सूरह सबा के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है, इस में 54 आयतें हैं।
- इस में सबा जाति के चर्चा के कारण इसे यह नाम दिया गया है।
- इस में संदेहों को दूर करते हुये अल्लाह का परिचय ऐसे कराया गया है जिस से तौहीद तथा आख़िरत के प्रति विश्वास हो जाता है।
- इस में दावूद तथा सुलैमान (अलैहिस्सलाम) पर अल्लाह के पुरस्कारों और उन पर उन के आभारी होने का वर्णन तथा सबा जाति की कृतघ्नता और उस के दुष्परिणाम को बताया गया है।
- शिर्क का खण्डन तथा विरोधियों का जवाब देते हुये परलोक के कुछ तथ्य प्रस्तुत किये गये हैं।
- सूरह के अन्त में सोच-विचार कर के निर्णय करने का सुझाव दिया गया है। और इस बात पर सावधान किया गया है कि समय निकल जाने पर पछतावे के सिवा कुछ हाथ नहीं आयेगा।
सूरह सबा | Surah Saba in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ وَلَهُ الْحَمْدُ فِي الْآخِرَةِ ۚ وَهُوَ الْحَكِيمُ الْخَبِيرُ ﴾ 1 ﴿
अल्हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी लहू मा फ़िस्समावाति व मा फ़िल्अर्ज़ि व लहुल्- हम्दु फ़िल्- आख़िरति, व हुवल् हकीमुल् – ख़बीर
सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसके अधिकार में है, जो आकाशों तथा धरती में है और उसी की प्रशंसा है आख़िरत (परलोक) में और वही उपाय जानने वाला, सबसे सूचित है।
يَعْلَمُ مَا يَلِجُ فِي الْأَرْضِ وَمَا يَخْرُجُ مِنْهَا وَمَا يَنزِلُ مِنَ السَّمَاءِ وَمَا يَعْرُجُ فِيهَا ۚ وَهُوَ الرَّحِيمُ الْغَفُورُ ﴾ 2 ﴿
यअ्लमु मा यलिजु फ़िल्अर्ज़ि व मा यख़्रुजु मिन्हा व मा यन्ज़िलु मिनस्समा – इ व मा यअ्-रूजु फ़ीहा, व हुवर्रहीमुल् – ग़फ़ूर
वह जानता है, जो कुछ घुसता है धरती के भीतर तथा जो[1] निकलता है उससे तथा जो उतरता है आकाश[2] से और चढ़ता है उसमें[3] तथा वह अति दयावान्, क्षमी है। 1. जैसे वर्षा, कोष और निधि आदि। 2. जैसे वर्षा, ओला, फ़रिश्ते और आकाशीय पुस्तकें आदि। 3. जैसे फ़रिश्ते तथा कर्म।
وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لَا تَأْتِينَا السَّاعَةُ ۖ قُلْ بَلَىٰ وَرَبِّي لَتَأْتِيَنَّكُمْ عَالِمِ الْغَيْبِ ۖ لَا يَعْزُبُ عَنْهُ مِثْقَالُ ذَرَّةٍ فِي السَّمَاوَاتِ وَلَا فِي الْأَرْضِ وَلَا أَصْغَرُ مِن ذَٰلِكَ وَلَا أَكْبَرُ إِلَّا فِي كِتَابٍ مُّبِينٍ ﴾ 3 ﴿
व क़ालल्लज़ी-न क- फ़रू ला तअ्तीनस्सा – अ़तु क़ुल् बला व रब्बी ल-तअ्ति-यन्नकुम् आ़लिमिल्-ग़ैबि ला यअ्ज़ुबु अ़न्हु मिस्क़ालु ज़र्रतिन् फिस्समावाति व ला फ़िल्अर्ज़ि व ला अस्-ग़रु मिन् ज़ालि-क व ला अक्बरु इल्ला फ़ी किताबिम् – मुबीन
तथा कहा काफ़िरों ने कि हमपर प्रलय नहीं आयेगी। आप कह दें: क्यों नहीं? मेरे पालनहार की शपथ! -वह तुमपर अवश्य आयेगी- जो परोक्ष का ज्ञानी है। नहीं छुपा रह सकता उससे कण बराबर (भी) आकाशों तथा धरती में, न उससे छोटी कोई चीज़ और न बड़ी, किन्तु, वह खुली पुस्तक में (अंकित) है।[1] 1. अर्थात लौह़े मह़्फ़ूज़ (सुरक्षित पुस्तक) में।
لِّيَجْزِيَ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ ۚ أُولَٰئِكَ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَرِزْقٌ كَرِيمٌ ﴾ 4 ﴿
लि-यज्ज़ियल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति, उलाइ-क लहुम् मग़्फ़ि-रतुंव्-व रिज़्क़ुन् करीम
ताकि[1] वह बदला दे उन्हें, जो ईमान लाये तथा सुकर्म किये। उन्हीं के लिए क्षमा तथा सम्मानित जीविका है। 1. यह प्रलय के होने का कारण है।
وَالَّذِينَ سَعَوْا فِي آيَاتِنَا مُعَاجِزِينَ أُولَٰئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ مِّن رِّجْزٍ أَلِيمٌ ﴾ 5 ﴿
वल्लज़ी-न सऔ़ फ़ी आयातिना मुआ़जिज़ी – न उलाइ-क लहुम् अ़ज़ाबुम् मिर्रिज्ज़िन् अलीम
तथा जिन्होंने प्रयत्न किये हमारी आयतों में विवश[1] करने का, तो यही हैं, जिनके लिए यातना है अति घोर दुःखदायी। 1. अर्थात हमारी आयतों से रोकते हैं और समझते हैं कि हम उन को पकड़ने से विवश होंगे।
وَيَرَى الَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ الَّذِي أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ هُوَ الْحَقَّ وَيَهْدِي إِلَىٰ صِرَاطِ الْعَزِيزِ الْحَمِيدِ ﴾ 6 ﴿
व यरल्लज़ी- न ऊतुल्-अिल्मल्लज़ी उन्ज़ि-ल इलै-क मिर्रब्बि-क हुवल् – हक़् क़ व यह्दी इला सिरातिल् अ़ज़ीज़िल्-हमीद
तथा (साक्षात) देख[1] लेंगे वे जिन्हें उसका ज्ञान दिया गया है, जो अवतरित किया गया है आपकी ओर आपके पालनहार की ओर से। वही सत्य है तथा सुपथ दर्शाता है, अति प्रभुत्वशाली, प्रशंसित का सुपथ। 1. अर्थात प्रलय के दिन की क़ुर्आन से जो सूचना दी है वह साक्षात सत्य है।
وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا هَلْ نَدُلُّكُمْ عَلَىٰ رَجُلٍ يُنَبِّئُكُمْ إِذَا مُزِّقْتُمْ كُلَّ مُمَزَّقٍ إِنَّكُمْ لَفِي خَلْقٍ جَدِيدٍ ﴾ 7 ﴿
व क़ालल्लज़ी – न क-फ़रू हल् नदुल्लुकुम् अ़ला रजुलिंय् – युनब्बिउकुम् इज़ा मुज़्ज़िक़् तुम् कुल्-ल मुमज़्ज़क़िन् इन्नकुम् लफ़ी ख़ाल्क़िन् जदीद
तथा काफ़िरों ने कहाः क्या हम तुम्हें एक ऐसे व्यक्ति को बतायें, जो तुम्हें सूचना देता है कि जब तुम पूर्णतः चूर-चूर हो जाओगे, तो अवश्य तुम एक नई उत्पत्ति में होगे?
