सूरह नम्ल के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है. इस में 93 आयतें हैं।
- इस सूरह में बताया गया है कि क़ुरआन को अल्लाह की किताब न मानने और शिर्क से न रुकने का सब से बड़ा कारण सत्य को नकारना है। जो मायामोह में मग्न रहते है उन पर क़ुरआन की शिक्षा का कोई प्रभाव नहीं होता और वे नबियों के इतिहास से कोई शिक्षा नहीं लेते।
- इस में मूसा (अलैहिस्सलाम) को फिरऔन तथा उस की जाति की ओर भेजने और उन के साथ जो दुर्व्यवहार किया गया उस का दुष्परिणाम बताया गया है।
- दावूद तथा सुलैमान (अलैहिस्सलाम) के विशाल राज्य की चचर्चा कर के बताया गया है कि वह कैसे अल्लाह के आभारी भक्त बने रहे जिस के कारण (सबा) की रानी बिल्कीस इस्लाम लायी।
- इस में लूत तथा सालेह (अलैहिस्सलाम) की जाति के उपद्रव का दुष्परिणाम बताया गया है तथा एकेश्वरवाद के प्रमाण प्रस्तुत किये गये हैं।
- यह घोषणा भी की गई है कि कुन ने मार्ग दर्शन की राह खोल दी है और भविष्य में भी इस के सत्य होने के लक्ष्ण उजागर होते रहेंगे।
सूरह अन-नम्ल | Surah Naml in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
طس ۚ تِلْكَ آيَاتُ الْقُرْآنِ وَكِتَابٍ مُّبِينٍ ﴾ 1 ﴿
ता-सीम्, तिल्-क आयातुल कुरआनि व किताबम्-मुबीन
ता, सीन, मीम। ये क़ुर्आन तथा प्रत्यक्ष पुस्तक की आयतें हैं।
هُدًى وَبُشْرَىٰ لِلْمُؤْمِنِينَ ﴾ 2 ﴿
हुदंव् व बुशरा लिल्-मुअ्मिनीन
मार्गदर्शन तथा शुभ सूचना है, उन ईमान वालों के लिए।
الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُم بِالْآخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ ﴾ 3 ﴿
अल्लज़ी-न युक़ीमूनस्सला-त व युअ्तूनज़्ज़का-त व हुम् बिल-आख़िरति हुम् यूकिनून
जो नमाज़ की स्थापना करते तथा ज़कात देते हैं और वही हैं, जो अन्तिम दिन (परलोक) पर विश्वास रखते हैं।
إِنَّ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ زَيَّنَّا لَهُمْ أَعْمَالَهُمْ فَهُمْ يَعْمَهُونَ ﴾ 4 ﴿
इन्नल्लज़ी-न ला युअ्मिनू-न बिल-आख़िरति ज़य्यन्ना लहुम् अअ्मालहम् फ़हुम् यअ्महून
वास्तव में, जो विश्वास नहीं करते परलोक पर, हमने शोभनीय बना दिया है उनके कर्मों को, इसलिए वे बहके जा रहे हैं।
أُولَٰئِكَ الَّذِينَ لَهُمْ سُوءُ الْعَذَابِ وَهُمْ فِي الْآخِرَةِ هُمُ الْأَخْسَرُونَ ﴾ 5 ﴿
उलाइ-कल्लज़ी-न लहुम् सूउल्-अ़ज़ाबि व हुम फ़िल् – आख़िरति हुमुल् अख़्सरून
यही हैं, जिनके लिए बुरी यातना है तथा परलोक में यही सर्वाधिक क्षतिग्रस्त रहने वाले हैं।
وَإِنَّكَ لَتُلَقَّى الْقُرْآنَ مِن لَّدُنْ حَكِيمٍ عَلِيمٍ ﴾ 6 ﴿
व इन्न-क लतु-लक़्क़ल् कुरआ-न मिल्लदुन् हकीमिन् अ़लीम
और (हे नबी!) वास्तव में, आपको दिया जा रहा है क़ुर्आन एक तत्वज्ञ, सर्वज्ञ की ओर से।
إِذْ قَالَ مُوسَىٰ لِأَهْلِهِ إِنِّي آنَسْتُ نَارًا سَآتِيكُم مِّنْهَا بِخَبَرٍ أَوْ آتِيكُم بِشِهَابٍ قَبَسٍ لَّعَلَّكُمْ تَصْطَلُونَ ﴾ 7 ﴿
इज् का-ल मूसा लिअह़्लिही इन्नी आनस्तु नारन् स – आतीकुम् मिन्हा बि-ख़- बरिन् औ आतीकुम बिशिहाबिन् क- बसिल् लअ़ल्लकुम् तस्तलून
(याद करो) जब कहा[1] मूसा ने अपने परिजनों सेः मैंने आग देखी है, मैं तुम्हारे पास कोई सूचना लाऊँगा या लाऊँगा आग का कोई अंगार, ताकि तुम तापो। 1. यह उस समय की बात है जब मूसा (अलैहिस्सलाम) मद्यन से आ रहे थे। रात्रि के समय वह मार्ग भूल गये। और शीत से बचाव के लिये आग की आवश्यक्ता थी।
فَلَمَّا جَاءَهَا نُودِيَ أَن بُورِكَ مَن فِي النَّارِ وَمَنْ حَوْلَهَا وَسُبْحَانَ اللَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ ﴾ 8 ﴿
फ-लम्मा जा-अहा नूदि य अम्बूरि क मन् फ़िन्नारि व मन् हौलहा, व सुब्हानल्लाहि रब्बिल्-आ़लमीन
फिर जब आया वहाँ, तो पुकारा गयाः शुभ है वह, जो अग्नि में है और जो उसके आस-पास है और पवित्र है अल्लाह, सर्वलोक का पालनहार।
يَا مُوسَىٰ إِنَّهُ أَنَا اللَّهُ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ ﴾ 9 ﴿
या मूसा इन्नहू अनल्लाहुल्-अ़ज़ीजुल हकीम
हे मूसा! ये मैं हूँ, अल्लाह, अति प्रभुत्वशाली, तत्वज्ञ।
وَأَلْقِ عَصَاكَ ۚ فَلَمَّا رَآهَا تَهْتَزُّ كَأَنَّهَا جَانٌّ وَلَّىٰ مُدْبِرًا وَلَمْ يُعَقِّبْ ۚ يَا مُوسَىٰ لَا تَخَفْ إِنِّي لَا يَخَافُ لَدَيَّ الْمُرْسَلُونَ ﴾ 10 ﴿
व अल्कि अ़सा-क, फ़-लम्मा र आहा तह्तज़्जु क – अन्नहा जान्नुंव- वल्ला मुदबिरंव् – व लम् युअक्किबू, या मूसा ला तख़फ, इन्नी ला यखाफु ल-दय्यल्-मुर्सलून
और फेंक दे अपनी लाठी, फिर जब उसे देखा कि रेंग रही है, जैसे वह कोई सर्प हो, तो पीठ फेरकर भागा और पीछे फिरकर देखा भी नहीं। (हमने कहाः) हे मूसा! भय न कर, वास्तव में, नहीं भय करते मेरे पास रसूल।
إِلَّا مَن ظَلَمَ ثُمَّ بَدَّلَ حُسْنًا بَعْدَ سُوءٍ فَإِنِّي غَفُورٌ رَّحِيمٌ ﴾ 11 ﴿
इल्ला मन् ज़-ल-म सुम्म बन्न ल हुस्नम् बअ्-द सूइन् फ़ इन्नी ग़फूरुर्-रहीम
उसके सिवा, जिसने अत्याचार किया हो, फिर जिसने बदल लिया अपना कर्म भलाई से बुराई के पश्चात्, तो निश्चय, मैं अति क्षमि, दयावान् हूँ।
وَأَدْخِلْ يَدَكَ فِي جَيْبِكَ تَخْرُجْ بَيْضَاءَ مِنْ غَيْرِ سُوءٍ ۖ فِي تِسْعِ آيَاتٍ إِلَىٰ فِرْعَوْنَ وَقَوْمِهِ ۚ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ ﴾ 12 ﴿
व अद्खिल् य-द क फ़ी जैबि-क तख़्रुज् बैज़ा – अ मिन् ग़ैरि सूइन्, फी तिस्अि आयातिन् इला फिरऔ-न व कौमिही, इन्नहुम् कानू क़ौमन् फ़ासिक़ीन
और डाल दे अपना हाथ अपनी जेब में, वह निकलेगा उज्ज्वल होकर बिना किसी रोग के; नौ निशानियों में से है, फ़िरऔन तथा उसकी जाति की ओर (ले जाने के लिए) वास्तव में, वे उल्लंघनकारियों में हैं।
فَلَمَّا جَاءَتْهُمْ آيَاتُنَا مُبْصِرَةً قَالُوا هَٰذَا سِحْرٌ مُّبِينٌ ﴾ 13 ﴿
फ़ – लम्मा जाअत्हुम् आयातुना मुब्सि – रतन् कालू हाज़ा सिहरुम् मुबीन
फिर जब आयीं उनके पास हमारी निशानियाँ, आँख खोलने वाली, तो कह दिया कि ये तो खुला जादू है।
وَجَحَدُوا بِهَا وَاسْتَيْقَنَتْهَا أَنفُسُهُمْ ظُلْمًا وَعُلُوًّا ۚ فَانظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُفْسِدِينَ ﴾ 14 ﴿
व जहदू बिहा व स्तैक़नतहा अनफ़ुसुहुम ज़ुल्मन व उलूव्वन, फनज़ुर कैफ़ काना आक़िबतुल मुफ़सिदीन।
तथा उन्होंने नकार दिया उन्हें, अत्याचार तथा अभिमान के कारण, जबकि उनके दिलों ने उनका विश्वास कर लिया, तो देखो कि कैसा रहा उपद्रवियों का परिणाम?
