सूरह अह्जाब के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मदनी है, इस में 73 आयतें हैं।
- इस सूरह में अहज़ाब (जत्था या सेनाओं) की चर्चा के कारण इसे यह नाम दिया गया है।
- इस में काफ़िरों और मुनाफिकों के धोखे में न आने तथा केवल अल्लाह पर भरोसा करने पर बल दिया गया है। फिर जाहिलियत के मुंह बोले पुत्र की परम्परा का सुधार करने के साथ नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की पत्नियों का पद बताया गया है।
- अहज़ाब के युद्ध में अल्लाह की सहायता तथा मुनाफिकों की दुर्गति बताई गई है। इस में मुँह बोले पुत्र की परंपरा को तोड़ने के लिये नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ जैनब (रज़ियल्लाहु अन्हा) के विवाह का वर्णन किया गया है।
- ईमान वालों को, अल्लाह को याद करने का निर्देश देते हुए उस पर दया तथा बड़े प्रतिफल की शुभ सूचना दी गई है। और नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के मान-मर्यादा को उजागर किया गया है।
- तलाक और नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की पत्नियों के विषय में कुछ विशेष आदेश दिये गये हैं।
- पर्दे का आदेश दिया गया है, तथा प्रलय की चर्चा की गई है।
- अन्त में मुसलमानों का दायित्व याद दिलाते हुये मुनाफ़िक़ों को चेतावनी दी गई है।
Surah Ahzab in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِىُّ ٱتَّقِ ٱللَّهَ وَلَا تُطِعِ ٱلْكَٰفِرِينَ وَٱلْمُنَٰفِقِينَ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمًا ﴾ 1 ﴿
Ya ayyuha alnnabiyyu ittaqi Allaha wala tutiAAi alkafireena waalmunafiqeena inna Allaha kana AAaleeman hakeeman
हे नबी! अल्लाह से डरो और काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों की आज्ञापालन न करो। वास्तव में, अल्लाह ह़िक्मत वाला, सब कुछ जानने[1] वाला है।
1. अतः उसी की आज्ञा तथा प्रकाशना का अनुसरण और पालन करो।
وَٱتَّبِعْ مَا يُوحَىٰٓ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًا ﴾ 2 ﴿
WaittabiAA ma yooha ilayka min rabbika inna Allaha kana bima taAAmaloona khabeeran
तथा पालन करो उसका, जो वह़्यी (प्रकाशना) की जा रही है आपकी ओर आपके पालनहार की ओर से। निश्चय अल्लाह जो तुम कर रहे हो, उससे सूचित है।
وَتَوَكَّلْ عَلَى ٱللَّهِ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلًا ﴾ 3 ﴿
Watawakkal AAala Allahi wakafa biAllahi wakeelan
और आप भरोसा करें अल्लाह पर तथा अल्लाह प्रयाप्त है, रक्षा करने वाला।
مَّا جَعَلَ ٱللَّهُ لِرَجُلٍ مِّن قَلْبَيْنِ فِى جَوْفِهِۦ وَمَا جَعَلَ أَزْوَٰجَكُمُ ٱلَّٰٓـِٔى تُظَٰهِرُونَ مِنْهُنَّ أُمَّهَٰتِكُمْ وَمَا جَعَلَ أَدْعِيَآءَكُمْ أَبْنَآءَكُمْ ذَٰلِكُمْ قَوْلُكُم بِأَفْوَٰهِكُمْ وَٱللَّهُ يَقُولُ ٱلْحَقَّ وَهُوَ يَهْدِى ٱلسَّبِيلَ ﴾ 4 ﴿
Ma jaAAala Allahu lirajulin min qalbayni fee jawfihi wama jaAAala azwajakumu allaee tuthahiroona minhunna ommahatikum wama jaAAala adAAiyaakum abnaakum thalikum qawlukum biafwahikum waAllahu yaqoolu alhaqqa wahuwa yahdee alssabeela
और नहीं रखे हैं अल्लाह ने किसी को, दो दिल, उसके भीतर और नहीं बनाया है तुम्हारी पत्नियों को, जिनसे तुम ज़िहार[1] करते हो, उनमें से, तुम्हारी मातायें तथा नहीं बनाया है तुम्हारे मुँह बोले पुत्रों को तुम्हारा पुत्र। ये तुम्हारी मौखिक बाते हैं और अल्लाह सच कहता है तथा वही सुपथ दिखाता है।
1. इस आयत का भावार्थ यह है कि जिस प्रकार एक व्यक्ति के दो दिल नहीं होते वैसे ही उस की पत्नि ज़िहार कर लेने से उस की माता तथा उस का मुँह बोला पुत्र उस का पुत्र नहीं हो जाता। नबी (सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम) ने नबी होने से पहले अपने मुक्त किये हुये दास ज़ैद बिन ह़ारिसा को अपना पुत्र बनाया था और उन को ह़ारिसा पुत्र मुह़म्मद कहा जाता था जिस पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारीः4782) ज़िहार का विवरण सूरह मुजादिला में आ रहा है।
ٱدْعُوهُمْ لِءَابَآئِهِمْ هُوَ أَقْسَطُ عِندَ ٱللَّهِ فَإِن لَّمْ تَعْلَمُوٓا۟ ءَابَآءَهُمْ فَإِخْوَٰنُكُمْ فِى ٱلدِّينِ وَمَوَٰلِيكُمْ وَلَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ فِيمَآ أَخْطَأْتُم بِهِۦ وَلَٰكِن مَّا تَعَمَّدَتْ قُلُوبُكُمْ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا ﴾ 5 ﴿
OdAAoohum liabaihim huwa aqsatu AAinda Allahi fain lam taAAlamoo abaahum faikhwanukum fee alddeeni wamawaleekum walaysa AAalaykum junahun feema akhtatum bihi walakin ma taAAammadat quloobukum wakana Allahu ghafooran raheeman
उन्हें पुकारो, उनके बापों से संबन्धित करके, ये अधिक न्याय की बात है अल्लाह के समीप और यदि तुम नहीं जानते उनके बापों को, तो वे तुम्हारे धर्म बन्धु तथा मित्र हैं और तुम्हारे ऊपर कोई दोष नहीं है उसमें, जो तुमसे चूक हुई है, परन्तु (उसमें है) जिसका निश्चय तुम्हारे दिल करें तथा अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।
ٱلنَّبِىُّ أَوْلَىٰ بِٱلْمُؤْمِنِينَ مِنْ أَنفُسِهِمْ وَأَزْوَٰجُهُۥٓ أُمَّهَٰتُهُمْ وَأُو۟لُوا۟ ٱلْأَرْحَامِ بَعْضُهُمْ أَوْلَىٰ بِبَعْضٍ فِى كِتَٰبِ ٱللَّهِ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ وَٱلْمُهَٰجِرِينَ إِلَّآ أَن تَفْعَلُوٓا۟ إِلَىٰٓ أَوْلِيَآئِكُم مَّعْرُوفًا كَانَ ذَٰلِكَ فِى ٱلْكِتَٰبِ مَسْطُورًا ﴾ 6 ﴿
Alnnabiyyu awla bialmumineena min anfusihim waazwajuhu ommahatuhum waoloo alarhami baAAduhum awla bibaAAdin fee kitabi Allahi mina almumineena waalmuhajireena illa an tafAAaloo ila awliyaikum maAAroofan kana thalika fee alkitabi mastooran
नबी[1] अधिक समीप (प्रिय) है ईमान वालों से, उनके प्राणों से और आपकी पत्नियाँ[2] उनकी मातायें हैं और समीपवर्ती संबन्धी एक-दूसरे से अधिक समीप[3] हैं, अल्लाह के लेख में ईमान वालों और मुहाजिरों से। परन्तु, ये कि करते रहो अपने मित्रों के साथ भलाई और ये पुस्तक में लिखा हूआ है।
1. ह़दीस में है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहाः मैं मुसलमानों का अधिक समीपवर्ती हूँ। यह आयत पढ़ो, तो जो माल छोड़ जाये वह उस के वारिस का है और जो क़र्ज़ तथा निर्बल संतान छोड़ जाये तो मैं उस का रक्षक हूँ। (सह़ीह़ बुख़ारीः4781) 2. अर्थात उन का सम्मान माताओं के बराबर है और आप के पश्चात् उन से विवाह निषेध है। 3. अर्थात धर्म विधानुसार अत्तराधिकार समीपवर्ती संबंधियों का है, इस्लाम के आरंभिक युग में हिजरत तथा ईमान के आधार पर एक दूसरे के उत्तराधिकारी होते थे जिसे मीरास की आयत द्वारा निरस्त कर दिया गया है।
وَإِذْ أَخَذْنَا مِنَ ٱلنَّبِيِّۦنَ مِيثَٰقَهُمْ وَمِنكَ وَمِن نُّوحٍ وَإِبْرَٰهِيمَ وَمُوسَىٰ وَعِيسَى ٱبْنِ مَرْيَمَ وَأَخَذْنَا مِنْهُم مِّيثَٰقًا غَلِيظًا ﴾ 7 ﴿
Waith akhathna mina alnnabiyyeena meethaqahum waminka wamin noohin waibraheema wamoosa waAAeesa ibni maryama waakhathna minhum meethaqan ghaleethan
तथा (याद करो) जब हमने नबियों से उनका वचन[1] लिया तथा आपसे और नूह़, इब्रीम, मूसा, मर्यम के पुत्र ईसा से और हमने लिया उनसे दृढ़ वचन।