أَفْتَرَىٰ عَلَى اللَّهِ كَذِبًا أَم بِهِ جِنَّةٌ ۗ بَلِ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ فِي الْعَذَابِ وَالضَّلَالِ الْبَعِيدِ ﴾ 8 ﴿
अफ़्तरा अ़लल्लाहि कज़िबन् अम् बिही जिन्नतुन्, बलिल्लज़ी – न ला युअ्मिनू-न बिल्- आख़िरति फिल्अज़ाबि वज़्ज़लालिल्- बईद
उसने बना ली है अल्लाह पर एक मिथ्या बात अथवा वह पागल हो गया है। बल्कि जो विश्वास (ईमान) नहीं रखते आख़िरत (परलोक) पर, वे यातना[1] तथा दूर के कुपथ में हैं। 1. अर्थात इस का दुष्परिणाम नरक की यातना है।
أَفَلَمْ يَرَوْا إِلَىٰ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُم مِّنَ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ ۚ إِن نَّشَأْ نَخْسِفْ بِهِمُ الْأَرْضَ أَوْ نُسْقِطْ عَلَيْهِمْ كِسَفًا مِّنَ السَّمَاءِ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً لِّكُلِّ عَبْدٍ مُّنِيبٍ ﴾ 9 ﴿
अ – फ़लम् यरौ इला मा बै-न ऐदीहिम् व मा ख़ल्फ़हुम् मिनस्- समा- इ वल्अज़ि, इन्न- शअ् नख़्सिफ़् बिहिमुल् – अर्-ज़ औ नुस्क़ित् अ़लैहिम् कि- सफ़म् मिनस्समा – इ, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआ-यतल् – लिकुल्लि अ़ब्दिम्- मुनीब
क्या उन्होंने नहीं देखा उसकी ओर, जो उनके आगे तथा उनके पीछे आकाश और धरती है। यदि हम चाहें, तो धंसा दें उनके सहित धरती को अथवा गिरा दें उनपर कोई खण्ड आकाश से। वास्तव में, इसमें एक बड़ी निशानी है प्रत्येक भक्त के लिए, जो ध्यानमग्न हो।
وَلَقَدْ آتَيْنَا دَاوُودَ مِنَّا فَضْلًا ۖ يَا جِبَالُ أَوِّبِي مَعَهُ وَالطَّيْرَ ۖ وَأَلَنَّا لَهُ الْحَدِيدَ ﴾ 10 ﴿
व ल-क़द् आतैना दावू-द मिन्ना फ़ज़्लन्, या जिबालु अव्विबी म- अहू वत्तै-र व अलन्ना लहुल्-हदीद
तथा हमने प्रदान किया दावूद को अपना कुछ अनुग्रह,[1] हे पर्वतो! सरुचि महिमा गान करो[2] उसके साथ तथा हे पक्षियो! तथा हमने कोमल कर दिया उसके लिए लाहा को। 1. अर्थात उन को नबी बनाया और पुस्तक का ज्ञान प्रदान किया। 2. अल्लाह के इस आदेश अनुसार पर्वत तथा पक्षी उन के लिये अल्लाह की महिमा गान के समय उन की ध्वनि को दुहराते थे।
أَنِ اعْمَلْ سَابِغَاتٍ وَقَدِّرْ فِي السَّرْدِ ۖ وَاعْمَلُوا صَالِحًا ۖ إِنِّي بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ ﴾ 11 ﴿
अनिअ्मल् साबिग़ातिंव् – व कद्-दिर् फ़िस्सर्दि वअ्मलू सालिहन्, इन्नी बिमा तअ्मलू – न बसीर
कि बनाओ भरपूर कवचें तथा अनुमान रखो उसकी कड़ियों का तथा सदाचार करो। जो कुछ तुम कर रहे हो, उसे मैं देख रहा हूँ।
وَلِسُلَيْمَانَ الرِّيحَ غُدُوُّهَا شَهْرٌ وَرَوَاحُهَا شَهْرٌ ۖ وَأَسَلْنَا لَهُ عَيْنَ الْقِطْرِ ۖ وَمِنَ الْجِنِّ مَن يَعْمَلُ بَيْنَ يَدَيْهِ بِإِذْنِ رَبِّهِ ۖ وَمَن يَزِغْ مِنْهُمْ عَنْ أَمْرِنَا نُذِقْهُ مِنْ عَذَابِ السَّعِيرِ ﴾ 12 ﴿
व लि- सुलैमानर्-री-ह ग़ुदुव्वुहा शह्-रूंव – व रवाहुहा शह्-रून् व असल्ना लहू ऐनल् – कित्रि, व मिनल् जिन्नि मंय्यअ्मलु बै-न यदैहि बि-इज़्नि रब्बिही, व मंय्यज़िग् मिन्हुम् अ़न् अम्रिना नुज़िक़्हु मिन् अ़ज़ाबिस् – सईर
तथा ( हमने वश में कर दिया) सुलैमान[1] के लिए वायु को। उसका प्रातः चलना एक महीने का तथा संध्या का चलना एक महीने का[2] होता था तथा हमने बहा दिये उसके लिए तांबे के स्रोत तथा कुछ जिन्न कार्यरत थे उसके समक्ष, उसके पालनहार की अनुमति से तथा उनमें से जो फिरेगा हमारे आदेश से, तो हम चखायेंगे[3] उसे भड़कती अग्नि की यातना। 1. सुलैमान (अलैहिस्सलाम) दावूद (अलैहिस्सलाम) के पुत्र तथा नबी थे। 2. सुलैमान (अलैहिस्सलाम) अपने राज्य के अधिकारियों के साथ सिंहासन पर आसीन हो जाते। और उन के आदेश से वायु उसे इतनी तीव्र गति से उड़ा ले जाती कि आधे दिन में एक महीने की यात्रा पूरी कर लेते। इस प्रकार प्रातः संध्या मिला कर दो महीने की यात्रा पूरी हो जाती। (देखियेः इब्ने कसीर)
يَعْمَلُونَ لَهُ مَا يَشَاءُ مِن مَّحَارِيبَ وَتَمَاثِيلَ وَجِفَانٍ كَالْجَوَابِ وَقُدُورٍ رَّاسِيَاتٍ ۚ اعْمَلُوا آلَ دَاوُودَ شُكْرًا ۚ وَقَلِيلٌ مِّنْ عِبَادِيَ الشَّكُورُ ﴾ 13 ﴿
यअ्-मलू-न लहू मा यशा-उ मिम्-महारी-ब व तमासी-ल व जिफ़ानिन् कल्जवाबि व क़ुदूरिर्- रासियातिन्, इअ्मलू आ-ल दावू-द शुक्रन्, व क़लीलुम् मिन् अिबादि-यश्शकूर
वह बनाते थे उसके लिए, जो वह चाहता था; भवन (मस्जिदें), चित्र, बड़े लगन जलाशयों (तालाबों) के समान तथा भारी देगें, जो हिल न सकें। हे दावूद के परिजनो! कर्म करो कृतज्ञ होकर और मेरे भक्तों में थोड़े ही कृतज्ञ होते हैं।
