सूरह नज्म के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है। इस में 62 आयतें है।
- इस सूरह का आरंभ नज्म (तारे) की शपथ से हुआ है। इसलिये इस का नाम सूरह नज्म है।
- इस में वह्यी तथा रिसालत से सम्बंधित तथ्यों को प्रस्तुत किया गया है। जिन से ईमान तथा विश्वास पैदा होता है। और ज्योतिष के आरोप का खण्डन होता है।
- नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से सम्बंधित संदेहों को दूर किया गया है। जो वह्यी के बारे में किये जाते थे। और आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने जो कुछ आकाशों में देखा उसे प्रस्तुत किया गया है।
- वह्यी (प्रकाशना) को छोड़ कर मनमानी तथा शिर्क करने और प्रतिफल के इन्कार पर पकड़ की गई है। जिन से इन विचारों का व्यर्थ होना उजागर होता है।
- सदाचारियों को क्षमा और पुरस्कार की शुभ सूचना दी गई है। और इन्कारियों को सोच-विचार का आमंत्रण दिया गया है।
- अन्त में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सावधान कर्ता होने का वर्णन है। तथा प्रलय के दिन से सावधान करने के साथ ही अल्लाह ही को सज्दा करने तथा उसी की वंदना करने का आदेश दिया गया है।
सूरह अन-नज्म | Surah Najm in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
وَالنَّجْمِ إِذَا هَوَىٰ ﴾ 1 ﴿
वन्नज्मि इज़ा हवा
शपथ है तारे की, जब वह डूबने लगे!
مَا ضَلَّ صَاحِبُكُمْ وَمَا غَوَىٰ ﴾ 2 ﴿
मा ज़ल्-ल साहिबुकुम् व मा ग़वा
नहीं कुपथ हुआ है तुम्हारा साथी और न कुमार्ग हुआ है।
وَمَا يَنطِقُ عَنِ الْهَوَىٰ ﴾ 3 ﴿
व मा यन्तिक़ु अ़निलू- हवा
और वह नहीं बोलते अपनी इच्छा से।
إِنْ هُوَ إِلَّا وَحْيٌ يُوحَىٰ ﴾ 4 ﴿
इन् हु-व इल्ला वह्ह्य्यूहा
वह तो बस वह़्यी (प्रकाशना) है। जो (उनकी ओर) की जाती है।
عَلَّمَهُ شَدِيدُ الْقُوَىٰ ﴾ 5 ﴿
अ़ल्ल – महू शदीदुल्क़ुवा
सिखाया है जिसे उन्हें शक्तिवान ने।[1] 1. इस से अभिप्राय जिब्रील (अलैहिस्सलाम) हैं जो वह़्यी लाते थे।
ذُو مِرَّةٍ فَاسْتَوَىٰ ﴾ 6 ﴿
ज़ू मिर्रतिन् फ़स्तवा
बड़े बलशाली ने, फिर वह सीधा खड़ा हो गया।
وَهُوَ بِالْأُفُقِ الْأَعْلَىٰ ﴾ 7 ﴿
व हु-व बिल्-उफ़ुफ़िल्-अअ्ला
तथा वह आकाश के ऊपरी किनारे पर था।
ثُمَّ دَنَا فَتَدَلَّىٰ ﴾ 8 ﴿
सुम् – म दना फ़-तदल्ला
फिर समीप हुआ और फिर लटक गया।
فَكَانَ قَابَ قَوْسَيْنِ أَوْ أَدْنَىٰ ﴾ 9 ﴿
फ़का- न क़ा-ब क़ौसैनि औ अद्ना
फिर हो गया दो कमान के बराबर अथवा उससे भी समीप।
فَأَوْحَىٰ إِلَىٰ عَبْدِهِ مَا أَوْحَىٰ ﴾ 10 ﴿
फ़-औहा इला अ़ब्दिही मा औहा
