सूरह हा मीम सज्दा के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है, इस में 54 आयतें हैं।
- इस सूरह का नाम (हा, मीम सज्दा) है। क्योंकि इस का आरंभ अक्षरः (हा, मीम) से हुआ है। और आयत 37 में केवल अल्लाह ही को सज्दा करने का आदेश दिया गया है। और इस सूरह की तीसरी आयत में (फुस्सिलत) का शब्द आया है। इसलिये इस का दूसरा नाम (फुस्सिलत) भी है।
- इस के आरंभ में कुन के पहचानने पर बल देते हुये सोच-विचार की दावत, तथा वह्यी और रिसालत को झुठलाने पर यातना की चेतावनी दी गई है। फिर अल्लाह के विरोधियों के दुष्परिणाम को बताया गया है।
- आयत 30 से 36 तक उन्हें स्वर्ग की शुभसूचना दी गई है जो अपने धर्म पर स्थित है। और उन्हें विरोधियों को क्षमा कर देने के निर्देश दिये गये हैं। फिर आयत 40 तक अल्लाह के अकेले पूज्य होने तथा मुर्दों को जीवित करने का सामर्थ्य रखने की निशानियाँ प्रस्तुत की गयी हैं।
- आयत 41 से 46 तक कुन के साथ उस के विरोधियों के व्यवहार तथा उस के दुष्परिणाम को बताया गया है। फिर 51 तक शिर्क करने और प्रलय के इन्कार पर पकड़ की गयी है।
- अन्त में कुन के विरोधियों के संदेहों को दूर करते हुये यह भविष्यवाणी की गई है कि जल्द ही कुर्थान के सच्च होने की निशानियाँ विश्व में सामने आ जायेंगी।
भाष्यकारों ने लिखा है कि जब मक्का में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के अनुयायियों की संख्या प्रतिदिन बढ़ने लगी तो कुरैश के प्रमुखों ने आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास एक व्यक्ति उत्वा पुत्र रबीआ को भेजा। उस ने आकर आप से कहा कि यदि आप इस नये आमंत्रण से धन चाहते हैं तो हम आप के लिये धन एकत्र कर देंगे। और यदि प्रमुख और बड़ा बनना चाहते हैं तो हम तुम्हें अपना प्रमुख बना लेंगे। और यदि किसी सुन्दरी से विवाह करना चाहते हों तो हम उस की भी व्यवस्था कर देंगे। और यदि आप पर भूत-प्रेत का प्रभाव हो तो हम उस का उपचार करा देंगे। उत्वा की यह बातें सुन कर आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने यही सूरह उसे सुनायी जिस से प्रभावित हो कर वापिस आया। और कहा कि जो बात वह पेश करता है वह जादू-ज्योतिष और काव्य-कविता नहीं है। यह बातें सुन कर कुरैश के प्रमुखों ने कहा कि तू भी उस के जादू के प्रभाव में आ गया। उस ने कहाः मैं ने अपना विचार बता दिया अब तुम्हारे मन में जो भी आये वह करो। (सीरते इब्ने हिशाम- 1 313, 314)
सूरह फुसिलत | Surah Fussilat in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
تَنزِيلٌ مِّنَ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ ﴾ 2 ﴿
तन्ज़ीलुम्-मिनर्रह्मा- निर्रहीम
अवतरित है अत्यंत कृपाशील, दयावान् की ओर से।
كِتَابٌ فُصِّلَتْ آيَاتُهُ قُرْآنًا عَرَبِيًّا لِّقَوْمٍ يَعْلَمُونَ ﴾ 3 ﴿
किताबुन् फुस्सिलत् आयातुहू क़ुर्आनन् अ़-रब्य्यिल् लिक़ौमिंय्-यअ्लमून
(ये ऐसी) पुस्तक है, सविस्तार वर्णित की गई हैं जिसकी आयतें। क़ुर्आन अरबी (भाषा में) है उनके लिए, जो ज्ञान रखते हों।[1] 1. अर्बी भाषा तथा शैली का।
بَشِيرًا وَنَذِيرًا فَأَعْرَضَ أَكْثَرُهُمْ فَهُمْ لَا يَسْمَعُونَ ﴾ 4 ﴿
बशी – रंव्-व नज़ीरन् फ़-अअ्-र-ज़ अक्सरुहुम् फ़हुम् ला यस्मअून
वह शुभ सूचना देने तथा सचेत करने वाला है फिर भी मुँह फेर लिया है उनमें से अधिक्तर ने और सुन नहीं रहे हैं।
وَقَالُوا قُلُوبُنَا فِي أَكِنَّةٍ مِّمَّا تَدْعُونَا إِلَيْهِ وَفِي آذَانِنَا وَقْرٌ وَمِن بَيْنِنَا وَبَيْنِكَ حِجَابٌ فَاعْمَلْ إِنَّنَا عَامِلُونَ ﴾ 5 ﴿
व क़ालू क़ुलूबुना फ़ी अकिन्नतिम्-मिम्मा तद्अूना इलैहि व फ़ी आज़ानिना वक्रूंव्-व मिम्बैनिना व बैनि-क हिजाबुन् फ़अ्मल् इन्नना आ़मिलून
तथा उन्होंने कहाः[1] हमारे दिल आवरण (पर्दे) में हैं उससे, आप हमें जिसकी ओर बुला रहे हैं तथा हमारे कानों में बोझ है तथा हमारे और आपके बीच एक आड़ है। तो आप अपना काम करें और हम अपना काम कर रहे हैं। 1. अर्थात मक्का के मुश्रिकों ने कहा कि यह एकेश्वरवाद की बात हमें समझ में नहीं आती। इस लिये आप हमें हमारे धर्म पर ही रहने दें।
قُلْ إِنَّمَا أَنَا بَشَرٌ مِّثْلُكُمْ يُوحَىٰ إِلَيَّ أَنَّمَا إِلَٰهُكُمْ إِلَٰهٌ وَاحِدٌ فَاسْتَقِيمُوا إِلَيْهِ وَاسْتَغْفِرُوهُ ۗ وَوَيْلٌ لِّلْمُشْرِكِينَ ﴾ 6 ﴿
