सूरह साफ्फात के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है, इस में 182 आयतें है।
- इस का आरंभ ((वस साफ्फात)) से हुआ है जिस का अर्थ हैः पंक्तिवद्ध फरिश्तों की शपथ ! इस लिये इस का नाम सूरह सापफात है।
- इस में आयत 1 से 10 तक अल्लाह के अकेले पूज्य होने पर फरिश्तों की गवाही प्रस्तुत करते हुये यह बताया गया है कि शैतान, फरिश्तों की उच्च सभा तक जाने से रोक दिये गये हैं। फिर दूसरे जीवन की दशा का वर्णन करके उन के दुष्परिणाम को बताया गया है जो अल्लाह के सिवा दूसरों को पूजते है तथा अल्लाह के पूजारियों का उत्तम परिणाम बताया गया है।
- आयत 75 से 148 तक अनेक नबियों की चचर्चा है जिन्होंने तौहीद (एकेश्वरवाद) का प्रचार करते हुये अनेक प्रकार के दुश्व सहे। तथा अल्लाह ने उन्हें उन के प्रयासों का उत्तम प्रतिफल प्रदान किया।
- आयत 149 से 166 तक फरिश्तों के बारे में मुश्रिकों के गलत विचारों का खण्डन करते हुये फरिश्तों ही द्वारा यह बताया गया है कि वास्तव में वह क्या है?
- फिर सूरह की अन्तिम आयतों में अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तथा अल्लाह की सेना अर्थात रसूल के अनुयायियों को अल्लाह की सहायता तथा विजय की शुभ सूचना दी गई है।
सूरह अस साफ़्फ़ात | Surah Saffat in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
وَالصَّافَّاتِ صَفًّا ﴾ 1 ﴿
वस्साफ़्फ़ाति सफ़्फ़ा
शपथ है पंक्तिवध्द (फ़रिश्तों) की!
فَالزَّاجِرَاتِ زَجْرًا ﴾ 2 ﴿
फ़ज़्ज़ाजिराति ज़ज्रा
फिर झिड़कियाँ देने वालों की!
فَالتَّالِيَاتِ ذِكْرًا ﴾ 3 ﴿
फ़त्तालियाति ज़िक्रा
फिर स्मरण करके पढ़ने वालों[1] की! 1. यह तीनों गुण फ़रिश्तों के हैं जो आकाशों में अल्लाह की इबादत के लिये पंक्तिवध्द रहते तथा बादलों को हाँकते और अल्लाह के स्मरण जैसे क़ुर्आन तथा नमाज़ पढ़ने और उस की पवित्रता का गान करने इत्यादि में लगे रहते हैं।
إِنَّ إِلَٰهَكُمْ لَوَاحِدٌ ﴾ 4 ﴿
इन्-न इला-हकुम् लवाहिद्
निश्चय तुम्हारा पूज्य, एक ही है।
رَّبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا وَرَبُّ الْمَشَارِقِ ﴾ 5 ﴿
रब्बुस्समावाति वल्अर्ज़ि व मा बैनहुमा व रब्बुल – मशारिक़
आकाशों तथा धरती का पालनहार तथा जो कुछ उनके मध्य है और सुर्योदय होने के स्थानों का रब।
إِنَّا زَيَّنَّا السَّمَاءَ الدُّنْيَا بِزِينَةٍ الْكَوَاكِبِ ﴾ 6 ﴿
इन्ना ज़य्यन्नस्समा-अद्-दुन्या बिज़ी-नति-निल्-कवाकिब
हमने अलंकृत किया है संसार (समीप) के आकाश को, तारों की शोभा से।
وَحِفْظًا مِّن كُلِّ شَيْطَانٍ مَّارِدٍ ﴾ 7 ﴿
व हिफ़्ज़म् मिन् कुल्लि शैतानिम्-मारिद
तथा रक्षा करने के लिए प्रत्येक उध्दत शैतान से।
لَّا يَسَّمَّعُونَ إِلَى الْمَلَإِ الْأَعْلَىٰ وَيُقْذَفُونَ مِن كُلِّ جَانِبٍ ﴾ 8 ﴿
ला यस्सम्मअू-न इलल् म-लइल्-अअ्ला व युक़्ज़फ़ू-न मिन् कुल्लि जानिब
वह नहीं सुन सकते (जाकर) उच्च सभा तक फ़रिश्तों की बात तथा मारे जाते हैं, प्रत्येक दिशा से।
دُحُورًا ۖ وَلَهُمْ عَذَابٌ وَاصِبٌ ﴾ 9 ﴿
दुहूरंव्-व लहुम् अ़ज़ाबुंवू-वासिब्
राँदने के लिए तथा उनके लिए स्थायी यातना है।
إِلَّا مَنْ خَطِفَ الْخَطْفَةَ فَأَتْبَعَهُ شِهَابٌ ثَاقِبٌ ﴾ 10 ﴿
इल्ला मन् ख़तिफ़ल्-ख़त्फ़-त फ़-अत्ब-अ़हू शिहाबुन् साक़िब
