सूरह फतह के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मदनी है, इस में 29 आयतें हैं।
- फतह का अर्थः विजय है। और इस की प्रथम आयत में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को विजय की शुभ सूचना दी गई है। इसलिये इसका यह नाम रखा गया है।
- इस में विजय की शुभ सूचना देते हुये आप तथा आप के साथियों के लिये उन पुरस्कारों की चर्चा की गई है जो इस विजय के द्वारा प्राप्त हुये। साथ ही मुनाफिकों तथा मुशरिकों को चेतावनी दी गई कि उनके बुरे दिन आ गये हैं।
- इस में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के हाथ पर बैअत (वचन) को अल्लाह के हाथ पर वचन कह कर आप के पद को बताया गया है। तथा इस में मुनाफ़िक़ों को जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ नहीं निकले और अपने धन-परिवार की चिंता में रह गये चेतावनी दी गई है। और जो विवश थे उन्हें निर्दोष करार दिया गया है।
- इस में ईमान वालों को जो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के लिये जान देने को तैयार हो गये अल्लाह की प्रसन्नता की शुभ सूचना दी गई है। और बताया गया है कि उनका भविष्य उज्जवल होगा तथा उनकी सहायता होगी।
- इस में बताया गया है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मस्जिदे हराम में प्रवेश का जो सपना देखा है वह सच्चा है। और वह पूरा होगा। आप को ऐसे साथी मिल गये हैं जिन का चित्र तौरात और इंजील में देखा जा सकता है।
- यह सूरह जी कादा के महीने, सन् 6 हिज़ी में हुदैबिया से वापसी के समय हुदैबिया तथा मदीना के बीच उतरी। (सहीह बुख़ारी: 4833)। और दो वर्ष बाद मक्का विजय हो गया। और अल्लाह ने आप के स्वप्न को सच कर दिया।
हुदैबिया की संधिः
मदीना हिजरत के पश्चात् मक्का के मुश्रिकों ने मस्जिदे हराम (काबा) पर अधिकार कर लिया। और मुसलमानों को हज्ज तथा उमरा करने से रोक दिया।
अब तक मुसलमानों और काफिरों के बीच तीन युद्ध हो चुके थे कि सन् 6 हिज़ी में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने यह सपना देखा कि आप मस्जिदे हराम में प्रवेश कर गये हैं। इसलिये आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उमरे का ऐलान कर दिया। और अपने चौदह सौ साथियों के साथ 1 जीक़ादा सन् 6 हिजरी को मक्का की ओर चल दिये। मदीना से 6 मील जा कर जुल हुलैफ़ा में एहराम बाँधा। और कुर्बानी के पशु साथ लिये। आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मक्का से 22 कि.मी. दूर हुदैबिया तक पहुँच गये तो उस्मान (रज़ियल्लाहु अन्ह) को मक्का भेजा कि हम उमरा के लिये आये हैं। मक्का वासियों ने उनका आदर किया। किन्तु इस के लिये तय्यार नहीं हुये कि नबी अपने साथियों के साथ मक्का में प्रवेश करें। इस विवाद के कारण उस्मान (रज़ियल्लाहु अन्हु) की वापसी में कुछ देर हो गई। जिस से ऐसी स्थिति पैदा हो गई कि अब बलपूर्वक ही मक्का में प्रवेश करना पड़ेगा। और नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपने साथियों से जिहाद के लिये बैअत (वचन) ली। इस ऐतिहासिक बचन को ((बैअत रिजवान)) के नाम से याद किया जाता है। जब मक्का वासियों को इस की सूचना मिली तो वह संधि के लिये तैयार हो गये। और संधि के लिये कुछ प्रतिनिधि भेजे। और निम्नलिखित बातों पर संधि हुई:
- मुसलमान आगामी वर्ष आ कर उमरा करेंगे।
- वह अपने साथ केवल तलवार लायेंगे जो मियान में होगी।
- वह केवल तीन दिन मक्का में रहेंगे।
- मुसलमान और उन के बीच दस वर्ष युद्ध विराम रहेगा।
- मक्का का कोई व्यक्ति मदीना जाये तो उसे वापिस करना होगा। किन्तु यदि कोई मुसलमान काफ़िर बन कर मक्का आये तो वे उसे वापिस नहीं करेंगे।
- हरम के आस पास के कबीले जिस पक्ष के साथ चाहें हो जायें। और उन पर वही दायित्व होगा जो उन के पक्ष पर होगा।