وَلَقَدْ آتَيْنَا دَاوُودَ وَسُلَيْمَانَ عِلْمًا ۖ وَقَالَا الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي فَضَّلَنَا عَلَىٰ كَثِيرٍ مِّنْ عِبَادِهِ الْمُؤْمِنِينَ ﴾ 15 ﴿
व ल – क़द् आतैना दावू-द व सुलैमा-न अिल्मन् व क़ालल् – हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी फ़ज़्ज़-लना अ़ला कसीरिम् मिन् अिबादिहिल् मुअ्मिनीन
और हमने प्रदान किया दावूद तथा सुलैमान को ज्ञान[1] और दोनों ने कहाः प्रशंसा है, उस अल्लाह के लिए, जिसने हमें प्रधानता दी अपने बहुत-से ईमान वाले भक्तों पर। 1. अर्थात विशेष ज्ञान जो नबूवत का ज्ञान है जैसे मूसा अलैहिस्सलाम को प्रदान किया और इसी प्रकार अन्तिम रसूल मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को इस क़ुर्आन द्वारा प्रदान किया है।
وَوَرِثَ سُلَيْمَانُ دَاوُودَ ۖ وَقَالَ يَا أَيُّهَا النَّاسُ عُلِّمْنَا مَنطِقَ الطَّيْرِ وَأُوتِينَا مِن كُلِّ شَيْءٍ ۖ إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ الْفَضْلُ الْمُبِينُ ﴾ 16 ﴿
व वरि – स सुलैमानु दावू – द व क़ा-ल या अय्युहन्नासु अुल्लिम्ना मन्तिक़त्तैरि व ऊतीना मिन् कुल्लि शैइन्, इन् – न हाज़ा ल-हुवल् फज़्लुल मुबीन
और उत्तराधिकारी हुआ सुलैमान दावूद का तथा उसने कहाः हे लोगो! हमें सिखाई गयी है पक्षियों की बोली तथा हमें प्रदान की गयी है, सब चीज़ से कुछ। वास्तव में, ये प्रत्यक्ष अनुग्रह है।
وَحُشِرَ لِسُلَيْمَانَ جُنُودُهُ مِنَ الْجِنِّ وَالْإِنسِ وَالطَّيْرِ فَهُمْ يُوزَعُونَ ﴾ 17 ﴿
व हुशि-र लिसुलैमा-न जुनूदुहू मिनल्-जिन्नि वल् – इन्सि वत्तैरि फ़हुम् यू – ज़अून
तथा एकत्र कर दी गयी सुलैमान के लिए उसकी सेनायें; जिन्नों तथा मानवों और पक्षी की और वे व्यवस्थित रखे जाते थे।
حَتَّىٰ إِذَا أَتَوْا عَلَىٰ وَادِ النَّمْلِ قَالَتْ نَمْلَةٌ يَا أَيُّهَا النَّمْلُ ادْخُلُوا مَسَاكِنَكُمْ لَا يَحْطِمَنَّكُمْ سُلَيْمَانُ وَجُنُودُهُ وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ ﴾ 18 ﴿
हत्ता इज़ा अतौ अला वादिन्नम्लि कालत् नम्लतुंय् या अय्युहन् – नम्लुद्ख़ुलू मसाकि – नकुम् ला यह्तिमन्नकुम् सुलैमानु व जुनूदुहू व हुम् ला यश्अुरून
यहाँ तक कि वे (एक बार) जब पहुँचे च्युंटियों की घाटी पर, तो एक च्युंटी ने कहाः हे च्युटियो! प्रवेश कर जाओ अपने घरों में, ऐसा न हो कि तुम्हें कुचल दे सुलैमान तथा उसकी सेनायें और उन्हें ज्ञान न हो।
فَتَبَسَّمَ ضَاحِكًا مِّن قَوْلِهَا وَقَالَ رَبِّ أَوْزِعْنِي أَنْ أَشْكُرَ نِعْمَتَكَ الَّتِي أَنْعَمْتَ عَلَيَّ وَعَلَىٰ وَالِدَيَّ وَأَنْ أَعْمَلَ صَالِحًا تَرْضَاهُ وَأَدْخِلْنِي بِرَحْمَتِكَ فِي عِبَادِكَ الصَّالِحِينَ ﴾ 19 ﴿
फ-तबस्स-म ज़ाहिकम् – मिन् कौलिहा व का-ल रब्बि औज़िअ्नी अन् अश्कु-र निअ्- म तकल्लती अन् अम् – त अ़लय्-य व अ़ला वालिदय् – य व अन् अअ्-म-ल सालिहन् तरज़ाहु व अद्खिल्नी बि- रहम्-ति क फी अिबादिकस्-सालिहीन
तो वह (सुलैमान) मुस्कुराकर हँस पड़ा उसकी बात पर और कहाः हे मेरे पालनहार! मुझे क्षमता प्रदानकर कि मैं कृतज्ञ रहूँ तेरे उस पुरस्कार का, जो पुरस्कार तूने मुझपर तथा मेरे माता-पिता पर किया है तथा ये कि मैं सदाचार करता रहूँ, जिससे तू प्रसन्न रहे और मुझे प्रवेश दे अपनी दया से, अपने सदाचारी भक्तों में।
وَتَفَقَّدَ الطَّيْرَ فَقَالَ مَا لِيَ لَا أَرَى الْهُدْهُدَ أَمْ كَانَ مِنَ الْغَائِبِينَ ﴾ 20 ﴿
व त-फ़क़्क़-दत्तै-र फ़का- ल मा लि-य ला अरल् – हुदहु – द अम् का-न मिनल ग़ाइबीन
और उसने निरीक्षण किया पक्षियों का, तो कहाः क्या बात है कि मैं नहीं देख रहा हूँ हुदहुद को या वह अनुपस्थितों में है?