فَلَمَّا قَضَيْنَا عَلَيْهِ الْمَوْتَ مَا دَلَّهُمْ عَلَىٰ مَوْتِهِ إِلَّا دَابَّةُ الْأَرْضِ تَأْكُلُ مِنسَأَتَهُ ۖ فَلَمَّا خَرَّ تَبَيَّنَتِ الْجِنُّ أَن لَّوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ الْغَيْبَ مَا لَبِثُوا فِي الْعَذَابِ الْمُهِينِ ﴾ 14 ﴿
फ़-लम्मा क़ज़ैना अ़लैहिल् – मौ-त मा दल्लहुम् अ़ला मौतिही इल्ला दाब्बतुल् – अर्ज़ि तअ्कुलु मिन्स-अ-तहू फ़-लम्मा ख़र्-र तबय्य – नतिल् – जिन्नु अल्लौ कानू यअ्लमूनल्-ग़ै-ब मा लबिसू फ़िल्-अ़ज़ाबिल् मुहीन
फिर जब हमने उस (सुलैमान) पर मौत का निर्णय कर दिया, तो जिन्नों को उनके मरण पर एक घुन के सिवा किसी ने सूचित नहीं किया, जो उसकी छड़ी खा रहा था।[1] फिर जब वह गिर गया, तो जिन्नों पर ये बात खुली कि यदि वे परोक्ष का ज्ञान रखते, तो इस अपमानकारी[2] यातना में नहीं पड़े रहते। 1. जिस के सहारे वह खड़े थे तथा घुन के खाने पर उन का शव धरती पर गिर पड़ा। 2. सुलैमान (अलैहिस्सलाम) के युग में यह भ्रम था कि जिन्नों को परोक्ष का ज्ञान होता है। जिसे अल्लाह ने माननीय सुलैमान अलैहिस्सलाम के निधन द्वारा तोड़ दिया कि अल्लाह के सिवा किसी को परोक्ष का ज्ञान नहीं है। (इब्ने कसीर)
لَقَدْ كَانَ لِسَبَإٍ فِي مَسْكَنِهِمْ آيَةٌ ۖ جَنَّتَانِ عَن يَمِينٍ وَشِمَالٍ ۖ كُلُوا مِن رِّزْقِ رَبِّكُمْ وَاشْكُرُوا لَهُ ۚ بَلْدَةٌ طَيِّبَةٌ وَرَبٌّ غَفُورٌ ﴾ 15 ﴿
ल-क़द् का-न लि-स-बइन् फ़ी मस्कनिहिम् आ-यतुन् जन्नतानि अंय्यमीनिंव्-व शिमालिन्, कुलू मिर्रज़्कि- रब्बिकुम् वश्कुरू लहू, बल्दतुन् तय्यि-बतुंव्-व रब्बुन् ग़फ़ूर
सबा[1] की जाति के लिए उनकी बस्तियों में एक निशानी[2] थीः बाग़ थे दायें और बायें। खाओ अपने पालनहार का दिया हुआ और उसके कृतज्ञ रहो। स्वच्छ नगर है तथा अति क्षमि पालनहार। 1. यह जाति यमन में निवास करती थी। 2. अर्थात अल्लाह के सामर्थ्य की।
فَأَعْرَضُوا فَأَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ سَيْلَ الْعَرِمِ وَبَدَّلْنَاهُم بِجَنَّتَيْهِمْ جَنَّتَيْنِ ذَوَاتَيْ أُكُلٍ خَمْطٍ وَأَثْلٍ وَشَيْءٍ مِّن سِدْرٍ قَلِيلٍ ﴾ 16 ﴿
फ़-अअ्-रज़ू फ़-अर्सल्ना अ़लैहिम् सैलल्-अ़रिमि व बद्दल्नाहुम् बिजन्नतैहिम् जन्नतैनि ज़वातै उकुलिन् ख़म्तिंव्-व अस्लिंव् व शैइम् – मिन् सिद्रिन् क़लील
परन्तु, उन्होंने मुँह फेर लिया, तो हमने भेज दी उनपर बाँध तोड़ बाढ़ तथा बदल दिया हमने उनके दो बाग़ों को, दो कड़वे फलों के बाग़ों और झाऊ तथा कुछ बैरी से।
ذَٰلِكَ جَزَيْنَاهُم بِمَا كَفَرُوا ۖ وَهَلْ نُجَازِي إِلَّا الْكَفُورَ ﴾ 17 ﴿
ज़ालि-क जज़ैनाहुम् बिमा क-फ़रू, व हल् नुजाज़ी इल्लल् – कफ़ूर
ये कुफल दिया हमने उनके कृतघ्न होने के कारण तथा हम कृतघ्नों ही को कुफल दिया करते हैं।
وَجَعَلْنَا بَيْنَهُمْ وَبَيْنَ الْقُرَى الَّتِي بَارَكْنَا فِيهَا قُرًى ظَاهِرَةً وَقَدَّرْنَا فِيهَا السَّيْرَ ۖ سِيرُوا فِيهَا لَيَالِيَ وَأَيَّامًا آمِنِينَ ﴾ 18 ﴿
व जअ़ल्ना बैनहुम् व बैनल्- क़ुरल्लती बारक्ना फ़ीहा क़ुरन् ज़ाहि- रतंव् व क़द्दर्ना फ़ीहस्सै-र, सीरू फ़ीहा लयालि-य व अय्यामन् आमिनीन
और हमने बना दी थी उनके बीच तथा उनकी बस्तियों के बीच, जिनमें हमने सम्पन्नता[1] प्रदान की थी, खुली बस्तियाँ तथा नियत कर दिया था उनमें, चलने का स्थान[2] (कि) चलो उसमें रात्रि तथा दिनों के समय शान्त[3] होकर। 1. अर्थात सबा तथा शाम (सीरिया) के बीच है। 2. अर्थात एक स्थान से दूसरे स्थान तक यात्रा की सुविधा रखी थी। 3. शत्रु तथा भूख-प्यास से निर्भय हो कर।
فَقَالُوا رَبَّنَا بَاعِدْ بَيْنَ أَسْفَارِنَا وَظَلَمُوا أَنفُسَهُمْ فَجَعَلْنَاهُمْ أَحَادِيثَ وَمَزَّقْنَاهُمْ كُلَّ مُمَزَّقٍ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّكُلِّ صَبَّارٍ شَكُورٍ ﴾ 19 ﴿
फ़क़ालू रब्बना बाज़िद् बै-न अस्फ़ारिना व ज़-लमू अन्फ़ु – सहुम् फ़-जअ़ल्नाहुम् अहादी – स व मज़्ज़क़्नाहुम् कुल्-ल मुमज़्ज़क़िन्, इन्-न फ़ी ज़ालि – क लआयातिल् लिकुल्लि सब्बारिन् शकूर
तो उन्होंने कहाः हे हमारे पालनहार! दूरी[1] करदे हमारी यात्राओं के बीच तथा उन्होंने अत्याचार किया अपने ऊपर। अन्ततः, हमने उन्हें कहानियाँ[2] बना दिया और तित्तर-वित्तर कर दिया। वास्तव में, इसमें कई निशानियाँ (शिक्षायें) हैं प्रत्येक अति धैर्यवान, कृतज्ञ के लिए। 1. हमारी यात्रा के बीच कोई बस्ती न हो। 2. उन की कथायें रह गईं, और उन का अस्तित्व नहीं रह गया।