1. अर्थात अपना उपदेश पहुँचाने का।
لِّيَسْـَٔلَ ٱلصَّٰدِقِينَ عَن صِدْقِهِمْ وَأَعَدَّ لِلْكَٰفِرِينَ عَذَابًا أَلِيمًا ﴾ 8 ﴿
Liyasala alssadiqeena AAan sidqihim waaAAadda lilkafireena AAathaban aleeman
ताकि वह प्रश्न[1] करे सचों से उनके सच के संबन्ध में तथा तैयार की है काफ़िरों के लिए दुःखदायी यातना।
1. अर्थात प्रलय के दिन। (देखियेः सूरह आराफ़, आयतः6)
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱذْكُرُوا۟ نِعْمَةَ ٱللَّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ جَآءَتْكُمْ جُنُودٌ فَأَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ رِيحًا وَجُنُودًا لَّمْ تَرَوْهَا وَكَانَ ٱللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرًا ﴾ 9 ﴿
Ya ayyuha allatheena amanoo othkuroo niAAmata Allahi AAalaykum ith jaatkum junoodun faarsalna AAalayhim reehan wajunoodan lam tarawha wakana Allahu bima taAAmaloona baseeran
हे ईमान वालो! याद करो अल्लाह के पुरस्कार को अपने ऊपर, जब आ गये तुम्हारे पास जत्थे, तो भेजी हमने उनपर आँधी और ऐसी सेनायें जिन्हें तुमने नहीं देखा और अल्लाह जो तुम कर रहे थे, उसे देख रहा था।
إِذْ جَآءُوكُم مِّن فَوْقِكُمْ وَمِنْ أَسْفَلَ مِنكُمْ وَإِذْ زَاغَتِ ٱلْأَبْصَٰرُ وَبَلَغَتِ ٱلْقُلُوبُ ٱلْحَنَاجِرَ وَتَظُنُّونَ بِٱللَّهِ ٱلظُّنُونَا۠ ﴾ 10 ﴿
Ith jaookum min fawqikum wamin asfala minkum waith zaghati alabsaru wabalaghati alquloobu alhanajira watathunnoona biAllahi alththunoona
जब वे तुम्हारे पास आ गये, तुम्हारे ऊपर से तथा तुम्हारे नीचे से और जब पथरा गयीं आँखें तथा आने लगे दिल मुँह[1] को तथा तुम विचारने लगे अल्लाह के संबन्ध में विभिन्न विचार।
1. इन आयतों में अह़्ज़ाब के युध्द की चर्चा की गई है। जिस का दूसरा नाम (खन्दक़ का युध्द) भी है। क्यों कि इस में ख़न्दक़ (खाई) खोद कर मदीना की रक्षा की गई। सन् 5 में मक्का के काफ़िरों ने अपने पूरे सहयोगी क़बीलों के साथ एक भारी सेना ले कर मदीना को घेर लिया और नीचे वादी और ऊपर पर्वतों से आक्रमण कर दिया। उस समय अल्लाह ने ईमान वालों की रक्षा आँधी तथा फ़रिश्तों की सेना भेज कर की। और शत्रु पराजित हो कर भागे। और फिर कभी मदीना पर आक्रमण करने का साहस न कर सके।
هُنَالِكَ ٱبْتُلِىَ ٱلْمُؤْمِنُونَ وَزُلْزِلُوا۟ زِلْزَالًا شَدِيدًا ﴾ 11 ﴿
Hunalika ibtuliya almuminoona wazulziloo zilzalan shadeedan
यहीं परीक्षा ली गयी ईमान वालों की और वे झंझोड़ दिये गये पूर्ण रूप से।
وَإِذْ يَقُولُ ٱلْمُنَٰفِقُونَ وَٱلَّذِينَ فِى قُلُوبِهِم مَّرَضٌ مَّا وَعَدَنَا ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥٓ إِلَّا غُرُورًا ﴾ 12 ﴿
Waith yaqoolu almunafiqoona waallatheena fee quloobihim maradun ma waAAadana Allahu warasooluhu illa ghurooran
और जब कहने लगे मुश्रिक़ और जिनके दिलों में कुछ रोग था कि अल्लाह तथा उसके रसूल ने नहीं वचन दिया हमें, परन्तु धोखे का।
وَإِذْ قَالَت طَّآئِفَةٌ مِّنْهُمْ يَٰٓأَهْلَ يَثْرِبَ لَا مُقَامَ لَكُمْ فَٱرْجِعُوا۟ وَيَسْتَـْٔذِنُ فَرِيقٌ مِّنْهُمُ ٱلنَّبِىَّ يَقُولُونَ إِنَّ بُيُوتَنَا عَوْرَةٌ وَمَا هِىَ بِعَوْرَةٍ إِن يُرِيدُونَ إِلَّا فِرَارًا ﴾ 13 ﴿
Waith qalat taifatun minhum ya ahla yathriba la muqama lakum fairjiAAoo wayastathinu fareequn minhumu alnnabiyya yaqooloona inna buyootana AAawratun wama hiya biAAawratin in yureedoona illa firaran
और जब कहा उनके एक गिरोह नेः हे यस्रिब[1] वालो! कोई स्थान नहीं तुम्हारे लिए, अतः, लौट[2] चलो तथा अनुमति माँगने लगा उनमें से एक गिरोह नबी से, कहने लगाः हमारे घर खाली हैं, जबकि वह खाली न थे। वे तो बस निश्चय कर रहे थे भाग जाने का।
1. यह मदीने का प्राचीन नाम है। 2. अर्थात रणक्षेत्र से अपने घरों को।
وَلَوْ دُخِلَتْ عَلَيْهِم مِّنْ أَقْطَارِهَا ثُمَّ سُئِلُوا۟ ٱلْفِتْنَةَ لَءَاتَوْهَا وَمَا تَلَبَّثُوا۟ بِهَآ إِلَّا يَسِيرًا ﴾ 14 ﴿
Walaw dukhilat AAalayhim min aqtariha thumma suiloo alfitnata laatawha wama talabbathoo biha illa yaseeran
और यदि प्रवेश कर जातीं उनपर मदीने के चारों ओर से (सेनायें), फिर उनसे माँग की जाती उपद्रव[1] की, तो अवश्य उपद्रव कर देते और उसमें तनिक भी देर नहीं करते।
1. अर्थात इस्लाम से फिर जाने तथा शिर्क करने की।
وَلَقَدْ كَانُوا۟ عَٰهَدُوا۟ ٱللَّهَ مِن قَبْلُ لَا يُوَلُّونَ ٱلْأَدْبَٰرَ وَكَانَ عَهْدُ ٱللَّهِ مَسْـُٔولًا ﴾ 15 ﴿
Walaqad kanoo AAahadoo Allaha min qablu la yuwalloona aladbara wakana AAahdu Allahi masoolan
जबकि उन्होंने वचन दिया था अल्लाह को इससे पूर्व कि पीछा नहीं दिखायेंगे और अल्लाह के वचन का प्रश्न अवश्य किया जायेगा।
قُل لَّن يَنفَعَكُمُ ٱلْفِرَارُ إِن فَرَرْتُم مِّنَ ٱلْمَوْتِ أَوِ ٱلْقَتْلِ وَإِذًا لَّا تُمَتَّعُونَ إِلَّا قَلِيلًا ﴾ 16 ﴿
Qul lan yanfaAAakumu alfiraru in farartum mina almawti awi alqatli waithan la tumattaAAoona illa qaleelan
आप कह दें: कदापि लाभ नहीं पहुँचायेगा तुम्हें भागना, यदि तुम भाग जाओ मरण से और तब तुम थोड़ा ही[1] लाभ प्राप्त कर सकोगे।
1. अर्थात अपनी सीमित आयु तक जो परलोक की अपेक्षा बहुत थोड़ी है।
قُلْ مَن ذَا ٱلَّذِى يَعْصِمُكُم مِّنَ ٱللَّهِ إِنْ أَرَادَ بِكُمْ سُوٓءًا أَوْ أَرَادَ بِكُمْ رَحْمَةً وَلَا يَجِدُونَ لَهُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ وَلِيًّا وَلَا نَصِيرًا ﴾ 17 ﴿
Qul man tha allathee yaAAsimukum mina Allahi in arada bikum sooan aw arada bikum rahmatan wala yajidoona lahum min dooni Allahi waliyyan wala naseeran
आप पूछिये कि वह कौन है, जो तुम्हें बचा सके अल्लाह से, यदि वह तुम्हारे साथ बुराई चाहे अथवा तुम्हारे साथ भलाई चाहे? और वह अपने लिए नहीं पायेंगे अल्लाह के सिवा कोई संरक्षक और न कोई सहायक।
قَدْ يَعْلَمُ ٱللَّهُ ٱلْمُعَوِّقِينَ مِنكُمْ وَٱلْقَآئِلِينَ لِإِخْوَٰنِهِمْ هَلُمَّ إِلَيْنَا وَلَا يَأْتُونَ ٱلْبَأْسَ إِلَّا قَلِيلًا ﴾ 18 ﴿
Qad yaAAlamu Allahu almuAAawwiqeena minkum waalqaileena liikhwanihim halumma ilayna wala yatoona albasa illa qaleelan
जानता है अल्लाह उन्हें, जो रोकने वाले हैं तुममें से तथा कहने वाले हैं अपने भाईयों से कि हमारे पास चले आओ तथा नहीं आते हैं युध्द में, परन्तु कभी-कभी।
أَشِحَّةً عَلَيْكُمْ فَإِذَا جَآءَ ٱلْخَوْفُ رَأَيْتَهُمْ يَنظُرُونَ إِلَيْكَ تَدُورُ أَعْيُنُهُمْ كَٱلَّذِى يُغْشَىٰ عَلَيْهِ مِنَ ٱلْمَوْتِ فَإِذَا ذَهَبَ ٱلْخَوْفُ سَلَقُوكُم بِأَلْسِنَةٍ حِدَادٍ أَشِحَّةً عَلَى ٱلْخَيْرِ أُو۟لَٰٓئِكَ لَمْ يُؤْمِنُوا۟ فَأَحْبَطَ ٱللَّهُ أَعْمَٰلَهُمْ وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرًا ﴾ 19 ﴿
Ashihhatan AAalaykum faitha jaa alkhawfu raaytahum yanthuroona ilayka tadooru aAAyunuhum kaallathee yughsha AAalayhi mina almawti faitha thahaba alkhawfu salaqookum bialsinatin hidadin ashihhatan AAala alkhayri olaika lam yuminoo faahbata Allahu aAAmalahum wakana thalika AAala Allahi yaseeran
