सूरह काफ़ के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है, इस में 45 आयतें हैं।
- इस सूरह का आरंभ, अक्षर (काफ) से हुआ है। जो इस का यह नाम रखने का कारण है।
- इस में कुन की महिमा का वर्णन करते हुये मौत के पश्चात् जीवन से संबन्धित संदेहो को दूर किया गया है। और आकाश तथा धरती के उन लक्षणों की ओर ध्यान दिलाया गया है जिन पर विचार करने से मौत के पश्चात् जीवन का विश्वास होता है।
- इस में उन जातियों के परिणाम द्वारा शिक्षा दी गई है जिन्होंने उन रसूलों को झुठलाया जो दूसरे जीवन की सूचना दे रहे थे।
- इस में कर्मों के अभिलेख तथा नरक और स्वर्ग का ऐसा चित्र दिखाया गया है जिस से लगता है कि यह सब सामने हो रहा है।
आयत 36 और 38 में शिक्षा दी गई है, और अन्त में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को अपने स्थान पर स्थित रह कर कुन द्वारा शिक्षा देते रहने के निर्देश दिये गये हैं। - हदीस में है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) प्रत्येक जुमुआ को मिम्बर पर यह सूरह पढ़ा करते थे। (सहीह मुस्लिमः 873)
इसी प्रकार आप इसे दोनो ईद की नमाज़, और फज्र की नमाज़ में भी पढ़ते थे। (मुस्लिमः 878, 458)
सूरा काफ | Surah Qaf in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
ق ۚ وَالْقُرْآنِ الْمَجِيدِ ﴾ 1 ﴿
क़ाफ़्। वल्-क़ुर्-आनिल् – मजीद
क़ाफ़। शपथ है आदरणीय क़ुर्आन की!
بَلْ عَجِبُوا أَن جَاءَهُم مُّنذِرٌ مِّنْهُمْ فَقَالَ الْكَافِرُونَ هَٰذَا شَيْءٌ عَجِيبٌ ﴾ 2 ﴿
बल् अ़जिबू अन् जा-अहुम् मुन्ज़िरुम्- मिन्हुम् फ़क़ालल्-काफ़िरू-न हाज़ा शैउन् अ़जीब
बल्कि उन्हें आश्चर्य हुआ कि आ गया उनके पास एक सावधान करने वाला, उन्हीं मे से। तो कहा काफ़िरों नेः ये तो बड़े आश्चर्य[1] की बात है। 1. कि हमारे जैसा एक मनुष्य रसूल कैसे हो गया?
أَإِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا ۖ ذَٰلِكَ رَجْعٌ بَعِيدٌ ﴾ 3 ﴿
अ-इज़ा मित्ना व कुन्ना तुराबन् ज़ालि-क रज्अुम्–बईद
क्या जब हम मर जायेंगे और धूल हो जायेंगे (तो पुनः जीवित किये जायेंगे)? ये वापसी तो दूर की बात[1] (असंभव) है।
قَدْ عَلِمْنَا مَا تَنقُصُ الْأَرْضُ مِنْهُمْ ۖ وَعِندَنَا كِتَابٌ حَفِيظٌ ﴾ 4 ﴿
क़द् अ़लिम्ना मा तन्क़ुसुल्-अर्जु मिन्हुम् व अिन्दना किताबुन् हफ़ीज़
हमें ज्ञान है जो कम करती है धरती उनका अंश तथा हमारे पास एक सुरक्षित पुस्तक[1] है। 1. सुरक्षित पुस्तक से अभिप्राय "लौह़े मह़फ़ूज़" है। जिस में जो कुछ उन के जीवन-मरण की दशायें हैं वह पहले ही से लिखी हुई हैं। और जब अल्लाह का आदेश होगा तो उन्हें फिर बना कर तैयार कर दिया जायेगा।
بَلْ كَذَّبُوا بِالْحَقِّ لَمَّا جَاءَهُمْ فَهُمْ فِي أَمْرٍ مَّرِيجٍ ﴾ 5 ﴿
बल् क़ज़्ज़बू बिल्- हक़्क़ि लम्मा जा- अहुम् फ़हुम् फ़ी अम्म्रिम्-मरीज
बल्कि उनहोंने झुठला दिया सत्य को, जब आ गया उनके पास। इसलिए उलझन में पड़े हुए हैं।
أَفَلَمْ يَنظُرُوا إِلَى السَّمَاءِ فَوْقَهُمْ كَيْفَ بَنَيْنَاهَا وَزَيَّنَّاهَا وَمَا لَهَا مِن فُرُوجٍ ﴾ 6 ﴿
अ-फ़ लम् यन्ज़ुरू इलस्समा-इ फ़ौक़हुम् कै-फ़ बनैनाहा व ज़य्यन्नाहा व मा लहा मिन् फ़ुरूज
क्या उन्होंने नहीं देखा आकाश की ओर अपने ऊपर कि कैसा बनाया है हमने उसे और सजाया है उसको और नहीं है उसमें कोई दराड़?
