सूरह अन्कबूत के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है. इस में 69 आयतें हैं।
- इस सूरह का यह नाम इस की आयत नं (41) में आये हुये शब्द ((अन्कबूत)) से लिया गया है। जिस का अर्थ मकड़ी है। इस सूरह में, जो अल्लाह के सिवा दूसरों को अपना संरक्षक बनाते हैं उन की उपमा मकड़ी से दी गई है। जिस का घर सब से अधिक निर्बल होता है। इसी प्रकार मुश्रिकों का भी कोई सहारा नहीं होगा।
- इस में उन लोगों को निर्देश दिये गये हैं जो ईमान लाने के कारण सताये जाते हैं और अनेक प्रकार की परीक्षाओं से जूझते हैं। और कई नबियों के उदाहरण दिये गये हैं जिन्हों ने अपनी जातियों के अत्याचार का सामना किया। और धैर्य के साथ सत्य तथा तौहीद पर स्थित रहे और अन्ततः सफल हुये।
- इस में मुश्रिकों के लिये सोच-विचार का आमंत्रण तथा विरोधियों के संदेहों का निवारण किया गया है। और तौहीद तथा परलोक की वास्तविक्ता की ओर ध्यान दिलाया गया है और उस के प्रमाण प्रस्तुत किये गये है.
- अन्तिम आयत में अल्लाह की राह में प्रयास करने पर उस की सहायता और उस के वचन के पूरा होने की ओर संकेत किया गया है।
सूरह अल-अनकबूत | Surah Ankabut in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
أَحَسِبَ النَّاسُ أَن يُتْرَكُوا أَن يَقُولُوا آمَنَّا وَهُمْ لَا يُفْتَنُونَ ﴾ 2 ﴿
अ-हसिबन्-नासु अंय्युत्-रकू अंय्यकूलू आमन्ना व हुम्ला युफ़्तनून
क्या लोगों ने समझ रखा है कि वे छोड़ दिये जायेंगे कि वे कहते हैं: हम ईमान लाये! और उनकी परीक्षा नहीं ली जायेगी?
وَلَقَدْ فَتَنَّا الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ ۖ فَلَيَعْلَمَنَّ اللَّهُ الَّذِينَ صَدَقُوا وَلَيَعْلَمَنَّ الْكَاذِبِينَ ﴾ 3 ﴿
व ल-क़द् फ़तन्नल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम् फ-लयअ्-लमन्नल्लाहुल्लज़ी-न स-दकू व ल-यअ्-लमन्नल्-काज़िबीन
और हमने परीक्षा ली है उनसे पूर्व के लोगों की, तो अल्लाह अवश्य जानेगा[1] उन्हें, जो सच्चे हैं तथा अवश्य जानेगा झूठों को। 1. अर्थात आपदाओं द्वारा परीक्षा ले कर जैसा कि उस का नियम है उन में विवेक कर देगा। (इब्ने कसीर)
أَمْ حَسِبَ الَّذِينَ يَعْمَلُونَ السَّيِّئَاتِ أَن يَسْبِقُونَا ۚ سَاءَ مَا يَحْكُمُونَ ﴾ 4 ﴿
अम् हसिबल्लज़ी-न यअ्मलूनस्सय्यि आति अंय्यस्बिकूना, सा अ मा यह्कुमून
क्या समझ रखा है उन लोगों ने, जो कुकर्म कर रहे हैं कि हम से अग्रसर[1] हो जायेंगे? क्या ही बुरा निर्णय कर रहे हैं! 1. अर्थात हमें विवश कर देंगे और हमारे नियंत्रण में नहीं आयेंगे।
مَن كَانَ يَرْجُو لِقَاءَ اللَّهِ فَإِنَّ أَجَلَ اللَّهِ لَآتٍ ۚ وَهُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ ﴾ 5 ﴿
मन् का-न यरजू लिका-अल्लाहि फ़ इन्-न अ- जलल्लाहि लआतिन्, व हुवस्समीअुल-अ़लीम
जो आशा रखता हो अल्लाह से मिलने[1] की, तो अल्लाह की ओर से निर्धारित किया हुआ समय[2] अवश्य आने वाला है। और वह सब कुछ सुनने जानने[3] वाला है। 1. अर्थात प्रलय के दिन। 2. अर्थात प्रलय के दिन। 3. अर्थात प्रत्येक के कथन और कर्म को उस का प्रतिकार देने के लिये।
وَمَن جَاهَدَ فَإِنَّمَا يُجَاهِدُ لِنَفْسِهِ ۚ إِنَّ اللَّهَ لَغَنِيٌّ عَنِ الْعَالَمِينَ ﴾ 6 ﴿
व मन् जा-ह-द फ़-इन्नमा युजाहिदु लिनफ़्सिही, इन्नल्ला-ह ल ग़निय्युन् अ़निल-आ़लमीन
और जो प्रयास करता है, तो वह प्रयास करता है अपने ही भले के लिए, निश्चय अल्लाह निस्पृह है संसार वासियों से।
وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَنُكَفِّرَنَّ عَنْهُمْ سَيِّئَاتِهِمْ وَلَنَجْزِيَنَّهُمْ أَحْسَنَ الَّذِي كَانُوا يَعْمَلُونَ ﴾ 7 ﴿
वल्लज़ीना आमनू वा आमिलुस्सालिहाती लनुकफ्फिरन्ना अन्हुम सय्यि'आतिहिम व लनज्ज़ियन्नहुम अहसनल्लज़ी कानू यअमलून
तथा जो लोग ईमान लाये और सदाचार किये, हम अवश्य दूर कर देंगे उनसे उनकी बुराईयाँ तथा उन्हें प्रतिफल देंगे उनके उत्तम कर्मों का।
وَوَصَّيْنَا الْإِنسَانَ بِوَالِدَيْهِ حُسْنًا ۖ وَإِن جَاهَدَاكَ لِتُشْرِكَ بِي مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ فَلَا تُطِعْهُمَا ۚ إِلَيَّ مَرْجِعُكُمْ فَأُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ ﴾ 8 ﴿
व वस्सैनल् – इन्सा-न बिवालिदैहि हुस्नन्, व इन् जा-हदा-क लितुश्रि- क बी मा लै-स ल-क बिही अिल्मुन् फ़ला तुतिअ़हुमा, इलय्-य मर्जिअकुम् फ़- उनब्बिउकुम् बिमा कुन्तुम् तअ्मलून
और हमने निर्देश दिया मनुष्य को अपने माता-पिता के साथ उपकार करने[1] का और यदि दोनों दबाव डालें तुमपर कि तुम साझी बनाओ मेरे साथ उस चीज़ को, जिसका तुमको ज्ञान नहीं, तो उन दोनों की बात न मानो।[2] मेरी ओर ही तुम्हें फिरकर आना है, फिर मैं तुम्हें सूचित कर दूँगा उस कर्म से, जो तुम करते रहे हो। 1. ह़दीस में है कि जब साद बिन अबी वक़्क़ास इस्लाम लाये तो उन की माँ ने दबाल डाला और शपथ ली कि जब तक इस्लाम न छोड़ दें वह न उन से बात करेगी और न खायेगी न पियेगी, इसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ मुस्लिमः 1748) 2.इस्लाम का यह नियम है जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कथन है कि "किसी के आदेश का पालन अल्लाह की अवैज्ञा में नहीं है।" (मुस्नद अह़्मादः 1/66, सिलसिला सह़ीह़ा-अल्बानीः 179)
وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَنُدْخِلَنَّهُمْ فِي الصَّالِحِينَ ﴾ 9 ﴿
वल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्सालिहाति ल-नुद्खिलन्नहुम् फ़िस्सालिहीन
और जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, हम उन्हें अवश्य सम्मिलित कर देंगे सदाचारियों में।
وَمِنَ النَّاسِ مَن يَقُولُ آمَنَّا بِاللَّهِ فَإِذَا أُوذِيَ فِي اللَّهِ جَعَلَ فِتْنَةَ النَّاسِ كَعَذَابِ اللَّهِ وَلَئِن جَاءَ نَصْرٌ مِّن رَّبِّكَ لَيَقُولُنَّ إِنَّا كُنَّا مَعَكُمْ ۚ أَوَلَيْسَ اللَّهُ بِأَعْلَمَ بِمَا فِي صُدُورِ الْعَالَمِينَ ﴾ 10 ﴿
व मिनन्नासि मंय्यकूलु आमन्ना बिल्लाहि फ़-इज़ा ऊज़ि – य फ़िल्लाहि ज-अ़-ल फित्- नतन्नासि क-अ़ज़ाबिल्लाहि, व लइन् जा-अ नसरूम् – मिर्रब्बि-क ल-यकूलुन्-न इन्ना कुन्ना म अ़कुम्, अ-व लैसल्लाहु बि-अअ्ल-म बिमा फ़ी सुदूरिल्-आ़लमीन
और लोगों में वे (भी) हैं, जो कहते हैं कि हम ईमान लाये अल्लाह पर। फिर जब सताये गये अल्लाह के बारे में, तो समझ लिया लोगों की परीक्षा को अल्लाह की यातना के समान। और यदि आ जाये कोई सहायता आपके पालनहार की ओर से, तो अवश्य कहेंगे कि हम तुम्हारे साथ थे। तो क्या अल्लाह भली-भाँति अवगत नहीं है उससे, जो संसार वासियों के दिलों में हैं?
