﴾ 1 ﴿ शपथ है तारे की, जब वह डूबने लगे!
﴾ 2 ﴿ नहीं कुपथ हुआ है तुम्हारा साथी और न कुमार्ग हुआ है।
﴾ 3 ﴿ और वह नहीं बोलते अपनी इच्छा से।
﴾ 4 ﴿ वह तो बस वह़्यी (प्रकाशना) है। जो (उनकी ओर) की जाती है।
﴾ 5 ﴿ सिखाया है जिसे उन्हें शक्तिवान ने।[1]
1. इस से अभिप्राय जिब्रील (अलैहिस्सलाम) हैं जो वह़्यी लाते थे।
﴾ 6 ﴿ बड़े बलशाली ने, फिर वह सीधा खड़ा हो गया।
﴾ 7 ﴿ तथा वह आकाश के ऊपरी किनारे पर था।
﴾ 8 ﴿ फिर समीप हुआ और फिर लटक गया।
﴾ 9 ﴿ फिर हो गया दो कमान के बराबर अथवा उससे भी समीप।
﴾ 10 ﴿ फिर उसने वह़्यी की उस (अल्लाह) के भक्त[1] की ओर, जो भी वह़्यी की।
1. अर्थात मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की ओर। इन आयतों में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के जिब्रील (फरिश्ते) को उन के वास्तविक रूप में दो बार देखने का वर्णन है। आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) ने कहाः जो कहे कि मुह़म्मद (सल्लल्लहु अलैहि व सल्लम) ने अल्लाह को देखा है तो वह झूठा है। और जो कहे कि आप कल (भविष्य) की बात जानते थे तो वह झूठा है। तथा जो कहे कि आप ने धर्म की कुछ बातें छुपा लीं तो वह झूठा है। किन्तु आप ने जिब्रील (अलैहिस्सलाम) को उन के रूप में दो बार देखा। (बुख़ारीः 4855) इब्ने मसऊद ने कहा कि आप ने जिब्रील को देखा जिन के छः सौ पंख थे। (बुख़ारीः 4856)
﴾ 11 ﴿ नहीं झुठलाया उनके दिल ने, जो कुछ उन्होंने देखा।
﴾ 12 ﴿ तो क्या तुम उनसे झगड़ते हो उसपर, जिसे वे (आँखों से) देखते हैं?
﴾ 13 ﴿ निःसंदेह, उन्होंने उसे एक बार और भी उतरते देखा।
﴾ 14 ﴿ सिद्-रतुल मुन्हा[1] के पास।
1. सिद्-रतुल मुन्तहा यह छठे या सातवें आकाश पर बैरी का एक वृक्ष है। जिस तक धरती की चीज़ पहुँचती है। तथा ऊपर की चीज़ उतरती है। (सह़ीह़ मुस्लिमः 173)
﴾ 15 ﴿ जिसके पास जन्नतुल[1] मावा है।
1. यह आठ स्वर्गों में से एक का नाम है।
﴾ 16 ﴿ जब सिद्-रह पर छा रहा था, जो कुछ छा रहा था।[1]
1. ह़दीस में है कि वह सोने के पतिंगे थे। (सह़ीह़ मुस्लिमः 173)
﴾ 17 ﴿ न तो निगाह चुंधियाई और न सीमा से आगे हुई।
﴾ 18 ﴿ निश्चय आपने अपने पालनहार की बड़ी निशानियाँ देखीं।[1]
1. इस में मेराज की रात आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आकाशों में अल्लाह की निशानियाँ देखने का वर्णन है।
﴾ 19 ﴿ तो (हे मुश्रिको!) क्या तुमने देख लिया लात्त तथा उज़्ज़ा को।
﴾ 20 ﴿ तथा एक तीसरे मनात को?[1]
1. लात, उज़्ज़ा और मनात यह तीनों मक्का के मुश्रिकों की देवियों के नाम हैं। और अर्थ यह है कि क्या इन की भी कोई वास्तविक्ता है?
﴾ 21 ﴿ क्या तुम्हारे लिए पुत्र हैं और उस अल्लाह के लिए पुत्रियाँ?
