सूरह कमर के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है। इस में 55 आयतें हैं।
- इस की प्रथम आयत में कमर (चाँद) के दो भाग हो जाने का वर्णन है। इसलिये इसे सूरह कमर कहा जाता है।
- इस में काफिरों को झंझोड़ा गया है कि जब प्रलय का लक्षण उजागर हो गया है, और वह एतिहासिक बातें भी आ गई हैं जिन में शिक्षा है तो फिर वह कैसे अपने कुफ्र पर अड़े हुये हैं। यह काफिर उसी समय सचेत होंगे जब प्रलय आ जायेगी।
- उन जातियों का कुछ परिणाम बताया गया है जिन्होंने रसूलों को झुठलाया। और संसार ही में यातना की भागी बन गईं। और मक्का के काफिरों को प्रलय की आपदा से सावधान किया गया है।
- अन्तिम आयतों में आज्ञाकारियों को स्वर्ग की शुभ सूचना दी गई है।
सूरह अल-कमर | Surah Qamar in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
اقْتَرَبَتِ السَّاعَةُ وَانشَقَّ الْقَمَرُ ﴾ 1 ﴿
इक़्त-र-बतिस्सा-अ़तु वन्शक़्क़ल्-क़मर्
समीप आ गयी[1] प्रलय तथा दो खण्ड हो गया चाँद। 1. आप (सल्लल्लाहु अलैही व सल्लम) से मक्का वासियों ने माँग की कि आप कोई चमत्कार दिखायें। अतः आप ने चाँद को दो भाग होते उन्हें दिखा दिया। (बुख़ारीः 4867) आदरणीय अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद कहते हैं कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के युग में चाँद दो खण्ड हो गयाः एक खण्ड पर्वत के ऊपर और दूसरा उस के नीचे। और आप ने कहाः तुम सभी गवाह रहो। (सह़ीह़ बुख़ारीः4864)
وَإِن يَرَوْا آيَةً يُعْرِضُوا وَيَقُولُوا سِحْرٌ مُّسْتَمِرٌّ ﴾ 2 ﴿
व इंय्यरौ आ-यतंय्-युअ्-रिज़ू व यक़ूलू सिह्-रूम्-मुस्तमिर्र
और यदि वे देखते हैं कोई निशानी, तो मुँह फेर लेते हैं और कहते हैं: ये तो जादू है, जो होता रहा है।
وَكَذَّبُوا وَاتَّبَعُوا أَهْوَاءَهُمْ ۚ وَكُلُّ أَمْرٍ مُّسْتَقِرٌّ ﴾ 3 ﴿
व कज़्ज़बू वत्त- बअू अह्वा – अहुम् व कुल्लु अम्रिम् – मुस्तकिर्र
और उन्होंने झुठलाया और अनुसरण किया अपनी आकांक्षाओं का और प्रत्येक कार्य का एक निश्चित समय है।
وَلَقَدْ جَاءَهُم مِّنَ الْأَنبَاءِ مَا فِيهِ مُزْدَجَرٌ ﴾ 4 ﴿
व ल-क़द् जा-अहुम् मिनल्- अम्बा-इ मा फ़ीहि मुज़्- दजर्
और निश्चय आ चुके हैं उनके पास कुछ ऐसे समाचार, जिनमें चेतावनी है।
حِكْمَةٌ بَالِغَةٌ ۖ فَمَا تُغْنِ النُّذُرُ ﴾ 5 ﴿
हिक्मतुम् बालि-ग़तुन् फ़मा तुग़्निन्-नुज़ुर
ये (क़ुर्आन) पूर्णतः तत्वदर्शिता (ज्ञान) है, फिर भी नहीं काम आयी उनके, चेतावनियाँ।
فَتَوَلَّ عَنْهُمْ ۘ يَوْمَ يَدْعُ الدَّاعِ إِلَىٰ شَيْءٍ نُّكُرٍ ﴾ 6 ﴿