वह बड़े कंजूस हैं तुमपर। फिर जब आ जाये भय का[1] समय, तो आप उन्हें देखेंगे कि आपकी ओर तक रहे हैं, फिर रही हैं उनकी आँखें, उसके समान, जो मरणासन्न दशा में हो और जब दूर हो जाये भय, तो वह मिलेंगे तुमसे तेज़ ज़ुबानों[2] से, बड़े लोभी होकर धन के। वे ईमान नहीं लाये हैं। अतः, व्यर्थ कर दिये अल्लाह ने उनके सभी कर्म तथा ये अल्लाह पर अति सरल है।
1. अर्थात युध्द का समय। 2. अर्थात मर्म भेदी बातें करेंगे, और विजय में प्राप्त धन के लोभ में बातें बनायेंगे।
يَحْسَبُونَ ٱلْأَحْزَابَ لَمْ يَذْهَبُوا۟ وَإِن يَأْتِ ٱلْأَحْزَابُ يَوَدُّوا۟ لَوْ أَنَّهُم بَادُونَ فِى ٱلْأَعْرَابِ يَسْـَٔلُونَ عَنْ أَنۢبَآئِكُمْ وَلَوْ كَانُوا۟ فِيكُم مَّا قَٰتَلُوٓا۟ إِلَّا قَلِيلًا ﴾ 20 ﴿
Yahsaboona alahzaba lam yathhaboo wain yati alahzabu yawaddoo law annahum badoona fee alaAArabi yasaloona AAan anbaikum walaw kanoo feekum ma qataloo illa qaleelan
वे समझते हैं कि जत्थे नहीं[1] गये और यदि आ जायें सेनायें, तो वे चाहेंगे कि वे गाँव में हों, गाँव वालों के बीच तथा पूछते रहें तुम्हारे समाचार और यदि तुममें होते भी, तो वे युध्द में कम ही भाग लेते।
1. अर्थात ये मुनाफ़िक़ इतने कायर हैं कि अब भी उन्हें सेनाओं का भय है।
لَّقَدْ كَانَ لَكُمْ فِى رَسُولِ ٱللَّهِ أُسْوَةٌ حَسَنَةٌ لِّمَن كَانَ يَرْجُوا۟ ٱللَّهَ وَٱلْيَوْمَ ٱلْءَاخِرَ وَذَكَرَ ٱللَّهَ كَثِيرًا ﴾ 21 ﴿
Laqad kana lakum fee rasooli Allahi oswatun hasanatun liman kana yarjoo Allaha waalyawma alakhira wathakara Allaha katheeran
तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल में उत्तम[1] आदर्श है, उसके लिए, जो आशा रखता हो अल्लाह और अन्तिम दिन (प्रलय) की तथा याद करो अल्लाह को अत्यधिक।
1. अर्थात आप के सहन, साहस तथा वीरता में।
وَلَمَّا رَءَا ٱلْمُؤْمِنُونَ ٱلْأَحْزَابَ قَالُوا۟ هَٰذَا مَا وَعَدَنَا ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥ وَصَدَقَ ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥ وَمَا زَادَهُمْ إِلَّآ إِيمَٰنًا وَتَسْلِيمًا ﴾ 22 ﴿
Walamma raa almuminoona alahzaba qaloo hatha ma waAAadana Allahu warasooluhu wasadaqa Allahu warasooluhu wama zadahum illa eemanan watasleeman
और जब ईमान वालों ने सेनायें देखीं, तो कहाः यही है, जिसका वचन दिया था हमें अल्लाह और उसके रसूल ने और सच कहा अल्लाह और उसके रसूल ने और इसने अधिक नहीं किया, परन्तु (उनके) ईमान तथा स्वीकार को।
مِّنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ رِجَالٌ صَدَقُوا۟ مَا عَٰهَدُوا۟ ٱللَّهَ عَلَيْهِ فَمِنْهُم مَّن قَضَىٰ نَحْبَهُۥ وَمِنْهُم مَّن يَنتَظِرُ وَمَا بَدَّلُوا۟ تَبْدِيلًا ﴾ 23 ﴿
Mina almumineena rijalun sadaqoo ma AAahadoo Allaha AAalayhi faminhum man qada nahbahu waminhum man yantathiru wama baddaloo tabdeelan
ईमान वालों में कुछ वे भी हैं, जिन्होंने सच कर दिखाया अल्लाह से किये हुए अपने वचन को। तो उनमें कुछ ने अपना वचन[1] पूरा कर दिया और उनमें से कुछ प्रतीक्षा कर रहे हैं और उन्होंने तनिक भी परिवर्तन नहीं किया।
1. अर्थात युध्द में शहीद कर दिये गये।
لِّيَجْزِىَ ٱللَّهُ ٱلصَّٰدِقِينَ بِصِدْقِهِمْ وَيُعَذِّبَ ٱلْمُنَٰفِقِينَ إِن شَآءَ أَوْ يَتُوبَ عَلَيْهِمْ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ غَفُورًا رَّحِيمًا ﴾ 24 ﴿
Liyajziya Allahu alssadiqeena bisidqihim wayuAAaththiba almunafiqeena in shaa aw yatooba AAalayhim inna Allaha kana ghafooran raheeman
ताकि अल्लाह प्रतिफल प्रदान करे सचों को उनके सच का तथा यातना दे मुनाफ़िक़ों को अथवा उन्हें क्षमा कर दे। वास्तव में, अल्लाह अति क्षमाशील और दयावान् है।
وَرَدَّ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ بِغَيْظِهِمْ لَمْ يَنَالُوا۟ خَيْرًا وَكَفَى ٱللَّهُ ٱلْمُؤْمِنِينَ ٱلْقِتَالَ وَكَانَ ٱللَّهُ قَوِيًّا عَزِيزًا ﴾ 25 ﴿
Waradda Allahu allatheena kafaroo bighaythihim lam yanaloo khayran wakafa Allahu almumineena alqitala wakana Allahu qawiyyan AAazeezan
तथा फेर दिया अल्लाह ने काफ़िरों को (मदीना से) उनके क्रोध के साथ। वे नहीं प्राप्त कर सके कोई भलाई और पर्याप्त हो गया अल्लाह ईमान वालों के लिए युध्द में और अल्लाह अति शक्तिशाली तथा प्रभुत्वशाली है।
وَأَنزَلَ ٱلَّذِينَ ظَٰهَرُوهُم مِّنْ أَهْلِ ٱلْكِتَٰبِ مِن صَيَاصِيهِمْ وَقَذَفَ فِى قُلُوبِهِمُ ٱلرُّعْبَ فَرِيقًا تَقْتُلُونَ وَتَأْسِرُونَ فَرِيقًا ﴾ 26 ﴿
Waanzala allatheena thaharoohum min ahli alkitabi min sayaseehim waqathafa fee quloobihimu alrruAAba fareeqan taqtuloona watasiroona fareeqan
और उतार दिया अल्लाह ने उन अह्ले किताब को, जिन्होंने सहायता की उन (सेनाओं) की, उनके दुर्गों से तथा डाल दिया उनके दिलों में भय।[1] उनके एक गिरोह को तुम वध कर रहे थे तथा बंदी बना रहे थे एक-दूसरे गिरोह को।
1. इस आयत में बनी क़ुरैज़ा के युध्द की ओर संकेत है। इस यहूदी क़बीले की नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ संधि थी। फिर भी उन्हों ने संधि भंग कर के खंदक़ के युध्द में क़ुरैश मक्का का साथ दिया। अतः युध्द समाप्त होते ही आप ने उन से युध्द की घोषण कर कर दी। और उन की घेरा बंदी कर ली गई। पच्चीस दिन के बाद उन्हों ने साद बिन मुआज़ को अपना मध्यस्त मान लिया। और उन के निर्णय के अनुसार उन के लड़ाकुओं को वध कर दिया गया। और बच्चों, बूढ़ों तथा स्त्रियों को बंदी बना लिया गया। इस प्रकार मदीना से इस आतंकवादी क़बीले को सदैव के लिये समाप्त कर दिया गया।
وَأَوْرَثَكُمْ أَرْضَهُمْ وَدِيَٰرَهُمْ وَأَمْوَٰلَهُمْ وَأَرْضًا لَّمْ تَطَـُٔوهَا وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍ قَدِيرًا ﴾ 27 ﴿
Waawrathakum ardahum wadiyarahum waamwalahum waardan lam tataooha wakana Allahu AAala kulli shayin qadeeran
और तुम्हारे अधिकार में दे दी उनकी भूमि तथा उनके घरों और धनों को और ऐसी धरती को, जिसपर तुमने पग नहीं रखे थे तथा अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِىُّ قُل لِّأَزْوَٰجِكَ إِن كُنتُنَّ تُرِدْنَ ٱلْحَيَوٰةَ ٱلدُّنْيَا وَزِينَتَهَا فَتَعَالَيْنَ أُمَتِّعْكُنَّ وَأُسَرِّحْكُنَّ سَرَاحًا جَمِيلًا ﴾ 28 ﴿
Ya ayyuha alnnabiyyu qul liazwajika in kuntunna turidna alhayata alddunya wazeenataha fataAAalayna omattiAAkunna waosarrihkunna sarahan jameelan
हे नबी! आप अपनी पत्नियों से कह दो कि यदि तुम चाहती हो सांसारिक जीवन तथा उसकी शोभा, तो आओ, मैं तुम्हें कुछ दे दूँ तथा विदा कर दूँ, अच्छाई के साथ।
وَإِن كُنتُنَّ تُرِدْنَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَٱلدَّارَ ٱلْءَاخِرَةَ فَإِنَّ ٱللَّهَ أَعَدَّ لِلْمُحْسِنَٰتِ مِنكُنَّ أَجْرًا عَظِيمًا ﴾ 29 ﴿
Wain kuntunna turidna Allaha warasoolahu waalddara alakhirata fainna Allaha aAAadda lilmuhsinati minkunna ajran AAatheeman
और यदि तुम चाहती हो अल्लाह और उसके रसूल तथा आख़िरत के घर को, तो अल्लाह ने तैयार कर रखा है तुममें से सदाचारिणियों के लिए भारी प्रतिफल।[1]