لَأُعَذِّبَنَّهُ عَذَابًا شَدِيدًا أَوْ لَأَذْبَحَنَّهُ أَوْ لَيَأْتِيَنِّي بِسُلْطَانٍ مُّبِينٍ ﴾ 21 ﴿
ल – उअ़ज़्ज़िबन्नहू अ़ज़ाबन् शदीदन् औ ल – अज़्ब – हन्नहू औ ल यअ्ति – यन्नी बिसुल्तानिम् – मुबीन
मैं उसे कड़ी यातना दूँगा या उसे वध कर दूँगा या मेरे पास कोई खुला प्रमाण लाये।
فَمَكَثَ غَيْرَ بَعِيدٍ فَقَالَ أَحَطتُ بِمَا لَمْ تُحِطْ بِهِ وَجِئْتُكَ مِن سَبَإٍ بِنَبَإٍ يَقِينٍ ﴾ 22 ﴿
फ़-म-क-स ग़ै-र बईदिन् फ़क़ा-ल अहत्तु बिमा गलम् तुहित् बिही व जिअ्तु-क मिन् स-बइम् बि-न बइंय् -यक़ीन
तो कुछ अधिक समय नहीं बीता कि उसने (आकर) कहाः मैंने ऐसी बात का ज्ञान प्राप्त किया है, जो आपके ज्ञान में नहीं आयी है और मैं लाया हूँ, आपके पास "सबा"[1] से एक विश्वसनीय सूचना। 1. सबा यमन का एक नगर है।
إِنِّي وَجَدتُّ امْرَأَةً تَمْلِكُهُمْ وَأُوتِيَتْ مِن كُلِّ شَيْءٍ وَلَهَا عَرْشٌ عَظِيمٌ ﴾ 23 ﴿
इन्नी वजत्तुम्-र-अतन् तम्लिकुहुम् व ऊतियत् मिन् कुल्लि शैइंव्-व लहा अर्शुन् अ़ज़ीम
मैंने एक स्त्री को पाया, जो उनपर राज्य कर रही है और उसे प्रदान किया गया है कुछ न कुछ प्रत्येक वस्तु से तथा उसके पास एक बड़ा भव्य सिंहासन है।
وَجَدتُّهَا وَقَوْمَهَا يَسْجُدُونَ لِلشَّمْسِ مِن دُونِ اللَّهِ وَزَيَّنَ لَهُمُ الشَّيْطَانُ أَعْمَالَهُمْ فَصَدَّهُمْ عَنِ السَّبِيلِ فَهُمْ لَا يَهْتَدُونَ ﴾ 24 ﴿
वजत्तुहा व क़ौमहा यस्जुदू-न लिश्शम्सि मिन् दूनिल्लाहि व ज़य्य न लहुमुश्शैतानु अअ्मालहुम् फ़-सद्दहुम् अनिस्सबीलि फ़हुम् ला यह्तदून
मैंने उसे तथा उसकी जाति को पाया कि सज्दा करते हैं सूर्य को अल्लाह के सिवा और शोभनीय बना दिया है, उनके लिए शैतान ने उनके कर्मों को और उन्हें रोक दिया है सुपथ से, अतः, वे सुपथ पर नहीं आते।
أَلَّا يَسْجُدُوا لِلَّهِ الَّذِي يُخْرِجُ الْخَبْءَ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَيَعْلَمُ مَا تُخْفُونَ وَمَا تُعْلِنُونَ ﴾ 25 ﴿
अल्ला यस्जुदू लिल्लाहिल्लज़ी युखरिजुल्-ख़ब्-अ फिस्समावाति वल्अर्जि व यअ्लमु मा तुख़्फू-न व मा तुअ्लिनून
(शैतान ने शोभनीय बना दिया है उनके लिए) कि उस अल्लाह को सज्दा न करें, जो निकालता है गुप्त वस्तु को[1] आकाशों तथा धरती में तथा जानता है वह सब कुछ, जिसे तुम छुपाते हो तथा जिसे व्यक्त करते हो। 1. अर्थात वर्षा तथा पौधों को।
اللَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ رَبُّ الْعَرْشِ الْعَظِيمِ ۩ ﴾ 26 ﴿
अल्लाहु ला इला-ह इल्ला हु-व रब्बुल-अ़र्शिल्-अ़ज़ीम *सज़्दा*
अल्लाह जिसके अतिरिक्त कोई वंदनीय नहीं, जो महा सिंहासन का स्वामी है।
قَالَ سَنَنظُرُ أَصَدَقْتَ أَمْ كُنتَ مِنَ الْكَاذِبِينَ ﴾ 27 ﴿
का-ल सनन्जुरु अ-सदक् त अम् कुन् त मिनल् – काज़िबीन
(सुलैमान ने) कहाः हम देखेंगे कि तू सत्यवादी है अथवा मिथ्यावादियों में से है।
اذْهَب بِّكِتَابِي هَٰذَا فَأَلْقِهْ إِلَيْهِمْ ثُمَّ تَوَلَّ عَنْهُمْ فَانظُرْ مَاذَا يَرْجِعُونَ ﴾ 28 ﴿
इज़्हब् – बिकिताबी हाज़ा फ़ – अल्किह् इलैहिम् सुम्-म तवल्-ल अ़न्हुम् फ़न्जुर् माज़ा यर्जिअून
जाओ, ये मेरा पत्र लेकर और इसे डाल दो उनकी ओर, फिर वापस आ जाओ उनके पास से, फिर देखो कि वे क्या उत्तर देते हैं?
قَالَتْ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ إِنِّي أُلْقِيَ إِلَيَّ كِتَابٌ كَرِيمٌ ﴾ 29 ﴿
क़ालत् या अय्युहल्म – लउ इन्नी उल्कि – य इलय् – य किताबुन करीम
उसने कहाः हे प्रमुखो! मेरी ओर एक महत्वपूरण पत्र डाला गया है।
إِنَّهُ مِن سُلَيْمَانَ وَإِنَّهُ بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ ﴾ 30 ﴿
इन्नहू मिन् सुलैमा-न व इन्नहू बिस्मिल्लाहिर्रह्मानिर्रहीम
वह सुलैमान की ओर से है और वह अत्यंत कृपाशील दयावान् के नाम से (आरंभ) है।
أَلَّا تَعْلُوا عَلَيَّ وَأْتُونِي مُسْلِمِينَ ﴾ 31 ﴿
अल्ला तअलू अ़लय्-य वअ्तूनी मुस्लिमीन*
(उसमें लिखा है) कि तुम मुझपर अभिमान न करो तथा आ जाओ मेरे पास, आज्ञाकारी होकर।
قَالَتْ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ أَفْتُونِي فِي أَمْرِي مَا كُنتُ قَاطِعَةً أَمْرًا حَتَّىٰ تَشْهَدُونِ ﴾ 32 ﴿
क़ालत या अय्युहल् म लउ अफ़्तूनी फ़ी अम्री मा कुन्तु काति – अ़तन् अमरन् हत्ता तश्हदून
उसने कहाः हे प्रमुखो! मुझे प्रामर्श दो मेरे विषय में, मैं कोई निर्णय करने वाला नहीं हूँ, जब तक तुम उपस्थित न रहो।
قَالُوا نَحْنُ أُولُو قُوَّةٍ وَأُولُو بَأْسٍ شَدِيدٍ وَالْأَمْرُ إِلَيْكِ فَانظُرِي مَاذَا تَأْمُرِينَ ﴾ 33 ﴿
कालू नह्नु उलू कुव्वतिंव्-व उलू बअ्सिन् शदीदिंव् – वल्- अम्रु इलैकि फ़न्जुरी माज़ा तअ्मुरीन
सबने उत्तर दिया कि हम शक्तिशाली तथा बड़े याध्दा हैं, आप स्वयं देख लें कि आपको क्या आदेश देना है।
قَالَتْ إِنَّ الْمُلُوكَ إِذَا دَخَلُوا قَرْيَةً أَفْسَدُوهَا وَجَعَلُوا أَعِزَّةَ أَهْلِهَا أَذِلَّةً ۖ وَكَذَٰلِكَ يَفْعَلُونَ ﴾ 34 ﴿
कालत् इन्नल- मुलू-क इज़ा द – ख़लू कर् – यतन् अफ़्सदूहा व ज – अ़लू अअिज़्ज़-त अह़्लिहा अज़िल्ल-तन् व कज़ालि- क यफ़अ़लून
उसने कहाः राजा जब प्रवेश करते हैं, किसी बस्ती में, तो उसे उजाड़ देते हैं और उसके आदरणीय वासियों को अपमानित बना देते हैं और वे ऐसा ही करेंगे।
وَإِنِّي مُرْسِلَةٌ إِلَيْهِم بِهَدِيَّةٍ فَنَاظِرَةٌ بِمَ يَرْجِعُ الْمُرْسَلُونَ ﴾ 35 ﴿
व इन्नी मुर्सि-लतुन् इलैहिम् बि – हदिय्यतिन् फ़नाज़ि – रतुम् बि- म यर्जिअुल-मुर्सलून
और मैं भेजने वाली हूँ उनकी ओर एक उपहार, फिर देखती हूँ कि क्या लेकर आते हैं दूत?
