सूरह वाकिआ के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है, इस में 96 आयत है।
- वाकिआ प्रलय का एक नाम है। जो इस सूरह की प्रथम आयत में आया है। जिस के कारण इस का यह नाम रखा गया है।
- इस में प्रलय का भ्यावः चित्रण है जिस में लोगों को तीन भागों में कर दिया जायेगा। फिर प्रत्येक के परिणाम को बताया गया है।और उन तथ्यों का वर्णन किया गया है जिन से प्रतिफल के प्रति विश्वास होता है।
- सूरह के अन्त में कुन से विमुख होने पर झंझोंड़ा गया है कि कुन जो प्रलय तथा प्रतिफल की बातें बता रहा है वह सर्वथा अल्लाह का संदेश है। उस में शैतान का कोई हस्तक्षेप नहीं है।
- अन्त में मौत के समय की विवशता का वर्णन करते हुये अन्तिम परिणाम से सावधान किया गया है।
सूरह वाकिया हिंदी में | Surah Waqiah
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
إِذَا وَقَعَتِ الْوَاقِعَةُ ﴾ 1 ﴿
इज़ा वक़ अतिल वाक़िअह
जब होने वाली, हो जायेगी।
لَيْسَ لِوَقْعَتِهَا كَاذِبَةٌ ﴾ 2 ﴿
लैसा लिवक़ अतिहा काज़िबह
उसका होना कोई झूठ नहीं है।
خَافِضَةٌ رَّافِعَةٌ ﴾ 3 ﴿
खाफिज़तुर राफि अह
नीचा-ऊँचा करने[1] वाली। 1. इस से अभिप्राय प्रलय है। जो सत्य के विरोधियों को नीचा कर के नरक तक पहुँचायेगी। तथा आज्ञाकारियों को स्वर्ग के ऊँचे स्थान तक पहुँचायेगी। आरंभिक आयतों में प्रलय के होने की चर्चा, फिर उस दिन लोगों के तीन भागों में विभाजित होने का वर्णन किया गया है।
إِذَا رُجَّتِ الْأَرْضُ رَجًّا ﴾ 4 ﴿
इज़ा रुज्जतिल अरजु रज्जा
जब धरती तेज़ी से डोलने लगेगी।
وَبُسَّتِ الْجِبَالُ بَسًّا ﴾ 5 ﴿
व बुस्सतिल जिबालु बस्सा
और चूर-चूर कर दिये जायेंगे पर्वत।
فَكَانَتْ هَبَاءً مُّنبَثًّا ﴾ 6 ﴿
फकानत हबा अम मुम्बस्सा
फिर हो जायेंगे बिखरी हुई धूल।
وَكُنتُمْ أَزْوَاجًا ثَلَاثَةً ﴾ 7 ﴿
व कुन्तुम अज़वाजन सलासह
तथा तुम हो जाओगे तीन समूह।
فَأَصْحَابُ الْمَيْمَنَةِ مَا أَصْحَابُ الْمَيْمَنَةِ ﴾ 8 ﴿
फ अस्हाबुल मय्मनति मा अस्हाबुल मय्मनह
तो दायें वाले, तो क्या हैं दायें वाले![1] 1. दायें वाले से अभिप्राय वह हैं जिन का कर्मपत्र दायें हाथ में दिया जायेगा। तथा बायें वाले वह दुराचारी होंगे जिन का कर्मपत्र बायें हाथ में दिया जायेगा।
وَأَصْحَابُ الْمَشْأَمَةِ مَا أَصْحَابُ الْمَشْأَمَةِ ﴾ 9 ﴿
व अस्हाबुल मश अमति, मा अस्हाबुल मश अमह
और बायें वाले, तो क्या हैं बायें वाले!