وَلَيَعْلَمَنَّ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا وَلَيَعْلَمَنَّ الْمُنَافِقِينَ ﴾ 11 ﴿
व ल-यअ्-ल-मन्नल्लाहुल्लज़ी -न आमनू व ल-यअ्-ल-मन्नल्- मुनाफ़िक़ीन
और अल्लाह अवश्य जान लेगा उन्हें जो ईमान लाये हैं तथा अवश्य जान लेगा द्विधावादियों[1] को। 1. अर्थात जो लोगों के भय के कारण दिल से ईमान नहीं लाते।
وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلَّذِينَ آمَنُوا اتَّبِعُوا سَبِيلَنَا وَلْنَحْمِلْ خَطَايَاكُمْ وَمَا هُم بِحَامِلِينَ مِنْ خَطَايَاهُم مِّن شَيْءٍ ۖ إِنَّهُمْ لَكَاذِبُونَ ﴾ 12 ﴿
व कालल्-लजी-न क-फरू लिल्लज़ी-न आमनुत् तबिअू सबीलना वलनह्मिल ख़तायाकुम्, व मा हुम् बिहामिली-न मिन् ख़तायाहुम् मिन् शैइन्, इन्नहुम् ल-काज़िबून
और कहा काफ़िरों ने उनसे जो ईमान लाये हैं: अनुसरण करो हमारे पथ का और हम भार ले लेंगे तुम्हारे पापों का, जबकि वे भार लेने वाले नहीं हैं उनके पापों का कुछ भी, वास्तव में, वे झूठे हैं।
وَلَيَحْمِلُنَّ أَثْقَالَهُمْ وَأَثْقَالًا مَّعَ أَثْقَالِهِمْ ۖ وَلَيُسْأَلُنَّ يَوْمَ الْقِيَامَةِ عَمَّا كَانُوا يَفْتَرُونَ ﴾ 13 ﴿
वल-यह़्मिलुन् – न अस्का – लहुम् व अस्कालम् म-अ़ अस्कालिहिम् व ल-युस् अलुन्-न यौमल्-कियामति अ़म्मा कानू यफ़्तरून *
और वे अवश्य प्रभारी होंगे अपने बोझों के और कुछ[1] (अन्य) बोझों के अपने बोझों के साथ और उनसे अवश्य प्रश्न किया जायेगा, प्रलय के दिन, उस झूठ के बारे में, जो वे घड़ते रहे। 1. अर्थात दूसरों को कुपथ करने के पापों का।
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا نُوحًا إِلَىٰ قَوْمِهِ فَلَبِثَ فِيهِمْ أَلْفَ سَنَةٍ إِلَّا خَمْسِينَ عَامًا فَأَخَذَهُمُ الطُّوفَانُ وَهُمْ ظَالِمُونَ ﴾ 14 ﴿
व ल-क़द् अरसल्ना नूहन् इला क़ौमिही फ़-लबि-स फ़ीहिम् अल-फ़ स-नतिन् इल्ला ख़म्सी – न आमन्, फ़-अ-ख़-ज़हुमुत्तूफ़ानु व हुम् ज़ालिमून
तथा हम[1] ने भेजा नूह़ को उसकी जाति की ओर, तो वह रहा उनमें हज़ार वर्ष किन्तु पचास[2] कर्ष, फिर उन्हें पकड़ लिया तूफ़ान ने तथा वे अत्याचारी थे। 1. यहाँ से कुछ नबियों की चर्चा की जा रही है जिन्हों ने धैर्य से काम लिया। 2. अर्थात नूह़ (अलैहिस्सलाम) (950) वर्ष तक अपनी जाति में धर्म का प्रचार करते रहे।
فَأَنجَيْنَاهُ وَأَصْحَابَ السَّفِينَةِ وَجَعَلْنَاهَا آيَةً لِّلْعَالَمِينَ ﴾ 15 ﴿
फ़- अन्जैनाहु व अस्हाबस्सफ़ी – नति व जअ़ल्नाहा आ-यतल लिल्आलमीन
तो हमने बचा लिया उसे और नाव वालों को और बना दिया उसे एक निशानी (शिक्षा), विश्व वासियों के लिए।
وَإِبْرَاهِيمَ إِذْ قَالَ لِقَوْمِهِ اعْبُدُوا اللَّهَ وَاتَّقُوهُ ۖ ذَٰلِكُمْ خَيْرٌ لَّكُمْ إِن كُنتُمْ تَعْلَمُونَ ﴾ 16 ﴿
व इब्राही – म इज् का-ल लिक़ौमिहिअ्बुदुल्ला-ह वत्तकूहु, ज़ालिकुम् ख़ैरुल्लकुम् इन कुन्तुम् तअ्लमून
तथा इब्राहीम को जब उसने अपनी जाति से कहाः इबादत (वंदना) करो अल्लाह की तथा उससे डरो, ये तुम्हारे लिए उत्तम है, यदि तुम जोनो।
إِنَّمَا تَعْبُدُونَ مِن دُونِ اللَّهِ أَوْثَانًا وَتَخْلُقُونَ إِفْكًا ۚ إِنَّ الَّذِينَ تَعْبُدُونَ مِن دُونِ اللَّهِ لَا يَمْلِكُونَ لَكُمْ رِزْقًا فَابْتَغُوا عِندَ اللَّهِ الرِّزْقَ وَاعْبُدُوهُ وَاشْكُرُوا لَهُ ۖ إِلَيْهِ تُرْجَعُونَ ﴾ 17 ﴿
इन्नमा तअ्बुदू-न मिन् दूनिल्लाहि औसानंव् – व तख़्लुकू – न इफ़्कन्, इन्नल्लज़ी-न तअ्बुदू-न मिन् दूनिल्लाहि ला यम्लिकू-न लकुम् रिजक़न फ़ब्तगू अिन्दल्लाहिर्-रिज्-क वअ्बुदूहु वश्कुरू लहू, इलैहि तुर्जअून
तुम तो अल्लाह के सिवा बस उनकी वंदना कर रहे हो, जो मूर्तियाँ हैं तथा तुम झूठ घड़ रहे हो, वास्तव में, जिन्हें तुम पूज रहे हो अल्लाह के सिवा, वे नहीं अधिकार रखते हैं तुम्हारे लिए जीविका देने का। अतः, खोज करो अल्लाह के पास जीविका की तथा इबादत (वंदना) करो उसकी और कृतज्ञ बनो उसके, उसी की ओर तुम फेरे जाओगे।
وَإِن تُكَذِّبُوا فَقَدْ كَذَّبَ أُمَمٌ مِّن قَبْلِكُمْ ۖ وَمَا عَلَى الرَّسُولِ إِلَّا الْبَلَاغُ الْمُبِينُ ﴾ 18 ﴿
व इन् तुकज़्ज़िबू फ़-क़द् कज़्ज़-ब उ-ममुम् – मिन् क़ब्लिकुम्, व मा अ़लर्रसूलि इल्लल्-बलागुल्-मुबीन
और यदि तुम झुठलाओ, तो झुठलाया है बहुत-से समुदायों ने तुमसे पहले और नहीं है रसूल[1] का दायित्व, परन्तु खुला उपदेश पहुँचा देना। 1. अथवा अल्लाह का उपदेश मनवा देना रसूल का कर्तव्य नहीं है।
أَوَلَمْ يَرَوْا كَيْفَ يُبْدِئُ اللَّهُ الْخَلْقَ ثُمَّ يُعِيدُهُ ۚ إِنَّ ذَٰلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرٌ ﴾ 19 ﴿
अ-व लम् यरौ कै-फ़ युब्दिउल्लाहुल- ख़ल्क सुम् – म युईदुहू इन् – न ज़ालि-क अ़लल्लाहि यसीर
क्या उन्होंने नहीं दखा कि अल्लाह ही उत्पत्ति का आरंभ करता है, फिर उसे दुहरायेगा?[1] निश्चय ये अल्लाह पर अति सरल है। 1. इस आयत में आख़िरत के विषय का वर्णन किया जा रहा है।
