सूरह तूर के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है, इस में 49 आयतें हैं।
- इस सूरह के आरंभ में तूर (पर्वत) की शपथ लेने के कारण इस का नाम सूरह तूर है।
- इस में प्रतिफल के दिन को न मानने पर चेतावनी है कि अल्लाह की यातना उन पर अवश्य आ कर रहेगी। और इस पर विश्वास करने के साक्ष्य प्रस्तुत किये गये हैं तथा यातना का चित्र भी।
- अल्लाह की आज्ञा के पालन तथा अपने कर्तव्य को समझते हुये जीवन यापन करने पर अल्लाह के पुरस्कारों से सम्मानित किये जाने का चित्रण भी किया गया है।
- विरोधियों के आगे ऐसे प्रश्न रख दिये गये हैं जिन से संदेह स्वयं दूर हो जाते हैं।
- अन्त में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को सहन करने तथा अल्लाह की प्रशंसा तथा पवित्रता गान का निर्देश दिया गया है।
सूरह अत-तूर | Surah Toor in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
وَالطُّورِ ﴾ 1 ﴿
वत्तूरि
शपथ है तूर[1] (पर्वत) की! 1. यह उस पर्वत का नाम है जिस पर मूसा (अलैहिस्सलाम) ने अल्लाह से वार्तालाप की थी।
وَكِتَابٍ مَّسْطُورٍ ﴾ 2 ﴿
व किताबिम् – मस्तूरिन्
और लिखी हुई पुस्तक[1] की! 1. इस से अभिप्राय क़ुर्आन है।
فِي رَقٍّ مَّنشُورٍ ﴾ 3 ﴿
फ़ी रक़्क़िम् – मन्शूरिंव्
जो झिल्ली के खुले पन्नों में लिखी हुई है।
وَالْبَيْتِ الْمَعْمُورِ ﴾ 4 ﴿
वल्- बैतिल्-मअ्मूर
तथा बैतुल मअमूर (आबाद[1] घर) की! 1. यह आकाश में एक घर है जिस की फ़रिश्ते सदैव परिक्रमा करते रहते हैं। कुछ व्याख्याकारों ने इस का अर्थ काबा लिया है। जो उपासकों से प्रत्येक समय आबाद रहता है। क्योंकि मअमूर का अर्थ "आबाद" है।
وَالسَّقْفِ الْمَرْفُوعِ ﴾ 5 ﴿
वस्सक़्फ़िल्-मर् फूअि
तथा ऊँची छत (आकाश) की!
وَالْبَحْرِ الْمَسْجُورِ ﴾ 6 ﴿
वल्- बह्रिल् – मस्जूर
और भड़काये हुए सागर[1] की! 1. (देखियेः सूरह तक्वीर, आयतः 6)
إِنَّ عَذَابَ رَبِّكَ لَوَاقِعٌ ﴾ 7 ﴿
इन्-न अ़ज़ा-ब रब्बि क लवाक़िअ्
वस्तुतः, आपके पालनहार की यातना होकर रहेगी।
مَّا لَهُ مِن دَافِعٍ ﴾ 8 ﴿
मा लहू मिन् दाफ़िअिंय्
नहीं है उसे कोई रोकने वाला।
يَوْمَ تَمُورُ السَّمَاءُ مَوْرًا ﴾ 9 ﴿
यौ-म तमूरुस्- समा-उ मौरंव्
जिस दिन आकाश डगमगायेगा।
وَتَسِيرُ الْجِبَالُ سَيْرًا ﴾ 10 ﴿
व तसीरुल् – जिबालु सैरा
तथा पर्वत चलेंगे।
فَوَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِّلْمُكَذِّبِينَ ﴾ 11 ﴿
फ़वैलुंय्यौ – मइज़िल् – लिल् – मुकज़्ज़िबीन
तो विनाश है उस दिन, झुठलाने वालों के लिए।
الَّذِينَ هُمْ فِي خَوْضٍ يَلْعَبُونَ ﴾ 12 ﴿
अल्लज़ी-न हुम् फ़ी ख़ौ ज़िंय्यल् – अ़बून
जो विवाद में खेल रहे हैं।
يَوْمَ يُدَعُّونَ إِلَىٰ نَارِ جَهَنَّمَ دَعًّا ﴾ 13 ﴿
यौ-म युदअ्अू -न इला नारि जहन्न-म दअ्आ़
जिस दिन वे धक्का दिये जायेंगे नरक की अग्नि की ओर।
هَٰذِهِ النَّارُ الَّتِي كُنتُم بِهَا تُكَذِّبُونَ ﴾ 14 ﴿
हाज़िहिन्नारुल्लती कुन्तुम् बिहा तुकज़्ज़िबून
(उनसे कहा जायेगाः) यही वह नरक है, जिसे तुम झुठला रहे थे।
أَفَسِحْرٌ هَٰذَا أَمْ أَنتُمْ لَا تُبْصِرُونَ ﴾ 15 ﴿
अ-फ़सिह्-रून् हाज़ा अम् अन्तुम् ला तुब्सिरून
तो क्या ये जादू है या तुम्हें सुझाई नहीं देता?