परन्तु, जो ले उड़े कुछ, तो पीछा करती है उसका दहकती ज्वाला।[1] 1. फिर यदि उस से बचा रह जाये तो आकाश की बात अपने नीचे के शैतानों तक पहूँचाता है और वह उसे काहिनों तथा ज्योतिषियों को बताते हैं। फिर वह उस में सौ झूठ मिला कर लोगों को बताते हैं। (सह़ीह़ बुख़ारीः 6213, सह़ीह़ मुस्लिमः2228)
فَاسْتَفْتِهِمْ أَهُمْ أَشَدُّ خَلْقًا أَم مَّنْ خَلَقْنَا ۚ إِنَّا خَلَقْنَاهُم مِّن طِينٍ لَّازِبٍ ﴾ 11 ﴿
फ़स्तफ़्तिहिम् अ-हुम् अशद्-दु ख़ल्कन् अम्मन् ख़लक़्ना, इन्ना ख़लक़्नाहुम् मिन् तीनिल्-लाज़िब
तो आप इन (काफ़िरों) से प्रश्न करें कि क्या उन्हें पैदा करना अधिक कठिन है या जिन्हें[1] हमने पैदा किया है? हमने उन्हें[2] पैदा किया है, लेसदार मिट्टी से। 1. अर्थात फ़रिश्तों तथा आकाशों को। 2. उन के पिता आदम (अलैहिस्सलाम) को।
بَلْ عَجِبْتَ وَيَسْخَرُونَ ﴾ 12 ﴿
बल् अ़जिब्-त व यस्ख़रून
बल्कि आपने आश्चर्य किया (उनके अस्वीकार पर) तथा वे उपहास करते हैं।
وَإِذَا ذُكِّرُوا لَا يَذْكُرُونَ ﴾ 13 ﴿
व इज़ा ज़ुक्किरू ला यज़्कुरून
और जब शिक्षा दी जाये, तो वे शिक्षा ग्रहण नहीं करते।
وَإِذَا رَأَوْا آيَةً يَسْتَسْخِرُونَ ﴾ 14 ﴿
व इज़ा रऔ आ-यतंय्-यस्तस्ख़िरून
और जब देखते हैं कोई निशानी, तो उपहास करने लगते हैं।
وَقَالُوا إِنْ هَٰذَا إِلَّا سِحْرٌ مُّبِينٌ ﴾ 15 ﴿
व क़ालू इन् हाज़ा इल्ला सिह् रुम्-मुबीन
तथा कहते हें कि ये तो मात्र खुला जादू है।
أَإِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا وَعِظَامًا أَإِنَّا لَمَبْعُوثُونَ ﴾ 16 ﴿
अ-इज़ा मित्ना व कुन्ना तुराबंवू-व अिज़ामन् अ-इन्ना लमब्अूसून
(कहते हैं कि) क्या, जब हम मर जायेंगे तथा मिट्टी और हड्डियाँ हो जायेंगे, तो हम निश्चय पुनः जीवित किये जायेंगे?
أَوَآبَاؤُنَا الْأَوَّلُونَ ﴾ 17 ﴿
अ-व आबा-उनल्-अव्वलून
और क्या, हमारे पहले पूर्वज भी (जीवित किये जायेंगे)?
قُلْ نَعَمْ وَأَنتُمْ دَاخِرُونَ ﴾ 18 ﴿
क़ुल् न-अ़म् व अन्तुम् दाख़िरून
आप कह दें कि हाँ तथा तुम अपमानित (भी) होगे!
فَإِنَّمَا هِيَ زَجْرَةٌ وَاحِدَةٌ فَإِذَا هُمْ يَنظُرُونَ ﴾ 19 ﴿
फ़-इन्नमा हि-य ज़ज्-रतुंव्-वाहि-दतुन् फ़-इज़ा हुम् यन्ज़ुरून
वो तो बस एक झिड़की होगी, फिर सहसा वे देख रहे होंगे।
وَقَالُوا يَا وَيْلَنَا هَٰذَا يَوْمُ الدِّينِ ﴾ 20 ﴿
व क़ालू या वै-लना हाज़ा यौमुद्दीन
तथा कहेंगेः हाय हमारा विनाश! ये तो बदले (प्रलय) का दिन है।
هَٰذَا يَوْمُ الْفَصْلِ الَّذِي كُنتُم بِهِ تُكَذِّبُونَ ﴾ 21 ﴿
हाज़ा यौमुल्-फ़स्लिल्लज़ी कुन्तुम् बिही तुकज्ज़िबून
यही निर्णय का दिन है, जिसे तुम झुठला रहे थे।
احْشُرُوا الَّذِينَ ظَلَمُوا وَأَزْوَاجَهُمْ وَمَا كَانُوا يَعْبُدُونَ ﴾ 22 ﴿
उह्शुरुल्लज़ी-न ज़-लमू व अज़्वा-जहुम् व मा कानू यअ्बुदून
(आदेश होगा कि) घेर लाओ सब अत्याचारियों को तथा उनके साथियों को और जिसकी वे इबादत (वंदना) कर रहे थे।
مِن دُونِ اللَّهِ فَاهْدُوهُمْ إِلَىٰ صِرَاطِ الْجَحِيمِ ﴾ 23 ﴿
मिन् दूनिल्लाहि फ़ह्दुहुम् इला सिरातिल्-जहीम
अल्लाह के सिवा। फिर दिखा दो उन्हें नरक की राह।
وَقِفُوهُمْ ۖ إِنَّهُم مَّسْئُولُونَ ﴾ 24 ﴿
वक़िफ़ूहुम् इन्नहुम् मस्अलून
और उन्हें रोक[1] लो। उनसे प्रश्न किया जाये। 1. नरक में झोंकने से पहले।
مَا لَكُمْ لَا تَنَاصَرُونَ ﴾ 25 ﴿
मा लकुम् ला तना-सरून
क्या हो गया है तुम्हें कि एक-दूसरे की सहायता नहीं करते?
