सूरह फातिर के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है, इस में 45 आयतें हैं।
- इस सूरह में फातिर शब्द आया है जिस का अर्थः उत्पत्तिकार है। इसी कारण इसे यह नाम दिया गया है।
- इस में अल्लाह के उत्पत्ति तथा पालन-पोषण करने के शुभगुणों को उजागर करके लोगों को एकेश्वरवाद तथा परलोक और रिसालत पर ईमान लाने को कहा गया है। इस की आरंभिक आयतों में ही पूरी सूरह का सारांश आ गया है।
- इस में तौहीद (एकेश्वरवाद) तथा परलोक का सविस्तार वर्णन तथा शिर्क का खण्डन किया गया है। और रिसालत पर ईमान न लाने का दुष्परिणाम बताया गया है।
- इस में बताया गया है कि अल्लाह की निशानियों की पहचान तथा धार्मिक ग्रन्थों द्वारा जो ज्ञान मिलता है वह मार्गदर्शन की राह खोल कर सफल बनाता है। और इस पहचान और ज्ञान से विमुख होने का परिणाम विनाश है।
- अन्त में मुश्रिकों को चेतावनी दी गई है।
सूरह फातिर | Surah Fatir in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
الْحَمْدُ لِلَّهِ فَاطِرِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ جَاعِلِ الْمَلَائِكَةِ رُسُلًا أُولِي أَجْنِحَةٍ مَّثْنَىٰ وَثُلَاثَ وَرُبَاعَ ۚ يَزِيدُ فِي الْخَلْقِ مَا يَشَاءُ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ ﴾ 1 ﴿
अल्हम्दु लिल्लाहि फ़ातिरिस्समावाति वल्अर्ज़ि जाअिलिल्-मलाइ-कति रुसुलन् उली अज्नि-हतिम् मस्ना व सुला-स व रुबा-अ़, यज़ीदु फ़िल्-ख़ल्क़ि मा यशा-उ, इन्नल्ला-ह अ़ला कुल्लि शैइन् क़दीर
सब प्रशंसा अल्लाह के लिए हैं, जो उत्पन्न करने वाला है आकाशों तथा धरती का, (और) बनाने वाला[1] है संदेशवाहक फ़रिश्तों को दो-दो, तीन-तीन, चार-चार परों वाले। वह अधिक करता है उत्पत्ति में, जो चाहता है, निःसंदेह अल्लाह जो चाहे, कर सकता है। 1. अर्थात फ़रिश्तों के द्वारा नबियों तक अपनी प्रकाशना तथा संदेश पहुँचाता है।
مَّا يَفْتَحِ اللَّهُ لِلنَّاسِ مِن رَّحْمَةٍ فَلَا مُمْسِكَ لَهَا ۖ وَمَا يُمْسِكْ فَلَا مُرْسِلَ لَهُ مِن بَعْدِهِ ۚ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ ﴾ 2 ﴿
मा यफ़्तहिल्लाहु लिन्नासि मिर्रह्मतिन् फ़ला मुम्सि-क लहा व मा युम्सिक् फ़ला मुर्सि-ल लहू मिम्बअ्दिही, व हुवल् अ़ज़ीज़ुल्-हकीम
जो खोल दे अल्लाह लोगों के लिए अपनी दया,[1] तो उसे कोई रोकने वाला नहीं तथा जिसे रोक दे, तो कोई खोलने वाला नहीं उसका, उसके पश्चात् तथा वही प्रभावशाली चतुर है। 1. अर्थात स्वास्थ्य, धन, ज्ञान आदि प्रदान करे।
يَا أَيُّهَا النَّاسُ اذْكُرُوا نِعْمَتَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ ۚ هَلْ مِنْ خَالِقٍ غَيْرُ اللَّهِ يَرْزُقُكُم مِّنَ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ ۚ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ فَأَنَّىٰ تُؤْفَكُونَ ﴾ 3 ﴿
या अय्युहन्नासुज़्कुरू निअ्-मतल्लाहि अ़लैकुम्, हल् मिन् ख़ालिकिन् ग़ैरुल्लाहि यर्ज़ुक़ुकुम् मिनस्समा-इ वल्अर्ज़ि, ला इला-ह इल्ला हु-व फ़-अन्ना तुअ्फ़कून
हे मनुष्यो! याद करो अपने ऊपर अल्लाह के पुरस्कार को, क्या कोई उत्पत्तिकर्ता है अल्लाह कि सिवा, जो तुम्हें जीविका प्रदान करता हो आकाश तथा धरती से? नहीं है कोई वंदनीय, परन्तु वही। फिर तुम कहाँ फिरे जा रहे हो?