اصْلَوْهَا فَاصْبِرُوا أَوْ لَا تَصْبِرُوا سَوَاءٌ عَلَيْكُمْ ۖ إِنَّمَا تُجْزَوْنَ مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ ﴾ 16 ﴿
इस्लौहा फ़स्बिरू औ ला तस्बिरू सवाउन् अ़लैकुम्, इन्नमा तुज्ज़ौ-न मा कुन्तुम् तअ्मलून
इसमें प्रवेश कर जाओ, फिर सहन करो या सहन न करो, तुमपर समान है। तुम उसी का बदला दिये जा रहे हो, जो तुम कर रहे थे।
إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي جَنَّاتٍ وَنَعِيمٍ ﴾ 17 ﴿
इन्नल्-मुत्तकी-न फ़ी जन्नातिंव्-व नईम
निश्चय, आज्ञाकारी बाग़ों तथा सुखों में होंगे। प्रसन्न होकर उससे, जो प्रदान किया होगा उन्हें उनके पालनहार ने तथा बचा लेगा उन्हें, उनका पालनहार नरक की यातना से।
فَاكِهِينَ بِمَا آتَاهُمْ رَبُّهُمْ وَوَقَاهُمْ رَبُّهُمْ عَذَابَ الْجَحِيمِ ﴾ 18 ﴿
फ़ाकिही न बिमा आताहुम् रब्बुहुम् व वक़ाहुम् रब्बुहुम् अ़ज़ाबल्-जहीम
प्रसन्न होकर उससे, जो प्रदान किया है उनहें उनके पालनहार ने तथा बचा लेगा उनहें उनका पालनहार नरक की यातना से।
كُلُوا وَاشْرَبُوا هَنِيئًا بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ ﴾ 19 ﴿
कुलू वश्रबू हनीअम् – बिमा कुन्तुम् तअ्मलून
(उनसे कहा जायेगाः) खाओ और पियो मनमानी, उसके बदले में, जो तुम कर रहे थे।
مُتَّكِئِينَ عَلَىٰ سُرُرٍ مَّصْفُوفَةٍ ۖ وَزَوَّجْنَاهُم بِحُورٍ عِينٍ ﴾ 20 ﴿
मुत्तकिई-न अ़ला सुरुरिम्- मस्फ़ू-फ़तिन् व ज़व्वज्नाहुम् बिहूरिन् ईन
तकिये लगाये हुए होंगे तख़्तों पर बराबर बिछे हुए तथा हम विवाह देंगे उनको बड़ी आँखों वाली स्त्रियों से।
وَالَّذِينَ آمَنُوا وَاتَّبَعَتْهُمْ ذُرِّيَّتُهُم بِإِيمَانٍ أَلْحَقْنَا بِهِمْ ذُرِّيَّتَهُمْ وَمَا أَلَتْنَاهُم مِّنْ عَمَلِهِم مِّن شَيْءٍ ۚ كُلُّ امْرِئٍ بِمَا كَسَبَ رَهِينٌ ﴾ 21 ﴿
वल्लज़ी-न आमनू वत्त-बअ़त्हुम् ज़ुर्रिय्यतुहुम् बिईमानिन् अल्हक़्ना बिहिम् ज़ुर्रिय्य-तहुम् व मा अलत्नाहुम् मिन् अ़-मलिहिम् मिन् शैइन्, कुल्लुम्-रिइम् बिमा क-स-ब रहीन
और जो लोग ईमान लाये और अनुसरण किया उनका, उनकी संतान ने ईमान के साथ, तो ह्म मिला देंगे उनकी संतान को उनके साथ तथा नहीं कम करेंगे उनके कर्मों में से कुछ, प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों का बंधक[1] है। 1. अर्थात जो जैसा करेगा वैसा भरेगा।
وَأَمْدَدْنَاهُم بِفَاكِهَةٍ وَلَحْمٍ مِّمَّا يَشْتَهُونَ ﴾ 22 ﴿
व अम्दद्नाहुम् बिफ़ाकि-हतिंव्-व लह्मिम्-मिम्मा यश्तहून
तथा अधिक देंगे उन्हें मेवे तथा मांस जिसकी वे रूचि रखेंगे।
يَتَنَازَعُونَ فِيهَا كَأْسًا لَّا لَغْوٌ فِيهَا وَلَا تَأْثِيمٌ ﴾ 23 ﴿