بَلْ هُمُ الْيَوْمَ مُسْتَسْلِمُونَ ﴾ 26 ﴿
बल् हुमुल्-यौ-म मुस्तस्लिमून
बल्कि वे उस दिन, सिर झुकाये खड़े होंगे।2
وَأَقْبَلَ بَعْضُهُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ يَتَسَاءَلُونَ ﴾ 27 ﴿
व अक़्ब-ल बअ्ज़ुहुम् अ़ला बअ्ज़िंय्-य-तसा-अलून
और एक-दूसरे के सम्मुख होकर परस्पर प्रश्न करेंगेः[1] 1. अर्थात एक-दूसरे को धिक्कारेंगे।
قَالُوا إِنَّكُمْ كُنتُمْ تَأْتُونَنَا عَنِ الْيَمِينِ ﴾ 28 ﴿
क़ालू इन्नकुम् कुन्तुम् तअ्तु-नना अ़निल्-यमीन
कहेंगे कि तुम हमारे पास आया करते थे दायें[1] से। 1. इस से अभिप्राय यह है कि धर्म तथा सत्य के नाम से आते थे अर्थात यह विश्वास दिलाते थे कि यही मिश्रणवाद मूल तथा सत्धर्म है।
قَالُوا بَل لَّمْ تَكُونُوا مُؤْمِنِينَ ﴾ 29 ﴿
क़ालू बल्-लम् तकूनू मुअ्मिनीन
वे[1] कहेंगेः बल्कि तुम स्वयं ईमान वाले न थे। 1. इस से अभिप्राय उन के प्रमुख लोग हैं।
وَمَا كَانَ لَنَا عَلَيْكُم مِّن سُلْطَانٍ ۖ بَلْ كُنتُمْ قَوْمًا طَاغِينَ ﴾ 30 ﴿
व मा का-न लना अ़लैकुम् मिन् सुल्तानिन् बल् कुन्तुम् क़ौमन् ताग़ीन
तथा नहीं था हमारा तुमपर कोई अधिकार,[1] बल्कि तुम सवंय अवज्ञाकारी थे। 1. देखियेः सूरह इब्राहीम, आयतः22
فَحَقَّ عَلَيْنَا قَوْلُ رَبِّنَا ۖ إِنَّا لَذَائِقُونَ ﴾ 31 ﴿
फ़-हक़् क़ अ़लैना क़ौलु रब्बिना इन्ना लज़ा-इक़ून
तो सिध्द हो गया हमपर हमारे पालनहार का कथन कि हम (यातना) चखने वाले हैं।
فَأَغْوَيْنَاكُمْ إِنَّا كُنَّا غَاوِينَ ﴾ 32 ﴿
फ़-अ़ग्वैनाकुम् इन्ना कुन्ना ग़ावीन
तो हमने तुम्हें कुपथ कर दिया। हम तो स्वयं कुपथ थे।
فَإِنَّهُمْ يَوْمَئِذٍ فِي الْعَذَابِ مُشْتَرِكُونَ ﴾ 33 ﴿
फ़-इन्नहुम् यौमइज़िन् फ़िल्-अ़ज़ाबि मुश्तरिकून
फिर वे सभी, उस दिन यातना में साझी होंगे।
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَفْعَلُ بِالْمُجْرِمِينَ ﴾ 34 ﴿
इन्ना कज़ालि-क नफ़्अ़लु बिल्-मुज्रिमीन
हम, इसी प्रकार, किया करते हैं अपराधियों के साथ।
إِنَّهُمْ كَانُوا إِذَا قِيلَ لَهُمْ لَا إِلَٰهَ إِلَّا اللَّهُ يَسْتَكْبِرُونَ ﴾ 35 ﴿
इन्नहुम् कानू इज़ा क़ी-ल लहुम् ला इला-ह इल्लल्लाहु यस्तक्बिरून
ये वो हैं कि जब कहा जाता था उनसे कि कोई पूज्य (वंदनीय) नहीं अल्लाह के अतिरिक्त, तो वे अभिमान करते थे।
وَيَقُولُونَ أَئِنَّا لَتَارِكُو آلِهَتِنَا لِشَاعِرٍ مَّجْنُونٍ ﴾ 36 ﴿
व यक़ूलू-न अ-इन्ना लतारिकू आलि-हतिना लिशाअिरिम्-मज्नून
तथा कह रहे थेः क्या हम त्याग देने वाले हैं अपने पूज्यों को, एक उन्मत कवि के कारण?
بَلْ جَاءَ بِالْحَقِّ وَصَدَّقَ الْمُرْسَلِينَ ﴾ 37 ﴿
बल् जा-अ बिल-हक् व सद्दक़ल्-मुरसलीन
बल्कि वह (नबी) सच लाये हैं तथा पुष्टि की है, सब रसूलों की।
إِنَّكُمْ لَذَائِقُو الْعَذَابِ الْأَلِيمِ ﴾ 38 ﴿
इन्नकुम् लज़ा-इक़ुल् अ़ज़ाबिल्-अलीम
निश्चय तुम दुःखदायी यातना चखने वाले हो।
وَمَا تُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ ﴾ 39 ﴿
व मा तुज्ज़ौ-न इल्ला मा कुन्तुम् तअ्मलून
तथा तुम उसका प्रतिकार (बदला) दिये जाओगे, जो तुम कर रहे थे।
إِلَّا عِبَادَ اللَّهِ الْمُخْلَصِينَ ﴾ 40 ﴿
इल्ला अिबादल्लाहिल्-मुख़्लसीन
परन्तु अल्लाह के शुध्द भक्त।
أُولَٰئِكَ لَهُمْ رِزْقٌ مَّعْلُومٌ ﴾ 41 ﴿
उलाऐका लहुम रिज़्कुम-मअल्लूमुन
यही हैं, जिनके लिए विदित जीविका है।
فَوَاكِهُ ۖ وَهُم مُّكْرَمُونَ ﴾ 42 ﴿
फ़वाकिहु व हुम् मुक्रमून
प्रत्येक प्रकार के फल तथा यही आदरणीय होंगे।
فِي جَنَّاتِ النَّعِيمِ ﴾ 43 ﴿
