सूरह बय्यिनह के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मनी है, इस में 8 आयतें है। [1]
- इस की प्रथम आयत में बैयिनह अर्थातः प्रकाशित प्रमाण की चचर्चा हुई है जिस से इस का यह नाम रखा गया है।
- इस की आयत 1 से 3 तक में यह बताया गया है कि लोगों को कुफ़ से निकालने के लिये यह आवश्यक था कि एक ग्रन्थ के साथ एक रसूल भेजा जाये ताकि वह धर्म को सहीह रूप में प्रस्तुत करे।
- आयत 4,5 में बताया गया है कि अहले किताब (अर्थात यहूदी और ईसाई) के पास प्रकाशित शिक्षा आ चुकी थी किन्तु वे विभेद में पड़ गये। और उन्होंने धर्म की वास्तविक शिक्षा भुला दी।
- आयत 6 से 8 तक रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के इन्कार की दुःखद यातना को और रसूल पर ईमान ला कर अल्लाह से डरते हुये जीवन बिताने की सफलता को बताया गया है।
सूरह अल-बय्यिना | Surah Bayyinah in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
لَمْ يَكُنِ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ وَالْمُشْرِكِينَ مُنفَكِّينَ حَتَّىٰ تَأْتِيَهُمُ الْبَيِّنَةُ ﴾ 1 ﴿
लम यकुनिल लज़ीना कफरू मिन अहलिल किताबि वल मुशरिकीना मुन्फक कीना हत्ता तअ’ति यहुमुल बय्यिनह
अह्ले किताब के काफ़िर और मुश्रिक लोग ईमान लाने वाले नहीं थे जब तक कि उनके पास खुला प्रमाम न आ जाये।
رَسُولٌ مِّنَ اللَّهِ يَتْلُو صُحُفًا مُّطَهَّرَةً ﴾ 2 ﴿
रसूलुम मिनल लाहि यत्लू सुहुफ़म मुतह हरह
अर्थात अल्लाह का एक रसूल, जो पवित्र ग्रन्थ पढ़कर सुनाये।
فِيهَا كُتُبٌ قَيِّمَةٌ ﴾ 3 ﴿
फ़ीहा कुतुबुन क़य्यिमह
जिसमें उचित आदेश है।[1] 1. (1-3) इस सूरह में सर्व प्रथम यह बताया गया है कि इस पुस्तक के साथ एक रसूल (ईशदूत) भेजना क्यों आवश्यक था। इस का कारण यह है कि मानव संसार के आदि शास्त्र धारी (यहूद तथा ईसाई) हों या मिश्रणवादी अधर्म की ऐसी स्थिति में फंसे हुये थे कि एक नबी के बिना उन का इस स्थिति से निकलना संभव नहीं था। इस लिये इस चीज़ की आवश्यक्ता आई कि एक रसूल भेजा जाये जो स्वयं अपनी रिसालत (दूतत्व) का ज्वलंत प्रमाण हो। और सब के सामने अल्लाह की किताब को उस के सह़ीह़ रूप में प्रस्तुत करे जो असत्य के मिश्रण से पवित्र हो जिस से आदि धर्म शास्त्रों को लिप्त कर दिया गया है।
وَمَا تَفَرَّقَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ إِلَّا مِن بَعْدِ مَا جَاءَتْهُمُ الْبَيِّنَةُ ﴾ 4 ﴿
वमा तफर रक़ल लज़ीना ऊतुल किताबा इल्ला मिम ब’अदि मा जा अत्हुमुल बय्यिनह
और जिन लोगों को ग्रन्थ दिये गये, उन्होंने इस खुले प्रमाण के आ जाने के पश्चात ही मतभेद किया।[1] 1. इस के बाद आदि धर्म शास्त्रों के अनुयाईयों के कुटमार्ग का विवरण दिया गया है कि इस का कारण यह नहीं था कि अल्लाह ने उन को मार्ग दर्शन नहीं दिया। बल्कि वे अपने धर्म ग्रन्थों में मन माना परिवर्तन कर के स्वयं कुटमार्ग का कारण बन गये।