وَالسَّابِقُونَ السَّابِقُونَ ﴾ 10 ﴿
वस साबिक़ूनस साबिक़ून
और अग्रगामी तो अग्रगामी ही हैं।
أُولَٰئِكَ الْمُقَرَّبُونَ ﴾ 11 ﴿
उला इकल मुक़र्रबून
वही समीप किये[1] हुए हैं। 1. अर्थात अल्लाह के प्रियवर और उस के समीप होंगे।
فِي جَنَّاتِ النَّعِيمِ ﴾ 12 ﴿
फ़ी जन्नातिन नईम
वे सुखों के स्वर्गों में होंगे।
ثُلَّةٌ مِّنَ الْأَوَّلِينَ ﴾ 13 ﴿
सुल्लतुम मिनल अव्वलीन
बहुत-से अगले लोगों में से।
وَقَلِيلٌ مِّنَ الْآخِرِينَ ﴾ 14 ﴿
व क़लीलुम मिनल आख़िरीन
तथा कुछ पिछले लोगों में से होंगे।
عَلَىٰ سُرُرٍ مَّوْضُونَةٍ ﴾ 15 ﴿
अला सुरुरिम मौज़ूनह
स्वर्ण से बुने हुए तख़्तों पर।
مُّتَّكِئِينَ عَلَيْهَا مُتَقَابِلِينَ ﴾ 16 ﴿
मुत्तकि ईना अलैहा मुतक़ाबिलीन
तकिये लगाये उनपर, एक-दूसरे के सम्मुख (आसीन) होंगे।
يَطُوفُ عَلَيْهِمْ وِلْدَانٌ مُّخَلَّدُونَ ﴾ 17 ﴿
यतूफु अलैहिम विल्दानुम मुखल्लदून
फिरते होंगे उनकी सेवा के लिए बालक, जो सदा (बालक) रहेंगे।
بِأَكْوَابٍ وَأَبَارِيقَ وَكَأْسٍ مِّن مَّعِينٍ ﴾ 18 ﴿
बिअक्वाबिव व अबारीक़ा, व कअ’सिम मिम मईन
प्याले तथा सुराह़ियाँ लेकर तथा मदिरा के छलकते प्याले।
لَّا يُصَدَّعُونَ عَنْهَا وَلَا يُنزِفُونَ ﴾ 19 ﴿
ला युसद्द ऊना अन्हा वला युन्ज़िफून
न तो सिर चकरायेगा उनसे, न वे निर्बोध होंगे।
وَفَاكِهَةٍ مِّمَّا يَتَخَيَّرُونَ ﴾ 20 ﴿
व फाकिहतिम मिम्मा यता खैय्यरून
तथा जो फल वे चाहेंगे।
وَلَحْمِ طَيْرٍ مِّمَّا يَشْتَهُونَ ﴾ 21 ﴿
वलहमि तैरिम मिम्मा यश तहून
तथा पक्षी का जो मांस वे चाहेंगे।
كَأَمْثَالِ اللُّؤْلُؤِ الْمَكْنُونِ ﴾ 23 ﴿
कअम्सा लिल लुअ’लु इल मक्नून
छुपाकर रखी हुईं मोतियों के समान।
جَزَاءً بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ ﴾ 24 ﴿
जज़ा अम बिमा कानू यअ’मलून
उसके बदले, जो वे (संसार में) करते रहे।
لَا يَسْمَعُونَ فِيهَا لَغْوًا وَلَا تَأْثِيمًا ﴾ 25 ﴿
ला यस्मऊना फ़ीहा लग़्वव वला तअ्सीमा
नहीं सुनेंगे उनमें व्यर्थ बात और न पाप की बात।
إِلَّا قِيلًا سَلَامًا سَلَامًا ﴾ 26 ﴿
इल्ला कीलन सलामन सलामा
केवल सलाम ही सलाम की ध्वनि होगी।
وَأَصْحَابُ الْيَمِينِ مَا أَصْحَابُ الْيَمِينِ ﴾ 27 ﴿
व अस्हाबुल यामीनि, मा अस्हाबुल यमीन
और दायें वाले, क्या (ही भाग्यशाली) हैं दायें वाले!
