सूरह सज्दा के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है, इस में 30 आयतें हैं।
- इस सूरह की आयत नं० 15 में ईमान वालों का यह गुण बताया गया है कि उन्हें अल्लाह की आयतों द्वारा शिक्षा दी जाती है तो वह सज्दे में गिर पड़ते है। इसी लिये इस का यह नाम है।
- इस में तौहीद तथा आख़िरत की बातों को ऐसे वर्णन किया गया है कि संदेह दूर हो कर दिल को विश्वास हो जाये। और बताया गया है कि यह पुस्तक (कुन) लोगों को सावधान करने के लिये उतारी गई है। तौहीद के साथ ही मनुष्य की उत्पत्ति की चर्चा भी की गई है।
- इस में आख़िरत का विषय तथा ईमान वालों की कुछ विशेषतायें तथा उन का शुभ परिणाम बताया गया है और झुठलाने वालों का दुष्परिणाम भी दिखाया गया है।
- यह बताया गया है कि नबी का आना कोई अनोखी बात नहीं है। इस से पहले भी मूसा (अलैहिस्सलाम) तथा दूसरे नबी आते रहे। और विनाशित जातियों के परिणाम पर विचार करने को कहा गया है।
- अन्त में विरोधियों की आपत्तियों का जवाब देते हुये उन्हें सावधान किया गया है। हदीस में है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) इस सूरह को जुमुआ के दिन फज्र की नमाज़ में पढ़ते थे। (सहीह बुखारीः 891)
सूरह अस-सजदा | Surah Sajdah in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
تَنزِيلُ الْكِتَابِ لَا رَيْبَ فِيهِ مِن رَّبِّ الْعَالَمِينَ ﴾ 2 ﴿
तन्ज़ीलुल् – किताबि ला रै – ब फीहि मिर्रब्बिल – आलमीन
इस पुस्तक का उतारना, जिसमें कोई संदेह नहीं पूरे संसार के पालनहार की ओर से है।
أَمْ يَقُولُونَ افْتَرَاهُ ۚ بَلْ هُوَ الْحَقُّ مِن رَّبِّكَ لِتُنذِرَ قَوْمًا مَّا أَتَاهُم مِّن نَّذِيرٍ مِّن قَبْلِكَ لَعَلَّهُمْ يَهْتَدُونَ ﴾ 3 ﴿
अम् – यक़ूलूनफ़्तराहु बल् हुवल्-हक़्क़ू मिर्रब्बि-क लितुन्ज़ि-र क़ौमम् – मा अताहुम् मिन् नज़ीरिम् – मिन् क़ब्लि-क लअ़ल्लहुम् यह्तदून
क्या वे कहते हैं कि इसे, इसने घड़ लिया है? बल्कि ये सत्य है आपके पालनहार की ओर से, ताकि आप सावधान करें उन लोगों को, जिन[1] के पास नहीं आया है कोई सावधान करने वाला आपसे पहले। संभव है वे सीधी राह पर आ जायें। 1. इस से अभिप्राय मक्का वासी हैं।
اللَّهُ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ ثُمَّ اسْتَوَىٰ عَلَى الْعَرْشِ ۖ مَا لَكُم مِّن دُونِهِ مِن وَلِيٍّ وَلَا شَفِيعٍ ۚ أَفَلَا تَتَذَكَّرُونَ ﴾ 4 ﴿
अल्लाहुल्लज़ी ख़-लक़स्समावाति वल् अर् ज़ व मा बैनहुमा फ़ी सित्तति अय्यामिन् सुम्मस्तवा अ़लल्-अ़र्शि, मा लकुम् मिन् दूनिही मिंव्वलिय्यिंव्-वला शफ़ीअिन्, अ-फ़ला त-तज़क्करून
अल्लाह वही है, जिसने पैदा किया आकाशों तथा धरती को और जो दोनों के मध्य है, छः दिनों में। फिर स्थित हो गया अर्श पर। नहीं है उसके सिवा तुम्हारा कोई संरक्षक और न कोई अभिस्तावक (सिफ़ारिशी), तो क्या तुम शिक्षा नहीं लेते?