وَالْأَرْضَ مَدَدْنَاهَا وَأَلْقَيْنَا فِيهَا رَوَاسِيَ وَأَنبَتْنَا فِيهَا مِن كُلِّ زَوْجٍ بَهِيجٍ ﴾ 7 ﴿
वल्अर्-ज़ मदद्नाहा व अल्क़ैना फ़ीहा रवासि-य व अम्बत्ना फ़ीहा मिन् कुल्लि ज़ौजिम्-बहीज
तथा हमने धरती को फैलाया और डाल दिये उसमें पर्वत तथा उपजायी उसमें प्रत्येक प्रकार की सुन्दर वनस्पतियाँ।
تَبْصِرَةً وَذِكْرَىٰ لِكُلِّ عَبْدٍ مُّنِيبٍ ﴾ 8 ﴿
तब्सि – रतंव्-व ज़िक्रा लिकुल्लि अ़ब्दिम्-मुनीब
आँख खोलने तथा शिक्षा देने के लिए, प्रत्येक अल्लाह की ओर ध्यानमग्न भक्त के लिए।
وَنَزَّلْنَا مِنَ السَّمَاءِ مَاءً مُّبَارَكًا فَأَنبَتْنَا بِهِ جَنَّاتٍ وَحَبَّ الْحَصِيدِ ﴾ 9 ﴿
व नज़्ज़ल्ना मिनस्समा-इ मा अम् मुबा-रकन् फ़-अम्बत्ना बिही जन्नातिंव्-व हब्बल्-हसीद
तथा हमने उतारा आकाश से शुभ जल, फिर उगाये उसके द्वारा बाग़ तथा अन्न, जो काटे जायें।
وَالنَّخْلَ بَاسِقَاتٍ لَّهَا طَلْعٌ نَّضِيدٌ ﴾ 10 ﴿
वन्नख़्-ल बासिक़ातिल्-लहा तल्अुन्- नज़ीद
तथा खजूर के ऊँचे वृक्ष, जिनके गुच्छे गुथे हुए हैं।
رِّزْقًا لِّلْعِبَادِ ۖ وَأَحْيَيْنَا بِهِ بَلْدَةً مَّيْتًا ۚ كَذَٰلِكَ الْخُرُوجُ ﴾ 11 ﴿
रिज़्कल्-लिल्अिबादि व अह्यैना बिही बल्द-तम्-मैतन्, कज़ालिकल्-ख़ुरूज
जीविका के लिए भक्तों की तथा हमने जीवित कर दिया निर्जीव नगर को। इसी प्रकार (तुम्हें भी) निकलना है।
كَذَّبَتْ قَبْلَهُمْ قَوْمُ نُوحٍ وَأَصْحَابُ الرَّسِّ وَثَمُودُ ﴾ 12 ﴿
कज़्ज़बत् क़ब्लहुम् क़ौमु नूहिंव्-व अस्हाबुर्रस्सि व समूद
झुठलाया इससे पहले नूह़ की जाति तथा कुवें के वासियों एवं समूद ने।
وَعَادٌ وَفِرْعَوْنُ وَإِخْوَانُ لُوطٍ ﴾ 13 ﴿
व आदुंव्-व फिर्-औ़नु व इख़्वानु लूत
तथा आद और फ़िरऔन एवं लूत के भाईयों ने।
وَأَصْحَابُ الْأَيْكَةِ وَقَوْمُ تُبَّعٍ ۚ كُلٌّ كَذَّبَ الرُّسُلَ فَحَقَّ وَعِيدِ ﴾ 14 ﴿
व अरहाबुल्-ऐ- कति व क़ौमु तुब्बअिन्, कुल्लुन् कज़्ज़- बर्रुसु-ल फ़-हक़्-क़ वईद
