सूरह रअद के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है, इस में 43 आयतें हैं।
- «रअद» का अर्थः बादल की गरज है। इस सूरह की आयत नं. (13) में बताया गया है कि वह अल्लाह की प्रशंसा के साथ उस की पवित्रता का गान करती है। इसी से इस का नाम रअद रखा गया है।
- इस सूरह में यह बताया गया है कि इस पुस्तक (क़ुरआन पाक) का अल्लाह की ओर से उतरना सच्च है तथा उन लक्षणों की ओर ध्यान दिलाया गया है जिन से परलोक का विश्वास होता है तथा विरोधियों को चेतावनी दी गई है।
- तौहीद (ऐकेश्वरवाद) के विषय तथा सत्य और असत्य के अलग अलग परिणाम को बताया गया है| और सत्य के अनुयायियों के गुण और परलोक में उन का परिणाम तथा विरोधियों के दुष्परिणाम को प्रस्तुत किया गया है।
- विरोधियों को चेतावनी दी गई, तथा ईमान वालों को शुभ सूचना सुनाई गई है।
- और अन्त में रिसालत (दूतत्व) के विरोधियों को सावधान करने साथ आज्ञाकारियों के अच्छे अन्त को प्रस्तुत किया गया है ताकि विरोधियों को अल्लाह से भय की प्रेरणा मिले।
सूरह र’आद | Surah Raad in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
المر ۚ تِلْكَ آيَاتُ الْكِتَابِ ۗ وَالَّذِي أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ الْحَقُّ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يُؤْمِنُونَ ﴾ 1 ﴿
अलिफ्-लाम्-मीम्-रा, तिल्-क आयातुल-किताबि, वल्लज़ी उन्ज़ि-ल इलै-क मिर्रब्बिकल्-हक़्क़ु व लाकिन् -न अक्सरन्नासि ला युअ्मिनून
अलिफ, लाम, मीम, रा। ये इस पुस्तक (क़ुर्आन) की आयतें हैं और (हे नबी!) जो आपपर, आपके पालनहार की ओर से उतारा गया है, सर्वथा सत्य है। परन्तु अधिक्तर लोग ईमान (विश्वास) नहीं रखते।
اللَّهُ الَّذِي رَفَعَ السَّمَاوَاتِ بِغَيْرِ عَمَدٍ تَرَوْنَهَا ۖ ثُمَّ اسْتَوَىٰ عَلَى الْعَرْشِ ۖ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ ۖ كُلٌّ يَجْرِي لِأَجَلٍ مُّسَمًّى ۚ يُدَبِّرُ الْأَمْرَ يُفَصِّلُ الْآيَاتِ لَعَلَّكُم بِلِقَاءِ رَبِّكُمْ تُوقِنُونَ ﴾ 2 ﴿
अल्लाहुल्लज़ी र-फ़अ़स्समावाति बिग़ैरि अ़ मदिन् तरौनहा सुम्मस्तवा अ़लल्-अ़र्शि व सख़्ख़रश्शम्-स वल्क़-म-र, कुल्लुंय्यज्री लि-अ-जलिम्-मुसम्मन्, यु दब्बिरूल्-अम्-र युफस्सिलुल्-आयाति लअ़ल्लकुम बिलिक़ा-इ रब्बिकुम् तूक़िनून
अल्लाह वही है, जिसने आकाशों को ऐसे सहारों के बिना ऊँचा किया है, जिन्हें तुम देख सको। फिर अर्श (सिंहासन) पर स्थिर हो गया तथा सूर्य और चाँद को नियमबध्द किया। सब एक निर्धारित अवधि के लिए चल रहे हैं। वही इस विश्व की व्यवस्था कर रहा है, वह निशानियों का विवरण (ब्योरा) दे रहा है, ताकि तुम अपने पालनहार से मिलने का विश्वास करो।
وَهُوَ الَّذِي مَدَّ الْأَرْضَ وَجَعَلَ فِيهَا رَوَاسِيَ وَأَنْهَارًا ۖ وَمِن كُلِّ الثَّمَرَاتِ جَعَلَ فِيهَا زَوْجَيْنِ اثْنَيْنِ ۖ يُغْشِي اللَّيْلَ النَّهَارَ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يَتَفَكَّرُونَ ﴾ 3 ﴿
व हुवल्लज़ी मद्दल अर्ज़ व ज-अ-ल फीहा रवासि-य व अन्हारन्, व मिन् कुल्लिस्स मराति ज-अ-ल फ़ीहा ज़ौ जैनिस् नैनि युग़्शिल्लैलन्नहा-र, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआयातिल्-लिक़ौमिंय्-य-तफ़क्करून
तथा वही है, जिसने धरती को फैलाया और उसमें पर्वत तथा नहरें बनायीं और प्रत्येक फल के दो प्रकार बनाये। वह रात्रि से दिन को छुपा देता है। वास्तव में, इसमें बहुत सी निशानियाँ हैं, उन लोगों के लिए, जो सोच-विचार करते हैं।
وَفِي الْأَرْضِ قِطَعٌ مُّتَجَاوِرَاتٌ وَجَنَّاتٌ مِّنْ أَعْنَابٍ وَزَرْعٌ وَنَخِيلٌ صِنْوَانٌ وَغَيْرُ صِنْوَانٍ يُسْقَىٰ بِمَاءٍ وَاحِدٍ وَنُفَضِّلُ بَعْضَهَا عَلَىٰ بَعْضٍ فِي الْأُكُلِ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يَعْقِلُونَ ﴾ 4 ﴿
व फ़िलअर्ज़ि क़ि तअुम् मु-तजाविरातुंव्-व जन्नातुम्-मिन् अअ्नाबिंव्-व ज़रअुव्-व नख़ीलुन् सिन्वानुंव्-व ग़ैरू सिन्वानिंय्युस्क़ा बिमाइंव्वाहिदिन्, व नुफ़ज़्ज़िलु बअ्ज़हा अला बअ्ज़िन् फ़िल्उकुलि, इन्-न फ़ी ज़ालि- क लआयातिल् लिकौमिंय्यअ्क़िलून
और धरती में आपस में मिले हुए कई खण्ड हैं और उद्यान (बाग़) हैं अंगूरों के तथा खेती और खजूर के वृक्ष हैं। कुछ एक्हरे और कुछ दोहरे, सब एक ही जल से सींचे जाते हैं और हम कुछ को स्वाद में कुछ से अधिक कर देते हैं, वास्तव में, इसमें बहुत सी निशानियाँ हैं, उन लोगों के लिए, जो सूझ-बूझ रखते हैं।
