सूरह तग़ाबुन के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मनी है, इस में 18 आयतें हैं।
- इस का नाम इस की आयत 9 में ((तगाबुन)) शब्द से लिया गया है। इस में अल्लाह का परिचय देते हुये यह बताया गया है कि इस विश्व की रचना सत्य के साथ हुई है। तथा नबूवत और परलोक के इन्कार के परिणाम से सावधान किया गया है। और ईमान लाने का आदेश दे कर हानि के दिन से सतर्क किया गया है। और ईमान तथा इन्कार दोनों का अन्त बताया गया है।
- आयत 11 से 13 तक में समझाया गया है कि संसारिक जीवन के भय से अल्लाह और उस के रसूल की आज्ञा पालन से मूँह न फेरना अन्यथा इस का अन्त विनाश कारी होगा।
- इस की आयत 14 से 18 तक में ईमान वालों को अपनी पत्नियों और संतान की ओर से सावधान रहने का निर्देश दिया गया है कि वह उन्हें कुपथ न कर दें। और धन तथा संतान के मोह में परलोक से अचेत न हो जायें। और जितना हो सके अल्लाह से डरते रहें। और अल्लाह की राह में दान करते रहें।
सूरह अत-तग़ाबुन | Surah Taghabun in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
يُسَبِّحُ لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۖ لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ ۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ ﴾ 1 ﴿
युसब्बिहु लिल्लाहि मा फिस्समावाति व मा फिल्अर्ज़ि लहुल्-मुल्कु व लहुल- हम्दु व हु-व अ़ला कुल्लि शैइन् क़दीर
अल्लाह की पवित्रता वर्णन करती है प्रत्येक चीज़, जो आकाशों में है तथा जो धरती में है। उसी का राज्य है और उसी के लिए प्रशंसा है तथा वह जो चाहे, कर सकता है।
هُوَ الَّذِي خَلَقَكُمْ فَمِنكُمْ كَافِرٌ وَمِنكُم مُّؤْمِنٌ ۚ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ ﴾ 2 ﴿
हुवल्लज़ी ख़-ल- क़कुम् फ-मिन्कुम् काफ़िरुंव्-व मिन्कुम् मुअ्मिनुन्, वल्लाहु बिमा तअ्मूल-न बसीर
वही है, जिसने उत्पन्न किया है तुम्हें, तो तुममें से कुछ काफ़िर हैं और तुममें से कोई ईमान वाला है तथा अल्लाह जो कुछ तुम करते हो, उसे देख रहा है।[1] 1. देखने का अर्थ कर्मों के अनुसार बदला देना है।
خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِالْحَقِّ وَصَوَّرَكُمْ فَأَحْسَنَ صُوَرَكُمْ ۖ وَإِلَيْهِ الْمَصِيرُ ﴾ 3 ﴿
ख़-लक्स्- समावाति वल्अर्-ज़ बिल्हक़्क़ि व सव्व-रकुम् फ़-अह्स-न सु-व-रकुम् व इलैहिल्-मसीर
उसने उत्पन्न किया आकाशों तथा धरती को सत्य के साथ तथा रूप बनाया तुम्हारा तो सुन्दर बनाया तुम्हारा रूप और उसी की ओर फिरकर जाना है।[1] 1. अर्थात प्रलय के दिन कर्मों का प्रतिफल पाने के लिये।
يَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَيَعْلَمُ مَا تُسِرُّونَ وَمَا تُعْلِنُونَ ۚ وَاللَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ ﴾ 4 ﴿
यअ्लमु मा फ़िस्- समावाति वल्अर्ज़ि व यअ्लमु मा तुसिर्रु-न व मा तुअ्लिनू – न, वल्लाहु अ़लीमुम् – बिज़ातिस्सुदूर