- यदि इन कबीलों में किसी ने दूसरे पक्ष के किसी कबीले के साथ अत्याचार किया तो इसे संधि भंग माना जायेगा। यह संधि मुसलमानों ने बहुत दब कर की थी। मगर इस से उन्हें दो बड़े लाभ प्राप्त हुए।
- क- मस्जिदे हराम में प्रवेश की राह खुल गई।
- ख- इस्लाम और मुसलमानों पर आक्रमण की स्थिति समाप्त हो गई। जिस से इस्लाम के प्रचार-प्रसार की बाधा दूर हो गई। और इस्लाम तेजी से फैलने लगा। और जब आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मक्का वासियों के संधि भंग कर देने के कारण सन् 10 हिजी में मक्का विजय किया तो उस समय आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथियों की संख्या दस हज़ार थी। और मक्का की विजय के साथ ही पूरे मक्का वासी तथा आस-पास के कबीले मुसलमान हो गये। इस प्रकार धीरे धीरे आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के युग ही में सारे अरब, मुसलमान हो गये। इसीलिये कुआन ने हुदैबिय्या कि संधि को फ़त्हे मुबीन (खुली विजय) कहा है।
Surah Al-Fath in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
إِنَّا فَتَحْنَا لَكَ فَتْحًا مُّبِينًا ﴾ 1 ﴿
Inna fatahna laka fathan mubeenan
हे नबी! हमने विजय[1] प्रदान कर दी आपको खुली विजय। 1. ह़दीस में है कि इस से अभिप्राय ह़ुदैबिया की संधि है। (बुख़ारीः 4834)
لِّيَغْفِرَ لَكَ ٱللَّهُ مَا تَقَدَّمَ مِن ذَنۢبِكَ وَمَا تَأَخَّرَ وَيُتِمَّ نِعْمَتَهُۥ عَلَيْكَ وَيَهْدِيَكَ صِرَٰطًا مُّسْتَقِيمًا ﴾ 2 ﴿
Liyaghfira laka Allahu ma taqaddama min thanbika wama taakhkhara wayutimma niAAmatahu AAalayka wayahdiyaka siratan mustaqeeman
ताकि क्षमा कर दे[1] अल्लाह आपके लिए, आपके अगले तथा पिछले दोषों को तथा पूरा करे अपना पुरस्कार, आपके ऊपर और दिखाये आपको सीधी राह। 1. ह़दीस में है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) रात्रि में इतनी नमाज़ पढ़ा करते थे कि आप के पाँव सूज जाते थे। तो आप से कहा गया कि आप ऐसा क्यों करते हैं? अल्लाह ने तो आप के विगत तथा भविष्य के पाप क्षमा कर दिये हैं? तो आप ने फ़रमायाः तो क्या मैं कृतज्ञ भक्त न बनूँ? (सह़ीह़ बुख़ारीः 4837)
وَيَنصُرَكَ ٱللَّهُ نَصْرًا عَزِيزًا ﴾ 3 ﴿
Wayansuraka Allahu nasran AAazeezan
तथा अल्लाह आपकी सहायता करे भरपूर सहायता।
هُوَ ٱلَّذِىٓ أَنزَلَ ٱلسَّكِينَةَ فِى قُلُوبِ ٱلْمُؤْمِنِينَ لِيَزْدَادُوٓا۟ إِيمَٰنًا مَّعَ إِيمَٰنِهِمْ وَلِلَّهِ جُنُودُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا ﴾ 4 ﴿
Huwa allathee anzala alssakeenata fee quloobi almumineena liyazdadoo eemanan maAAa eemanihim walillahi junoodu alssamawati waalardi wakana Allahu AAaleeman hakeeman
वही है, जिसने उतारी शान्ति ईमान वालों के दिलों में, ताकि अधिक हो जाये उनका ईमान अपने ईमान के साथ तथा अल्लाह ही की हैं, आकाशों तथा धरती की सेनायें तथा अल्लाह सब कुछ और सब गुणों को जानने वाला है।
لِّيُدْخِلَ ٱلْمُؤْمِنِينَ وَٱلْمُؤْمِنَٰتِ جَنَّٰتٍ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَا وَيُكَفِّرَ عَنْهُمْ سَيِّـَٔاتِهِمْ وَكَانَ ذَٰلِكَ عِندَ ٱللَّهِ فَوْزًا ﴾ 5 ﴿
Liyudkhila almumineena waalmuminati jannatin tajree min tahtiha alanharu khalideena feeha wayukaffira AAanhum sayyiatihim wakana thalika AAinda Allahi fawzan AAatheeman
ताकि वह प्रवेश कराये ईमान वाले पुरुषों तथा स्त्रियों को ऐसे स्वर्गों में, बह रही हैं जिनमें नहरें और वे सदैव रहेंगे उनमें और ताकि दूर कर दे उनसे, उनकी बुराईयों को और अल्लाह के यहाँ यही बहुत बड़ी सफलता है।
