْلَفَهُ ۖ وَانظُرْ إِلَىٰ إِلَٰهِكَ الَّذِي ظَلْتَ عَلَيْهِ عَاكِفًا ۖ لَّنُحَرِّقَنَّهُ ثُمَّ لَنَنسِفَنَّهُ فِي الْيَمِّ نَسْفًا ﴾ 97 ﴿
क़ा – ल फ़ज़्हब् फ़ – इन् – न ल-क फ़िल्हयाति अन् तकू – ल ला मिसा – स व इन् – न ल-क मौअिदल् लन् तुख़्ल – फ़हू वन्जुर इला इलाहि – कल्लज़ी ज़ल्- त अ़लैहि आ़किफन्, लनु – हर्रिकन्नहू सुम् – म ल – नन्सिफ़न्नहू फ़िल्यम्मि नस्फ़ा
मूसा ने कहाः जा तेरे लिये जीवन में यह होना है कि तू कहता रहेः मुझे स्पर्श न करना[1]। तथा तेरे लिये एक और [2] वचन है जिस के विरुद्ध कदापि न होगा, और अपने पूज्य को देख जिस का पुजारी बना रहा, हम अवश्य उसे जला देंगे, फिर उसे उड़ा देंगे नदी में चूर-चूर कर के। 1.अर्थात् मेरे समीप न आना और न मुझे छूना, मैं अछूत हूँ। 2.अर्थात् परलोक की यातना का।
إِنَّمَا إِلَٰهُكُمُ اللَّهُ الَّذِي لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۚ وَسِعَ كُلَّ شَيْءٍ عِلْمًا ﴾ 98 ﴿
इन्नमा इलाहुकुमुल्लाहुल्लज़ी ला इला – ह इल्ला हु – व वसि – अ़ कुल् – ल शैइन् अिल्मा
निःसंदेह तुम सभी का पूज्य बस अल्लाह है, कोई पूज्य नहीं है उस के सिवा। वह समोये हुये है प्रत्येक वस्तु को (अपने) ज्ञान में।
كَذَٰلِكَ نَقُصُّ عَلَيْكَ مِنْ أَنبَاءِ مَا قَدْ سَبَقَ ۚ وَقَدْ آتَيْنَاكَ مِن لَّدُنَّا ذِكْرًا ﴾ 99 ﴿
कज़ालि- क नकुस्सु अ़लैक मिन् अम्बा – इ मा क़द् स-ब-क व कद् आतैना – क मिल्लदुन्ना ज़िक्रा
इसी प्रकार (हे नबी!) हम आप के समक्ष विगत समाचारों में से कुछ का वर्णन कर रहे हैं, और हम ने आप को प्रदान कर दी है अपने पास से एक शिक्षा (क़ुरआन )।
مَّنْ أَعْرَضَ عَنْهُ فَإِنَّهُ يَحْمِلُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وِزْرًا ﴾ 100 ﴿
मन् अअ्र – ज़ अन्हु फ़ – इन्नहू यह्मिलु यौमल् – क़ियामति विज़्रा
जो उस से मुँह फेरेगा तो वह निश्चय प्रलय के दिन लादे[3] हुये होगा भारी बोझ । 3.अर्थात पापों का बोझ ।
خَالِدِينَ فِيهِ ۖ وَسَاءَ لَهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ حِمْلًا ﴾ 101 ﴿
ख़ालिदी-न फ़ीहि व सा अ लहुम् यौमल क़ियामति हिम्ला
वे सदा रहने वाले होंगे उस में, और प्रलय के दिन उन के लिये बुरा बोझ होगा।
يَوْمَ يُنفَخُ فِي الصُّورِ ۚ وَنَحْشُرُ الْمُجْرِمِينَ يَوْمَئِذٍ زُرْقًا ﴾ 102 ﴿
यौ-म युन्फ़खु फिस्सूरि व नह्शुरूल् – मुज्रिमी – न यौमइज़िन् जुरका