वह जानता है, जो कुछ आकाशों तथा धरती में है और जानता है, जो तुम मन में रखते हो और जो बोलते हो तथा अल्लाह भली-भाँति अवगत है दिलों के भेदों से।
أَلَمْ يَأْتِكُمْ نَبَأُ الَّذِينَ كَفَرُوا مِن قَبْلُ فَذَاقُوا وَبَالَ أَمْرِهِمْ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ ﴾ 5 ﴿
अलम् यअ्तिकुम् न – बउल्लज़ी – न क – फरू मिन् कब्लु फ़-ज़ाक़ू व बा-ल अम्रिहिम् व लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम
क्या नहीं आई तुम्हारे पास उनकी सूचना, जिन्होंने कुफ़्र किया इससे पूर्व? तो उन्होंने चख लिया अपने कर्म का दुष्परिणाम और उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।[1] 1. अर्थात परलोक में नरक की यातना।
ذَٰلِكَ بِأَنَّهُ كَانَت تَّأْتِيهِمْ رُسُلُهُم بِالْبَيِّنَاتِ فَقَالُوا أَبَشَرٌ يَهْدُونَنَا فَكَفَرُوا وَتَوَلَّوا ۚ وَّاسْتَغْنَى اللَّهُ ۚ وَاللَّهُ غَنِيٌّ حَمِيدٌ ﴾ 6 ﴿
ज़ालि-क बि-अन्नहू कानत्-तअ्तिहिम् रुसुलुहुम् बिल्बय्यिनाति फ़क़ालू अ-ब-शरुय्-यह्दुनना फ़-क- फ़रू व तवल्लौ वस्तग्नल्लाहु, वल्लाहु गनिय्युन् हमीद
ये इसलिए कि आते रहे उनके पास उनके रसूल खुली निशानियाँ लेकर। तो उन्होंने कहाः क्या कोई मनुष्य हमें मार्गदर्शन[1] देगा? अतः उन्होंने कुफ़्र किया तथा मुँह फेर लिया और अल्लाह (भी उनसे) निश्चिन्त हो गया तथा अल्लाह निस्पृह, प्रशंसित है। 1. अर्थात रसूल मनुष्य कैसे हो सकता है। यह कितनी विचित्र बात है कि पत्थर की मूर्तियों को तो पूज्य बना लिया जाये इसी प्रकार मनुष्य को अल्लाह का अवतार और पुत्र बना लिया जाये, पर यदि रसूल सत्य ले कर आये तो उसे न माना जाये। इस का अर्थ यह हुआ कि मनुष्य कुपथ करे तो यह मान्य है, और यदि वह सीधी राह दिखाये तो मान्य नहीं।
زَعَمَ الَّذِينَ كَفَرُوا أَن لَّن يُبْعَثُوا ۚ قُلْ بَلَىٰ وَرَبِّي لَتُبْعَثُنَّ ثُمَّ لَتُنَبَّؤُنَّ بِمَا عَمِلْتُمْ ۚ وَذَٰلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرٌ ﴾ 7 ﴿
ज़-अमल्लज़ी-न क-रू अल्लंय्युब्-असू, कुल् बला व रब्बी ल-तुब्असुन्-न सुम्-म ल-तुनब्ब-उन्न बिमा अ़मिल्तुम्, व ज़ालि-क अ़लल्लाहि यसीर
समझ रखा है काफ़िरों ने कि वे कदापि फिर जीवित नहीं किये जायेंगे। आप कह दें कि क्यों नहीं? मेरे पालनहार की शपथ! तुम अवश्य जीवित किये जाओगे। फिर तुम्हें बताया जायेगा कि तुमने (संसार में) क्या किया है तथा ये अल्लाह पर अति सरल है।
فَآمِنُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَالنُّورِ الَّذِي أَنزَلْنَا ۚ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ ﴾ 8 ﴿
फ़आमिनू बिल्लाहि व रसूलिही वन्नूरिल्लज़ी अन्ज़ल्ना, वल्लाहु बिमा तअ्मलू-न ख़बीर
अतः तुम ईमान लाओ अल्लाह तथा उसके रसूल[1] पर तथा उस नूर (ज्योति)[2] पर, जिसे हमने उतारा है तथा अल्लाह उससे, जो तुम करते हो भली-भाँति सूचित है। 1. इस से अभिप्राय अन्तिम रसूल मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हैं। 2. ज्योति से अभिप्राय अन्तिम ईश-वाणी क़ुर्आन है।