1. इस आयत में अल्लाह ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को ये आदेश दिया है कि आप की पत्नियाँ जो आप से अपने ख़र्च अधिक करने की माँग कर रही हैं, तो आप उन्हें अपने साथ रहने या न रहने का अधिकार दे दें। और जब आप ने उन्हें अधिकार दिया तो सब ने आप के साथ रहने का निर्णय किया। इस को इस्लामी विधान में (तख़्यीर) कहा जाता है। अर्थात पत्नि को तलाक़ लेने का अधिकार दे देना। ह़दीस में है कि जब यह आयत उतरी तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपनी पत्नी आइशा से पहले कहा कि मैं तुम्हें एक बात बता रहा हूँ। तुम अपने माता-पिता से प्रामर्श किये बिना जल्दी न करना। फिर आप ने यह आयत सुनाई। तो आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) ने कहाः मैं इस के बारे में भी अपने माता-पिता से परामर्श करूँगी? मैं अल्लाह तथा उस के रसूल और आख़िरत के घर को चाहती हूँ। और फिर आप की दूसरी पत्नियों ने भी ऐसी ही किया। (देखियेः सह़ीह़ बुख़ारीः4786)
يَٰنِسَآءَ ٱلنَّبِىِّ مَن يَأْتِ مِنكُنَّ بِفَٰحِشَةٍ مُّبَيِّنَةٍ يُضَٰعَفْ لَهَا ٱلْعَذَابُ ضِعْفَيْنِ وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرًا ﴾ 30 ﴿
Ya nisaa alnnabiyyi man yati minkunna bifahishatin mubayyinatin yudaAAaf laha alAAathabu diAAfayni wakana thalika AAala Allahi yaseeran
हे नबी की पत्नियो! जो तुममें से खुला दुराचार करेगी उसके लिए दुगनी कर दी जायेगी यातना और ये अल्लाह पर अति सरल है।
وَمَن يَقْنُتْ مِنكُنَّ لِلَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَتَعْمَلْ صَٰلِحًا نُّؤْتِهَآ أَجْرَهَا مَرَّتَيْنِ وَأَعْتَدْنَا لَهَا رِزْقًا كَرِيمًا ﴾ 31 ﴿
Waman yaqnut minkunna lillahi warasoolihi wataAAmal salihan nutiha ajraha marratayni waaAAtadna laha rizqan kareeman
तथा जो मानेंगी तुममें से अल्लाह तथा उसके रसूल की बात और सदाचार करेंगी, हम उन्हें प्रदामन करेंगे उनका प्रतिफल दोहरा और हमने तैयार की है उनके लिए उत्तम जीविका।[1]
1. स्वर्ग में।
يَٰنِسَآءَ ٱلنَّبِىِّ لَسْتُنَّ كَأَحَدٍ مِّنَ ٱلنِّسَآءِ إِنِ ٱتَّقَيْتُنَّ فَلَا تَخْضَعْنَ بِٱلْقَوْلِ فَيَطْمَعَ ٱلَّذِى فِى قَلْبِهِۦ مَرَضٌ وَقُلْنَ قَوْلًا مَّعْرُوفًا ﴾ 32 ﴿
Ya nisaa alnnabiyyi lastunna kaahadin mina alnnisai ini ittaqaytunna fala takhdaAAna bialqawli fayatmaAAa allathee fee qalbihi maradun waqulna qawlan maAAroofan
हे नबी की पत्नियो! तुम नहीं हो अन्य स्त्रियों के समान। यदि तुम अल्लाह से डरती हो, तो कोमल भाव से बात न करो कि लोभ करने लगे वे, जिनके दिल में रोग हो और सभ्य बात बोलो।
وَقَرْنَ فِى بُيُوتِكُنَّ وَلَا تَبَرَّجْنَ تَبَرُّجَ ٱلْجَٰهِلِيَّةِ ٱلْأُولَىٰ وَأَقِمْنَ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتِينَ ٱلزَّكَوٰةَ وَأَطِعْنَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥٓ إِنَّمَا يُرِيدُ ٱللَّهُ لِيُذْهِبَ عَنكُمُ ٱلرِّجْسَ أَهْلَ ٱلْبَيْتِ وَيُطَهِّرَكُمْ تَطْهِيرًا ﴾ 33 ﴿
Waqarna fee buyootikunna wala tabarrajna tabarruja aljahiliyyati aloola waaqimna alssalata waateena alzzakata waatiAAna Allaha warasoolahu innama yureedu Allahu liyuthhiba AAankumu alrrijsa ahla albayti wayutahhirakum tatheeran
और रहो अपने घरों में और सौन्दर्य का प्रदर्शन न करो, प्रथम अज्ञान युग के प्रदर्शन के समान तथा नमाज़ की स्थापना करो, ज़कात दो तथा आज्ञा पालन करो अल्लाह और उसके रसूल की। अल्लाह चाहता है कि मलिनता को दूर कर दे तुमसे, हे नबी की घर वालियो! तथा तुम्हें पवित्र कर दे,, अति पवित्र।
وَٱذْكُرْنَ مَا يُتْلَىٰ فِى بُيُوتِكُنَّ مِنْ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ وَٱلْحِكْمَةِ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ لَطِيفًا خَبِيرًا ﴾ 34 ﴿
Waothkurna ma yutla fee buyootikunna min ayati Allahi waalhikmati inna Allaha kana lateefan khabeeran
तथा याद रखो उसे, जो पढ़ी जाती है तुम्हारे घरों में, अल्लाह की आयतों तथा हिक्मत में से।[1] वास्तव में अल्लाह सूक्ष्मदर्शी, सर्व सूचित है।
1. यहाँ ह़िक्मत से अभिप्राय ह़दीस है जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कथन, कर्म तथा वह काम है जो आप के सामने किया गया हो और आप ने उसे स्वीकार किया हो। वैसे तो अल्लाह की आयत भी ह़िक्मत है किन्तु जब दोनों का वर्णन एक साथ हो तो आयत का अर्थ अल्लाह की पुस्तक और ह़िक्मत का अर्थ नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की ह़दीस होती है।
إِنَّ ٱلْمُسْلِمِينَ وَٱلْمُسْلِمَٰتِ وَٱلْمُؤْمِنِينَ وَٱلْمُؤْمِنَٰتِ وَٱلْقَٰنِتِينَ وَٱلْقَٰنِتَٰتِ وَٱلصَّٰدِقِينَ وَٱلصَّٰدِقَٰتِ وَٱلصَّٰبِرِينَ وَٱلصَّٰبِرَٰتِ وَٱلْخَٰشِعِينَ وَٱلْخَٰشِعَٰتِ وَٱلْمُتَصَدِّقِينَ وَٱلْمُتَصَدِّقَٰتِ وَٱلصَّٰٓئِمِينَ وَٱلصَّٰٓئِمَٰتِ وَٱلْحَٰفِظِينَ فُرُوجَهُمْ وَٱلْحَٰفِظَٰتِ وَٱلذَّٰكِرِينَ ٱللَّهَ كَثِيرًا وَٱلذَّٰكِرَٰتِ أَعَدَّ ٱللَّهُ لَهُم مَّغْفِرَةً وَأَجْرًا عَظِيمًا ﴾ 35 ﴿
Inna almuslimeena waalmuslimati waalmumineena waalmuminati waalqaniteena waalqanitati waalssadiqeena waalssadiqati waalssabireena waalssabirati waalkhashiAAeena waalkhashiAAati waalmutasaddiqeena waalmutasaddiqati waalssaimeena waalssaimati waalhafitheena furoojahum waalhafithati waalththakireena Allaha katheeran waalththakirati aAAadda Allahu lahum maghfiratan waajran AAatheeman
निःसंदेह, मुसलमान पुरुष और मुसलमान स्त्रियाँ, ईमान वाले पुरुष और ईमान वाली स्त्रियाँ, आज्ञाकारी पुरुष और आज्ञाकारिणी स्त्रियाँ, सच्चे पुरुष तथा सच्ची स्त्रियाँ, सहनशील पुरुष और सहनशील स्त्रियाँ, विनीत पुरुष और विनीत स्त्रियाँ, दानशील पुरुष और दानशील स्त्रियाँ, रोज़ा रखने वाले पुरुष और रोज़ा रखने वाली स्त्रियाँ, अपने गुप्तांगों की रक्षा करने वाले पुरुष तथा रक्षा करने वाली स्त्रियाँ तथा अल्लाह को अत्यधिक याद करने वाले पुरुष और याद करने वाली स्त्रियाँ, तैयार कर रखा है अल्लाह ने इन्हीं के लिए क्षमा तथा महान प्रतिफल।[1]
1. इस आयत में मुसलमान पुरुष तथा स्त्री को समान अधिकार दिये गये हैं। विशेष रूप से अल्लाह की वंदना में तथा दोनों का प्रतिफल भी एक बताया गया है जो इस्लाम धर्म की विशेष्ताओं में से एक है।
وَمَا كَانَ لِمُؤْمِنٍ وَلَا مُؤْمِنَةٍ إِذَا قَضَى ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥٓ أَمْرًا أَن يَكُونَ لَهُمُ ٱلْخِيَرَةُ مِنْ أَمْرِهِمْ وَمَن يَعْصِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَٰلًا مُّبِينًا ﴾ 36 ﴿
Wama kana limuminin wala muminatin itha qada Allahu warasooluhu amran an yakoona lahumu alkhiyaratu min amrihim waman yaAAsi Allaha warasoolahu faqad dalla dalalan mubeenan
तथा किसी ईमान वाले पुरुष और ईमान वाली स्त्री के लिए योग्य नहीं कि जब निर्णय कर दे अल्लाह तथा उसके रसूल किसी बात का, तो उनके लिए अधिकार रह जाये अपने विषय में और जो अवज्ञा करेगा अल्लाह एवं उसके रसूल की, तो वह खुले कुपथ में[1] पड़ गया।