وَإِن تَعْجَبْ فَعَجَبٌ قَوْلُهُمْ أَإِذَا كُنَّا تُرَابًا أَإِنَّا لَفِي خَلْقٍ جَدِيدٍ ۗ أُولَٰئِكَ الَّذِينَ كَفَرُوا بِرَبِّهِمْ ۖ وَأُولَٰئِكَ الْأَغْلَالُ فِي أَعْنَاقِهِمْ ۖ وَأُولَٰئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ ۖ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ ﴾ 5 ﴿
व इन् तअ्जब् फ़-अ़ जबुन् क़ौलुहम् अ-इज़ा कुन्ना तुराबन् अ इन्ना लफ़ी ख़ल्क़िन् जदीदिन्, उलाइ-कल्लज़ी-न क-फरू बिर्रब्बिहिम्, व उलाइकल्-अ़ग्लालु फी अअ्नाक़िहिम्, व उलाइ-क अस्हाबुन्नारि, हुम् फ़ीहा ख़ालिदून
तथा यदि आप आश्चर्य करते हैं, तो आश्चर्य करने योग्य उनका ये[1] कथन है कि जब हम मिट्टी हो जायेंगे, तो क्या वास्तव में, हम नई उत्पत्ति में होंगे? उन्होंने ही अपने पालनहार के साथ कुफ़्र किया है तथा उन्हीं के गलों में तोक़ पड़े होंगे और वही नरक वाले हैं, जिसमें वे सदा रहेंगे। 1. क्योंकि कि वह जानते हैं कि बीज धरती में सड़ कर मिल जाता है, फिर उस से पौधा उगता है।
وَيَسْتَعْجِلُونَكَ بِالسَّيِّئَةِ قَبْلَ الْحَسَنَةِ وَقَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِهِمُ الْمَثُلَاتُ ۗ وَإِنَّ رَبَّكَ لَذُو مَغْفِرَةٍ لِّلنَّاسِ عَلَىٰ ظُلْمِهِمْ ۖ وَإِنَّ رَبَّكَ لَشَدِيدُ الْعِقَابِ ﴾ 6 ﴿
व यस्तअ्जिलून-क बिस्सय्यि-अति क़ब्लल्-ह-सनति व क़द् ख़लत् मिन् क़ब्लिहिमुल्-मसुलातु, व इन्-न रब्ब-क लज़ु मग़्फि रतिल् लिन्नासि अला ज़ुल्मिहिम्, व इन्-न रब्ब-क ल-शदीदुल अिक़ाब
और वे आपसे बुराई (यातना) की जल्दी मचा रहे हैं भलाई से पहले। जबकि इनसे पहले यातनाऐं आ चुकी हैं और वास्तव में, आपका पालनहार लोगों को उनके अत्याचार पर क्षमा करने वाला है तथा निश्चय आपका पालनहार कड़ी यातना देने वाला (भी) है।
وَيَقُولُ الَّذِينَ كَفَرُوا لَوْلَا أُنزِلَ عَلَيْهِ آيَةٌ مِّن رَّبِّهِ ۗ إِنَّمَا أَنتَ مُنذِرٌ ۖ وَلِكُلِّ قَوْمٍ هَادٍ ﴾ 7 ﴿
व यक़ूलुल्लज़ी-न क-फरू लौ ला उन्ज़ि-ल अ़लैहि आयतुम्-मिर्रब्बिही, इन्नमा अन्-त मुन्ज़िरूंव्-व लिकुल्लि क़ौमिन् हाद *
तथा जो काफ़िर हो गये, वे कहते हैं कि आपपर आपके पालनहार की ओर से कोई आयत (चमत्कार) क्यों नहीं उतारा[1] गया। आपकेवल सावधान करने वाले तथा प्रत्येक जाति को सीधी राह दिखाने वाले हैं। 1. जिस से स्पष्ट हो जाता कि आप अल्लाह के रसूल हैं।
اللَّهُ يَعْلَمُ مَا تَحْمِلُ كُلُّ أُنثَىٰ وَمَا تَغِيضُ الْأَرْحَامُ وَمَا تَزْدَادُ ۖ وَكُلُّ شَيْءٍ عِندَهُ بِمِقْدَارٍ ﴾ 8 ﴿
अल्लाहु यअ्लमु मा तह़्मिलु कुल्लु उन्सा व मा तग़ीज़ुल्-अरहामु व मा तज़्दादु, व कुल्लु शैइन् अिन्दहू बिमिक़्दार
अल्लाह ही जानता है, जो प्रत्येक स्त्री के गर्भ में है तथा गर्भाशय जो कम और अधिक[1] करते हैं, प्रत्येक चीज़ की उसके यहाँ एक निश्चित मात्रा है। 1. इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः ग़ैब (परोक्ष) की तालिकायें पाँच हैं। जिन को केवल अल्लाह ही जानता हैः कल की बात अल्लाह ही जानता है, और गर्भाशय जो कमी करते हैं उसे अल्लाह ही जानता है। वर्षा कब होगी उसे अल्लाह ही जानता है। और कोई प्राणी नहीं जानता कि वह किस धरती पर मरेगा। और न अल्लाह के सिवा कोई यह जानता है कि प्रलय कब आयेगी। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4697)
عَالِمُ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ الْكَبِيرُ الْمُتَعَالِ ﴾ 9 ﴿
आ़लिमुल्-ग़ैबि वश्शहादतिल् कबीरूल-मु-तआ़ल
(उसके लिए) बराबर है, तुममें से जो बात चुपके बोले और जो पुकार कर बोले तथा कोई रात के अंधेरे में छुपा हो या दिन के उजाले में चल रहा हो।
سَوَاءٌ مِّنكُم مَّنْ أَسَرَّ الْقَوْلَ وَمَن جَهَرَ بِهِ وَمَنْ هُوَ مُسْتَخْفٍ بِاللَّيْلِ وَسَارِبٌ بِالنَّهَارِ ﴾ 10 ﴿
सवाउम्-मिन्कुम् मन् अ सर्रल्-क़ौ ल व मन् ज-ह-र बिही व मन् हु-व मुस्तख़्फिम् बिल्लैलि व सारिबुम्-बिन्नहार
उस (अल्लाह) के रखवाले (फरिश्ते) हैं। उसके आगे तथा पीछे, जो अल्लाह के आदेश से, उसकी रक्षा कर रहे हैं। वास्तव में, अल्लाह किसी जाति की दशा नहीं बदलता, जब तक वह स्वयं अपनी दशा न बदल ले तथा जब अल्लाह किसी जाति के साथ बुराई का निश्चय कर ले, तो उसे फेरा नहीं जा सकता और न उनका उस (अल्लाह) के सिवा कोई सहायक है।