क़ुल् इन्नमा अ-न ब-शरुम्-मिस्लुकुम् यूहा इलय् य अन्नमा इलाहुकुम् इलाहुंव्-वाहिदुन् फ़स्तक़ीमू इलैहि वस्तग़्फ़िरूहु, व वैलुल्- लिल्- मुश्रि कीन
आप कह दें कि मैं तो एक मनुष्य हूँ तुम्हारे जैसा। मेरी ओर वह़्यी की जा रही है कि तुम्हारा वंदनीय (पूज्य) केवल एक ही है। अतः, सीधे हो जाओ उसी की ओर तथा क्षमा माँगो उससे और विनाश है मुश्रिकों के लिए।
الَّذِينَ لَا يُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُم بِالْآخِرَةِ هُمْ كَافِرُونَ ﴾ 7 ﴿
अल्लज़ी-न ला युअ्तूनज़्ज़का-त व हुम् बिल-आख़िरति हुम् काफ़िरून
जो ज़कात नहीं देते तथा आख़िरत को (भी) नहीं मानते।
إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُمْ أَجْرٌ غَيْرُ مَمْنُونٍ ﴾ 8 ﴿
इन्नल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति लहुम् अज्-रून् ग़ैरु मम्नून
निःसंदेह, जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, उन्हीं के लिए अनन्त प्रतिफल है।
قُلْ أَئِنَّكُمْ لَتَكْفُرُونَ بِالَّذِي خَلَقَ الْأَرْضَ فِي يَوْمَيْنِ وَتَجْعَلُونَ لَهُ أَندَادًا ۚ ذَٰلِكَ رَبُّ الْعَالَمِينَ ﴾ 9 ﴿
क़ुल् अ-इन्नकुम् ल-तक्फ़ुरू-न बिल्लज़ी ख़-लक़ल्- अर्-ज़ फ़ी यौमैनि व तज्अ़लू-न लहू अन्दादन्, ज़ालि-क रब्बुल – आ़लमीन
आप कहें कि क्या तुम उसे नकारते हो, जिसने पैदा किया धरती को दो दिन में और बनाते हो उसके साझी? वही है, सर्वलोक का परलनहार।
وَجَعَلَ فِيهَا رَوَاسِيَ مِن فَوْقِهَا وَبَارَكَ فِيهَا وَقَدَّرَ فِيهَا أَقْوَاتَهَا فِي أَرْبَعَةِ أَيَّامٍ سَوَاءً لِّلسَّائِلِينَ ﴾ 10 ﴿
व ज-अ़-ल फ़ीहा रवासि-य मिन् फ़ौकिहा व बार-क फ़ीहा व क़द्-द-र फ़ीहा अक़्वा-तहा फ़ी अर्-ब- अ़ति अय्यामिन्, सवा-अल्-लिस्सा-इलीन
तथा बनाये उस (धरती) में पर्वत उसके ऊपर तथा बरकत रख दी उसमें और अंकन किया उसमें उसके वासियों के आहारों का चार[1] दिनों में समान रूप[2] से, प्रश्न करने वालों के लिए। 1. अर्थात धरती को पैदा करने और फैलाने के कुल चार दिन हुये। 2. अर्थात धरती के सभी जीवों के आहार के संसाधन की व्यवस्था कर दी। और यह बात बता दी ताकि कोई प्रश्न करे तो उसे इस का ज्ञान करा दिया जाये।
ثُمَّ اسْتَوَىٰ إِلَى السَّمَاءِ وَهِيَ دُخَانٌ فَقَالَ لَهَا وَلِلْأَرْضِ ائْتِيَا طَوْعًا أَوْ كَرْهًا قَالَتَا أَتَيْنَا طَائِعِينَ ﴾ 11 ﴿
सुम्मस्तवा इलस्समा-इ व हि-य दुख़ानुन् फ़क़ा-ल लहा व लिल्-अर्ज़िअ्तिया तौअ़न् औ कर्हन्, क़ा-लता अतैना ता – इईन
फिर आकर्षित हुआ आकाश की ओर तथा वह धुआँ था। तो उसे तथा धरती को आदेश दिया कि तुम दोनों आ जाओ प्रसन्न होकर अथवा दबाव से। तो दोनों ने कहाः हम प्रसन्न होकर आ गये।
فَقَضَاهُنَّ سَبْعَ سَمَاوَاتٍ فِي يَوْمَيْنِ وَأَوْحَىٰ فِي كُلِّ سَمَاءٍ أَمْرَهَا ۚ وَزَيَّنَّا السَّمَاءَ الدُّنْيَا بِمَصَابِيحَ وَحِفْظًا ۚ ذَٰلِكَ تَقْدِيرُ الْعَزِيزِ الْعَلِيمِ ﴾ 12 ﴿
फ़-क़ज़ाहुन्-न सब्-अ़ समावातिन् फ़ी यौमैनि व औहा फ़ी कुल्लि समा-इन् अम्-रहा, व ज़य्यन्नस्समा – अद्-दुन्या बि-मसाबी-ह व हिफ़्ज़न्, ज़ालि क तक़्दीरुल्-अ़ज़ीज़िल्- अ़लीम
तथा बना दिया उनको सात आकाश, दो दिनों में, वह़्यी कर दिया प्रत्येक आकाश में उसका आदेश तथा हमने सुसज्जित किया समीप (संसार) के आकाश को, दीपों (तारों) से तथा सुरक्षा के[1] लिए। ये अति प्रभालशाली सर्वज्ञ की योजना है। 1. अर्थात शैतानों से रक्षा के लिये। (देखियेः सूरह साफ़्फ़ात, आयत 7 से 10 तक)।
فَإِنْ أَعْرَضُوا فَقُلْ أَنذَرْتُكُمْ صَاعِقَةً مِّثْلَ صَاعِقَةِ عَادٍ وَثَمُودَ ﴾ 13 ﴿
फ-इन् अअ्-रज़ू फ़क़ुल अन्जर्तुकुम् साअि- क़तम् मिस्-ल साअि-क़ति आदिंव्व समूद
फिर भी यदि वह विमुख हों, तो आप कह दें कि मैंने तुम्हें सावधान कर दिया कड़ी यातना से, जो आद तथा समूद की कड़ी यातना जैसी होगी।
إِذْ جَاءَتْهُمُ الرُّسُلُ مِن بَيْنِ أَيْدِيهِمْ وَمِنْ خَلْفِهِمْ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا اللَّهَ ۖ قَالُوا لَوْ شَاءَ رَبُّنَا لَأَنزَلَ مَلَائِكَةً فَإِنَّا بِمَا أُرْسِلْتُم بِهِ كَافِرُونَ ﴾ 14 ﴿
इज़् जा अत्हुमुर् – रसुलु मिम्-बैनि ऐदीहिम् व मिन् ख़ल्फ़िहिम् अल्ला तअ्बुदू इल्लल्ला-ह, क़ालू लौ शा-अ रब्बुना ल-अन्ज़-ल मलाइ-कतन् फ़-इन्ना बिमा उर्सिल्तुम् बिही काफ़िरून