وَيُعَذِّبَ ٱلْمُنَٰفِقِينَ وَٱلْمُنَٰفِقَٰتِ وَٱلْمُشْرِكِينَ وَٱلْمُشْرِكَٰتِ ٱلظَّآنِّينَ بِٱللَّهِ ظَنَّ ٱلسَّوْءِ عَلَيْهِمْ دَآئِرَةُ ٱلسَّوْءِ وَغَضِبَ ٱللَّهُ عَلَيْهِمْ وَلَعَنَهُمْ وَأَعَدَّ لَهُمْ جَهَنَّمَ وَسَآءَتْ مَصِيرًا ﴾ 6 ﴿
WayuAAaththiba almunafiqeena waalmunafiqati waalmushrikeena waalmushrikati alththanneena biAllahi thanna alssawi AAalayhim dairatu alssawi waghadiba Allahu AAalayhim walaAAanahum waaAAadda lahum jahannama wasaat maseeran
तथा यातना दे मुनाफ़िक़ पुरुषों तथा स्त्रियों को, जो बुरा विचार रखने वाले हैं अल्लाह के संबंध में। उन्हीं पर बुरी आपदा आ पड़ी तथा अल्लाह का प्रकोप हुआ उनपर और उसने धिक्कार दिया उन्हें तथा तैयार कर दी उनके लिए नरक और वह बुरा जाने का स्थान है।
وَلِلَّهِ جُنُودُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَكَانَ ٱللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا ﴾ 7 ﴿
Walillahi junoodu alssamawati waalardi wakana Allahu AAazeezan hakeeman
तथा अल्लाह ही की हैं आकाशों तथा धरती की सेनायें और अल्लाह प्रबल तथा सब गुणों को जानने वाला है।[1] 1. इस लिये वह जिस को चाहे, और जब चाहे, हिलाक और नष्ट कर सकता है।
إِنَّآ أَرْسَلْنَٰكَ شَٰهِدًا وَمُبَشِّرًا وَنَذِيرًا ﴾ 8 ﴿
Inna arsalnaka shahidan wamubashshiran wanatheeran
(हे नबी!) हमने भेजा है आपको गवाह बनाकर तथा शुभ सूचना देने एवं सावधान करने वाला बनाकर।
لِّتُؤْمِنُوا۟ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَتُعَزِّرُوهُ وَتُوَقِّرُوهُ وَتُسَبِّحُوهُ بُكْرَةً وَأَصِيلًا ﴾ 9 ﴿
Lituminoo biAllahi warasoolihi watuAAazziroohu watuwaqqiroohu watusabbihoohu bukratan waaseelan
ताकि तुम ईमान लाओ अल्लाह एवं उसके रसूल पर और सहायता करो आपकी तथा आदर करो आपका और अल्लाह की पवित्रता का वर्णन करते रहो, प्रातः तथा संध्या।
إِنَّ ٱلَّذِينَ يُبَايِعُونَكَ إِنَّمَا يُبَايِعُونَ ٱللَّهَ يَدُ ٱللَّهِ فَوْقَ أَيْدِيهِمْ فَمَن نَّكَثَ فَإِنَّمَا يَنكُثُ عَلَىٰ نَفْسِهِۦ وَمَنْ أَوْفَىٰ بِمَا عَٰهَدَ عَلَيْهُ ٱللَّهَ فَسَيُؤْتِيهِ أَجْرًا عَظِيمًا ﴾ 10 ﴿
Inna allatheena yubayiAAoonaka innama yubayiAAoona Allaha yadu Allahi fawqa aydeehim faman nakatha fainnama yankuthu AAala nafsihi waman awfa bima AAahada AAalayhu Allaha fasayuteehi ajran AAatheeman
(हे नबी!) जो बैअत कर रहे हैं आपसे, वे वास्तव[1] में बैअत कर रहे हैं अल्लाह से। अल्लाह का हाथ उनके हाथों के ऊपर है। फिर जिसने वचन तोड़ा, तो वह अपने ऊपर ही वचन तोड़ेगा तथा जिसने पूरा किया जो वचन अल्लाह से किया है, तो वह उसे बड़ा प्रतिफल (बदला) प्रदान करेगा। 1. बैअत का अर्थ है हाथ पर हाथ मार कर वचन देना। यह बैअत नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने युध्द के लिये ह़ुदैबिया में अपने चौदह सौ साथियों से एक वृक्ष के लीचे ली थी। जो इस्लामी इतिहास में "बैअते रिज़वान" के नाम से प्रसिध्द है। रही वह बैअत जो पीर अपने मिरीदों से लेते हैं तो उस का इस्लाम से कोई संबंध नहीं है।
سَيَقُولُ لَكَ ٱلْمُخَلَّفُونَ مِنَ ٱلْأَعْرَابِ شَغَلَتْنَآ أَمْوَٰلُنَا وَأَهْلُونَا فَٱسْتَغْفِرْ لَنَا يَقُولُونَ بِأَلْسِنَتِهِم مَّا لَيْسَ فِى قُلُوبِهِمْ قُلْ فَمَن يَمْلِكُ لَكُم مِّنَ ٱللَّهِ شَيْـًٔا إِنْ أَرَادَ بِكُمْ ضَرًّا أَوْ أَرَادَ بِكُمْ نَفْعًۢا بَلْ كَانَ ٱللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًۢا ﴾ 11 ﴿