يُدَبِّرُ الْأَمْرَ مِنَ السَّمَاءِ إِلَى الْأَرْضِ ثُمَّ يَعْرُجُ إِلَيْهِ فِي يَوْمٍ كَانَ مِقْدَارُهُ أَلْفَ سَنَةٍ مِّمَّا تَعُدُّونَ ﴾ 5 ﴿
युदब्बिरुल् – अम् – र मिनस्समा – इ इलल् – अर्ज़ि सुम्-म यअ्-रुजु इलैहि फ़ी यौमिन् का-न मिक़्दारुहू अल्-फ़ स-नतिम् – मिम्मा तअुद्-दून
वह उपाय करता है प्रत्येक कार्य की आकाश से धरती तक, फिर प्रत्येक कार्य, ऊपर उसके पास जाता है, एक दिन में, जिसका माप एक हज़ार वर्ष है, तुम्हारी गणना से।
ذَٰلِكَ عَالِمُ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ ﴾ 6 ﴿
ज़ालि-क आ़लिमुल् – ग़ैबि वश्शहा-दतिल् अ़ज़ीजुर् – रहीम
वही है ज्ञानी छुपे तथा खुले का, अति प्रभुत्वशाली, दयावान्।
الَّذِي أَحْسَنَ كُلَّ شَيْءٍ خَلَقَهُ ۖ وَبَدَأَ خَلْقَ الْإِنسَانِ مِن طِينٍ ﴾ 7 ﴿
अल्लज़ी अह्स-न कुल्-ल शैइन् ख़-ल- क़हू व ब-द-अ ख़ल्क़ल् – इन्सानि मिन् तीन
जिनने सुन्दर बनाई प्रत्येक चीज़, जो उत्पन्न की और आरंभ की मनुष्य की उत्पत्ति मिट्टी से।
ثُمَّ جَعَلَ نَسْلَهُ مِن سُلَالَةٍ مِّن مَّاءٍ مَّهِينٍ ﴾ 8 ﴿
सुम्-म ज-अ़-ल नस्- लहु मिन् सुला-लतिम् मिम्मा-इम्- महीन
फिर बनाया उसका वंश एक तुच्छ जल के निचोड़ (वीर्य) से।
ثُمَّ سَوَّاهُ وَنَفَخَ فِيهِ مِن رُّوحِهِ ۖ وَجَعَلَ لَكُمُ السَّمْعَ وَالْأَبْصَارَ وَالْأَفْئِدَةَ ۚ قَلِيلًا مَّا تَشْكُرُونَ ﴾ 9 ﴿
सुम् – म सव्वाहु व न-फ़-ख़ फ़ीहि मिर्रूहिही व ज-अ़-ल लकुमुस्- सम्-अ़ वल्-अब्सा – र वल्- अफ्इ-द-त, क़लीलम् – मा तश्कुरून
फिर बराबर किया उसे और फूंक दिया उसमें अपनी आत्मा (प्राण) तथा बनाये तुम्हारे लिए कान और आँख तथा दिल। तुम कम ही कृतज्ञ होते हो।
وَقَالُوا أَإِذَا ضَلَلْنَا فِي الْأَرْضِ أَإِنَّا لَفِي خَلْقٍ جَدِيدٍ ۚ بَلْ هُم بِلِقَاءِ رَبِّهِمْ كَافِرُونَ ﴾ 10 ﴿
व कालू अ- इज़ा ज़लल्ना फ़िल्अर्ज़ि अ-इन्ना लफ़ी ख़ल्किन् जदीदिन्, बल् हुम् बिलिक़ा – इ रब्बिहिम् काफ़िरून
तथा उन्होंने कहाः क्या जब हम खो जायेंगे धरती में, तो क्या हम नई उत्पत्ति में होंगे? बल्कि वे अपने पालनहार से मिलने का इन्कार करने वाले हैं।
قُلْ يَتَوَفَّاكُم مَّلَكُ الْمَوْتِ الَّذِي وُكِّلَ بِكُمْ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّكُمْ تُرْجَعُونَ ﴾ 11 ﴿
कुल् य-तवफ़्फ़ाकुम् म-लकुल्-मौतिल्लज़ी वुक्कि – ल बिकुम् सुम्- म इला रब्बिकुम् तुर्जअून