لَهُ مُعَقِّبَاتٌ مِّن بَيْنِ يَدَيْهِ وَمِنْ خَلْفِهِ يَحْفَظُونَهُ مِنْ أَمْرِ اللَّهِ ۗ إِنَّ اللَّهَ لَا يُغَيِّرُ مَا بِقَوْمٍ حَتَّىٰ يُغَيِّرُوا مَا بِأَنفُسِهِمْ ۗ وَإِذَا أَرَادَ اللَّهُ بِقَوْمٍ سُوءًا فَلَا مَرَدَّ لَهُ ۚ وَمَا لَهُم مِّن دُونِهِ مِن وَالٍ ﴾ 11 ﴿
लहू मुअ़क्क़िबातुम् मिम्-बैनि यदैहि व मिन् ख़ल्फ़िही यह्फ़ज़ूनहू मिन् अमरिल्लाहि, इन्नल्लाह ला युग़य्यिरू मा बिक़ौमिन् हत्ता युग़य्यिरू मा बिअन्फुसिहिम्, व इज़ा अरादल्लाहु बिक़ौमिन् सूअन् फला म-रद्-द लहू, व मा लहुम् मिन् दूनिही मिंव्वाल
उस (अल्लाह) के रखवाले (फरिश्ते) हैं। उसके आगे तथा पीछे, जो अल्लाह के आदेश से, उसकी रक्षा कर रहे हैं। वास्तव में, अल्लाह किसी जाति की दशा नहीं बदलता, जब तक वह स्वयं अपनी दशा न बदल ले तथा जब अल्लाह किसी जाति के साथ बुराई का निश्चय कर ले, तो उसे फेरा नहीं जा सकता और न उनका उस (अल्लाह) के सिवा कोई सहायक है।
هُوَ الَّذِي يُرِيكُمُ الْبَرْقَ خَوْفًا وَطَمَعًا وَيُنشِئُ السَّحَابَ الثِّقَالَ ﴾ 12 ﴿
हुवल्लज़ी युरीकुमुल्-बर् क़ ख़ौफंव्-व त-म अंव्-व युन्शिउस्-सहाबस् सिक़ाल
वही है, जो विध्दुत को तुम्हें भय तथा आशा[1] बनाकर दिखाता है और भारी बादलों को पैदा करता है। 1. अर्थात वर्षा होने की आशा।
وَيُسَبِّحُ الرَّعْدُ بِحَمْدِهِ وَالْمَلَائِكَةُ مِنْ خِيفَتِهِ وَيُرْسِلُ الصَّوَاعِقَ فَيُصِيبُ بِهَا مَن يَشَاءُ وَهُمْ يُجَادِلُونَ فِي اللَّهِ وَهُوَ شَدِيدُ الْمِحَالِ ﴾ 13 ﴿
व युसब्बिहुर्रअदु बिहम्दिही वल्मलाइ-कतु मिन् ख़ीफ़तिही, व युर्सिलुस्सवाअि-क़ फ़युसीबु बिहा मंय्यशा-उ व हुम् युजादिलू-न फ़िल्लाहि, व हु-व शदीदुल-मिहाल
और कड़क, अल्लाह की प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता का वर्णन करती है और फ़रिश्ते उसके भय से काँपते हैं। वह बिजलियाँ भेजता है, फिर जिसपर चाहता है, गिरा देता है तथा वे अल्लाह के बारे में विवाद करते हैं, जबकि उसका उपाय बड़ा प्रबल है[1]। 1. अर्थात जैसे कोई प्यासा पानी की ओर हाथ फैला कर प्रार्थना करे कि मेरे मुँह में आ जा, तो न पानी में सुनने की शक्ति है न उस के मुँह तक पहुँचने की। ऐसे ही काफ़िर, अल्लाह के सिवा जिन को पुकारते हैं न उन में सुनने की शक्ति है न और वह उन की सहायता करने का सामर्थ्य रखते हैं।
لَهُ دَعْوَةُ الْحَقِّ ۖ وَالَّذِينَ يَدْعُونَ مِن دُونِهِ لَا يَسْتَجِيبُونَ لَهُم بِشَيْءٍ إِلَّا كَبَاسِطِ كَفَّيْهِ إِلَى الْمَاءِ لِيَبْلُغَ فَاهُ وَمَا هُوَ بِبَالِغِهِ ۚ وَمَا دُعَاءُ الْكَافِرِينَ إِلَّا فِي ضَلَالٍ ﴾ 14 ﴿
लहू दअ्वतुल्-हक़्क़ि, वल्लज़ी न यद्अू-न मिन् दूनिही ला यस्तजीबू-न लहुम् बिशैइन् इल्ला कबासिति कफ़्फ़ैहि इलल्-मा-इ लियब़्लु-ग़ फ़ाहु वमा हु-व बिबालिगिही, वमा दुआ़उल्-काफ़िरी-न इल्ला फ़ी ज़लाल
उसी (अल्लाह) को पुकारना सत्य है और जो उसके सिवा दूसरों को पुकारते हैं, वे उनकी प्रार्थना कुछ नहीं सुनते। जैसे कोई अपनी दोनों हथेलियाँ जल की ओर फैलाया हुआ हो, ताकि उसके मुँह में पहुँच जाये, जबकि वह उसतक पहुँचने वाला नहीं और काफ़िरों की पुकार व्यर्थ (निष्फल) ही है।
وَلِلَّهِ يَسْجُدُ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ طَوْعًا وَكَرْهًا وَظِلَالُهُم بِالْغُدُوِّ وَالْآصَالِ ۩ ﴾ 15 ﴿
व लिल्लाहि यस्जुदु मन् फिस्समावाति वल् अर्ज़ि तौअंव्-व करहंव्-व ज़िलालुहुम् बिल्ग़ुदुव्वि वल् आसाल *सज़्दा*
और अल्लाह ही को सज्दा करता है, चाह या न चाह, वह जो आकाशों तथा धरती में है और उनकी प्रछाईयाँ[1] भी प्रातः और संध्या[2]। 1. अर्थात सब उस के स्वभाविक नियम के अधीन हैं। 2. यहाँ सज्दा करना चाहिये।
قُلْ مَن رَّبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ قُلِ اللَّهُ ۚ قُلْ أَفَاتَّخَذْتُم مِّن دُونِهِ أَوْلِيَاءَ لَا يَمْلِكُونَ لِأَنفُسِهِمْ نَفْعًا وَلَا ضَرًّا ۚ قُلْ هَلْ يَسْتَوِي الْأَعْمَىٰ وَالْبَصِيرُ أَمْ هَلْ تَسْتَوِي الظُّلُمَاتُ وَالنُّورُ ۗ أَمْ جَعَلُوا لِلَّهِ شُرَكَاءَ خَلَقُوا كَخَلْقِهِ فَتَشَابَهَ الْخَلْقُ عَلَيْهِمْ ۚ قُلِ اللَّهُ خَالِقُ كُلِّ شَيْءٍ وَهُوَ الْوَاحِدُ الْقَهَّارُ ﴾ 16 ﴿
क़ुल् मर्रब्बुस्समावाति वलअर्ज़ि, क़ुलिल्लाहु, क़ुल अ-फ़त्तख़ज़्तुम् मिन् दूनिही औलिया-अ ला यम्लिकू-न लिअन्फुसिहिम् नफ्अंव्-व ला ज़र्रन्, क़ुल हल यस्तविल्-अअ्मा वल्बसीरू, अम् हल् तस्तविज़्ज़ुलुमातु वन्नूरू, अम् ज-अ़लू लिल्लाहि शु-रका-अ ख़-लक़ू क-ख़ल्क़िही फ़-तशाबहल्-ख़ल्क़ु अ़लैहिम्, क़ुलिल्लाहु ख़ालिक़ु कुल्लि शैइंव्व हुवल् वाहिदुल् क़ह़्हार
