सूरह इन्शिकाक के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है, इस में 25 आयतें हैं।
- इन्शिकाक का अर्थः फटना है। इस में आकाश के फटने की सूचना दी गई है, इस कारण इस का यह नाम है। [1]
- आयत 1 से 5 तक में उस उथल पुथल का संक्षेप में वर्णन है जो प्रलय आते ही इस धरती और आकाश में होगी।
- आयत 6 से 15 तक में मनुष्य के अल्लाह के न्यायालय में पहुँचने, कर्मपत्र दिये जाने और अपने परिणाम को पहुँचने का वर्णन है।
- आयत 16 से 20 तक विश्व की निशानियों से प्रमाणित किया गया है कि मनुष्य को मौत के पश्चात् विभिन्न स्थितियों से गुज़रना होगा।
- अन्तिम आयतों में उन्हें धमकी दी गई है जो कुन सुनकर अल्लाह के आगे नहीं झुकते बल्कि उसे झुठलाते हैं। और उन्हें अनन्त प्रतिफल की शुभसूचना दी गई है जो ईमान ला कर सदाचार करते हैं।
सूरह अल-इन्शिकाक | Surah Inshiqaq in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
إِذَا السَّمَاءُ انشَقَّتْ ﴾ 1 ﴿
इज़स्समाउन्-शक़्क़त्
जब आकाश फट जायेगा।
وَأَذِنَتْ لِرَبِّهَا وَحُقَّتْ ﴾ 2 ﴿
व अज़िनत् लिरब्बिहा व हुक़्क़त्
और अपने पालनहार की सुनेगा और यही उसे करना भी चाहिये।
وَإِذَا الْأَرْضُ مُدَّتْ ﴾ 3 ﴿
व इज़ल्-अर्जु मुद्दत्
तथा जब धरती फैला दी जायेगी।
وَأَلْقَتْ مَا فِيهَا وَتَخَلَّتْ ﴾ 4 ﴿
व अल्क़त् मा फ़ीहा व त-ख़ल्लत्
और जो उसके भीतर है, फैंक देगी तथा ख़ाली हो जायेगी।
وَأَذِنَتْ لِرَبِّهَا وَحُقَّتْ ﴾ 5 ﴿
व अज़िनत् लिरब्बिहा व हुक्क़त्
और अपने पालनहार की सुनेगी और यही उसे करना भी चाहिये।[1] 1. (1-5) इन आयतों में प्रलय के समय आकाश एवं धरती में जो हलचल होगी उस का चित्रण करते हुये यह बताया गया है कि इस विश्व के विधाता के आज्ञानुसार यह आकाश और धरती कार्यरत हैं और प्रलय के समय भी उसी की आज्ञा का पालन करेंगे। धरती को फैलाने का अर्थ यह है कि पर्वत आदि खण्ड-खण्ड हो कर समस्त भूमि चौरस कर दी जायेगी।
يَا أَيُّهَا الْإِنسَانُ إِنَّكَ كَادِحٌ إِلَىٰ رَبِّكَ كَدْحًا فَمُلَاقِيهِ ﴾ 6 ﴿
या अय्युहल्-इन्सानु इन्न-क कादिहुन् इला रब्बि-क कद्हन् फ़मुलाकीहि
हे इन्सान! वस्तुतः, तू अपने पालनहार से मिलने के लिए परिश्रम कर रहा है और तू उससे अवश्य मिलेगा।
فَأَمَّا مَنْ أُوتِيَ كِتَابَهُ بِيَمِينِهِ ﴾ 7 ﴿
फ़-अम्मा मन् ऊति-य किताबहू बि-यमीनिही
फिर जिस किसी को उसका कर्मपत्र दाहिने हाथ में दिया जायेगा।
فَسَوْفَ يُحَاسَبُ حِسَابًا يَسِيرًا ﴾ 8 ﴿
फ़सौ-फ़ युहा-सबु हिसाबंय्-यसीरा
तो उसका सरल ह़िसाब लिया जायेगा।
وَيَنقَلِبُ إِلَىٰ أَهْلِهِ مَسْرُورًا ﴾ 9 ﴿
व यन्क़लिबु इला अह़्लिही मसरूरा
तथा वह अपनों में प्रसन्न होकर वापस जायेगा।
وَأَمَّا مَنْ أُوتِيَ كِتَابَهُ وَرَاءَ ظَهْرِهِ ﴾ 10 ﴿
व अम्मा मन् ऊति-य किताबहू वरा-अ ज़हरिही
और जिन्हें उनका कर्मपत्र बायें हाथ में दिया जायेगा।
فَسَوْفَ يَدْعُو ثُبُورًا ﴾ 11 ﴿
फ़सौ-फ़ यद्अु सुबूरा
तो वह विनाश (मृत्यु) को पुकारेगा।
إِنَّهُ كَانَ فِي أَهْلِهِ مَسْرُورًا ﴾ 13 ﴿