फिर उसने वह़्यी की उस (अल्लाह) के भक्त[1] की ओर, जो भी वह़्यी की। 1. अर्थात मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की ओर। इन आयतों में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के जिब्रील (फरिश्ते) को उन के वास्तविक रूप में दो बार देखने का वर्णन है। आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) ने कहाः जो कहे कि मुह़म्मद (सल्लल्लहु अलैहि व सल्लम) ने अल्लाह को देखा है तो वह झूठा है। और जो कहे कि आप कल (भविष्य) की बात जानते थे तो वह झूठा है। तथा जो कहे कि आप ने धर्म की कुछ बातें छुपा लीं तो वह झूठा है। किन्तु आप ने जिब्रील (अलैहिस्सलाम) को उन के रूप में दो बार देखा। (बुख़ारीः 4855) इब्ने मसऊद ने कहा कि आप ने जिब्रील को देखा जिन के छः सौ पंख थे। (बुख़ारीः 4856)
مَا كَذَبَ الْفُؤَادُ مَا رَأَىٰ ﴾ 11 ﴿
मा क-ज़बल् – फ़ुआदु मा रआ
नहीं झुठलाया उनके दिल ने, जो कुछ उन्होंने देखा।
أَفَتُمَارُونَهُ عَلَىٰ مَا يَرَىٰ ﴾ 12 ﴿
अ-फ़तुमारूनहू अ़ला मा यरा
तो क्या तुम उनसे झगड़ते हो उसपर, जिसे वे (आँखों से) देखते हैं?
وَلَقَدْ رَآهُ نَزْلَةً أُخْرَىٰ ﴾ 13 ﴿
व ल-क़द् रआहु नज़्ल-तन् उख़्रा
निःसंदेह, उन्होंने उसे एक बार और भी उतरते देखा।
عِندَ سِدْرَةِ الْمُنتَهَىٰ ﴾ 14 ﴿
अिन्द सिद्-रतिल्-मुन्तहा
सिद्-रतुल मुन्हा[1] के पास। 1. सिद्-रतुल मुन्तहा यह छठे या सातवें आकाश पर बैरी का एक वृक्ष है। जिस तक धरती की चीज़ पहुँचती है। तथा ऊपर की चीज़ उतरती है। (सह़ीह़ मुस्लिमः 173)
عِندَهَا جَنَّةُ الْمَأْوَىٰ ﴾ 15 ﴿
अिन्-दहा जन्नतुल्-मअ्वा
जिसके पास जन्नतुल[1] मावा है। 1. यह आठ स्वर्गों में से एक का नाम है।
إِذْ يَغْشَى السِّدْرَةَ مَا يَغْشَىٰ ﴾ 16 ﴿
इज़् यग़् स् – सिद्र-त यग़्शा
जब सिद्-रह पर छा रहा था, जो कुछ छा रहा था।[1] 1. ह़दीस में है कि वह सोने के पतिंगे थे। (सह़ीह़ मुस्लिमः 173)
مَا زَاغَ الْبَصَرُ وَمَا طَغَىٰ ﴾ 17 ﴿
मा ज़ाग़ल्-ब-सरु व मा तग़ा
न तो निगाह चुंधियाई और न सीमा से आगे हुई।
لَقَدْ رَأَىٰ مِنْ آيَاتِ رَبِّهِ الْكُبْرَىٰ ﴾ 18 ﴿
ल – क़द् रआ मिन् आयाति रब्बिहिल् – कुबरा
निश्चय आपने अपने पालनहार की बड़ी निशानियाँ देखीं।[1] 1. इस में मेराज की रात आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आकाशों में अल्लाह की निशानियाँ देखने का वर्णन है।
أَفَرَأَيْتُمُ اللَّاتَ وَالْعُزَّىٰ ﴾ 19 ﴿
अ-फ़ – रऐतुमुल्ला – त वल्अुज़्ज़ा
तो (हे मुश्रिको!) क्या तुमने देख लिया लात्त तथा उज़्ज़ा को।
وَمَنَاةَ الثَّالِثَةَ الْأُخْرَىٰ ﴾ 20 ﴿
व मनातस्सालि -सतल् – उख़् -रा
तथा एक तीसरे मनात को?[1] 1. लात, उज़्ज़ा और मनात यह तीनों मक्का के मुश्रिकों की देवियों के नाम हैं। और अर्थ यह है कि क्या इन की भी कोई वास्तविक्ता है?