जब आये उनके पास, उनके रसूल, उनके आगे तथा उनके पीछे[1] से कि न इबादत (वंदना) करो अल्लाह के सिवा की। तो उन्होंने कहाः यदि हमारा पालनहार चाहता, तो किसी फ़रिश्ते को उतार देता।[2] अतः, तुम जिस बात के साथ भेजे गये हो, हम उसे नहीं मानते। 1. अर्थता प्रत्येक प्रकार से समझाते रहे। 2. वे मनुष्य को रसूल मानने के लिये तैयार नहीं थे। (जिस प्रकार कुछ लोग जो रसूल को मानते हैं पर वे उन्हें मनुष्य मानने को तैयार नहीं हैं)। ) देखियेः सूरह अन्आम, आयतः9-10, सूरह मुमिनून, आयतः24)
فَأَمَّا عَادٌ فَاسْتَكْبَرُوا فِي الْأَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَقَالُوا مَنْ أَشَدُّ مِنَّا قُوَّةً ۖ أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّ اللَّهَ الَّذِي خَلَقَهُمْ هُوَ أَشَدُّ مِنْهُمْ قُوَّةً ۖ وَكَانُوا بِآيَاتِنَا يَجْحَدُونَ ﴾ 15 ﴿
फ़-अम्मा आ़दुन् फ़स्तक्बरू फ़िल्अर्ज़ि बिग़ैरिल्-हक़्क़ि व क़ालू मन् अशद्-दु मिन्ना क़ुव्वतन्, अ-व लम् यरौ अन्नल्लाहल्लज़ी ख़-ल- क़हुम् हु-व अशद्-दु मिन्हुम् क़ुव्वतन्, व कानू बिआयातिना यज्हदून
रहे आद, तो उन्होंने अभिमान किया धरती में अवैध तथा कहा कि कौन हमसे अधिक है बल में? क्या उन्होंने नहीं देखा कि अल्लाह, जिसने उनको पैदा किया उनसे अधिक है बल में तथा हमारी आयतों को नकारते रहे।
فَأَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ رِيحًا صَرْصَرًا فِي أَيَّامٍ نَّحِسَاتٍ لِّنُذِيقَهُمْ عَذَابَ الْخِزْيِ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۖ وَلَعَذَابُ الْآخِرَةِ أَخْزَىٰ ۖ وَهُمْ لَا يُنصَرُونَ ﴾ 16 ﴿
फ़-अर्सल्ना अ़लैहिम् रीहन् सर्- सरन् फ़ी अय्यामिन्-नहिसातिल्-लिनुज़ी-क़हुम् अ़ज़ाबल्- ख़िज़्यि फ़िल्हयातिद्दुन्या, व ल-अ़ज़ाबुल्-आख़िरति अख़्ज़ा व हुम् ला युन्सरून
अन्ततः, हमने भेज दी उनपर प्रचण्ड वायु, कुछ अशुभ दिनों में। ताकि चखायें उन्हें अपमानकारी यातना सांसारिक जीवन में और आख़िरत (प्रलोक) की यातना अधिक अपमानकारी है तथा उन्हें कोई सहायता नहीं दी जायेगी।
وَأَمَّا ثَمُودُ فَهَدَيْنَاهُمْ فَاسْتَحَبُّوا الْعَمَىٰ عَلَى الْهُدَىٰ فَأَخَذَتْهُمْ صَاعِقَةُ الْعَذَابِ الْهُونِ بِمَا كَانُوا يَكْسِبُونَ ﴾ 17 ﴿
व अम्मा समूदु फ़-हदैनाहुम् फ़स्तहब्बुल- अ़मा अ़लल्-हुदा फ़-अ-ख़ज़त्हुम् साअि-क़तुल्-अ़ज़ाबिल् -हूनि बिमा कानू यक्सिबून
और रहे समूद, तो हमने उन्हें मार्ग दिखाया, फिर भी उन्होंने अन्धे बने रहने को मार्गदर्शन से प्रिय समझा। अन्ततः, पकड़ लिया उन्हें अपमानकारी यातना की कड़क ने, उसके कारण जो वे कर रहे थे।
وَنَجَّيْنَا الَّذِينَ آمَنُوا وَكَانُوا يَتَّقُونَ ﴾ 18 ﴿
व नज्जैनल्लज़ी-न आमनू व कानू यत्तक़ून
तथा हमने बचा लिया उन्हें, जो ईमान लाये तथा (अवज्ञा से) डरते रहे।
وَيَوْمَ يُحْشَرُ أَعْدَاءُ اللَّهِ إِلَى النَّارِ فَهُمْ يُوزَعُونَ ﴾ 19 ﴿
व यौ-म युह्शरु अअ्दाउल्लाहि इलन्नारि फ़हुम् यू – ज़अून
और जिस दिन अल्लाह के शत्रु एकत्र किये जायेंगे, तो वे रोक लिए जायेंगे।
حَتَّىٰ إِذَا مَا جَاءُوهَا شَهِدَ عَلَيْهِمْ سَمْعُهُمْ وَأَبْصَارُهُمْ وَجُلُودُهُم بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ ﴾ 20 ﴿
हत्ता इज़ा मा जाऊहा शहि-द अ़लैहिम् सम्अुहुम् व अब्सारुहुम् व जुलूदुहुम् बिमा कानू यअ्मलून
यहाँतक कि जब आ जायेंगे उस (नरक) के पास, तो साक्ष्य देंगे उनपर उनके कान तथा उनकी आँखें और उनकी खालें उस कर्म का, जो वे किया करते थे।
وَقَالُوا لِجُلُودِهِمْ لِمَ شَهِدتُّمْ عَلَيْنَا ۖ قَالُوا أَنطَقَنَا اللَّهُ الَّذِي أَنطَقَ كُلَّ شَيْءٍ وَهُوَ خَلَقَكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ ﴾ 21 ﴿
व क़ालू लिजुलूदिहिम् लि-म शहित्तुम् अ़लैना, क़ालू अ़न्त- क़नल्लाहुल्लज़ी अन्त-क़ क़ुल-ल शैइंव्-व हु-व ख़-ल-क़कुम् अव्व-ल मर्रतिंव् व इलैहि तुर्जअून
और वे कहेंगे अपनी खालों सेः क्यों साक्ष्य दिया तुमने हमारे विरुध्द? वे उत्तर देंगी कि हमें बोलने की शक्ति प्रदान की है उसने, जिसने प्रत्येक वस्तु को बोलने की शक्ति दी है तथा उसीने तुम्हें पैदा किया प्रथम बार और उसी की ओर तुमसब फेरे जा रहे हो।