يَوْمَ يَجْمَعُكُمْ لِيَوْمِ الْجَمْعِ ۖ ذَٰلِكَ يَوْمُ التَّغَابُنِ ۗ وَمَن يُؤْمِن بِاللَّهِ وَيَعْمَلْ صَالِحًا يُكَفِّرْ عَنْهُ سَيِّئَاتِهِ وَيُدْخِلْهُ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا ۚ ذَٰلِكَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ ﴾ 9 ﴿
यौ-म यज्मउकुम् लियौमिल्-जम्अि ज़ालि-क यौमुत्-तग़ाबुनि, व मंय्युअ्मिम्-बिल्लाहि व यअ्मल सालिहंय् – युकफ़्फ़िर् अ़न्हु सय्यिआतिही व युद्ख़िल्हु जन्नातिन् तज्री मिन् तह्तिहल्-अन्हारु ख़ालिदी-न फ़ीहा अ-बदन्, ज़ालिकल् फ़ौज़ुल् – अ़ज़ीम
जिस दिन वह तुम्हें एकत्र करेगा, एकत्र किये जाने वाले दिन। तो वह क्षति (हानि) के खुल जाने[1] का दिन होगा और जो ईमान लाया अल्लाह पर तथा सदाचार करता है, तो वह क्षमा कर देगा उसके दोषों को और प्रवेश देगा उसे ऐसे स्वर्गों में, बहती होंगी जिनमें नहरें, वे सदावासी होंगे उनमें। यही बड़ी सफलता है। 1. अर्थात काफ़िरों के लिये, जिन्होंने अल्लाह की आज्ञा का पालन नहीं किया।
وَالَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِآيَاتِنَا أُولَٰئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ خَالِدِينَ فِيهَا ۖ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ ﴾ 10 ﴿
वल्लज़ी-न क- फ़रू व कज़्ज़बू बिआयातिना उलाइ -क अस्हाबुन्नारि ख़ालिदी-न फ़ीहा, व बिअ्सल्-मसीर
और जिन लोगों ने कुफ़्र किया और झुठलाया हमारी आयतों (निशानियों) को, तो वही नारकी हैं, जो सदावासी होंगे उस (नरक) में तथा वह बुरा ठिकाना है।
مَا أَصَابَ مِن مُّصِيبَةٍ إِلَّا بِإِذْنِ اللَّهِ ۗ وَمَن يُؤْمِن بِاللَّهِ يَهْدِ قَلْبَهُ ۚ وَاللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ ﴾ 11 ﴿
मा असा-ब मिम्-मुसी – बतिन् इल्ला बि-इज़्-निल्लाहि, व मंय्युअ्मिम्-बिल्लाहि यह्दि क़ल्बहू, वल्लाहु बिकुल्लि शैइन् अ़लीम
जो आपदा आती है, वह अल्लाह ही की अनुमति से आती है तथा जो अल्लाह पर ईमान[1] लाये, तो वह मार्गदर्शन देता[2] है उसके दिल को तथा अल्लाह प्रत्येक चीज़ को जानता है। 1. अर्थ यह है कि जो व्यक्ति आपदा को यह समझ कर सहन करता है कि अल्लाह ने यही उस के भाग्य में लिखा है। 2. ह़दीस में है कि ईमान वाले की दशा विभिन्न होती है। और उस की दशा उत्तम ही होती है। जब उसे सुख मिले तो कृतज्ञ होता है। और दुख हो तो सहन करता है। और यह उस के लिये उत्तम है। (मुस्लिमः 2999)
وَأَطِيعُوا اللَّهَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ ۚ فَإِن تَوَلَّيْتُمْ فَإِنَّمَا عَلَىٰ رَسُولِنَا الْبَلَاغُ الْمُبِينُ ﴾ 12 ﴿
व अतीउल्ला-ह व अतीअुर् – रसूल फ़-इन् तवल्लै तुम् फ़-इन्नमा अ़ला रसूलिनल्-बला ग़ुल्- मुबीन
तथा आज्ञा का पालन करो अल्लाह की तथा आज्ञा का पालन करो उसके रसूल की। फिर यदि तुम विमुख हुए, तो हमारे रसूल का दायित्व केवल खुले रूप से (उपदेश) पहुँचा देना है।
اللَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ۚ وَعَلَى اللَّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُونَ ﴾ 13 ﴿
अल्लाहु ला इला-ह इल्ला हु-व, व अ़लल्लाहि फ़ल्य – तवक्कलिल् – मु अ्मिनून
अल्लाह वह है, जिसके सिवा कोई वंदनीय ( सच्चा पूज्य) नहीं है। अतः, अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिये ईमान वालों को।
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِنَّ مِنْ أَزْوَاجِكُمْ وَأَوْلَادِكُمْ عَدُوًّا لَّكُمْ فَاحْذَرُوهُمْ ۚ وَإِن تَعْفُوا وَتَصْفَحُوا وَتَغْفِرُوا فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ ﴾ 14 ﴿
या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इन्-न मिन् अज़्वाजिकुम् व औलादिकुम् अ़दुव्वल् – लकुम् फ़हज़रूहुम् व इन् तअ्फ़ू व तस्फ़हू व तग़्फ़िरू फ़-इन्नल्ला-ह ग़फ़ूरुर्रहीम
हे लोगो जो ईमान लाये हो! वास्तव में, तुम्हारी कुछ पत्नियाँ तथा संतान तुम्हारी शत्रु[1] हैं। अतः, उनसे सावधान रहो और यदि तुम क्षमा से काम लो तथा सुधार करो और क्षमा कर दो, तो वास्तव में अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है। 1. अर्थात जो तुम्हें सदाचार एवं अल्लाह के आज्ञा पालन से रोकते हों, फिर भी उन का सुधार करने और क्षमा करने का निर्देश दिया गया है।
إِنَّمَا أَمْوَالُكُمْ وَأَوْلَادُكُمْ فِتْنَةٌ ۚ وَاللَّهُ عِندَهُ أَجْرٌ عَظِيمٌ ﴾ 15 ﴿
इन्नमा अम्वालुकुम् व औलादुकुम् फ़ित्- नतुन्, वल्लाहु इंदहु अज्-रून् अ़ज़ीम
तुम्हारे धन तथा तुम्हारी संतान तो तुम्हारे लिए एक परीक्षा हैं तथा अल्लाह के पास बड़ा प्रतिफल[1] (बदला) है। 1. भावार्थ यह है कि धन और संतान के मोह में अल्लाह की अवैज्ञा न करो।
فَاتَّقُوا اللَّهَ مَا اسْتَطَعْتُمْ وَاسْمَعُوا وَأَطِيعُوا وَأَنفِقُوا خَيْرًا لِّأَنفُسِكُمْ ۗ وَمَن يُوقَ شُحَّ نَفْسِهِ فَأُولَٰئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ ﴾ 16 ﴿
फ़त्तक़ुल्ला – ह मस्त – तअ्तुम् वस् मअू व अतीअू व अन्फ़िक़ू ख़ैरल्- लिअन्फुसिकुम्, व मंय्यू – क़ शुह्-ह नफिसही फ़ – उलाइ – क हुमुल् – मुफ़्लिहून
तो अल्लाह से डरते रहो, जितना तुमसे हो सके तथा सुनो, आज्ञा पालन करो और दान करो। ये उत्तम है तुम्हारे लिए और जो बचा लिया गया अपने मन की कंजूसी से, तो वही सफल होने वाले हैं।
إِن تُقْرِضُوا اللَّهَ قَرْضًا حَسَنًا يُضَاعِفْهُ لَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ۚ وَاللَّهُ شَكُورٌ حَلِيمٌ ﴾ 17 ﴿
इन् तुक्रिज़ुल्ला-ह क़र्ज़न् ह-सनंय् – युज़ाअिफ्हु लकुम् व यग्फिर् लकुम्, वल्लाहु शकूरुन् हलीम
यदि तुम अल्लाह को उत्तम ऋण[1] दोगो, तो वह तुम्हें कई गुना बढ़ाकर देगा और क्षमा कर देगा तुम्हें और अल्लाह बड़ा गुणग्राही, सहनशील है। 1. ऋण से अभिप्राय अल्लाह की राह में दान करना है।