أَلَكُمُ الذَّكَرُ وَلَهُ الْأُنثَىٰ ﴾ 21 ﴿
अ-लकुमुज़्-ज़-करु व लहुल् – उन्सा
क्या तुम्हारे लिए पुत्र हैं और उस अल्लाह के लिए पुत्रियाँ?
تِلْكَ إِذًا قِسْمَةٌ ضِيزَىٰ ﴾ 22 ﴿
तिल्-क इज़न् क़िस्मतुन् ज़ीज़ा
ये तो बड़ा भोंडा विभाजन है।
إِنْ هِيَ إِلَّا أَسْمَاءٌ سَمَّيْتُمُوهَا أَنتُمْ وَآبَاؤُكُم مَّا أَنزَلَ اللَّهُ بِهَا مِن سُلْطَانٍ ۚ إِن يَتَّبِعُونَ إِلَّا الظَّنَّ وَمَا تَهْوَى الْأَنفُسُ ۖ وَلَقَدْ جَاءَهُم مِّن رَّبِّهِمُ الْهُدَىٰ ﴾ 23 ﴿
इन् हि-य इल्ला अस्माउन् सम्मैतुमूहा अन्तुम् व आबाउकुम् मा अन्ज़ – लल्लाहु बिहा मिन् सुल्तानिन्, इंय्यत्तबिअू न इल्लज़्ज़न-न व मा तह्वल् -अन्फ़ुसु व ल-क़द् जा-अहुम् मिर्रब्बि-हिमुल्-हुदा
वास्तव में, ये कुछ केवल नाम हैं, जो तुमने तथा तुम्हारे पूर्वजों ने रख लिये हैं। नहीं उतारा है अल्लाह ने उनका कोई प्रमाण। वे केवल अनुमान[1] पर चल रहे हैं तथा अपनी मनमानी पर। जबकि आ चुका है उनके पालनहार की ओर से मार्गदर्शन। 1. मुश्रिक अपनी मूर्तियों को अल्लाह की पुत्रियाँ कह कर उन की पूजा करते थे। जिस का यहाँ खण्डन किया जा रहा है।
أَمْ لِلْإِنسَانِ مَا تَمَنَّىٰ ﴾ 24 ﴿
अम् लिल्-इन्सानि मा तमन्ना
क्या मनुष्य को वही मिल जायेगा, जिसकी वह कामना करे?
فَلِلَّهِ الْآخِرَةُ وَالْأُولَىٰ ﴾ 25 ﴿
फ़-लिल्लाहिल्- आख़िरतु वल्-ऊला
(नहीं, ये बात नहीं है) क्योंकि अल्लाह के अधिकार में है आख़िरत (परलोक) तथा संसार।
وَكَم مِّن مَّلَكٍ فِي السَّمَاوَاتِ لَا تُغْنِي شَفَاعَتُهُمْ شَيْئًا إِلَّا مِن بَعْدِ أَن يَأْذَنَ اللَّهُ لِمَن يَشَاءُ وَيَرْضَىٰ ﴾ 26 ﴿
व कम् मिम्म-लकिन् फ़िस्समावाति ला तुग़्नी शफ़ा – अ़तुहुम् शैअन् इल्ला मिम्बअ्दि अंय्यअ्-ज़नल्लाहु लिमंय्यशा-उ व यर्जा
और आकाशों में बहुत-से फ़रिश्ते हैं, जिनकी अनुशंसा कुछ लाभ नहीं देती, परन्तु इसके पश्चात् कि अनुमति दे अल्लाह जिसके लिए चाहे तथा उससे प्रसन्न हो।[1] 1. अरब के मुश्रिक यह समझते थे कि यदि हम फ़रिश्तों की पूजा करेंगे तो वह अल्लाह से सिफ़ारिश कर के हमें यातना से मुक्त करा देंगे। इसी का खण्डन यहाँ किया जा रहा है।
إِنَّ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ لَيُسَمُّونَ الْمَلَائِكَةَ تَسْمِيَةَ الْأُنثَىٰ ﴾ 27 ﴿