फ़-तवल्-ल अ़न्हुम्, यौ-म यद्अुद् दाअि इला शैइन्-नुकुर
तो आप विमुख हो जायें उनसे, जिस दिन पुकारने वाला पुकारेगा एक अप्रिय चीज़ की[1] ओर। 1. अर्थात प्रयल के दिन ह़िसाब के लिये।
خُشَّعًا أَبْصَارُهُمْ يَخْرُجُونَ مِنَ الْأَجْدَاثِ كَأَنَّهُمْ جَرَادٌ مُّنتَشِرٌ ﴾ 7 ﴿
ख़ुश्श-अ़न् अब्सारुहुम् यख़्रुजू न मिनल्-अज्दासि क – अन्नहुम् जरादुम्-मुन्तशिर
झुकी होंगी उनकी आँखें। वे निकल रहे होंगे समाधियों से, जैसे कि वे टिड्डी दल हों बिखरे हुए।
مُّهْطِعِينَ إِلَى الدَّاعِ ۖ يَقُولُ الْكَافِرُونَ هَٰذَا يَوْمٌ عَسِرٌ ﴾ 8 ﴿
मुह्तिई न इलद्-दाइ, यक़ूलुल्- काफ़िरू-न हाज़ा यौमुन् अ़सिर
तो उसने प्रार्थना की अपने पालनहार से कि मैं विवश हूँ, अतः, मेरा बदला ले ले।
كَذَّبَتْ قَبْلَهُمْ قَوْمُ نُوحٍ فَكَذَّبُوا عَبْدَنَا وَقَالُوا مَجْنُونٌ وَازْدُجِرَ ﴾ 9 ﴿
कज़्ज़बत् क़ब्लहुम् क़ौमु नूहिन् फ़-कज़्ज़बू अ़ब्-दना व क़ालू मज्नूनुंव् वज़्दुजिर
झुठलाया इनसे पहले नूह़ की जाति ने। तो झुठलाया उन्होंने हमारे भक्त को और कहा कि पागल है और (उसे) झड़का गया।
فَدَعَا رَبَّهُ أَنِّي مَغْلُوبٌ فَانتَصِرْ ﴾ 10 ﴿
फ़- दआ़ रब्बहू अन्नी मग़्लूबुन् फ़न्तसिर
तो उसने प्रार्थना की अपने पालनहार से कि मैं विवश हूँ, अतः मेरा बदला ले ले।
فَفَتَحْنَا أَبْوَابَ السَّمَاءِ بِمَاءٍ مُّنْهَمِرٍ ﴾ 11 ﴿
फ़-फ़तह्ना अब्वाबस्- समा-इ बिमाइम्-मुन्हमिर
तो हमने खोल दिये आकाश के द्वार धारा प्रवाह जल के साथ।
وَفَجَّرْنَا الْأَرْضَ عُيُونًا فَالْتَقَى الْمَاءُ عَلَىٰ أَمْرٍ قَدْ قُدِرَ ﴾ 12 ﴿
व फ़ज्जर्नल्-अर्-ज़ अुयूनन् फ़ल्तक़ल्- मा-उ अ़ला अम्रिन् क़द् क़ुदिर
तथा फाड़ दिये धरती के स्रोत, तो मिल गया (आकाश और धरती का) जल उस कार्य के अनुसार जो निश्चित किया गया।
وَحَمَلْنَاهُ عَلَىٰ ذَاتِ أَلْوَاحٍ وَدُسُرٍ ﴾ 13 ﴿
व हमल्नाहु अ़ला ज़ाति अल्वाहिंव्-व दुसुर
और सवार कर दिया हमने उसे (नूह़ को) तख़्तों तथा कीलों वाली (नाव) पर।
تَجْرِي بِأَعْيُنِنَا جَزَاءً لِّمَن كَانَ كُفِرَ ﴾ 14 ﴿
तज्री बि-अअ्युनिना जज़ाअल्-लिमन् का-न कुफ़िर
जो चल रही थी हमारी रक्षा में, उसका बदला लेने के लिए, जिसके साथ कुफ़्र किया गया था।
وَلَقَد تَّرَكْنَاهَا آيَةً فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ ﴾ 15 ﴿
व लकृत्त-रक्नाहा आ-यतन् फ़-हल् मिम्- मुद्दकिर
और हमने छोड़ दिया इसे एक शिक्षा बनाकर। तो क्या, है कोई शिक्षा ग्रहण करने वाला?
فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ ﴾ 16 ﴿
फ़कै -फ़ का-न अ़ज़ाबी व नुज़ुर
फिर (देख लो!) कैसी रही मेरी यातना तथा मेरी चेतावनियाँ?
وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ ﴾ 17 ﴿
व ल-क़द् यस्सर्नल्- क़ुर्आ-न लिज़्ज़िकिर फ़-हल् मिम्- मुद्दकिर
और हमने सरल कर दिया है क़ुर्आन को शिक्षा के लिए। तो क्या, है कोई शिक्षा ग्रहण करने वाला?
كَذَّبَتْ عَادٌ فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ ﴾ 18 ﴿
कज़्ज़बत् आ़दुन् फ़कै-फ़ का-न अ़ज़ाबी व नुज़ुर
झुठलाया आद ने, तो कैसी रही मेरी यातना तथा मेरी चेतावनियाँ?
إِنَّا أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ رِيحًا صَرْصَرًا فِي يَوْمِ نَحْسٍ مُّسْتَمِرٍّ ﴾ 19 ﴿
इन्ना अर्सल्ना अ़लैहिम् रीहन् सर्- सरन् फ़ी यौमि नह्सिम्-मुस्तमिर्र
हमने भेज दी उनपर कड़ी आँधी, एक निरन्तर अशुभ दिन में।
تَنزِعُ النَّاسَ كَأَنَّهُمْ أَعْجَازُ نَخْلٍ مُّنقَعِرٍ ﴾ 20 ﴿
तन्ज़िअुन्ना-स क-अन्नहुम् अअ्जाजु नख़्लिम् – मुन्क़अिर
जो उखाड़ रही थी लोगों को, जैसे वे खजूर के खोखले तने हों।
فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ ﴾ 21 ﴿
फ़कै-फ़ का-न अ़ज़ाबी व नुजुर
तो कैसी रही मेरी यातना तथा मेरी चेतावनियाँ?
وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ ﴾ 22 ﴿
व ल-क़द् यस्सर्नल-क़ुर्आ-न लिज़्ज़िक्रि फ़-हल् मिम्-मुद्दकिर*
और हमने सरल कर दिया है क़ुर्आन को शिक्षा के लिए। तो क्या, है कोई शिक्षा ग्रहण करने वाला?
كَذَّبَتْ ثَمُودُ بِالنُّذُرِ ﴾ 23 ﴿
कज़्ज़बत् समूदु बिन्नुजुर
झुठला दिया समूद[1] ने चेतावनियों को। 1. यह सालेह (अलैहिस्सलाम) की जाति थी। उन्हों ने उन से चमत्कार की माँग की तो अल्लाह ने पर्वत से एक ऊँटनी निकाल दी। फिर भी वह ईमान नहीं लाये। क्यों कि उन के विचार से अल्लाह का रसूल कोई मनुष्य नहीं फ़रिश्ता होना चाहिये था। जैसा कि मक्का के मुश्रिकों का विचार था।
فَقَالُوا أَبَشَرًا مِّنَّا وَاحِدًا نَّتَّبِعُهُ إِنَّا إِذًا لَّفِي ضَلَالٍ وَسُعُرٍ ﴾ 24 ﴿
फ़क़ालू अ-ब-शरम् मिन्ना वाहिदन् नत्तबिअुहू इन्ना इज़ल्-लफ़ी ज़लालिंव्-व सुअुर
और कहाः क्या अपने ही में से एक मनुष्य का हम अनुसरण करें? वास्तव में, तब तो हम निश्चय बड़े कुपथ तथा पागलपन में हैं।
أَأُلْقِيَ الذِّكْرُ عَلَيْهِ مِن بَيْنِنَا بَلْ هُوَ كَذَّابٌ أَشِرٌ ﴾ 25 ﴿
अ–उल्क़ि यज़्ज़िक्रू अ़लैहि मिम्बैनिना बल् हु-व कज़्ज़ाबुन् अशिर
क्या उतारी गयी है शिक्षा उसीपर हमारे बीच में से? (नहीं) बल्कि वह बड़ा झूठा अहंकारी है।
سَيَعْلَمُونَ غَدًا مَّنِ الْكَذَّابُ الْأَشِرُ ﴾ 26 ﴿
स-यअ्लमू-न ग़दम् – मनिल्-कज़्ज़ाबुल्-अशिर
उन्हें कल ही ज्ञान हो जायेगा कि कौन बड़ा झूठा अहंकारी है?
