सूरह कद्र के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है, इस में 5 आयतें हैं।[1]
1. इस सूरह को अधिकांश भाष्य कारों ने मक्की लिखा है। और कुछ ने मदनी बताया है। परन्तु इस का प्रसंग मक्की होने के समर्थन में है। इसी “लैलतुल द्र” (सम्मानित रात्रि) को सूरह दुख़ान में “लैलतुल मुबारक” (शुभ रात्री) कहा गया है। यह शुभ रात्रि रमजान मुबारक ही की एक रात है। इसी कारण सूरह “बकरः” में कहा गया है कि रमजान मुबारक के महीने में कुरआन शरीफ उतारा गया।
अर्थात इसी रात्रि में सम्पूर्ण कुरआन उन फरिश्तों को दे दिया गया जो वही (प्रकाशना) लाने के लिये नियुक्त थे। फिर 23 वर्ष में आवश्यकता के अनुसार कुरआन उतारा जाता रहा। यदि इस का अर्थ यह लिया जाये कि इस के उतारने का आरम्भ रमजान मुबारक से हुआ तो यह भी सहीह है। दोनों में अर्थ यही निकलता है कि कुरआन रमज़ान मुबारक में उतरा। और इसी शुभ रात्री में सूरह अलक की प्रथम पाँच आयतें उतारी गई।
- इस में कुरआन के कद्र की रात में उतारे जाने की चर्चा की गई है। इस लिये इस का यह नाम रखा गया है। कद्र का अर्थ है: आदर और सम्मान।
- इस में सबसे पहले बताया गया है कि कुरआन कितनी महान रात्रि में अवतरित किया गया है। फिर इस शुभ रात की प्रधानता का वर्णन किया गया है और उसे भोर तक सर्वथा शान्ति की रात कहा गया है।
- इस से अभिप्राय यह बताना है कि जो ग्रन्थ इतनी शुभ रात में उतरा उस का पालन तथा आदर न करना बड़े दुर्भाग्य की बात है।
- हदीस में है कि इस रात की खोज रमजान के महीने की दस अन्तिम रातों की विषम (ताक़) रात में करो। (सहीह बुख़ारी: 2017, तथा सहीह मुस्लिम 1169)
- दूसरी हदीस में है कि जो कद्र की रात में ईमान के साथ पुन प्राप्त करने के लिये नमाज़ पढ़ेगा उस के पहले के पाप क्षमा कर दिये जायेंगे। (सहीह बुख़ारी 37, तथा सहीह मुस्लिम 759)
Surah Qadr in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
إِنَّآ أَنزَلْنَٰهُ فِى لَيْلَةِ ٱلْقَدْرِ ﴾ 1 ﴿
इन्ना अनज़ल नाहु फ़ी लैयलतिल कद्र
निःसंदेह, हमने उस (क़ुर्आन) को 'लैलतुल क़द्र' (सम्मानित रात्रि) में उतारा।
وَمَآ أَدْرَىٰكَ مَا لَيْلَةُ ٱلْقَدْرِ ﴾ 2 ﴿
वमा अदराका मा लैयलतुल कद्र
और तुम क्या जानो कि वह 'लैलतुल क़द्र' (सम्मानित रात्रि) क्या है?
لَيْلَةُ ٱلْقَدْرِ خَيْرٌ مِّنْ أَلْفِ شَهْرٍ ﴾ 3 ﴿
लय्लतुल कदरि खैरुम मिन अल्फि शह्र
लैलतुल क़द्र (सम्मानित रात्रि) हज़ार मास से उत्तम है।[1]
1. हज़ार मास से उत्तम होने का अर्थ यह कि इस शुभ रात्रि में इबादत की बहुत बड़ी प्रधानता है। अबू हुरैरह (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत (उदघृत) है कि जो व्यक्ति इस रात में ईमान (सत्य विश्वास) के साथ तथा पुण्य की नीति से इबादत करे तो उस के सभी पहले के पापा क्षमा कर दिये जाते हैं। (देखियेः सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस संख्याः 35, तथा सह़ीह़ मुस्लिम ह़दीस संख्याः760)
تَنَزَّلُ ٱلْمَلَٰٓئِكَةُ وَٱلرُّوحُ فِيهَا بِإِذْنِ رَبِّهِم مِّن كُلِّ أَمْرٍ ﴾ 4 ﴿
तनज्जलुल मलाइकातु वररूहु फ़ीहा बिइज़्नि रब्बिहिम मिन कुल्लि अम्र
उसमें (हर काम को पूर्ण करने के लिए) फ़रिश्ते तथा रूह़ (जिब्रील) अपने पालनहार की आज्ञा से उतरते हैं।[1]
1. 'रूह़' से अभिप्राय जिब्रील अलैहिस्सलाम हैं। उन की प्रधानता के कारण सभी फ़रिश्तों से उन की अलग चर्चा की गई है। और यह भी बताया गया है कि वे स्वयं नहीं बल्कि अपने पालनहार की आज्ञा से ही उतरते हैं।
سَلَٰمٌ هِىَ حَتَّىٰ مَطْلَعِ ٱلْفَجْرِ ﴾ 5 ﴿
सलामुन हिय हत्ता मत लइल फज्र
वह शान्ति की रात्रि है, जो भोर होने तक रहती है।[1]
1. इस का अर्थ यह है कि संध्या से भोर तक यह रात्रि सर्वथा शुभ तथा शान्तिमय होती है। सह़ीह़ ह़दीसों से स्पष्ट होता है कि यह शुभ रात्रि रमज़ान की अन्तिम दस रातों में से कोई एक रात है। इसलिये हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इन दस रातों को अल्लाह की उपासना में बिताते थे।