1. ह़दीस में है कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहाः मेरी पूरी उम्मत स्वर्ग में जायेगी किन्तु जो इन्कार करे। कहा गया कि कौन इन्कार करेगा, हे अल्लाह के रसूल? आप ने कहाः जिस ने मेरी बात मानी वह स्वर्ग में जायेगा और जिस ने नहीं मानी तो उस ने इन्कार किया। (सहीह़ बुखारीः 2780)
وَإِذْ تَقُولُ لِلَّذِىٓ أَنْعَمَ ٱللَّهُ عَلَيْهِ وَأَنْعَمْتَ عَلَيْهِ أَمْسِكْ عَلَيْكَ زَوْجَكَ وَٱتَّقِ ٱللَّهَ وَتُخْفِى فِى نَفْسِكَ مَا ٱللَّهُ مُبْدِيهِ وَتَخْشَى ٱلنَّاسَ وَٱللَّهُ أَحَقُّ أَن تَخْشَىٰهُ فَلَمَّا قَضَىٰ زَيْدٌ مِّنْهَا وَطَرًا زَوَّجْنَٰكَهَا لِكَىْ لَا يَكُونَ عَلَى ٱلْمُؤْمِنِينَ حَرَجٌ فِىٓ أَزْوَٰجِ أَدْعِيَآئِهِمْ إِذَا قَضَوْا۟ مِنْهُنَّ وَطَرًا وَكَانَ أَمْرُ ٱللَّهِ مَفْعُولًا ﴾ 37 ﴿
Waith taqoolu lillathee anAAama Allahu AAalayhi waanAAamta AAalayhi amsik AAalayka zawjaka waittaqi Allaha watukhfee fee nafsika ma Allahu mubdeehi watakhsha alnnasa waAllahu ahaqqu an takhshahu falamma qada zaydun minha wataran zawwajnakaha likay la yakoona AAala almumineena harajun fee azwaji adAAiyaihim itha qadaw minhunna wataran wakana amru Allahi mafAAoolan
तथा (हे नबी!) आप वह समय याद करें, जब आप उससे कह रहे थे, उपकार किया अल्लाह ने जिसपर तथा आपने उपकार किया जिसपर, रोक ले अपनी पत्नी को तथा अल्लाह से डर और आप छुपा रहे थे अपने मन में जिसे, अल्लाह उजागर करने वाला[1] था तथा डर रहे थे तुम लोगों से, जबकि अल्लाह अधिक योग्य था कि उससे डरते, तो जब ज़ैद ने पूरी करली उस (स्त्री) से अपनी आवश्यक्ता, तो हमने विवाह दिया उसे आपसे, ताकि ईमान वालों पर कोई दोष न रहे, अपने मुँह बोले पुत्रों की पत्नियों कि विषय[2] में, जब वह पूरी करलें उनसे अपनी आवश्यक्ता तथा अल्लाह का आदेश पूरा होकर रहा।
1. ह़दीस में है कि यह आयत ज़ैनब बिन्ते जह्श तथा (उस के पति) ज़ैद बिन ह़ारिसा के बारे में उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस संख्याः4787) ज़ैद बिन ह़ारिसा नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के दास थे। आप ने उन्हें मुक्त कर के अपना पुत्र बना लिया। और ज़ैनब से विवाह दिया। परन्तु दोनों में निभाव न हो सका। और ज़ैद ने अपनी पत्नी को तलाक़ दे दी। और जब मुँह बोले पुत्र की परम्परा को तोड़ दिया गया तो इसे पुर्ण्तः खण्डित करने के लिये आप को ज़ैनब से आकाशीय आदेश द्वारा विवाह दिया गया। इस आयत में उसी की ओर संकेत है। (इब्ने कसीर) 2. अर्थात उन से विवाह करने में जब वह उन्हें तलाक़ दे दें। क्यों कि जाहिली समय में मुँह बोले पुत्र की पत्नी से विवाह वैसे ही निषेध था जैसे सगे पुत्र की पत्नी से। अल्लाह ने इस नियम को तोड़ने के लिये नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का विवाह अपने मुँह बोले पुत्र की पत्नी से कराया। ताकि मुसलमानों को इस से शिक्षा मिले कि ऐसा करने में कोई दोष नहीं है।
مَّا كَانَ عَلَى ٱلنَّبِىِّ مِنْ حَرَجٍ فِيمَا فَرَضَ ٱللَّهُ لَهُۥ سُنَّةَ ٱللَّهِ فِى ٱلَّذِينَ خَلَوْا۟ مِن قَبْلُ وَكَانَ أَمْرُ ٱللَّهِ قَدَرًا مَّقْدُورًا ﴾ 38 ﴿
Ma kana AAala alnnabiyyi min harajin feema farada Allahu lahu sunnata Allahi fee allatheena khalaw min qablu wakana amru Allahi qadaran maqdooran
नहीं है नबी पर कोई तंगी उसमें जिसका आदेश दिया है अल्लाह ने उनके लिए।[1] अल्लाह का यही नियम रहा है उन नबियों में, जो हुए हैं आपसे पहले तथा अल्लाह का निश्चित किया आदेश पूरा होना ही है।
1. अर्थात अपने मुँह बोले पुत्र की पत्नी से उस के तलाक़ देने के पश्चात् विवाह करने में।
ٱلَّذِينَ يُبَلِّغُونَ رِسَٰلَٰتِ ٱللَّهِ وَيَخْشَوْنَهُۥ وَلَا يَخْشَوْنَ أَحَدًا إِلَّا ٱللَّهَ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ حَسِيبًا ﴾ 39 ﴿
Allatheena yuballighoona risalati Allahi wayakhshawnahu wala yakhshawna ahadan illa Allaha wakafa biAllahi haseeban
जो पहुँचाते हैं अल्लाह के आदेश तथा उससे डरते हैं, वे नहीं डरते हैं किसी से, उसके सिवा और पर्याप्त है अल्लाह ह़िसाब लेने के लिए।
مَّا كَانَ مُحَمَّدٌ أَبَآ أَحَدٍ مِّن رِّجَالِكُمْ وَلَٰكِن رَّسُولَ ٱللَّهِ وَخَاتَمَ ٱلنَّبِيِّۦنَ وَكَانَ ٱللَّهُ بِكُلِّ شَىْءٍ عَلِيمًا ﴾ 40 ﴿
Ma kana muhammadun aba ahadin min rijalikum walakin rasoola Allahi wakhatama alnnabiyyeena wakana Allahu bikulli shayin AAaleeman
मुह़म्मद तुम्हारे पुरुषों मेंसे किसी के पिता नहीं हैं। किन्तु, वे[1] अल्लाह के रसूल और सब नबियों में अन्तिम[2] हैं और अल्लाह प्रत्येक वस्तु का अति ज्ञानी है।
1. अर्थात आप ज़ैद के पिता नहीं हैं। उस के वास्तविक पिता ह़ारिसा हैं। 2. अर्थात अब आप के पश्चात् प्रलय तक कोई नबी नहीं आयेगा। आप ही संसार के अन्तिम रसूल हैं। ह़दीस में है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः मेरी मिसाल तथा नबियों का उदाहरण ऐसा है जैसे किसी ने एक सुन्दर भवन बनाया। और एक ईंट की जगह छोड़ दी। तो उसे देख कर लोग आश्चर्य करने लगे कि इस में एक ईंट की जगह के सिवा कोई कमी नहीं थी। तो मैं वह ईंट हूँ। मैं ने उस ईंट की जगह भर दी। और भवन पूरा हो गया। और मेरे द्वारा नबियों की कड़ी का अन्त कर दिया गया। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस संख्याः 3535, सह़ीह़ मुस्लिमः2286)
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱذْكُرُوا۟ ٱللَّهَ ذِكْرًا كَثِيرًا ﴾ 41 ﴿
Ya ayyuha allatheena amanoo othkuroo Allaha thikran katheeran
हे ईमान वालो! याद करते रहो अल्लाह को, अत्यधिक।[1]
1. अपने मुखों, कर्मों तथा दिलों से नमाज़ों के पश्चात् तथा अन्य समय में। ह़दीस में है कि जो अल्लाह को याद करता हो और जो याद न करता हो दोनों में वही अन्तर है जो जीवित तथा मरे हुये में है। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस संख्याः 6407, मुस्लिमः 779)
وَسَبِّحُوهُ بُكْرَةً وَأَصِيلًا ﴾ 42 ﴿
Wasabbihoohu bukratan waaseelan
तथा पवित्रता बयान करते रहो उसकी प्रातः तथा संध्या।
هُوَ ٱلَّذِى يُصَلِّى عَلَيْكُمْ وَمَلَٰٓئِكَتُهُۥ لِيُخْرِجَكُم مِّنَ ٱلظُّلُمَٰتِ إِلَى ٱلنُّورِ وَكَانَ بِٱلْمُؤْمِنِينَ رَحِيمًا ﴾ 43 ﴿
Huwa allathee yusallee AAalaykum wamalaikatuhu liyukhrijakum mina alththulumati ila alnnoori wakana bialmumineena raheeman
वही है, जो दया कर रहा है तुमपर तथा प्रार्थना कर रहे हैं (तुम्हारे लिए) उसके फ़रिश्ते। ताकि वह निकाल दे तुम्हें अंधेरों से, प्रकाश[1] की ओर तथा ईमान वालों पर अत्यंत दयावान् है।
1. अर्थात अज्ञानता तथा कुपथ से, इस्लाम के प्रकाश की ओर।
تَحِيَّتُهُمْ يَوْمَ يَلْقَوْنَهُۥ سَلَٰمٌ وَأَعَدَّ لَهُمْ أَجْرًا كَرِيمًا ﴾ 44 ﴿
Tahiyyatuhum yawma yalqawnahu salamun waaAAadda lahum ajran kareeman
उनका स्वागत, जिस दिन उससे मिलेंगे, सलाम से होगा और उसने तैयार कर रखा है उनके लिए सम्मानित प्रतिफल।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِىُّ إِنَّآ أَرْسَلْنَٰكَ شَٰهِدًا وَمُبَشِّرًا وَنَذِيرًا ﴾ 45 ﴿