وَمَا أُمِرُوا إِلَّا لِيَعْبُدُوا اللَّهَ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ حُنَفَاءَ وَيُقِيمُوا الصَّلَاةَ وَيُؤْتُوا الزَّكَاةَ ۚ وَذَٰلِكَ دِينُ الْقَيِّمَةِ ﴾ 5 ﴿
वमा उमिरू इल्ला लियअ’बुदुल लाहा मुखलिसीना लहुद दीन हुनाफ़ा अ वयुक़ीमुस सलाता व युअ’तुज़ ज़काता व ज़ालिका दीनुल क़य्यिमह
और उन्हें केवल यही आदेश दिया गया था कि वे धर्म को शुध्द रखें और सबको तज कर केवल अल्लाह की उपासना करें, नमाज़ अदा करें और ज़कात दें और यही शाश्त धर्म है।[1] 1. इन में यह बताया गया है कि अल्लाह की ओर से जो भी नबी आये सब की शिक्षा यही थी कि सब रीतियों को त्याग कर मात्र एक अल्लाह की उपासना की जाये। इस में किसी देवी देवता की पूजा अर्चना का मिश्रण न किया जाये। नमाज़ की स्थापना की जाये, ज़कात दी जाये। यही सदा से सारे नबियों की शिक्षा थी।
إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ وَالْمُشْرِكِينَ فِي نَارِ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا ۚ أُولَٰئِكَ هُمْ شَرُّ الْبَرِيَّةِ ﴾ 6 ﴿
इन्नल लज़ीना कफरू मिन अहलिल किताबि वल मुशरिकीना फ़ी नारि जहन्नमा खालिदीना फ़ीहा उलाइका हुम शररुल बरिय्यह
निःसंदेह, जो लोग अह्ले किताब में से काफ़िर हो गये तथा मुश्रिक (मिश्रणवादी), तो वे सदा नरक की आग में रहेंगे और वही दुष्टतम जन हैं।
إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أُولَٰئِكَ هُمْ خَيْرُ الْبَرِيَّةِ ﴾ 7 ﴿
इन्नल लज़ीना आमनू अमिलुस सालिहाति उलाइका हुम खैरुल बरिय्यह
जो लोग ईमान लाये तथा सदाचार करते रहे, तो वही सर्वश्रेष्ठ जन हैं।
جَزَاؤُهُمْ عِندَ رَبِّهِمْ جَنَّاتُ عَدْنٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا ۖ رَّضِيَ اللَّهُ عَنْهُمْ وَرَضُوا عَنْهُ ۚ ذَٰلِكَ لِمَنْ خَشِيَ رَبَّهُ ﴾ 8 ﴿
जज़ाउहुम इन्दा रब्बिहिम जन्नातु अदनिन तजरी मिन तहतिहल अन्हारु खालिदीना फ़ीहा अबदा रज़ियल लाहू अन्हुम वरजू अन्ह ज़ालिका लिमन खशिया रब्बह
उनका प्रतिफल उनके पालनहार की ओर से सदा रहने वाले बाग़ हैं। जिनके नीचे नहरें बहती होंगी। वे उनमें सदा निवास करेंगे। अल्लाह उनसे प्रसन्न हुआ और वे अल्लाह से प्रसन्न हुए। ये उसके लिए है, जो अपने पालनहार से डरा।[1] 1. (6-8) इन आयतों में साफ़ साफ़ कह दिया गया है कि जो अह्ले किताब और मूर्तियों के पुजारी इन रसूल को मानने से इन्कार करेंगे तो वे बहुत बुरे हैं। और उन का स्थान नरक है। उसी में वे सदा रहेंगे। और जो संसार में अल्लाह से डरते हुये जीवन निर्वाह करेंगे तथा विश्वास के साथ सदाचार करेंगे तो वे सदा के स्वर्ग में रहेंगे। अल्लाह उन से प्रसन्न हो गया, और वे अल्लाह से प्रसन्न हो गये।