आप कह दें कि तुम्हारा प्राण निकाल लेगा मौत का फ़रिश्ता, जो तुमपर नियुक्त किया गया है, फिर अपने पालनहार की ओर फेर दिये जाओगे।[1] 1. अर्थात नई उत्पत्ति पर आश्चर्य करने से पहले इस पर विचार करो कि मरण तो आत्मा के शरीर से विलग हो जाने का नाम है जो दूसरे स्थान पर चली जाती है। और परलोक में उसे नया जन्म दे दिया जायेगा फिर उसे अपने कर्म के अनुसार स्वर्ग अथवा नरक में पहुँचा दिया जायेगा।
وَلَوْ تَرَىٰ إِذِ الْمُجْرِمُونَ نَاكِسُو رُءُوسِهِمْ عِندَ رَبِّهِمْ رَبَّنَا أَبْصَرْنَا وَسَمِعْنَا فَارْجِعْنَا نَعْمَلْ صَالِحًا إِنَّا مُوقِنُونَ ﴾ 12 ﴿
व लौ तरा इज़िल् – मुज्रिमू – न नाकिसू रुऊसिहिम् अिन्- द रब्बिहिम्, रब्बना अब्सर्न व समिअ्ना फ़र्जिअ़ना नअ्मल् सालिहन् इन्ना मूक़िनून
और यदि आप देखते, जब अपराधी अपने सिर झुकाये होंगे अपने पालनहार के समक्ष, (वे कह रहे होंगेः) हे हमारे पालनहार! हमने देख लिया और सुन लिया, अतः, हमें फेर दे (संसार में) हम सदाचार करेंगे। हमें पूरा विश्वास हो गया।
وَلَوْ شِئْنَا لَآتَيْنَا كُلَّ نَفْسٍ هُدَاهَا وَلَٰكِنْ حَقَّ الْقَوْلُ مِنِّي لَأَمْلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنَ الْجِنَّةِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ ﴾ 13 ﴿
व लौ शिअ्ना लआतैना कुल्-ल नफ़्सिन् हुदाहा व लाकिन् हक़्क़ल् – क़ौलु मिन्नी ल-अम्-लअन् न जहन्न-म मिनल्- जिन्नति वन्नासि अज्मईn
और यदि हम चाहते, तो प्रदान कर देते प्रत्येक प्राणी को उसका मार्गदर्शन। परन्तु, मेरी ये बात सत्य होकर रही कि मैं अवश्य भरूँगा नरक को जिन्नों तथा मानव से।
فَذُوقُوا بِمَا نَسِيتُمْ لِقَاءَ يَوْمِكُمْ هَٰذَا إِنَّا نَسِينَاكُمْ ۖ وَذُوقُوا عَذَابَ الْخُلْدِ بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ ﴾ 14 ﴿
फ़ज़ूक़ू बिमा नसीतुम् लिक़ा – अ यौमिकुम् हाज़ा इन्ना नसीनाकुम् व ज़ूक़ू अ़ज़ाबल् – ख़ुल्दि बिमा कुन्तुम् तअ्मलून
तो चखो, अपने भूल जाने के कारण अपने इस दिन के मिलने को, हमने (भी) तुम्हें भुला दिया[1] है। चखो, सदा की यातना उसके बदले, जो तुम कर रहे थे। 1. अर्थात आज तुम पर मेरी कोई दया नहीं होगी।
إِنَّمَا يُؤْمِنُ بِآيَاتِنَا الَّذِينَ إِذَا ذُكِّرُوا بِهَا خَرُّوا سُجَّدًا وَسَبَّحُوا بِحَمْدِ رَبِّهِمْ وَهُمْ لَا يَسْتَكْبِرُونَ ۩ ﴾ 15 ﴿
इन्नमा युम्मिनु बिआयातिनल्लज़ी – न इज़ा जुक्किरू बिहा ख़र्रू सुज्जदंव्-व सब्बहू बिहम्दि रब्बिहिम् व हुम् ला यस्तक्बिरून *सज्दा*
हमारी आयतों पर बस वही ईमान लाते हैं, जिनको जब समझाया जाये उनसे, तो गिर जाते हैं सज्दा करते हुए और पवित्रता का गान करते हैं, अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ और अभिमान नहीं करते।[1] 1. यहाँ सज्दा तिलावत करना चाहिये।