قُلْ سِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَانظُرُوا كَيْفَ بَدَأَ الْخَلْقَ ۚ ثُمَّ اللَّهُ يُنشِئُ النَّشْأَةَ الْآخِرَةَ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ ﴾ 20 ﴿
कुल् सीरू फिल्अर्ज़ि फन्जुरू कै-फ ब-दअल् – ख़ल्-क सुम्मल्लाहु युन्शिउन् – नश् – अतल् -आखि-र-त, इन्नल्ला – ह अ़ला कुल्लि शैइन् कदीर
(हे नबी!) कह दें कि चलो-फिरो धरती में, फिर देखो कि उसने कैसे उतपत्ति का आरंभ किया है? फिर अल्लाह दूसरी बार भी उत्पन्न[1] करेगा, वास्तव में, अल्लाह जो चाहे, कर सकता है। 1. अर्थात प्रलय के दिन कर्मों का प्रतिफल देने के लिये।
يُعَذِّبُ مَن يَشَاءُ وَيَرْحَمُ مَن يَشَاءُ ۖ وَإِلَيْهِ تُقْلَبُونَ ﴾ 21 ﴿
युअज़्ज़िबु मंय्यशा – उ व यर्- हमु मंय्यशा – उ व इलैहि तुक़्लबून
वह यातना देगा, जिसे चाहेगा तथा दया करेगा, जिसपर चाहेगा और उसी की ओर तुम फेरे जाओगे।
وَمَا أَنتُم بِمُعْجِزِينَ فِي الْأَرْضِ وَلَا فِي السَّمَاءِ ۖ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ اللَّهِ مِن وَلِيٍّ وَلَا نَصِيرٍ ﴾ 22 ﴿
व मा अन्तुम् बिमुअ्जिज़ी-न फ़िलअर्जि व ला फिस्समा-इ व मा लकुम् मिन् दूनिल्लाहि मिंव्वलिय्यिंव्-व ला नसीर*
तुम उसे विवश करने वाले नहीं हो, न धरती में, न आकाश में तथा नहीं है तुमहारा उसके सिवा कोई संरक्षक और न सहायक।
وَالَّذِينَ كَفَرُوا بِآيَاتِ اللَّهِ وَلِقَائِهِ أُولَٰئِكَ يَئِسُوا مِن رَّحْمَتِي وَأُولَٰئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ ﴾ 23 ﴿
वल्लज़ी-न क-फ़रू बिआयातिल्लाहि व लिक़ा-इही उलाइ-क यइसू मिर्रह्मती व उलाइ-क लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम
तथा जिन लोगों ने इन्कार किया अल्लाह की आयतों और उससे मिलने का, वही निराश हो गये हैं मेरी दया से और उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।
فَمَا كَانَ جَوَابَ قَوْمِهِ إِلَّا أَن قَالُوا اقْتُلُوهُ أَوْ حَرِّقُوهُ فَأَنجَاهُ اللَّهُ مِنَ النَّارِ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ ﴾ 24 ﴿
फमा का-न जवा-ब कौमिही इल्ला अन् क़ालुक्तुलूहु औ हर्रिकूहु फ़अन्जाहुल्लाहु मिनन्नारि, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआयातिल् लिकौमिंय्-युअ्मिनून
तो उस (इब्राहीम) की जाति का उत्तर बस यही था कि उन्होंने कहाः इसे वध कर दो या इसे जला दो, तो अल्लाह ने उसे बचा लिया अग्नि से। वास्तव में, इसमें बड़ी निशानियाँ हैं उनके लिए, जो ईमान रखते हैं।
وَقَالَ إِنَّمَا اتَّخَذْتُم مِّن دُونِ اللَّهِ أَوْثَانًا مَّوَدَّةَ بَيْنِكُمْ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۖ ثُمَّ يَوْمَ الْقِيَامَةِ يَكْفُرُ بَعْضُكُم بِبَعْضٍ وَيَلْعَنُ بَعْضُكُم بَعْضًا وَمَأْوَاكُمُ النَّارُ وَمَا لَكُم مِّن نَّاصِرِينَ ﴾ 25 ﴿
व का-ल इन्नमत्तख़ज़्तुम् मिन् दूनिल्लाहि औसानम् म – वद्द त बैनिकुम् फिल्-हयातिद्दुन्या सुम्म यौमल्-कियामति यक्फुरु बअ्जुकुम् बि-बअ्जिंव्-व यल्अ़नु बअजुकुम् बअ्जंव्-व मअ्वाकुमुन्नारु व मा लकुम् मिन्-नासिरीन
और कहाः तुमने तो अल्लाह को छोड़कर मूर्तियों को प्रेम का साधन बना लिया है अपने बीच, सांसारिक जीवन में, फिर प्रलय के दिन तुम एक-दूसरे का इन्कार करोगे तथा धिक्करोगे एक-दूसरे को और तुम्हारा आवास नरक होगा और नहीं होगा तुम्हारा कोई सहायक।
فَآمَنَ لَهُ لُوطٌ ۘ وَقَالَ إِنِّي مُهَاجِرٌ إِلَىٰ رَبِّي ۖ إِنَّهُ هُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ ﴾ 26 ﴿
फ़- आम न लहू लूतुन् • व क़ा-ल इन्नी मुहाजिरुन् इला रब्बी, इन्नहू हुवल् अ़ज़ीजुल-हकीम
तो मान लिया उसे (इब्राहीम को) लूत[1] ने और इब्राहीम ने कहाः मैं हिजरत कर रहा हूँ अपने पालनहार[2] की ओर। निश्य वही प्रबल तथा गुणी है। 1. लूत अलैहिस्सलाम इब्राहीम अलैहिस्सलाम के भतीजे थे। जो उन पर ईमान लाये। 2. अर्थात अल्लाह के आदेशानुसार शाम जा रहा हूँ।
وَوَهَبْنَا لَهُ إِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ وَجَعَلْنَا فِي ذُرِّيَّتِهِ النُّبُوَّةَ وَالْكِتَابَ وَآتَيْنَاهُ أَجْرَهُ فِي الدُّنْيَا ۖ وَإِنَّهُ فِي الْآخِرَةِ لَمِنَ الصَّالِحِينَ ﴾ 27 ﴿
व व-हब्ना लहू इस्हा-क व यअ्कू-ब व जअ़लना फी जुर्रिय्यतिहिन्- नुबुव्व-त वल्किता-ब व आतैनाहु अज्रहू फिद्दुन्या व इन्नहू फ़िल्-आखिरति लमिनस्सालिहीन
और हमने प्रदान किया उसे इस्ह़ाक़ तथा याक़ूब तथा हमने रख दी उसकी संतान में नबूवत तथा पुस्तक और हमने प्रदान किया उसे उसका प्रतिफल संसार में और निश्य वह परलोक में सदाचारियों में होगा।
وَلُوطًا إِذْ قَالَ لِقَوْمِهِ إِنَّكُمْ لَتَأْتُونَ الْفَاحِشَةَ مَا سَبَقَكُم بِهَا مِنْ أَحَدٍ مِّنَ الْعَالَمِينَ ﴾ 28 ﴿