उनसे पूछोः आकाशों तथा धरती का पालनहार कौन है? कह दोः अल्लाह है। कहो कि क्या तुमने अल्लाह के सिवा उन्हें सहायक बना लिया है, जो अपने लिए किसी लाभ का अधिकार नहीं रखते और न किसी हानि का? उनसे कहोः क्या अन्धा और देखने वाला बराबर होता है या अन्धेरे और प्रकाश बराबर होते हैं[1]? अथवा उन्होंने अल्लाह का साझी बना लिया है ऐसों को, जिन्होंने अल्लाह के उत्पत्ति करने के समान उत्पत्ति की है, अतः उत्पत्ति का विषय उनपर उलझ गया है? आप कह दें कि अल्लाह ही प्रत्येक चीज़ का उत्पत्ति करने वाला है[1] और वही अकेला प्रभुत्वशाली है। 1. अंधेरे से अभिप्राय कुफ़्र के अंधेरे, तथा प्रकाश से अभिप्राय ईमान का प्रकाश है। 2. आयत का भावार्थ यह है कि जिस ने इस विश्व की प्रत्येक वस्तु की उत्पत्ति की है, वही वास्तविक पूज्य है। और जो स्वयं उत्पत्ति हो वह पूज्य नहीं हो सकता। इस तथ्य को क़ुर्आन पाक की और भी कई आयतों में परस्तुत किया गया है।
أَنزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَسَالَتْ أَوْدِيَةٌ بِقَدَرِهَا فَاحْتَمَلَ السَّيْلُ زَبَدًا رَّابِيًا ۚ وَمِمَّا يُوقِدُونَ عَلَيْهِ فِي النَّارِ ابْتِغَاءَ حِلْيَةٍ أَوْ مَتَاعٍ زَبَدٌ مِّثْلُهُ ۚ كَذَٰلِكَ يَضْرِبُ اللَّهُ الْحَقَّ وَالْبَاطِلَ ۚ فَأَمَّا الزَّبَدُ فَيَذْهَبُ جُفَاءً ۖ وَأَمَّا مَا يَنفَعُ النَّاسَ فَيَمْكُثُ فِي الْأَرْضِ ۚ كَذَٰلِكَ يَضْرِبُ اللَّهُ الْأَمْثَالَ ﴾ 17 ﴿
अन्ज़-ल मिनस्समा-इ माअन् फ़सालत् औदि यतुम् बि -क़-दरिहा फ़ह्त मलस्सैलु ज़-बदर्-राबियन्, व मिम्मा यू क़िदू-न अ़लैहि फिन्नारिब्तिग़ा-अ हिल्यतिन् औ मताअिन् ज़-बदुम्-मिस्लुहू, कज़ालि-क यज़्रिबुल्लाहुल-हक़्-क़ वल्बाति-ल, फ़-अम्मज़्ज़-बदु फ़-यज़्हबु जुफ़ा-अन्, व अम्मा मा यन्फअुन्ना-स फ़यम्कुसु फ़िल्अर्ज़ि, कज़ालि-क यज़्रिबुल्लाहुल-अम्साल
उसने आकाश से जल बरसाया, जिससे वादियाँ (उपत्यकाएँ) अपनी समाई के अनुसार बह पड़ीं। फिर (जल की) धारा के ऊपर झाग आ गया और जिस चीज़ को वे आभूषण अथवा सामान बनाने के लिए अग्नि में तपाते हैं, उसमें भी ऐसा ही झाग होता है। इसी प्रकार, अल्लाह सत्य तथा असत्य का उदाहरण देता है, फिर जो झाग है, वह सूखकर ध्वस्त हो जाता है और जो चीज़ लोगों को लाभ पहुँचाती है, वह धरती में रह जाती है। इसी प्रकार, अल्लाह उदाहरण देता[1] है। 1. इस उदाहरण में सत्य और असत्य के बीच संघर्ष को दिखाया गया है कि वह़्यी द्वारा जो सत्य उतारा गया है वह वर्षा के समान है। और जो उस से लाभ प्राप्त करते हैं वह नालों के समान हैं। और सत्य के विरोधी सैलाब के झाग के समान हैं जो कुछ देर के लिये उभरता है फिर विलय है जाता है। दूसरे उदाहरण में सत्य को सोने और चाँदी के समान बताया गया है जिसे पिघलाने से मैल उभरता है, फिर मैल उड़ता है। इसी प्रकार असत्य विलय हो जाता है। और केवल सत्य रह जाता है।
لِلَّذِينَ اسْتَجَابُوا لِرَبِّهِمُ الْحُسْنَىٰ ۚ وَالَّذِينَ لَمْ يَسْتَجِيبُوا لَهُ لَوْ أَنَّ لَهُم مَّا فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا وَمِثْلَهُ مَعَهُ لَافْتَدَوْا بِهِ ۚ أُولَٰئِكَ لَهُمْ سُوءُ الْحِسَابِ وَمَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ ۖ وَبِئْسَ الْمِهَادُ ﴾ 18 ﴿
लिल्लज़ीनस्तजाबू लिरब्बिहिमुल हुस्ना, वल्लज़ी-न लम् यस्तजीबू लहू लौ अन्-न लहुम् मा फिल्अर्ज़ि जमीअंव्-व मिस्लहू म-अहू लफ़्तदौ बिही, उलाइ-क लहुम् सूउल्-हिसाबि, व मअ्वाहुम् ज-हन्नमु, व बिअ्सल्-मिहाद *
जिन लोगों ने अपने पालनहार की बात मान ली, उन्हीं के लिए भलाई है और जिन्होंने नहीं मानी, यदि जो कुछ धरती में है, सब उनका हो जाये और उसके साथ उसके समान और भी, तो वे उसे (अल्लाह के दण्ड से बचने के लिए) अर्थदण्ड के रूप में दे देंगे। उन्हीं से कड़ा ह़िसाब लिया जायेगा तथा उनका स्थान नरक है और वह बुरा रहने का स्थान है।
أَفَمَن يَعْلَمُ أَنَّمَا أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ الْحَقُّ كَمَنْ هُوَ أَعْمَىٰ ۚ إِنَّمَا يَتَذَكَّرُ أُولُو الْأَلْبَابِ ﴾ 19 ﴿
अ-फ़मंय्यअ्लमु अन्नमा उन्ज़ि-ल इलै-क मिर्रब्बिकल्- हक़्क़ु क-मन् हु-व अअ्मा, इन्नमा य-तज़क्करू उलुल-अल्बाब