تَتَجَافَىٰ جُنُوبُهُمْ عَنِ الْمَضَاجِعِ يَدْعُونَ رَبَّهُمْ خَوْفًا وَطَمَعًا وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنفِقُونَ ﴾ 16 ﴿
त – तजाफ़ा जुनूबुहुम् अ़निल् – मज़ाजिअि यद्अू-न रब्बहुम् ख़ौफंव्-व त-मअंव्-व मिम्मा रज़क्नाहुम् युन्फिक़ून
अलग रहते हैं उनके पार्शव (पहलू) बिस्तर से, वह प्रार्थना करते रहते हैं अपने पालनहार से भय तथा आशा रखते हुए तथा उसमें से, जो हमने उन्हें प्रदान किया है, दान करते रहते हैं।
فَلَا تَعْلَمُ نَفْسٌ مَّا أُخْفِيَ لَهُم مِّن قُرَّةِ أَعْيُنٍ جَزَاءً بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ ﴾ 17 ﴿
फ़ला तअ्लमु नफ़्सुम् – मा उख़्फ़ि-य लहुम् मिन् क़ुर्रति अअ्युनिन् जज़ा – अम् बिमा कानू यअ्मलून
तो नहीं जानता कोई प्राणी उसे, जो हमने छुपा रखा है उनके लिए आँखों की ठण्डक[1] उसके प्रतिफल में, जो वह कर रहे थे। 1. ह़दीस में है कि अल्लाह ने कहा है कि मैं ने अपने सदाचारी भक्तों के लिये ऐसी चीज़ें तैयार की हैं जिन्हें न किसी आँख ने देखा है और न किसी कान ने सुना है और न किसी मनुष्य के दिल में उन का विचार आया। फिर आप ने यही आयत पढ़ी। (सह़ीह़ बुख़ारीः4780)
أَفَمَن كَانَ مُؤْمِنًا كَمَن كَانَ فَاسِقًا ۚ لَّا يَسْتَوُونَ ﴾ 18 ﴿
अ-फ़-मन् का-न मुअ्मिनन् कमन् का-न फ़ासिक़न्, ला यस्तवून
फिर क्या, जो ईमान वाला हो, उसके समान है, जो अवज्ञाकारी हो? वे सब समान नहीं हो सकेंगे।
أَمَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ فَلَهُمْ جَنَّاتُ الْمَأْوَىٰ نُزُلًا بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ ﴾ 19 ﴿
अम्मल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति फ़-लहुम् जन्नातुल्- मअ्वा नुज़ुलम् बिमा कानू यअ्मलून
जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, तो उन्हीं के लिए स्थायी स्वर्ग हैं, अतिथि सत्कार के लिए, उसके बदले, जो वे करते रहे।
وَأَمَّا الَّذِينَ فَسَقُوا فَمَأْوَاهُمُ النَّارُ ۖ كُلَّمَا أَرَادُوا أَن يَخْرُجُوا مِنْهَا أُعِيدُوا فِيهَا وَقِيلَ لَهُمْ ذُوقُوا عَذَابَ النَّارِ الَّذِي كُنتُم بِهِ تُكَذِّبُونَ ﴾ 20 ﴿
व अम्मल्लज़ी-न फ़-सक़ू फ़-मअ्वाहुमुन्नारु, कुल्-लमा अरादू अंय्यख़्-रुजू मिन्हा उईदू फ़ीहा व क़ी-ल लहुम् ज़ूक़ू अ़ज़ाबन्नारिल्लज़ी कुन्तुम् बिही तुकज़्ज़िबून