وَإِن يُكَذِّبُوكَ فَقَدْ كُذِّبَتْ رُسُلٌ مِّن قَبْلِكَ ۚ وَإِلَى اللَّهِ تُرْجَعُ الْأُمُورُ ﴾ 4 ﴿
व इंय्युकज़्ज़िबू-क फ़-क़द् कुज़्ज़िबत् रुसुलुम् मिन् क़ब्लि-क, व इलल्लाहि तुर्जअुल्-उमूर
और यदि वे आपको झुठलाते हैं, तो झुठलाये जा चुके हैं बहुत-से रसूल आपसे पहले और अल्लाह ही की ओर फेरे जायेंगे सब विषय।[1] 1. अर्थात अन्ततः सभी विषयों का निर्णय हमें ही करना है तो यह कहाँ जायेंगे? अतः आप धैर्य से काम लें।
يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ ۖ فَلَا تَغُرَّنَّكُمُ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا ۖ وَلَا يَغُرَّنَّكُم بِاللَّهِ الْغَرُورُ ﴾ 5 ﴿
या अय्युहन्नासु इन्-न वअ्दल्लाहि हक़्क़ुन् फ़ला तग़ुर्रन्नकुमुल्-हयातुद्-दुन्या व ला यग़ुर्रन्नकुम् बिल्लाहिल्-ग़रूर
हे लोगो! निश्चय अल्लाह का वचन सत्य है। अतः, तुम्हें धोखे में न रखे सांसारिक जीवन और न धोखे में रखें अल्लाह से, अति प्रवंचक (शैतान)।
إِنَّ الشَّيْطَانَ لَكُمْ عَدُوٌّ فَاتَّخِذُوهُ عَدُوًّا ۚ إِنَّمَا يَدْعُو حِزْبَهُ لِيَكُونُوا مِنْ أَصْحَابِ السَّعِيرِ ﴾ 6 ﴿
इन्नश्- शैता- न लकुम् अ़दुव्वुन् फ़ित्तख़िजूहु अ़दुव्वन्, इन्नमा यद्अू हिज़्बहू लि-यकूनू मिन् अस्हाबिस्सईर
वास्तव में, शैतान तुम्हारा शत्रु है। अतः, तुम उसे अपना शत्रु ही समझो। वह बुलाता है अपने गिरोह को इसीलिए ताकि वे नारकियों में हो जायें।
الَّذِينَ كَفَرُوا لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ ۖ وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَأَجْرٌ كَبِيرٌ ﴾ 7 ﴿
अल्लज़ी-न क-फ़रू लहुम् अ़ज़ाबुन् शदीदुन्, वल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति लहुम् मग़्फ़ि-रतुंव्-व अज्रून् कबीर*
जो काफ़िर हो गये, उन्हीं के लिए कड़ी यातना है तथा जो ईमान लाये और सदाचार किये, तो उनके लिए क्षमा तथा बड़ा प्रतिफल है।
أَفَمَن زُيِّنَ لَهُ سُوءُ عَمَلِهِ فَرَآهُ حَسَنًا ۖ فَإِنَّ اللَّهَ يُضِلُّ مَن يَشَاءُ وَيَهْدِي مَن يَشَاءُ ۖ فَلَا تَذْهَبْ نَفْسُكَ عَلَيْهِمْ حَسَرَاتٍ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ بِمَا يَصْنَعُونَ ﴾ 8 ﴿
अ-फ़-मन् ज़ुय्यि-न लहू सूउ अ़-मलिही फ़-रआहु ह-सननू, फ़-इन्नल्ला-ह युज़िल्लु मंय्यशा- उ व यह्दी मंय्यशा-उ फ़ला तज़्हब् नफ़्सु-क अ़लैहिम् ह-सरातिन्, इन्नल्ला-ह अ़लीमुम्- बिमा यस्-नअून
तथा क्या शोभनीय बना दिया गया हो जिसके लिए उसका कुकर्म और वह उसे अच्छा समझता हो? तो अल्लाह ही कुपथ करता है, जिसे चाहे और सुपथ दिखाता है, जिसे चाहे। अतः, न खोयें आप अपना प्राण इनपर संताप के कारण। वास्तव में, अल्लाह जानता है, जो कुछ वे कर रहे हैं।
وَاللَّهُ الَّذِي أَرْسَلَ الرِّيَاحَ فَتُثِيرُ سَحَابًا فَسُقْنَاهُ إِلَىٰ بَلَدٍ مَّيِّتٍ فَأَحْيَيْنَا بِهِ الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا ۚ كَذَٰلِكَ النُّشُورُ ﴾ 9 ﴿
वल्लाहुल्लज़ी अर्-सलर्-रिया-ह फ़-तुसीरु सहाबन् फ़- सुक़्नाहु इला ब-लदिम्-मय्यितिन् फ़-अह्यैना बिहिल्-अर्-ज़ बअ्-द मौतिहा, कज़ालिकन्- नुशूर
तथा अल्लाह वही है, जो वायु को भेजता है, जो बादलों को उठाती है, फिर हम हाँक देते हैं उन्हें, निर्जीव नगर की ओर। फिर जीवित कर देते हैं उनके द्वारा धरती को, उसके मरण के पश्चात्। इसी प्रकार, फिर जीना (भी)[1] होगा। 1. अर्थात जिस प्रकार वर्षा से सूखी धरती हरी हो जाती है इसी प्रकार प्रलय के दिन तुम्हें भी जीवित कर दिया जायेगा।
مَن كَانَ يُرِيدُ الْعِزَّةَ فَلِلَّهِ الْعِزَّةُ جَمِيعًا ۚ إِلَيْهِ يَصْعَدُ الْكَلِمُ الطَّيِّبُ وَالْعَمَلُ الصَّالِحُ يَرْفَعُهُ ۚ وَالَّذِينَ يَمْكُرُونَ السَّيِّئَاتِ لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ ۖ وَمَكْرُ أُولَٰئِكَ هُوَ يَبُورُ ﴾ 10 ﴿
