सूरह माऊन के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है, इस में 7 आयते हैं।
- इस सरह की अन्तिम आयत में ((माऊन)) शब्द आने के कारण इस का यह नाम रखा गया है। जिस का अर्थ है लोगों को देने की साधारण आवश्यक्ता की चीजें।[1]
1 इस सूरह का विषय यह बताना है कि परलोक पर ईमान न रखना किस प्रकार का आचरण और स्वभाव पैदा करता है।
- आयत 1 में उस के आचरण पर विचार करने के लिये कहा गया है जो प्रलय के दिन के प्रतिफल को नहीं मानता।
- आयत 2,3 में यह बताया गया है कि ऐसा ही व्यक्ति समाज के अनाथों तथा निर्धनों की कोई सहायता नहीं करता। और उन के साथ बुरा व्यवहार करता है।
- आयत 4 से 6 तक में उन की निन्दा की गई है जो नमाज़ पढ़ने में आलसी होते हैं। और दिखावे के लिये नमाज़ पढ़ते हैं।
- और आयत 7 में उन की कंजसी पर पकड़ की गई है।
Surah Maoon in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
أَرَأَيْتَ الَّذِي يُكَذِّبُ بِالدِّينِ ﴾ 1 ﴿
अ-रऐतल्लज़ी युकज्जिबु बिद्दीन
( हे नबी!) क्या तुमने उसे देखा, जो प्रतिकार (बदले) के दिन को झुठलाता है?
فَذَٰلِكَ الَّذِي يَدُعُّ الْيَتِيمَ ﴾ 2 ﴿
फ़ज़ालिकल्लज़ी यदु अल्-यतीम
यही वह है, जो अनाथ (यतीम) को धक्का देता है।
وَلَا يَحُضُّ عَلَىٰ طَعَامِ الْمِسْكِينِ ﴾ 3 ﴿
वला यहुज्जु अला तआमिल मिस्कीन
और ग़रीब को भोजन देने पर नहीं उभारता।[1]
1. (2-3) इन आयतों में उन काफ़िरों (अधर्मियों) की दशा बताई गई है जो परलोक का इन्कार करते थे।
فَوَيْلٌ لِّلْمُصَلِّينَ ﴾ 4 ﴿
फवैलुल् लिल्-मुसल्लीन
विनाश है उन नमाज़ियों के लिए[1]
1. इन आयतों में उन मुनाफ़िक़ों (द्वय वादियों) की दशा का वर्णन किया गया है जो ऊपर से मुसलमान हैं परन्तु उन के दिलों में परलोक और प्रतिकार का विश्वास नहीं है। इन दोनों प्रकारों के आचरण और स्वभाव को बयान करने से अभिप्राय यह बताना है कि इन्सान में सदाचार की भावना परलोक पर विश्वास के बिना उत्पन्न नहीं हो सकती। और इस्लाम परलोक का सह़ीह विश्वास दे कर इन्सानों में अनाथों और ग़रीबों की सहायता की भावना पैदा करता है और उसे उदार तथा परोपकारी बनाता है।
الَّذِينَ هُمْ عَن صَلَاتِهِمْ سَاهُونَ ﴾ 5 ﴿
अल्लज़ी-न हुम अन् सलातिहिम् साहून
जो अपनी नमाज़ से अचेत हैं।
الَّذِينَ هُمْ يُرَاءُونَ ﴾ 6 ﴿
अल्लज़ी-न हुम् युराऊ-न
और जो दिखावे (आडंबर) के लिए करते हैं।
وَيَمْنَعُونَ الْمَاعُونَ ﴾ 7 ﴿
व यम नऊनल माऊन
तथा माऊन (प्रयोग में आने वाली मामूली चीज़) भी माँगने से नहीं देते।[1]
1. आयत संख्या 7 में मामूली चाज़ के लिये 'माऊन' शब्द का प्रयोग हूआ है। जिस का अर्थ है साधारण माँगने के सामान जैसे पानी, आग, नमक, डोल आदि। और आयत का अभिप्राय यह है कि आख़िरत का इन्कार किसी व्यक्ति को इतना तंग दिल बना देता है कि वह साधारण उपकार के लिये भी तैयार नहीं होता।