और जो अवज्ञा कर गये, उनका आवास नरक है। जब-जब वे निकलना चाहेंगे उसमें से, तो फेर दिये जायेंगे उसमें तथा कहा जायेगा उनसे कि चखो उस अग्नि की यातना, जिसे तुम झुठला रहे थे।
وَلَنُذِيقَنَّهُم مِّنَ الْعَذَابِ الْأَدْنَىٰ دُونَ الْعَذَابِ الْأَكْبَرِ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ ﴾ 21 ﴿
व ल-नुज़ीक़न्नहुम् मिनल् अ़ज़ाबिल्-अद्ना दूनल् अ़ज़ाबिल्-अक्बरि लअ़ल्लहुम् यर्जिअून
और हम अवश्य चखायेंगे उन्हें सांसारिक यातना, बड़ी यातना से पूर्व ताकि वे फिर[1] आयें। 1. अर्थात ईमान लायें और अपने कुकर्म से क्षमा याचना कर लें।
وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّن ذُكِّرَ بِآيَاتِ رَبِّهِ ثُمَّ أَعْرَضَ عَنْهَا ۚ إِنَّا مِنَ الْمُجْرِمِينَ مُنتَقِمُونَ ﴾ 22 ﴿
व मन् अज़्लमु मिम्मन् ज़ुक्कि र बिआयाति रब्बिही सुम्-म अअ्र-ज़ अ़न्हा, इन्ना मिनल् मुज्रिमी-न मुन्तक़िमून
और उससे अधिक अत्याचारी कौन है, जिसे शिक्षा दी जाये उसके पालनहार की आयतों द्वारा, फिर विमुख हो जाये उनसे? वास्तव में, हम अपराधियों से बदला लेने वाले हैं।
وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ فَلَا تَكُن فِي مِرْيَةٍ مِّن لِّقَائِهِ ۖ وَجَعَلْنَاهُ هُدًى لِّبَنِي إِسْرَائِيلَ ﴾ 23 ﴿
व ल – क़द् आतैना मूसल् – किता – ब फ़ला तकुन् फ़ी मिर्यतिम् मिल्लिक़ा – इही व जअ़ल्नाहु हुदल् लि-बनी इस्राईल
तथा हमने मूसा को प्रदान की (तौरात) तो आप न हों किसी संदेह में, उस[1] से मिलने में तथा बनाया हमने उसे (तौरात को) मार्गदर्शन इस्राईल की संतान के लिए। 1. इस में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के मेराज की रात्रि में मूसा (अलैहिस्सलाम) से मिलने की ओर संकेत है। जिस में मूसा (अलैहिस्सलाम) ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को अल्लाह से पचास को नमाज़ों पाँच कराने का प्रामर्श दिया था। (सह़ीह़ बुख़ारीः3207, मुस्लिमः164)
وَجَعَلْنَا مِنْهُمْ أَئِمَّةً يَهْدُونَ بِأَمْرِنَا لَمَّا صَبَرُوا ۖ وَكَانُوا بِآيَاتِنَا يُوقِنُونَ ﴾ 24 ﴿
व जअ़ल्ना मिन्हुम् अ- इम्मतंय् यह्दू-न बिअम्रिना लम्मा स – बरू, व कानू बिआया- तिना यूक़िनून
तो हमने उनमें से अग्रणी बनाये, जो मार्गदर्शन देते रहे हमारे आदेश द्वारा, जब उन्होंने सहन किया तथा हमारी आयतों पर विश्वास[1] करते रहे। 1. अर्थ यह है कि आप भी धैर्य तथा पूरे विश्वास के साथ लोगों को सुपथ दर्शायें।
إِنَّ رَبَّكَ هُوَ يَفْصِلُ بَيْنَهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فِيمَا كَانُوا فِيهِ يَخْتَلِفُونَ ﴾ 25 ﴿