व लूतन् इज् क़ा-ल लिक़ौमिही इन्नकुम् ल-तअ्तूनल्-फ़ाहि-श-त मा स-ब-ककुम् बिहा मिन् अ-हदिम्-मिनल् आ़लमीन
तथा लूत को (भेजा)। जब उसने अपनी जाति से कहाः तुम तो वह निर्लज्जा कर रहे हो, जो तुमसे पहले नहीं किया है किसी ने संसार वासियों में से।
أَئِنَّكُمْ لَتَأْتُونَ الرِّجَالَ وَتَقْطَعُونَ السَّبِيلَ وَتَأْتُونَ فِي نَادِيكُمُ الْمُنكَرَ ۖ فَمَا كَانَ جَوَابَ قَوْمِهِ إِلَّا أَن قَالُوا ائْتِنَا بِعَذَابِ اللَّهِ إِن كُنتَ مِنَ الصَّادِقِينَ ﴾ 29 ﴿
अ-इन्नकुम् लतअ्तूनर्-रिजा-ल व तक्त अूनस्सबी-ल व तअतू-न फ़ी नादीकुमुल्-मुन्क-र, फ़मा का-न जवा-ब क़ौमिही इल्ला अन् कालुस्तिना बि-अ़ज़ाबिल्लाहि इन् कुन्-त मिनस् – सादिक़ीन
क्या तुम पुरुषों के पास जाते हो और डकैती करते हो तथा अपनी सभाओं में निर्लज्जा के कार्य करते हो? तो नहीं था उसकी जाति का उत्तर इसके अतिरिक्त कि उन्होंने कहाः तू ले आ हमारे पास अल्लाह की यातना, यदि तू सचों में से है।
قَالَ رَبِّ انصُرْنِي عَلَى الْقَوْمِ الْمُفْسِدِينَ ﴾ 30 ﴿
का-ल रब्बिन्सुरनी अ़लल्-क़ौमिल्-मुफ्सिदीन
लूत ने कहाः मेरे पालनहार! मेरी सहायता कर, उपद्रवी जाति पर।
وَلَمَّا جَاءَتْ رُسُلُنَا إِبْرَاهِيمَ بِالْبُشْرَىٰ قَالُوا إِنَّا مُهْلِكُو أَهْلِ هَٰذِهِ الْقَرْيَةِ ۖ إِنَّ أَهْلَهَا كَانُوا ظَالِمِينَ ﴾ 31 ﴿
व लम्मा जाअत् रुसुलुना इब्राही-म बिलबुश्रा क़ालू इन्ना मुह़्लिकू अह़्लि हाज़िहिल – कर्यति इन्-न अह़्लहा कानू ज़ालिमीन
और जब आये हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) इब्राहीम के पास शुभ सूचना लेकर, तो उन्होंने कहाः हम विनाश करने वाले हैं इस बस्ती के वासियों का। वस्तुतः, इसके वासी अत्याचारी हैं।
قَالَ إِنَّ فِيهَا لُوطًا ۚ قَالُوا نَحْنُ أَعْلَمُ بِمَن فِيهَا ۖ لَنُنَجِّيَنَّهُ وَأَهْلَهُ إِلَّا امْرَأَتَهُ كَانَتْ مِنَ الْغَابِرِينَ ﴾ 32 ﴿
का-ल इन्-न फ़ीहा लूतन्, कालू नह्नु अअ्लमु बि-मन् फ़ीहा ल नुनज्जियन्नहू व अह़्लहू इल्लम्-र-अ-तहू कानत् मिनल्-ग़ाबिरीन
इब्राहीम ने कहाः उसमें तो लूत है। उन्होंने कहाः हम भली-भाँति जानने वाले हैं, जो उसमें है। हम अवश्य बचा लेंगे उसे और उसके परिवार को, उसकी पत्नि के सिवा, वह पीछे रह जाने वालों में थी।
وَلَمَّا أَن جَاءَتْ رُسُلُنَا لُوطًا سِيءَ بِهِمْ وَضَاقَ بِهِمْ ذَرْعًا وَقَالُوا لَا تَخَفْ وَلَا تَحْزَنْ ۖ إِنَّا مُنَجُّوكَ وَأَهْلَكَ إِلَّا امْرَأَتَكَ كَانَتْ مِنَ الْغَابِرِينَ ﴾ 33 ﴿
व लम्मा अन् जाअत् रुसुलुना लूतन् सी-अ बिहिम् व ज़ा-क़ बिहिम् जरअंव-व कालू ला तख़फ् व ला तह्ज़न्, इन्ना मुनज्जू-क व अह़्ल – क इल्लम्-र-अ-त क कानत् मिनल्-ग़ाबिरीन
और जब आ गये हमारे भेजे हुए लूत के पास, तो उसे बुरा लगा और वह उदासीन हो गया[1] उनके आने पर और उन्होंने कहाः भय न कर और न उदासीन हो, हम तुझे बचा लेने वाले हैं तथा तेरे परिवार को, परन्तु तेरी पत्नी को, वह पीछो रह जाने वालों में है। 1. क्योंकि लूत (अलैहिस्सलाम) को अपनी जाति की निर्लज्जा का ज्ञान था।
إِنَّا مُنزِلُونَ عَلَىٰ أَهْلِ هَٰذِهِ الْقَرْيَةِ رِجْزًا مِّنَ السَّمَاءِ بِمَا كَانُوا يَفْسُقُونَ ﴾ 34 ﴿
इन्ना मुन्ज़िलू-न अ़ला अह़्लि हाज़िहिल् करयति रिज्ज़म-मिनस्समा इ बिमा कानू यफ़सुकून
वास्तव में, हम उतारने वाले हैं इस बस्ती के वासियों पर आकाश से यातना, इस कारण कि वे उल्लंघन कर रहे हैं।
وَلَقَد تَّرَكْنَا مِنْهَا آيَةً بَيِّنَةً لِّقَوْمٍ يَعْقِلُونَ ﴾ 35 ﴿
व ल – क़त्तरक्ना मिन्हा आ-यतम् बय्यि-नतल्-लिकौमिंय् यअ्किलून
तथा हमने छोड़ दी है उसमें एक खुली निशानी उन लोगों के लिए, जो समझ-बूझ रखते हैं।
وَإِلَىٰ مَدْيَنَ أَخَاهُمْ شُعَيْبًا فَقَالَ يَا قَوْمِ اعْبُدُوا اللَّهَ وَارْجُوا الْيَوْمَ الْآخِرَ وَلَا تَعْثَوْا فِي الْأَرْضِ مُفْسِدِينَ ﴾ 36 ﴿
व इला मद्य-न अख़ाहुम् शुऐबन् फ़का-ल या कौमिअ्बुदुल्ला-ह वरजुल्- यौमल् – आख़ि-र व ला तअ्सौ फ़िल्अर्जि मुफ्सिदीन
तथा मद्यन की ओर उनके भाई शुऐब को (भेजा), तो उसने कहाः हे मेरी जाति के लोगो! इबादत (वंदना) करो अल्लाह की तथा आश रखो प्रयल के दिन[1] की और मत फिरो धरती में उपद्रव करते हूए। 1. अर्थात संसारिक जीवन की को सब कुछ न समझो, परलोक के अच्छे परिणाम की भी आशा रखो और सदाचार करो।
فَكَذَّبُوهُ فَأَخَذَتْهُمُ الرَّجْفَةُ فَأَصْبَحُوا فِي دَارِهِمْ جَاثِمِينَ ﴾ 37 ﴿
फ़- कज़्ज़बूहु फ़-अ-ख़ज़तहुमुर रज्फ़तु फ़-अस्बहू फ़ी दारिहिम् जासिमीन
किन्तु उन्होंने उन्हें झुठला दिया, तो पकड़ लिया उन्हें भूकम्प ने और वह अपने घरों में औंधे पड़े रह गये।
وَعَادًا وَثَمُودَ وَقَد تَّبَيَّنَ لَكُم مِّن مَّسَاكِنِهِمْ ۖ وَزَيَّنَ لَهُمُ الشَّيْطَانُ أَعْمَالَهُمْ فَصَدَّهُمْ عَنِ السَّبِيلِ وَكَانُوا مُسْتَبْصِرِينَ ﴾ 38 ﴿