فَلَمَّا جَاءَ سُلَيْمَانَ قَالَ أَتُمِدُّونَنِ بِمَالٍ فَمَا آتَانِيَ اللَّهُ خَيْرٌ مِّمَّا آتَاكُم بَلْ أَنتُم بِهَدِيَّتِكُمْ تَفْرَحُونَ ﴾ 36 ﴿
फ़-लम्मा जा-अ सुलैमा-न का-ल अतुमिद्दू-ननि बिमालिन् फ़मा आतानि यल्लाहु ख़ैरुम् मिम्मा आताकुम् बल् अन्तुम् बि- हदिय्यतिकुम् तफ़रहून
तो जब वह (दूत) आया सुलैमान के पास, तो कहाः क्या तुम मेरी सहायता धन से करते हो? मुझे अल्लाह ने जो दिया है, उससे उत्तम है, जो तुम्हें दिया है, बल्कि तुम्हीं अपने उपहार से प्रसन्न हो रहे हो।
ارْجِعْ إِلَيْهِمْ فَلَنَأْتِيَنَّهُم بِجُنُودٍ لَّا قِبَلَ لَهُم بِهَا وَلَنُخْرِجَنَّهُم مِّنْهَا أَذِلَّةً وَهُمْ صَاغِرُونَ ﴾ 37 ﴿
इर्जिअ् इलैहिम् फ़ – लनअ्ति – यन्नहुम् बिजुनूदिल् ला कि-ब-ल लहुम् बिहा व लनुख़्रिजन्नहुम् मिन्हा अज़िल्ल-तंव्-व हुम् साग़िरून
वापस हो जाओ उनकी ओर, हम लायेंगे उनके पास ऐसी सेनाएँ, जिनका वे सामना नहीं कर सकेंगे और हम अवश्य उन्हें उस (बस्ती) से निकाल देंगे, अपमानित करके और वे तुच्छ (हीन) होकर रहेंगे।
قَالَ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ أَيُّكُمْ يَأْتِينِي بِعَرْشِهَا قَبْلَ أَن يَأْتُونِي مُسْلِمِينَ ﴾ 38 ﴿
का-ल या अय्युहल्- म-लउ अय्युकुम् यअ्तीनी बिअ़र्शिहा क़ब् – ल अंय्यअ्नूनी मुस्लिमीन
सुलैमान ने कहाः हे प्रमुखो! तुममें से कौन लायेगा[1] उसका सिंहासन, इससे पहले कि वह आ जाये, आज्ञाकारा होकर। 1. जब सुलैमान ने उपहार वापिस कर दिया और धमकी दी तो रानी ने स्वयं सुलैमान (अलैहिस्सलाम) की सेवा में उपस्थित होना उचित समझा। और उपने सेवकों के साथ फ़लस्तीन के लिये प्रस्थान किया, उस समय उन्हों ने राज्यसदस्यों से यह बात कही।
قَالَ عِفْرِيتٌ مِّنَ الْجِنِّ أَنَا آتِيكَ بِهِ قَبْلَ أَن تَقُومَ مِن مَّقَامِكَ ۖ وَإِنِّي عَلَيْهِ لَقَوِيٌّ أَمِينٌ ﴾ 39 ﴿
का – ल अिफ्रीतुम मिनल् जिन्नि अ-न आती – क बिही कब् – ल अन् तकू – म मिम् – मकामि – क व इन्नी अ़लैहि ल – कविय्युन् अमीन
कहा एक अतिकाय ने, जिन्नों में सेः मैं ला दूँगा, आपके पास उसे, इससे पूर्व कि आप खड़े हों अपने स्थान से और इसपर मुझे शक्ति है, मैं विश्वसनीय हूँ।
قَالَ الَّذِي عِندَهُ عِلْمٌ مِّنَ الْكِتَابِ أَنَا آتِيكَ بِهِ قَبْلَ أَن يَرْتَدَّ إِلَيْكَ طَرْفُكَ ۚ فَلَمَّا رَآهُ مُسْتَقِرًّا عِندَهُ قَالَ هَٰذَا مِن فَضْلِ رَبِّي لِيَبْلُوَنِي أَأَشْكُرُ أَمْ أَكْفُرُ ۖ وَمَن شَكَرَ فَإِنَّمَا يَشْكُرُ لِنَفْسِهِ ۖ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ رَبِّي غَنِيٌّ كَرِيمٌ ﴾ 40 ﴿
क़ालल्लज़ी अिन्दहू अिल्मुम् मिनल्- किताबि अ-न आती-क बिही कब् – ल अंय्यर् – तद् – द इलै – क तरफु-क, फ़-लम्मा रआहु मुस्तकिर्रन् अिन्दहू का-ल हाज़ा मिन् फ़ज़्लि रब्बी, लि- यब्लु – वनी अ- अश्कुरु अम् अक़्फुरु, व मन् श क-र फ़- इन्नमा यश्कुरु लिनफ्सिही व मन् क-फ़-र फ़-इन्-न रब्बी ग़निय्युन् करीम
कहा उसने, जिसके पास पुस्तक का ज्ञान थाः मैं ले आऊँगा उसे, आपके पास इससे पहले कि आपकी पलक झपके और जब देखा उसने उसे, अपने पास रखा हुआ, तो कहाः ये मेरे पालनहार का अनुग्रह है, ताकि मेरी परीक्षा ले कि मैं कृतज्ञता दिखाता हूँ या कृतघ्नता और जो कृतज्ञ होता है, वह अपने लाभ के लिए होता है तथा जो कृतघ्न हो, तो निश्चय मेरा पालनहार निस्पृह, महान है।
قَالَ نَكِّرُوا لَهَا عَرْشَهَا نَنظُرْ أَتَهْتَدِي أَمْ تَكُونُ مِنَ الَّذِينَ لَا يَهْتَدُونَ ﴾ 41 ﴿
का – ल नक्किरू लहा अ़र् – शहा नन्जुर् अ तह्तदी अम् तकूनु मिनल्लज़ी – न ला यह्तदून
कहाः परिवर्तन कर दो उसके लिए उसके सिंहासन में, हम देखेंगे कि वह उसे पहचान जाती है या उनमें से हो जाती है, जो पहचानते न हों।
فَلَمَّا جَاءَتْ قِيلَ أَهَٰكَذَا عَرْشُكِ ۖ قَالَتْ كَأَنَّهُ هُوَ ۚ وَأُوتِينَا الْعِلْمَ مِن قَبْلِهَا وَكُنَّا مُسْلِمِينَ ﴾ 42 ﴿
फ़ – लम्मा जाअत् की – ल अहा- कज़ा अरशुकि, कालत् क अन्नहू हु-व व ऊतीनल् – अिल्-म मिन् क़ब्लिहा व कुन्ना मुस्लिमीन
तो जब वह आई, तो कहा गयाः क्या ऐसा ही तेरा सिंहासन है? उसने कहाः वह तो मानो वही है और हम तो जान गये थे इससे पहले ही और आज्ञाकारी हो गये थे।
وَصَدَّهَا مَا كَانَت تَّعْبُدُ مِن دُونِ اللَّهِ ۖ إِنَّهَا كَانَتْ مِن قَوْمٍ كَافِرِينَ ﴾ 43 ﴿
व सन्नहा मा कानत् तअबुदु मिन् दूनिल्लाहि, इन्नहा कानत् मिन् कौमिन् काफ़िरीन
और रोक रखा था उसे (ईमान से) उन (पूज्यों) ने जिनकी वह इबादत ( वंदना) कर रही थी अल्लाह के सिवा। निश्चय वह काफ़िरों की जाति में से थी।
قِيلَ لَهَا ادْخُلِي الصَّرْحَ ۖ فَلَمَّا رَأَتْهُ حَسِبَتْهُ لُجَّةً وَكَشَفَتْ عَن سَاقَيْهَا ۚ قَالَ إِنَّهُ صَرْحٌ مُّمَرَّدٌ مِّن قَوَارِيرَ ۗ قَالَتْ رَبِّ إِنِّي ظَلَمْتُ نَفْسِي وَأَسْلَمْتُ مَعَ سُلَيْمَانَ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ ﴾ 44 ﴿
की-ल ल-हद्ख़ुलिस्सर-ह फ़-लम्मा र अत्हु हसि-बत्हु लुज्जतंव् – व क – शफ़त् अ़न् साकैहा, का – ल इन्नहू सरहुम् – मुमर्रदुम मिन् क़वारी र क़ालत् रब्बि इन्नी ज़लम्तु नफ़्सी व असलम्तु म – अ़ सुलैमा-न लिल्लाहि रब्बिल्-आ़लमीन*
उससे कहा गया कि भवन में प्रवेश कर। तो जब उसे देखा, तो उसे कोई जलाशय (हौद) समझी और खोल दीं[1] अपनी दोनों पिंडलियाँ, (सुलैमान ने) कहाः ये शीशे से निर्मित भवन है। उसने कहाः मेरे पालनहार! मैंने अत्याचार किया अपने प्राण[2] पर और (अब) मैं इस्लाम लाई सुलैमान के साथ अल्लाह सर्वलोक के पालनहार के लिए। 1. पानी से बचाव के लिये कपड़े पाईंचे ऊपर कर लिये। 2. अर्थात अन्य की पूजा-उपासना कर के।
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا إِلَىٰ ثَمُودَ أَخَاهُمْ صَالِحًا أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ فَإِذَا هُمْ فَرِيقَانِ يَخْتَصِمُونَ ﴾ 45 ﴿
व ल-क़द् अरसल्ना इला समू-द अख़ाहुम् सालिहन् अनि अ्बुदुल्ला-ह फ़ – इज़ा हुम् फ़रीकानि यख़्तसिमून
और हमने भेजा समूद की ओर उनके भाई सालेह़ को कि तुम सब इबादत (वंदना) करो अल्लाह की, तो अकस्मात् वे दो गिरोह होकर लड़ने लगे।
قَالَ يَا قَوْمِ لِمَ تَسْتَعْجِلُونَ بِالسَّيِّئَةِ قَبْلَ الْحَسَنَةِ ۖ لَوْلَا تَسْتَغْفِرُونَ اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ ﴾ 46 ﴿
का-ल या क़ौमि लि-म तस्तअ्जिलू न बिस्सय्यि-अति क़ब्लल्-ह-स-नति लौ ला तस्तग्फिरूनल्ला – ह लअ़ल्लकुम् तुरहमून
उसने कहाः हे मेरी जाति! क्यों तुम शीघ्र चाहते हो बुराई को[1] भलाई से पहले? क्यों तुम क्षमा नहीं माँगते अल्लाह से, ताकि तुमपर दया की जाये? 1. अर्थात ईमान लाने के बजाय इन्कार क्यों कर रहे हो?