Sayaqoolu laka almukhallafoona mina alaAArabi shaghalatna amwaluna waahloona faistaghfir lana yaqooloona bialsinatihim ma laysa fee quloobihim qul faman yamliku lakum mina Allahi shayan in arada bikum darran aw arada bikum nafAAan bal kana Allahu bima taAAmaloona khabeeran
(हे नबी!) वे[1] शीघ्र ही आपसे कहेंगे, जो पीछे छोड़ दिये गये बद्दुओं में से कि हम लगे रह गये अपने धनों तथा परिवार में। अतः, आप क्षमा की प्रार्थना कर दें हमारे लिए। वे अपने मुखों से वो बात कहेंगे, जो उनके दिलों में नहीं है। आप उनसे कहिये कि कौन है, जो अधिकार रखता हो तुम्हारे लिए, अल्लाह के सामने किसी चीज़ का, यदि अल्लाह तुम्हें कोई हानि पहुँचाना चाहे या कोई लाभ पहुँचाना चाहे? बल्कि अल्लाह सूचित है उससे, जो तुम कर रहे हो। 1. आयत 11-12 में मदीना के आस-पास के मुनाफ़िक़ों की दशा बतायी गयी है जो नबी के साथ उमरा के लिये मक्का नहीं गये। उन्होंने इस डर से कि मुसलमान सब के सब मार दिये जायेंगे, आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का साथ नही दिया।
بَلْ ظَنَنتُمْ أَن لَّن يَنقَلِبَ ٱلرَّسُولُ وَٱلْمُؤْمِنُونَ إِلَىٰٓ أَهْلِيهِمْ أَبَدًا وَزُيِّنَ ذَٰلِكَ فِى قُلُوبِكُمْ وَظَنَنتُمْ ظَنَّ ٱلسَّوْءِ وَكُنتُمْ قَوْمًۢا بُورًا ﴾ 12 ﴿
Bal thanantum an lan yanqaliba alrrasoolu waalmuminoona ila ahleehim abadan wazuyyina thalika fee quloobikum wathanantum thanna alssawi wakuntum qawman booran
बल्कि, तुमने सोचा था कि कदापि वापस नहीं आयेंगे रसूल और न ईमान वाले, अपने परिजनों की ओर, कभी भी और भली लगी ये बात तुम्हारे दिलों को और तुमने बुरी सोच सोची और थे ही तुम विनाश होने वाले लोग।
وَمَن لَّمْ يُؤْمِنۢ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ فَإِنَّآ أَعْتَدْنَا لِلْكَٰفِرِينَ سَعِيرًا ﴾ 13 ﴿
Waman lam yumin biAllahi warasoolihi fainna aAAtadna lilkafireena saAAeeran
और जो ईमान नहीं लाये अल्लाह तथा उसके रसूल पर, तो हमने तैयार कर रखी है काफ़िरों के लिए दहकती अग्नि।
وَلِلَّهِ مُلْكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ يَغْفِرُ لِمَن يَشَآءُ وَيُعَذِّبُ مَن يَشَآءُ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا ﴾ 14 ﴿
Walillahi mulku alssamawati waalardi yaghfiru liman yashao wayuAAaththibu man yashao wakana Allahu ghafooran raheeman
अल्लाह के लिए है आकाशों तथा धरती का राज्य। वह क्षमा कर दे जिसे चाहे और यातना दे जिसे चाहे और अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।
سَيَقُولُ ٱلْمُخَلَّفُونَ إِذَا ٱنطَلَقْتُمْ إِلَىٰ مَغَانِمَ لِتَأْخُذُوهَا ذَرُونَا نَتَّبِعْكُمْ يُرِيدُونَ أَن يُبَدِّلُوا۟ كَلَٰمَ ٱللَّهِ قُل لَّن تَتَّبِعُونَا كَذَٰلِكُمْ قَالَ ٱللَّهُ مِن قَبْلُ فَسَيَقُولُونَ بَلْ تَحْسُدُونَنَا بَلْ كَانُوا۟ لَا يَفْقَهُونَ إِلَّا قَلِيلًا ﴾ 15 ﴿
Sayaqoolu almukhallafoona itha intalaqtum ila maghanima litakhuthooha tharoona nattabiAAkum yureedoona an yubaddiloo kalama Allahi qul lan tattabiAAoona kathalikum qala Allahu min qablu fasayaqooloona bal tahsudoonana bal kanoo la yafqahoona illa qaleelan
वो लोग जो पीछे छोड़ दिये गये, कहेंगे, जब तुम चलोगे ग़नीमतों की ओर ताकि उन्हें प्राप्त करो कि हमें (भी) अपने साथ[1] चलने दो। वे चाहते हैं कि बदल दें अल्लाह के आदेश को। आप कह दें कि कदापि हमारे साथ न चल। इसी प्रकार, कहा है अल्लाह ने इससे पहले। फिर वह कहेंगे कि बल्कि तुम द्वेष (जलन) रखते हो, हम से। बल्कि, वे कम ही बात समझते हैं। 1. ह़ुदैबिया से वापिस आ कर नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने ख़ैबर पर आक्रमण किया जहाँ के यहूदियों ने संधि भंग कर के अह़ज़ाब के युध्द में मक्का के काफ़िरों का साथ दिया था। तो जो बद्दु ह़ुदैबिया में नहीं गये वह अब ख़ैबर के युध्द में इस लिये आप के साथ जाने के लिये तैयार हो गये कि वहाँ ग़नीमत का धन मिलने की आशा थी। अतः आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से यह कहा गया कि उन्हें यह बता दें कि यह पहले ही से अल्लाह का आदेश है कि तुम हमारे साथ नहीं जा सकते। ख़ैबर मदीने से डेढ़ सौ किलो मीटर दूर मदीने से उत्तर पूर्वी दिशा में है। यह युध्द मुह़र्रम सन् 7 हिजरी में हुआ।