फ़ी जन्नातिन्-नईम
सुख के स्वर्गों में।
عَلَىٰ سُرُرٍ مُّتَقَابِلِينَ ﴾ 44 ﴿
अ़ला सुरुरिम् मु-तक़ाबिलीन
आसनों पर एक-दूसरे के सम्मुख असीन होंगे।
يُطَافُ عَلَيْهِم بِكَأْسٍ مِّن مَّعِينٍ ﴾ 45 ﴿
युताफ़ु अ़लैहिम् बिकअ्सिम् मिम्-मईन
फिराये जायेंगे इनपर प्याले, प्रवाहित पेय के।
بَيْضَاءَ لَذَّةٍ لِّلشَّارِبِينَ ﴾ 46 ﴿
बैज़ा-अ लज़्ज़तिल्-लिश्शारिबीन
श्वेत आस्वात पीने वालों के लिए।
لَا فِيهَا غَوْلٌ وَلَا هُمْ عَنْهَا يُنزَفُونَ ﴾ 47 ﴿
ला फ़ीहा ग़ौलुंव्-व ला हुम् अ़न्हा युन्ज़फ़ून
नहीं होगी उसमें शारिरिक पीड़ा, न वे उसमें बहकेंगे।
وَعِندَهُمْ قَاصِرَاتُ الطَّرْفِ عِينٌ ﴾ 48 ﴿
व अिन्-दहुम् क़ासिरातुत्-तर्-फ़ि ईन
तथा उनके पास आँखे झुकाये, (सति) बड़ी आँखों वाली (नारियाँ) होंगी।
كَأَنَّهُنَّ بَيْضٌ مَّكْنُونٌ ﴾ 49 ﴿
क- अन्नहुन्-न बैज़ुम्-मक्नून
वह छुपाये हुए अन्डों के मानिन्द होंगी।[1] 1. अर्थात जिस प्रकार पक्षी के पंखों के नीचे छुपे हुये अन्डे सुरक्षित होते हैं वैसे ही वह नारियाँ सुरक्षित, सुन्दर रंग और रूप की होंगी।
فَأَقْبَلَ بَعْضُهُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ يَتَسَاءَلُونَ ﴾ 50 ﴿
फ़-अक़्ब-ल बअ्ज़ुहुम् अ़ला बअ्ज़िंय्-य-तसा-अलून
वह एक-दूसरे से सम्मुख होकर प्रश्न करेंगे।
قَالَ قَائِلٌ مِّنْهُمْ إِنِّي كَانَ لِي قَرِينٌ ﴾ 51 ﴿
क़ा-ल क़ाइलुम्-मिन्हुम् इन्नी का-न ली क़रीन
तो कहेगा एक कहने वाला उनमें सेः मेरा एक साथी था।
يَقُولُ أَإِنَّكَ لَمِنَ الْمُصَدِّقِينَ ﴾ 52 ﴿
यक़ूलु अ-इन्न-क लमिनल्-मुसद्दिक़ीन
जो कहता था कि क्या तुम (प्रलय का) विश्वास करने वालों में से हो?
أَإِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا وَعِظَامًا أَإِنَّا لَمَدِينُونَ ﴾ 53 ﴿
अ-इज़ा मित्ना व कुन्ना तुराबंव्-व अिज़ामन् अ-इन्ना ल-मदीनून
क्या जब हम, मर जायेंगे तथा मिट्टी और अस्थियाँ हो जायेंगे, तो क्या हमें (कर्मों) का प्रतिफल दिया जायेगा?
قَالَ هَلْ أَنتُم مُّطَّلِعُونَ ﴾ 54 ﴿
क़ा-ल हल् अन्तुम् मुत्तलिअून
वह कहेगाः क्या तुम झाँककर देखने वाले हो?
فَاطَّلَعَ فَرَآهُ فِي سَوَاءِ الْجَحِيمِ ﴾ 55 ﴿
फ़त्त-ल-अ़ फ़-रआहु फ़ी सवाइल्-जहीम
फिर झाँकते ही उसे देख लेगा, नरक के बीच।
قَالَ تَاللَّهِ إِن كِدتَّ لَتُرْدِينِ ﴾ 56 ﴿
का-ल तल्लाहि इन् कित्-त ल-तुर्दीन
उससे कहेगाः अल्लाह की शपथ! तुम तो मेरा विनाश कर देने के समीप थे।
وَلَوْلَا نِعْمَةُ رَبِّي لَكُنتُ مِنَ الْمُحْضَرِينَ ﴾ 57 ﴿
व लौ ला निअ्मतु रब्बी लकुन्तु मिनल-मुह्ज़रीन
और यदि मेरे पालनहार का अनुग्रह न होता, तो मैं (नरक के) उपस्थितों में होता।
أَفَمَا نَحْنُ بِمَيِّتِينَ ﴾ 58 ﴿
अ-फ़मा नह्नु बिमय्यितीन
फिर वह कहेगाः क्या (ये सही नहीं है कि) हम मरने वाले नहीं हैं?
إِلَّا مَوْتَتَنَا الْأُولَىٰ وَمَا نَحْنُ بِمُعَذَّبِينَ ﴾ 59 ﴿
इल्ला मौत-तनल्-ऊला व मा नह्नु बिमुअ़ज़्ज़बीन
सिवाय अपनी प्रथम मौत के और न हमें यातना दी जायेगी।
إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ ﴾ 60 ﴿
इन्-न हाज़ा ल-हुवल् फ़ौज़ुल्-अ़ज़ीम
वास्तव में, यही बड़ी सफलता है।
لِمِثْلِ هَٰذَا فَلْيَعْمَلِ الْعَامِلُونَ ﴾ 61 ﴿
लिमिस्लि हाज़ा फ़ल्यअ्मलिल्-आ़मिलून
इसी (जैसी सफलता) के लिए चाहिये कि कर्म करें, कर्म करने वाले।
أَذَٰلِكَ خَيْرٌ نُّزُلًا أَمْ شَجَرَةُ الزَّقُّومِ ﴾ 62 ﴿
अ-ज़ालि-क ख़ैरुन् नुज़ुलन् अम् श-ज-रतुज़् ज़क़्कूम
क्या ये आतिथ्य उत्तम है अथवा थोहड़ का वृक्ष?