तो क्या, जो जानता है कि आपके पालनहार की ओर से, जो (क़ुर्आन) आपपर उतारा गया है, सत्य है, उसके समान है जो अन्धा है? वास्तव में, बुध्दिमान लोग ही शिक्षा ग्रहण करते हैं।
الَّذِينَ يُوفُونَ بِعَهْدِ اللَّهِ وَلَا يَنقُضُونَ الْمِيثَاقَ ﴾ 20 ﴿
अल्लज़ी-न यूफू-न बिअ़ह़्दिल्लाहि वला यन्क़ुज़ूनल्-मीसाक़
जो अल्लाह से किया वचन[1] पूरा करते हैं और वचन भंग नहीं करते। 1. भाष्य के लिये देखियेः सूरह आराफ़, आयतः172
وَالَّذِينَ يَصِلُونَ مَا أَمَرَ اللَّهُ بِهِ أَن يُوصَلَ وَيَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ وَيَخَافُونَ سُوءَ الْحِسَابِ ﴾ 21 ﴿
वल्लज़ी-न यसिलू-न मा अ-मरल्लाहु बिही अंय्यूस-ल व यख़्शौ-न रब्बहुम् व यख़ाफू न सूअल् हिसाब
और उन (संबंधों) को जोड़ते हैं, जिनके जोड़ने का अल्लाह ने आदेश दिया है और अपने पालनहार से डरते हैं तथा बुरे ह़िसाब से डरते हैं।
وَالَّذِينَ صَبَرُوا ابْتِغَاءَ وَجْهِ رَبِّهِمْ وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ وَأَنفَقُوا مِمَّا رَزَقْنَاهُمْ سِرًّا وَعَلَانِيَةً وَيَدْرَءُونَ بِالْحَسَنَةِ السَّيِّئَةَ أُولَٰئِكَ لَهُمْ عُقْبَى الدَّارِ ﴾ 22 ﴿
वल्लज़ी-न स-बरूब्तिग़ा-अ वज्हि रब्बिहिम् व अक़ामुस्सला त व अन्फक़ू मिम्मा रज़क़्नाहुम् सिर्रव् व अलानि-यतंव्-व यद् रऊ-न बिल्ह-स-नतिस्सय्यि-अ-त उलाइ-क लहुम् अुक़्बद्दार
तथा जिन लोगों ने अपने पालनहार की प्रसन्नता के लिए धैर्य से काम लिया, नमाज़ की स्थापना की तथा हमने उन्हें जो कुछ प्रदान किया है, उसमें छुपे और खुले तरीक़े से दान करते रहे, तो वही हैं, जिनके लिए परलोक का घर (स्वर्ग) है।
جَنَّاتُ عَدْنٍ يَدْخُلُونَهَا وَمَن صَلَحَ مِنْ آبَائِهِمْ وَأَزْوَاجِهِمْ وَذُرِّيَّاتِهِمْ ۖ وَالْمَلَائِكَةُ يَدْخُلُونَ عَلَيْهِم مِّن كُلِّ بَابٍ ﴾ 23 ﴿
जन्नातु अ़द्-निंय्यद्ख़ुलू-नहा व मन् स-ल-ह मिन् आबाइहिम् व अज़्वाजिहिम् व जुर्रिय्यातिहिम् वल्मलाइ -कतु यद्ख़ुलू-न अ़लैहिम् मिन कुल्लि बाब
ऐसे स्थायी स्वर्ग, जिनमें वे और उनके बाप-दादा तथा उनकी पत्नियों और संतान में से जो सदाचारी हों, प्रवेश करेंगे तथा फ़रिश्ते उनके पास प्रत्येक द्वार से (स्वागत के लिए) प्रवेश करेंगे।
سَلَامٌ عَلَيْكُم بِمَا صَبَرْتُمْ ۚ فَنِعْمَ عُقْبَى الدَّارِ ﴾ 24 ﴿
सलामुन् अलैकुम् बिमा सबर्तुम् फ़निअ्-म अुक़्बद्दार
(वे कहेंगेः) तुमपर शान्ति हो, उस धैर्य के कारण, जो तुमने किया, तो क्या ही अच्छा है ये परलोक का घर!
وَالَّذِينَ يَنقُضُونَ عَهْدَ اللَّهِ مِن بَعْدِ مِيثَاقِهِ وَيَقْطَعُونَ مَا أَمَرَ اللَّهُ بِهِ أَن يُوصَلَ وَيُفْسِدُونَ فِي الْأَرْضِ ۙ أُولَٰئِكَ لَهُمُ اللَّعْنَةُ وَلَهُمْ سُوءُ الدَّارِ ﴾ 25 ﴿
वल्लज़ी न यन्क़ुज़ू-न अ़ह्दल्लाहि मिम्-बअ्दि मीसाक़िही व यक़्तअू-न मा अ-मरल्लाहु बिही अंय्यूस -ल व युफ्सिदू-न फ़िल्अर्ज़ि, उलाइ-क लहुमुल्लअ् – नतु व लहुम् सूउद्दार
और जो लोग अल्लाह से किये वचन को, उसे सुदृढ़ करने के पश्चात्, भंग कर देते हैं और अल्लाह ने जिस संबन्ध को जोड़ने का आदेश दिया[1] है, उसे तोड़ते हैं और धरती में उपद्रव फैलाते हैं। वही हैं, जिनके लिए धिक्कार है और जिनके लिए बुरा आवास है। 1. ह़दीस में आया है कि जो व्यक्ति यह चाहता हो कि उस की जीविका अधिक, और आयु लम्बी हो तो वह अपने संबन्धों को जोड़े। (सह़ीह़ बुख़ारीः2067, सह़ीह़ मुस्लिमः2557)
اللَّهُ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَن يَشَاءُ وَيَقْدِرُ ۚ وَفَرِحُوا بِالْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَمَا الْحَيَاةُ الدُّنْيَا فِي الْآخِرَةِ إِلَّا مَتَاعٌ ﴾ 26 ﴿
अल्लाहु यब्सुतुर्रिज़्-क़ लिमंय्यशा-उ व यक़्दिरू, व फ़रिहू बिल्हयातिद्दुन्या, व मल्हयातुद्दुन्या फ़िल -आख़िरति इल्ला मताअ् *
और अल्लाह जिसे चाहे, जीविका फैलाकर देता है और जिसे चाहे. नापकर देता है और वे (काफ़िर) सांसारिक जीवन में मगन हैं तथा सांसारिक जीवन परलोक की अपेच्छा तनिक लाभ के सामान के सिवा कुछ भी नहीं है।
وَيَقُولُ الَّذِينَ كَفَرُوا لَوْلَا أُنزِلَ عَلَيْهِ آيَةٌ مِّن رَّبِّهِ ۗ قُلْ إِنَّ اللَّهَ يُضِلُّ مَن يَشَاءُ وَيَهْدِي إِلَيْهِ مَنْ أَنَابَ ﴾ 27 ﴿
व यक़ूलुल्लज़ी-न क-फरू लौ ल उन्ज़ि-ल अ़लैहि आयतुम् मिर्रब्बिही, क़ुल इन्नल्ला-ह युज़िल्लु मंय्यशा-उ व यह्दी इलैहि मन् अनाब