قُل لِّلْمُخَلَّفِينَ مِنَ ٱلْأَعْرَابِ سَتُدْعَوْنَ إِلَىٰ قَوْمٍ أُو۟لِى بَأْسٍ شَدِيدٍ تُقَٰتِلُونَهُمْ أَوْ يُسْلِمُونَ فَإِن تُطِيعُوا۟ يُؤْتِكُمُ ٱللَّهُ أَجْرًا حَسَنًا وَإِن تَتَوَلَّوْا۟ كَمَا تَوَلَّيْتُم مِّن قَبْلُ يُعَذِّبْكُمْ عَذَابًا أَلِيمًا ﴾ 16 ﴿
Qul lilmukhallafeena mina alaAArabi satudAAawna ila qawmin olee basin shadeedin tuqatiloonahum aw yuslimoona fain tuteeAAoo yutikumu Allahu ajran hasanan wain tatawallaw kama tawallaytum min qablu yuAAaththibkum AAathaban aleeman
आप कह दें, पीछे छोड़ दिये गये बद्दुओं से कि शीघ्र तुम बुलाये जाओगे, एक अति योध्दा जाति (से युध्द) की ओर।[1] जिनसे तुम युध्द करोगे अथवा वह इस्लाम ले आयें। तो यदि तुम आज्ञा का पालन करोगे, तो प्रदान करेगा अल्लाह तुम्हें उत्तम बदला तथा यदि तुम विमुख हो गये, जैसे इससे पूर्व (मक्का जाने से) विमुख हो गये, तो तुम्हें यातना देगा दुःखदायी यातना। 1. इस से अभिप्राय ह़ुनैन का युध्द है जो सन् 8 हिज्री में मक्का की विजय के पश्चात् हुआ। जिस में पहले पराजय, फिर विजय हुई। और बहुत सा ग़नीमत का धन प्राप्त हुआ, फिर वह भी इस्लाम ले आये।
لَّيْسَ عَلَى ٱلْأَعْمَىٰ حَرَجٌ وَلَا عَلَى ٱلْأَعْرَجِ حَرَجٌ وَلَا عَلَى ٱلْمَرِيضِ حَرَجٌ وَمَن يُطِعِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ يُدْخِلْهُ جَنَّٰتٍ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَٰرُ وَمَن يَتَوَلَّ يُعَذِّبْهُ عَذَابًا أَلِيمًا ﴾ 17 ﴿
Laysa AAala alaAAma harajun wala AAala alaAAraji harajun wala AAala almareedi harajun waman yutiAAi Allaha warasoolahu yudkhilhu jannatin tajree min tahtiha alanharu waman yatawalla yuAAaththibhu AAathaban aleeman
नहीं है अंधे पर कोई दोष,[1] न लंगड़े पर कोई दोष और न रोगी पर कोई दोष तथा जो आज्ञा का पालन करेगा अल्लाह एवं उसके रसूल की, तो वह प्रवेश देगा ऐसे स्वर्गों में, बहती हैं जिनमें नहरें तथा जो मुख फेरेगा, तो वह यातना देगा उसे, दुःखदायी यातना। 1. अर्थात जिहाद में भाग न लेने पर।
لَّقَدْ رَضِىَ ٱللَّهُ عَنِ ٱلْمُؤْمِنِينَ إِذْ يُبَايِعُونَكَ تَحْتَ ٱلشَّجَرَةِ فَعَلِمَ مَا فِى قُلُوبِهِمْ فَأَنزَلَ ٱلسَّكِينَةَ عَلَيْهِمْ وَأَثَٰبَهُمْ فَتْحًا قَرِيبًا ﴾ 18 ﴿
Laqad radiya Allahu AAani almumineena ith yubayiAAoonaka tahta alshshajarati faAAalima ma fee quloobihim faanzala alsakeenata AAalayhim waathabahum fathan qareeban
अल्लाह प्रसन्न हो गया ईमान वालों से, जब वे आप (नबी) से बैअत कर रहे थे, वृक्ष के नीचे। उसने जान लिया जो कुछ उनके दिलों में था, इसलिए उतार दी शान्ति उनपर तथा उन्हें बदले में दी समीप की विजय।[1] 1. इस से अभिप्राय ख़ैबर की विजय है।
وَمَغَانِمَ كَثِيرَةً يَأْخُذُونَهَا وَكَانَ ٱللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا ﴾ 19 ﴿
Wamaghanima katheeratan yakhuthoonaha wakana Allahu AAazeezan hakeeman
तथा बहुत-से ग़नीमत के धन (परिहार), जो वह प्राप्त करेंगे और अल्लाह प्रभुत्वशाली, गुणी है।