मन् का-न युरीदुल्-अिज़्ज़-त फ़लिल्लाहिल्-अिज़्ज़तु जमीअ़न्, इलैहि यस्-अ़दुल्-कलिमुत्तय्यिबु वल्-अ़-मलुस्- सालिहु यर्-फ़अुहू, वल्लज़ी-न यम्कुरूनस्सय्यिआति लहुम् अ़ज़ाबुन् शदीदुन्, व मक् रू उलाइ-क हु-व यबूर
जो सम्मान चाहता हो, तो अल्लाह ही के लिए है सब सम्मान और उसी की ओर चढ़ते हैं पवित्र वाक्य[1] तथा सत्कर्म ही उनको ऊपर ले जाता[2] है तथा जो दाव-घात में लगे रहते हैं बुराईयों की, तो उन्हीं के लिए कड़ी यातना है और उन्हीं के षड्यंत्र नाश हो जायेंगे। 1. पवित्र वाक्य से अभिप्राय ((ला इलाहा इल्लल्लाह)) है। जो तौह़ीद का शब्द है। तथा चढ़ने का अर्थ हैः अल्लाह के यहाँ स्वीकार होना। 2. आयत का भावार्थ यह है कि सम्मान अल्लाह की वंदना से मिलता है अन्य की पूजा से नहीं। और तौह़ीद के साथ सत्कर्म का होना भी अनिवार्य है। और जब ऐसा होगा तो उसे अल्लाह स्वीकार कर लेगा।
وَاللَّهُ خَلَقَكُم مِّن تُرَابٍ ثُمَّ مِن نُّطْفَةٍ ثُمَّ جَعَلَكُمْ أَزْوَاجًا ۚ وَمَا تَحْمِلُ مِنْ أُنثَىٰ وَلَا تَضَعُ إِلَّا بِعِلْمِهِ ۚ وَمَا يُعَمَّرُ مِن مُّعَمَّرٍ وَلَا يُنقَصُ مِنْ عُمُرِهِ إِلَّا فِي كِتَابٍ ۚ إِنَّ ذَٰلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرٌ ﴾ 11 ﴿
वल्लाहु ख़-ल- क़कुम् मिन् तुराबिन् सुम्-म मिन् नुत्फ़तिन् सुम्-म ज-अ़-लकुम् अ़ज्वाजन्, व मा तह्मिलु मिन् उन्सा व ला त-ज़अु इल्ला बिअिल्मिही, व मा युअ़म्म-रु मिम् – मुअ़म्म-रिंव्-व ला युन्क़सु मिन् अुमुरिही इल्ला फ़ी किताबिन, इन्-न ज़ालि-क अ़लल्लाहि यसीर
अल्लाह ने उत्पन्न किया तुम्हें मिट्टी से, फिर वीर्य से, फिर बनाये तुम्हें जोड़े और नहीं गर्भ धारण करती कोई नारी और न जन्म देती है, परन्तु उसके ज्ञान से और नहीं आयु दिया जाता कोई अधिक और न कम की जाती है उसकी आयु, परन्तु वह एक लेख में[1] है। वास्तव में, ये अल्लाह पर अति सरल है। 1. अर्थात प्रत्येक व्यक्ति की पूरी दशा उस के भाग्य लेख में पहले ही से अंकित है।
وَمَا يَسْتَوِي الْبَحْرَانِ هَٰذَا عَذْبٌ فُرَاتٌ سَائِغٌ شَرَابُهُ وَهَٰذَا مِلْحٌ أُجَاجٌ ۖ وَمِن كُلٍّ تَأْكُلُونَ لَحْمًا طَرِيًّا وَتَسْتَخْرِجُونَ حِلْيَةً تَلْبَسُونَهَا ۖ وَتَرَى الْفُلْكَ فِيهِ مَوَاخِرَ لِتَبْتَغُوا مِن فَضْلِهِ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ ﴾ 12 ﴿
व मा यस्तविल्-बह्-रानि हाज़ा अ़ज़्बुन् फ़ुरातुन सा-इग़ुन् शराबुहू व हाज़ा मिल्हुन् उजाजुनू, व मिन् कुल्लिन् तअ्कुलू- न लह्मन् तरिय्यंव्-व तस्तख़्रिजू-न हिल्य-तन् तल्बसूनहा व तरल्- फ़ुल्-क फ़ीहि मवाख़ि-र लितब्तग़ू मिन् फ़ज़्लिही व लअ़ल्लकुम् तश्कुरून
तथा बराबर नहीं होते दो सागर, ये मधुर प्यास बुझाने वाला है, रुचिकर है इसका पीना और वो (दूसरा) खारी कड़वा है तथा प्रत्येक में से तुम खाते हो ताज़ा माँस तथा निकालते हो आभूषण, जिसे पहनते हो और तुम देखते हो नाव को उसमें पानी फाड़ती हुई, ताकि तुम खोज करो अल्लाह के अनुग्रह की और ताकि तुम कृतज्ञ बनो।
يُولِجُ اللَّيْلَ فِي النَّهَارِ وَيُولِجُ النَّهَارَ فِي اللَّيْلِ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ كُلٌّ يَجْرِي لِأَجَلٍ مُّسَمًّى ۚ ذَٰلِكُمُ اللَّهُ رَبُّكُمْ لَهُ الْمُلْكُ ۚ وَالَّذِينَ تَدْعُونَ مِن دُونِهِ مَا يَمْلِكُونَ مِن قِطْمِيرٍ ﴾ 13 ﴿
यूलिजुल्लै-ल फ़िन्नहारि व यूलिजुन्नहा-र फ़िल्लैलि व सख़्ख़-रश्शम् स वल्क़-म-र कुल्लुंय्-यज्री लि-अ-जलिम्-मुसम्मन्, ज़ालिकुमुल्लाहु रब्बुकुम् लहुल्-मुल्कु, वल्लज़ी-न तद्अू-न मिन् दूनिही मा यम्लिकू-न मिन् क़ित्मीर
वह प्रवेश करता है रात को दिन में तथा प्रवेश करता है दिन को रात्रि में तथा वश में कर रखा है सूर्य तथा चन्द्रा को, प्रत्येक चलते रहेंगे एक निश्चित समय तक। वही अल्लाह तुम्हारा पालनहार है। उसी का राज्य है तथा जिन्हें तुम पुकारते हो, उसके सिवा, वे स्वामी नहीं हैं एक तिन्के के भी।