तथा ऐका के वासियों ने और तुब्बअ[1] की जाति ने। प्रत्येक ने झुठलाया[2] रसूलों को। अन्ततः, सच हो गयी (उनपर) हमारी धमकी। 1. देखियेः सूरह दुख़ान, आयतः37। 2. इन आयतों में इन जातियों के विनाश की चर्चा कर के क़ुर्आन और नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को न मानने के परिणाम से सावधान किया गया है।
أَفَعَيِينَا بِالْخَلْقِ الْأَوَّلِ ۚ بَلْ هُمْ فِي لَبْسٍ مِّنْ خَلْقٍ جَدِيدٍ ﴾ 15 ﴿
अ-फ़-अ़यीना बिल्ख़ल्किल्- अव्वलि, बल् हुम् फ़ी लब्सिम्-मिन् ख़ल्किन् जदीद
तो क्या हम थक गये हैं प्रथम बार पैदा करके? बल्कि, ये लोग संदेह में पड़े हुए हैं नये जीवन के बारे में।
وَلَقَدْ خَلَقْنَا الْإِنسَانَ وَنَعْلَمُ مَا تُوَسْوِسُ بِهِ نَفْسُهُ ۖ وَنَحْنُ أَقْرَبُ إِلَيْهِ مِنْ حَبْلِ الْوَرِيدِ ﴾ 16 ﴿
व ल-क़द् ख़लक़्नल्-इन्सा-न व नअ्लमु मा तुवस्विसु बिही नफ़्सुहू व नह्नु अक़्रबु इलैहि मिन् हब्लिल् – वरीद
जबकि हमने ही पैदा किया है मनुष्य को और हम जानते हैं जो विचार आते हैं उसके मन में तथा हम अधिक समीप हैं उससे (उसकी) प्राणनाड़ी[1] से। 1. अर्थात हम उस के बारे में उस से अधिक जानते हैं।
إِذْ يَتَلَقَّى الْمُتَلَقِّيَانِ عَنِ الْيَمِينِ وَعَنِ الشِّمَالِ قَعِيدٌ ﴾ 17 ﴿
इज़् य-तलक़्क़ल्-मु-तलक़्क़ियानि अ़निल्- यमीनि व अ़निश्शिमालि क़ईद
जबकि[1] (उसके) दायें-बायें दो फ़रिश्ते लिख रहे हैं। 1. अर्थात प्रत्येक व्यक्ति के दायें तथा बायें दो फ़रिश्ते नियुक्त हैं जो उस की बातों तथा कर्मों को लिखते रहते हैं। जो दायें है वह पुण्य को लिखता है और जो बायें है वह पाप को लिखता है।
مَّا يَلْفِظُ مِن قَوْلٍ إِلَّا لَدَيْهِ رَقِيبٌ عَتِيدٌ ﴾ 18 ﴿
मा यल्फ़िज़ु मिन् क़ौलिन् इल्ला लदैहि रक़ीबुन् अ़तीद
वह नहीं बोलता कोई बात, मगर उसे लिखने के लिए उसके पास एक निरीक्षक तैयार होता है।
وَجَاءَتْ سَكْرَةُ الْمَوْتِ بِالْحَقِّ ۖ ذَٰلِكَ مَا كُنتَ مِنْهُ تَحِيدُ ﴾ 19 ﴿
व जाअत् सक्-रतुल्-मौति बिल्हक़्क़ि, ज़ालि-क मा कुन्-त मिन्हु तहीद
आ पहुँची मौत की अचेतना (बे होशी) सत्य लेकर। ये वही है, जिस से तू भाग रहा था।
وَنُفِخَ فِي الصُّورِ ۚ ذَٰلِكَ يَوْمُ الْوَعِيدِ ﴾ 20 ﴿
व नुफ़ि-ख़ -फ़िस्सूरि, ज़ालि-क यौमुल्-वईद