وَعَدَكُمُ ٱللَّهُ مَغَانِمَ كَثِيرَةً تَأْخُذُونَهَا فَعَجَّلَ لَكُمْ هَٰذِهِۦ وَكَفَّ أَيْدِىَ ٱلنَّاسِ عَنكُمْ وَلِتَكُونَ ءَايَةً لِّلْمُؤْمِنِينَ وَيَهْدِيَكُمْ صِرَٰطًا مُّسْتَقِيمًا ﴾ 20 ﴿
WaAAadakumu Allahu maghanima katheeratan takhuthoonaha faAAajjala lakum hathihi wakaffa aydiya alnnasi AAankum walitakoona ayatan lilmumineena wayahdiyakum siratan mustaqeeman
अल्लाह ने वचन दिया है तुम्हें बहुत-से परिहार (ग़नीमतों) का, जिसे तुम प्राप्त करोगे। तो शीघ्र प्रदान कर दी तुम्हें ये (ख़ैबर की ग़नीमत) तथा रोक दिया लोगों के हाथों को तुमसे, ताकि[1] वह एक निशानी बन जाये ईमान वालों के लिए और तुम्हें सीधी राह चलाये। 1. अर्थात ख़ैबर की विजय और मक्का की विजय के समय शत्रुओं के हाथों को रोक दिया ताकि यह विश्वास हो जाये कि अल्लाह ही तुम्हारा रक्षक तथा सहायक है।
وَأُخْرَىٰ لَمْ تَقْدِرُوا۟ عَلَيْهَا قَدْ أَحَاطَ ٱللَّهُ بِهَا وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍ قَدِيرًا ﴾ 21 ﴿
Waokhra lam taqdiroo AAalayha qad ahata Allahu biha wakana Allahu AAala kulli shayin qadeeran
और दूसरी ग़नीमतें भी, जो तुम प्राप्त नहीं कर सके हो, अल्लाह ने उन्हें नियंत्रण में कर रखा है तथा अल्लाह जो कुछ चाहे, कर सकता है।
وَلَوْ قَٰتَلَكُمُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ لَوَلَّوُا۟ ٱلْأَدْبَٰرَ ثُمَّ لَا يَجِدُونَ وَلِيًّا وَلَا نَصِيرًا ﴾ 22 ﴿
Walaw qatalakumu allatheena kafaroo lawallawoo aladbara thumma la yajidoona waliyyan wala naseeran
और यदि तुमसे युध्द करते जो काफ़िर[1] हैं, तो अवश्य पीछा दिखा देते, फिर नहीं पाते कोई संरक्षक और न कोई सहायक। 1. अर्थात मक्का में प्रवेश के समय युध्द हो जाता।
سُنَّةَ ٱللَّهِ ٱلَّتِى قَدْ خَلَتْ مِن قَبْلُ وَلَن تَجِدَ لِسُنَّةِ ٱللَّهِ تَبْدِيلًا ﴾ 23 ﴿
Sunnata Allahi allatee qad khalat min qablu walan tajida lisunnati Allahi tabdeelan
ये अल्लाह का नियम है उनमें, जो चला आ रहा है पहले से और तुम कदापि नहीं पाओगे अल्लाह के नियम में परिवर्तन।
وَهُوَ ٱلَّذِى كَفَّ أَيْدِيَهُمْ عَنكُمْ وَأَيْدِيَكُمْ عَنْهُم بِبَطْنِ مَكَّةَ مِنۢ بَعْدِ أَنْ أَظْفَرَكُمْ عَلَيْهِمْ وَكَانَ ٱللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرًا ﴾ 24 ﴿
Wahuwa allathee kaffa aydiyahum AAankum waaydiyakum AAanhum bibatni makkata min baAAdi an athfarakum AAalayhim wakana Allahu bima taAAmaloona baseeran
तथा वही है, जिसने रोक दिया उनके हाथों को तुमसे तथा तुम्हारे हाथों को उनसे मक्का की वादी[1] में, इसके पश्चात् कि तुम्हें विजय प्रदान कर दी, उनपर तथा अल्लाह देख रहा था, जो कुछ तुम कर रहे थे। 1. जब नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ह़ुदैबिया में थे तो काफ़िरों ने 80 सशस्त्र युवकों को भेजा कि वह आप तथा आप के साथियों के विरुध्द कारवाही कर के सब को समाप्त कर दें। परन्तु वह सभी पकड़ लिये गये। और आप ने सब को क्षमा कर दिया। तो यह आयत इसी अवसर पर उतरी। (सह़ीह़ मुस्लिमः 1808)
هُمُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ وَصَدُّوكُمْ عَنِ ٱلْمَسْجِدِ ٱلْحَرَامِ وَٱلْهَدْىَ مَعْكُوفًا أَن يَبْلُغَ مَحِلَّهُۥ وَلَوْلَا رِجَالٌ مُّؤْمِنُونَ وَنِسَآءٌ مُّؤْمِنَٰتٌ لَّمْ تَعْلَمُوهُمْ أَن تَطَـُٔوهُمْ فَتُصِيبَكُم مِّنْهُم مَّعَرَّةٌۢ بِغَيْرِ عِلْمٍ لِّيُدْخِلَ ٱللَّهُ فِى رَحْمَتِهِۦ مَن يَشَآءُ لَوْ تَزَيَّلُوا۟ لَعَذَّبْنَا ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ مِنْهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا ﴾ 25 ﴿