Ya ayyuha alnnabiyyu inna arsalnaka shahidan wamubashshiran wanatheeran
हे नबी! हमने भेजा है आपको साक्षी,[1] शुभसूचक[2] और सचेतकर्ता[3] बनाकर।
1. अर्थात लोगों को अल्लाह का उपदेश पहुँचाने का साक्षी। (देखियेः सूरह बक़रा, आयतः 143, तथा सूरह निसा, आयतः 41) 2. अल्लाह की दया तथा स्वर्ग का, आज्ञाकारियों के लिये। 3. अल्लाह की यातना तथा नरक से, अवैज्ञाकारीयों के लिये।
وَدَاعِيًا إِلَى ٱللَّهِ بِإِذْنِهِۦ وَسِرَاجًا مُّنِيرًا ﴾ 46 ﴿
WadaAAiyan ila Allahi biithnihi wasirajan muneeran
तथा बुलाने वाला बनाकर अल्लाह की ओर उसकी अनुमति से तथा प्रकाशित प्रदीप बनाकर।[1]
1. इस आयत में यह संकेत है कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) दिव्य प्रदीप के समान पूरे मानव विश्व को सत्य के प्रकाश से जो एकेश्वरवाद तथा एक अल्लाह की इबादत (वंदना) है प्रकाशित करने के लिये आये हैं। और यही आप की विशेषता है कि आप किसी जाति या देश अथवा वर्ण-वर्ग के लिये नहीं आये हैं। और अब प्रलय तक सत्य का प्रकाश आप ही के अनुसरण से प्राप्त हो सकता है।
وَبَشِّرِ ٱلْمُؤْمِنِينَ بِأَنَّ لَهُم مِّنَ ٱللَّهِ فَضْلًا كَبِيرًا ﴾ 47 ﴿
Wabashshiri almumineena bianna lahum mina Allahi fadlan kabeeran
तथा आप शुभ सूचना सुना दें ईमान वालों को कि उनके लिए अल्लाह की ओर से बड़ा अनुग्रह है।
وَلَا تُطِعِ ٱلْكَٰفِرِينَ وَٱلْمُنَٰفِقِينَ وَدَعْ أَذَىٰهُمْ وَتَوَكَّلْ عَلَى ٱللَّهِ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلًا ﴾ 48 ﴿
Wala tutiAAi alkafireena waalmunafiqeena wadaAA athahum watawakkal AAala Allahi wakafa biAllahi wakeelan
तथा न बात मानें काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों की तथा न चिन्ता करें उनके दुःख पहुँचाने की और भरोसा करें अल्लाह पर तथा पर्याप्त है अल्लाह काम बनाने के लिए।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ إِذَا نَكَحْتُمُ ٱلْمُؤْمِنَٰتِ ثُمَّ طَلَّقْتُمُوهُنَّ مِن قَبْلِ أَن تَمَسُّوهُنَّ فَمَا لَكُمْ عَلَيْهِنَّ مِنْ عِدَّةٍ تَعْتَدُّونَهَا فَمَتِّعُوهُنَّ وَسَرِّحُوهُنَّ سَرَاحًا جَمِيلًا ﴾ 49 ﴿
Ya ayyuha allatheena amanoo itha nakahtumu almuminati thumma tallaqtumoohunna min qabli an tamassoohunna fama lakum AAalayhinna min AAiddatin taAAtaddoonaha famattiAAoohunna wasarrihoohunna sarahan jameelan
हे ईमान वालो! जब तुम विवाह करो ईमान वालियों से, फिर तलाक़ दो उन्हें, इससे पूर्व कि हाथ लगाओ उनको, तो नहीं है तुम्हारे लिए उनपर कोई इद्दत,[1] जिसकी तुम गणना करो। तो तुम उन्हें कुछ लाभ पहुँचाओ और उन्हें विदा करो भलाई के साथ।
1. अर्थात तलाक़ के पश्चात की निर्धारित अवधि जिस के भीतर दूसरे से विवाह करने की अनुमति नहीं है।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِىُّ إِنَّآ أَحْلَلْنَا لَكَ أَزْوَٰجَكَ ٱلَّٰتِىٓ ءَاتَيْتَ أُجُورَهُنَّ وَمَا مَلَكَتْ يَمِينُكَ مِمَّآ أَفَآءَ ٱللَّهُ عَلَيْكَ وَبَنَاتِ عَمِّكَ وَبَنَاتِ عَمَّٰتِكَ وَبَنَاتِ خَالِكَ وَبَنَاتِ خَٰلَٰتِكَ ٱلَّٰتِى هَاجَرْنَ مَعَكَ وَٱمْرَأَةً مُّؤْمِنَةً إِن وَهَبَتْ نَفْسَهَا لِلنَّبِىِّ إِنْ أَرَادَ ٱلنَّبِىُّ أَن يَسْتَنكِحَهَا خَالِصَةً لَّكَ مِن دُونِ ٱلْمُؤْمِنِينَ قَدْ عَلِمْنَا مَا فَرَضْنَا عَلَيْهِمْ فِىٓ أَزْوَٰجِهِمْ وَمَا مَلَكَتْ أَيْمَٰنُهُمْ لِكَيْلَا يَكُونَ عَلَيْكَ حَرَجٌ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا ﴾ 50 ﴿
Ya ayyuha alnnabiyyu inna ahlalna laka azwajaka allatee atayta ojoorahunna wama malakat yameenuka mimma afaa Allahu AAalayka wabanati AAammika wabanati AAammatika wabanati khalika wabanati khalatika allatee hajarna maAAaka waimraatan muminatan in wahabat nafsaha lilnnabiyyi in arada alnnabiyyu an yastankihaha khalisatan laka min dooni almumineena qad AAalimna ma faradna AAalayhim fee azwajihim wama malakat aymanuhum likayla yakoona AAalayka harajun wakana Allahu ghafooran raheeman
हे नबी! हमने ह़लाल (वैध) कर दिया है आपके लिए आपकी पत्नियों को, जिन्हें चुका दिया हो आपने उनका महर (विवाह उपहार) तथा जो आपके स्वामित्व में हो, उसमें से, जो प्रदान किया है अल्लाह ने आप[1] को तथा आपके चाचा की पुत्रियों, आपकी फूफी की पुत्रियों, आपके मामा की पुत्रियों तथा मौसी की पुत्रियों को, जिन्होंने हिजरत की है आपके साथ तथा किसी भी ईमान वाली नारी को, यदि वह स्वयं को दान कर दे नबी के लिए, यदि नबी चाहें कि उससे विवाह कर लें। ये विशेष है आपके लिए अन्य ईमान वालो को छोड़कर। हमें ज्ञान है उसका, जो हमने अनिवार्य किया है उनपर, उनकी पत्नियों तथा उनके स्वामित्व में आयी दासियों के सम्बंध[2] में। ताकि तुमपर कोई संकीर्णता (तंगी) न हो और अल्लाह अति क्षमी, दयावान् है।
1. अर्थात वह दासियाँ जो युध्द में आप के हाथ आई हों। 2. अर्थात यह कि चार पत्नियों से अधिक न रखो तथा महर (विवाह उपहार) और विवाह के समय दो साक्षी बनाना और दासियों के लिये चार का प्रतिबंध न होना एवं सब का भरण-पोषण और सब के साथ अच्छा व्यवहार करना इत्यादि।
تُرْجِى مَن تَشَآءُ مِنْهُنَّ وَتُـْٔوِىٓ إِلَيْكَ مَن تَشَآءُ وَمَنِ ٱبْتَغَيْتَ مِمَّنْ عَزَلْتَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْكَ ذَٰلِكَ أَدْنَىٰٓ أَن تَقَرَّ أَعْيُنُهُنَّ وَلَا يَحْزَنَّ وَيَرْضَيْنَ بِمَآ ءَاتَيْتَهُنَّ كُلُّهُنَّ وَٱللَّهُ يَعْلَمُ مَا فِى قُلُوبِكُمْ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَلِيمًا ﴾ 51 ﴿
Turjee man tashao minhunna watuwee ilayka man tashao wamani ibtaghayta mimman AAazalta fala junaha AAalayka thalika adna an taqarra aAAyunuhunna wala yahzanna wayardayna bima ataytahunna kulluhunna waAllahu yaAAlamu ma fee quloobikum wakana Allahu AAaleeman haleeman
(आपको अधिकार है कि) जिसे आप चाहें, अलग रखें अपनी पत्नियों में से और अपने साथ रखें, जिसे चाहें और जिसे आप चाहें, बुला लें उनमें से, जिन्हें अलग किया है। आपपर कोई दोष नहीं है। इस प्रकार, अधिक आशा है कि उनकी आँखें शीतल हों और वे उदासीन न हों तथा प्रसन्न रहें उससे, जो आप उनसब को दें और अल्लाह जानता है जो तुम्हारे दिलों[1] में है और अल्लाह अति ज्ञानी, सहनशील[2] है।
1. अर्था किसी एक पत्नी में रूचि। 2. इसी लिये तुरंत यातना नहीं देता।
لَّا يَحِلُّ لَكَ ٱلنِّسَآءُ مِنۢ بَعْدُ وَلَآ أَن تَبَدَّلَ بِهِنَّ مِنْ أَزْوَٰجٍ وَلَوْ أَعْجَبَكَ حُسْنُهُنَّ إِلَّا مَا مَلَكَتْ يَمِينُكَ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍ رَّقِيبًا ﴾ 52 ﴿
La yahillu laka alnnisao min baAAdu wala an tabaddala bihinna min azwajin walaw aAAjabaka husnuhunna illa ma malakat yameenuka wakana Allahu AAala kulli shayin raqeeban
(हे नबी!) नहीं ह़लाल (वैध) हैं आपके लिए पत्नियाँ इसके पश्चात् और न ये कि आप बदलें उन्हें दूसरी पत्नियों[1] से, यद्यपि आपको भाये उनका सौन्दर्य। परन्तु, जो दासी आपके स्वामित्व में आ जाये तथा अल्लाह प्रत्येक वस्तु का पूर्ण रक्षक है।