और जो काफ़िर हो गये, वे कहते हैः इसपर इसके पालनहार की ओर से कोई निशानी क्यों नहीं उतारी गयी? (हे नबी!) आप कह दें कि वास्तव में अल्लाह जिसे चाहे, कुपथ करता है और अपनी ओर उसी को राह दिखाता है, जो उसकी ओर ध्यानमग्न हों।
الَّذِينَ آمَنُوا وَتَطْمَئِنُّ قُلُوبُهُم بِذِكْرِ اللَّهِ ۗ أَلَا بِذِكْرِ اللَّهِ تَطْمَئِنُّ الْقُلُوبُ ﴾ 28 ﴿
अल्लज़ी-न आमनू व तत्मइन्नु क़ुलूबुहुम् बिज़िक् रिल्लाहि, अला बिज़िक् रिल्लाहि तत्मइन्नुल-क़ुलूब
(अर्थात वे) लोग जो ईमान लाए तथा जिनके दिल अल्लाह के स्मरण से संतुष्ट होते हैं। सुन लो! अल्लाह के स्मरण ही से दिलों को संतोष होता है।
الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ طُوبَىٰ لَهُمْ وَحُسْنُ مَآبٍ ﴾ 29 ﴿
अल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति तूबा लहुम् व हुस्-नु मआब
जो लोग ईमान लाये और सदाचार किये, उनके लिए आनन्द[1] और उत्तम ठिकाना है। 1. यहाँ "तूबा" शब्द प्रयुक्त हुआ है। इस का शाब्दिक अर्थः सुख और सम्पन्नता है। कुछ भाष्यकारों ने इसे स्वर्ग का एक वृक्ष बताया है जिस का साया बड़ा आनन्नददायक होगा।
كَذَٰلِكَ أَرْسَلْنَاكَ فِي أُمَّةٍ قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلِهَا أُمَمٌ لِّتَتْلُوَ عَلَيْهِمُ الَّذِي أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ وَهُمْ يَكْفُرُونَ بِالرَّحْمَٰنِ ۚ قُلْ هُوَ رَبِّي لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ وَإِلَيْهِ مَتَابِ ﴾ 30 ﴿
कज़ालि-क अर्सल्ना-क फ़ी उम्मतिन् क़द् खलत् मिन् क़ब्लिहा उ-ममुल्-लितत्लु-व अलैहिमुल्लज़ी औहैना इलै-क व हुम् यक्फुरू-न बिर्रह़्मानि, क़ुल हु-व रब्बी ला इला-ह इल्ला हु-व, अलैहि तवक्कल्तु व इलैहि मताब
इसी प्रकार, हमने आपको एक समुदाय में जिससे पहले बहुत-से समुदाय गुज़र चुके हैं रसूल बनाकर भेजा है, ताकि आप उन्हें वो संदेश सुनाएँ, जो हमने आपकी ओर वह़्यी द्वारा भेजा है और वे अत्यंत कृपाशील को अस्वीकार करते हैं? आप कह दें वही मेरा पालनहार है, कोई पूज्य नहीं परन्तु वही। मैंने उसीपर भरोसा किया है और उसी की ओर मुझे जाना है।
وَلَوْ أَنَّ قُرْآنًا سُيِّرَتْ بِهِ الْجِبَالُ أَوْ قُطِّعَتْ بِهِ الْأَرْضُ أَوْ كُلِّمَ بِهِ الْمَوْتَىٰ ۗ بَل لِّلَّهِ الْأَمْرُ جَمِيعًا ۗ أَفَلَمْ يَيْأَسِ الَّذِينَ آمَنُوا أَن لَّوْ يَشَاءُ اللَّهُ لَهَدَى النَّاسَ جَمِيعًا ۗ وَلَا يَزَالُ الَّذِينَ كَفَرُوا تُصِيبُهُم بِمَا صَنَعُوا قَارِعَةٌ أَوْ تَحُلُّ قَرِيبًا مِّن دَارِهِمْ حَتَّىٰ يَأْتِيَ وَعْدُ اللَّهِ ۚ إِنَّ اللَّهَ لَا يُخْلِفُ الْمِيعَادَ ﴾ 31 ﴿
व लौ अन्-न क़ुरआनन् सुय्यिरत् बिहिल्-जिबालु औ क़ुत्तिअ़त् बिहिल्-अर्-ज़ु औ कुल्लि-म बिहिल्मौता, बल् लिल्लाहिल्-अम्रु जमीअ़न्, अ-फ़लम् यऐ असिल्लज़ी-न आमनू अल्- लौ यशाउल्लाहु ल-हदन्ना स जमीअ़न्, व ला यज़ालुल्लज़ी-न क-फरू तुसीबुहुम् बिमा स नअू क़ारि अतुन् औ तहुल्लु क़रीबम् मिन् दारिहिम् हत्ता यअ्ति-य वअ्दुल्लाहि, इन्नल्ला-ह ला युख़्लिफुल-मीआ़द *
यदि कोई ऐसा क़ुर्आन होता, जिससे पर्वत खिसका[1] दिये जाते या धरती खण्ड-खण्ड कर दी जाती या इसके द्वारा मुर्दों से बात की जाती (तो भी वे ईमान नहीं लाते)। बात ये है कि सब अधिकार अल्लाह ही को हैं, तो क्या जो ईमान लाये हैं, वे निराश नहीं हुए कि यदि अल्लाह चाहता, तो सब लोगों को सीधी राह पर कर देता! और काफ़िरों को उनके करतूत के कारण बराबर आपदा पहुँचती रहेगी अथवा उनके घर के समीप उतरती रेहगी, यहाँ तक कि अल्लाह का वचन[1] आ जाये और अल्लाह, वचन का विरुध्द नहीं करता। 1. मक्का के काफ़िर आप से यह माँग करते थे कि यदि आप नबी हैं तो हमारे बाप दादा को जीवित कर दें। ताकि हम उन से बात करें। या मक्का के पर्वतों को खिसका दें। कुछ मुसलमानों के दिलों में भी यह इच्छा हुई कि ऐसा हो जाता है तो संभव है कि वह ईमान ले आयें। उसी पर यह आयत उतरी। (देखियेः फ़त्ह़ुल बयान, भाष्य सूरह रअद) 2. वचन से अभिप्राय प्रलय के आने का वचन है।
وَلَقَدِ اسْتُهْزِئَ بِرُسُلٍ مِّن قَبْلِكَ فَأَمْلَيْتُ لِلَّذِينَ كَفَرُوا ثُمَّ أَخَذْتُهُمْ ۖ فَكَيْفَ كَانَ عِقَابِ ﴾ 32 ﴿
वल-क़दिस्तुह्ज़ि-अ बिरूसुलिम् मिन् क़ब्लि-क फ़ अम्लैतु लिल्लज़ी न क फरू सुम् म अख़ज़्तुहुम्, फ़कै-फ़ का-न अिक़ाब
और आपसे पहले भी बहुत-से रसूलों का परिहास किया गया है, तो हमने काफ़िरों को अवसर दिया। फिर उन्हें धर लिया, तो मेरी यातना कैसी रही?