Humu allatheena kafaroo wasaddookum AAani almasjidi alharami waalhadya maAAkoofan an yablugha mahillahu walawla rijalun muminoona wanisaon muminatun lam taAAlamoohum an tataoohum fatuseebakum minhum maAAarratun bighayri AAilmin liyudkhila Allahu fee rahmatihi man yashao law tazayyaloo laAAaththabna allatheena kafaroo minhum AAathaban aleeman
ये वे लोग हैं, जिन्होंने कुफ़्र किया और रोक दिया तुम्हें मस्जिदे ह़राम से तथा बलि के पशु को, उनके स्थान तक पुहुँचने से रोक दिया और यदि ये भय न होता कि तुम कुछ मुसलमान पुरुषों तथा कुछ मुसलमान स्त्रियों को, जिन्हें तुम नहीं जानते थे, रौंद दोगे जिससे तुमपर दोष आ जायेगा[1] (तो युध्द से न रोका जाता)। ताकि प्रवेश कराये अल्लाह, जिसे चाहे, अपनी दया में। यदि वे (मुसलमान) अलग होते, तो हम अवश्य यातना देते उन्हें, जो काफ़िर हो गये उनमें से, दुःखदायी यातना। 1. अर्थात यदि ह़ुदैबिया के अवसर पर संधि न होती और युध्द हो जाता तो अनजाने में मक्का में कई मुसलमान भी मारे जाते जो अपना ईमान छुपाये हुये थे। और हिज्रत नहीं कर सके थे। फिर तुम पर दोष आ जाता कि तुम एक ओर इस्लाम का संदेश देते हो, तथा दूसरी ओर स्वयं मुसलमानों को मार रहे हो।
إِذْ جَعَلَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ فِى قُلُوبِهِمُ ٱلْحَمِيَّةَ حَمِيَّةَ ٱلْجَٰهِلِيَّةِ فَأَنزَلَ ٱللَّهُ سَكِينَتَهُۥ عَلَىٰ رَسُولِهِۦ وَعَلَى ٱلْمُؤْمِنِينَ وَأَلْزَمَهُمْ كَلِمَةَ ٱلتَّقْوَىٰ وَكَانُوٓا۟ أَحَقَّ بِهَا وَأَهْلَهَا وَكَانَ ٱللَّهُ بِكُلِّ شَىْءٍ عَلِيمًا ﴾ 26 ﴿
Ith jaAAala allatheena kafaroo fee quloobihimu alhamiyyata hamiyyata aljahiliyyati faanzala Allahu sakeenatahu AAala rasoolihi waAAala almumineena waalzamahum kalimata alttaqwa wakanoo ahaqqa biha waahlaha wakana Allahu bikulli shayin AAaleeman
जब काफ़िरों ने अपने दिलों में पक्षपात को स्थान दे दिया, जो वास्तव में जाहिलाना पक्षपात है, तो अल्लाह ने अपने रसूल पर तथा ईमान वालों पर शान्ति उतार दी तथा उन्हें पाबन्द रखा सदाचार की बात का तथा वे[1] उसके अधिक योग्य और पात्र थे तथा अल्लाह प्रत्येक वस्तु को भली-भाँति जानने वाला है। 1. सदाचार की बात से अभिप्राय "ला इलाहा इल्लल्लाह मुह़म्मदुर् रसूलुल्लाह" है। ह़ुदैबिया का संधिलेख जब लिखा गया और आप ने पहले "बिस्मिल्लाहिर् रह़मानिर् रह़ीम" लिखवाई तो क़ुरैश के प्रतिनिधियों ने कहाः हम रह़मान रह़ीम नहीं जानते। इसलिये "बिस्मिका अल्लाहुम्मा" लिखा जाये। और जब आप ने लिखवाया कि यह संधिपत्र है जिस पर "मुह़म्मदुर् रसूलुल्लाह" ने संधि की है को उन्हों ने कहाः "मुह़म्मद पुत्र अब्दुल्लाह" लिखा जाये। यदि हम आप को अल्लाह का रसूल ही मानते तो अल्लाह के घऱ से नहीं रोकते। आप ने उन की सब बातें मान लीं। और मुसलमानों ने भी सब कुछ सहन कर लिया। और अल्लाह ने उन के दिलों को शान्त रखा और संधि हो गई।
لَّقَدْ صَدَقَ ٱللَّهُ رَسُولَهُ ٱلرُّءْيَا بِٱلْحَقِّ لَتَدْخُلُنَّ ٱلْمَسْجِدَ ٱلْحَرَامَ إِن شَآءَ ٱللَّهُ ءَامِنِينَ مُحَلِّقِينَ رُءُوسَكُمْ وَمُقَصِّرِينَ لَا تَخَافُونَ فَعَلِمَ مَا لَمْ تَعْلَمُوا۟ فَجَعَلَ مِن دُونِ ذَٰلِكَ فَتْحًا قَرِيبًا ﴾ 27 ﴿
Laqad sadaqa Allahu rasoolahu alrruya bialhaqqi latadkhulunna almasjida alharama in shaa Allahu amineena muhalliqeena ruoosakum wamuqassireena la takhafoona faAAalima ma lam taAAlamoo fajaAAala min dooni thalika fathan qareeban