فِي سِدْرٍ مَّخْضُودٍ ﴾ 28 ﴿
फ़ी सिदरिम मख्ज़ूद
बिन काँटे की बैरी में होंगे।
وَطَلْحٍ مَّنضُودٍ ﴾ 29 ﴿
व तल्हिम मन्ज़ूद
तथा तह पर तह केलों में।
وَظِلٍّ مَّمْدُودٍ ﴾ 30 ﴿
व ज़िल्लिम मम्दूद
फैली हुई छाया[1] में। 1. ह़दीस में है कि स्वर्ग में एक वृक्ष है जिस की छाया में सवार सौ वर्ष चलेगा फिर भी वह समाप्त नहीं होगा। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4881)
وَفَاكِهَةٍ كَثِيرَةٍ ﴾ 32 ﴿
व फाकिहतिन कसीरह
तथा बहुत-से फलों में।
لَّا مَقْطُوعَةٍ وَلَا مَمْنُوعَةٍ ﴾ 33 ﴿
ला मक़्तू अतिव वला ममनूअह
जो न समाप्त होंगे, न रोके जायेंगे।
وَفُرُشٍ مَّرْفُوعَةٍ ﴾ 34 ﴿
व फुरुशिम मरफूअह
और ऊँचे बिस्तर पर।
إِنَّا أَنشَأْنَاهُنَّ إِنشَاءً ﴾ 35 ﴿
इन्ना अनशअ नाहुन्ना इंशाआ
हमने बनाया है (उनकी) पत्नियों को एक विशेष रूप से।
فَجَعَلْنَاهُنَّ أَبْكَارًا ﴾ 36 ﴿
फज अल्नाहुन्ना अब्कारा
हमने बनाय है उन्हें कुमारियाँ।
لِّأَصْحَابِ الْيَمِينِ ﴾ 38 ﴿
लि अस्हाबिल यमीन
दाहिने वालों के लिए।
ثُلَّةٌ مِّنَ الْأَوَّلِينَ ﴾ 39 ﴿
सुल्लतुम मिनल अव्वलीन
बहुत-से अगलों में से होंगे।
وَثُلَّةٌ مِّنَ الْآخِرِينَ ﴾ 40 ﴿
वसुल्लतुम मिनल आख़िरीन
तथा बहुत-से पिछलों में से।
وَأَصْحَابُ الشِّمَالِ مَا أَصْحَابُ الشِّمَالِ ﴾ 41 ﴿
व अस्हाबुश शिमालि, मा अस्हाबुश शिमाल
और बायें वाले, तो क्या हैं बायें वाले!
فِي سَمُومٍ وَحَمِيمٍ ﴾ 42 ﴿
फ़ी समूमिव व हमीम
वे गर्म वायु तथा खौलते जल में (होंगे)।
وَظِلٍّ مِّن يَحْمُومٍ ﴾ 43 ﴿
व ज़िल्लिम मिय यहमूम
तथा काले धुवें की छाया में।
لَّا بَارِدٍ وَلَا كَرِيمٍ ﴾ 44 ﴿
ला बारिदिव वला करीम
जो न शीतल होगा और न सुखद।
إِنَّهُمْ كَانُوا قَبْلَ ذَٰلِكَ مُتْرَفِينَ ﴾ 45 ﴿
इन्नहुम कानू क़ब्ला ज़ालिका मुतरफीन
वास्तव में, वे इससे पहले (संसार में) सम्पन्न (सुखी) थे।
وَكَانُوا يُصِرُّونَ عَلَى الْحِنثِ الْعَظِيمِ ﴾ 46 ﴿
व कानू युसिर्रूना अलल हिन्सिल अज़ीम
तथा दुराग्रह करते थे महा पापों पर।
وَكَانُوا يَقُولُونَ أَئِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا وَعِظَامًا أَإِنَّا لَمَبْعُوثُونَ ﴾ 47 ﴿
व कानू यक़ूलूना, अ इज़ा मितना व कुन्ना तुराबव व इज़ामन अ इन्ना लमब ऊसून
तथा कहा करते थे कि क्या जब हम मर जायेंगे तथा हो जायेंगे धूल और अस्थियाँ, तो क्या हम अवश्य पुनः जीवित होंगे?
أَوَآبَاؤُنَا الْأَوَّلُونَ ﴾ 48 ﴿
अवा आबाउनल अव्वलून
और क्या हमारे पूर्वज (भी)?
قُلْ إِنَّ الْأَوَّلِينَ وَالْآخِرِينَ ﴾ 49 ﴿
क़ुल इन्नल अव्वलीना वल आख़िरीन
आप कह दें कि निःसंदेह सब अगले तथा पिछले।
لَمَجْمُوعُونَ إِلَىٰ مِيقَاتِ يَوْمٍ مَّعْلُومٍ ﴾ 50 ﴿
लमज मूऊना, इला मीक़ाति यौमिम मअ्लूम
अवश्य एकत्र किये जायेंगे एक निर्धारित दिन के समय।
ثُمَّ إِنَّكُمْ أَيُّهَا الضَّالُّونَ الْمُكَذِّبُونَ ﴾ 51 ﴿
सुम्मा इन्नकुम अय्युहज़ ज़ाल्लूनल मुकज़्ज़िबून
फिर तुम, हे कुपथो! झुठलाने वालो!