जिस दिन फूंक दिया जायेगा सूर [1] (नरसिंघा) में, और हम एकत्र कर देंगे पापियों को उस दिन इस दशा में कि उन की आँखें (भय से) नीली होंगी। 1.«सूर का अर्थ नरसिंघा है, जिस में अल्लाह के आदेश से एक फरिश्ता इस्राफील अलैहिस्सलाम फूकेगा, और प्रलय आ जायेगी। (मुस्नद अह्मदः 2191) और पुनः फूकेगा तो सब जीवित हो कर हश्र के मैदान में आ जायेंगे।
يَتَخَافَتُونَ بَيْنَهُمْ إِن لَّبِثْتُمْ إِلَّا عَشْرًا ﴾ 103 ﴿
य – तख़ाफ़तू – न बैनहुम् इल्लबिस्तुम् इल्ला अश्रा
वे आपस में चुपके-चुपके कहेंगे कि तुम (संसार में) बस दस दिन रहे हो।
نَّحْنُ أَعْلَمُ بِمَا يَقُولُونَ إِذْ يَقُولُ أَمْثَلُهُمْ طَرِيقَةً إِن لَّبِثْتُمْ إِلَّا يَوْمًا ﴾ 104 ﴿
नह्नु अअ्लमु बिमा यकूलू – न इज् यकूलु अम्सलुहुम् तरी – कतन् इल्लबिस्तुम् इल्ला यौमा *
हम भली-भाँति जानते हैं, जो कुछ वह कहेंगे, जिस समय कहेगा उन में से सब से चतुर कि तुम केवल एक ही दिन रहे[2] हो। 2.अर्थात् उन्हें संसारिक जीवन क्षण दो क्षण प्रतीत होगा।
وَيَسْأَلُونَكَ عَنِ الْجِبَالِ فَقُلْ يَنسِفُهَا رَبِّي نَسْفًا ﴾ 105 ﴿
व यस् अलून – क अ़निल् – जिबालि फ़कुल यन्सिफुहा रब्बी नस्फ़ा
वे आप से प्रश्न कर रहे हैं पर्वतों के संबन्ध में? आप कह दें कि उड़ा देगा उन्हें मेरा पालनहार चूर-चूर कर के ।
فَيَذَرُهَا قَاعًا صَفْصَفًا ﴾ 106 ﴿
फ़ – य – ज़रूहा काअ़न् सफ़्सफ़ा
फिर धरती को छोड़ देगा सम्तल मैदान बना कर ।
لَّا تَرَىٰ فِيهَا عِوَجًا وَلَا أَمْتًا ﴾ 107 ﴿
ला तरा फ़ीहा अि – वजंव् व ला अम्ता
तुम नहीं देखोगे उस में कोई टेढ़ापन और न नीच-ऊँच ।
يَوْمَئِذٍ يَتَّبِعُونَ الدَّاعِيَ لَا عِوَجَ لَهُ ۖ وَخَشَعَتِ الْأَصْوَاتُ لِلرَّحْمَٰنِ فَلَا تَسْمَعُ إِلَّا هَمْسًا ﴾ 108 ﴿
यौमइजिंय् – यत्तबिअूनद्दाअि-य ला अि – व – ज लहू व ख़-श-अ़तिल् – अस्वातु लिर्रहमानि फ़ला तस्मअु इल्ला हम्सा
उस दिन लोग पीछे चलेंगे पुकारने वाले के, कोई उस से कतरायेगा नहीं, और धीमी हो जायेंगी आवाजें अत्यंत कृपाशील के लिये, फिर तुम नहीं सुनोगे कानाफूसी की आवाज़ के सिवा ।
يَوْمَئِذٍ لَّا تَنفَعُ الشَّفَاعَةُ إِلَّا مَنْ أَذِنَ لَهُ الرَّحْمَٰنُ وَرَضِيَ لَهُ قَوْلًا ﴾ 109 ﴿
यौमइज़िल् – ला तन्फ़अुश्शफ़ा- अतु इल्ला मन् अज़ि – न लहुर्रह्मानु व रज़ि – य लहू क़ौला
उस दिन लाभ नहीं देगी सिफारिश परन्तु जिसे आज्ञा दे अत्यंत कृपाशील, और प्रसन्न हो उस के [1]लिये बात करने से।
يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَلَا يُحِيطُونَ بِهِ عِلْمًا ﴾ 110 ﴿