और फूँक दिया गया सूर (नरसिंघा) में। यही यातना के वचन का दिन है।
وَجَاءَتْ كُلُّ نَفْسٍ مَّعَهَا سَائِقٌ وَشَهِيدٌ ﴾ 21 ﴿
व जाअत् कुल्लु नफ़्सिम् म अ़हा सा-इक़ुंव्-व शहीद
तथा आयेगा प्रत्येक प्राणी इस दशा में कि उसके साथ एक हाँकने[1] वाला और एक गवाह होगा। 1. यह दो फ़रिश्ते होंगे एक उसे ह़िसाब के लिये हाँक कर लायेगा, और दूसरा उस का कर्म पत्र परस्तुत करेगा।
لَّقَدْ كُنتَ فِي غَفْلَةٍ مِّنْ هَٰذَا فَكَشَفْنَا عَنكَ غِطَاءَكَ فَبَصَرُكَ الْيَوْمَ حَدِيدٌ ﴾ 22 ﴿
ल-क़द् कुन्-त फ़ी ग़फ़्लतिम्-मिन् हाज़ा फ़-कशफ़्ना अ़न्-क ग़िता-अ-क फ़-ब-सरुकल्-यौ-म हदीद
तू इसी से अचेत था, तो हमने दूर कर दिया तेरा पर्दा, तो तेरी आँख आज ख़ूब देख रही है।
وَقَالَ قَرِينُهُ هَٰذَا مَا لَدَيَّ عَتِيدٌ ﴾ 23 ﴿
व क़ा-ल क़रीनुहू हाज़ा मा ल-दय्-य अ़तीद
तथा कहा उसके साथी[1] नेः ये है, जो मेरे पास तैयार है। 1. साथी से अभिप्राय वह फ़रिश्ता है जो संसार में उस का कर्म लिख रहा था। वह उस का कर्म पत्र उपस्थित कर देगा।
أَلْقِيَا فِي جَهَنَّمَ كُلَّ كَفَّارٍ عَنِيدٍ ﴾ 24 ﴿
अल्क़िया फ़ी जहन्न म कुल्-ल कफ़्फ़ारिन् अ़नीद
दोनों (फ़रिश्तों को आदेश होगा कि) फेंक दो नरक में प्रत्येक काफ़िर (सत्य के) विरोधी को।
مَّنَّاعٍ لِّلْخَيْرِ مُعْتَدٍ مُّرِيبٍ ﴾ 25 ﴿
मन्नाअिल्- लिल्ख़ैरि मुअ्तदिम्-मुरीब
भलाई के रोकने वाले, अधर्मी, संदेह करने वाले को।
الَّذِي جَعَلَ مَعَ اللَّهِ إِلَٰهًا آخَرَ فَأَلْقِيَاهُ فِي الْعَذَابِ الشَّدِيدِ ﴾ 26 ﴿
अल्लज़ी ज-अ़-ल मअ़ल्लाहि इलाहन् आ-ख़-र फ़-अल्क़ियाहु फ़िल्-अ़ज़ाबिश्-शदीद
जिसने बना लिए अल्लाह के साथ दूसरे पूज्य, तो दोनों को फेंक दो, कड़ी यातना में।
قَالَ قَرِينُهُ رَبَّنَا مَا أَطْغَيْتُهُ وَلَٰكِن كَانَ فِي ضَلَالٍ بَعِيدٍ ﴾ 27 ﴿
क़ा-ल क़रीनुहू रब्बना मा अत्ग़ैतुहू व लाकिन् का-न फ़ी ज़लालिम्-बईद
उसके साथी (शैतान) ने कहाः हे हमारे पालनहार! मैंने इसे कुपथ नहीं किया, परन्तु, वह स्वयं दूर के कुपथ में था।
قَالَ لَا تَخْتَصِمُوا لَدَيَّ وَقَدْ قَدَّمْتُ إِلَيْكُم بِالْوَعِيدِ ﴾ 28 ﴿