1. अर्थात उन में से किसी को छोड़ कर उस के स्थान पर किसी दूसरी स्त्री से विवाह करें।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَدْخُلُوا۟ بُيُوتَ ٱلنَّبِىِّ إِلَّآ أَن يُؤْذَنَ لَكُمْ إِلَىٰ طَعَامٍ غَيْرَ نَٰظِرِينَ إِنَىٰهُ وَلَٰكِنْ إِذَا دُعِيتُمْ فَٱدْخُلُوا۟ فَإِذَا طَعِمْتُمْ فَٱنتَشِرُوا۟ وَلَا مُسْتَـْٔنِسِينَ لِحَدِيثٍ إِنَّ ذَٰلِكُمْ كَانَ يُؤْذِى ٱلنَّبِىَّ فَيَسْتَحْىِۦ مِنكُمْ وَٱللَّهُ لَا يَسْتَحْىِۦ مِنَ ٱلْحَقِّ وَإِذَا سَأَلْتُمُوهُنَّ مَتَٰعًا فَسْـَٔلُوهُنَّ مِن وَرَآءِ حِجَابٍ ذَٰلِكُمْ أَطْهَرُ لِقُلُوبِكُمْ وَقُلُوبِهِنَّ وَمَا كَانَ لَكُمْ أَن تُؤْذُوا۟ رَسُولَ ٱللَّهِ وَلَآ أَن تَنكِحُوٓا۟ أَزْوَٰجَهُۥ مِنۢ بَعْدِهِۦٓ أَبَدًا إِنَّ ذَٰلِكُمْ كَانَ عِندَ ٱللَّهِ عَظِيمًا ﴾ 53 ﴿
Ya ayyuha allatheena amanoo la tadkhuloo buyoota alnnabiyyi illa an yuthana lakum ila taAAamin ghayra nathireena inahu walakin itha duAAeetum faodkhuloo faitha taAAimtum faintashiroo wala mustaniseena lihadeethin inna thalikum kana yuthee alnnabiyya fayastahyee minkum waAllahu la yastahyee mina alhaqqi waitha saaltumoohunna mataAAan faisaloohunna min warai hijabin thalikum atharu liquloobikum waquloobihinna wama kana lakum an tuthoo rasoola Allahi wala an tankihoo azwajahu min baAAdihi abadan inna thalikum kana AAinda Allahi AAatheeman
हे ईमान वालो! मत प्रवेश करो नबी के घरों में, परन्तु ये कि अनुमति दी जाये तुम्हें भोज के लिए, परन्तु, भोजन पकने की प्रतीक्षा न करते रहो। किन्तु, जब तुम बुलाये जाओ, तो प्रवेश करो, फिर जब भोजन करलो, तो निकल जाओ। लीन न रहो बातों में। वास्तव में, इससे नबी को दुःख होता है, अतः, वह तुमसे लजाते हैं और अल्लाह नहीं लजाता है सत्य[1] से तथा जबतुम नबी की पत्नियों से कुछ माँगो, तो पर्दे के पीछे से माँगो, ये अधिक पवित्रता का कारण है तुम्हारे दिलों तथा उनके दिलों के लिए और तुम्हारे लिए उचित नहीं है कि नबी को दुःख दो, न ये कि विवाह करो उनकी पत्नियों से, आपके पश्चात् कभी भी। वास्तव में, ये अल्लाह के समीप महा (पाप) है।
1. इस आयत में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ सभ्य व्यवहार करने की शिक्षा दी जा रही है। हुआ यह है जब आप ने ज़ैनब से विवाह किया तो भोजन बनवाया और कुछ लोगों को आमंत्रित किया। कुछ लोग भोजन कर के वहीं बातें करने लगे जिस से आप को दुःख पहुँचा। इसी पर यह आयत उतरी। फिर पर्दे का आदेश दे दिया गया। (सह़ीह़ बुख़ारी ह़दीस संख्याः4792)
إِن تُبْدُوا۟ شَيْـًٔا أَوْ تُخْفُوهُ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِكُلِّ شَىْءٍ عَلِيمًا ﴾ 54 ﴿
In tubdoo shayan aw tukhfoohu fainna Allaha kana bikulli shayin AAaleeman
यदि तुम कुछ बोलो अथवा उसे मन में रखो, तो अल्लाह प्रत्येक वस्तु का अत्यंत ज्ञानी है।
لَّا جُنَاحَ عَلَيْهِنَّ فِىٓ ءَابَآئِهِنَّ وَلَآ أَبْنَآئِهِنَّ وَلَآ إِخْوَٰنِهِنَّ وَلَآ أَبْنَآءِ إِخْوَٰنِهِنَّ وَلَآ أَبْنَآءِ أَخَوَٰتِهِنَّ وَلَا نِسَآئِهِنَّ وَلَا مَا مَلَكَتْ أَيْمَٰنُهُنَّ وَٱتَّقِينَ ٱللَّهَ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍ شَهِيدًا ﴾ 55 ﴿
La junaha AAalayhinna fee abaihinna wala abnaihinna wala ikhwanihinna wala abnai ikhwanihinna wala abnai akhawatihinna wala nisaihinna wala ma malakat aymanuhunna waittaqeena Allaha inna Allaha kana AAala kulli shayin shaheedan
कोई दोष नहीं है उन (स्त्रियों) पर अपने पिताओं, न अपने पुत्रों, न अपने भाईयों, न अपने भतीजों, न अपनी (मेल-जोल की) स्त्रियों और न अपने स्वामित्व (दासी तथा दास) के सामने होने में, यदि वे अल्लाह से डरती रहें। वास्तव में, अल्लाह प्रत्येक वस्तु पर साक्षी है।
إِنَّ ٱللَّهَ وَمَلَٰٓئِكَتَهُۥ يُصَلُّونَ عَلَى ٱلنَّبِىِّ يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ صَلُّوا۟ عَلَيْهِ وَسَلِّمُوا۟ تَسْلِيمًا ﴾ 56 ﴿
Inna Allaha wamalaikatahu yusalloona AAala alnnabiyyi ya ayyuha allatheena amanoo salloo AAalayhi wasallimoo tasleeman
अल्लाह तथा उसके फ़रिश्ते दरूद[1] भेजते हैं नबी पर। हे ईमान वालो! उनपर दरूद तथा बहुत सलाम भेजो।
1. अल्लाह के दरूद भेजने का अर्थ यह है कि फ़रिश्तों के समक्ष आप की प्रशंसा करता है। तथा आप पर अपनी दया भेजता है। और फ़रिश्तों के दरूद भेजने का अर्थ यह है कि वह आप के लिये अल्लाह से दया की प्रार्थना करते हैं। ह़दीस में आता है कि आप से प्रश्न किया गया कि हम सलाम तो जानते हैं पर आप पर दरूद कैसे भेजें? तो आप ने फ़रमायाः यह कहोः ((अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुह़म्मद व अला आलि मुह़म्मद, कमा सल्लैता अला इब्राहीम, व अला आलि इब्राहीम, इन्नका ह़मीदुम मजीद। अल्लाहुम्मा बारिक अला मुह़म्मद व अला आलि मुह़म्मद, कमा बारकता अला इब्राहीम, व अला आलि इब्राहीम, इन्नका ह़मीदुम मजीद।)) (सह़ीह़ वुख़ारीः4797) दूसरी ह़दीस में है किः जो मुझ पर एक बार दरूद भेजेगा अल्लाह उस पर दस बार दया भेजता है। (सह़ीह़ मुस्लिमः408)
إِنَّ ٱلَّذِينَ يُؤْذُونَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ لَعَنَهُمُ ٱللَّهُ فِى ٱلدُّنْيَا وَٱلْءَاخِرَةِ وَأَعَدَّ لَهُمْ عَذَابًا مُّهِينًا ﴾ 57 ﴿
Inna allatheena yuthoona Allaha warasoolahu laAAanahumu Allahu fee alddunya waalakhirati waaAAadda lahum AAathaban muheenan
जो लोग दुःख देते हैं अल्लाह तथा उसके रसूल को, तो अल्लाह ने उन्हें धिक्कार दिया है लोक तथा परलोक में और तैयार की है उनके लिए अपमानकारी यातना।
وَٱلَّذِينَ يُؤْذُونَ ٱلْمُؤْمِنِينَ وَٱلْمُؤْمِنَٰتِ بِغَيْرِ مَا ٱكْتَسَبُوا۟ فَقَدِ ٱحْتَمَلُوا۟ بُهْتَٰنًا وَإِثْمًا مُّبِينًا ﴾ 58 ﴿
Waallatheena yuthoona almumineena waalmuminati bighayri ma iktasaboo faqadi ihtamaloo buhtanan waithman mubeenan
और जो दुःख देते हैं ईमान वालों तथा ईमान वालियों को, बिना किसी दोष के, जो उन्होंने किया हो, तो उन्होंने लाद लिया आरोप तथा खुले पाप को।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِىُّ قُل لِّأَزْوَٰجِكَ وَبَنَاتِكَ وَنِسَآءِ ٱلْمُؤْمِنِينَ يُدْنِينَ عَلَيْهِنَّ مِن جَلَٰبِيبِهِنَّ ذَٰلِكَ أَدْنَىٰٓ أَن يُعْرَفْنَ فَلَا يُؤْذَيْنَ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا ﴾ 59 ﴿
Ya ayyuha alnnabiyyu qul liazwajika wabanatika wanisai almumineena yudneena AAalayhinna min jalabeebihinna thalika adna an yuAArafna fala yuthayna wakana Allahu ghafooran raheeman
हे नबी! कह दो अपनी पत्नियों, अपनी पुत्रियों और ईमान वालों की स्त्रियों से कि डाल लिया करें अपने ऊपर अपनी चादरें। ये अधिक समीप है कि वे पहचान ली जायें। फिर उन्हें दुःख न दिया[1] जाये और अल्लाह अति क्षमि, दयावान् है।