إِنَّا مُرْسِلُو النَّاقَةِ فِتْنَةً لَّهُمْ فَارْتَقِبْهُمْ وَاصْطَبِرْ ﴾ 27 ﴿
इन्ना मुर्सिलुन्ना- क़ति फ़ित्न- तल्-लहुम् फ़र्तक़िब्हुम् वस्तबिर
वास्तव में, हम भेजने वाले हैं ऊँटनी उनकी परीक्षा के लिए। अतः, (हे सालेह!) तुम उनके (परिणाम की) प्रतीक्षा करो तथा धैर्य रखो।
وَنَبِّئْهُمْ أَنَّ الْمَاءَ قِسْمَةٌ بَيْنَهُمْ ۖ كُلُّ شِرْبٍ مُّحْتَضَرٌ ﴾ 28 ﴿
व नब्बिअहुम् अन्नल्-मा-अ क़िस्मतुम्-बैनहुम् कुल्लु शिर्बिम् – मुह्त-ज़र
और उन्हें सूचित कर दो कि जल विभाजित होगा उनके बीच और प्रत्येक अपनी बारी के दिन[1] उपस्थित होगा। 1. अर्थात एक दिन जल स्रोत का पानी ऊँटनी पियेगी और एक दिन तुम सब।
فَنَادَوْا صَاحِبَهُمْ فَتَعَاطَىٰ فَعَقَرَ ﴾ 29 ﴿
फ़नादौ साहि-बहुम् फ़-तआ़ता फ़-अ़क़र
तो उन्होंने पुकारा अपने साथी को। तो उसने आक्रमण किया और उसे वध कर दिया।
فَكَيْفَ كَانَ عَذَابِي وَنُذُرِ ﴾ 30 ﴿
फ़कै-फ़ का-न अ़ज़ाबी व नुजुर
फिर कैसी रही मेरी यातना और मेरी चेतावनियाँ?
إِنَّا أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ صَيْحَةً وَاحِدَةً فَكَانُوا كَهَشِيمِ الْمُحْتَظِرِ ﴾ 31 ﴿
इन्ना अर्सल्ना अ़लैहिम् सै-हतंव्-वाहि-दतन् फ़कानू क-हशीमिल्-मुह्तज़िर
हमने भेज दी उनपर कर्कश ध्वनि, तो वे हो गये बाड़ा बनाने वाले की रौंदी हुई बाढ़ के समान (चूर-चूर)।
وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ ﴾ 32 ﴿
व-ल-क़द् यस्सर्नल्-क़ुर्आ-न लिज़्ज़िक्रि फ़-हल् मिम्-मुद्दकिर
और हमने सरल कर दिया है क़ुर्आन को शिक्षा के लिए। तो क्या, है कोई शिक्षा ग्रहण करने वाला?