क़ा-ल ला तख़्तसिमू ल-दय्-य व क़द् क़द्दम्तु इलैकुम् बिल्-वईद
अल्लाह ने कहाः झगड़ा न करो मेरे पास। मैंने तो पहले ही (संसार में) तुम्हारी ओर चेतावनी भेज दी थी।
مَا يُبَدَّلُ الْقَوْلُ لَدَيَّ وَمَا أَنَا بِظَلَّامٍ لِّلْعَبِيدِ ﴾ 29 ﴿
मा युबद्दलुल्-क़ौलु ल-दय्-य व मा अ-न बिज़ल्लामिल्-लिल्-अ़बीद
नहीं बदली जाती बात मेरे पास[1] और न मैं तनिक भी अत्याचारी हूँ भक्तों के लिए। 1. अर्थात मेरे नियम अनुसार कर्मों का प्रतिकार दिया गया है।
يَوْمَ نَقُولُ لِجَهَنَّمَ هَلِ امْتَلَأْتِ وَتَقُولُ هَلْ مِن مَّزِيدٍ ﴾ 30 ﴿
यौ-म नक़ूलु लि-जहन्न-म हलिम्त-लअ्ति व तक़ूलु हल् मिम्-मज़ीद
जिस दिन हम कहेंगे नरक से कि तू भर गयी? और वह कहेगी क्या कुछ और है?[1] 1. अल्लाह ने कहा है कि वह नरक को अवश्य भर देगा। (देखियेः सूरह सज्दा, आयतः13)। और जब वह कहेगी कि क्या कुछ और है? तो अल्लाह उस में अपना पैर रख देगा। और वह बस-बस कहने लगेगी। (बुख़ारीः4848)
وَأُزْلِفَتِ الْجَنَّةُ لِلْمُتَّقِينَ غَيْرَ بَعِيدٍ ﴾ 31 ﴿
व उज़्लि-फ़तिल्-जन्नतु लिल्मुत्तक़ी-न ग़ैर बईद
तथा समीप कर दी जायेगी स्वर्ग, वह सदाचारियों से कुछ दूर न होगी।
هَٰذَا مَا تُوعَدُونَ لِكُلِّ أَوَّابٍ حَفِيظٍ ﴾ 32 ﴿
हाज़ा मा तू- अ़दू-न लिकुल्लि अव्वाबिन् हफीज़
ये है जिसका तुम्हें वचन दिया जाता था, प्रत्येक ध्यानमग्न रक्षक[1] के लिए। 1. अर्थात जो अल्लाह के आदेशों का पालन करता था।
مَّنْ خَشِيَ الرَّحْمَٰنَ بِالْغَيْبِ وَجَاءَ بِقَلْبٍ مُّنِيبٍ ﴾ 33 ﴿
मन् ख़शियर्रह्मा-न बिल्ग़ैबि व जा अ बिक़ल्बिम् – मुनीब
जो डरा अत्यंत कृपाशील से बिन देखे तथा लेकर आया ध्यानमग्न दिल।
ادْخُلُوهَا بِسَلَامٍ ۖ ذَٰلِكَ يَوْمُ الْخُلُودِ ﴾ 34 ﴿
उद्खुलूहा बि-सलामिन्, ज़ालि-क यौमुल्-ख़ुलूद
प्रवेश कर जाओ इसमें, शान्ति के साथ। ये सदैव रहने का दिन है।
لَهُم مَّا يَشَاءُونَ فِيهَا وَلَدَيْنَا مَزِيدٌ ﴾ 35 ﴿
लहुम् मा यशाऊ न फ़ीहा व लदैना मज़ीद