﴾ 22 ﴿ ये तो बड़ा भोंडा विभाजन है।
﴾ 23 ﴿ वास्तव में, ये कुछ केवल नाम हैं, जो तुमने तथा तुम्हारे पूर्वजों ने रख लिये हैं। नहीं उतारा है अल्लाह ने उनका कोई प्रमाण। वे केवल अनुमान[1] पर चल रहे हैं तथा अपनी मनमानी पर। जबकि आ चुका है उनके पालनहार की ओर से मार्गदर्शन।
1. मुश्रिक अपनी मूर्तियों को अल्लाह की पुत्रियाँ कह कर उन की पूजा करते थे। जिस का यहाँ खण्डन किया जा रहा है।
﴾ 24 ﴿ क्या मनुष्य को वही मिल जायेगा, जिसकी वह कामना करे?
﴾ 25 ﴿ (नहीं, ये बात नहीं है) क्योंकि अल्लाह के अधिकार में है आख़िरत (परलोक) तथा संसार।
﴾ 26 ﴿ और आकाशों में बहुत-से फ़रिश्ते हैं, जिनकी अनुशंसा कुछ लाभ नहीं देती, परन्तु इसके पश्चात् कि अनुमति दे अल्लाह जिसके लिए चाहे तथा उससे प्रसन्न हो।[1]
1. अरब के मुश्रिक यह समझते थे कि यदि हम फ़रिश्तों की पूजा करेंगे तो वह अल्लाह से सिफ़ारिश कर के हमें यातना से मुक्त करा देंगे। इसी का खण्डन यहाँ किया जा रहा है।
﴾ 27 ﴿ वास्तव में, जो ईमान नहीं लाते परलोक पर, वे नाम देते हैं फ़रिश्तों के, स्त्रियों के नाम।
﴾ 28 ﴿ उन्हें इसका कोई ज्ञान नहीं। वे अनुसरण कर रहे हैं मात्र गुमान का और वस्तुतः गुमान नहीं लाभप्रद होता सत्य के सामने कुछ भी।
﴾ 29 ﴿ अतः, आप विमुख हो जायें उससे, जिसने मुँह फेर लिया है हमारी शिक्षा से तथा वह सांसारिक जीवन ही चाहता है।
﴾ 30 ﴿ यही उनके ज्ञान की पहुँच है। वास्तव में, आपका पालनहार ही अधिक जानता है उसे, जो कुपथ हो गया उसके मार्ग से तथा उसे, जिसने संमार्ग अपना लिया।
﴾ 31 ﴿ तथा अल्लाह ही का है जो आकाशों तथा धरती में है, ताकि वह बदला दे उसे, जिसने बुराई की उसके कुकर्म का और बदला दे उसे, जिसने सुकर्म किया अच्छा बदला।
﴾ 32 ﴿ उन लोगों को जो बचते हैं महा पापों तथा निर्लज्जा[1] से, कुछ चूक के सिवा। वास्तव में, आपका पालनहार उदार, क्षमाशील है। वह भली-भाँति जानता है तुम्हें, जबकि उसने पैदा किया तुम्हें धरती[2] से तथा जब तुम भ्रुण थे अपनी माताओं के गर्भ में। अतः, अपने में पवित्र न बनो। वही भली-भाँति जानता है उसे, जिसने सदाचार किया है।
1. निर्लज्जा से अभिप्राय निर्लज्जा पर आधारित कुकर्म हैं। जैसे बाल-मैथुन, व्यभिचार, नारियों का अपने सौन्दर्य का प्रदर्शन और पर्दे का त्याग, मिश्रित शिक्षा, मिश्रित सभायें, सौन्दर्य की प्रतियोगिता आदि। जिसे आधुनिक युग में सभ्यता का नाम दिया जाता है। और मुस्लिम समाज भी इस से प्रभावित हो रहा है। ह़दीस में है कि सात विनाशकारी कर्मों से बचो। 1- अल्लाह का साझी बनाने से। 2- जादू करना। 3- अकारण जान मारना। 4- मदिरा पीना। 5- अनाथ का धन खाना। 6- युध्द के दिन भागना। 7- तथा भोली-भाली पवित्र स्त्री को कलंक लगाना। (सह़ीह़ बुख़ारीः 2766, मुस्लिमः89) 2. अर्थात तुम्हारे मूल आदम (अलैहिस्सलाम) को।
﴾ 33 ﴿ तो क्या आपने उसे देखा जिसने मुँह फेर लिया?
﴾ 34 ﴿ और तनिक दान किया फिर रुक गया।
﴾ 35 ﴿ क्या उसके पास परोक्ष का ज्ञान है कि वह (सब कुछ) देख[1] रहा है?