لَآكِلُونَ مِن شَجَرٍ مِّن زَقُّومٍ ﴾ 52 ﴿
ल आकिलूना मिन शजरिम मिन ज़क़्क़ूम
अवश्य खाने वाले हो ज़क़्क़ूम (थोहड़) के वृक्ष से।[1] 1. (देखियेः सूरह साफ़्फ़ात, आयतः62)
فَمَالِئُونَ مِنْهَا الْبُطُونَ ﴾ 53 ﴿
फ मालिऊना मिन्हल बुतून
तथा भरने वाले हो उससे (अपने) उदर।
فَشَارِبُونَ عَلَيْهِ مِنَ الْحَمِيمِ ﴾ 54 ﴿
फ शारिबूना अलैहि मिनल हमीम
तथा पीने वाले हो उसपर से खौलता जल।
فَشَارِبُونَ شُرْبَ الْهِيمِ ﴾ 55 ﴿
फ शारिबूना शुरबल हीम
फिर पीने वाले हो प्यासे[1] ऊँट के समान। 1. आयत में प्यासे ऊँटों के लिये 'ह़ीम' शब्द प्रयुक्त हुआ है। यह ऊँट में एक विशेष रोग होता है जिस से उस की प्यास नहीं जाती।
هَٰذَا نُزُلُهُمْ يَوْمَ الدِّينِ ﴾ 56 ﴿
हाज़ा नुज़ुलुहुम यौमद् दीन
यही उनका अतिथि सत्कार है, प्रतिकार (प्रलय) के दिन।
نَحْنُ خَلَقْنَاكُمْ فَلَوْلَا تُصَدِّقُونَ ﴾ 57 ﴿
नहनु खलक़्नाकुम फलौला तुसद्दिक़ून
हमने ही उत्पन्न किया है तुम्हें, फिर तुम विश्वास क्यों नहीं करते?
أَفَرَأَيْتُم مَّا تُمْنُونَ ﴾ 58 ﴿
अफा रअय्तुम मा तुम्नून
क्या तुमने ये विचार किया कि जो वीर्य तुम (गर्भाशयों में) गिराते हो।
أَأَنتُمْ تَخْلُقُونَهُ أَمْ نَحْنُ الْخَالِقُونَ ﴾ 59 ﴿
अ अन्तुम तख्लुक़ूनहु अम नहनुल खालिक़ून
क्या तुम उसे शिशु बनाते हो या हम बनाने वाले हैं?
نَحْنُ قَدَّرْنَا بَيْنَكُمُ الْمَوْتَ وَمَا نَحْنُ بِمَسْبُوقِينَ ﴾ 60 ﴿
नहनु क़द्दरना बय्नकुमुल मौता वमा नहनु बिमस्बूक़ीन
हमने निर्धारित किया है तुम्हारे बीच मरण को तथा हम विवश होने वाले नहीं हैं।
عَلَىٰ أَن نُّبَدِّلَ أَمْثَالَكُمْ وَنُنشِئَكُمْ فِي مَا لَا تَعْلَمُونَ ﴾ 61 ﴿
अला अन नुबददिला अम्सालकुम व नुन्शिअकुम फ़ी माला तअ’लमून
कि बदल दें तुम्हारे रूप और तुम्हें बना दें उस रूप में, जिसे तुम नहीं जानते।
وَلَقَدْ عَلِمْتُمُ النَّشْأَةَ الْأُولَىٰ فَلَوْلَا تَذَكَّرُونَ ﴾ 62 ﴿
व लक़द अलिम्तुमुन नश अतल ऊला फलौला तज़क करून
तथा तुमने तो जान लिया है प्रथम उत्पत्ति को फिर तुम शिक्षा ग्रहण क्यों नहीं करते?
أَفَرَأَيْتُم مَّا تَحْرُثُونَ ﴾ 63 ﴿
अफा रअय्तुम मा तहरुसून
फिर क्या तुमने विचार किया कि उसमें जो तुम बोते हो?
أَأَنتُمْ تَزْرَعُونَهُ أَمْ نَحْنُ الزَّارِعُونَ ﴾ 64 ﴿
अ अन्तुम तज़्-र ऊनहू अम नहनुज़ ज़ारिऊन
क्या तुम उसे उगाते हो या हम उसे उगाने वाले हैं?