إِن تَدْعُوهُمْ لَا يَسْمَعُوا دُعَاءَكُمْ وَلَوْ سَمِعُوا مَا اسْتَجَابُوا لَكُمْ ۖ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ يَكْفُرُونَ بِشِرْكِكُمْ ۚ وَلَا يُنَبِّئُكَ مِثْلُ خَبِيرٍ ﴾ 14 ﴿
इन् तद् अूहुम् ला यस्मअू दुआ़-अकुम् व लौ समिअू मस्तजाबू लकुम्, व यौमल्-क़ियामति यक्फ़ुरू-न बिशिर्किकुम् व ला युनब्बिउ-क मिस्लु ख़बीर*
यदि तुम उन्हें पुकारते हो, तो वे नहीं सुनते तुम्हारी पुकार को और यदि सुन भी लें, तो नहीं उत्तर दे सकते तुम्हें और प्रलय के दिन वे नकार देंगे तुम्हारे शिर्क (साझी बनाने) को और आपको कोई सूचना नहीं देगा सर्वसूचित जैसी।[1] 1. इस आयत में प्रलय के दिन उन के पूज्य की दशा का वर्णन किया गया है कि यह प्रलय के दिन उन के शिर्क को अस्वीकार कर देंगे। और अपने पुजारियों से विरक्त होने की घोषणा कर देंगे। जिस से विद्वित हुआ कि अल्लाह का कोई साझी नहीं है। और जिन को मुश्रिकों ने साझी बना रखा है वह सब धोखा है।
يَا أَيُّهَا النَّاسُ أَنتُمُ الْفُقَرَاءُ إِلَى اللَّهِ ۖ وَاللَّهُ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيدُ ﴾ 15 ﴿
या अय्युहन्नासु अन्तुमुल्-फ़ु-क़रा-उ इलल्लाहि वल्लाहु हुवल् ग़निय्युल्-हमीद
हे मनुष्यो! तुम सभी भिक्षु हो अल्लाह के तथा अल्लाह ही निःस्वार्थ, प्रशंसित है।
إِن يَشَأْ يُذْهِبْكُمْ وَيَأْتِ بِخَلْقٍ جَدِيدٍ ﴾ 16 ﴿
इंय्यशस् युज़्हिब्कुम् व यअ्ति बिख़ल्क़िन् जदीद
यदि वह चाहे, तो तुम्हें ध्वस्त कर दे और नई[1] उतपत्ति ले आये। 1. भावार्थ यह कि मनुष्य को प्रत्येक क्षण अपने अस्तित्व तथा स्थायित्व के लिये अल्लाह की आवश्यक्ता है। और अल्लाह ने निर्लोभ होने के साथ ही उस के जीवन के संसाधन की व्यवस्था कर दी है। अतः यह न सोचो कि तुम्हारा विनाश हो गया तो उस की महिमा में कोई अन्तर आ जायेगा। वह चाहे तो तुम्हें एक क्षण में ध्वस्त कर के दूसरी उत्पत्ति ले आये क्योंकि वह एक शब्द "कुन" (जिस का अनुवाद है, हो जा) से जो चाहे पैदा कर दे।
وَمَا ذَٰلِكَ عَلَى اللَّهِ بِعَزِيزٍ ﴾ 17 ﴿
व मा जालि-क अलल्लाहि बि-अज़ीज़
और ये नहीं है अल्लाह पर कुछ कठिन।
وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَىٰ ۚ وَإِن تَدْعُ مُثْقَلَةٌ إِلَىٰ حِمْلِهَا لَا يُحْمَلْ مِنْهُ شَيْءٌ وَلَوْ كَانَ ذَا قُرْبَىٰ ۗ إِنَّمَا تُنذِرُ الَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُم بِالْغَيْبِ وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ ۚ وَمَن تَزَكَّىٰ فَإِنَّمَا يَتَزَكَّىٰ لِنَفْسِهِ ۚ وَإِلَى اللَّهِ الْمَصِيرُ ﴾ 18 ﴿
व ला तज़िरु वाज़ि-रतुंव्-विज़-र उख़् रा, व इन् तद्अू मुस्क़ -लतुन् इला हिम्लिहा ला युह्मल् मिन्हु शैउंव्-व लौ का-न ज़ा-क़ुर्बा, इन्नमा तुन्ज़िरुल्लज़ी-न यख़्शौ-न रब्बहुम् बिल्ग़ैबि व अक़ामुस्-सला-त, व मन् तज़क्का फ़-इन्नमा य-तज़क्का लि-नफ़्सिही, व इलल्लाहिल्-मसीर
तथा नहीं लादेगा कोई लादने वाला, दूसरे का बोझ, अपने ऊपर[1] और यदि पुकारेगा कोई बोझल, उसे लादने के लिए, तो वह नहीं लादेगा उसमें से कुछ, चाहे वह उसका समीपवर्ती ही क्यों न हो। आप तो बस उन्हीं को सचेत कर रहे हैं, जो डरते हों अपने पालनहार से बिन देखे तथा जो स्थापना करते हैं नमाज़ की तथा जो पवित्र हुआ, तो वह पवित्र होगा अपने ही लाभ के लिए और अल्लाह ही की ओर (सबको) जाना है। 1. अर्थात पापों का बोझ। अर्थ यह है कि प्रलय के दिन कोई किसी की सहायता नहीं करेगा।
وَمَا يَسْتَوِي الْأَعْمَىٰ وَالْبَصِيرُ ﴾ 19 ﴿
व मा यस्तविल्-अअ्मा वल्बसीर
तथा समान नहीं हो सकता अंधा तथा आँख वाला।
وَلَا الظُّلُمَاتُ وَلَا النُّورُ ﴾ 20 ﴿
व लज़्ज़ुलुमातु व लन्नूर
और न अंधकार तथा प्रकाश।
وَلَا الظِّلُّ وَلَا الْحَرُورُ ﴾ 21 ﴿