إِنَّا جَعَلْنَاهَا فِتْنَةً لِّلظَّالِمِينَ ﴾ 63 ﴿
इन्ना जअ्ल्नाहा फ़ित्-नतल् लिज़्ज़ालिमीन
हमने उसे अत्याचारियों के लिए एक परीक्षा बनाया है।
إِنَّهَا شَجَرَةٌ تَخْرُجُ فِي أَصْلِ الْجَحِيمِ ﴾ 64 ﴿
इन्नहा श-ज-रतुन् तख़्रुजु फ़ी अस्लिल्-ज़हीम
वह एक वृक्ष है, जो नरक की जड़ (तह) से निकलता है।
طَلْعُهَا كَأَنَّهُ رُءُوسُ الشَّيَاطِينِ ﴾ 65 ﴿
तल्अुहा क-अन्नहू रुऊसुश्-शयातीन
उसके गुच्छे शैतानों के सिरों के समान हैं।
فَإِنَّهُمْ لَآكِلُونَ مِنْهَا فَمَالِئُونَ مِنْهَا الْبُطُونَ ﴾ 66 ﴿
फ़-इन्नहुम् ल-आकिलू-न मिन्हा फ़-मालिऊ-न मिन्हल्-बुतून
तो वे (नरक वासी) खाने वाले हैं, उससे। फिर भरने वाले हैं, उससे अपने पेट।
ثُمَّ إِنَّ لَهُمْ عَلَيْهَا لَشَوْبًا مِّنْ حَمِيمٍ ﴾ 67 ﴿
सुम्म इन्न लहुम् अलैहा लशौबन मिन् हमीम्
फिर उनके लिए उसके ऊपर से खौलता गरम पानी है।
ثُمَّ إِنَّ مَرْجِعَهُمْ لَإِلَى الْجَحِيمِ ﴾ 68 ﴿
सुम्-म इन्-न मर्जि-अ़हुम् ल-इलल्-जहीम
फिर उन्हें प्रत्यागत होना है, नरक की ओर।
إِنَّهُمْ أَلْفَوْا آبَاءَهُمْ ضَالِّينَ ﴾ 69 ﴿
इन्नहुम् अल्फ़ौ आबा-अहुम् ज़ाल्लीन
वास्तव में, उन्होंने पाया अपने पूर्वजों को कुपथ।
فَهُمْ عَلَىٰ آثَارِهِمْ يُهْرَعُونَ ﴾ 70 ﴿
फ़हुम् अ़ला आसारिहिम् युह्रअून
फिर वे उन्हीं के पद्चिन्हों पर[1] दौड़े चले जा रहे हैं। 1. इस में नरक में जाने का जो सब से बड़ा कारण बताया गया है वह है नबी को न मानना, और अपने पूर्वजों के पंथ पर ही चलते रहना।
وَلَقَدْ ضَلَّ قَبْلَهُمْ أَكْثَرُ الْأَوَّلِينَ ﴾ 71 ﴿
व ल-क़दू ज़ल्-ल क़ब्लहुम् अक्सरुल्-अव्वलीन
और कुपथ हो चुके हैं, इनसे पूर्व अगले लोगों में से अधिक्तर।
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا فِيهِم مُّنذِرِينَ ﴾ 72 ﴿
व ल-क़द् अर्सल्ना फ़ीहिम् मुन्ज़िरीन
तथा हम भेज चुके हैं उनमें, सचेत (सावधान) करने वाले।
فَانظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُنذَرِينَ ﴾ 73 ﴿
फ़न्ज़ुर् कै-फ़ का-न आ़क़ि-बतुल्- मुन्ज़रीन
तो देखो कि कैसा रहा सावधान किये हुए लोगों का परिणाम?[1] 1. अतः उन के दुष्परिणाम से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये।
إِلَّا عِبَادَ اللَّهِ الْمُخْلَصِينَ ﴾ 74 ﴿
इल्ला अिबादल्लाहिल्-मुख़्लसीन
हमारे शुध्द भक्तों के सिवा।
وَلَقَدْ نَادَانَا نُوحٌ فَلَنِعْمَ الْمُجِيبُونَ ﴾ 75 ﴿
व ल-क़द् नादाना नूहुन् फ़-लनिअ्मल्-मुजीबून
तथा हमें पुकारा नूह़ नेः तो हम क्या ही अच्छे प्रार्थना स्वीकार करने वाले हैं।
وَنَجَّيْنَاهُ وَأَهْلَهُ مِنَ الْكَرْبِ الْعَظِيمِ ﴾ 76 ﴿
व नज्जैनाहु व अह्लहू मिनल कर्बिल्-अ़ज़ीम
और हमने बचा लिया उसे और उसके परिजनों को, घोर आपदा से।
وَجَعَلْنَا ذُرِّيَّتَهُ هُمُ الْبَاقِينَ ﴾ 77 ﴿
व जअ़ल्ना ज़ुर्रिय्य-तहू हुमुल्-बाक़ीन
तथा कर दिया हमने उसकी संतति को, शेष[1] रह जाने वालों में से। 1. उस की जाति के जलमग्न हो जाने के पश्चात्।
وَتَرَكْنَا عَلَيْهِ فِي الْآخِرِينَ ﴾ 78 ﴿
व तरक्ना अ़लैहि फ़िल्-आ़ख़िरीन
तथा शेष रखा हमने उसकी सराहना तथा प्रशंसा को पिछलों में।
سَلَامٌ عَلَىٰ نُوحٍ فِي الْعَالَمِينَ ﴾ 79 ﴿
सलामुन् अ़ला नूहिन् फ़िल्-आ़लमीन
सलाम (सुरक्षा)[1] है नूह़ के लिए समस्त विश्ववासियों में। 1. अर्थात उस की बुरी चर्चा से।
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ ﴾ 80 ﴿
इन्ना कज़ालि-क नज्ज़िल-मुह्सिनीन
इसी प्रकार, हम प्रतिफल प्रदान करते हैं सदाचारियों को।
إِنَّهُ مِنْ عِبَادِنَا الْمُؤْمِنِينَ ﴾ 81 ﴿
इन्नहू मिन् अिबादिनल्-मुअ्मिनीन
वास्तव में, वह हमारे ईमान वाले भक्तों में से था।
ثُمَّ أَغْرَقْنَا الْآخَرِينَ ﴾ 82 ﴿
सुम्-म अ़ग़्रक़्नल्-आ-ख़रीन
फिर हमने जलमगन कर दिया दूसरों को।
وَإِنَّ مِن شِيعَتِهِ لَإِبْرَاهِيمَ ﴾ 83 ﴿
व इन्-न मिन् शी-अ़तिही ल-इब्राहीम
और उसके अनुयायियों में निश्चय इब्राहीम है।
إِذْ جَاءَ رَبَّهُ بِقَلْبٍ سَلِيمٍ ﴾ 84 ﴿
इज़् जा-अ रब्बहू बिक़ल्बिन् सलीम
जब लाया वह अपने पालनहार के पास स्वच्छ दिल।
إِذْ قَالَ لِأَبِيهِ وَقَوْمِهِ مَاذَا تَعْبُدُونَ ﴾ 85 ﴿
इज़् क़ा-ल लि-अबीहि व क़ौमिही माज़ा तअ्बुदून
जब कहा उसने अपने पिता तथा अपनी जाति सेः तुम किसकी इबादत (वंदना) कर रहे हो?