य-तनाज़अू-न फ़ीहा कअ्सल्-ला लग्वुन् फ़ीहा व ला तअ्सीम
तथा अधिक देंगे उन्हें मेवे तथा मांस जिसकी वे रूचि रखेंगे।
وَيَطُوفُ عَلَيْهِمْ غِلْمَانٌ لَّهُمْ كَأَنَّهُمْ لُؤْلُؤٌ مَّكْنُونٌ ﴾ 24 ﴿
व यतूफ़ु अ़लैहिम् ग़िल्मानुल्-लहुम् क-अन्नहुम् लुअ्लुउम्-मक्नून
और फिरते रहेंगे उनकी सेवा में (सुन्दर) बालक, जैसे वह छुपाये हुए मोती हों।
وَأَقْبَلَ بَعْضُهُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ يَتَسَاءَلُونَ ﴾ 25 ﴿
व अक़्ब-ल बअ्ज़ुहुम् अ़ला बअ्ज़िंय्य-तसा – अलून
और वे (स्वर्ग वासी) सम्मुख होंगे एक-दूसरे के प्रश्न करते हुए।
قَالُوا إِنَّا كُنَّا قَبْلُ فِي أَهْلِنَا مُشْفِقِينَ ﴾ 26 ﴿
क़ालू इन्ना कुन्ना क़ब्लु फ़ी अह्लिना मुश्फ़िक़ीन
वे कहेंगेः इससे पूर्व[1] हम अपने परिजनों में डरते थे। 1. अर्थात संसार में अल्लाह की यातना से।
فَمَنَّ اللَّهُ عَلَيْنَا وَوَقَانَا عَذَابَ السَّمُومِ ﴾ 27 ﴿
फ़-मन्नल्लाहु अ़लैना व वक़ाना अ़ज़ाबस्-समूम
तो अल्लाह ने उपकार किया हमपर तथा हमें सुरक्षित कर दिया तापलहरी की यातना से।
إِنَّا كُنَّا مِن قَبْلُ نَدْعُوهُ ۖ إِنَّهُ هُوَ الْبَرُّ الرَّحِيمُ ﴾ 28 ﴿
इन्ना क़ुन्ना मिन् क़ब्लु नद्-अूहु, इन्नहू हुवल् बर्रूर्-रहीम
इससे पूर्व[1] हम वंदना किया करते थे उसकी। निश्चय वह अति परोपकारी, दयावान् है। 1. अर्थात संसार में।
فَذَكِّرْ فَمَا أَنتَ بِنِعْمَتِ رَبِّكَ بِكَاهِنٍ وَلَا مَجْنُونٍ ﴾ 29 ﴿
फ़-ज़क्किर् फ़मा अन्त बिनिअ्-मति रब्बि-क बिकाहिनिंव्व ला मजूनून
तो आप शिक्षा देते रहें। क्योंकि आपके पालनहार की अनुग्रह से न आप काहिन (ज्योतिषि) हैं और न पागल।[1] 1. जैसा कि वह आप पर यह आरोप लगा कर हताश करना चाहते हैं।
أَمْ يَقُولُونَ شَاعِرٌ نَّتَرَبَّصُ بِهِ رَيْبَ الْمَنُونِ ﴾ 30 ﴿
अम् यक़ूलू-न शाअिरुन् न-तरब्बसु बिही रैबल्-मनून
क्या वे कहते हैं कि ये कवि हैं, हम प्रतीक्षा कर रहे हैं उसके साथ कालचक्र की?[1] 1. अर्थात क़ुरैश इस प्रतीक्षा में हैं कि संभवतः आप को मौत आ जाये तो हमें चैन मिल जाये।
قُلْ تَرَبَّصُوا فَإِنِّي مَعَكُم مِّنَ الْمُتَرَبِّصِينَ ﴾ 31 ﴿
क़ुल् त-रब्बसू फ़-इन्नी म- अ़कुम् मिनल्- मु-तरब्बिसीन
आप कह दें कि तुम प्रतीक्षा करते रहो, मैं (भी) तुम्हारे साथ प्रतीक्षा करता हूँ।
أَمْ تَأْمُرُهُمْ أَحْلَامُهُم بِهَٰذَا ۚ أَمْ هُمْ قَوْمٌ طَاغُونَ ﴾ 32 ﴿
अम् तअ्मुरुहुम् अह्लामुहुम् अम् हुम् क़ौमुन् त़ागून
क्या उन्हें सिखाती हैं उनकी समझ ये बातें अथवा वह उल्लंघनकारी लोग हैं?