इन्नल्लज़ी – न ला युअ्मिनू-न बिल्-आख़िरति ल-युसम्मूनल् -मलाइ-क-त तस्मि-यतल् – उन्सा
वास्तव में, जो ईमान नहीं लाते परलोक पर, वे नाम देते हैं फ़रिश्तों के, स्त्रियों के नाम।
وَمَا لَهُم بِهِ مِنْ عِلْمٍ ۖ إِن يَتَّبِعُونَ إِلَّا الظَّنَّ ۖ وَإِنَّ الظَّنَّ لَا يُغْنِي مِنَ الْحَقِّ شَيْئًا ﴾ 28 ﴿
व मा लहुम् बिही मिन् अिल्मिन्, इंय्यत्तबिअू-न इल्लज़्ज़न-न व इन्नज़्- ज़न्-न ला युग़्नी मिनल्–हक़्क़ि शैआ
उन्हें इसका कोई ज्ञान नहीं। वे अनुसरण कर रहे हैं मात्र गुमान का और वस्तुतः गुमान नहीं लाभप्रद होता सत्य के सामने कुछ भी।
فَأَعْرِضْ عَن مَّن تَوَلَّىٰ عَن ذِكْرِنَا وَلَمْ يُرِدْ إِلَّا الْحَيَاةَ الدُّنْيَا ﴾ 29 ﴿
फ़- अअ्-रिज़् अ़म्-मन् तवल्ला अ़न् ज़िक्रिना व लम् युरिद् इल्लल्- हयातद्-दुन्या
अतः, आप विमुख हो जायें उससे, जिसने मुँह फेर लिया है हमारी शिक्षा से तथा वह सांसारिक जीवन ही चाहता है।
ذَٰلِكَ مَبْلَغُهُم مِّنَ الْعِلْمِ ۚ إِنَّ رَبَّكَ هُوَ أَعْلَمُ بِمَن ضَلَّ عَن سَبِيلِهِ وَهُوَ أَعْلَمُ بِمَنِ اهْتَدَىٰ ﴾ 30 ﴿
ज़ालि-क मब्लग़ुहुम् मिनल्-अिल्मि, इन्-न रब्ब क हु-व अअ्लमु बिमन् ज़ल्-ल अ़न् सबीलिही व हु-व अअ्लमु बि मनिह्तदा
यही उनके ज्ञान की पहुँच है। वास्तव में, आपका पालनहार ही अधिक जानता है उसे, जो कुपथ हो गया उसके मार्ग से तथा उसे, जिसने संमार्ग अपना लिया।
وَلِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ لِيَجْزِيَ الَّذِينَ أَسَاءُوا بِمَا عَمِلُوا وَيَجْزِيَ الَّذِينَ أَحْسَنُوا بِالْحُسْنَى ﴾ 31 ﴿
व लिल्लाहि मा फ़िस्समावाति व मा फ़िल्अर्ज़ि लि-यज्ज़ि – यल्लज़ी न असाऊ बिमा अ़मिलू व यज्ज़ि -यल्लज़ी-न अह्सनू बिल्हुस्ना
तथा अल्लाह ही का है जो आकाशों तथा धरती में है, ताकि वह बदला दे उसे, जिसने बुराई की उसके कुकर्म का और बदला दे उसे, जिसने सुकर्म किया अच्छा बदला।
الَّذِينَ يَجْتَنِبُونَ كَبَائِرَ الْإِثْمِ وَالْفَوَاحِشَ إِلَّا اللَّمَمَ ۚ إِنَّ رَبَّكَ وَاسِعُ الْمَغْفِرَةِ ۚ هُوَ أَعْلَمُ بِكُمْ إِذْ أَنشَأَكُم مِّنَ الْأَرْضِ وَإِذْ أَنتُمْ أَجِنَّةٌ فِي بُطُونِ أُمَّهَاتِكُمْ ۖ فَلَا تُزَكُّوا أَنفُسَكُمْ ۖ هُوَ أَعْلَمُ بِمَنِ اتَّقَىٰ ﴾ 32 ﴿