وَمَا كُنتُمْ تَسْتَتِرُونَ أَن يَشْهَدَ عَلَيْكُمْ سَمْعُكُمْ وَلَا أَبْصَارُكُمْ وَلَا جُلُودُكُمْ وَلَٰكِن ظَنَنتُمْ أَنَّ اللَّهَ لَا يَعْلَمُ كَثِيرًا مِّمَّا تَعْمَلُونَ ﴾ 22 ﴿
व मा कुन्तुम् तस्ततिरू न अंय्यश्-ह-द अ़लैकुम् सम्अुकुम् व ला अब्सारुकुम् व ला जुलूदुकुम् व लाकिन् ज़नन्तुम् अन्नल्ला-ह ला यअ्लमु कसीरम्-मिम्मा तअ्मलून
तथा तुम (पाप करते समय)[1] छुपाते नहीं थे कि कहीं साक्ष्य न दें, तुमपर, तुम्हारे कान, तुम्हारी आँख एवं तुम्हारी खालें। परन्तु, तुम समझते रहे कि अल्लाह नहीं जानता उसमें से अधिक्तर बातों को, जो तुम करते हो। 1. आदरणीय अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि ख़ाना काबा के पास एक घर में दो क़ुरैशी तथा एक सक़फ़ी अथवा दो सक़फ़ी और एक क़ुरैशी थे। तो एक ने दूसरे से कहा कि तुम समझते हो कि अल्लाह हमारी बातें सुन रहा है? किसी ने कहाः यदि कुछ सुनता है तो सब कुछ सुनता है। उसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4816, 4817, 7521)
وَذَٰلِكُمْ ظَنُّكُمُ الَّذِي ظَنَنتُم بِرَبِّكُمْ أَرْدَاكُمْ فَأَصْبَحْتُم مِّنَ الْخَاسِرِينَ ﴾ 23 ﴿
व ज़ालिकुम् ज़न्नुकुमुल्लज़ी ज़नन्तुम् बिरब्बिकुम् अर्दाकुम् फ़-अस्बह्तुम् मिनल्-ख़ासिरीन
इसी कुविचार ने, जो तुमने किया अपने पालनहार के विषय में, तुम्हें नाश कर दिया और तुम विनाशों में हो गये।
فَإِن يَصْبِرُوا فَالنَّارُ مَثْوًى لَّهُمْ ۖ وَإِن يَسْتَعْتِبُوا فَمَا هُم مِّنَ الْمُعْتَبِينَ ﴾ 24 ﴿
फ़-इंय्यस्बिरू फ़न्नारु मस्वल- लहुम्, व इंय्यस्तअ्तिबू फ़मा हुम् मिनल्-मुअ्तबीन
तो यदि वे धैर्य रखें, तबभी नरक ही उनका आवास है और यदि वे क्षमा माँगें, तबभी वे क्षमा नहीं किये जायेंगे।
وَقَيَّضْنَا لَهُمْ قُرَنَاءَ فَزَيَّنُوا لَهُم مَّا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَحَقَّ عَلَيْهِمُ الْقَوْلُ فِي أُمَمٍ قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِهِم مِّنَ الْجِنِّ وَالْإِنسِ ۖ إِنَّهُمْ كَانُوا خَاسِرِينَ ﴾ 25 ﴿
व क़य्यज़्ना लहुम् क़ु-रना-अ फ़-ज़य्यनू लहुम् मा बै-न ऐदीहिम् व मा ख़ल्फ़हुम् व हक़्-क़ अ़लैहिमुल्-क़ौलु फ़ी उ-ममिन् क़द् ख़लत् मिन् क़ब्लिहिम् मिनल्-जिन्नि वल्-इन्सि इन्नहुम् कानू ख़ासिरीन
और हमने बना दिये उनके लिए ऐसे साथी, जो शोभनीय बना रहे थे उनके लिए, उनके अगले तथा पिछले दुष्कर्मों को तथा सिध्द हो गया उनपर, अल्लाह (की यातना) का वचन, उन समुदायों में, जो गुज़र गये इनसे पूर्व, जिन्नों तथा मनुष्यों में से। वास्तव में, वही क्षतिग्रस्त थे।
وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لَا تَسْمَعُوا لِهَٰذَا الْقُرْآنِ وَالْغَوْا فِيهِ لَعَلَّكُمْ تَغْلِبُونَ ﴾ 26 ﴿
व क़ालल्लज़ी-न क-फ़रू ला तस्मअू लिहाज़ल्-क़ुर्-आनि वल्ग़ौ फ़ीहि लअ़ल्लक़ुम् तग़्लिबून
तथा काफ़िरों ने कहा[1] कि इस क़ुर्आन को न सुनो और कोलाहल (शोर) करो इस (के सुनाने) के समय। सम्भवतः, तुम प्रभुत्वशाली हो जाओ। 1. मक्का के काफ़िरों ने जब देखा कि लोग क़ुर्आन सुन कर प्रभावित हो रहे हैं तो उन्हों ने यह योजना बनाई।
فَلَنُذِيقَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا عَذَابًا شَدِيدًا وَلَنَجْزِيَنَّهُمْ أَسْوَأَ الَّذِي كَانُوا يَعْمَلُونَ ﴾ 27 ﴿
फ़-लनुज़ीक़न्नल्लज़ी-न क-फ़रू अ़ज़ाबन् शदीदंव् व ल – नज्ज़ियन्नहुम् अस्व-अल्लज़ी कानू यअ्मलून
तो हम अवश्य चखायेंगे उन्हें, जो काफ़िर हो गये, कड़ी यातना और अवश्य उन्हें कुफ़ल देंगे, उस दुष्कर्म का, जो वे करते रहे।
ذَٰلِكَ جَزَاءُ أَعْدَاءِ اللَّهِ النَّارُ ۖ لَهُمْ فِيهَا دَارُ الْخُلْدِ ۖ جَزَاءً بِمَا كَانُوا بِآيَاتِنَا يَجْحَدُونَ ﴾ 28 ﴿
ज़ालि क जज़ा-उ अअ्दा-इल्लाहिन्नारु लहुम् फ़ीहा दारुल्- ख़ुल्दि जज़ा-अम् बिमा कानू बिआयातिना यज्हदून
ये अल्लाह के शत्रुओं का प्रतिकार नरक है। उनके लिए उसमें स्थायी घर होंगे, उसके बदले, जो हमारी अयतों को नकार रहे हैं।
وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا رَبَّنَا أَرِنَا اللَّذَيْنِ أَضَلَّانَا مِنَ الْجِنِّ وَالْإِنسِ نَجْعَلْهُمَا تَحْتَ أَقْدَامِنَا لِيَكُونَا مِنَ الْأَسْفَلِينَ ﴾ 29 ﴿