أَمْ يَقُولُونَ تَقَوَّلَهُ ۚ بَل لَّا يُؤْمِنُونَ ﴾ 33 ﴿
अम् यक़ूलू-न तक़व्व-लहू बल् ला युअ्मिनून
क्या वे कहते हैं कि इस (नबी) ने इस (क़ुर्आन) को स्वयं बना लिया है? वास्तव में, वे ईमान लाना नहीं चाहते।
فَلْيَأْتُوا بِحَدِيثٍ مِّثْلِهِ إِن كَانُوا صَادِقِينَ ﴾ 34 ﴿
फ़ल्यअ् तू बि-हदीसिम्-मिस्लिही इन् कानू सादिक़ीन
तो वे ले आयें इस (क़ुर्आन) के समान कोई एक बात, यदि वे सच्चे हैं।
أَمْ خُلِقُوا مِنْ غَيْرِ شَيْءٍ أَمْ هُمُ الْخَالِقُونَ ﴾ 35 ﴿
अम् ख़ुलिक़ू मिन् ग़ैरि शैइन् अम् हुमुल् – ख़ालिक़ून
क्या वे पैदा हो गये हैं बिना[1] किसी के पैदा किये अथवा वे स्वयं पैदा करने वाले हैं? 1. जुबैर बिन मुतइम कहते हैं कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मग़्रिब की नमाज़ में सूरह तूर पढ़ रहे थे। जब इन आयतों पर पहुँचे तो मेरे दिल की दशा यह हुई कि वह उड़ जायेगा। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4854)
أَمْ خَلَقُوا السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ ۚ بَل لَّا يُوقِنُونَ ﴾ 36 ﴿
अम् ख़-लक़ुस्समावाति वल्अर्-ज़ बल् ला यूक़िनून
या उन्होंने ही उत्पत्ति की है आकाशों तथा धरती की? वास्तव में, वे विश्वास ही नहीं रखते।
أَمْ عِندَهُمْ خَزَائِنُ رَبِّكَ أَمْ هُمُ الْمُصَيْطِرُونَ ﴾ 37 ﴿
अम् अिन्दहुम् ख़ज़ा-इनु रब्बि-क अम् हुमुल्-मुसैतिरून
अथवा उनके पास आपके पालनहार के कोषागार हैं या वही (उसके) अधिकारी हैं?
أَمْ لَهُمْ سُلَّمٌ يَسْتَمِعُونَ فِيهِ ۖ فَلْيَأْتِ مُسْتَمِعُهُم بِسُلْطَانٍ مُّبِينٍ ﴾ 38 ﴿
अम् लहुम् सुल्लमुंय्यस्तमिअू -न फ़ीहि फ़ल्यअ्ति मुस्तमिअुहुम् बिसुल्तानिम् – मुबीन
अथवा उनके पास कोई सीढ़ी है, जिसे लगाकर सुनते[1] हैं? तो उनका सुनने वाला कोई खुला प्रमाण प्रस्तुत करे। 1. अर्थात आकाश की बातें। और जब उन के पास आकाश की बातें जानने का कोई साधन नहीं तो यह लोग, अल्लाह, फ़रिश्ते और धर्म की बातें किस आधार पर करते हैं?