निश्चय अल्लाह ने अपने रसूल को सच्चा सपना दिखाया, सच के अनुसार। तुम अवश्य प्रवेश करोगे मस्जिदे ह़राम में, यदि अल्लाह ने चाहा, निर्भय होकर, अपने सिर मुंडाते तथा बाल कतरवाते हुए, तुम्हें किसी प्रकार का भय नहीं होगा,[1] वह जानता है जिसे तुम नहीं जानते। इसिलए प्रदान कर दी तुम्हें इस (मस्जिदे ह़राम में प्रवेश) से पहले, एक समीप (जल्दी) की[2] विजय। 1. अर्थात "उमरा" करते हुये जिस में सिर के बाल मुंडाये या कटाये जाते हैं। इसी प्रकार "ह़ज्ज" में भी मुंडाये या कटाये जाते हैं। 2. इस से अभिप्राय ख़ैबर की विजय है जो ह़ुदैबिया से वापसी के पश्चात् कुछ दिनों के बाद हुई। और दूसरा वर्ष संधि के अनुसार आप ने अपने अनुयायियों के साथ उमरा किया और आप का सपना अल्लाह ने साकार कर दिया।
هُوَ ٱلَّذِىٓ أَرْسَلَ رَسُولَهُۥ بِٱلْهُدَىٰ وَدِينِ ٱلْحَقِّ لِيُظْهِرَهُۥ عَلَى ٱلدِّينِ كُلِّهِۦ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ شَهِيدًا ﴾ 28 ﴿
Huwa allathee arsala rasoolahu bialhuda wadeeni alhaqqi liyuthhirahu AAala alddeeni kullihi wakafa biAllahi shaheedan
वही है, जिसने भेजा अपने रसूल को मार्गदर्शन एवं सत्धर्म के साथ, ताकि उसे प्रभुत्व प्रदान कर दे प्रत्येक धर्म पर तथा प्रयाप्त है (इसपर) अल्लाह का गवाह होना।
مُّحَمَّدٌ رَّسُولُ ٱللَّهِ وَٱلَّذِينَ مَعَهُۥٓ أَشِدَّآءُ عَلَى ٱلْكُفَّارِ رُحَمَآءُ بَيْنَهُمْ تَرَىٰهُمْ رُكَّعًا سُجَّدًا يَبْتَغُونَ فَضْلًا مِّنَ ٱللَّهِ وَرِضْوَٰنًا سِيمَاهُمْ فِى وُجُوهِهِم مِّنْ أَثَرِ ٱلسُّجُودِ ذَٰلِكَ مَثَلُهُمْ فِى ٱلتَّوْرَىٰةِ وَمَثَلُهُمْ فِى ٱلْإِنجِيلِ كَزَرْعٍ أَخْرَجَ شَطْـَٔهُۥ فَـَٔازَرَهُۥ فَٱسْتَغْلَظَ فَٱسْتَوَىٰ عَلَىٰ سُوقِهِۦ يُعْجِبُ ٱلزُّرَّاعَ لِيَغِيظَ بِهِمُ ٱلْكُفَّارَ وَعَدَ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّٰلِحَٰتِ مِنْهُم مَّغْفِرَةً وَأَجْرًا عَظِيمًۢا ﴾ 29 ﴿
Muhammadun rasoolu Allahi waallatheena maAAahu ashiddao AAala alkuffari ruhamao baynahum tarahum rukkaAAan sujjadan yabtaghoona fadlan mina Allahi waridwanan seemahum fee wujoohihim min athari alssujoodi thalika mathaluhum fee alttawrati wamathaluhum fee alinjeeli kazarAAin akhraja shatahu faazarahu faistaghlatha faistawa AAala sooqihi yuAAjibu alzzurraAAa liyagheetha bihimu alkuffara waAAada Allahu allatheena amanoo waAAamiloo alssalihati minhum maghfiratan waajran AAatheeman
मुह़म्मद[1] अल्लाह के रसूल हैं तथा जो लोग आपके साथ हैं, वे काफ़िरों के लिए कड़े और आपस में दयालु हैं। तुम देखोगे उन्हें, रुकूअ-सज्दा करते हुए, वे खोज कर रहे होंगे अल्लाह की दया तथा प्रसन्नता की। उनके लक्षण, उनके चेहरों पर सज्दों के चिन्ह होंगे। ये उनकी विशेषता, तौरात में है तथा उनके गुण, इंजील में उस खेती के समान बताये गये हैं, जिसने निकाला अपना अंकुर, फिर उसे बल दिया, फिर वह कड़ा हो गया, फिर वह (खेती) खड़ी हो गयी अपने तने पर। प्रसन्न करने लगी किसानों को, ताकि काफ़िर उनसे जलें। वचन दे रखा है अल्लाह ने उन लोगों को, जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, उनमें से क्षमा तथा बड़े प्रतिफल का। 1. इस अन्तिम आयत में सह़ाबा (नबी के साथियों) के गुणों का वर्णन करते हुये यह सूचना दी गई है कि इस्लाम क्रमशः प्रगतिशील हो कर प्रभुत्व प्राप्त कर लेगा। तथा ऐसा ही हुआ कि इस्लाम जो आरंभ में खेती के अंकुर के समान था क्रमशः उन्नति कर के एक दृढ़ प्रभुत्वशाली धर्म बन गया। और काफ़िर अपने द्वेष की अग्नि में जल-भुन कर ही रह गये। ह़दीस में है कि ईमान वाले आपस के प्रेम तथा दया और करुणा में एक शरीर के समान हैं। यदि उस के एक अंग को दुःख हो तो पूरा शरीर ताप और अनिद्रा में ग्रस्त हो जाता है। (सह़ीह़ बुखारीः 6011, सह़ीह़ मुस्लिमः 2596)