व आदंव्-व समू -द व क़त्-त-बय्य-न लकुम् मिम-मसाकिनिहिम्, व ज़य्य – न लहुमुश्शैतानु अअ्मालहुम् फ़-सद्दहुम् अ़निस्सबीलि व कानू मुस्तब्सिरीन
तथा आद और समूद का (विनाश किया) और उजागर हैं तुम्हारे लिए उनके घरों के कुछ अवशेष और शोभनीय बना दिया शैतान ने उनके कर्मों को और रोक दिया उन्हें सुपथ से, जबकि वह समझ-बूझ रखते थे।
وَقَارُونَ وَفِرْعَوْنَ وَهَامَانَ ۖ وَلَقَدْ جَاءَهُم مُّوسَىٰ بِالْبَيِّنَاتِ فَاسْتَكْبَرُوا فِي الْأَرْضِ وَمَا كَانُوا سَابِقِينَ ﴾ 39 ﴿
व कारू-न व फ़िरऔ-न व हामा-न, व ल-क़द् जा-अहुम् मूसा बिल्बय्यिनाति फ़स्तक्बरू फ़िलअर्जि व मा कानू साबिक़ीन
और क़ारून, फ़िरऔन और हामान का और लाये उनके पास मूसा खुली निशानियाँ, तो उन्होंने अभिमान किया और वे हमसे आगे[1] होने वाले न थे। 1. अर्थात हमारी पकड़ से नहीं बच सकते थे
فَكُلًّا أَخَذْنَا بِذَنبِهِ ۖ فَمِنْهُم مَّنْ أَرْسَلْنَا عَلَيْهِ حَاصِبًا وَمِنْهُم مَّنْ أَخَذَتْهُ الصَّيْحَةُ وَمِنْهُم مَّنْ خَسَفْنَا بِهِ الْأَرْضَ وَمِنْهُم مَّنْ أَغْرَقْنَا ۚ وَمَا كَانَ اللَّهُ لِيَظْلِمَهُمْ وَلَٰكِن كَانُوا أَنفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ ﴾ 40 ﴿
फ़- कुल्लन् अख़ज़्ना बि- ज़म्बिही फ़-मिन्हुम् मन् अरसल्ना अ़लैहि हासिबन् व मिन्हुम् मन् अ-ख़ज़तहुस्सै-हतु व मिन्हुम् मन् ख़सफ़्ना बिहिल्-अर् -ज़ व मिन्हुम् मन् अग्ररक़ना व मा कानल्लाहु लि -यज्लिमहुम् व लाकिन् कानू अन्फु-सहुम् यज़्लिमून
तो प्रत्येक को हमने पकड़ लिया उसके पाप के कारण, तो इनमें से कुछ पर पत्थर बरसाये[1] और उनमें से कुछ को पकड़ा[2] कड़ी ध्वनि ने तथा कुछ को धंसा दिया धरती में[3] और कुछ को डुबो[4] दिया तथा नहीं था अल्लाह कि उनपर अत्याचार करता, परन्तु वे स्वयं अपने ऊपर अत्याचार कर रहे थे। 1. अर्थात लूत की जाति पर। 2. अर्थात सालेह़ और शुऐब (अलैहिमस्सलाम) की जाति को। 3. जैसे क़ारून को। 4. अर्थात नूह़ तथा मूसा (अलैहिमस्सलाम) की जातियों को।
مَثَلُ الَّذِينَ اتَّخَذُوا مِن دُونِ اللَّهِ أَوْلِيَاءَ كَمَثَلِ الْعَنكَبُوتِ اتَّخَذَتْ بَيْتًا ۖ وَإِنَّ أَوْهَنَ الْبُيُوتِ لَبَيْتُ الْعَنكَبُوتِ ۖ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ ﴾ 41 ﴿
म-सलुल्लज़ीनत्त-ख़जू मिन् दूनिल्लाहि औलिया-अ क-म सलिल् – अ़न्कबूति इत्त-ख़ज़त् बैतन्, व इन्-न औ-हनल्-बुयूति लबैतुल्-अ़नकबूति • लौ कानू यअ्लमून
उनका उदाहरण जिन्होंने बना लिए अल्लाह को छोड़कर संरक्षक, मकड़ी जैसा है, जिसने एक घर बनाया और वास्तव में, घरों में सबसे अधिक निर्बल घर[1] मकड़ी का है, यदि वे जानते। 1. जिस प्रकार मकड़ी का घर उस की रक्षा नहीं करता वैसे ही अल्लाह की यातना के समय इन जातियों के पूज्य उन की रक्षा नहीं कर सके।
إِنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ مَا يَدْعُونَ مِن دُونِهِ مِن شَيْءٍ ۚ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ ﴾ 42 ﴿
इन्नल्ला – ह यअ्लमु मा यद्अू-न मिन् दूनिही मिन् शैइन्, व हुवल् अ़ज़ीजुल हकीम
वास्तव में, अल्लाह जानता है[1] कि वे जिसे पुकारते हैं, अल्लाह को छोड़कर वे कुछ नहीं हैं और वही प्रबल, गुणी (प्रवीण) है। 1. अर्थात इस विश्व की उत्पत्ति तथा व्यवस्था ही इस का प्रमाण है कि अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है।
وَتِلْكَ الْأَمْثَالُ نَضْرِبُهَا لِلنَّاسِ ۖ وَمَا يَعْقِلُهَا إِلَّا الْعَالِمُونَ ﴾ 43 ﴿
व तिल्कल्-अम्सालु नश्रिबुहा लिन्नासि व मा यअ्किलुहा इल्लल्-आलिमून
और ये उदाहरण हम लोगों के लिए दे रहे हैं और इसे नहीं समझेंगे, परन्तु ज्ञानी लोग (ही)।
خَلَقَ اللَّهُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِالْحَقِّ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً لِّلْمُؤْمِنِينَ ﴾ 44 ﴿
ख़-लक़ल्लाहुस्-समावाति वल्अर्-ज़ बिल्हक़्क़ि, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआ-यतल् लिल्मुअ्मिनीन *
उत्पत्ति की है अल्लाह ने आकाशों तथा धरती की सत्य के साथ। वास्तव में, इसमें एक बड़ी निशानी (लक्षण) है, ईमान लाने वालों के[1] लिए। 1. अर्थात इस विश्व की उत्पत्ति तथा व्यवस्था ही इस का प्रमाण है कि अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है।
اتْلُ مَا أُوحِيَ إِلَيْكَ مِنَ الْكِتَابِ وَأَقِمِ الصَّلَاةَ ۖ إِنَّ الصَّلَاةَ تَنْهَىٰ عَنِ الْفَحْشَاءِ وَالْمُنكَرِ ۗ وَلَذِكْرُ اللَّهِ أَكْبَرُ ۗ وَاللَّهُ يَعْلَمُ مَا تَصْنَعُونَ ﴾ 45 ﴿
उत्लु मा ऊहि-य इलै-क मिनल-किताब व अकिमिस्सला-त, इन्नस्सला-त तन्हा अनिल् फ़ह्शा-इ वल्मुन्करि, व ल-ज़िक्रुल्लाहि अक्बरु, वल्लाहु यअ्लमु मा तस्नअून