अल्लज़ी – न यज्तनिबू-न कबाइरल्-इस्मि वल्-फ़वाहि-श इल्लल्-ल-मम्, इन्- न रब्ब-क वासिअुल्-मग़्फ़ि – रति, हु-व अअ्लमु बिकुम् इज़् अन्श-अकुम् मिनल्-अर्ज़ि व इज़् अन्तुम् अजिन्नतुन् फ़ी बुतूनि उम्म- हातिकुम् फ़ला तुज़क्कू अन्फ़ु -सकुम्, हु-व अअ्लमु बि मनित्तक़ा
उन लोगों को जो बचते हैं महा पापों तथा निर्लज्जा[1] से, कुछ चूक के सिवा। वास्तव में, आपका पालनहार उदार, क्षमाशील है। वह भली-भाँति जानता है तुम्हें, जबकि उसने पैदा किया तुम्हें धरती[2] से तथा जब तुम भ्रुण थे अपनी माताओं के गर्भ में। अतः, अपने में पवित्र न बनो। वही भली-भाँति जानता है उसे, जिसने सदाचार किया है। 1. निर्लज्जा से अभिप्राय निर्लज्जा पर आधारित कुकर्म हैं। जैसे बाल-मैथुन, व्यभिचार, नारियों का अपने सौन्दर्य का प्रदर्शन और पर्दे का त्याग, मिश्रित शिक्षा, मिश्रित सभायें, सौन्दर्य की प्रतियोगिता आदि। जिसे आधुनिक युग में सभ्यता का नाम दिया जाता है। और मुस्लिम समाज भी इस से प्रभावित हो रहा है। ह़दीस में है कि सात विनाशकारी कर्मों से बचो। 1- अल्लाह का साझी बनाने से। 2- जादू करना। 3- अकारण जान मारना। 4- मदिरा पीना। 5- अनाथ का धन खाना। 6- युध्द के दिन भागना। 7- तथा भोली-भाली पवित्र स्त्री को कलंक लगाना। (सह़ीह़ बुख़ारीः 2766, मुस्लिमः89) 2. अर्थात तुम्हारे मूल आदम (अलैहिस्सलाम) को।
أَفَرَأَيْتَ الَّذِي تَوَلَّىٰ ﴾ 33 ﴿
अ-फ़-रऐतल्लज़ी तवल्ला
तो क्या आपने उसे देखा जिसने मुँह फेर लिया?
وَأَعْطَىٰ قَلِيلًا وَأَكْدَىٰ ﴾ 34 ﴿
व अअ्ता क़लीलंव् व अक्दा
और तनिक दान किया फिर रुक गया।
أَعِندَهُ عِلْمُ الْغَيْبِ فَهُوَ يَرَىٰ ﴾ 35 ﴿
अ – ज़िन्दहू अिल्मुल्- ग़ैबि फ़हु-व यरा
क्या उसके पास परोक्ष का ज्ञान है कि वह (सब कुछ) देख[1] रहा है? 1. इस आयत में जो परम्परागत धर्म को मोक्ष का साधन समझता है उस से कहा जा रहा है कि क्या वह जानता है कि प्रलय के दिन इतने ही से सफल हो जायेगा? जब कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) वह़्यी के आधार पर जो परस्तु कर रहे हैं वही सत्य है। और अल्लाह की वह़्यी ही परोक्ष के ज्ञान का साधन है।
أَمْ لَمْ يُنَبَّأْ بِمَا فِي صُحُفِ مُوسَىٰ ﴾ 36 ﴿
अम् लम् युनब्बअ् बिमा फ़ी सुहुफ़ि मूसा
क्या उसे सूचना नहीं हुई उन बातों की, जो मूसा के ग्रन्थों में हैं?