أَئِفْكًا آلِهَةً دُونَ اللَّهِ تُرِيدُونَ ﴾ 86 ﴿
अ-इफ़्कन् आलि-हतन् दूनल्लाहि तुरीदून
क्या अपने बनाये हुए पूज्यों को अल्लाह के सिवा चाहते हो?
فَمَا ظَنُّكُم بِرَبِّ الْعَالَمِينَ ﴾ 87 ﴿
फ़मा ज़न्नुकुम् बिरब्बिल-आ़लमीन
तो तुम्हारा क्या विचार है, विश्व के पालनहार के विषय में?
فَنَظَرَ نَظْرَةً فِي النُّجُومِ ﴾ 88 ﴿
फ़-न-ज़-र नज़्र-तन् फ़िन्नुजूम
फिर उसने देखा तोरों की[1] ओर। 1. यह सोचते हुये कि इन के उत्सव में न जाने के लिये क्या बहाना करूँ।
فَقَالَ إِنِّي سَقِيمٌ ﴾ 89 ﴿
फ़क़ा-ल इन्नी सक़ीम
तथा उनसे कहाः मैं रोगी हूँ।
فَتَوَلَّوْا عَنْهُ مُدْبِرِينَ ﴾ 90 ﴿
फ़-तवल्लौ अ़न्हु मुद्बिरीन
तो उसे छोड़कर चले गये।
فَرَاغَ إِلَىٰ آلِهَتِهِمْ فَقَالَ أَلَا تَأْكُلُونَ ﴾ 91 ﴿
फ़रा-ग़ इला आलि-हतिहिम् फ़क़ा-ल अला तअ्कुलून
फिर वह जा पहुँचा, उनके उपास्यों (पूज्यों) की ओर। कहा कि (वे प्रसाद) क्यों नहीं खाते?
مَا لَكُمْ لَا تَنطِقُونَ ﴾ 92 ﴿
मा लकुम् ला तन्तिक़ून
तुम्हें क्या हुआ है कि बोलते नहीं?
فَرَاغَ عَلَيْهِمْ ضَرْبًا بِالْيَمِينِ ﴾ 93 ﴿
फ़रा-ग़ अ़लैहिम् ज़र्बम्-बिल्यमीन
फिर पिल पड़ा उनपर मारते हुए, दायें हाथ से।
فَأَقْبَلُوا إِلَيْهِ يَزِفُّونَ ﴾ 94 ﴿
फ़-अक़्बलू इलैहि यज़िफ़्फ़ून
तो वे आये उसकी ओर दौड़ते हुए।
قَالَ أَتَعْبُدُونَ مَا تَنْحِتُونَ ﴾ 95 ﴿
क़ा-ल अ-तअ्बुदू-न मा तन्हितून
इब्राहीम ने कहाः क्या तुम इबादत (वंदना) करते हो उसकी जिसे, पत्थरों से तराश्ते हो?
وَاللَّهُ خَلَقَكُمْ وَمَا تَعْمَلُونَ ﴾ 96 ﴿
वल्लाहु ख़-ल-क़कुम् व मा तअ्मलून
जबकि अल्लाह ने पैदा किया है तुम्हें तथा जो तुम करते हो।
قَالُوا ابْنُوا لَهُ بُنْيَانًا فَأَلْقُوهُ فِي الْجَحِيمِ ﴾ 97 ﴿
क़ालुब्नू लहू बुन्यानन् फ़-अल्क़ूहु फ़िल्-जहीम
उन्होंने कहाः इसके लिए एक (अग्निशाला का) निर्माण करो और उसे झोंक दो दहकती अग्नि में।
فَأَرَادُوا بِهِ كَيْدًا فَجَعَلْنَاهُمُ الْأَسْفَلِينَ ﴾ 98 ﴿
फ़-अरादू बिही कैदन् फ़-जअ़ल्नाहुमुल्-अस्-फ़लीन
तो उन्होंने उसके साथ षड्यंत्र रचा, तो हमने उन्हीं को नीचा कर दिया।
وَقَالَ إِنِّي ذَاهِبٌ إِلَىٰ رَبِّي سَيَهْدِينِ ﴾ 99 ﴿
व क़ा-ल इन्नी ज़ाहिबुन् इला रब्बी स-यह्दीन
तथा उसने कहाः मैं जाने वाला हूँ अपने पालनहार की[1] ओर। वह मुझे सुपथ दर्शायेगा। 1. अर्थात ऐसे स्थान की ओर जहाँ अपने पालनहार की इबादत कर सकूँ।
رَبِّ هَبْ لِي مِنَ الصَّالِحِينَ ﴾ 100 ﴿
व क़ा-ल इन्नी ज़ाहिबुन् इला रब्बी स-यह्दीन
हे मेरे पालनहार! प्रदान कर मुझे, एक सदाचारी (पुनीत) पुत्र।
فَبَشَّرْنَاهُ بِغُلَامٍ حَلِيمٍ ﴾ 101 ﴿
फ़-बश्शर्नाहु बिग़ुलामिन् हलीम
तो हमने शुभ सूचना दी उसे, एक सहनशील पुत्र की।
فَلَمَّا بَلَغَ مَعَهُ السَّعْيَ قَالَ يَا بُنَيَّ إِنِّي أَرَىٰ فِي الْمَنَامِ أَنِّي أَذْبَحُكَ فَانظُرْ مَاذَا تَرَىٰ ۚ قَالَ يَا أَبَتِ افْعَلْ مَا تُؤْمَرُ ۖ سَتَجِدُنِي إِن شَاءَ اللَّهُ مِنَ الصَّابِرِينَ ﴾ 102 ﴿
फ़-लम्मा ब-ल-ग़ म- अ़हुस्सअ्-य क़ा-ल या बुनय्-य इन्नी अरा फ़िल्-मनामि अन्नी अज़्बहु-क फ़न्जुर् माज़ा तरा, क़ा-ल या अ-बतिफ़्अ़ल् मा तुअ्मरु, स-तजिदुनी इन्शा-अल्लाहु मिनस्साबिरीन