आप उस पुस्तक को पढ़ें, जो वह़्यी (प्रकाशना) की गयी है आपकी ओर तथा स्थापना करें नमाज़ की। वास्तव में, नमाज़ रोकती है निर्लज्जा तथा दुराचार से और अल्लाह का स्मरण ही सर्व महान है और अल्लाह जानता है, जो कुछ तुम करते[1] हो। 1. अर्थात जो भला-बुरा करते हो उस का प्रतिफल तुम्हें देगा।
وَلَا تُجَادِلُوا أَهْلَ الْكِتَابِ إِلَّا بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ إِلَّا الَّذِينَ ظَلَمُوا مِنْهُمْ ۖ وَقُولُوا آمَنَّا بِالَّذِي أُنزِلَ إِلَيْنَا وَأُنزِلَ إِلَيْكُمْ وَإِلَٰهُنَا وَإِلَٰهُكُمْ وَاحِدٌ وَنَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ ﴾ 46 ﴿
व ला तुजादिलू अह़्लल्-किताब इल्ला बिल्लती हि-य अह्सनु इल्लल्लज़ी-न ज़-लमू मिन्हुम् व कूलू आमन्ना बिल्लज़ी उन्जि-ल इलैना व उन्ज़ि-ल इलैकुम् व इलाहुना व इलाहुकुम् वाहिदुंव्-व नह्नु लहू मुस्लिमून
और तुम वाद-विवाद न करो अह्ले किताब[1] से, परन्तु ऐसी विधि से, जो सर्वोत्तम हो, उनके सिवा, जिन्होंने अत्याचार किया है उनमें से तथा तुम कहो कि हम ईमान लाये उसपर, जो हमारी ओर उतारा गया और उतारा गया तुम्हारी ओर तथा हमारा पूज्य और तुम्हारा पूज्य एक ही[2] है और हम उसी के आज्ञाकारी हैं।[3] 1. अह्ले किताब से अभिप्रेत यहूदी तथा ईसाई हैं। 2. अर्थात उस का कोई साझी नहीं। 3. अतः तुम भी उस की आज्ञा के आधीन हो जाओ और सभी आकाशीय पुस्तकों को क़ुर्आन सहित स्वीकार करो।
وَكَذَٰلِكَ أَنزَلْنَا إِلَيْكَ الْكِتَابَ ۚ فَالَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ يُؤْمِنُونَ بِهِ ۖ وَمِنْ هَٰؤُلَاءِ مَن يُؤْمِنُ بِهِ ۚ وَمَا يَجْحَدُ بِآيَاتِنَا إِلَّا الْكَافِرُونَ ﴾ 47 ﴿
व कज़ालि-क अन्ज़ल्ना इलैकल्-किता-ब फ़ल्लज़ी-न आतैनाहुमुल किताब युअ्मिनू -न बिही व मिन् हाउला-इ मंय्युअ्मिनु बिही, व मा यज्हदु बिआयातिना इल्लल्-काफिरून
और इसी प्रकार, हमने उतारी है आपकी ओर ये पुस्तक, तो जिन्हें हमने ये पुस्तक प्रदान की है, वे इस (क़ुर्आन) पर ईमान लाते[1] हैं और इनमें से (भी) कुछ[2] इस (क़ुर्आन) पर ईमान ला रहे हैं और हमारी आयतों को काफ़िर ही नहीं मानते हैं। 1. अर्थात मक्का वासियों में से। 2. अर्थात अह्ले किताब में से जो अपनी पुस्तकों के सत्य अनुयायी हैं।
وَمَا كُنتَ تَتْلُو مِن قَبْلِهِ مِن كِتَابٍ وَلَا تَخُطُّهُ بِيَمِينِكَ ۖ إِذًا لَّارْتَابَ الْمُبْطِلُونَ ﴾ 48 ﴿
व मा कुन्-त तत्लू मिन् क़ब्लिही मिन् किताबिंव् -व ला तखुत्तुहू बि – यमीनि -क इज़ल्-लरताबल् -मुब्तिलून
और आप इससे पूर्व न कोई पुस्तक पढ़ सकते थे और न अपने हाथ से लिख सकते थे। यदि ऐसा होता, तो झूठे लोग संदेह[1] में पड़ सकते थे। 1. अर्थात यह संदेह करते कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने यह बातें आदि ग्रन्थों से सीख लीं या लिख ली हैं। आप तो निरक्षर थे लिखना पढ़ना जानते ही नहीं थे तो फिर आप के नबी होने और क़ुर्आन के अल्लाह की ओर से अवतरित किये जाने में क्या संदेह हो सकता है।
بَلْ هُوَ آيَاتٌ بَيِّنَاتٌ فِي صُدُورِ الَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ ۚ وَمَا يَجْحَدُ بِآيَاتِنَا إِلَّا الظَّالِمُونَ ﴾ 49 ﴿
बल हु-व आयातुम् बय्यिनातुन फ़ी सुदूरिल्लज़ी-न ऊतुल् -अिल्-म, व मा यज्हदु बिआयातिना इल्लज़्ज़ालिमून
बल्कि ये खुली आयतें हैं, जो उनके दिलों में सुरक्षित हैं, जिन्हें ज्ञान दिया गया है तथा हमारी आयतों (क़ुर्आन) का इन्कार[1] अत्याचारी ही करते हैं। 1. अर्थात जो सत्य से अज्ञान हैं।
وَقَالُوا لَوْلَا أُنزِلَ عَلَيْهِ آيَاتٌ مِّن رَّبِّهِ ۖ قُلْ إِنَّمَا الْآيَاتُ عِندَ اللَّهِ وَإِنَّمَا أَنَا نَذِيرٌ مُّبِينٌ ﴾ 50 ﴿
व क़ालू लौ ला उन्जि-ल अ़लैहि आयातुम् मिर्रब्बिही, कुल इन्नमल् आयातु अिन्दल्लाहि, व इन्नमा अ-न नज़ीरुम्-मुबीन
तथा (अत्याचारियों) ने कहाः क्यों नहीं उतारी गयीं आपपर निशानियाँ आपके पालनहार की ओर से? आप कह दें कि निशानियाँ तो अल्लाह के पास[1] हैं और मैं तो खुला सावधान करने वाला हूँ। 1. अर्थात उसे उतारना न उतारना मेरे अधिकार में नहीं, मैं तो अपने कर्तव्य का पालन कर रहा हूँ।
أَوَلَمْ يَكْفِهِمْ أَنَّا أَنزَلْنَا عَلَيْكَ الْكِتَابَ يُتْلَىٰ عَلَيْهِمْ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَرَحْمَةً وَذِكْرَىٰ لِقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ ﴾ 51 ﴿
अ – व लम् यक्फ़िहिम् अन्ना अन्ज़ल्ना अ़लैकल् -किता-ब युत्ला अ़लैहिम्, इन्-न फ़ी ज़ालि-क ल -रह्म-तंव्-व ज़िक्रा लिकौमिय्-युअ्मिनून *
क्या उन्हें पर्याप्त नहीं कि हमने उतारी है आपपर ये पुस्तक (क़ुर्आन) जो पढ़ी जा रही है उनपर। वास्तव में, इसमें दया और शिक्षा है, उन लोगों के लिए जो ईमान लाते हैं।
قُلْ كَفَىٰ بِاللَّهِ بَيْنِي وَبَيْنَكُمْ شَهِيدًا ۖ يَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۗ وَالَّذِينَ آمَنُوا بِالْبَاطِلِ وَكَفَرُوا بِاللَّهِ أُولَٰئِكَ هُمُ الْخَاسِرُونَ ﴾ 52 ﴿