وَإِبْرَاهِيمَ الَّذِي وَفَّىٰ ﴾ 37 ﴿
व इब्राहीमल्लज़ी वफ़्फ़ा
और इब्राहीम की, जिसने (अपना वचन) पूरा कर दिया।
أَلَّا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَىٰ ﴾ 38 ﴿
अल्ला तज़िरु वाज़ि-रतुंव्-विज़्-र उख़्रा
कि कोई दूसरे का भार नहीं लादेगा।
وَأَن لَّيْسَ لِلْإِنسَانِ إِلَّا مَا سَعَىٰ ﴾ 39 ﴿
व अल्लै-स लिल्-इन्सानि इल्ला मा सआ़
और ये कि मनुष्य के लिए वही है, जो उसने प्रयास किया।
وَأَنَّ سَعْيَهُ سَوْفَ يُرَىٰ ﴾ 40 ﴿
व अन्न सअ्-यहू सौ-फ़ युरा
और ये कि उसका प्रयास शीघ्र देखा जायेगा।
ثُمَّ يُجْزَاهُ الْجَزَاءَ الْأَوْفَىٰ ﴾ 41 ﴿
सुम्-म युज्ज़ाहुल्-जज़ाअल्-औफ़ा
फिर प्रतिफल दिया जायेगा उसे पूरा प्रतिफल।
وَأَنَّ إِلَىٰ رَبِّكَ الْمُنتَهَىٰ ﴾ 42 ﴿
व अन्- न इला रब्बिकल् – मुन्तहा
और ये कि आपके पालनहार की ओर ही (सबको) पहुँचना है।
وَأَنَّهُ هُوَ أَضْحَكَ وَأَبْكَىٰ ﴾ 43 ﴿
व अन्नहू हु-व अज़्ह-क व अब्का
तथा वही है, जिसने (संसार में) हँसाया तथा रुलाया।
وَأَنَّهُ هُوَ أَمَاتَ وَأَحْيَا ﴾ 44 ﴿
व अन्नहू हु-व अमा-त व अह्या
तथा उसीने मारा और जिवाया।
وَأَنَّهُ خَلَقَ الزَّوْجَيْنِ الذَّكَرَ وَالْأُنثَىٰ ﴾ 45 ﴿
व अन्नहू ख़-लक़ज़्ज़ौजैनिज़्ज़-क-र वल्-उन्सा
तथा उसीने दोनों प्रकार उत्पन्न किये; नर और नारी।
مِن نُّطْفَةٍ إِذَا تُمْنَىٰ ﴾ 46 ﴿
मिन्-नुत्फ़्तिन् इज़ा तुम्ना
वीर्य से, जब (गर्भाशय में) गिरा।
وَأَنَّ عَلَيْهِ النَّشْأَةَ الْأُخْرَىٰ ﴾ 47 ﴿
व अन्-न अ़लैहिन्-नश-अतल्-उख़्रा
तथा उसी के ऊपर दूसरी बार[1] उत्पन्न करना है। 1. अर्थात प्रलय के दिन प्रतिफल प्रदान करने के लिये।
وَأَنَّهُ هُوَ أَغْنَىٰ وَأَقْنَىٰ ﴾ 48 ﴿
व अन्नहू हु व अ़ग्ना व अक़्ना
तथा उसीने धनी बनाया और धन दिया।
وَأَنَّهُ هُوَ رَبُّ الشِّعْرَىٰ ﴾ 49 ﴿
व अन्नहू हु-व रब्बुश्- शिअ्-रा
और वही शेअरा[1] का स्वामी है। 1. शेअरा एक तारे का नाम है। जिस की पूजा कुछ अरब के लोग किया करते थे। (इब्ने कसीर) अर्थ यह है कि यह तारा पूज्य नहीं, वास्तविक पूज्य उस का स्वामी अल्लाह है।
وَأَنَّهُ أَهْلَكَ عَادًا الْأُولَىٰ ﴾ 50 ﴿
व अन्नहू अह्ल-क आ़-द- निल्ऊला
तथा उसीने ध्वस्त किया प्रथम[1] आद को। 1. यह हूद (अलैहिस्सलाम) की जाति थे।
وَثَمُودَ فَمَا أَبْقَىٰ ﴾ 51 ﴿
व समू-द फ़मा अब्का