व क़ालल्लज़ी – न क – फ़रू रब्बना अरिनल्लज़ैनि अज़ल्लाना मिनल्-जिन्नि वल्-इन्सि नज्अ़ल्हुमा तह्-त अक़्दामिना लि-यकूना मिनल्-अस्फ़लीन
तथा वो कहेंगे जो काफ़िर हो गये कि हमारे पालनहर! हमें दिखा दे उन्हें, जिन्हों ने हमें कुपथ किया है, जिन्नों तथा मनुष्यों में से। ताकी हम रौंद दें उन दोनों को, अपने पैरों से। ताकि वे दोनों अधिक नीचे हो जायें।
إِنَّ الَّذِينَ قَالُوا رَبُّنَا اللَّهُ ثُمَّ اسْتَقَامُوا تَتَنَزَّلُ عَلَيْهِمُ الْمَلَائِكَةُ أَلَّا تَخَافُوا وَلَا تَحْزَنُوا وَأَبْشِرُوا بِالْجَنَّةِ الَّتِي كُنتُمْ تُوعَدُونَ ﴾ 30 ﴿
इन्नल्लज़ी-न क़ालू रब्बुनल्लाहु सुम्मस्-तक़ामू त तनज़्ज़लु अ़लैहिमुल्-मलाइ-कतु अल्ला तख़ाफ़ू व ला तह्ज़नू व अब्शिरू बिल्-जन्नतिल्लती कुन्तुम् तू-अ़दून
निश्चय जिन्होंने कहा कि हमारा पालनहार अल्लाह है, फिर इसीपर स्थिर रह[1] गये, तो उनपर फ़रिश्ते उतरते हैं[2] कि भय न करो और न उदासीन रहो तथा उस स्वर्ग से प्रसन्न हो जाओ, जिसका वचन तुम्हें दिया जा रहा है। 1. अर्थात प्रत्येक दशा में आज्ञा पालन तथा एकेश्वरवाद पर स्थिर रहे। 2. उन के मरण के समय।
نَحْنُ أَوْلِيَاؤُكُمْ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَفِي الْآخِرَةِ ۖ وَلَكُمْ فِيهَا مَا تَشْتَهِي أَنفُسُكُمْ وَلَكُمْ فِيهَا مَا تَدَّعُونَ ﴾ 31 ﴿
नह्नु औलिया-उकुम् फिल् हयातिद्-दुन्या व फिल्- आख़िरति व लकुम् फ़ीहा मा तश्तही अन्फ़ुसुकुम् व लकुम् फ़ीहा मा तद्-दअून
हम तुम्हारे सहायक हैं, सांसारिक जीवन में तथा परलोक में और तुम्हारे लिए उस (स्वर्ग) में वह चीज़ है, जो तुम्हारा मन चाहे तथा उसमें तुम्हारे लिए वह है, जिसकी तुम माँग करोगे।
نُزُلًا مِّنْ غَفُورٍ رَّحِيمٍ ﴾ 32 ﴿
नुज़ुलम् मिन् ग़फ़ूरिर्रहीम *
अतिथि-सत्कार स्वरूप, अति क्षमी, दयावान् की ओर से।
وَمَنْ أَحْسَنُ قَوْلًا مِّمَّن دَعَا إِلَى اللَّهِ وَعَمِلَ صَالِحًا وَقَالَ إِنَّنِي مِنَ الْمُسْلِمِينَ ﴾ 33 ﴿
व मन् अह्सनु क़ौलम् मिम्-मन् दआ़ इलल्लाहि व अ़मि-ल सालिहंबू-व क़ा-ल इन्ननी मिनल्-मुस्लिमीन
और किसकी बात उससे अच्छी होगी, जो अल्लाह की ओर बुलाये तथा सदाचार करे और कहे कि मैं मुसलमानों में से हूँ।
وَلَا تَسْتَوِي الْحَسَنَةُ وَلَا السَّيِّئَةُ ۚ ادْفَعْ بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ فَإِذَا الَّذِي بَيْنَكَ وَبَيْنَهُ عَدَاوَةٌ كَأَنَّهُ وَلِيٌّ حَمِيمٌ ﴾ 34 ﴿
व ला तस्तविल्-ह-स- नतु व लस्सय्यि-अतु इद्फ़अ् बिल्लती हि-य अह्सनु फ़-इज़ल्-लज़ी बैन-क व बैनहू अ़दा-वतुन् क- अन्नहू वलिय्युन् हमीम
और समान नहीं होते पुण्य तथा पाप, आप दूर करें (बुराई को) उसके द्वारा, जो सर्वोत्तम हो। तो सहसा आपके तथा जिसके बीच बैर हो, मानो वह हार्दिक मित्र हो गया।[1] 1. इस आयत में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को तथा आप के माध्यम से सर्वसाधारण मुसलमानों को यह निर्देश दिया गया है कि बुराई का बदला अच्छाई से तथा अपकार का बदला उपकार से दें। जिस का प्रभाव यह होगा कि अपना शत्रु भी हार्दिक मित्र बन जायेगा।
وَمَا يُلَقَّاهَا إِلَّا الَّذِينَ صَبَرُوا وَمَا يُلَقَّاهَا إِلَّا ذُو حَظٍّ عَظِيمٍ ﴾ 35 ﴿
व मा युलक़्क़ाहा इल्लल्लज़ी-न स-बरु व मा युलक़्क़ाहा इल्ला ज़ू हज़्ज़िन् अ़ज़ीम
और ये गुण उन्हीं को प्राप्त होता है, जो सहन करें तथा उन्हीं को होता है, जो बड़े भाग्यशाली हों।
وَإِمَّا يَنزَغَنَّكَ مِنَ الشَّيْطَانِ نَزْغٌ فَاسْتَعِذْ بِاللَّهِ ۖ إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ ﴾ 36 ﴿
व इम्मा यन्-ज़ग़न्न-क मिनश्- शैतानि नज़्ग़ुनू फ़स्तअिज़ू बिल्लाहि, इन्नहू हुवस्समीअुल्-अ़लीम
और यदि आपको शैतान की ओर से कोई संशय हो, तो अल्लाह की शरण लें। वास्तव में, वही सब कुछ सुनने-जानने वाला है।
وَمِنْ آيَاتِهِ اللَّيْلُ وَالنَّهَارُ وَالشَّمْسُ وَالْقَمَرُ ۚ لَا تَسْجُدُوا لِلشَّمْسِ وَلَا لِلْقَمَرِ وَاسْجُدُوا لِلَّهِ الَّذِي خَلَقَهُنَّ إِن كُنتُمْ إِيَّاهُ تَعْبُدُونَ ﴾ 37 ﴿
व – मिन् आयातिहिल्लैलु वन्नहारु वश्शम्सु वल्क़-मरु, ला तस्जुदू लिश्शम्सि व ला लिल्क़-मरि वस्जुदू लिल्लाहिल्लज़ी ख़-ल- क़हुन्-न इन् कुन्तुम् इय्याहु तअ्बुदून