كَذَّبَتْ قَوْمُ لُوطٍ بِالنُّذُرِ ﴾ 33 ﴿
कज़्ज़बत् क़ौमु लूतिम् – बिन्नुज़ुर
झुठला दिया लूत की जाति ने चेतावनियों को।
إِنَّا أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ حَاصِبًا إِلَّا آلَ لُوطٍ ۖ نَّجَّيْنَاهُم بِسَحَرٍ ﴾ 34 ﴿
इन्ना अर्सल्ना अ़लैहिम् हासिबन् इल्ला आ-ल लूतिन्, नज्जैनाहुम् बि स हर
तो हमने भेज दिये उनपर पत्थर लूत के परिजनों के सिवा, हमने उन्हें बचा लिया रात्रि के पिछले पहर।
نِّعْمَةً مِّنْ عِندِنَا ۚ كَذَٰلِكَ نَجْزِي مَن شَكَرَ ﴾ 35 ﴿
निअ् मतम् – मिन् अिन्दिना, कज़ालि क नज़्ज़ी मन् शकर्
अपने विशेष अनुग्रह से। इसी प्रकार हम बदला देते हैं उसको जो कृतज्ञ हो।
وَلَقَدْ أَنذَرَهُم بَطْشَتَنَا فَتَمَارَوْا بِالنُّذُرِ ﴾ 36 ﴿
व ल-क़द् अन्ज़-रहुम् बत्श-तना फ़-तमारौ बिन्नुज़ुर
और निःसंदेह, लूत ने सावधान किया उनको हमारी पकड़ से। परन्तु, उन्होंने संदेह किया चेतावनियों के विषय में।
وَلَقَدْ رَاوَدُوهُ عَن ضَيْفِهِ فَطَمَسْنَا أَعْيُنَهُمْ فَذُوقُوا عَذَابِي وَنُذُرِ ﴾ 37 ﴿
व ल-क़द् रा-वदूहु अ़न् ज़ैफ़िही फ़-तमस्ना अअ्यु-नहुम् फ़ज़ूक़ू अ़ज़ाबी व नुज़ुर
और बहलाना चाहा उस (लूत) को उसके अतिथियों[1] से तो हमने अंधी कर दी उनकी आँखें कि चखो मेरी यातना तथा मेरी चेतावनियों (का परिणाम)। 1. अर्थात उन्हों ने अपने दुराचार के लिये फ़रिश्तों को जो सुन्दर युवकों के रूप में आये थे, उन को लूत (अलैहिस्सलाम) से अपने सुपुर्द करने की माँग की।
وَلَقَدْ صَبَّحَهُم بُكْرَةً عَذَابٌ مُّسْتَقِرٌّ ﴾ 38 ﴿
व ल-क़द् सब्ब-हहुम् बुक्र-तन् अ़ज़ाबुम् मुस्तकिर्र
और उनपर आ पहुँची प्रातः भोर ही में स्थायी यातना।
فَذُوقُوا عَذَابِي وَنُذُرِ ﴾ 39 ﴿
फ़ज़ूक़ू अ़ज़ाबी व नुज़ुर
तो चखो मेरी यातना तथा मेरी चेतावनियाँ।
وَلَقَدْ يَسَّرْنَا الْقُرْآنَ لِلذِّكْرِ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ ﴾ 40 ﴿
व ल-क़द् यस्सर्नल्-क़ुर्आ-न लिज़्ज़िक्रि फ़-हल् मिम्-मुद्दकिर
और हमने सरल कर दिया है क़ुर्आन को शिक्षा के लिए। तो क्या, है कोई शिक्षा ग्रहण करने वाला?
وَلَقَدْ جَاءَ آلَ فِرْعَوْنَ النُّذُرُ ﴾ 41 ﴿
व ल-क़द् जा अ आ-ल फ़िर्औनन्-नुज़ुर
तथा फ़िरऔनियों के पास भी चेतावनियाँ आयीं।
كَذَّبُوا بِآيَاتِنَا كُلِّهَا فَأَخَذْنَاهُمْ أَخْذَ عَزِيزٍ مُّقْتَدِرٍ ﴾ 42 ﴿
कज़्ज़बू बिआयातिना कुल्लिहा फ़-अख़ज़् नाहुम् अख़् -ज़ अ़ज़ीज़िम् – मुक़्तदिर
उन्होंने झुठलाया हमारी प्रत्येक निशानी को तो हमने पकड़ लिया उन्हें अति प्रभावी आधिपति के पकड़ने के समान।
أَكُفَّارُكُمْ خَيْرٌ مِّنْ أُولَٰئِكُمْ أَمْ لَكُم بَرَاءَةٌ فِي الزُّبُرِ ﴾ 43 ﴿
अ-कुफ़्फ़ारुकुम् ख़ैरुम्-मिन् उलाइकुम् अम् लक़ुम् बरा-अतुन् फ़िज़्ज़ुबुर
(हे मक्का वासियों!) क्या तुम्हारे काफ़िर उत्तम हैं उनसे अथवा तुम्हारी मुक्ति लिखी हुई है आकाशीय पुस्तकों में?