أَفَمَنْ هُوَ قَائِمٌ عَلَىٰ كُلِّ نَفْسٍ بِمَا كَسَبَتْ ۗ وَجَعَلُوا لِلَّهِ شُرَكَاءَ قُلْ سَمُّوهُمْ ۚ أَمْ تُنَبِّئُونَهُ بِمَا لَا يَعْلَمُ فِي الْأَرْضِ أَم بِظَاهِرٍ مِّنَ الْقَوْلِ ۗ بَلْ زُيِّنَ لِلَّذِينَ كَفَرُوا مَكْرُهُمْ وَصُدُّوا عَنِ السَّبِيلِ ۗ وَمَن يُضْلِلِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِنْ هَادٍ ﴾ 33 ﴿
अ-फ मन् हु-व क़ाइमुन् अला कुल्लि नफ़्सिम्-बिमा क सबत्, व ज-अलू लिल्लाहि शु-रका-अ, क़ुल् सम्मूहुम्, अम् तुनब्बिऊनहू बिमा ला यअ्लमु फिल्अर्ज़ि अम् बिज़ाहिरिम्-मिनल्क़ौलि, बल् ज़ुय्यि-न लिल्लज़ी-न क -फरू मक्-रूहुम् व सुद्दू अनिस्सबीलि, व मंय्युज़्लिलिल्लाहु फमा लहू मिन् हाद
तो क्या जो प्रत्येक प्राणी के करतूत से अवगत है और उन्होंने उस (अल्लाह) का साझी बना लिया है, आप कहिए कि उनके नाम बताओ या तुम उसे उस चीज़ से सूचित कर रहे हो, जिसे वह धरती में नहीं जानता या ओछी बात[1] करते हो? बल्कि काफ़िरों के लिए उनके छल सुशोभित बना दिये गये हैं और सीधी राह से रोक दिये गये हैं और जिसे अल्लाह कुपथ कर दे, तो उसे कोई राह दिखाने वाला नहीं। 1. अर्थात निर्मूल और निराधार।
لَّهُمْ عَذَابٌ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۖ وَلَعَذَابُ الْآخِرَةِ أَشَقُّ ۖ وَمَا لَهُم مِّنَ اللَّهِ مِن وَاقٍ ﴾ 34 ﴿
लहुम् अ़ज़ाबुन् फ़िल्हयातिद्दुन्या व ल-अ़ज़ाबुल – आख़िरति अशक़्क़ु व मा लहुम् मिनल्लाहि मिंव्वाक़
उन्हींके लिए यातना है सांसारिक जीवन में। और निःसंदेह परलोक की यातना अधिक कड़ी है और उन्हें अल्लाह से कोई बचाने वाला नहीं।
مَّثَلُ الْجَنَّةِ الَّتِي وُعِدَ الْمُتَّقُونَ ۖ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ ۖ أُكُلُهَا دَائِمٌ وَظِلُّهَا ۚ تِلْكَ عُقْبَى الَّذِينَ اتَّقَوا ۖ وَّعُقْبَى الْكَافِرِينَ النَّارُ ﴾ 35 ﴿
म-स लुल-जन्नतिल्लती वुअिदल् मुत्तक़ू-न, तज्री मिन् तह्तिहल्-अन्हारू, उकुलुहा दाइमुंव्व ज़िल्लुहा, तिल्-क अुक़्बल्लज़ीनत्तक़ौ, व उक़्बल् काफ़िरीनन्नार
उस स्वर्ग का उदाहरण, जिसका वचन आज्ञाकारियों को दिया गया है, उसमें नहरें बहती हैं, उसके फल सतत हैं और उसकी छाया। ये उनका परिणाम है, जो अल्लाह से डरे और काफ़िरों का परिणाम नरक है।
وَالَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ يَفْرَحُونَ بِمَا أُنزِلَ إِلَيْكَ ۖ وَمِنَ الْأَحْزَابِ مَن يُنكِرُ بَعْضَهُ ۚ قُلْ إِنَّمَا أُمِرْتُ أَنْ أَعْبُدَ اللَّهَ وَلَا أُشْرِكَ بِهِ ۚ إِلَيْهِ أَدْعُو وَإِلَيْهِ مَآبِ ﴾ 36 ﴿
वल्लज़ी-न आतैनाहुमुल्-किता-ब यफ्-रहू-न बिमा उन्ज़ि-ल इलै-क व मिनल्-अह्ज़ाबि मंय्युन्किरू बअ्ज़हू, क़ुल इन्नमा उमिर्तु अन् अअ्बुदल्ला-ह व ला उश्रि-क बिही, इलैहि अद्अू व इलैहि मआब
(हे नबी!) जिन्हें हमने पुस्तक दी है, वे उस (क़ुर्आन) से प्रसन्न हो रहे हैं[1], जो आपकी ओर उतारा गया है और सम्प्रदायों में कुछ ऐसे भी हैं, जो नहीं मानते[2]। आप कह दें कि मुझे आदेश दिया गया है कि अल्लाह की ईबादत (वंदना) करूँ और उसका साझी न बनाऊँ। मैं उसी की ओर बुलाता हूँ और उसी की ओर मुझे जाना है[3]। 1. अर्थात वह यहूदी, ईसाई और मुर्तिपूजक जो इस्लाम लाये। 2. अर्थात जो अब तक मुसलान नहीं हुये। 3. अर्थात कोई ईमान लाये या न लाये, मैं तो कदापि किसी को उस का साझी नहीं बना सकता।
وَكَذَٰلِكَ أَنزَلْنَاهُ حُكْمًا عَرَبِيًّا ۚ وَلَئِنِ اتَّبَعْتَ أَهْوَاءَهُم بَعْدَ مَا جَاءَكَ مِنَ الْعِلْمِ مَا لَكَ مِنَ اللَّهِ مِن وَلِيٍّ وَلَا وَاقٍ ﴾ 37 ﴿
व कज़ालि-क अन्ज़ल्नाहु हुक्मन् अ-रबिय्यन्, व ल-इनित्त बअ्-त अह़्वा-अहुम् बअ्-द मा जाअ-क मिनल्- अिल्मि, मा ल-क मिनल्लाहि मिंव्वलिय्यिंव्-व ला वाक़*
और इसी प्रकार, हमने इसे अरबी आदेश के रूप में उतारा है[1] और यदि आप उनकी आकांक्षाओं का अनुसरण करेंगे, इसके पश्चात् कि आपके पास ज्ञान आ गया, तो अल्लाह से आपका कोई सहायक और रक्षक न होगा। 1. ताकि वह बहाना न करें कि हम क़ुर्आन को समझ नहीं सके, इस लिये कि सारे नबियों पर जो पुस्तकें उतरीं वह उन्हीं की भाषाओं में थीं।