यअ्लमु मा बै-न ऐदीहिम् व मा ख़ल्क़हुम् व ला युहीतू-न बिही अिल्मा
वह जानता है जो कुछ उन के आगे तथा पीछे है, और वे उस का पूरा ज्ञान नहीं रखते ।
وَعَنَتِ الْوُجُوهُ لِلْحَيِّ الْقَيُّومِ ۖ وَقَدْ خَابَ مَنْ حَمَلَ ظُلْمًا ﴾ 111 ﴿
व अ़-नतिल्-वुजूहु लिल्हय्यिल्-क़य्यूमि, व क़द्ख़ा -ब मन् ह-म ल जुल्मा
وَمَن يَعْمَلْ مِنَ الصَّالِحَاتِ وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَلَا يَخَافُ ظُلْمًا وَلَا هَضْمًا ﴾ 112 ﴿
व मंय्य अ्मल् मिनस्सालिहाति व हु-व मुअ् मिनुन् फला यख़ाफु जुल्मंव्-व ला हज़्मा
وَكَذَٰلِكَ أَنزَلْنَاهُ قُرْآنًا عَرَبِيًّا وَصَرَّفْنَا فِيهِ مِنَ الْوَعِيدِ لَعَلَّهُمْ يَتَّقُونَ أَوْ يُحْدِثُ لَهُمْ ذِكْرًا ﴾ 113 ﴿
व कज़ालि क अन्ज़ल्लाहु कुरआनन् अ़-रबिय्यंव्-व सर्रफ़्ना फीहि मिनल्-वईदि लअ़ल्लहुम् यत्तकू-न औ युह्दिसु लहुम् ज़िक्रा
فَتَعَالَى اللَّهُ الْمَلِكُ الْحَقُّ ۗ وَلَا تَعْجَلْ بِالْقُرْآنِ مِن قَبْلِ أَن يُقْضَىٰ إِلَيْكَ وَحْيُهُ ۖ وَقُل رَّبِّ زِدْنِي عِلْمًا ﴾ 114 ﴿
फ़-तआ़लल्लाहुल मलिकुल्-हक़्कु व ला तअ्जल् बिलकुरआनि मिन् क़ब्लि अंय्युक्ज़ा इलै-क वह़्युहू व कुर्रब्बि जिद्नी अिल्मा
وَلَقَدْ عَهِدْنَا إِلَىٰ آدَمَ مِن قَبْلُ فَنَسِيَ وَلَمْ نَجِدْ لَهُ عَزْمًا ﴾ 115 ﴿
वल – क़द् अहिद्ना इला आद-म मिन् क़ब्लु फ़-नसि – य व लम् नजिद् लहू अ़ज़्मा*
وَإِذْ قُلْنَا لِلْمَلَائِكَةِ اسْجُدُوا لِآدَمَ فَسَجَدُوا إِلَّا إِبْلِيسَ أَبَىٰ ﴾ 116 ﴿
व इज् कुल्ना लिल्मलाइ कतिस्जुदू लिआद-म फ़-स-जदू इल्ला इब्ली-स, अबा
فَقُلْنَا يَا آدَمُ إِنَّ هَٰذَا عَدُوٌّ لَّكَ وَلِزَوْجِكَ فَلَا يُخْرِجَنَّكُمَا مِنَ الْجَنَّةِ فَتَشْقَىٰ ﴾ 117 ﴿
फ़कुल्ना या आदमु इन् – न हाज़ा अ़दुव्वुल- ल- क व लिज़ौजि-क फ़ला युख़्रिजन्नकुमा मिनल् – जन्नति फ़-तश्का
إِنَّ لَكَ أَلَّا تَجُوعَ فِيهَا وَلَا تَعْرَىٰ ﴾ 118 ﴿
इन् – न ल – क अल्ला तजू – अ़ फ़ीहा व ला तअ्-रा
وَأَنَّكَ لَا تَظْمَأُ فِيهَا وَلَا تَضْحَىٰ ﴾ 119 ﴿
व अन्न – क ला तज़्मउ फ़ीहा व ला तज़्हा
فَوَسْوَسَ إِلَيْهِ الشَّيْطَانُ قَالَ يَا آدَمُ هَلْ أَدُلُّكَ عَلَىٰ شَجَرَةِ الْخُلْدِ وَمُلْكٍ لَّا يَبْلَىٰ ﴾ 120 ﴿
फ़- वस्व – स इलैहिश्शैतानु का – ल या आदमु हल अदुल्लु – क अ़ला श- ज-रतिल् – खुल्दि व मुल्किल् – ला यब्ला
فَأَكَلَا مِنْهَا فَبَدَتْ لَهُمَا سَوْآتُهُمَا وَطَفِقَا يَخْصِفَانِ عَلَيْهِمَا مِن وَرَقِ الْجَنَّةِ ۚ وَعَصَىٰ آدَمُ رَبَّهُ فَغَوَىٰ ﴾ 121 ﴿