قَالُوا اطَّيَّرْنَا بِكَ وَبِمَن مَّعَكَ ۚ قَالَ طَائِرُكُمْ عِندَ اللَّهِ ۖ بَلْ أَنتُمْ قَوْمٌ تُفْتَنُونَ ﴾ 47 ﴿
कालुत्तय्यर्ना बि-क व बि-मम्-म-अ-क, का-ल ताइरुकुम् अिन्दल्लाहि बल अन्तुम् कौमुन् तुफ़्तनून
उन्होंने कहाः हमने अपशकुन लिया है तुमसे तथा उनसे, जो तेरे साथ हैं। (सालेह़ ने) कहाः तुम्हारा अपशकुन अल्लाह के पास[1] है, बल्कि तुम लोगों की परीक्षा हो रही है। 1. अर्थात तुम पर जो अकाल पड़ा है वह अल्लाह की ओर से है जिसे तुम्हारे कुकर्मों के कारण अल्लाह ने तुम्हारे भाग्य में लिख दिया है। और यह अशुभ मेरे कारण नहीं बल्कि तुम्हारे कुफ़्र के कारण है। (फ़त्ह़ुल क़दीर)
وَكَانَ فِي الْمَدِينَةِ تِسْعَةُ رَهْطٍ يُفْسِدُونَ فِي الْأَرْضِ وَلَا يُصْلِحُونَ ﴾ 48 ﴿
व का-न फिल्मदी-नति तिस्अतु रहितंय्-युफ्सिदू-न फिल्अर्जि व ला युस्लिहून
और उस नगर में नौ व्यक्तियों का एक गिरोह था, जो उपद्रव करते थे धरती में और सुधार नहीं करते थे।
قَالُوا تَقَاسَمُوا بِاللَّهِ لَنُبَيِّتَنَّهُ وَأَهْلَهُ ثُمَّ لَنَقُولَنَّ لِوَلِيِّهِ مَا شَهِدْنَا مَهْلِكَ أَهْلِهِ وَإِنَّا لَصَادِقُونَ ﴾ 49 ﴿
कालू तक़ा-समू बिल्लाहि लनुबय्यितन्नहू व अह़्लहू सुम्-म ल-नकूलन्-न लि-वलिय्यिही मा शहिद्ना मह़्लि-क अह़्लिही व इन्ना ल-सादिकून
उन्होंने कहाः आपस में शपथ लो अल्लाह की कि हम अवश्य रात्रि में छापा मार देंगे सालेह़ तथा उसके परिवार पर, फिर कहेंगे उस (सालेह़) के उत्तराधिकारी से, हम उपस्थित नहीं थे, उसके परिवार के विनाश के समय और निःसंदेह, हम सत्यवादी ( सच्चे) हैं।
وَمَكَرُوا مَكْرًا وَمَكَرْنَا مَكْرًا وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ ﴾ 50 ﴿
वम-करू मकरंव्-व मकरना मकरंव् व हुम् ला यश्अुरून
और उन्होंने एक षड्यंत्र रचा और हमने भी एक उपाय किया और वे समझ नहीं रहे थे।
فَانظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ مَكْرِهِمْ أَنَّا دَمَّرْنَاهُمْ وَقَوْمَهُمْ أَجْمَعِينَ ﴾ 51 ﴿
फ़न्जुर् कै-फ़ का-न आकि-बतु मकरिहिम् अन्ना दम्मरनाहुम् व कौमहुम् अज्मईन
तो देखो कैसा रहा उनके षड्यंत्र का परिणाम? हमने विनाश कर दिया उनका तथा उनकी पूरी जाति का।
فَتِلْكَ بُيُوتُهُمْ خَاوِيَةً بِمَا ظَلَمُوا ۗ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً لِّقَوْمٍ يَعْلَمُونَ ﴾ 52 ﴿
फ़-तिल्-क बुयूतुहुम् खावि-यतम् बिमा ज़-लमू, इन्-न फ़ी ज़ालि-कलआ-यतल् लिकौमिय्-यअ्लमून
तो ये उनके घर हैं, उजाड़ पड़े हुए, उनके अत्याचार के कारण, निश्चय इसमें एक बड़ी निशानी है, उन लोगों के लिए, जो ज्ञान रखते हैं।
وَأَنجَيْنَا الَّذِينَ آمَنُوا وَكَانُوا يَتَّقُونَ ﴾ 53 ﴿
व अन्जैनल्लज़ी-न आमनू व कानू यत्तकून
तथा हमने बचा लिया उन्हे, जो ईमान लाये और (अल्लाह) से डर रहे थे।
وَلُوطًا إِذْ قَالَ لِقَوْمِهِ أَتَأْتُونَ الْفَاحِشَةَ وَأَنتُمْ تُبْصِرُونَ ﴾ 54 ﴿
व लूतन् इज् का – ल लिकौमिही अ-तअ्तून फ़ाहि-श-त व अन्तुम् तुब्सिरून
तथा लूत को (भेजा), जब उसने अपनी जाति से कहाः क्या तुम कुकर्म कर रहे हो, जबकि तुम[1] आँखें रखते हो? 1. (देखियेः सूरह आराफ़ः84, और सूरह हूदः82-83)। इस्लाम में स्त्री से भी अस्वभाविक संभोग वर्जित है। (सुनन नसाई ह़दीस संख्याः8985, और सुनन इब्ने माजा ह़दीस संख्याः1924)
أَئِنَّكُمْ لَتَأْتُونَ الرِّجَالَ شَهْوَةً مِّن دُونِ النِّسَاءِ ۚ بَلْ أَنتُمْ قَوْمٌ تَجْهَلُونَ ﴾ 55 ﴿
अ – इन्नकुम् ल – तअ्तूनर् रिजा-ल शह़्व-तम् मिन् दूनिन्निसा – इ, बल अन्तुम् कौमुन् तज्हलून
क्या तुम पुरुषों के पास जाते हो, काम वासना की पूर्ति के लिए? तुम लोग बड़े नासमझ हो।
فَمَا كَانَ جَوَابَ قَوْمِهِ إِلَّا أَن قَالُوا أَخْرِجُوا آلَ لُوطٍ مِّن قَرْيَتِكُمْ ۖ إِنَّهُمْ أُنَاسٌ يَتَطَهَّرُونَ ﴾ 56 ﴿
फ़मा का न जवा-ब कौमिही इल्ला अन् क़ालू अख़रिजू आ – ल लूतिम – मिन् कर् – यतिकुम् इन्नहुम् उनासुंय्-य-त-तह्हरून
तो उसकी जाति का उत्तर बस ये था कि उन्होंने कहाः लूत के परिजनों को निकाल दो अपने नगर से, वास्तव में, ये लोग बड़े पवित्र बन रहे हैं।
فَأَنجَيْنَاهُ وَأَهْلَهُ إِلَّا امْرَأَتَهُ قَدَّرْنَاهَا مِنَ الْغَابِرِينَ ﴾ 57 ﴿
फ़- अन्जैनाहु व अह़्लहू इल्लम्र-अ तहू कन्नर्नाहा मिनल्- ग़ाबिरीन
तो हमने बचा लिया उसे तथा उसके परिवार को, उसकी पत्नी के सिवा, जिसे हमने नियत कर दिया पीछे रह जाने वालों में।
وَأَمْطَرْنَا عَلَيْهِم مَّطَرًا ۖ فَسَاءَ مَطَرُ الْمُنذَرِينَ ﴾ 58 ﴿
व अम्तरना अ़लैहिम् म-तरन् फ़सा-अ म-तरुल्-मुन्ज़रीन*
और हमने उनपर बहुत अधिक वर्षा कर दी। तो बुरी हो गयी सावधान किये हुए लोगों की वर्षा।
قُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ وَسَلَامٌ عَلَىٰ عِبَادِهِ الَّذِينَ اصْطَفَىٰ ۗ آللَّهُ خَيْرٌ أَمَّا يُشْرِكُونَ ﴾ 59 ﴿
कुलिल्हम्दु लिल्लाहि व सलामुन् अ़ला इबादिहिल्लज़ीनस्-तफ़ा, अल्लाहु ख़ैरुन् अम्मा युश्रिकून
आप कह दें: सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है और सलाम है उसके उन भक्तों पर, जिन्हें उसने चुन लिया। क्या अल्लाह उत्तम है या वह, जिसे वे साझी बनाते हैं?
أَمَّنْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَأَنزَلَ لَكُم مِّنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَنبَتْنَا بِهِ حَدَائِقَ ذَاتَ بَهْجَةٍ مَّا كَانَ لَكُمْ أَن تُنبِتُوا شَجَرَهَا ۗ أَإِلَٰهٌ مَّعَ اللَّهِ ۚ بَلْ هُمْ قَوْمٌ يَعْدِلُونَ ﴾ 60 ﴿
अम्मन् ख़-लक़स्समावाति वल्अर्-ज़ व अन्ज़ – ल लकुम् मिनस्समा – इ मा – अन् फ़- अम्बत्ना बिही हदाइ-क़ ज़ा-त बह्जतिन् मा का-न लकुम् अन् तुम्बितू श-ज-रहा अ- इलाहुम् – मअ़ल्लाहि, बल् हुम् कौमुंय्-यअ्दिलून
ये वो है, जिसने उत्पत्ति की है आकाशों तथा धरती की और उतारा है तुम्हारे लिए आकाश से जल, फिर हमने उगा दिया उसके द्वारा भव्य बाग़, तुम्हारे बस में न था कि उगा देते उसके वृक्ष, तो क्या कोई पूज्य है अल्लाह के साथ? बल्कि यही लोग (सत्य से) कतरा रहे हैं।
أَمَّن جَعَلَ الْأَرْضَ قَرَارًا وَجَعَلَ خِلَالَهَا أَنْهَارًا وَجَعَلَ لَهَا رَوَاسِيَ وَجَعَلَ بَيْنَ الْبَحْرَيْنِ حَاجِزًا ۗ أَإِلَٰهٌ مَّعَ اللَّهِ ۚ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ ﴾ 61 ﴿
अम्मन् ज-अ़लल् – अर् ज़ क़रारंव्-व ज-अ-ल ख़िला – लहा अन्हारंव् – व ज-अ़-ल लहा रवासि-य व ज-अ़-ल बैनल्-बहरैनि हाजिज़न्, अ- इलाहुम्-मअ़ल्लाहि, बल् अक्सरुहुम् ला यअ्लमून
या वो है, जिसने धरती को रहने योगय्य बनाया तथा उसके बीच नहरें बनायीं और उसके लिए पर्वत बनाये और बना दी, दो सागरों के बीच एक रोक। तो क्या कोई पूज्य है अल्लाह के साथ? बल्कि उनमें से अधिक्तर ज्ञान नहीं रखते।
أَمَّن يُجِيبُ الْمُضْطَرَّ إِذَا دَعَاهُ وَيَكْشِفُ السُّوءَ وَيَجْعَلُكُمْ خُلَفَاءَ الْأَرْضِ ۗ أَإِلَٰهٌ مَّعَ اللَّهِ ۚ قَلِيلًا مَّا تَذَكَّرُونَ ﴾ 62 ﴿
अम्-मंय्युजीबुल मुज्तर्-र इज़ा दआ़हु व यक्शिफुस्सू-अ व यज्-अ़लुकुम खु-लफाअल्-अर्जि, अ-इलाहुम् मअ़ल्लाहि, क़लीलम् मा तज़क्करून
या वो है, जो व्याकुल की प्रार्थना सुनता है, जब उसे पुकारे और दूर करता है दुःख तथा तुम्हें बनाता है धरती का अधिकारी, क्या कोई पूज्य है अल्लाह के साथ? तुम बहुत कम ही शिक्षा ग्रहण करते हो।
أَمَّن يَهْدِيكُمْ فِي ظُلُمَاتِ الْبَرِّ وَالْبَحْرِ وَمَن يُرْسِلُ الرِّيَاحَ بُشْرًا بَيْنَ يَدَيْ رَحْمَتِهِ ۗ أَإِلَٰهٌ مَّعَ اللَّهِ ۚ تَعَالَى اللَّهُ عَمَّا يُشْرِكُونَ ﴾ 63 ﴿
अम्-मंय्यह्दीकुम् फ़ी जुलुमातिल्-बर्रि वल्बहरि व मंय्युर्सिलुर्-रिया-ह बुश्रम्-बै-न यदै रह्मतिही, अ-इलाहुम्-मअ़ल्लाहि, तआ़लल्लाहु अ़म्मा युश्रिकून
या वो है, जो तुम्हें राह दिखाता है सूखे तथा सागर के अंधेरों में तथा भेजता है वायुओं को शुभ सूचना देने के लिए अपनी दया (वर्षा) से पहले, क्या कोई और पूज्य है अल्लाह के साथ? उच्च है अल्लाह उस शिर्क से, जो वे कर रहे हैं।
أَمَّن يَبْدَأُ الْخَلْقَ ثُمَّ يُعِيدُهُ وَمَن يَرْزُقُكُم مِّنَ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ ۗ أَإِلَٰهٌ مَّعَ اللَّهِ ۚ قُلْ هَاتُوا بُرْهَانَكُمْ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ ﴾ 64 ﴿
अम्-मंय्यब्दउल् – ख़ल्क़ सुम्म युईदुहू व मंय्यरजुकुकुम् मिनस्समा – इ वलअर्ज़ि, अ- इलाहुम् मअ़ल्लाहि, कुल् हातू बुरहा – नकुम् इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
या वो है, जो आरंभ करता है उत्पत्ति का, फिर उसे दुहरायेगा तथा जो तुम्हें जीविका देता है आकाश तथा धरती से, क्या कोई पूज्य है अल्लाह के साथ? आप कह दें कि अपना प्रमाण लाओ, यदि तुम सच्चे[1] हो। 1. आयत संख्या 60 से यहाँ तक का सारांश यह है कि जब अल्लाह ने ही पूरे विश्व की उत्पत्ति की है और सब की व्यवस्था वही कर रहा है, और उस का कोई साझी नहीं तो फिर यह मिथ्या पूज्य अल्लाह के साथ कहाँ से आ गये? यह तो ज्ञान और समझ में आने की बात नहीं और न इस का कोई प्रमाण है।
قُل لَّا يَعْلَمُ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ الْغَيْبَ إِلَّا اللَّهُ ۚ وَمَا يَشْعُرُونَ أَيَّانَ يُبْعَثُونَ ﴾ 65 ﴿
कुल् ला यअ्लमु मन् फ़िस् – समावाति वल् अर्जि ल्ग़ै – ब इल्लल्लाहु, व मा यश्अरू-न अय्या-न युब्अ़सून
आप कह दें कि नहीं जानता है, जो आकाशों तथा धरती में है, परोक्ष को अल्लाह के सिवा और वे नहीं जानते कि कब फिर जीवित किये जायेंगे।
بَلِ ادَّارَكَ عِلْمُهُمْ فِي الْآخِرَةِ ۚ بَلْ هُمْ فِي شَكٍّ مِّنْهَا ۖ بَلْ هُم مِّنْهَا عَمُونَ ﴾ 66 ﴿
बलिद्दार – क अिल्मुहुम फिल् – आख़िरति, बल् हुम् फी शक्किम् मिन्हा, बल् हुम् मिन्हा अ़मून*
बल्कि समाप्त हो गया है उनका ज्ञान आख़िरत (परलोक) के विषय में, बल्कि वे द्विधा में हैं, बल्कि वे उससे अंधे हैं।
وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا أَإِذَا كُنَّا تُرَابًا وَآبَاؤُنَا أَئِنَّا لَمُخْرَجُونَ ﴾ 67 ﴿
व क़ालल्लज़ी-न क-फ़रू अ इज़ा कुन्ना तुराबंव् – व आबाउना अ – इन्ना ल – मुख़रजून
और कहा काफ़िरों नेः क्या जब हम हो जायेंगे मिट्टी तथा हमारे पूर्वज, तो क्या हम अवश्य निकाले[1] जायेंगे? 1. अर्थात प्रलय के दिन अपनी समाधियों से जीवित निकाले जायेंगे।
لَقَدْ وُعِدْنَا هَٰذَا نَحْنُ وَآبَاؤُنَا مِن قَبْلُ إِنْ هَٰذَا إِلَّا أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ ﴾ 68 ﴿
ल – क़द् वुअिद्ना हाज़ा नह्नु व आबाउना मिन् क़ब्लु इन् हाज़ा इल्ला असातीरुल् – अव्वलीन
हमें इसका वचन दिया जा चुका है तथा हमारे पूर्वजों को इससे पहले, ये तो बस अगलों की बनायी हुई कथाएँ हैं।
قُلْ سِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَانظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُجْرِمِينَ ﴾ 69 ﴿
कुल् सीरू फ़िल्अर्जि फ़न्जुरू कै-फ़ का-न आ़कि-बतुल्-मुज्रिमीन
(हे नबी!) आप कह दें कि चलो-फिरो धरती में, फिर देखो कि कैसा हुआ अपराधियों का परिणाम!