وَلَقَدْ صَدَّقَ عَلَيْهِمْ إِبْلِيسُ ظَنَّهُ فَاتَّبَعُوهُ إِلَّا فَرِيقًا مِّنَ الْمُؤْمِنِينَ ﴾ 20 ﴿
व ल-कुद् सद्द -क़ अलैहिम् इब्लीसु ज़न्नहू फ़त्त- बअूहु इल्ला फ़रीक़म् मिनल् – मुअ्मिनीन
तथा सच कर दिया इब्लीस ने उनपर अपना अंकलन।[1] तो उन्होंने अनुसरण किया उसका एक समुदाय को छोड़कर ईमान वालों के। 1. अर्थात यह अनुमान कि वह आदम के पुत्रों को कुपथ करेगा। (देखियेः सूरह आराफ़, आयतः16, तथा सूरह साद, आयतः82)
وَمَا كَانَ لَهُ عَلَيْهِم مِّن سُلْطَانٍ إِلَّا لِنَعْلَمَ مَن يُؤْمِنُ بِالْآخِرَةِ مِمَّنْ هُوَ مِنْهَا فِي شَكٍّ ۗ وَرَبُّكَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ حَفِيظٌ ﴾ 21 ﴿
व मा का-न लहू अ़लैहिम् मिन् सुल्तानिन् इल्ला लिनअ्-ल म मंय्युअ्मिनु बिल्-आख़िरति मिम्-मन् हु-व मिन्हा फ़ी शक्किन्, व रब्बु-क अ़ला कुल्लि शैइन् हफ़ीज़
और नहीं था उसका उनपर कुछ अधिकार (दबाव), किन्तु, ताकि हम जान लें कि कौन ईमान रखता है आख़िरत (परलोक) पर उनमें से, जो उसके विषय में किसी संदेह में हैं तथा आपका पालनहार प्रत्येक चीज़ का निरीक्षक है।[1] 1. ताकि उन का प्रतिकार (बदला) दे।
قُلِ ادْعُوا الَّذِينَ زَعَمْتُم مِّن دُونِ اللَّهِ ۖ لَا يَمْلِكُونَ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ فِي السَّمَاوَاتِ وَلَا فِي الْأَرْضِ وَمَا لَهُمْ فِيهِمَا مِن شِرْكٍ وَمَا لَهُ مِنْهُم مِّن ظَهِيرٍ ﴾ 22 ﴿
क़ुलिद् अुल्लज़ी-न ज़अ़म्तुम् मिन् दूनिल्लाहि ला यम्लिकू न मिस्का-ल ज़र्रतिन् फ़िस्समावाति व ला फ़िल्अर्ज़ि व मा लहुम् फ़ीहिमा मिन् शिर्-किंव्-व मा लहू मिन्हुम् मिन् ज़हीर
आप कह दें: उन्हें पुकारो[1] जिन्हें तुम (पूज्य) समझते हो अल्लाह के सिवा। वह नहीं अधिकार रखते कण बराबर भी, न आकाशों में न धरती में तथा नहीं है उनका उन दोनों में कोई भाग और नहीं है उस अल्लाह का उनमें से कोई सहायक। 1. इस में संकेत उन की ओर है जो फ़रिश्तों को पूजते तथा उन्हें अपना सिफ़ारिशी मानते थे।
وَلَا تَنفَعُ الشَّفَاعَةُ عِندَهُ إِلَّا لِمَنْ أَذِنَ لَهُ ۚ حَتَّىٰ إِذَا فُزِّعَ عَن قُلُوبِهِمْ قَالُوا مَاذَا قَالَ رَبُّكُمْ ۖ قَالُوا الْحَقَّ ۖ وَهُوَ الْعَلِيُّ الْكَبِيرُ ﴾ 23 ﴿
व ला तन्फ़अुश्शफ़ा-अ़तु अिन्दहू इल्ला लिमन् अज़ि-न लहू, हत्ता इज़ा फुज़्ज़ि-अ़ अ़न् क़ुलूबिहिम् क़ालू माज़ा क़ा-ल रब्बुकुम्, क़ालुल्-हक़्-क़ व हुवल् अ़लिय्युल्-कबीर
तथा नहीं लाभ देगी अभिस्तावना (सिफ़ारिश) अल्लाह के पास, परन्तु जिसके लिए अनुमति देगा।[1] यहाँ[2] तक कि जब दूर कर दिया जाता है उद्वेग उनके दिलों से, तो वे (फ़रिश्ते) कहते हैं कि तुम्हारे पालनहार ने क्या कहा? वे कहते हैं कि सत्य कहा तथा वह अति उच्च, महान है। 1. (देखियेः सूरह बक़रह, आयतः255, तथा सूरह अम्बिया, आयतः28) 2. अर्थात जब अल्लाह आकाशों में कोई निर्णय करता है तो फ़रिश्ते भय से काँपने और अपने पंखों को फड़फड़ाने लगते हैं। फिर जब उन की उद्विग्नता दूर हो जाती है तो प्रश्न करते हैं कि तुम्हारे पालनहार ने क्या आदेश दिया है? तो वे कहते हैं कि उस ने सत्य कहा है।और वह अति उच्च महान है। (संक्षिप्त अनुवाद ह़दीस, सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस संख्याः4800)
قُلْ مَن يَرْزُقُكُم مِّنَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ قُلِ اللَّهُ ۖ وَإِنَّا أَوْ إِيَّاكُمْ لَعَلَىٰ هُدًى أَوْ فِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ ﴾ 24 ﴿
क़ुल् मंय्यर्-ज़ुक़ुकुम् मिनस्समावाति वल्अर्ज़ि, कुलिल्लाहु व इन्ना औ इय्याकुम् ल-अ़ला हुदन् औ फ़ी ज़लालिम् – मुबीन
आप (मुश्रिकों) से प्रश्न करें कि कौन जीविका प्रदान करता है तुम्हें, आकाशों[1] तथा धरती से? आप कह दें कि अल्लाह! तथा हम अथवा तुम अवश्य सुपथ पर हैं अथवा खुले कुपथ में हैं। 1. आकाशों की वर्षा तथा धरती की उपज से।
قُل لَّا تُسْأَلُونَ عَمَّا أَجْرَمْنَا وَلَا نُسْأَلُ عَمَّا تَعْمَلُونَ ﴾ 25 ﴿
क़ुल् ला तुस् अलू-न अ़म्मा अज्-रम्ना व ला नुस्अलु अ़म्मा तअ्मलून
आप कह दें: तुमसे नहीं प्रश्न किया जायेगा हमारे अपराधों के विषय में और न हमसे प्रश्न किया जायेगा, तुम्हारे कर्मों के[1] संबन्ध में। 1. क्यों कि हम तुम्हारे शिर्क से विरक्त हैं।
قُلْ يَجْمَعُ بَيْنَنَا رَبُّنَا ثُمَّ يَفْتَحُ بَيْنَنَا بِالْحَقِّ وَهُوَ الْفَتَّاحُ الْعَلِيمُ ﴾ 26 ﴿