व लज़्ज़िल्लु व लल्हरूर
और न छाया तथा न धूप।
وَمَا يَسْتَوِي الْأَحْيَاءُ وَلَا الْأَمْوَاتُ ۚ إِنَّ اللَّهَ يُسْمِعُ مَن يَشَاءُ ۖ وَمَا أَنتَ بِمُسْمِعٍ مَّن فِي الْقُبُورِ ﴾ 22 ﴿
व मा यस्तविल्-अह्या-उ व लल्अम्वातु, इन्नल्ला-ह युस्मिअु मंय्यशा-उ व मा अन्-त बिमुस्मिअिम्-मन् फ़िल्क़ुबूर
तथा समान नहीं हो सकते जीवित तथा निर्जीव।[1] वास्तव में, अल्लाह ही सुनाता है जिसे चाहता है और आप नहीं सुना सकते उन्हें, जो क़ब्रों में हों। 1. अर्थात जो कुफ़्र के कारण अपनी ज्ञान खो चुके हों।
إِنْ أَنتَ إِلَّا نَذِيرٌ ﴾ 23 ﴿
इन् अन्-त इल्ला नज़ीर
आप तो बस सचेतकर्ता हैं।
إِنَّا أَرْسَلْنَاكَ بِالْحَقِّ بَشِيرًا وَنَذِيرًا ۚ وَإِن مِّنْ أُمَّةٍ إِلَّا خَلَا فِيهَا نَذِيرٌ ﴾ 24 ﴿
इन्ना अर्सल्ना-क बिल्हक़्क़ि बशीरंव्-व नज़ीरन्, व इम् – मिन् उम्म-तिन् इल्ला ख़ला फ़ीहा नज़ीर
वास्तव में, हमने आपको सत्य के साथ शुभ सूचक तथा सचेतकर्ता बनाकर भेजा है और कोई ऐसा समुदाय नहीं, जिसमें कोई सचेतकर्ता न आया हो।
وَإِن يُكَذِّبُوكَ فَقَدْ كَذَّبَ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ جَاءَتْهُمْ رُسُلُهُم بِالْبَيِّنَاتِ وَبِالزُّبُرِ وَبِالْكِتَابِ الْمُنِيرِ ﴾ 25 ﴿
व इंय्युकज़्ज़िबू-क फ़-क़द् क़ज़्ज़बल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम् जाअत्हुम् रुसुलुहुम् बिल्बय्यिनाति व बिज़्ज़ुबुरि व बिल्-किताबिल्-मुनीर
और यदि ये आपको झुठलायें, तो इनसे पूर्व के लोगों ने भी झुठलाया है, जिनके पास हमारे रसूल खुले प्रमाण तथा ग्रंथ और प्रकाशित पुस्तकें लाये।
ثُمَّ أَخَذْتُ الَّذِينَ كَفَرُوا ۖ فَكَيْفَ كَانَ نَكِيرِ ﴾ 26 ﴿
सुम्-म अख़ज़्तुल्लज़ी-न क-फ़रु फ़-कै-फ़ का-न नकीर
फिर मैंने पकड़ लिया उन्हें, जो काफ़िर हो गये। तो कैसा रहा मेरा इन्कार।
أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ أَنزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَخْرَجْنَا بِهِ ثَمَرَاتٍ مُّخْتَلِفًا أَلْوَانُهَا ۚ وَمِنَ الْجِبَالِ جُدَدٌ بِيضٌ وَحُمْرٌ مُّخْتَلِفٌ أَلْوَانُهَا وَغَرَابِيبُ سُودٌ ﴾ 27 ﴿
अलम् त-र अन्नल्ला-ह अन्ज़-ल मिनस्समा-इ मा-अन् फ़- अख़्रज्ना बिही स-मरातिम्-मुख्तलिफ़न् अल्वानुहा, व मिनल्-जिबालि जु-ददुम् बीजुंव्-व हुमुरुम् मुख्तलिफ़ुन् अल्वानुहा व ग़राबीबु सूद
क्या आपने नहीं देखा कि अल्लाह ने उतारा आकाश से जल, फिर हमने निकाल दिये उसके द्वारा बहुत-से फल विभिन्न रंगों के तथा पर्वतों के विभिन्न भाग हैं; स्वेत तथा लाल, विभिन्न रंगों के तथा गहरे काले।
وَمِنَ النَّاسِ وَالدَّوَابِّ وَالْأَنْعَامِ مُخْتَلِفٌ أَلْوَانُهُ كَذَٰلِكَ ۗ إِنَّمَا يَخْشَى اللَّهَ مِنْ عِبَادِهِ الْعُلَمَاءُ ۗ إِنَّ اللَّهَ عَزِيزٌ غَفُورٌ ﴾ 28 ﴿
व मिनन्नासि वद्दवाब्बि वल्-अन्आ़मि मुख़्तलिफ़ुन् अल्वानुहू कज़ालि-क, इन्नमा यख़्शल्ला-ह मिन् अिबादिहिल्-अु-लमा-उ, इन्नल्ला-ह अ़ज़ीज़ुन् ग़फ़ूर
तथा मनुष्य, जीवों तथा पशुओं में भी विभिन्न रंगों के हैं, इसी प्रकार। वास्तव में, डरते हैं अल्लाह से उसके भक्तों में से वही जो ज्ञानी[1] हों। निःसंदेह अल्लाह अति प्रभुत्वशाली, क्षमी है। 1. अर्थात अल्लाह के इन सामर्थ्यों तथा रचनात्मक गुणों को जान सकते हैं जिन को क़ुर्आन तथा ह़दीसों का ज्ञान हो। और उन्हें जितना ही अल्लाह का आत्मिक ज्ञान होता है उतना ही वह अल्लाह से डरते हैं। मानो जो अल्लाह से नहीं डरते वह ज्ञानशून्य होते हैं। (इब्ने कसीर)
إِنَّ الَّذِينَ يَتْلُونَ كِتَابَ اللَّهِ وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ وَأَنفَقُوا مِمَّا رَزَقْنَاهُمْ سِرًّا وَعَلَانِيَةً يَرْجُونَ تِجَارَةً لَّن تَبُورَ ﴾ 29 ﴿
इन्नल्लज़ी-न यत्लू-न किताबल्लाहि व अक़ामुस्सला-त व अन्फ़क़ू मिम्मा रज़क़्नाहुम् सिर्-रंव्-व अ़लानि-यतंय्-यर् जू -न तिजा-रतल् लन् तबूर