तथा उसकी निशानियों में से है रात्रि, दिवस, सूर्य तथा चन्द्रमा, तुम सज्दा न करो सूर्य तथा चन्द्रमा को और सज्दा करो उस अल्लाह को, जिसने पैदा किया है उनको, यदि तुम उसी (अल्लाह) की इबादत (वंदना) करते हो।[1] 1. अर्थात सच्चा वंदनीय (पूज्य) अल्लाह के सिवा कोई नहीं है। यह सुर्य, चन्द्रमा और अन्य आकाशीय ग्रहें अल्लाह के बनाये हुये हैं। और उसी के अधीन हैं। इस लिये इन को सज्दा करना व्यर्थ है। और जो ऐसा करता है वह अल्लाह के साथ उस की बनाई हुई चीज़ को उस का साझी बनाता है जो शिर्क और अक्षम्य पापा तथा अन्याय है। सज्दा करना इबादत है। जो अल्लाह ही के लिये विशेष है। इसी लिये कहा है कि यदि अल्लाह ही की इबादत करते हो तो सज्दा भी उसी के लिये करो। उस के सिवा कोई ऐसा नहीं जिसे सज्दा करना उचित हो। क्यों कि सब अल्लाह के बनाये हुये हैं सूर्य हो या कोई मनुष्य। सज्दा आदर के लिये हो या इबादत (वंदना) के लिये। अल्लाह के सिवा किसी को भी सज्दा करना अवैध तथा शिर्क है जिसा का पिरणाम सदैव के लिये नरक है। आयत 38 पूरी कर के सज्दा करें।
فَإِنِ اسْتَكْبَرُوا فَالَّذِينَ عِندَ رَبِّكَ يُسَبِّحُونَ لَهُ بِاللَّيْلِ وَالنَّهَارِ وَهُمْ لَا يَسْأَمُونَ ۩ ﴾ 38 ﴿
फ़-इनिस्तक्बरू फ़ल्लज़ी-न अिन्-द रब्बि-क युसब्बिहू-न लहू बिल्लैलि वन्नहारि व हुम् ला यस्-अमून *सज्दा*
तथा यदि वे अभिमान करें, तो जो (फ़रिश्ते) आपके पालनहार के पास हैं, वे उसकी पवित्रता का वर्णन करते रहते हैं, रात्रि तथा दिवस में और वे थकते नहीं हैं।
وَمِنْ آيَاتِهِ أَنَّكَ تَرَى الْأَرْضَ خَاشِعَةً فَإِذَا أَنزَلْنَا عَلَيْهَا الْمَاءَ اهْتَزَّتْ وَرَبَتْ ۚ إِنَّ الَّذِي أَحْيَاهَا لَمُحْيِي الْمَوْتَىٰ ۚ إِنَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ ﴾ 39 ﴿
व मिन् आयातिही अन्न-क तरल् अर्ज़ ख़ाशि-अ़तन् फ़-इज़ा अन्ज़ल्ना अ़लैहल् मा-अह्तज़्ज़त् व र-बत्, इन्नल्लज़ी अह्याहा ल-मुह्यिल्-मौता, इन्नहू अ़ला कुल्लि शैइन् क़दीर
तथा उसी की निशानियों में से है कि आप देखते हैं धरती को सहमी हुई। फिर जैसे ही हमने उसपर जल बरसाया, तो वह लहलहाने लगी तथा उभर गयी। निश्चय जिसने जीवित किया है उसे, अवश्य वही जीवित करने वाला है मुर्दों को। वास्तव में, वह जो चाहे, कर सकता है।
إِنَّ الَّذِينَ يُلْحِدُونَ فِي آيَاتِنَا لَا يَخْفَوْنَ عَلَيْنَا ۗ أَفَمَن يُلْقَىٰ فِي النَّارِ خَيْرٌ أَم مَّن يَأْتِي آمِنًا يَوْمَ الْقِيَامَةِ ۚ اعْمَلُوا مَا شِئْتُمْ ۖ إِنَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ ﴾ 40 ﴿
इन्नल्लज़ी-न युल्हिदू-न फ़ी आयातिना ला यख़्फ़ौ न अ़लैना, अ-फ़-मंय्युल्क़ा फ़िन्नारि ख़ैरुन् अम्-मंय्यअ्ती आमिनंय्यौमल् क़ियामति, इअ्मलू मा शिअ्तुम् इन्नहू बिमा तअ्मलू-न बसीर
जो टेढ़ निकालते हैं हमारी आयतों में, वे हमपर छुपे नहीं रहते। तो क्या जो फेंक दिया जायेगा अग्नि में, उत्तम है अथवा जो निर्भय होकर आयेगा प्रलय के दिन? करो जो चाहो, वास्तव में, वह जो तुम करते हो, उसे देख रहा है।[1] 1. अर्थात तुम्हारे मनमानी करने का कुफल तुम्हें अवश्य देगा।
إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا بِالذِّكْرِ لَمَّا جَاءَهُمْ ۖ وَإِنَّهُ لَكِتَابٌ عَزِيزٌ ﴾ 41 ﴿
इन्नल्लज़ी-न क-फ़रू बिज़्ज़िक्रि लम्मा जा-अहुम् व इन्नहू ल-किताबुन् अ़ज़ीज़
निश्चय उन्होंने कुफ़्र कर दिया इस शिक्षा (क़ुर्आन) के साथ, जब आ गयी उनके पास और सच ये है कि ये एक अति सम्मानित पुस्तक है।
لَّا يَأْتِيهِ الْبَاطِلُ مِن بَيْنِ يَدَيْهِ وَلَا مِنْ خَلْفِهِ ۖ تَنزِيلٌ مِّنْ حَكِيمٍ حَمِيدٍ ﴾ 42 ﴿
ला यअ्तीहिल्-बातिलु मिम्बैनि यदैहि व ला मिन् ख़ल्फ़िही तन्ज़ीलुम्-मिन् हकीमिन् हमीद
नहीं आ सकता झुठ इसके आगे से और न इसके पीछे से। उतरा है तत्वज्ञ, प्रशंसित (अल्लाह) की ओर से।
مَّا يُقَالُ لَكَ إِلَّا مَا قَدْ قِيلَ لِلرُّسُلِ مِن قَبْلِكَ ۚ إِنَّ رَبَّكَ لَذُو مَغْفِرَةٍ وَذُو عِقَابٍ أَلِيمٍ ﴾ 43 ﴿
मा युक़ालु ल-क इल्ला मा क़द् क़ी-ल लिर्रुसुलि मिन् क़ब्लि-क, इन्-न रब्ब क लज़ू मग़्फ़ि रतिंव्-व ज़ू अिकाबिन् अलीम अलीम