क़ुल् यज्-मअु बै-नना रब्बुना सुम्-म यफ़्तहु बै-नना बिल्हक़्क़ि, व हुवल् फ़त्ताहुल्- अ़लीम
आप कह दें कि एकत्र[1] कर देगा हमें हमारा पालनहार। फिर निर्णय कर देगा हमारे बीच सत्य के साथ तथा वही अति निर्णयकारी, सर्वज्ञ है। 1. अर्थात प्रलय के दिन।
قُلْ أَرُونِيَ الَّذِينَ أَلْحَقْتُم بِهِ شُرَكَاءَ ۖ كَلَّا ۚ بَلْ هُوَ اللَّهُ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ ﴾ 27 ﴿
क़ुल् अरूनियल्लज़ी-न अल्हक़्तुम् बिही शु-रका-अ कल्ला, बल् हुवल्लाहुल् अ़ज़ीज़ुल्-हकीम
आप कह दें कि तनिक मुझे उन्हें दिखा दो, जिन्हें तुमने मिला दिया है अल्लाह के साथ साझी[1] बनाकर? ऐसा कदापि नहीं। बल्कि वही अल्लाह है अत्यंत प्रभावशाली तथा गुणी। 1. अर्थात पूजा-अराधना में।
وَمَا أَرْسَلْنَاكَ إِلَّا كَافَّةً لِّلنَّاسِ بَشِيرًا وَنَذِيرًا وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ ﴾ 28 ﴿
व मा अर्सल्ना-क इल्ला काफ़्फ़-तल् लिन्नासि बशीरंव्-व नज़ीरंव्-व लाकिन्-न अक्स-रन्नासि ला यअ्लमून
तथा नहीं भेजा है हमने आप[1] को, परन्तु सब मनुष्यों के लिए शुभ सूचना देने तथा सचेत करने वाला बनाकर। किन्तु, अधिक्तर लोग ज्ञान नहीं रखते। 1. इस आयत में अल्लाह ने जनाब मुह़्म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के विश्वव्यापि रसूल तथा सर्व मनुष्य जाति के पथ प्रदर्शक होने की घोषणा की है। जिसे सूरह आराफ़, आयत संख्याः 158, तथा सूरह फ़ुर्क़ान आयत संख्याः 1 में भी वर्णित किया गया है। इसी प्रकार आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया कि मुझे पाँच ऐसी चीज़ें दी गई हैं जो मुझ से पूर्व किसी नबी को नहीं दी गईं। और वे यह हैं: 1. एक महीने की दूरी तक शत्रुओं के दिलों में मेरी धाक द्वारा मेरी सहायता की गई है। 2. पूरी धरती मेरे लिये मस्जिद तथा पवित्र बना दी गई है। 3. युध्द में प्राप्त धन मेरे लिये वैध कर दिया गया है जो पहले किसी नबी के लिये वैध नहीं किया गया। 4. मुझे सिफ़ारिश का अधिकार दिया गया है। 5. मुझ से पहले के नबी मात्र अपने समुदाय के लिये भेजा जाता था, परन्तु मुझे सम्पूर्ण मानव जाति के लिये नबी बना कर भेजा गया है। (सह़ीह़ बुख़ारीः 335) आयत का भावार्थ यह है कि आप के आगमन के पश्चात् आप पर ईमान लाना तथा आप के लाये धर्म विधान क़ुर्आन का अनुपालन करना पूरे मानव विश्व पर अनिवार्य है। और यही सत्धर्म तथा मुक्ति मार्ग है।जिसे अधिक्तर लोग नहीं जानते। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः उस की शपथ जिस के हाथ में मेरे प्राण हैं! इस उम्मत का कोई यहूदी और ईसाई मुझे सुनेगा और मौत से पहले मेरे धर्म पर ईमान नहीं लायेगा तो वह नरक में जायेगा। (सह़ीह़ मुस्लिमः153)
وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَٰذَا الْوَعْدُ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ ﴾ 29 ﴿
व यक़ूलू-न मता हाज़ल्-वअ्दु इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
तथा वह कहते[1] हैं कि ये वचन कब पूरा होगा, यदि तुम सत्यवादी हो? 1. अर्थात उपहास करते हैं।
قُل لَّكُم مِّيعَادُ يَوْمٍ لَّا تَسْتَأْخِرُونَ عَنْهُ سَاعَةً وَلَا تَسْتَقْدِمُونَ ﴾ 30 ﴿
क़ुल लकुम् मीआ़दु यौमिल्-ला तस्तअ्ख़िरू-न अ़न्हु सा – अ़तंव्-व ला तस्तक़्दिमून
आप उनसे कह दें कि एक दिन वचन का निश्चित[1] है। वे नहीं पीछे होंगे उससे क्षण भर और न आगे होंगे। 1. प्रलय का दिन।
وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لَن نُّؤْمِنَ بِهَٰذَا الْقُرْآنِ وَلَا بِالَّذِي بَيْنَ يَدَيْهِ ۗ وَلَوْ تَرَىٰ إِذِ الظَّالِمُونَ مَوْقُوفُونَ عِندَ رَبِّهِمْ يَرْجِعُ بَعْضُهُمْ إِلَىٰ بَعْضٍ الْقَوْلَ يَقُولُ الَّذِينَ اسْتُضْعِفُوا لِلَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا لَوْلَا أَنتُمْ لَكُنَّا مُؤْمِنِينَ ﴾ 31 ﴿
व क़ालल्लज़ी-न क-फ़रू लन्-नुअ्मि-न बिहाज़ल्-क़ुर्-आनि व ला बिल्लज़ी बै-न यदैहि, व लौ तरा इज़िज़्ज़ालिमू-न मौक़ूफ़ू-न अिन्- द रब्बिहिम् यर्जिअु बअ्ज़ुहुम् इला बअ्ज़ि-निल्क़ौ-ल यक़ूलुल्लज़ीनस्तुअिफ़ू लिल्लज़ीनस्तक्बरू लौ ला अन्तुम् लकुन्ना मुअ्मिनीन