इन्नहू का-न फ़ी अह़्लिही मसूरूरा
वह अपनों में प्रसन्न रहता था।
إِنَّهُ ظَنَّ أَن لَّن يَحُورَ ﴾ 14 ﴿
इन्नहू ज़न्-न अल्लंय्यहू-र
उसने सोचा था कि कभी पलट कर नहीं आयेगा।
بَلَىٰ إِنَّ رَبَّهُ كَانَ بِهِ بَصِيرًا ﴾ 15 ﴿
बला इन्-न रब्बहू का-न बिही बसीरा
क्यों नहीं? निश्चय उसका पालनहार उसे देख रहा था।[1] 1. (6-15) इन आयतों में इन्सान को सावधान किया गया है कि तुझे भी अपने पालनहार से मिलना है। और धीरे-धीरे उसी की ओर जा रहा है। वहाँ अपने कर्मानुसार जिसे दायें हाथ में कर्म पत्र मिलेगा वह अपनों से प्रसन्न हो कर मिलेगा। और जिस को बायें हाथ में कर्म पत्र दिया जायेगा तो वह विनाश को पुकारेगा। यह वही होगा जिस ने मायामोह में क़ुर्आन को नकार दिया था। और सोचा कि इस संसारिक जीवन के पश्चात कोई जीवन नहीं आयेगा।
فَلَا أُقْسِمُ بِالشَّفَقِ ﴾ 16 ﴿
फ़ला उक्सिमु बिश्श-फ़कि
मैं सन्ध्या लालिमा की शपथ लेता हूँ!
وَاللَّيْلِ وَمَا وَسَقَ ﴾ 17 ﴿
वल्लैलि व मा व-स-क
तथा रात की और जिसे वह एकत्र करे!
وَالْقَمَرِ إِذَا اتَّسَقَ ﴾ 18 ﴿
वल्क़-मरि इज़त्त-स-क
तथा चाँद की, जब वह पूरा हो जाये।
لَتَرْكَبُنَّ طَبَقًا عَن طَبَقٍ ﴾ 19 ﴿
ल-तरकबुन्-न त-बकन् अन् त-बक़
फिर तुम अवश्य एक दशा से दूसरी दशा में सवार होगे।
فَمَا لَهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ ﴾ 20 ﴿
फ़मा लहुम् ला युअ्मिनून
फिर क्यों वे विश्वास नहीं करते?
وَإِذَا قُرِئَ عَلَيْهِمُ الْقُرْآنُ لَا يَسْجُدُونَ ۩ ﴾ 21 ﴿
व इज़ा कुरि-अ अलैहिमुल-कुरआनु ला यस्जुदून *सज़्दा*
और जब उनके पास क़ुर्आन पढ़ा जाता है, तो सज्दा नहीं करते।[1] 1. (16-21) इन आयतों में विश्व के कुछ लक्षणों को साक्ष्य स्वरूप परस्तुत कर के सावधान किया गया है कि जिस प्रकार यह विश्व तीन स्थितियों से गुज़रता है इसी प्रकार तुम्हें भी तीन स्थितियों से गुज़रना हैः संसारिक जीवन, फिर मरण, फिर परलोक का स्थायी जीवन जिस का सुख दुःख संसारिक कर्मों के आधार पर होगा।
بَلِ الَّذِينَ كَفَرُوا يُكَذِّبُونَ ﴾ 22 ﴿
बलिल्लज़ी-न क-फ़रू युकज़्ज़िबून
बल्कि काफ़िर तो उसे झुठलाते हैं।
وَاللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا يُوعُونَ ﴾ 23 ﴿
वल्लाहु अ‘लमु बिमा यूऊन
और अल्लाह उनके विचारों को भली-भाँति जानता है।
فَبَشِّرْهُم بِعَذَابٍ أَلِيمٍ ﴾ 24 ﴿
फ़-बश्शिरहुम् बि-अज़ाबिन अलीम
अतः, उन्हें दुःखदायी यातना की शुभ सूचना दे दो।
إِلَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُمْ أَجْرٌ غَيْرُ مَمْنُونٍ ﴾ 25 ﴿
इल्लल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्सालिहाति लहुम् अज्रुन् ग़ैरु मम्नून
परन्तु, जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, उनके लिए समाप्त न होने वाला बदला है।[1] 1. (22-25) इन आयतों में उन के लिये चेतावनी है जो इन स्वभाविक साक्ष्यों के होते हुये क़ुर्आन को न मानने पर अड़े हुये हैं। और उन के लिये शूभ सूचना है जो इसे मान कर विश्वास (ईमान) तथा सुकर्म की राह पर अग्रसर हैं।