फिर जब वह पहुँचा उसके साथ चलने-फिरने की आयु को, तो इब्राहीम ने कहाः हे मेरे प्रिय पुत्र! मैं देख रहा हूँ स्वप्न में कि मैं तुझे वध कर रहा हूँ। अब, तू बता कि तेरा क्या विचार है? उसने कहाः हे पिता! पालन करें, जिसका आदेश आपको दिया जा रहा है। आप पायेंगे मुझे सहनशीलों में से, यदि अल्लाह की इच्छा हूई।
فَلَمَّا أَسْلَمَا وَتَلَّهُ لِلْجَبِينِ ﴾ 103 ﴿
फ़-लम्मा अस्-लमा व तल्लहू लिल्जबीन
अन्ततः, जब दोनों ने स्वयं को अर्पित कर दिया और उस (पिता) ने उसे गिरा दिया माथे के बल।
وَنَادَيْنَاهُ أَن يَا إِبْرَاهِيمُ ﴾ 104 ﴿
व नादैनाहु अंय्या इब्राहीम
तब हमने उसे आवाज़ दी कि हे इब्राहीम!
قَدْ صَدَّقْتَ الرُّؤْيَا ۚ إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ ﴾ 105 ﴿
क़द् सद्दक़्तर्-रुअ्या इन्ना कज़ालि-क नज्ज़िल-मुह्सिनीन
तूने सच कर दिया अपना स्वप्न। इसी प्रकार, हम प्रतिफल प्रदान करते हैं सदाचारियों को।
إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ الْبَلَاءُ الْمُبِينُ ﴾ 106 ﴿
इन्-न हाज़ा ल-हुवल् बलाउल्-मुबीन
वास्तव में, ये खुली परीक्षा थी।
وَفَدَيْنَاهُ بِذِبْحٍ عَظِيمٍ ﴾ 107 ﴿
व फ़दैनाहु बिज़िब्हिन् अ़ज़ीम
और हमने उसके मुक्ति-प्रतिदान के रूप में, प्रदान कर दी एक महान[1] बली। 1. यह महान बलि एक मेंढा था। जिसे जिब्रील (अलाहिस्सलाम) द्वारा स्वर्ग से भेजा गया। जो आप के प्रिय पुत्र इस्माईल (अलैहिस्सलाम) के स्थान पर बलि दिया गया। फिर इस विधि को प्रलय तक के लिये अल्लाह के सामिप्य का एक साधन तथा ईदुल अज़्ह़ा (बक़रईद) का प्रियवर कर्म बना दिया गया। जिसे संसार के सभी मुसलमान ईदुल अज़्ह़ा में करते हैं।
وَتَرَكْنَا عَلَيْهِ فِي الْآخِرِينَ ﴾ 108 ﴿
व तरक्ना अ़लैहि फ़िल्-आख़िरीन
तथा हमने शेष रखी उसकी शुभ चर्चा पिछलों में।
سَلَامٌ عَلَىٰ إِبْرَاهِيمَ ﴾ 109 ﴿
सलामुन् अ़ला इब्राहीम
सलाम है इब्रीम पर।
كَذَٰلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ ﴾ 110 ﴿
कज़ालि-क नज्ज़िल्-मुह्सिनीन
इसी प्रकार, हम प्रतिफल प्रदान करते हैं सदाचारियों को।
إِنَّهُ مِنْ عِبَادِنَا الْمُؤْمِنِينَ ﴾ 111 ﴿
इन्नहू मिन इबादिना अल्-मुमिनीन
निश्चय ही वह हमारे ईमान वाले भक्तों में से था।
وَبَشَّرْنَاهُ بِإِسْحَاقَ نَبِيًّا مِّنَ الصَّالِحِينَ ﴾ 112 ﴿
व बश्श्-र्नाहु बि-इस्हा-क़ नबिय्यम् मिनस्- सालिहीन
तथा हमने उसे शुभसूचना दी इस्ह़ाक़ नबी की, जो सदाचारियों में[1] होगा। 1. इस आयत से विद्वत होता है कि इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) को इस बलि के पश्चात् दूसरे पुत्र आदरणीय इस्ह़ाक़ की शुभ सूचना दी गई। इस से ज्ञान हुआ की बलि इस्माईल (अलैहिस्सलाम) की दी गई थी। और दोनों की आयु में लग-लग चौदह वर्ष का अन्तर है।
وَبَارَكْنَا عَلَيْهِ وَعَلَىٰ إِسْحَاقَ ۚ وَمِن ذُرِّيَّتِهِمَا مُحْسِنٌ وَظَالِمٌ لِّنَفْسِهِ مُبِينٌ ﴾ 113 ﴿
व बारक्ना अ़लैहि व अ़ला इस्हा-क़, व मिन् ज़ुर्रिय्यतिहिमा मुह्सिनुंव-व ज़ालिमुल्-लिनफ़्सिही मुबीन*
तथा हमने बरकत (विभूति) अवतरिक की उसपर तथा इस्ह़ाक़ पर और उन दोनों की संतति में से कोई सदाचारी है और कोई अपने लिए खुला अत्याचारी।