आपसे वही कहा जा रहा है, जो आपसे पूर्व रसूलों से कहा गया।[1] वास्तव में, आपका पालनहार क्षमा करने (तथा) दुःखदायी य़ातना देने वाला है। 1. अर्थात उन को जादूगर, झूठा तथा कवि इत्यादि कहा गया। (देखियेः सूरह ज़ारियात, आयतः52-53)
وَلَوْ جَعَلْنَاهُ قُرْآنًا أَعْجَمِيًّا لَّقَالُوا لَوْلَا فُصِّلَتْ آيَاتُهُ ۖ أَأَعْجَمِيٌّ وَعَرَبِيٌّ ۗ قُلْ هُوَ لِلَّذِينَ آمَنُوا هُدًى وَشِفَاءٌ ۖ وَالَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ فِي آذَانِهِمْ وَقْرٌ وَهُوَ عَلَيْهِمْ عَمًى ۚ أُولَٰئِكَ يُنَادَوْنَ مِن مَّكَانٍ بَعِيدٍ ﴾ 44 ﴿
व लौ जअ़ल्लाहु क़ुर्आनन् अअ्-जमिय्यल्-लक़ालू लौ ला फ़ुस्सिलत् आयातुहू अ-अअ्-जमिय्युंव-व अ़-रबिय्युन्, क़ुल् हु-व लिल्लज़ी-न आमनू हुदंव्-व शिफ़ाउन्, वल्लज़ी-न ला युअ्मिनू न फ़ी आज़ानिहिम् वक़्-रूंव व हु-व अ़लैहिम् अ़-मन्, उलाइ-क युनादौ न मिम्-मकानिम्-बईद
और यदि हम इसे बनाते अरबी (के अतिरिक्त किसी) अन्य भाषा में, तो वे अवश्य कहते कि क्यों नहीं खोल दी गयीं उसकी आयतें? ये क्या कि (पुस्तक) ग़ैर अरबी और (नबी) अरबी? आप कह दें कि वह उनके लिए, जो ईमान लाये, मार्गदर्शन तथा आरोग्यकर है और जो ईमान न लायें, उनके कानों में बोझ है और वह उनपर अंधापन है और वही पुकारे जा रहे हैं दूर स्थानों से।[1] 2. अर्थात क़ुर्आन से प्रभावित होने के लिये ईमान आवश्यक है इस के बिना इस का कोई प्रभाव नहीं होता।
وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ فَاخْتُلِفَ فِيهِ ۗ وَلَوْلَا كَلِمَةٌ سَبَقَتْ مِن رَّبِّكَ لَقُضِيَ بَيْنَهُمْ ۚ وَإِنَّهُمْ لَفِي شَكٍّ مِّنْهُ مُرِيبٍ ﴾ 45 ﴿
व ल-क़द् आतैना मूसल्-किता-ब फ़ख़्तुलि-फ़ फ़ीहि, व लौ ला कलि-मतुन् स-बक़त् मिर्रब्बि-क लक़ुजि-य बैनहुम्, इन्नहुम् लफ़ी शक्किम् मिन्हु मुरीब
तथा हम प्रदान कर चुके हैं मूसा को पुस्तक (तौरात)। तो उसमें भी विभेद किया गया और यदि एक बात पहले ही से निर्धारित न होती[1] आपके पालनहार की ओर से, तो निर्णय कर दिया जाता उनके बीच। निःसंदेह, वह उनके विषय में संदेह में डाँवाडोल हैं। 1. अर्थात प्रलय के दिन निर्णय करने की। तो संसार ही में निर्णय कर दिया जाता और उन्हें कोई अवसर नहीं दिया जाता। (देखियेः सूरह फ़ातिर, आयतः45)
مَّنْ عَمِلَ صَالِحًا فَلِنَفْسِهِ ۖ وَمَنْ أَسَاءَ فَعَلَيْهَا ۗ وَمَا رَبُّكَ بِظَلَّامٍ لِّلْعَبِيدِ ﴾ 46 ﴿
मन् अ़मि-ल सालिहन् फ़लि-नफ़्सिही व मन् असा-अ फ़ अ़लैहा, व मा रब्बु-क बिज़ल्लामिल्-लिल्- अ़बीद
जो सदाचार करेगा, तो वह अपने ही लाभ के लिए करेगा और जो दुराचार करेगा, तो उसका दुष्परिणाम उसीपर होगा और आपका पालनहार तनिक भी अत्याचार करने वाला नहीं है भक्तों पर।[1] 1. अर्थात किसी को बिना पाप के यातना नहीं देता।
إِلَيْهِ يُرَدُّ عِلْمُ السَّاعَةِ ۚ وَمَا تَخْرُجُ مِن ثَمَرَاتٍ مِّنْ أَكْمَامِهَا وَمَا تَحْمِلُ مِنْ أُنثَىٰ وَلَا تَضَعُ إِلَّا بِعِلْمِهِ ۚ وَيَوْمَ يُنَادِيهِمْ أَيْنَ شُرَكَائِي قَالُوا آذَنَّاكَ مَا مِنَّا مِن شَهِيدٍ ﴾ 47 ﴿
इलैहि युरद्-दु अिल्मुस्सा-अ़ति व मा तख़्-रुजु मिन् स-मरातिम्-मिन् अक्मामिहा व मा तह्मिलु मिन् उन्सा व ला त-ज़अु इल्ला बिअिल्मिही, व यौ-म युनादीहिम् ऐ-न शु-रकाई क़ालू आज़न्ना-क मा मिन्ना मिन् शहीद
उसी की ओर फेरा जाता है प्रलय का ज्ञान तथा नहीं निकलते कोई फल अपने गाभों से और नहीं गर्भ धारण करती कोई मादा और न जन्म देती है, परन्तु उसके ज्ञान से और जिस दिन वह पूकारेगा उन्हें कि कहाँ हैं मेरे साझी? तो वे कहेंगे कि हमने तुझे बता दिया था कि हममें से कोई उसका गवाह नहीं है।
وَضَلَّ عَنْهُم مَّا كَانُوا يَدْعُونَ مِن قَبْلُ ۖ وَظَنُّوا مَا لَهُم مِّن مَّحِيصٍ ﴾ 48 ﴿
व ज़ल्-ल अ़न्हुम् मा कानू यद्अू -न मिन् क़ब्लु व ज़न्नू मा लहुम् मिम्-महीस
और खो जायेंगे[1] उनसे वे, जिन्हें पुकारते थे इससे पूर्व तथा वे विश्वास कर लेंगे कि नहीं है उनके लिए कोई शरण का स्थान। 1. अर्थात सब ग़ैब की बातें अल्लाह ही जानता है। इस लिये इस की चिन्ता न करो कि प्रलय कब आयेगी। अपने परिणाम की चिन्ता करो।
لَّا يَسْأَمُ الْإِنسَانُ مِن دُعَاءِ الْخَيْرِ وَإِن مَّسَّهُ الشَّرُّ فَيَئُوسٌ قَنُوطٌ ﴾ 49 ﴿
ला यस्- अमुल् -इन्सानु मिन् दुआ़-इल्ख़ैरि व इम्-मस्सहुश्-शर्रू फ़-यऊसुन् क़नूत