وَلَا تَحْزَنْ عَلَيْهِمْ وَلَا تَكُن فِي ضَيْقٍ مِّمَّا يَمْكُرُونَ ﴾ 70 ﴿
व ला तह्ज़न अ़लैहिम् व ला तकुन् फी ज़ैकिम् – मिम्मा यम्कुरून
और आप शोक न करें उनपर और न किसी संकीर्णता में रहें उससे, जो चालें वे चल रहे हैं।
وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَٰذَا الْوَعْدُ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ ﴾ 71 ﴿
व यकूलू – न मता हाज़ल् – वअ्दु इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
तथा वे कहते हैं: कब ये धमकी पूरी होगी, यदि तुम सच्चे हो?
قُلْ عَسَىٰ أَن يَكُونَ رَدِفَ لَكُم بَعْضُ الَّذِي تَسْتَعْجِلُونَ ﴾ 72 ﴿
कुल अ़सा अंय्यकू – न रदि-फ़ लकुम् बअ्जुल्लज़ी तस्तअ्जिलून
आप कह दें: संभव है कि तुम्हारे समीप हो उसमें से कुछ, जिसे तुम शीघ्र चाहते हो।
وَإِنَّ رَبَّكَ لَذُو فَضْلٍ عَلَى النَّاسِ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَشْكُرُونَ ﴾ 73 ﴿
व इन्-न रब्ब-क लजू फ़ज्लिन् अ़लन्नासि व लाकिन् – न अक्स-रहुम् ला यश्कुरून
तथा निःसंदेह, आपका पालनहार बड़ा दयालु है लोगों[1] पर। परन्तु, उनमें से अधिक्तर कृतज्ञ नहीं होते। 1. अर्थात लोगों को अपने अनुग्रह से अवसर देता रहता है।
وَإِنَّ رَبَّكَ لَيَعْلَمُ مَا تُكِنُّ صُدُورُهُمْ وَمَا يُعْلِنُونَ ﴾ 74 ﴿
व इन्-न रब्ब-क ल-यअ्लमु मा तुकिन्नु सुदूरुहुम् व मा युअ्लिनून
और वास्तव में, आपका पालनहार जानता है उसे, जो छुपाते हैं उनके दिल तथा जो व्यक्त करते हैं।
وَمَا مِنْ غَائِبَةٍ فِي السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ إِلَّا فِي كِتَابٍ مُّبِينٍ ﴾ 75 ﴿
व मा मिन् गाइ-बतिन् फिस्समा इ वलअर्ज़ि इल्ला फी किताबिम्-मुबीन
और कोई छुपी चीज़ नहीं है आकाश तथा धरती में, परन्तु वह खुली पुस्तक में[1] है। 1. इस से तात्पर्य (लौह़े मह़फ़ूज़) सुरक्षित पुस्तक है जिस में सब कुछ अंकित है।
إِنَّ هَٰذَا الْقُرْآنَ يَقُصُّ عَلَىٰ بَنِي إِسْرَائِيلَ أَكْثَرَ الَّذِي هُمْ فِيهِ يَخْتَلِفُونَ ﴾ 76 ﴿
इन्-न हाज़ल्-कुरआ-न यकुस्सु अ़ला बनी इस्राई-ल अक्स- रल्लज़ी हुम् फीहि यख़्तलिफून
निःसंदेह, ये क़ुर्आन वर्णन कर रहा है इस्राईल की संतान के समक्ष, उन अधिक्तर बातों को जिनमें वे विभेद कर रहे हैं।
وَإِنَّهُ لَهُدًى وَرَحْمَةٌ لِّلْمُؤْمِنِينَ ﴾ 77 ﴿
व इन्नहू ल-हुदंव्-व रह़्मतुल लिल्-मुअ्मिनीन
और वास्तव में, वह मार्गदर्शन तथा दया है, ईमान वालों के लिए।
إِنَّ رَبَّكَ يَقْضِي بَيْنَهُم بِحُكْمِهِ ۚ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْعَلِيمُ ﴾ 78 ﴿
इन्-न रब्ब-क यक़्ज़ी बैनहुम बिहुक्मिही व हुवल् अ़ज़ीज़ुल-अ़लीम
निःसंदेह, आपका पालनहार[1] निर्णय कर देगा उनके बीच अपने आदेश से तथा वही प्रबल, सबकुछ जानने वाला है। 1. अर्थात प्रलय के दिन। और सत्य तथा असत्य को अलग कर के उस का बदला देगा।
فَتَوَكَّلْ عَلَى اللَّهِ ۖ إِنَّكَ عَلَى الْحَقِّ الْمُبِينِ ﴾ 79 ﴿
फ़-तवक्कल् अ़लल्लाहि, इन्न-क अ़लल्-हक्किल्-मुबीन
अतः, आप भरोसा करें अल्लाह पर, वस्तुतः, आप खुले सत्य पर हैं।
إِنَّكَ لَا تُسْمِعُ الْمَوْتَىٰ وَلَا تُسْمِعُ الصُّمَّ الدُّعَاءَ إِذَا وَلَّوْا مُدْبِرِينَ ﴾ 80 ﴿
इन्न-क ला तुस्मिअुल्मौता व ला तुस्मिअुस् – सुम्मद्दुआ – अ इज़ा वल्लौ मुदबिरीन
वास्तव में, आप नहीं सुना सकेंगे मुर्दौं को और न सुना सकेंगे बहरों को अपनी पुकार, जब वे भागे जा रहे हों पीठ फेर[1] कर। 1. अर्थात जिन की अंतरात्मा मर चुकी हो, और जिन की दुराग्रह ने सत्य और असत्य का अन्तर समझने की क्षमता खो दी हो।
وَمَا أَنتَ بِهَادِي الْعُمْيِ عَن ضَلَالَتِهِمْ ۖ إِن تُسْمِعُ إِلَّا مَن يُؤْمِنُ بِآيَاتِنَا فَهُم مُّسْلِمُونَ ﴾ 81 ﴿
व मा अन् त बिहादिल्-अुम्यि अ़न् ज़लालतिहिम्, इन् तुस्मिअु इल्ला मंय्युअ्मिनु बिआयातिना फ़हुम् मुस्लिमून
तथा आप अंधे को मार्गदर्शन नहीं दे सकते उनके कुपथ से, आप तो बस उसी को सुना सकते हैं, जो ईमान रखता हो हमारी आयतों पर, फिर वह आज्ञाकारी हो।
وَإِذَا وَقَعَ الْقَوْلُ عَلَيْهِمْ أَخْرَجْنَا لَهُمْ دَابَّةً مِّنَ الْأَرْضِ تُكَلِّمُهُمْ أَنَّ النَّاسَ كَانُوا بِآيَاتِنَا لَا يُوقِنُونَ ﴾ 82 ﴿
व इजा व-क़अल्-क़ौलु अ़लैहिम् अख़रज्ना लहुम् दाब्बतम् मिनलअर्जि तुकल्लिमुहुम् अन्नन्ना-स कानू बिआयातिना ला यूकिनून*
और जब आ जायेगा बात पूरी होने का समय उनके ऊपर[1], तो हम निकालेंगे उनके लिए एक पशु धरती से, जो बात करेगा उनसे[2] कि लोग हमारी आयतों पर विश्वास नहीं करते थे। 1. अर्थात प्रलय होने का समय। 2. यह पशु वही है जो प्रलय के समीप होने का एक लक्षण है जैसा कि ह़दीस में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कथन है कि प्रलय उस समय तक नहीं होगी जब तक तुम दस लक्षण न देख लो, उन में से एक पशु का निकालना है। (देखियेः सह़ीह़ मुस्लिम ह़दीस संख्याः2901) आप का दूसरा कथन यह है कि सर्व प्रथम जो लक्षण होगा वह सूर्य का पश्चिम से निकलना होगा। तथा पूर्वान्ह से पहले पशु का निकलना इन में से जो भी पहले होगा शीघ्र ही दूसरा उस के पश्चात होगा। (देखियेः सह़ीह़ मुस्लिम ह़दीस संख्याः2941) और यह पशु मानव भाषा में बात करेगा जो अल्लाह के सामर्थ्य का एक चिन्ह होगा।
وَيَوْمَ نَحْشُرُ مِن كُلِّ أُمَّةٍ فَوْجًا مِّمَّن يُكَذِّبُ بِآيَاتِنَا فَهُمْ يُوزَعُونَ ﴾ 83 ﴿
व यौ-म नह्शुरु मिन् कुल्लि उम्मतिन् फ़ौजम् मिम्मंय्युकज़्ज़िबु बिआयातिना फ़हुम् यू-ज़अून
तथा जिस दिन हम घेर लायेंग प्रत्येक समुदाय से एक गिरोह, उनका, जो झुठलाते रहे हमारी आयतों को, फिर वे सब (एकत्र किये जाने के लिए) रोक दिये जायेंगे।
حَتَّىٰ إِذَا جَاءُوا قَالَ أَكَذَّبْتُم بِآيَاتِي وَلَمْ تُحِيطُوا بِهَا عِلْمًا أَمَّاذَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ ﴾ 84 ﴿
हत्ता इज़ा जाऊ क़ा-ल अ-कज़्ज़ब्तुम् बिआयाती व लम् तुहीतू बिहा अिल्मन् अम्-मा ज़ा कुन्तुम् तअ्मलून
यहाँतक कि जब सब आ जायेंगे, तो अल्लाह उनसे कहेगाः क्या तुमने मेरी आयतों को झुठला दिया, जबकि तुमने उनका पूरा ज्ञान नहीं किया, अन्यथा तुम और क्या कर रहे थे?