कुल कफ़ा बिल्लाही बैनी व बैनकुम् शहीदन् यअ्लमु मा फिस्समावाति वलअर्ज़ि, वल्लज़ी – न आमनू बिल्बातिलि व क फ़रू बिल्लाहि उलाइ-क हुमुल्-ख़ासिरून
आप कह दें: पर्याप्त है अल्लाह मेरे तथा तुम्हारे बीच साक्षी।[1] वह जानता है जो आकाशों तथा धरती में है और जिन लोगों ने मान लिया है असत्य को और अल्लाह से कुफ़्र किया है वही विनाश होने वाले हैं। 1. अर्थात मेरे नबी होने पर।
وَيَسْتَعْجِلُونَكَ بِالْعَذَابِ ۚ وَلَوْلَا أَجَلٌ مُّسَمًّى لَّجَاءَهُمُ الْعَذَابُ وَلَيَأْتِيَنَّهُم بَغْتَةً وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ ﴾ 53 ﴿
व यस्तअ्जिलून-क बिल्अ़ज़ाबि, व लौ ला अ-जलुम्-मुसम्मल् लजा – अहुमुल्-अज़ाबु, व ल-यअ्ति यन्नहुम् ब़ग्त-तंव्-व हुम् ला यश्अुरून
और वे[1] आपसे शीघ्र माँग कर रहे हैं यातना की और यदि एक निर्धारित समय न होता, तो आ जाती उनके पास यातना और अवश्य आयेगी उनके पास अचानक और उन्हें ज्ञान (भी) न होगा। 1. अर्रथात मक्का के काफ़िर।
يَسْتَعْجِلُونَكَ بِالْعَذَابِ وَإِنَّ جَهَنَّمَ لَمُحِيطَةٌ بِالْكَافِرِينَ ﴾ 54 ﴿
यस्तअ्जिलून-क बिल्अज़ाबि, व इन्-न जहन्न-म लमुही-ततुम् – बिल्-काफिरीन
वे शीघ्र माँग[1] कर रहै हैं आपसे यातना की और निश्चय नरक घेरने वाली है काफ़िरों[2] को। 1. अर्थात संसार ही में उपहास स्वरूप यातना की माँग कर रहे हैं। 2. अर्थात परलोक में।
يَوْمَ يَغْشَاهُمُ الْعَذَابُ مِن فَوْقِهِمْ وَمِن تَحْتِ أَرْجُلِهِمْ وَيَقُولُ ذُوقُوا مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ ﴾ 55 ﴿
यौ-म यग़्शाहुमुल्-अ़ज़ाबु मिन् फ़ौकिहिम् व मिन् तह्ति अर्जुलिहिम् व यकूलु जूकू मा कुन्तुम् तअ्मलून
जिस दिन छा जायेगी उनपर यातना, उनके ऊपर से तथा उनके पैरों के नीचे से और अल्लाह कहेगाः चखो, जो कुछ तुम कर रहे थे।
يَا عِبَادِيَ الَّذِينَ آمَنُوا إِنَّ أَرْضِي وَاسِعَةٌ فَإِيَّايَ فَاعْبُدُونِ ﴾ 56 ﴿
या अिबादि-यल्लज़ी-न आमनू इन्-न अरज़ी वासि-अतुन फ़-इय्या-य फ़अ्बुदून
हे मेरे भक्तो जो ईमान लाये हो! वास्तव में, मेरी धरती विशाल है, अतः, तुम मेरी ही इबादत (वंदना)[1] करो। 1. अर्थात किसी धरती में अल्लाह की इबादत न कर सको तो वहाँ से निकल जाओ जैसा कि आरंभिक युग में मक्का के काफ़िरों ने अल्लाह की इबादत से रोक दिया तो मुसलमान ह़ब्शा और फिर मदीना चले गये।
كُلُّ نَفْسٍ ذَائِقَةُ الْمَوْتِ ۖ ثُمَّ إِلَيْنَا تُرْجَعُونَ ﴾ 57 ﴿
कुल्लु नफ्सिन् ज़ाइ-क़तुल्मौति, सुम्-म इलैना तुर्जअून
प्रत्येक प्राणी मौत का स्वाद चखने वाला है, फिर तुम हमारी ही ओर फेरे[1] जाओगे। 1. अर्थात अपने कर्मों का फल भोगन के लिये।
وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَنُبَوِّئَنَّهُم مِّنَ الْجَنَّةِ غُرَفًا تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا ۚ نِعْمَ أَجْرُ الْعَامِلِينَ ﴾ 58 ﴿
वल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्-सालिहाति लनुबव्वि-अन्नहुम् मिनल्-जन्नति गु-रफ़न् तज्री मिन् तह्तिहल् – अन्हारु खालिदी-न फ़ीहा, निअ्-म अज्रुल-आमिलीन
तथा जो ईमान लाये और सदाचार किये, तो हम अवश्य उन्हें स्थान देंगे स्वर्ग के उच्च भवनों में, प्रवाहित होंगी जिनमें नहरें, वे सदावासी होंगे उनमें, तो क्या ही उत्तम है कर्म करने वालों का प्रतिफल!
الَّذِينَ صَبَرُوا وَعَلَىٰ رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ ﴾ 59 ﴿
अल्लज़ी-न स-बरू व अ़ला रब्बिहिम् य-तवक्कलून
जिन लोगों ने सहन किया तथा वे अपने पालनहार ही पर भरोसा करते हैं।
وَكَأَيِّن مِّن دَابَّةٍ لَّا تَحْمِلُ رِزْقَهَا اللَّهُ يَرْزُقُهَا وَإِيَّاكُمْ ۚ وَهُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ ﴾ 60 ﴿
व क-अय्यिम् मिन् दाब्बतिल्-ला तह्मिलु रिज्-क़हा अल्लाहु यर्जुकुहा व इय्याकुम् व हुवस्-समीअल-अ़लीम
कितने ही जीव हैं, जो नहीं लादे फिरते[1] अपनी जीविका, अल्लाह ही उन्हें जीविका प्रदान करता है तथा तुम्हें! और वह सब कुछ सुनने-जनने वाला है। 1. ह़दीस में है कि यदि तुम अल्लाह पर पूरा भरोसा करो तो तुम्हें पक्षी के समान जीविका देगा जो सवेरे भूखा जाते हैं और शाम को अघा कर आते हैं। (तिर्मिज़ीः2344, यह ह़दीस ह़सन सह़ीह़ है।)
وَلَئِن سَأَلْتَهُم مَّنْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ لَيَقُولُنَّ اللَّهُ ۖ فَأَنَّىٰ يُؤْفَكُونَ ﴾ 61 ﴿
व ल – इन् स – अल्तहुम् मन् ख़ – लक़स्समावाति वल्अर् – ज़ व सख़्ख़- रश्शम् – स वल्क़-म-र ल-यकूलुन्नल्लाहु फ़-अन्ना युअ्फ़कून
और यदि आप उनसे प्रश्न करें कि किसने उत्पत्ति की है आकाशों तथा धरती की और (किसने) वश में कर रखा है सूर्य तथा चाँद को? तो वे अवश्य कहेंगे कि अल्लाह ने। तो फिर वे कहाँ बहके जा रहे हैं?