नहीं थकता मनुष्य भलाई (सुख) की प्रार्थना से और यदि उसे पहुँच जाये बुराई (दुःख), तो (हताश) निराश[1] हो जाता है। 1. .यह साधारण लोगों की दशा है। अन्यथा मुसलमान निराश नहीं होता।
وَلَئِنْ أَذَقْنَاهُ رَحْمَةً مِّنَّا مِن بَعْدِ ضَرَّاءَ مَسَّتْهُ لَيَقُولَنَّ هَٰذَا لِي وَمَا أَظُنُّ السَّاعَةَ قَائِمَةً وَلَئِن رُّجِعْتُ إِلَىٰ رَبِّي إِنَّ لِي عِندَهُ لَلْحُسْنَىٰ ۚ فَلَنُنَبِّئَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا بِمَا عَمِلُوا وَلَنُذِيقَنَّهُم مِّنْ عَذَابٍ غَلِيظٍ ﴾ 50 ﴿
व ल-इन् अज़क़्नाहु रह्म-तम् मिन्ना मिम्-बअ्दि ज़र्रा-अ मस्सत्हु ल-यक़ूलन्-न हाज़ा ली व मा अज़ुन्नुस्सा-अ़-त क़ाइ-मतंव्-व ल-इर्-रुजिअ्तु इला रब्बी इन्-न ली अिन्दहू लल्हुस्ना फ़-लनुनब्बि-अन्नल्लज़ी- न क-फ़रू बिमा अ़मिलू व लनुज़ीक़न्नहुम् मिन् अ़ज़ाबिन् ग़लीज़
और यदि हम उसे[1] चखा दें अपनी दया, दुःख के पश्चात्, जो उसे पहुँचा हो, तो अवश्य कह देता है कि मैं तो इसके योग्य ही था और मैं नहीं समझता कि प्रलय होनी है और यदि मैं पुनः अपने पालनहार की ओर गया, तो निश्चय ही मेरे लिए उसके पास भलाई होगी। तो हम अवश्य अवगत कर देंगे काफ़िरों को उनके कर्मों से तथा उन्हें अवश्य घोर यातना चखायेंगे। 1. आयत का भावार्थ यह है कि काफ़िर की यह दशा होती है। उसे अल्लाह के यहाँ जाने का विश्वास नहीं होता। फिर यदि प्रलय का होना मान ले तो भी इसी कुविचार में मग्न रहता है कि यदि अल्लाह ने मुझे संसार में सुख-सुविधा दी है तो वहाँ भी अवश्य देगा। और यह नहीं समझता कि यहाँ उसे जो कुछ दिया गया है वह परीक्षा के लिये दिया गया है। और प्रलय के दिन कर्मों के आधार पर प्रतिकार दिया जायेगा।
وَإِذَا أَنْعَمْنَا عَلَى الْإِنسَانِ أَعْرَضَ وَنَأَىٰ بِجَانِبِهِ وَإِذَا مَسَّهُ الشَّرُّ فَذُو دُعَاءٍ عَرِيضٍ ﴾ 51 ﴿
व इज़ा अन्अ़म्ना अ़लल्-इन्सानि अअ्-र-ज़ व नआ बिजानिबिही व इज़ा मस्सहुश्शर्रू फ़ज़ू दुआ़इन् अ़रीज़
तथा जब हम उपकार करते हैं मनुष्य पर, तो वह विमुख हो जाता है तथा अकड़ जाता है और जब उसे दुःख पहुँचे, तो लम्बी-चौड़ी प्रार्थना करने लगता है।
قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِن كَانَ مِنْ عِندِ اللَّهِ ثُمَّ كَفَرْتُم بِهِ مَنْ أَضَلُّ مِمَّنْ هُوَ فِي شِقَاقٍ بَعِيدٍ ﴾ 52 ﴿
क़ुल् अ-रऐतुम् इन् का-न मिन् अिन्दिल्लाहि सुम्-म कफ़र्तुम् बिही मन् अज़ल्लु मिम्मन् हु-व फ़ी शिक़ाक़िम्-बईद
आप कह दें: भला तुम ये तो बताओ, यदि ये क़ुर्आन अल्लाह की ओर से हो, फ़िर तुम कुफ़्र कर जाओ उसके साथ, तो कौन उससे अधिक कुपथ होगा, जो उसके विरोध में दूर तक चला जाये?
سَنُرِيهِمْ آيَاتِنَا فِي الْآفَاقِ وَفِي أَنفُسِهِمْ حَتَّىٰ يَتَبَيَّنَ لَهُمْ أَنَّهُ الْحَقُّ ۗ أَوَلَمْ يَكْفِ بِرَبِّكَ أَنَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ ﴾ 53 ﴿
सनुरीहिम् आयातिना फ़िल्-आफ़ाक़ि व फ़ी अन्फ़ुसिहिम् हत्ता य-तबय्य-न लहुम् अन्नहुल्-हक़्क़ु, अ-व लम् यक्फ़ि बिरब्बि-क अन्नहू अ़ला कुल्लि शैइन् शहीद
हम शीघ्र ही दिखा देंगे उन्हें अपनी निशानियाँ संसार के किनारों में तथा स्वयं उनके भीतर। यहाँतक कि खुल जायेगी उनके लिए ये बात कि यही सच है[1] और क्या ये बात प्रयाप्त नहीं कि आपका पालनहार ही प्रत्येक वस्तु का साक्षी (गवाह) है? 1. क़ुर्आन, और निशानियों से अभिप्राय वह विजय है जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तथा आप के पश्चात् मुसलमानों को प्राप्त होंगी। जिन से उन्हें विश्वास हो जायेगा कि क़ुर्आन ही सत्य है। इस आयत का एक दूसरा भावार्थ यह भी लिया गया है कि अल्लाह इस विश्व में तथा स्वयं तुम्हारे भीतर ऐसी निशानियाँ दिखायेगा। और यह निशानियाँ निरन्तर वैज्ञानिक अविष्कारों द्वारा सामने आ रहीं हैं। और प्रलय तक आती रहेंगी जिन से क़ुर्आन पाक का सत्य होना सिध्द होता रहेगा।
أَلَا إِنَّهُمْ فِي مِرْيَةٍ مِّن لِّقَاءِ رَبِّهِمْ ۗ أَلَا إِنَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ مُّحِيطٌ ﴾ 54 ﴿
अला इन्नहुम् फ़ी मिर्-यतिम्-मिल्लिक़ा-इ रब्बिहिम्, अला इन्नहू बिकुल्लि शैइम्-मुहीत *
सावधान! वही संदेह में हैं, अपने पालनहार से मिलने के विषय में। सावधान! वही (अल्लाह), प्रत्येक वस्तु को घेरे हुए है।