इन्-न रब्ब – क हु-व यफ़्सिलु बैनहुम् यौमल् – क़ियामति फ़ीमा कानू फ़ीहि यख़्तलिफ़ून
वस्तुतः, आपका पालनहार ही निर्णय करेगा, उनके बीच प्रलय के दिन जिसमें वे विभेद करते रहे।
أَوَلَمْ يَهْدِ لَهُمْ كَمْ أَهْلَكْنَا مِن قَبْلِهِم مِّنَ الْقُرُونِ يَمْشُونَ فِي مَسَاكِنِهِمْ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ ۖ أَفَلَا يَسْمَعُونَ ﴾ 26 ﴿
अ-व लम् यह्दि लहुम् कम् अह्लक्ना मिन् कुब्लिहिम् मिनल् – कुरूनि यम्शू-न फ़ी मसाकिनिहिम्, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआयातिन्, अ-फ़ला यस्मअून
तो क्या मार्गदर्शन नहीं कराया उन्हें कि हमने ध्वस्त कर दिया इससे पूर्व बहुत-से युग के लोगों को, जो चल-फिर रहे थे अपने घरों में। वास्तव में, इसमें बहुत-सी निशानियाँ (शिक्षायें) हैं, तो क्या वे सुनते नहीं हैं?
أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّا نَسُوقُ الْمَاءَ إِلَى الْأَرْضِ الْجُرُزِ فَنُخْرِجُ بِهِ زَرْعًا تَأْكُلُ مِنْهُ أَنْعَامُهُمْ وَأَنفُسُهُمْ ۖ أَفَلَا يُبْصِرُونَ ﴾ 27 ﴿
अ-व लम् यरौ अन्ना नसूकुल्-मा-अ इलल् – अर्जिल्- जुरुज़ि फ़नुख़िरजु बिही ज़र्अन् तअ्कुलु मिन्हु अन्आमुहुम् व अन्फुसुहुम्, अ-फला युब्सिरून
क्या उन्होंने नहीं देखा कि हम बहा ले जाते हैं, जल को, सूखी भूमि की ओर, फिर उपजाते हैं उसके द्वारा खेतियाँ, खाते हैं जिनमें से उनके चौपाये तथा वे स्वयं। तो क्या वे ग़ौर नहीं करते?
وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَٰذَا الْفَتْحُ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ ﴾ 28 ﴿
व य़कूलू-न मता हाज़ल् -फ़त्हु इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
तथा कहते हैं कि कब होगा वह निर्णय यदि तुम सच्चे हो?
قُلْ يَوْمَ الْفَتْحِ لَا يَنفَعُ الَّذِينَ كَفَرُوا إِيمَانُهُمْ وَلَا هُمْ يُنظَرُونَ ﴾ 29 ﴿
क़ुल यौमल् – फत्हि ला यन्फ़ अुल्लज़ी – न क – फ़रू ईमानुहुम् व ला हुम् युन्ज़रून
आप कह दें: निर्णय के दिन लाभ नहीं देगा काफ़िरों को, उनका ईमान लाना[1] और न उन्हें अवसर दिया जायेगा। 1. इन आयतों में मक्का के काफ़िरों को सावधान किया गया है कि इतिहास से शिक्षा ग्रहण करो, जिस जाति ने भी अल्लाह के रसूलों का विरोध किया उस को संसार से निरस्त कर दिया गया। तुम निर्णय की माँग करते हो तो जब निर्णय का दिन आ जायेगा तो तुम्हारे संभाले नहीं संभलेगी और उस समय का ईमान कोई लाभ नहीं देगा।