फ़ अ – कला मिन्हा फ़- बदत् लहुमा सौआतुहुमा व तफ़िक़ा यख़्सिफ़ानि अ़लैहिमा मिंव्व – रकिल्- जन्नति, व अ़सा आदमु रब्बहू फ़-ग़वा
ثُمَّ اجْتَبَاهُ رَبُّهُ فَتَابَ عَلَيْهِ وَهَدَىٰ ﴾ 122 ﴿
सुम्मज्तबाहु रब्बहू फ़ता-ब अ़लैहि व हदा
قَالَ اهْبِطَا مِنْهَا جَمِيعًا ۖ بَعْضُكُمْ لِبَعْضٍ عَدُوٌّ ۖ فَإِمَّا يَأْتِيَنَّكُم مِّنِّي هُدًى فَمَنِ اتَّبَعَ هُدَايَ فَلَا يَضِلُّ وَلَا يَشْقَىٰ ﴾ 123 ﴿
कालम्बिता मिन्हा जमीअ़म् बअ्जुकुम् लिबअ्ज़िन् अ़दुव्वुन् फ़- इम्मा यअ्ति – यन्नकुम् मिन्नी हुदन् फ़ – मनित्त – ब अ हुदा-य फ़ला यजिल्लु व ला यश्का
وَمَنْ أَعْرَضَ عَن ذِكْرِي فَإِنَّ لَهُ مَعِيشَةً ضَنكًا وَنَحْشُرُهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ أَعْمَىٰ ﴾ 124 ﴿
व मन् अअ्र – ज़ अ़न् ज़िक्री फ़ इन् – न लहू मई – शतन् ज़न्कंव् व नह्शुरूहू यौमल्-कियामति अअ्मा
قَالَ رَبِّ لِمَ حَشَرْتَنِي أَعْمَىٰ وَقَدْ كُنتُ بَصِيرًا ﴾ 125 ﴿
क़ाला रब्बि लिमा हशरतनी आ'मा व क़द कुंतु बसीरा
قَالَ كَذَٰلِكَ أَتَتْكَ آيَاتُنَا فَنَسِيتَهَا ۖ وَكَذَٰلِكَ الْيَوْمَ تُنسَىٰ ﴾ 126 ﴿
का-ल कज़ालि-क अतत् क आयातुना फ़-नसीतहा व कज़ालिकल्-यौ-म तुन्सा
وَكَذَٰلِكَ نَجْزِي مَنْ أَسْرَفَ وَلَمْ يُؤْمِن بِآيَاتِ رَبِّهِ ۚ وَلَعَذَابُ الْآخِرَةِ أَشَدُّ وَأَبْقَىٰ ﴾ 127 ﴿
व कज़ालि-क नज्ज़ी मन् अस्-र-फ़ व लम् युअ्मिम् – बिआयाति रब्बिही, व ल-अ़ज़ाबुल आख़िरति अशद्दु व अब्का
أَفَلَمْ يَهْدِ لَهُمْ كَمْ أَهْلَكْنَا قَبْلَهُم مِّنَ الْقُرُونِ يَمْشُونَ فِي مَسَاكِنِهِمْ ۗ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّأُولِي النُّهَىٰ ﴾ 128 ﴿
अ – फलम् यह्दि लहुम् कम् अह़्लक्ना क़ब्लहुम् मिनल् – कुरूनि यम्शू – न फ़ी मसाकिनिहिम्, इन् – न फ़ी ज़ालि- क लआयातिल् लिउलिन्नुहा *
وَلَوْلَا كَلِمَةٌ سَبَقَتْ مِن رَّبِّكَ لَكَانَ لِزَامًا وَأَجَلٌ مُّسَمًّى ﴾ 129 ﴿
व लौ ला कलि-मतुन् स-बक़त् मिर्-रब्बि-क लका-न लिज़ामंव्व अ-जलुम्-मुसम्मा
فَاصْبِرْ عَلَىٰ مَا يَقُولُونَ وَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ قَبْلَ طُلُوعِ الشَّمْسِ وَقَبْلَ غُرُوبِهَا ۖ وَمِنْ آنَاءِ اللَّيْلِ فَسَبِّحْ وَأَطْرَافَ النَّهَارِ لَعَلَّكَ تَرْضَىٰ ﴾ 130 ﴿
फ़स्बिर् अ़ला मा यकूलू-न व सब्बिह् बि-हमिद रब्बि – क कब्-ल तुलूअिश्शम्सि व कब्-ल गुरूबिहा व मिन् आनाइल्लैलि फ़-सब्बिह् व अतराफन्नहारि लअ़ल्ल-क तरज़ा