اللَّهُ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَن يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ وَيَقْدِرُ لَهُ ۚ إِنَّ اللَّهَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ ﴾ 62 ﴿
अल्लाहु यब्सुतुर्रिज्-क लिमंय्यशा – उ मिन् अिबादिही व यक्दिरु लहू, इन्नल्ला – ह बिकुल्लि शैइन् अ़लीम
अल्लाह ही फैलाता है जीविका को जिसके लिए चाहता है अपने भक्तों में से और नापकर देता है उसके लिए। वास्तव में, अल्लाह प्रत्येक वस्तु का अति ज्ञानी है।
وَلَئِن سَأَلْتَهُم مَّن نَّزَّلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَحْيَا بِهِ الْأَرْضَ مِن بَعْدِ مَوْتِهَا لَيَقُولُنَّ اللَّهُ ۚ قُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ ۚ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْقِلُونَ ﴾ 63 ﴿
व ल-इन् स-अल्तहुम् मन् नज़्ज़ -ल मिनस्समा इ मा अन् फ़ अह्या बिहिल्-अर्ज़ मिम्बअ्दि मौतिहा ल-यकूलुन्नल्लाहु, कुलिल्-हम्दु लिल्लाहि, बल् अक्सरुहुम् ला यअ्किलून*
और यदि आप उनसे प्रश्न करें कि किसने उतारा है आकाश से जल, फिर उसके द्वारा जीवित किया है धरती को, उसके मरण के पश्चात्? तो वे अवश्य कहेंगे कि अल्लाह ने। आप कह दें कि सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है। किन्तु उनमें से अधिक्तर लोग समझते नहीं।[1] अर्थात उन्हें जब यह स्वीकार है कि रचयिता अल्लाह है और जीवन के साधन की व्यवस्था भी वही करता है तो फिर इबादत (पूजा) भी उसी की करनी चाहिये और उसी की वंदना तथा उस के शुभगुणों में किसी को उस का साझी नहीं बनाना चाहिये। यह तो मूर्खता की बात है कि रचयिता तथा जीवन के साधनों की व्यवस्था तो अल्लाह करे और उस की वंदना में अन्य को साझी बनाया जाये।
وَمَا هَٰذِهِ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا إِلَّا لَهْوٌ وَلَعِبٌ ۚ وَإِنَّ الدَّارَ الْآخِرَةَ لَهِيَ الْحَيَوَانُ ۚ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ ﴾ 64 ﴿
व मा हाज़िहिल् – हयातुद्दुन्या इल्ला लहवुंव् – व लअिबुन्, व इन्नद्दारल्-आखि-र-त लहि-यल् ह-यवानु • लौ कानू यअ्लमून
और नहीं है ये सांसारिक[1] जीवन, किन्तु मनोरंजन और खेल और परलोक का घर ही वास्तविक जीवन है। क्या ही अच्छा होता, यदि वे जानते! 1. अर्थात जिस संसारिक जीवन का संबन्ध अल्लाह से न हो तो उस का सुख साम्यिक है। वास्तविक तथा स्थायी जीवन तो परलोक का है। अतः उस के लिये प्रयास करना चाहिये।
فَإِذَا رَكِبُوا فِي الْفُلْكِ دَعَوُا اللَّهَ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ فَلَمَّا نَجَّاهُمْ إِلَى الْبَرِّ إِذَا هُمْ يُشْرِكُونَ ﴾ 65 ﴿
फ़-इज़ा रकिबू फिल्-फुल्कि द-अ़वुल्ला-ह मुख़लिसी-न लहुद्-दी-न, फ़-लम्मा नश्राहुम् इलल्बर्रि इज़ा हुम् युश्रिकून
और जब वे नाव पर सवार होते हैं, तो अल्लाह के लिए धर्म को शुध्द करके उसे पुकारते हैं। फिर जब वह बचा लाता है उन्हें थल तक, तो फिर शिर्क करने लगते हैं।
لِيَكْفُرُوا بِمَا آتَيْنَاهُمْ وَلِيَتَمَتَّعُوا ۖ فَسَوْفَ يَعْلَمُونَ ﴾ 66 ﴿
लि – यक्फुरु बिमा आतैनाहुम् व लि-य तमत्तअू, फ़सौ-फ़ यअ्लमून
ताकि वे कुफ़्र करें उसके साथ, जो हमने उन्हें प्रदान किया है और ताकि आनन्द लेते रहें, तो शीघ्र ही इन्हें ज्ञान हो जायेगा।
أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّا جَعَلْنَا حَرَمًا آمِنًا وَيُتَخَطَّفُ النَّاسُ مِنْ حَوْلِهِمْ ۚ أَفَبِالْبَاطِلِ يُؤْمِنُونَ وَبِنِعْمَةِ اللَّهِ يَكْفُرُونَ ﴾ 67 ﴿
अ-व लम् यरौ अन्ना जअल्ना ह – रमन् आमिनंव्-व यु-तख़त्-त – फुन्नासु मिन् हौलिहिम्, अ – फ़बिल्बातिलि युअमिनू -न व बिनिअ् – मतिल्लाहि यक्फुरून
क्या उन्होंने नहीं देखा कि हमने बना दिया है ह़रम (मक्का) को शान्ति स्थल, जबकि उचक लिए जाते हैं लोग उनके आस-पास से? तो क्या वे असत्य ही को मानते हैं और अल्लाह के पुरस्कार को नहीं मानते?
وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنِ افْتَرَىٰ عَلَى اللَّهِ كَذِبًا أَوْ كَذَّبَ بِالْحَقِّ لَمَّا جَاءَهُ ۚ أَلَيْسَ فِي جَهَنَّمَ مَثْوًى لِّلْكَافِرِينَ ﴾ 68 ﴿
व मन् अज़्लमु मिम् – मनिफ़्तरा अ़लल्लाहि कज़िबन् औ कज़्ज़ – ब बिल्हक्कि लम्मा जा – अहू, अलै-स फ़ी जहन्न-म मस्वल्-लिल्काफ़िरीन
तथा कौन अधिक अत्याचारी होगा उससे, जो अल्लाह पर झूठ घड़े या झूठ कहे सच को, जब उसके पास आ जाये, तो क्या नहीं होगा नरक में आवास काफ़िरों को?
وَالَّذِينَ جَاهَدُوا فِينَا لَنَهْدِيَنَّهُمْ سُبُلَنَا ۚ وَإِنَّ اللَّهَ لَمَعَ الْمُحْسِنِينَ ﴾ 69 ﴿
वल्लज़ी-न जा-हदू फ़ीना ल-नह्दियन्नहुम् सुबुलना, व इन्नल्ला-ह ल-मअ़ल्मुह्सिनीन *
तथा जिन्होंने हमारी राह में प्रयास किया, तो हम अवश्य दिखा[1] देंगे उन्हें अपनी राह और निश्चय अल्लाह सदाचारियों के साथ है। 1. अर्थात अपनी राह पर चलने की अधिक क्षमता प्रदान करेंगे।