1. इस आयत में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की पत्नियों तथा पुत्रियों और साधारण मुस्लिम महिलाओं को यह आदेश दिया गया है कि घर से निकलें तो पर्दे के साथ निकलें। जिस का लाभ यह है कि इस से एक सम्मानित तथा सभ्य महिला की असभ्य तथा कुकर्मी महिला से पहचान होगी और कोई उस से छेड़ छाड़ का साहस नहीं करेगा।
لَّئِن لَّمْ يَنتَهِ ٱلْمُنَٰفِقُونَ وَٱلَّذِينَ فِى قُلُوبِهِم مَّرَضٌ وَٱلْمُرْجِفُونَ فِى ٱلْمَدِينَةِ لَنُغْرِيَنَّكَ بِهِمْ ثُمَّ لَا يُجَاوِرُونَكَ فِيهَآ إِلَّا قَلِيلًا ﴾ 60 ﴿
Lain lam yantahi almunafiqoona waallatheena fee quloobihim maradun waalmurjifoona fee almadeenati lanughriyannaka bihim thumma la yujawiroonaka feeha illa qaleelan
यदि न रुके मुनाफ़िक़[1] तथा जिनके दिलों में रोग है और मदीना में अफ़्वाह फैलाने वाले, तो हम आपको भड़का देंगे उनपर। फिर वे आपके साथ नहीं रह सकेंगे उसमें, परन्तु कुछ ही दिन।
1. मुश्रिक (द्विधावादी) मुसलमानों को हताश करने के लिये कभी मुसलमानों की पराजय और कभी किसी भारी सेना के आक्रमण की अफ़्वाह मदीना में फैला दिया करते थे। जिस के दुष्परिणाम से उन्हें सावधान किया गया है।
مَّلْعُونِينَ أَيْنَمَا ثُقِفُوٓا۟ أُخِذُوا۟ وَقُتِّلُوا۟ تَقْتِيلًا ﴾ 61 ﴿
MalAAooneena aynama thuqifoo okhithoo waquttiloo taqteelan
धिक्कारे हुए। वे जहाँ पाये जायें, पकड़ लिए जायेंगे तथा जान से मार दिये जायेंगे।
سُنَّةَ ٱللَّهِ فِى ٱلَّذِينَ خَلَوْا۟ مِن قَبْلُ وَلَن تَجِدَ لِسُنَّةِ ٱللَّهِ تَبْدِيلًا ﴾ 62 ﴿
Sunnata Allahi fee allatheena khalaw min qablu walan tajida lisunnati Allahi tabdeelan
यही अल्लाह का नियम रहा है उनमें, जो इनसे पूर्व रहे तथा आप कदापि नहीं पायेंगे अल्लाह के नियम में कोई परिवर्तन।
يَسْـَٔلُكَ ٱلنَّاسُ عَنِ ٱلسَّاعَةِ قُلْ إِنَّمَا عِلْمُهَا عِندَ ٱللَّهِ وَمَا يُدْرِيكَ لَعَلَّ ٱلسَّاعَةَ تَكُونُ قَرِيبًا ﴾ 63 ﴿
Yasaluka alnnasu AAani alssaAAati qul innama AAilmuha AAinda Allahi wama yudreeka laAAalla alssaAAata takoonu qareeban
प्रश्न करते हैं आपसे लोग[1] प्रलय विषय में। तो आप कह दें कि उसका ज्ञान तो अल्लाह ही को है। संभव है कि प्रलय समीप हो।
1. यह प्रश्न उपहास स्वरूप किया करते थे। इस लिये उस की दशा का चित्रण किया गया है।
إِنَّ ٱللَّهَ لَعَنَ ٱلْكَٰفِرِينَ وَأَعَدَّ لَهُمْ سَعِيرًا ﴾ 94 ﴿
Inna Allaha laAAana alkafireena waaAAadda lahum saAAeeran
अल्लाह ने धिक्कार दिया है काफ़िरों को और तैयार कर रखी है, उनके लिए, दहकती अग्नि।
خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدًا لَّا يَجِدُونَ وَلِيًّا وَلَا نَصِيرًا ﴾ 65 ﴿
Khalideena feeha abadan la yajidoona waliyyan wala naseeran
वे सदावासी होंगे उसमें। नहीं पायेंगे कोई रक्षक और न कोई सहायक।
يَوْمَ تُقَلَّبُ وُجُوهُهُمْ فِى ٱلنَّارِ يَقُولُونَ يَٰلَيْتَنَآ أَطَعْنَا ٱللَّهَ وَأَطَعْنَا ٱلرَّسُولَا۠ ﴾ 66 ﴿
Yawma tuqallabu wujoohuhum fee alnnari yaqooloona ya laytana ataAAna Allaha waataAAna alrrasoola
जिस दिन उलट-पलट किये जायेंगे उनके मुख अग्नि में, वे कहेंगेः हमारे लिए क्या ही अच्छा होता कि हम कहा मानते अल्लाह का तथा कहा मानते रसूल का!
وَقَالُوا۟ رَبَّنَآ إِنَّآ أَطَعْنَا سَادَتَنَا وَكُبَرَآءَنَا فَأَضَلُّونَا ٱلسَّبِيلَا۠ ﴾ 67 ﴿
Waqaloo rabbana inna ataAAna sadatana wakubaraana faadalloona alssabeela
तथा कहेंगेः हमारे पालनहार! हमने कहा माना अपने प्रमुखों एवं बड़ों का। तो उन्होंने हमें कुपथ कर दिया, सुपथ से।
رَبَّنَآ ءَاتِهِمْ ضِعْفَيْنِ مِنَ ٱلْعَذَابِ وَٱلْعَنْهُمْ لَعْنًا كَبِيرًا ﴾ 68 ﴿
Rabbana atihim diAAfayni mina alAAathabi wailAAanhum laAAnan kabeeran
हमारे पालनहार! उन्हें दुगुनी यातना दे तथा उन्हें धिक्कार दे, बड़ी धिक्कार।
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَكُونُوا۟ كَٱلَّذِينَ ءَاذَوْا۟ مُوسَىٰ فَبَرَّأَهُ ٱللَّهُ مِمَّا قَالُوا۟ وَكَانَ عِندَ ٱللَّهِ وَجِيهًا ﴾ 69 ﴿
Ya ayyuha allatheena amanoo la takoonoo kaallatheena athaw moosa fabarraahu Allahu mimma qaloo wakana AAinda Allahi wajeehan
हे ईमान वालो! न हो जाओ उनके समान जिन्होंने मूसा को दुःख दिया, तो अल्लाह ने निर्दोष कर दिया[1] उसे उनकी बनाई बातों से और वह था अल्लाह के समक्ष सम्मानित।
1. ह़दीस में आया है कि मूसा (अलैहिस्सलाम) बड़े लज्जशील थे। प्रत्येक समय वस्त्र धारण किये रहते थे। जिस से लोग समझने लगे कि संभवतः उन में कुछ रोग है। परन्तु अल्लाह ने एक बार उन्हें नग्न अवस्था में लोगों को दिखा दिया और संदेह दूर हो गया। (सह़ीह़ बुख़ारीः3404, मुस्लिमः 155)
يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَقُولُوا۟ قَوْلًا سَدِيدًا ﴾ 70 ﴿
Ya ayyuha allatheena amanoo ittaqoo Allaha waqooloo qawlan sadeedan
हे ईमान वालो! अल्लाह से डरो तथा सही और सीधी बात बोलो।
يُصْلِحْ لَكُمْ أَعْمَٰلَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ وَمَن يُطِعِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ فَقَدْ فَازَ فَوْزًا عَظِيمًا ﴾ 71 ﴿
Yuslih lakum aAAmalakum wayaghfir lakum thunoobakum waman yutiAAi Allaha warasoolahu faqad faza fawzan AAatheeman
वह सुधार देगा तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्मों को तथा क्षमा कर देगा तुम्हारे पापों को और जो अनुपालन करेगा अल्लाह तथा उसके रसूल का, तो उसने बड़ी सफलता प्राप्त कर ली।
إِنَّا عَرَضْنَا ٱلْأَمَانَةَ عَلَى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَٱلْجِبَالِ فَأَبَيْنَ أَن يَحْمِلْنَهَا وَأَشْفَقْنَ مِنْهَا وَحَمَلَهَا ٱلْإِنسَٰنُ إِنَّهُۥ كَانَ ظَلُومًا جَهُولًا ﴾ 72 ﴿
Inna AAaradna alamanata AAala alssamawati waalardi waaljibali faabayna an yahmilnaha waashfaqna minha wahamalaha alinsanu innahu kana thalooman jahoolan
हमने प्रस्तुत किया अमानत[1] को आकाशों, धरती एवं पर्वतों पर, तो उनसबने इन्कार कर दिया उसका भार उठाने से तथा डर गये उससे। किन्तु, उसका भार ले लिया मनुष्य ने। वास्तव में, वह बड़ा अत्याचारी,[2] अज्ञान है।
1. अमानत से अभिप्राय, धार्मिक नियम हैं जिन के पालन का दायित्व तथा भार अल्लाह ने मनुष्य पर रखा है। और उस में उन का पालन करने की योग्यता रखी है जो योग्यता आकाशों तथा धरती और पर्वतों को नहीं दी है। 2. अर्थात इस अमानत का भार ले कर भी अपने दायित्व को पूरा न कर के स्वयं अपने ऊपर अत्याचार करता है।
لِّيُعَذِّبَ ٱللَّهُ ٱلْمُنَٰفِقِينَ وَٱلْمُنَٰفِقَٰتِ وَٱلْمُشْرِكِينَ وَٱلْمُشْرِكَٰتِ وَيَتُوبَ ٱللَّهُ عَلَى ٱلْمُؤْمِنِينَ وَٱلْمُؤْمِنَٰتِ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورًا رَّحِيمًۢا ﴾ 73 ﴿
LiyuAAaththiba Allahu almunafiqeena waalmunafiqati waalmushrikeena waalmushrikati wayatooba Allahu AAala almumineena waalmuminati wakana Allahu ghafooran raheeman
( ये अमानत का भार इसलिए लिया है) ताकि अल्लाह दण्ड दे मुनाफ़िक़ पुरुष तथा मुनाफ़िक़ स्त्रियों को और मुश्रिक पुरुष तथा स्त्रियों को तथा क्षमा कर दे अल्लाह ईमान वालों तथा ईमान वालियों को और अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।