तथा समूद[1] को। किसी को शेष नहीं रखा। 1. अर्थात सालेह अलैहिस्सलाम की जाति को।
وَقَوْمَ نُوحٍ مِّن قَبْلُ ۖ إِنَّهُمْ كَانُوا هُمْ أَظْلَمَ وَأَطْغَىٰ ﴾ 52 ﴿
व क़ौ-म नूहिम्-मिन् क़ब्लु इन्नहुम् कानू हुम् अज़्ल-म व अत्ग़ा
तथा नूह़ की जाति को इससे पहले, वस्तुतः, वे बड़े अत्याचारी, अवज्ञाकारी थे।
وَالْمُؤْتَفِكَةَ أَهْوَىٰ ﴾ 53 ﴿
वल्-मुअ्तफ़ि-क-त अह्वा
तथा औंधी की हुई बस्ती[1] को उसने गिरा दिया। 1. अर्थात लूत अलैहिस्सलमा की जाति कि बस्तियों को।
فَغَشَّاهَا مَا غَشَّىٰ ﴾ 54 ﴿
फ़-ग़श्शाहा मा ग़श्शा
फिर उसपर छा दिया, जो छा[1] दिया। 1. अर्थात पत्थरों की वर्षा कर के उन की बस्ती को ढाँक दिया।
فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكَ تَتَمَارَىٰ ﴾ 55 ﴿
फ़बिअय्यि आला-इ रब्बि-क त-तमारा
तो (हे मनुष्य!) तू अपने पालनहार के किन किन पुरस्कारों में संदेह करता रहेगा?
هَٰذَا نَذِيرٌ مِّنَ النُّذُرِ الْأُولَىٰ ﴾ 56 ﴿
हाज़ा नज़ीरुम् मिनन्-नुज़ुरिल्-ऊला
ये[1] सचेतकर्ता है, प्रथम सचेतकर्ताओं में से। 1. अर्थात मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) भी एक रसूल हैं प्रथम रसूलों के समान।
أَزِفَتِ الْآزِفَةُ ﴾ 57 ﴿
अज़ि-फ़तिल्-आज़िफ़ह्
समीप आ लगी समीप आने वाली।
لَيْسَ لَهَا مِن دُونِ اللَّهِ كَاشِفَةٌ ﴾ 58 ﴿
लै-स लहा मिन् दूनिल्लाहि काशिफ़ह्
नहीं है अल्लाह के सिवा उसे कोई दूर करने वाला।
أَفَمِنْ هَٰذَا الْحَدِيثِ تَعْجَبُونَ ﴾ 59 ﴿
अ-फ़- मिन् हाज़ल्-हदीसि तअ्जबून
तो क्या तुम इस[1] क़ुर्आन पर आश्चर्य करते हो?
وَتَضْحَكُونَ وَلَا تَبْكُونَ ﴾ 60 ﴿
व तज़्हकू-न व ला तब्कून
तथा हँसते हो और रोते नहीं।
وَأَنتُمْ سَامِدُونَ ﴾ 61 ﴿
व अन्तुम् सामिदून
तथा विमुख हो रहे हो।
فَاسْجُدُوا لِلَّهِ وَاعْبُدُوا ۩ ﴾ 62 ﴿
फ़स्जुदू लिल्लाहि वअ्बुदू *सज्दा*
अतः, सज्दा करो अल्लाह के लिए तथा उसी की वंदना[1] करो। 1. ह़दीस में है कि जब सज्दे की प्रथम सूरह "नज्म" उतरी तो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और जो आप के पास थे सब ने सज्दा किया एक व्यक्ति के सिवा। उस ने कुछ धूल ली, और उस पर सज्दा किया। तो मैं ने इस के पश्चात् देखा कि वह काफ़िर रहते हुये मारा गया। और वह उमैया बिन ख़लफ़ है। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4863)