तथा काफ़िरों ने कहा कि हम कदापि ईमान नहीं लायेंगे इस क़ुर्आन पर और न उसपर, जो इससे पूर्व की पुस्तक हैं और यदि आप देखेंगे इन अत्याचारियों को खड़े हुए अपने पालनहार के समक्ष, तो वे दोषारोपण कर रहे होंगे एक-दूसरे पर। जो निर्बल समझे जा रहे थे, वे कहेंगे उनसे, जो बड़े बन रहे थेः यदि तुम न होते, तो हम अवश्य ईमान लाने वालों[1] में होते। 1. तुम्ही ने हमें सत्य से रोका था।
قَالَ الَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا لِلَّذِينَ اسْتُضْعِفُوا أَنَحْنُ صَدَدْنَاكُمْ عَنِ الْهُدَىٰ بَعْدَ إِذْ جَاءَكُم ۖ بَلْ كُنتُم مُّجْرِمِينَ ﴾ 32 ﴿
क़ालल्लज़ीनस्तक्बरू लिल्लज़ीनस्तुज़्अिफ़ू अ-नह्नु सदद्नाकुम् अ़निल्हुदा बअ्-द इज़् जा-अकुम् बल् कुन्तुम् मुज्रिमीन
वे कहेंगे जो बड़े बने हुए थे, उनसे, जो निर्बल समझे जा रहे थेः क्या हमने तुम्हे रोका सुपथ से, जब वह तुम्हारे पास आया? बल्कि तुमही अपराधी थे।
وَقَالَ الَّذِينَ اسْتُضْعِفُوا لِلَّذِينَ اسْتَكْبَرُوا بَلْ مَكْرُ اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ إِذْ تَأْمُرُونَنَا أَن نَّكْفُرَ بِاللَّهِ وَنَجْعَلَ لَهُ أَندَادًا ۚ وَأَسَرُّوا النَّدَامَةَ لَمَّا رَأَوُا الْعَذَابَ وَجَعَلْنَا الْأَغْلَالَ فِي أَعْنَاقِ الَّذِينَ كَفَرُوا ۚ هَلْ يُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ ﴾ 33 ﴿
व क़ालल्लज़ीनस्तुज़्अिफू लिल्लज़ीनस्- तक्बरू बल् मक्रुल्लैलि वन्नहारि इज़् तअ्मुरू-नना अन् नक्फ़ु-र बिल्लाहि व नज्-अ़-ल लहू अन्दादन्, व असर्रुन्नदा-म त लम्मा र-अवुल् अ़ज़ा-ब, व जअ़ल्नल्-अग़्ला-ल फ़ी अअ्नाक़िल्लज़ी-न क-फ़रू, हल् युज्ज़ौ-न इल्ला मा कानू यअ्मलून
तथा कहेंगे जो निर्बल होंगे, उनसे, जो बड़े (अहंकारी) होंगेःबल्कि रात-दिन के षड्यंत्र[1] ने (ऐसा किया), जब तुम हमें आदेश दे रहे थे कि हम कुफ़्र करें अल्लाह के साथ तथा बनायें उसके साझी तथा वे अपने मन में पछतायेंगे, जब यातना देखेंगे और हम तौक़ डाल देंगे उनके गलों में, जो काफ़िर हो गये, वे नहीं बदला दिये जायेंगे, परन्तु उसी का, जो वे कर रहे थे! 1. अर्थात तुम्हारे षड्यंत्र ने हमें रोका था।
وَمَا أَرْسَلْنَا فِي قَرْيَةٍ مِّن نَّذِيرٍ إِلَّا قَالَ مُتْرَفُوهَا إِنَّا بِمَا أُرْسِلْتُم بِهِ كَافِرُونَ ﴾ 34 ﴿
व मा अर्सल्ना फ़ी क़र्यतिम्-मिन् नज़ीरिन् इल्ला क़ा-ल मुत्- रफ़ूहा इन्ना बिमा उर्सिल्तुम् बिही काफ़िरून
और नहीं भेजा हमने किसी बस्ती में कोई सचेतकर्ता (नबी), परन्तु कहा उसके सम्पन्न लोगों नेः हम जिस चीज़ के साथ तुम भेजे गये हो, उसे नहीं मानते हैं।[1] 1. नबियों के उपदेश का विरोध सब से पहले सम्पन्न वर्ग ने किया है। क्यों कि वे यह समझते हैं कि यदि सत्य सफल हो गया तो समाज पर उन का अधिकार समाप्त हो जायेगा। वे इस आधार पर भी नबियों का विरोध करते रहे कि हम ही अल्लाह के प्रिय हैं। यदि वह हम से प्रसन्न न होता तो हमें धन-धान्य क्यों प्रदान करता? अतः हम प्रलोक की यातना में ग्रस्त नहीं होंगे। क़ुर्आन ने अनेक आयतों में उन के इस भ्रम का खण्डन किया है।
وَقَالُوا نَحْنُ أَكْثَرُ أَمْوَالًا وَأَوْلَادًا وَمَا نَحْنُ بِمُعَذَّبِينَ ﴾ 35 ﴿
व क़ालू नह्नु अक्सरु अम्वालंव्-व औलादंव्-व मा नह्नु बिमु-अ़ज़्ज़बीन
तथा कहा कि हम अधिक हैं तुमसे धन और संतान में तथा हम यातना ग्रस्त होने वाले नहीं हैं।
قُلْ إِنَّ رَبِّي يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَن يَشَاءُ وَيَقْدِرُ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ ﴾ 36 ﴿
क़ुल् इन्-न रब्बी यब्सुतुर्-रिज़्-क़ लिमंय्यशा-उ व यक़्दिरु व लाकिन्-न अक्स-रन्नासि ला यअ्लमून*
आप कह दें कि वास्तव में, मेरा पालनहार फैला देता है जीविका को, जिसके लिए चाहता है और नापकर देता है। किन्तु, अधिक्तर लोग ज्ञान नहीं रखते।
وَمَا أَمْوَالُكُمْ وَلَا أَوْلَادُكُم بِالَّتِي تُقَرِّبُكُمْ عِندَنَا زُلْفَىٰ إِلَّا مَنْ آمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَأُولَٰئِكَ لَهُمْ جَزَاءُ الضِّعْفِ بِمَا عَمِلُوا وَهُمْ فِي الْغُرُفَاتِ آمِنُونَ ﴾ 37 ﴿
व मा अम्वालुकुम् व ला औलादुकुम् बिल्लती तुक़र्रिबुकुम् अिन्-दना ज़ुल्फ़ा इल्ला मन् आम-न व अ़मि-ल सालिहन् फ़-उलाइ-क लहुम् जज़ाउज़्-ज़िअ्फ़ि बिमा अ़मिलू व हुम् फ़िल्- गुरुफ़ाति आमिनून
और तुम्हारे धन और तुम्हारी संतान ऐसी नहीं हैं कि तुम्हें हमारे कुछ समीप[1] कर दें। परन्तु, जो ईमान लाये तथा सदाचार करे, तो यही हैं, जिनके लिए दोहरा प्रतिफल है और यही ऊँचे भवनों में शान्त रहने वाले हैं। 1. अर्थात हमारा प्रिय बना दे।