उन्हीं के लिए, जो वे इच्छा करेंगे उसमें मिलेगा तथा हमारे पास (इससे भी) अधिक है।[1] 1. अधिक से अभिप्राय अल्लाह का दर्शन है। (देखियेः सूरह यूनुस, आयतः26, की व्याख्या में सह़ीह़ मुस्लिमः181)
وَكَمْ أَهْلَكْنَا قَبْلَهُم مِّن قَرْنٍ هُمْ أَشَدُّ مِنْهُم بَطْشًا فَنَقَّبُوا فِي الْبِلَادِ هَلْ مِن مَّحِيصٍ ﴾ 36 ﴿
व कम् अह्लक्ना क़ब्लहुम् मिन् क़र्रिनन् हुम् अशद्दु मिन्हुम् बत्शन् फ़-नक़्क़बू फिल्-बिलादि, हल् मिम्-महीस
तथा हम विनाश कर चुके हैं इनसे पूर्व, बहुत-से समुदायों का, जो इनसे अधिक थे शक्ति में। तो वे फिरते रहे नगरों में, तो क्या कहीं कोई भागने की जगह पा सके?[1] 1. जब उन पर यातना आ गई।
إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَذِكْرَىٰ لِمَن كَانَ لَهُ قَلْبٌ أَوْ أَلْقَى السَّمْعَ وَهُوَ شَهِيدٌ ﴾ 37 ﴿
इन्-न फ़ी ज़ालि क लज़िक्रा लिमन् का-न लहू क़ल्बुन् औ अल्क़स्सम्-अ़ व हु-व शहीद
वास्तव में, इसमें निश्चय शिक्षा है उसके लिए, जिसके दिल हों अथवा कान धरे और वह उपस्थित[1] हो। 1. अर्थात ध्यान से सुनता हो।
وَلَقَدْ خَلَقْنَا السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ وَمَا مَسَّنَا مِن لُّغُوبٍ ﴾ 38 ﴿
व ल-क़द् ख़लक़्नस्समावाति वल्- अर्ज़ व मा बैनहुमा फ़ी सित्तति अय्यमिंव्-व मा मस्सना मिल्लुग़ूब
तथा निश्चय हमने पैदा किया है आकाशों तथा धरती को और जो कुछ दोनों के बीच है, छः दिनों में और हमें कोई थकान नहीं हुई।
فَاصْبِرْ عَلَىٰ مَا يَقُولُونَ وَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ قَبْلَ طُلُوعِ الشَّمْسِ وَقَبْلَ الْغُرُوبِ ﴾ 39 ﴿
फ़स्बिर् अ़ला मा यक़ूलू-न व सब्बिह् बिहम्दि रब्बि-क क़ब्-ल तुलूअिश्शम्सि व क़ब्लल्-ग़ुरूब
तो आप सहन करें उनकी बातों को तथा पवित्रता का वर्णन करें अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ, सूर्य के निकलने से पहले तथा डूबने से पहले।