أَمْ يَقُولُونَ نَحْنُ جَمِيعٌ مُّنتَصِرٌ ﴾ 44 ﴿
अम् यक़ूलू-न नह्नु जमीअुम्-मुन्तसिर
अथवा वे कहते हैं कि हम विजेता समूह हैं।
سَيُهْزَمُ الْجَمْعُ وَيُوَلُّونَ الدُّبُرَ ﴾ 45 ﴿
सयुह्ज़ – मुल् जम्अु व युवल्लूनद् – दुबुर
शीध्र ही प्राजित कर दिया जायेगा ये समूह और वे पीठ दिखा[1] देंगे। 1. इस में मक्का के काफ़िरों की पराजय की भविष्यवाणी है जो बद्र के युध्द में पूरी हुई। ह़दीस में है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) बद्र के दिन एक ख़ेमे में अल्लाह से प्रार्थना कर रहे थे। फिर यही आयत पढ़ते हुये निकले। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4875)
بَلِ السَّاعَةُ مَوْعِدُهُمْ وَالسَّاعَةُ أَدْهَىٰ وَأَمَرُّ ﴾ 46 ﴿
बलिस्सा-अ़तु मौअिदुहुम् वस्सा-अ़तु अद्हा व अमर्र
बल्कि प्रलय उनके वचन का समय है तथा प्रलय अधिक कड़ी और तीखी है।
إِنَّ الْمُجْرِمِينَ فِي ضَلَالٍ وَسُعُرٍ ﴾ 47 ﴿
इन्नल् – मुज्रिमी-न फ़ी ज़लालिंव्-व सुअुर
वस्तुतः, ये पापी, कुपथ तथा अग्नि में हैं।
يَوْمَ يُسْحَبُونَ فِي النَّارِ عَلَىٰ وُجُوهِهِمْ ذُوقُوا مَسَّ سَقَرَ ﴾ 48 ﴿
यौ-म युस्हबू-न फ़िन्नारि अ़ला वुजूहिहिम्, ज़ूक़ू मस्- स सक़र्
जिस दिन वे घसीटे जायेंगे यातना में अपने मुखों के बल (उनसे कहा जायेगा कि) चखो नरक की यातना का स्वाद।
إِنَّا كُلَّ شَيْءٍ خَلَقْنَاهُ بِقَدَرٍ ﴾ 49 ﴿
इन्ना कुल्-ल शैइन् ख़लक्नाहु बि-क़-दर
निश्चय हमने प्रत्येक वस्तु को उत्पन्न किया है एक अनुमान से।
وَمَا أَمْرُنَا إِلَّا وَاحِدَةٌ كَلَمْحٍ بِالْبَصَرِ ﴾ 50 ﴿
व मा अम्रुना इल्ला वाहि – दतुन् क- लम्हिम् – बिल्ब – सर
और हमारा आदेश बस एक ही बार होता है आँख झपकने के समान।[1] 1. अर्थात प्रलय होने में देर नहीं होगी। अल्लाह का आदेश होते ही तत्क्षण प्रलय आ जायेगी।
وَلَقَدْ أَهْلَكْنَا أَشْيَاعَكُمْ فَهَلْ مِن مُّدَّكِرٍ ﴾ 51 ﴿
व ल-क़द् अह्लक्ना अश्या-अ़कुम् फ़-हल् मिम् – मुद्दकिर
और हम ध्वस्त कर चुके हैं तुम्हारे जैसे बहुत-से समुदायों को।
وَكُلُّ شَيْءٍ فَعَلُوهُ فِي الزُّبُرِ ﴾ 52 ﴿
व कुल्लु शैइन् फ़-अ़लूहु फ़िज़्ज़ुबुर
जो कुछ उन्होंने किया है कर्मपत्र में है।[1] 1. जिसे उन फ़रिश्तों ने जो दायें तथा बायें रहते हैं लिख रखा है।
وَكُلُّ صَغِيرٍ وَكَبِيرٍ مُّسْتَطَرٌ ﴾ 53 ﴿
व कुल्लु सग़ीरिंव् व कबीरिम् – मुस्त – तर
और प्रत्येक तुच्छ तथा बड़ी बात अंकित है।
إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي جَنَّاتٍ وَنَهَرٍ ﴾ 54 ﴿
इन्नल् – मुत्तक़ी – न फ़ी जन्नातिंव्-व न-हर
वस्तुतः, सदाचारी लोग स्वर्गों तथा नहरों में होंगे।