لَوْ نَشَاءُ لَجَعَلْنَاهُ حُطَامًا فَظَلْتُمْ تَفَكَّهُونَ ﴾ 65 ﴿
लौ नशाऊ लजा अल्नाहु हुतामन फज़ल् तुम तफक्कहून
यदि हम चाहें, तो उसे भुस बना दें, फिर तुम बातें बनाते रह जाओ।
إِنَّا لَمُغْرَمُونَ ﴾ 66 ﴿
इन्ना ल मुग़्रमून
वस्तुतः, हम दण्डित कर दिये गये।
بَلْ نَحْنُ مَحْرُومُونَ ﴾ 67 ﴿
बल नहनु महरूमून
बल्कि हम (जीविका से) वंचित कर दिये गये।
أَفَرَأَيْتُمُ الْمَاءَ الَّذِي تَشْرَبُونَ ﴾ 68 ﴿
अफा रअय्तुमुल माअल्लज़ी तशरबून
फिर तुमने विचार किया उस पानी में, जो तुम पीते हो?
أَأَنتُمْ أَنزَلْتُمُوهُ مِنَ الْمُزْنِ أَمْ نَحْنُ الْمُنزِلُونَ ﴾ 69 ﴿
अ अन्तुम अन्ज़ल्तुमूहु मिनल् मुज्नि अम् नहनुल मुन्ज़िलून
क्या तुमने उसे बरसाया है बादल से अथवा हम उसे बरसाने वाले हैं।?
لَوْ نَشَاءُ جَعَلْنَاهُ أُجَاجًا فَلَوْلَا تَشْكُرُونَ ﴾ 70 ﴿
लौ नशाऊ ज अल्नाहू उजाजन फलौला तश्कुरून
यदि हम चाहें, तो उसे खारी कर दें, फिर तुम आभारी (कृतज्ञ) क्यों नहीं होते?
أَفَرَأَيْتُمُ النَّارَ الَّتِي تُورُونَ ﴾ 71 ﴿
अफा रअय्तुमुन नारल् लती तूरून
क्या तुमने उस अग्नि को देखा, जिसे तुम सुलगाते हो।
أَأَنتُمْ أَنشَأْتُمْ شَجَرَتَهَا أَمْ نَحْنُ الْمُنشِئُونَ ﴾ 72 ﴿
अ अन्तुम अनश’अतुम शजरतहा अम नहनुल् मुन्शिऊन
क्या तुमने उत्पन्न किया है उसके वृक्ष को या हम उत्पन्न करने वाले हैं?
حْنُ جَعَلْنَاهَا تَذْكِرَةً وَمَتَاعًا لِّلْمُقْوِينَ ﴾ 73 ﴿
नहनु जअल्नाहा तज़्किरतव् व मताअल् लिल मुक़्वीन
हमने ही बनाया उसे शिक्षाप्रद तथा यात्रियों के लाभदायक।
فَسَبِّحْ بِاسْمِ رَبِّكَ الْعَظِيمِ ﴾ 74 ﴿
फ़सब्बिह बिस्मि रब्बिकल अज़ीम
अतः, (हे नबी!) आप पवित्रता का वर्णन करें अपने महा पालनहार के नाम की।
فَلَا أُقْسِمُ بِمَوَاقِعِ النُّجُومِ ﴾ 75 ﴿
फला उक़्सिमु बि मवाक़िइन नुजूम
मैं शपथ लेता हूँ सितारों के स्थानों की!
﴾ 77 ﴿
वास्तव में, ये आदरणीय[1] क़ुर्आन है। 1. तारों की शपथ का अर्थ यह है कि जिस प्रकार आकाश के तारों की एक दृढ़ व्यवस्था है उसी प्रकार यह क़ुर्आन भी अति ऊँचा तथा सुदृढ़ है।
﴾ 78 ﴿
सुरक्षित[1] पुस्तक में। 1. इस से अभिप्राय 'लौह़े मह़फ़ूज़' है।
﴾ 79 ﴿
इसे पवित्र लोग ही छूते हैं।[1] 1. पवित्र लोगों से अभिप्राय फ़रिश्तें हैं। (देखियेः सूरह अबस, आयतः15-16)
﴾ 85 ﴿
तथा हम अधिक समीप होते हैं उसके तुमसे, परन्तु तुम नहीं देख सकते।
﴾ 91 ﴿
तो सलाम है तेरे लिए दायें वालों में होने के कारण।[1] 1. अर्थात उस का स्वागत सलाम से होगा।