وَالَّذِينَ يَسْعَوْنَ فِي آيَاتِنَا مُعَاجِزِينَ أُولَٰئِكَ فِي الْعَذَابِ مُحْضَرُونَ ﴾ 38 ﴿
वल्लज़ी-न यस्औ-न फ़ी आयातिना मुआ़जिज़ी-न उलाइ-क फ़िल्- अ़ज़ाबि मुह्ज़रून
तथा जो प्रयास करते हैं हमारी आयतों में विवश करने के लिए,[1] तो वही यातना में ग्रस्त होंगे। 1. अर्थात हमारी आयतों को नीचा दिखाने के लिये।
قُلْ إِنَّ رَبِّي يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَن يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ وَيَقْدِرُ لَهُ ۚ وَمَا أَنفَقْتُم مِّن شَيْءٍ فَهُوَ يُخْلِفُهُ ۖ وَهُوَ خَيْرُ الرَّازِقِينَ ﴾ 39 ﴿
क़ुल इन्-न रब्बी यब्सुतुर्रिज़्-क़ लिमंय्यशा-उ मिन् अिबादिही व यक़्दिरु लहू, व मा अन्फ़क़्तुम् मिन् शैइन् फ़हु-व युख़्लिफ़ुहू व हु-व ख़ैरुर्-राज़िक़ीन
आप कह दें: मेरा पालनहार ही फैलाता है जीविका को जिसके लिए चाहता है, अपने भक्तों में से और तंग करता है उसके लिए और जो भी तुम दान करोगे, तो वह उसका पूरा बदला देगा और वही उत्तम जीविका देने वाला है।
وَيَوْمَ يَحْشُرُهُمْ جَمِيعًا ثُمَّ يَقُولُ لِلْمَلَائِكَةِ أَهَٰؤُلَاءِ إِيَّاكُمْ كَانُوا يَعْبُدُونَ ﴾ 40 ﴿
व यौ-म यह्शुरुहुम् जमीअ़न् सुम्-म यक़ूलु लिल्मलाइ कति अ-हाउला-इ इय्याकुम् कानू यअ्बुदून
तथा जिस दिन एकत्र करेगा उनसब को, फिर कहेगा फ़रिश्तों सेः क्या यही तुम्हारी इबादत (वंदना) कर रहे थे।
قَالُوا سُبْحَانَكَ أَنتَ وَلِيُّنَا مِن دُونِهِم ۖ بَلْ كَانُوا يَعْبُدُونَ الْجِنَّ ۖ أَكْثَرُهُم بِهِم مُّؤْمِنُونَ ﴾ 41 ﴿
क़ालू सुब्हान-क अन्-त वलिय्युना मिन् दूनिहिम् बल् कानू यअ्बुदूनल्-जिन्-न अक्सरुहुम् बिहिम् मुअ्मिनून
वह कहेंगेः तू पवित्र है! तू ही हमारा संरक्षक है, न कि ये। बल्कि ये इबादत करते रहे जिन्नों[1] की। इनमें अधिक्तर उन्हींपर ईमान लाने वाले हैं। 1. अरब के कुछ मुश्रिक लोग, फ़रिश्तों को पूज्य समझते थे। अतः उन से यह प्रश्न किया जायेगा।
فَالْيَوْمَ لَا يَمْلِكُ بَعْضُكُمْ لِبَعْضٍ نَّفْعًا وَلَا ضَرًّا وَنَقُولُ لِلَّذِينَ ظَلَمُوا ذُوقُوا عَذَابَ النَّارِ الَّتِي كُنتُم بِهَا تُكَذِّبُونَ ﴾ 42 ﴿
फ़ल्यौ-म ला यम्लिकु बअ्ज़ुकुम् लि-बअ्ज़िन् नफ़्अंव्-व ला ज़र्रन्, व नक़ूलु लिल्लज़ी-न ज़-लमू ज़ूक़ू अ़ज़ाबन्-नारिल्लती कुन्तुम् बिहा तुकज़्ज़िबून
तो आज तुम[1] में से कोई एक-दूसरे को लाभ अथवा हानि पहुँचाने का अधिकार नहीं रखेगा तथा हम कह देंगे अत्याचारियों से कि तुम अग्नि की यातना चखो, जिसे तुम झुठला रहे थे। 1. अर्थात मिथ्या पूज्य तथा उन के पुजारी।
وَإِذَا تُتْلَىٰ عَلَيْهِمْ آيَاتُنَا بَيِّنَاتٍ قَالُوا مَا هَٰذَا إِلَّا رَجُلٌ يُرِيدُ أَن يَصُدَّكُمْ عَمَّا كَانَ يَعْبُدُ آبَاؤُكُمْ وَقَالُوا مَا هَٰذَا إِلَّا إِفْكٌ مُّفْتَرًى ۚ وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلْحَقِّ لَمَّا جَاءَهُمْ إِنْ هَٰذَا إِلَّا سِحْرٌ مُّبِينٌ ﴾ 43 ﴿
व इज़ा तुत्ला अ़लैहिम् आयातुना बय्यिनातिन् क़ालू मा हाज़ा इल्ला रजुलुंय् – युरीदु अंय्यसुद्दकुम् अ़म्मा का-न यअ्बुदु आबाउकुम् व क़ालू मा हाज़ा इल्ला इफ़्कुम् मुफ़्तरन्, व क़ालल्लज़ी-न क-फ़रू लिल्हक़्क़ि लम्मा जा- अहुम् इन् हाज़ा इल्ला सिह्-रुम्- मुबीन
और जब सुनाई जाती हैं उनके समक्ष हमारी खुली आयतें, तो कहते हैं: ये तो एक पुरुष है, जो चाहता है कि तुम्हें रोक दे उन पूज्यों से, जिनकी इबादत करते रहे हैं तुम्हारे पूर्वज तथा उन्होंने कहा कि ये तो बस एक झूठी बनायी हुई बात है तथा कहा काफ़िरों ने इस सत्य को कि ये तो बस एक प्रत्यक्ष (खुला) जादू है।
وَمَا آتَيْنَاهُم مِّن كُتُبٍ يَدْرُسُونَهَا ۖ وَمَا أَرْسَلْنَا إِلَيْهِمْ قَبْلَكَ مِن نَّذِيرٍ ﴾ 44 ﴿
व मा आतैनाहुम् मिन् कुतुबिंय्-यद्रुसूनहा व मा अर्सल्ना इलैहिम् क़ब्ल-क मिन् नज़ीर
जबकि हमने नहीं प्रदान की है इन (मक्का वासियों) को कोई पुस्तक, जिसे ये पढ़ते हों तथा न हमने भेजा है इनकी ओर आपसे पहले कोई सचेत करने वाला।[1] 1. तो इन्हें कैसे ज्ञान हो गया कि यह क़ुर्आन खुला जादू है? क्यों कि यह ऐतिहासिक सत्य है कि आप से पहले मक्का में कोई नबी नहीं आया। इस लिये क़ुर्आन के प्रभाव को स्वीकार करना चाहिये न कि उस पर जादू होने का आरोप लगा दिया जाये।
وَكَذَّبَ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ وَمَا بَلَغُوا مِعْشَارَ مَا آتَيْنَاهُمْ فَكَذَّبُوا رُسُلِي ۖ فَكَيْفَ كَانَ نَكِيرِ ﴾ 45 ﴿