वास्तव में, जो पढ़ते हैं अल्लाह की पुस्तक (क़ुर्आन), उन्होंने स्थापना की नमाज़ की एवं दान किया उसमें से, जो हमने उन्हें प्रदान किया है, खुले तथा छुपे, तो वही आशा रखते हैं ऐसे व्यापार की, जो कदापि हानिकर नहीं होगा।
لِيُوَفِّيَهُمْ أُجُورَهُمْ وَيَزِيدَهُم مِّن فَضْلِهِ ۚ إِنَّهُ غَفُورٌ شَكُورٌ ﴾ 30 ﴿
लियुवफ़्फ़ि-यहुम् उजू-रहुम् व यज़ी-दहुम् मिन् फ़ज़्लिही, इन्नहू ग़फ़ूरुन् शकूर
ताकि अल्लाह प्रदान करे उन्हें भरपूर उनका प्रतिफल तथा उन्हें अधिक दे अपने अनुग्रह से। वास्तव में, वह अति क्षमी, आदर करने वाला है।
وَالَّذِي أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ مِنَ الْكِتَابِ هُوَ الْحَقُّ مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ ۗ إِنَّ اللَّهَ بِعِبَادِهِ لَخَبِيرٌ بَصِيرٌ ﴾ 31 ﴿
वल्लज़ी औहैना इलै-क मिनल्-किताबि हुवल्-हक़्क़ु मुसद्दिक़ल्लिमा बै-न यदैहि, इन्नल्ला-ह बिअिबादिही ल-ख़बीरुम्-बसीर
तथा जो हमने प्रकाशना की है आपकी ओर ये पुस्तक, वही सर्वथा सच है और सच बताती है अपने पूर्व की पुस्तकों को। वास्तव में, अल्लाह अपने भक्तों से सूचित, भली-भाँति देखने वाला है।[1] 1. कि कौन उस के अनुग्रह के योग्य है। इसी कारण उस ने नबियों को सब पर प्रधानता दी है। तथा नबियों को भी एक-दूसरे पर प्रधानता दी है। (देखियेः इब्ने कसीर)
ثُمَّ أَوْرَثْنَا الْكِتَابَ الَّذِينَ اصْطَفَيْنَا مِنْ عِبَادِنَا ۖ فَمِنْهُمْ ظَالِمٌ لِّنَفْسِهِ وَمِنْهُم مُّقْتَصِدٌ وَمِنْهُمْ سَابِقٌ بِالْخَيْرَاتِ بِإِذْنِ اللَّهِ ۚ ذَٰلِكَ هُوَ الْفَضْلُ الْكَبِيرُ ﴾ 32 ﴿
सुम्-म औरस्नल्- किताबल्लज़ीनस्तफ़ैना मिनू अिबादिना फ़मिन्हुम् ज़ालिमुल्-लिनफ़्सिही व मिन्हुम् मुक्तसिदुन् व मिन्हुम् साबिक़ुम् बिल्-ख़ैराति बि-इज़्निल्लाहि, ज़ालि-क हुवल् फ़ज़्लुल्-कबीर
फिर हमने उत्तराधिकारी बनाया इस पुस्तक का उन्हें जिन्हें हमने चुन लिया अपने भक्तों में[1] से। तो उनमें कुछ अत्याचारी हैं अपने ही लिए, उनमें से कुछ मध्यवर्ती हैं और कुछ अग्रसर हैं भलाई में अल्लाह की अनुमति से तथा यही महान अनुग्रह है। 1. इस आयत में क़ुर्आन के अनुयायियों की तीन श्रेणियाँ बताई गई हैं। और तीनों ही स्वर्ग में प्रवेश करेंगीः अग्रगामी बिना ह़िसाब के। मध्यवर्ती सरल ह़िसाब के पश्चात्। तथा अत्याचारी दण्ड भुगतने के पश्चात् शिफ़ाअत द्वारा। (फ़त्ह़ल क़दीर)
جَنَّاتُ عَدْنٍ يَدْخُلُونَهَا يُحَلَّوْنَ فِيهَا مِنْ أَسَاوِرَ مِن ذَهَبٍ وَلُؤْلُؤًا ۖ وَلِبَاسُهُمْ فِيهَا حَرِيرٌ ﴾ 33 ﴿
जन्नातु अ़द्निंय्-यद्ख़ुलूनहा युहल्लौ-न फ़ीहा मिन् असावि-र मिन्ज़-हबिंव्-व लुअ्लुअन् व लिबासुहुम् फ़ीहा हरीर
सदावास के स्वर्ग हैं, वे प्रवेश करेंगे उनमें और पहनाये जायेंगे उनमें सोने के कंगन तथा मोती और उनके वस्त्र उनमें रेशम के होंगे।
وَقَالُوا الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي أَذْهَبَ عَنَّا الْحَزَنَ ۖ إِنَّ رَبَّنَا لَغَفُورٌ شَكُورٌ ﴾ 34 ﴿
व क़ालुल्हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी अज़्ह-ब अ़न्नल्-ह-ज़-न, इन्-न रब्बना ल-ग़फ़ूरुन् शकूर
तथा वे कहेंगेः सब प्रशंसा उस अल्लाह के लिए हैं, जिसने दूर कर दिया हमसे शोक। वास्तव में, हमारा पालनहार अति क्षमी, गुणग्राही है।
الَّذِي أَحَلَّنَا دَارَ الْمُقَامَةِ مِن فَضْلِهِ لَا يَمَسُّنَا فِيهَا نَصَبٌ وَلَا يَمَسُّنَا فِيهَا لُغُوبٌ ﴾ 35 ﴿
अल्लज़ी अ-हल्लना दारल्-मुक़ामति मिन् फ़ज़्लिही ला यमस्सुना फ़ीहा न-सबुंव-व ला यमस्सुना फ़ीहा लुग़ूब
जिसने हमें उतार दिया स्थायी घर में अपने अनुग्रह से। नहीं छूएगी उसमें हमें कोई आपदा और न छूएगी उसमें कोई थकान।