1. इस आयत में जो परम्परागत धर्म को मोक्ष का साधन समझता है उस से कहा जा रहा है कि क्या वह जानता है कि प्रलय के दिन इतने ही से सफल हो जायेगा? जब कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) वह़्यी के आधार पर जो परस्तु कर रहे हैं वही सत्य है। और अल्लाह की वह़्यी ही परोक्ष के ज्ञान का साधन है।
﴾ 36 ﴿ क्या उसे सूचना नहीं हुई उन बातों की, जो मूसा के ग्रन्थों में हैं?
﴾ 37 ﴿ और इब्राहीम की, जिसने (अपना वचन) पूरा कर दिया।
﴾ 38 ﴿ कि कोई दूसरे का भार नहीं लादेगा।
﴾ 39 ﴿ और ये कि मनुष्य के लिए वही है, जो उसने प्रयास किया।
﴾ 40 ﴿ और ये कि उसका प्रयास शीघ्र देखा जायेगा।
﴾ 41 ﴿ फिर प्रतिफल दिया जायेगा उसे पूरा प्रतिफल।
﴾ 42 ﴿ और ये कि आपके पालनहार की ओर ही (सबको) पहुँचना है।
﴾ 43 ﴿ तथा वही है, जिसने (संसार में) हँसाया तथा रुलाया।
﴾ 44 ﴿ तथा उसीने मारा और जिवाया।
﴾ 45 ﴿ तथा उसीने दोनों प्रकार उत्पन्न किये; नर और नारी।
﴾ 46 ﴿ वीर्य से, जब (गर्भाशय में) गिरा।
﴾ 47 ﴿ तथा उसी के ऊपर दूसरी बार[1] उत्पन्न करना है।
1. अर्थात प्रलय के दिन प्रतिफल प्रदान करने के लिये।
﴾ 48 ﴿ तथा उसीने धनी बनाया और धन दिया।
﴾ 49 ﴿ और वही शेअरा[1] का स्वामी है।
1. शेअरा एक तारे का नाम है। जिस की पूजा कुछ अरब के लोग किया करते थे। (इब्ने कसीर) अर्थ यह है कि यह तारा पूज्य नहीं, वास्तविक पूज्य उस का स्वामी अल्लाह है।
﴾ 50 ﴿ तथा उसीने ध्वस्त किया प्रथम[1] आद को।
1. यह हूद (अलैहिस्सलाम) की जाति थे।
﴾ 51 ﴿ तथा समूद[1] को। किसी को शेष नहीं रखा।
1. अर्थात सालेह अलैहिस्सलाम की जाति को।
﴾ 52 ﴿ तथा नूह़ की जाति को इससे पहले, वस्तुतः, वे बड़े अत्याचारी, अवज्ञाकारी थे।
﴾ 53 ﴿ तथा औंधी की हुई बस्ती[1] को उसने गिरा दिया।
1. अर्थात लूत अलैहिस्सलमा की जाति कि बस्तियों को।
﴾ 54 ﴿ फिर उसपर छा दिया, जो छा[1] दिया।
1. अर्थात पत्थरों की वर्षा कर के उन की बस्ती को ढाँक दिया।
﴾ 55 ﴿ तो (हे मनुष्य!) तू अपने पालनहार के किन किन पुरस्कारों में संदेह करता रहेगा?
﴾ 56 ﴿ ये[1] सचेतकर्ता है, प्रथम सचेतकर्ताओं में से।
1. अर्थात मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) भी एक रसूल हैं प्रथम रसूलों के समान।
﴾ 57 ﴿ समीप आ लगी समीप आने वाली।
﴾ 58 ﴿ नहीं है अल्लाह के सिवा उसे कोई दूर करने वाला।
﴾ 59 ﴿ तो क्या तुम इस[1] क़ुर्आन पर आश्चर्य करते हो?
﴾ 60 ﴿ तथा हँसते हो और रोते नहीं।
﴾ 61 ﴿ तथा विमुख हो रहे हो।
﴾ 62 ﴿ अतः, सज्दा करो अल्लाह के लिए तथा उसी की वंदना[1] करो।
1. ह़दीस में है कि जब सज्दे की प्रथम सूरह “नज्म” उतरी तो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और जो आप के पास थे सब ने सज्दा किया एक व्यक्ति के सिवा। उस ने कुछ धूल ली, और उस पर सज्दा किया। तो मैं ने इस के पश्चात् देखा कि वह काफ़िर रहते हुये मारा गया। और वह उमैया बिन ख़लफ़ है। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4863)