وَوَقَعَ الْقَوْلُ عَلَيْهِم بِمَا ظَلَمُوا فَهُمْ لَا يَنطِقُونَ ﴾ 85 ﴿
व व-क़अ़ल्-क़ौलु अ़लैहिम् बिमा ज़-लमू फ़हुम् ला यन्तिकून
और सिध्द हो जायेगा यातना का वचन, उनके ऊपर, उनके अत्याचार के कारण। तब वे बात नहीं कर सकेंगे।
أَلَمْ يَرَوْا أَنَّا جَعَلْنَا اللَّيْلَ لِيَسْكُنُوا فِيهِ وَالنَّهَارَ مُبْصِرًا ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ ﴾ 86 ﴿
अलम् यरौ अन्ना ज-अ़ल्नल्लै-ल लियस्कुनू फ़ीहि वन्नहा-र मुब्सिरन्, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआयातिल् लिकौमिंय्-युअमिनून
क्या उन्होंने नहीं दखा कि हमने रात बनाई, ताकि वे शान्त रहें उसमें तथा दिन को दिखाने वाला[1] वास्तव में, इसमें बड़ी निशानियाँ (लक्षण) हैं, उन लोगों के लिए, जो ईमान लाते हैं। 1. जिस के प्रकाश में वह देखें और अपनी जीविका के लिये प्रयास करें।
وَيَوْمَ يُنفَخُ فِي الصُّورِ فَفَزِعَ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَمَن فِي الْأَرْضِ إِلَّا مَن شَاءَ اللَّهُ ۚ وَكُلٌّ أَتَوْهُ دَاخِرِينَ ﴾ 87 ﴿
व यौ-म युन्फ़खु फिस्सूरि फ़-फ़ज़ि-अ़ मन् फिस्समावाति व मन् फ़िलअर्जि इल्ला मन् शा-अल्लाहु, व कुल्लुन् अतौहु दाख़िरीन
और जिस दिन फूँका जायेगा[1]सूर (नरसिंघा) में, तो घबरा जायेंगे वे, जो आकाशों तथा धरती में हैं। परन्तु वह, जिसे अल्लाह चाहे तथा सब उस (अल्लाह) के समक्ष आ जायेंगे, विवश होकर। 1. अर्थात प्रलय के दिन।
وَتَرَى الْجِبَالَ تَحْسَبُهَا جَامِدَةً وَهِيَ تَمُرُّ مَرَّ السَّحَابِ ۚ صُنْعَ اللَّهِ الَّذِي أَتْقَنَ كُلَّ شَيْءٍ ۚ إِنَّهُ خَبِيرٌ بِمَا تَفْعَلُونَ ﴾ 88 ﴿
व तरल्-जिबा-ल तह्सबुहा जामि-दतंव्-व हि-य तमुर्रू मर्रस्सहाबि, सुन्-अ़ल्लाहिल्लज़ी अत्क-न कुल्-ल शैइन्, इन्नहू ख़बीरुम् बिमा तफ़अ़लून
और तुम देखते हो पर्वतों को, तो उन्हें समझते हो स्थिर (अचल) हैं, जबकि वे उस दिन उड़ेंगे बादल के समान, ये अल्लाह की रचना है, जिसने सुदृढ़ किया है प्रत्येक चीज़ को, निश्चय वह भली-भाँति सूचित है उससे, जो तुम कर रहे हो।
مَن جَاءَ بِالْحَسَنَةِ فَلَهُ خَيْرٌ مِّنْهَا وَهُم مِّن فَزَعٍ يَوْمَئِذٍ آمِنُونَ ﴾ 89 ﴿
मन् जा-अ बिल्ह-स-नति फ़-लहू खैरुम्-मिन्हा व हुम् मिन् फ़-ज़अिय्-यौमइजिन आमिनून
जो भलाई[1] लायेगा, तो उसके लिए उससे उत्तम (प्रतिफल) है और वह उस दिन की व्यग्रता से निर्भय रहने वाले होंगे। 1. अर्थात एक अल्लाह के प्रति आस्था तथा तदानुसार कर्म ले कर प्रलय के दिन आयेगा।
وَمَن جَاءَ بِالسَّيِّئَةِ فَكُبَّتْ وُجُوهُهُمْ فِي النَّارِ هَلْ تُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ ﴾ 90 ﴿
व मन् जा-अ बिस्सय्यि-अति फ़कुब्बत वुजूहुहुम् फ़िन्नारि, हल् तुज्ज़ौ-न इल्ला मा कुन्तुम् तअ्मलून
और जो बुराई लायेगा, तो वही झोंक दिये जायेंगे औंधे मुँह नरक में, (तथा कहा जायेगाः) तुम्हें वही बदला दिया जा रहा है, जो तुम करते रहे हो।
إِنَّمَا أُمِرْتُ أَنْ أَعْبُدَ رَبَّ هَٰذِهِ الْبَلْدَةِ الَّذِي حَرَّمَهَا وَلَهُ كُلُّ شَيْءٍ ۖ وَأُمِرْتُ أَنْ أَكُونَ مِنَ الْمُسْلِمِينَ ﴾ 91 ﴿
इन्नमा उमिरतु अन् अअ्बु-द रब् ब हाज़िहिल्-बल्दतिल्लज़ी हर्र-महा व लहू कुल्लु शैइंव्-व उमिरतु अन् अकू-न मिनल्-मुस्लिमीन
मुझे तो बस यही आदेश दिया गया है कि इस नगर (मक्का) के पालनहार की इबादत (वंदना) करूँ, जिसने इसे आदरणीय बनाया है तथा उसी के अधिकार में है प्रत्येक चीज़ और मुझे आदेश दिया गया है कि आज्ञाकारियों में रहूँ।
وَأَنْ أَتْلُوَ الْقُرْآنَ ۖ فَمَنِ اهْتَدَىٰ فَإِنَّمَا يَهْتَدِي لِنَفْسِهِ ۖ وَمَن ضَلَّ فَقُلْ إِنَّمَا أَنَا مِنَ الْمُنذِرِينَ ﴾ 92 ﴿
व अन् अत्लुवल्-कुरआ-न फ मनिह्तदा फ़- इन्नमा यह्तदी लिनफ्सिही व मन् ज़ल्ल फ़कुल इन्नमा अ-न मिनल् – मुन्ज़िरीन
तथा क़ुर्आन पढ़ता रहूँ, तो जिसने सुपथ अपनाया, तो वह अपने ही लाभ के लिए सुपथ अपनायेगा और जो कुपथ हो जाये, तो आप कह दें कि वास्तव में, मैं तो बस सावधान करने वालों में से हूँ।
وَقُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ سَيُرِيكُمْ آيَاتِهِ فَتَعْرِفُونَهَا ۚ وَمَا رَبُّكَ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ ﴾ 93 ﴿
व कुलिल्-हम्दु लिल्लाहि सयुरीकुम् आयातिही फ़-तअ्-रिफूनहा, व मा रब्बू-क बिग़ाफ़िलिन् अ़म्मा तअ्मलून*
तथा आप कह दें कि सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, वह शीघ्र तुम्हें दिखा देगा अपनी निशानियाँ, जिन्हें तुम पहचान[1] लोगे और तुम्हारा पालनहार उससे अचेत नहीं है, जो कुछ तुम कर रहे हो। 1. (देखियेः सूरह ह़ा, मीम, सज्दा, आयतः53)