[1] 1. ह़दीस में है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने चाँद की ओर देखा। और कहाः तुम अल्लाह को ऐसे ही देखोगे। उस के देखने में तुम्हें कोई बाधा न होगी। इसलिये यदि यह हो सके कि सूर्य निकलने तथा डूबने से पहले की नमाज़ों से पीछे न रहो तो यह अवश्य करो। फिर आप ने यही आयत पढ़ी। (सह़ीह़ बुख़ारीः554, सह़ीह़ मुस्लिमः633) यह दोनों फ़ज्र और अस्र की नमाज़ें हैं। ह़दीस में है कि प्रत्येक नमाज़ के पश्चात् अल्लाह की तस्बीह़ और ह़म्द तथा तक्बीर 33-33 बार करो। (सह़ीह़ बुख़ारीः843, सह़ीह़ मुस्लिमः595)
وَمِنَ اللَّيْلِ فَسَبِّحْهُ وَأَدْبَارَ السُّجُودِ ﴾ 40 ﴿
व मिनल्लैलि फ़-सब्बिहु व अद्बारस् – सुजूद
तथा रात के कुछ भाग में उसकी पवित्रता का वर्णन करें और सज्दों (नमाज़ों) के पश्चात् (भी)।
وَاسْتَمِعْ يَوْمَ يُنَادِ الْمُنَادِ مِن مَّكَانٍ قَرِيبٍ ﴾ 41 ﴿
वस्तमिअ् यौ-म युनादिल् – मुनादि मिम्- मकानिन् क़रीब
तथा ध्यान से सुनो, जिस दिन पुकारने वाला[1] पुकारेगा समीप स्थान से। 1. इस से अभिप्राय प्रलय के दिन सूर में फूँकने वाला फ़रिश्ता है।
يَوْمَ يَسْمَعُونَ الصَّيْحَةَ بِالْحَقِّ ۚ ذَٰلِكَ يَوْمُ الْخُرُوجِ ﴾ 42 ﴿
यौ-म यस्मअूनस्-सै-ह-त बिल्हक़्क़ि, ज़ालि क यौमुल्- ख़ुरूज
जिस दिन सब सुनेंगे कड़ी आवाज़ सत्य के साथ, वही निकलने का दिन होगा।
إِنَّا نَحْنُ نُحْيِي وَنُمِيتُ وَإِلَيْنَا الْمَصِيرُ ﴾ 43 ﴿
इन्ना नह्नु नुह्यी व नुमीतु व इलैनल् मसीर
वास्तव में, हम ही जीवन देते तथा मारते हैं और हमारी ओर ही फिरकर आना है।
يَوْمَ تَشَقَّقُ الْأَرْضُ عَنْهُمْ سِرَاعًا ۚ ذَٰلِكَ حَشْرٌ عَلَيْنَا يَسِيرٌ ﴾ 44 ﴿
यौ-म त-शक़्क़-क़ुल्-अर्ज़ु अ़न्हुम् सिराअ़न् ज़ालि-क हश्रुन् अ़लैना यसीर
जिस दिन फट जायेगी धरती उनसे, वे दौड़ते हुए (निकलेंगे), ये एकत्र करना हमपर बहुत सरल है।
نَّحْنُ أَعْلَمُ بِمَا يَقُولُونَ ۖ وَمَا أَنتَ عَلَيْهِم بِجَبَّارٍ ۖ فَذَكِّرْ بِالْقُرْآنِ مَن يَخَافُ وَعِيدِ ﴾ 45 ﴿
नह्नु अअ्लमु बिमा यक़ूलू-न व मा अन्त अ़लैहिम् बि-जब्बारिन् फ़-ज़क्किर् बिल् क़ुर्आनि मंय्यख़ाफ़ु वईद*
तथा हम भली-भाँति जानते हैं उसे, जो कुछ वे कर रहे हैं और आप उन्हें बलपूर्वक मनवाने के लिए नहीं हैं। तो आप शिक्षा दें क़ुर्आन द्वारा उसे, जो डरता हो मेरी यातना से।