व कज़्ज़बल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम् व मा ब-लग़ू मिअ्शा-र मा आतैनाहुम् फ़-कज़्ज़बू रुसुली, फ़कै-फ़ का-न नकीर
तथा झुठलाया था इनसे पूर्व के लोगों ने और नहीं पहुँचे ये उसके दसवें भाग को भी, जो हमने प्रदान किया था उन्हें। तो उन्होंने झुठला दिया मेरे रसूलों को, अन्ततः, मेरा इन्कार कैसा रहा?[1] 1. अर्थात आद और समूद ने। अतः मेरे इन्कार के दुष्परिणाम अर्थात उन के विनाश से इन्हें शिक्षा लेनी चाहिये। जो धन-बल तथा शक्ति में इन से अधिक थे।
قُلْ إِنَّمَا أَعِظُكُم بِوَاحِدَةٍ ۖ أَن تَقُومُوا لِلَّهِ مَثْنَىٰ وَفُرَادَىٰ ثُمَّ تَتَفَكَّرُوا ۚ مَا بِصَاحِبِكُم مِّن جِنَّةٍ ۚ إِنْ هُوَ إِلَّا نَذِيرٌ لَّكُم بَيْنَ يَدَيْ عَذَابٍ شَدِيدٍ ﴾ 46 ﴿
क़ुल इन्नमा अअिज़ुकुम् बिवाहि-दतिन् अन् तक़ूमू लिल्लाहि मस्ना व फ़ुरादा सुम्-म त-तफ़क्करू, मा बिसाहिबिकुम् मिन् जिन्नतिन्, इन् हु-व इल्ला नज़ीरुल्-लकुम् बै-न यदै अ़ज़ाबिन् शदीद
आप कह दें कि मैं बस तुम्हें एक बात की नसीह़त कर रहा हूँ कि तुम अल्लाह के लिए दो-दो तथा अकेले-अकेले खड़े हो जाओ। फिर सोचो। तुम्हारे साथी को कोई पागलपन नहीं है।[1] वह तो बस सचेत करने वाले हैं तुम्हें, आगामी कड़ी यातना से। 1. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दशा के बारे में।
قُلْ مَا سَأَلْتُكُم مِّنْ أَجْرٍ فَهُوَ لَكُمْ ۖ إِنْ أَجْرِيَ إِلَّا عَلَى اللَّهِ ۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ ﴾ 47 ﴿
क़ुल् मा सअल्तुकुम् मिन् अज्रिन् फ़हु-व लकुम्, इन् अज्रि-य इल्ला अ़लल्लाहि व हु-व अ़ला कुल्लि शैइन् शहीद
आप कह दें: मैंने तुमसे कोई बदला माँगा है, तो वह तुम्हारे[1] ही लिए है। मेरा बदला तो बस अल्लाह पर है और वह प्रत्येक वस्तु पर साक्षी है। 1. कि तुम संमार्ग अपना कर आगामी प्रलय की यातना से सुरक्षित हो जाओ।
قُلْ إِنَّ رَبِّي يَقْذِفُ بِالْحَقِّ عَلَّامُ الْغُيُوبِ ﴾ 48 ﴿
क़ुल इन्-न रब्बी यक़्ज़िफ़ु बिल्हक़्क़ि अ़ल्लामुल्-ग़ुयूब
आप कह दें कि मेरा पालनहार वह़्यी करता है सत्य की। वह परोक्षों का अति ज्ञानी है।
قُلْ جَاءَ الْحَقُّ وَمَا يُبْدِئُ الْبَاطِلُ وَمَا يُعِيدُ ﴾ 49 ﴿
क़ुल जा-अल्हक़्क़ु व मा युब्दिउल्- बातिलु व मा युईद
आप कह दें कि सत्य आ गया और असत्य न (कुछ का) आरंभ कर सकता है और न (उसे) पुनः ला सकता है।
قُلْ إِن ضَلَلْتُ فَإِنَّمَا أَضِلُّ عَلَىٰ نَفْسِي ۖ وَإِنِ اهْتَدَيْتُ فَبِمَا يُوحِي إِلَيَّ رَبِّي ۚ إِنَّهُ سَمِيعٌ قَرِيبٌ ﴾ 50 ﴿
क़ुल् इन् ज़लल्तु फ़-इन्नमा अज़िल्लु अ़ला नफ़्सी व इनिह्तदैतु फ़-बिमा यूही इलय्-य रब्बी, इन्नहू समीअुन् क़रीब
आप कह दें कि यदि मैं कुपथ हो गया, तो मेरे कुपथ होने का (भार) मुझपर है और यदि मैं सुपथ पर हूँ, तो उस वह़्यी के कारण जिसे मेरी ओर मेरा पालनहार उतार रहा है। वह सब कुछ सुनने वाला, समीप है।
وَلَوْ تَرَىٰ إِذْ فَزِعُوا فَلَا فَوْتَ وَأُخِذُوا مِن مَّكَانٍ قَرِيبٍ ﴾ 51 ﴿
व लौ तरा इज़् फ़ज़िअू फ़ला फ़ौ-त व उख़िज़ू मिम्-मकानिन् क़रीब
तथा यदि आप देखेंगे, जब वे घबराये हुए[1] होंगे, तो उनके खो जाने का कोई उपाय न होगा तथा पकड़ लिए जायेंगे समीप स्थान से। 1. प्रलय की यातना देख कर।
وَقَالُوا آمَنَّا بِهِ وَأَنَّىٰ لَهُمُ التَّنَاوُشُ مِن مَّكَانٍ بَعِيدٍ ﴾ 52 ﴿
व क़ालू आमन्ना बिही व अन्ना लहुमुत्-तनावुशु मिम्-मकानिम् – बईद
और कहेंगेः हम उस[1] पर ईमान लाये तथा कहाँ हाथ आ सकता है उनके (ईमान), इतने दूर स्थान[2] से? 1. अर्थात अल्लाह तथा उस के रसूल पर। 2. ईमान लाने का स्थान तो संसार था। परन्तु संसार में उसे अस्वीकार कर दिया।
وَقَدْ كَفَرُوا بِهِ مِن قَبْلُ ۖ وَيَقْذِفُونَ بِالْغَيْبِ مِن مَّكَانٍ بَعِيدٍ ﴾ 53 ﴿
व क़द् क-फ़रू बिही मिन् क़ब्लु व यक़्ज़िफ़ू-न बिल्ग़ैबि मिम्-मकानिम्- बईद
जबकि उन्होंने कुफ़्र कर दिया पहले उसके साथ और तीर मारते रहे बिन देखे, दूर[1] से। 1. अर्थात अपने अनुमान से असत्य बातें करते रहे।
وَحِيلَ بَيْنَهُمْ وَبَيْنَ مَا يَشْتَهُونَ كَمَا فُعِلَ بِأَشْيَاعِهِم مِّن قَبْلُ ۚ إِنَّهُمْ كَانُوا فِي شَكٍّ مُّرِيبٍ ﴾ 54 ﴿
व ही-ल बैनहुम् व बै-न मा यश्तहू-न कमा फ़ुअि-ल बिअश्याअिहिम् मिन् क़ब्लु, इन्नहुम् कानू फ़ी शक्किम् मुरीब
और रोक बना दी जायेगी उनके तथा उसके बीच, जिसकी वे कामना करेंगे जैसे किया गया इनके जैसों के साथ, इससे पहले। वास्तव में, वे संदेह में पड़े थे।