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا رُسُلًا مِّن قَبْلِكَ وَجَعَلْنَا لَهُمْ أَزْوَاجًا وَذُرِّيَّةً ۚ وَمَا كَانَ لِرَسُولٍ أَن يَأْتِيَ بِآيَةٍ إِلَّا بِإِذْنِ اللَّهِ ۗ لِكُلِّ أَجَلٍ كِتَابٌ ﴾ 38 ﴿
व ल-क़द् अरसल्ना रूसुलम् मिन् क़ब्लि-क व जअ़ल्ना लहुम् अज़्वाजंव्-व ज़ुर्रिय्य तन्, व मा का-न लि-रसूलिन् अंय्यअ्ति-य बिआयतिन् इल्ला बि- इज़्निल्लाहि, लिकुल्लि अ-जलिन् किताब
और हमने आपसे पहले बहुत-से रसूलों को भेजा है और उनकी पत्नियाँ तथा बाल-बच्चे[1] बनाये। किसी रसूल के बस में नहीं है कि अल्लाह की अनुमति बिना कोई निशानी ले आये और हर वचन के लिए एक निर्धारित समय है[1]। 1. अर्थात वह मनुष्य थे, नूर या फ़रिश्ते नहीं। 2. अर्थात अल्लाह का वादा अपने समय पर पूरा हो कर रहेगा। उस में देर-सवेर नहीं होगी।
يَمْحُو اللَّهُ مَا يَشَاءُ وَيُثْبِتُ ۖ وَعِندَهُ أُمُّ الْكِتَابِ ﴾ 39 ﴿
यम्हुल्लाहु मा यशा-उ व युस्बितु, व अिन्दहू उम्मुल् – किताब
वह जो (आदेश) चाहे, मिटा देता है और जो चाहे, शेष (साबित) रखता है। उसी के पास मूल[1] पुस्तक है। 1. अर्थात "लौह़े मह़फ़ूज़" जिस में सब कुछ अंकित है।
وَإِن مَّا نُرِيَنَّكَ بَعْضَ الَّذِي نَعِدُهُمْ أَوْ نَتَوَفَّيَنَّكَ فَإِنَّمَا عَلَيْكَ الْبَلَاغُ وَعَلَيْنَا الْحِسَابُ ﴾ 40 ﴿
व इम्मा नुरियन्न-क बअ्ज़ल्लज़ी नअिदुहुम् औ न-तवफ़्फ़-यन्न-क फ-इन्नमा अ़लैकल्-बलाग़ु व अ़लैनल् -हिसाब
और (हे नबी!) यदि हम आपको उसमें से कुछ दिखा दें, जिसकी धमकी हमने उन (काफ़िरों) को दी है अथवा आपको (पहले ही) मौत दे दें, तो आपका काम उपदेश पहुँचा देना है और ह़िसाब लेना हमारा काम है।
أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّا نَأْتِي الْأَرْضَ نَنقُصُهَا مِنْ أَطْرَافِهَا ۚ وَاللَّهُ يَحْكُمُ لَا مُعَقِّبَ لِحُكْمِهِ ۚ وَهُوَ سَرِيعُ الْحِسَابِ ﴾ 41 ﴿
अ-व लम् यरौ अन्ना नअ्तिल् अर्-ज़ नन्क़ुसुहा मिन् अत्राफ़िहा, वल्लाहु यह्कुमु ला मुअ़क़्क़ि-ब लिहुक्मिही, व हु-व सरीअुल्-हिसाब
क्या वे नहीं देखते कि हम धरती को, उसके किनारों से कम करते[1] जा रहे हैं और अल्लाह ही आदेश देता है, कोई उसके आदेश की प्रत्यालोचन करने वाला नहीं और वह शीघ्र ह़िसाब लेने वाला है। 1. अर्थात मुसलमानों की विजय द्वारा काफ़िरों के देश में कमी करते जा रहे हैं।
وَقَدْ مَكَرَ الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ فَلِلَّهِ الْمَكْرُ جَمِيعًا ۖ يَعْلَمُ مَا تَكْسِبُ كُلُّ نَفْسٍ ۗ وَسَيَعْلَمُ الْكُفَّارُ لِمَنْ عُقْبَى الدَّارِ ﴾ 42 ﴿
व क़द् म-करल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम् फ़लिल्लाहिल्- मक्-रू जमीअ़न्, यअ्लमु मा तक्सिबु कुल्लु नफ्सिन्, व स-यअ्लमुल्-कुफ़्फ़ारू लिमन् अुक़बद्दार
तथा उससे पहले (भी) लोगों ने रसूलों के साथ षड्यंत्र रचा और षड्यंत्र (को निष्फल करने) का सब अधिकार तो अल्लाह को है, वह जो कुछ प्रत्येक प्राणी करता है, उसे जानता है और काफ़िरों को शीघ्र ही ज्ञान हो जायेगा कि परलोक का घर किसके लिए है?
وَيَقُولُ الَّذِينَ كَفَرُوا لَسْتَ مُرْسَلًا ۚ قُلْ كَفَىٰ بِاللَّهِ شَهِيدًا بَيْنِي وَبَيْنَكُمْ وَمَنْ عِندَهُ عِلْمُ الْكِتَابِ ﴾ 43 ﴿
व यक़ूलुल्लज़ी-न क फरू लस् त मुर्सलन्, क़ुल् कफ़ा बिल्लाहि शहीदम्-बैनी व बैनकुम्, व मन् अिन्दहू अिल्मुल्-किताब *
(हे नबी!) जो काफ़िर हो गये, वे कहते हैं कि आप अल्लाह के भेजे हुए नहीं हैं। आप कह दें: मेरे तथा तुम्हारे बीच अल्लाह तथा उनकी गवाही, जिन्हें किताब का ज्ञान दिया गया है, काफ़ी है[1]. 1. अर्थात उन अह्ले किताब (यहूदी और ईसाई) की जिन को अपनी पुस्तकों से नबी मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आने की शुभ सूचना का ज्ञान हुआ तो वह इस्लाम ले आये। जैसे अब्दुल्लाह बिन सलाम तथा नजाशी (ह़ब्शा देश का राजा), और तमीम दारी इत्यादि। और आप के रसूल होने की गवाही देते हैं।