﴾ 1 ﴿ क्या व्यतीत हुआ मनुष्य पर युग का एक समय, जब वह कोई विचर्चित[1] वस्तु न था?
1. अर्थात उस का कोई अस्तित्व न था।
﴾ 2 ﴿ हमने ही पैदा किया मनुष्य को मिश्रित (मिले हुए) वीर्य[1] से, ताकि उसकी परीक्षा लें और बनाया उसे सुनने तथा देखने वाला।
1. अर्थात नर-नारी के मिश्रित वीर्य से।
﴾ 3 ﴿ हमने उसे राह दर्शा दी।[1] (अब) वह चाहे तो कृतज्ञ बने अथवा कृतघ्न।
1. अर्थात नबियों तथा आकाशीय पुस्तकों द्वारा, और दोनों का परिणाम बता दिया गया।
﴾ 4 ﴿ निःसंदेह, हमने तैयार की काफ़िरों (कृतघ्नों) के लिए ज़ंजीर तथा तौक़ और दहकती अग्नि।
﴾ 5 ﴿ निश्चय सदाचारी (कृतज्ञ) पियेंगे ऐसे प्याले से जिसमें कपूर मिश्रित होगा।
﴾ 6 ﴿ ये एक स्रोत होगा, जिससे अल्लाह के भक्त पियेंगे। उसे बहा ले जायेंगे (जहाँ चाहेंगे)।[1]
1. अर्थात उस को जिधर चाहेंगे मोड़ ले जायेंगे। जैसे घर, बैठक आदि।
﴾ 7 ﴿ जो (संसार में) पूरी करते रहे मनोतियाँ[1] और डरते रहे उस दिन से[2] जिसकी आपदा चारों ओर फैली हुई होगी।
1. नज़र (मनौती) का अर्थ है, अल्लाह के समिप्य के लिये कोई कर्म अपने ऊपर अनिवार्य कर लेना। और किसी देवी-देवता तथा पीर-फ़क़ीर के लिये मनौती मानना शिर्क है। जिस को अल्लाह कभी भी क्षमा नहीं करेगा। अर्थात अल्लाह के लिये जो मनौतियाँ मानते रहे उसे पूरी करते रहे। 2. अर्थात प्रलय और ह़िसाब के दिन से।
﴾ 8 ﴿ और भोजन कराते रहे उस (भोजन) को प्रेम करने के बावजूद, निर्धन, अनाथ और बंदी को।
﴾ 9 ﴿ (अपने मन में ये सोचकर) हम तुम्हें भोजन कराते हैं केवल अल्लाह की प्रसन्नता के लिए। तुमसे नहीं चाहते हैं कोई बदला और न कोई कृतज्ञता।
﴾ 10 ﴿ हम डरते हैं अपने पालनहार से, उस दिन से, जो अति भीषण तथा घोर होगा।
﴾ 11 ﴿ तो बचा लिया अल्लाह ने उन्हें उस दिन की आपदा से और प्रदान कर दिया प्रफुल्लता तथा प्रसन्नता।
﴾ 12 ﴿ और उन्हें प्रतिफल दिया उनके धैर्य के बदले स्वर्ग तथा रेशमी वस्त्र।
﴾ 13 ﴿ वे तकिये लगाये उसमें तख़्तों पर बैठे होंगे। न उसमें धूप देखेंगे न कड़ा शीत।
﴾ 14 ﴿ और झुके होंगे उनपर उस (स्वर्ग) के साये और बस में किये होंगे उसके फलों के गुच्छे पूर्णतः।
﴾ 15 ﴿ तथा फिराये जायेंगे उनपर चाँदी के बर्तन तथा प्याले जो शीशों के होंगे।
﴾ 16 ﴿ चाँदी के शीशों के, जो एक अनुमान से भरेंगे।[1]
1. अर्थात सेवक उसे ऐसे अनुमान से भरेंगे कि न आवश्यक्ता से कम होंगे न अधिक।
﴾ 17 ﴿ और पिलाये जायेंगे उसमें ऐसे भरे प्याले, जिसमें सोंठ मिली होगी।
﴾ 18 ﴿ ये एक स्रोत है उस (स्वर्ग) में, जिसका नाम सलसबील है।
﴾ 19 ﴿ और (सेवा के लिए) फिर रहे होंगे उनपर सदावासी बालक, जब तुम उन्हें देखोगे, तो उन्हें समझोगे कि बिखरे हुए मोती हैं।
﴾ 20 ﴿ तथा जब तुम वहाँ देखोगे, तो देखोगे बड़ा सुख तथा भारी राज्य।
﴾ 21 ﴿ उनके ऊपर रेशमी हरे महीन तथा दबीज वस्त्र होंगे और पहनाये जायेंगे उन्हें चाँदी के कंगन और पिलायेगा उन्हें उनका पालनहार पवित्र पेय।
﴾ 22 ﴿ (तथा कहा जायेगाः) यही है तुम्हारे लिए प्रतिफल और तुम्हारे प्रयास का आदर किया गया।
﴾ 23 ﴿ वास्तव में, हमने ही उतारा है आपपर क़ुर्आन थोड़ा-थोड़ा करके।[1]
1. अर्थात नबूवत की तेईस वर्ष की अवधि में, और ऐसा क्यों किया गया इस के लिये देखियेः सूरह बनी इस्राईल, आयतः 106।
﴾ 24 ﴿ अतः, आप धैर्य से काम लें अपने पालनहार के आदेशानुसार और बात न मानें, उनमें से किसी पापी तथा कृतघ्न की।
﴾ 25 ﴿ तथा स्मरण करें अपने पालनहार के नाम का, प्रातः तथा संध्या (के समय)।
﴾ 26 ﴿ तथा रात्रि में सज्दा करें उसके समक्ष और उसकी पवित्रता का वर्णन करें, रात्रि के लम्बे समय तक।
﴾ 27 ﴿ वास्तव में, ये लोग मोह रखते हैं संसार से और छोड़ रहे हैं अपने पीछे एक भारी दिन[1] को।
1. इस से अभिप्राय प्रलय का दिन है।
﴾ 28 ﴿ हमने ही उन्हें पैदा किया है और सुदृढ़ किये हैं उनके जोड़-बंद तथा जब हम चाहें बदला दें उनके[1] जैसे (दूसरों को)।
1. अर्थात इन का विनाश कर के इन के स्थान पर दूसरों को पैदा कर दें।
﴾ 29 ﴿ निश्चय ये (सूरह) एक शिक्षा है। अतः, जो चाहे अपने पालनहार की ओर (जाने की) राह बना ले।
﴾ 30 ﴿ और तुम अल्लाह की इच्छा के बिना कुछ भी नहीं चाह सकते।[1] वास्तव में, अल्लाह सब चीज़ों और गुणों को जानने वाला है।
1. अर्थात कोई इस बात पर समर्थ नहीं कि जो चाहे कर ले। जो भलाई चाहता है तो अल्लाह उसे भलाई की राह दिखा देता है।
﴾ 31 ﴿ वह प्रवेश देता है जिसे चाहे अपनी दया में और अत्याचारियों के लिए उसने तैयार की है दुःखदायी यातना।