وَالَّذِينَ كَفَرُوا لَهُمْ نَارُ جَهَنَّمَ لَا يُقْضَىٰ عَلَيْهِمْ فَيَمُوتُوا وَلَا يُخَفَّفُ عَنْهُم مِّنْ عَذَابِهَا ۚ كَذَٰلِكَ نَجْزِي كُلَّ كَفُورٍ ﴾ 36 ﴿
वल्लज़ी-न क-फ़रू लहुम् नारु जहन्न-म ला युक़्ज़ा अ़लैहिम् फ़-यमूतू व ला युख़फ़्फ़फ़ु अ़न्हुम् मिन् अ़ज़ाबिहा, कज़ालि-क नज्ज़ी कुल्-ल कफ़ूर
तथा जो काफ़िर हैं, उन्हीं के लिए नरक की अग्नि है। न तो उनकी मौत ही आयेगी, न वे मर जायें और न हल्की की जायेगी उनसे उसकी कुछ यातना। इसी प्रकार, हम बदला देते हैं प्रत्येक नाशुक्रे को।
وَهُمْ يَصْطَرِخُونَ فِيهَا رَبَّنَا أَخْرِجْنَا نَعْمَلْ صَالِحًا غَيْرَ الَّذِي كُنَّا نَعْمَلُ ۚ أَوَلَمْ نُعَمِّرْكُم مَّا يَتَذَكَّرُ فِيهِ مَن تَذَكَّرَ وَجَاءَكُمُ النَّذِيرُ ۖ فَذُوقُوا فَمَا لِلظَّالِمِينَ مِن نَّصِيرٍ ﴾ 37 ﴿
व हुम् यस्तरिख़ू-न फ़ीहा रब्बना अख़्-रिज्ना नअ्मल् सालिहन् ग़ैरल्लज़ी कुन्ना नअ्मलु, अ-व लम् नुअ़म्मिर्कुम् मा य-तज़क्करु फ़ीहि मनू तज़क्क-र व जा-अकुमुन्नज़ीरु, फ़ज़ूक़ू फ़मा लिज़्ज़ालिमी-न मिन् नसीर
और वे उसमें चिल्लायेंगेः हे हमारे पालनहार! हमें निकाल दे, हम सदाचार करेंगे उसके अतिरिक्त, जो कर रहे थे। क्या हमने तुम्हें इतनी आयु नहीं दी, जिसमें शिक्षा ग्रहण कर ले, जो शिक्षा ग्रहण करे तथा आया तुम्हारे पास सचेतकर्ता (नबी)? अतः, तुम चखो, अत्याचारियों का कोई सहायक नहीं है।
إِنَّ اللَّهَ عَالِمُ غَيْبِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ ﴾ 38 ﴿
इन्नल्लाह आलिमु ग़ैबिस्समावाति वल-अरज़; इन्नहू अलीमुन बि ज़ातिस्सुदूर।
वास्तव में, अल्लाह ही ज्ञानी है आकाशों तथा धरती के भेद का। वास्तव में, वही भली-भाँति जानने वाला है सीनों की बातों का।
هُوَ الَّذِي جَعَلَكُمْ خَلَائِفَ فِي الْأَرْضِ ۚ فَمَن كَفَرَ فَعَلَيْهِ كُفْرُهُ ۖ وَلَا يَزِيدُ الْكَافِرِينَ كُفْرُهُمْ عِندَ رَبِّهِمْ إِلَّا مَقْتًا ۖ وَلَا يَزِيدُ الْكَافِرِينَ كُفْرُهُمْ إِلَّا خَسَارًا ﴾ 39 ﴿
हुवल्लज़ी ज-अ़-लकुम् ख़लाइ-फ़ फ़िल्अर्ज़ि, फ़-मन् क-फ़-र फ़-अ़लैहि कुफ़्-रूहू, व ला यज़ीदुल् काफ़िरी-न कुफ़्-रूहुम् अिन्- द रब्बिहिम् इल्ला मक़्तन् व ला यज़ीदुल्-काफ़िरी-न कुफ़्-रूहुम् इल्ला ख़सारा
वही है, जिसने तुम्हें एक-दूसरे के पश्चात् बसाया है धरती में, तो जो कुफ़्र करेगा, तो उसके लिए है उसका कुफ़्र और नहीं बढ़ायेगा काफ़िरों के लिए उनका कुफ़् उनके पालनहार के यहाँ, परन्तु क्रोध ही और नहीं बढ़ायेगा काफ़िरों के लिए उनका क़फ़्र, परन्तु क्षति ही।
قُلْ أَرَأَيْتُمْ شُرَكَاءَكُمُ الَّذِينَ تَدْعُونَ مِن دُونِ اللَّهِ أَرُونِي مَاذَا خَلَقُوا مِنَ الْأَرْضِ أَمْ لَهُمْ شِرْكٌ فِي السَّمَاوَاتِ أَمْ آتَيْنَاهُمْ كِتَابًا فَهُمْ عَلَىٰ بَيِّنَتٍ مِّنْهُ ۚ بَلْ إِن يَعِدُ الظَّالِمُونَ بَعْضُهُم بَعْضًا إِلَّا غُرُورًا ﴾ 40 ﴿
क़ुल् अ- रऐतुम् शु-रका-अकुमुल्लज़ी-न तद्अू-न मिनू दूनिल्लाहि, अरूनी माज़ा ख़-लक़ू मिनल्-अर्ज़ि अम् लहुम् शिर्कुन् फ़िस्समावाति अम् आतैनाहुम् किताबन् फ़हुम् अ़ला बय्यि-नतिम् मिन्हु बल् इंय्यअिदुज़्ज़ालिमू-न बअ्ज़ुहुम् बअ्ज़न् इल्ला ग़ुरूरा
(हे नबी!)[1] उनसे कहोः क्या तुमने देखा है अपने साझियों को, जिन्हें तुम पुकारते हो अल्लाह के अतिरिक्त? मुझे भी दिखाओ कि उन्होंने कितना भाग बनाया है धरती में से? या उनका आकाशों में कुछ साझा है? या हमने प्रदान की है उन्हें कोई पुस्तक, तो ये उसके खुले प्रमाणों पर हैं? बल्कि (बात ये है कि) अत्याचारी एक-दूसरे को केवल धोखे का वचन दे रहे हैं। 1. यहाँ से अन्तिम सूरह तक शिर्क (मिश्रणवाद) का खण्डन किया जा रहा है।
إِنَّ اللَّهَ يُمْسِكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ أَن تَزُولَا ۚ وَلَئِن زَالَتَا إِنْ أَمْسَكَهُمَا مِنْ أَحَدٍ مِّن بَعْدِهِ ۚ إِنَّهُ كَانَ حَلِيمًا غَفُورًا ﴾ 41 ﴿