أَمْ لَهُ الْبَنَاتُ وَلَكُمُ الْبَنُونَ ﴾ 39 ﴿
अम् लहुल्- बनातु व लकुमुल् – बनून
क्या अल्लाह के लिए पुत्रियाँ हों तुम्हारे लिए पुत्र हों।
أَمْ تَسْأَلُهُمْ أَجْرًا فَهُم مِّن مَّغْرَمٍ مُّثْقَلُونَ ﴾ 40 ﴿
अम् तस् – अलुहुम् अज्रन् फ़हुम् मिम्-मग़्रमिम् – मुस्क़लून
या आप माँग कर रहे हैं उनसे किसी पारिश्रमिक[1] की, तो वे उसके बोझ से दबे जा रहे हैं? 1. अर्थात सत्धर्म के प्रचार पर।
أَمْ عِندَهُمُ الْغَيْبُ فَهُمْ يَكْتُبُونَ ﴾ 41 ﴿
अम् अिन्दहुमुल् – ग़ैबु फ़हुम् यक्तुबून
अथवा उनके पास परोक्ष (का ज्ञान) है, जिसे वे लिख[1] रहे हैं? 1. इसीलिये इस वह़्यी (क़ुर्आन) को नहीं मानते हैं।
أَمْ يُرِيدُونَ كَيْدًا ۖ فَالَّذِينَ كَفَرُوا هُمُ الْمَكِيدُونَ ﴾ 42 ﴿
अम् युरीदू-न कैदन्, फ़ल्लज़ी-न क-फ़रू हुमुल् – मकीदून
या वे चाहते हैं कोई चाल चलना? तो जो काफ़िर हो गये, वे उस चाल में ग्रस्त होंगे।
أَمْ لَهُمْ إِلَٰهٌ غَيْرُ اللَّهِ ۚ سُبْحَانَ اللَّهِ عَمَّا يُشْرِكُونَ ﴾ 43 ﴿
अम् लहुम् इलाहुन् ग़ैरुल्लाहि, सुब्हानल्लाहि अ़म्मा युश्रिकून
अथवा उनका कोई ओर उपास्य (पूज्य) है अल्लाह के सिवा? अल्लाह पवित्र है उनके शिर्क से।
وَإِن يَرَوْا كِسْفًا مِّنَ السَّمَاءِ سَاقِطًا يَقُولُوا سَحَابٌ مَّرْكُومٌ ﴾ 44 ﴿
व इंय्यरौ किस्फ़म् – मिनस्समा – इ साक़ितंय् – यक़ूलू सहाबुम्-मर्कूम
यदि वे देख लें कोई खण्ड आकाश से गिरता हुआ, तो कहेंगे कि तह पर तह बादल है।[1] 1. अर्थात तब भी अपने कुफ़्र से नहीं रुकेंगे जब तक कि उन पर यातना न आ जाये।
فَذَرْهُمْ حَتَّىٰ يُلَاقُوا يَوْمَهُمُ الَّذِي فِيهِ يُصْعَقُونَ ﴾ 45 ﴿
फ़-ज़र्हुम् हत्ता युलाक़ू यौ – महुमुल्लज़ी फ़ीहि युस् – अ़क़ून
अतः, आप छोड़ दें उन्हें, यहाँ तक कि वे मिल जायें अपने उस दिन से, जिसमें[1] इन्हें अपनी सुध्द नहीं होगी। 1. अर्थात प्रलय के दिन।
يَوْمَ لَا يُغْنِي عَنْهُمْ كَيْدُهُمْ شَيْئًا وَلَا هُمْ يُنصَرُونَ ﴾ 46 ﴿
यौ-म ला युग़्नी अ़न्हुम् कैदुहुम् शैअंव्-व ला हुम् युन्सरून
उस दिन नहीं काम आयेगी उनके, उनकी चाल कुछ और न उनकी सहायता की जायेगी।
وَإِنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُوا عَذَابًا دُونَ ذَٰلِكَ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ ﴾ 47 ﴿
व इन्-न लिल्लज़ी – न ज़-लमू अ़ज़ाबन् दू-न ज़ालि-क व लाकिन्-न अक्स-रहुम् ला यअ्लमून
तथा निश्चय अत्याचारियों के लिए एक यातना है इसके अतिरिक्त[1] (भी)। परन्तु, उनमें से अधिक्तर ज्ञान नहीं रखते हैं। 1. इस से संकेत संसारिक यातनाओं की ओर है। (देखियेः सूरह सज्दा, आयतः 21)
وَاصْبِرْ لِحُكْمِ رَبِّكَ فَإِنَّكَ بِأَعْيُنِنَا ۖ وَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ حِينَ تَقُومُ ﴾ 48 ﴿
वस्बिर् लिहुक्मि रब्बि-क फ़-इन्न-क बि-अअ्युनिना व सब्बिह् बिहम्दि रब्बि-क ही-न तक़ूम
और (हे नबी!) आप सहन करें अपने पालनहार का आदेश आने तक। वास्तव में, आप हमारी रक्षा में हैं तथा पवित्रता का वर्णन करें अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ जब जागते हों।[1] 1. इस में संकेत है आधी रात्री के बाद की नमाज़ (तहज्जुद) की ओर।
وَمِنَ اللَّيْلِ فَسَبِّحْهُ وَإِدْبَارَ النُّجُومِ ﴾ 49 ﴿
व मिनल्लैलि फ़सब्बिह्हु व इद्बारन्-नुजूम
तथा रात्री में (भी) उसकी पवित्रता का वर्णन करें और तारों के डूबने के[1] पश्चात् (भी)। 1. रात्री में तथा तारों के डूबने के समय से संकेत मग़्रिब तथा इशा और फ़ज्र की नमाज़ की ओर है जिन में यह सब नमाजें भी आती हैं।