इन्नल्ला-ह युम्सिकुस्समावाति वल्अर्-ज़ अन् तज़ूला, व ल-इन् ज़ा-लता इन् अम्-स-कहुमा मिन् अ-हदिम् मिम्बअ्दिही, इन्नहू का-न हलीमन् ग़फ़ूरा
अल्लाह ही रोकता[1] है आकाशो तथा धरती को खिसक जाने से और यदि खिसक जायें वे दोनों, तो नहीं रोक सकेगा उन्हें कोई उस (अल्लाह) के पश्चात्। वास्तव में, वह अत्यंत सहनशील, क्षमाशील है। 1. नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रात में नमाज़ के लिये जागते तो आकाश की ओर देखते और यह पूरी आयत पढ़ते थे। (सह़ीह़ बुख़ारीः7452)
وَأَقْسَمُوا بِاللَّهِ جَهْدَ أَيْمَانِهِمْ لَئِن جَاءَهُمْ نَذِيرٌ لَّيَكُونُنَّ أَهْدَىٰ مِنْ إِحْدَى الْأُمَمِ ۖ فَلَمَّا جَاءَهُمْ نَذِيرٌ مَّا زَادَهُمْ إِلَّا نُفُورًا ﴾ 42 ﴿
व अक़्समू बिल्लाहि जह्-द ऐमानिहिम् ल-इन् जा-अहुम्-नज़ीरुल् ल-यकूनन्-न अह्दा मिन् इह्दल्-उ-ममि फ़-लम्मा जा- अहुम् नज़ीरुम् मा ज़ा-दहुम् इल्ला नुफ़ूरा
और उनकाफ़िरों ने शपथ ली थी अल्लाह की पक्की शपथ कि यदि आ गया, उनके पास कोई सचेतकर्ता (नबी), तो वे अवश्य हो जायेंगे सर्वाधिक संमार्ग पर समुदायों में से किसी एक से। फिर जब आ गये उनके पास एक रसूल,[1] तो उनकी दूरी ही अधिक हुई। 1. मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम।
اسْتِكْبَارًا فِي الْأَرْضِ وَمَكْرَ السَّيِّئِ ۚ وَلَا يَحِيقُ الْمَكْرُ السَّيِّئُ إِلَّا بِأَهْلِهِ ۚ فَهَلْ يَنظُرُونَ إِلَّا سُنَّتَ الْأَوَّلِينَ ۚ فَلَن تَجِدَ لِسُنَّتِ اللَّهِ تَبْدِيلًا ۖ وَلَن تَجِدَ لِسُنَّتِ اللَّهِ تَحْوِيلًا ﴾ 43 ﴿
इस्तिक्बारन् फ़िल्अर्ज़ी व मक्रस्सय्यि-इ व ला यहीक़ुल्-मक्रुस्सय्यि-उ इल्ला बि-अह्लिही, फ़-हल् यन्ज़ुरू – न इल्ला सुन्नतल्-अव्वली-न फ़-लन् तजि-द लिसुन्नतिल्लाहि तब्दीला, व लन् तजि-द लिसुन्नतिल्लाहि तह्वीला
अभिमान के कारण धरती में तथा बुरे षड्यंत्र के कारण और नहीं घेरता है बुरा षड्यंत्र, परन्तु अपने करने वाले ही को। तो क्या वे प्रतीक्षा कर रहे हैं पूर्व के लोगों की नीति की?[1] तो नहीं पायेंगे आप अल्लाह के नियम में कोई अन्तर।[2] 1. अर्थात यातना की। 2. अर्थात प्रत्येक युग और स्थान के लिये अल्लाह का नियम एक ही रहा है।
أَوَلَمْ يَسِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَيَنظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ وَكَانُوا أَشَدَّ مِنْهُمْ قُوَّةً ۚ وَمَا كَانَ اللَّهُ لِيُعْجِزَهُ مِن شَيْءٍ فِي السَّمَاوَاتِ وَلَا فِي الْأَرْضِ ۚ إِنَّهُ كَانَ عَلِيمًا قَدِيرًا ﴾ 44 ﴿
अ-व लम् यसीरू फ़िल्अर्ज़ि फ़-यन्ज़ुरू कै-फ़ का न आ़क़ि-बतुल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम् व कानू अशद्-द मिन्हुम् क़ुव्वतन्, व मा कानल्लाहु लियुअ्जि-ज़हू मिन् शैइन् फ़िस्समावाति व ला फ़िल्अर्ज़ि, इन्नहू का-न अ़लीमन् क़दीरा
और क्या वे नहीं चले-फिरे धरती में, तो देख लेते कि कैसा रहा उनका दुष्परिणाम, जो इनसे पूर्व रहे, जबकि वह इनसे कड़े थे बल में? तथा अल्लाह ऐसा नहीं, वास्तव में, वह सर्वज्ञ, अति सामर्थ्यवान है।
وَلَوْ يُؤَاخِذُ اللَّهُ النَّاسَ بِمَا كَسَبُوا مَا تَرَكَ عَلَىٰ ظَهْرِهَا مِن دَابَّةٍ وَلَٰكِن يُؤَخِّرُهُمْ إِلَىٰ أَجَلٍ مُّسَمًّى ۖ فَإِذَا جَاءَ أَجَلُهُمْ فَإِنَّ اللَّهَ كَانَ بِعِبَادِهِ بَصِيرًا ﴾ 45 ﴿
व लौ युआख़िज़ुल्लाहुन्ना-स बिमा क-सबू मा त-र-क अ़ला जह्-रिहा मिन् दाब्बतिंव-व लाकिंय्-युअख़्खिरुहुम् इला अ-जलिम् मुसम्मन् फ़-इज़ा जा-अ अ-जलुहुम् फ़-इन्नल्ला-ह का-न बिअिबादिही बसीरा
﴾ 45 ﴿ और यदि पकड़ने लगता अल्लाह लोगों को उनके कर्मों के कारण, तो नहीं छोड़ता धरती के ऊपर कोई जीव। किन्तु, अवसर दे रहा है उन्हें एक निश्चित अवधि तक, फिर जब आ जायेगा उनका निश्चित समय, तो निश्चय अल्लाह अपने भक्तों को देख रहा[1] है। 1. अर्थात उस दिन उन के कर्मों का बदला चुका देगा।