وَلَقَدْ مَنَنَّا عَلَىٰ مُوسَىٰ وَهَارُونَ ﴾ 114 ﴿
व ल-क़द् मनन्ना अ़ला मूसा व हारून
तथा हमने उपकार किया मूसा और हारून पर।
وَنَجَّيْنَاهُمَا وَقَوْمَهُمَا مِنَ الْكَرْبِ الْعَظِيمِ ﴾ 115 ﴿
व नज्जैनाहुमा व क़ौमहुमा मिनल् कर्बिल्-अ़ज़ीम
तथा मुक्त किया दोनों को और उनकी जाति को, घोर व्यग्रता से।
وَنَصَرْنَاهُمْ فَكَانُوا هُمُ الْغَالِبِينَ ﴾ 116 ﴿
व नसर्नाहुम् फ़कानू हुमुल्-ग़ालिबीन
तथा हमने सहायता की उनकी, तो वही प्रभावशाली हो गये।
وَآتَيْنَاهُمَا الْكِتَابَ الْمُسْتَبِينَ ﴾ 117 ﴿
व आतैनाहुमल् किताबल्-मुस्तबीन
तथा हमने प्रदान की दोनों को प्रकाशमय पुस्तक (तौरात)।
وَهَدَيْنَاهُمَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ ﴾ 118 ﴿
व हदैनाहुमस्सिरातल् मुस्तक़ीम
और हमने दर्शाई दोनों को सीधी डगर।
وَتَرَكْنَا عَلَيْهِمَا فِي الْآخِرِينَ ﴾ 119 ﴿
व तरक्ना अ़लैहिमा फिल्-आख़िरीन
तथा शेष रखी दोनों की शुभ चर्चा, पिछलों में।
سَلَامٌ عَلَىٰ مُوسَىٰ وَهَارُونَ ﴾ 120 ﴿
सलामुन् अ़ला मूसा व हारून
सलाम है मूसा तथा हारून पर।
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ ﴾ 121 ﴿
इन्ना कज़ालि-क नज्ज़िल् मुहूसिनीन
हम इसी प्रकार प्रतिफल प्रदान करते हैं, सदाचारियों को।
إِنَّهُمَا مِنْ عِبَادِنَا الْمُؤْمِنِينَ ﴾ 122 ﴿
इन्नहुमा मिन् अिबादिनल्-मुअ्मिनीन
वस्तुतः, वे दोनों हमारे ईमान वाले भक्तों में थे।
وَإِنَّ إِلْيَاسَ لَمِنَ الْمُرْسَلِينَ ﴾ 123 ﴿
व इन्-न इल्या-स लमिनल्-मुर्सलीन
तथा निश्चय इल्यास, नबियों में से था।
إِذْ قَالَ لِقَوْمِهِ أَلَا تَتَّقُونَ ﴾ 124 ﴿
इज़् क़ा-ल लिक़ौमिही अला तत्तक़ून
जब कहा उसने अपनी जाति सेः क्या तुम डरते नहीं हो?
أَتَدْعُونَ بَعْلًا وَتَذَرُونَ أَحْسَنَ الْخَالِقِينَ ﴾ 125 ﴿
अतदऊना बअलन व तज़रूना अह्सनल ख़ालिकीन
क्या तुम बअल ( नामक मूर्ति) को पुकारते हो? तथा त्याग रहे हो सर्वोत्तम उत्पत्तिकर्ता को?
اللَّهَ رَبَّكُمْ وَرَبَّ آبَائِكُمُ الْأَوَّلِينَ ﴾ 126 ﴿
अल्ला-ह रब्बकुम् व रब्-ब आबा-इकुमुल् अव्वलीन
अल्लाह ही तुम्हारा पालनहार है तथा तुम्हारे प्रथम पूर्वजों का पालनहार है।
فَكَذَّبُوهُ فَإِنَّهُمْ لَمُحْضَرُونَ ﴾ 127 ﴿
फ़-कज़्ज़बूहु फ़-इन्नहुम् ल-मुह्ज़रून
अन्ततः, उन्होंने झुठला दिया उसे। तो निश्चय वही (नरक में) उपस्थित होंगे।
إِلَّا عِبَادَ اللَّهِ الْمُخْلَصِينَ ﴾ 128 ﴿
इल्ला अिबादल्लाहिल्- मुख़्लसीन
किन्तु, अल्लाह के शुध्द भक्त।
وَتَرَكْنَا عَلَيْهِ فِي الْآخِرِينَ ﴾ 129 ﴿
व तरक्ना अ़लैहि फ़िल्- आख़िरीन
तथा शेष रखी हमने उसकी शुभ चर्चा पिछलों में।
سَلَامٌ عَلَىٰ إِلْ يَاسِينَ ﴾ 130 ﴿
सलामुन् अ़ला इल्यासीन
सलाम है इल्यासीन[1] पर। 1. इल्यासीन इल्यास ही का एक उच्चारण है। उन्हें अन्य धर्म ग्रन्थों में इलया भी कहा गया है।
إِنَّا كَذَٰلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ ﴾ 131 ﴿
इन्ना कज़ालि-क नज्ज़िल् मुह्सिनीन
वास्तव में, हम इसी प्रकार प्रतिफल प्रदान करते हैं, सदाचारियों को।
إِنَّهُ مِنْ عِبَادِنَا الْمُؤْمِنِينَ ﴾ 132 ﴿
इन्नहू मिन् अिबादिनल्-मुअ्मिनीन
वस्तुतः, वह हमारे ईमान वाले भक्तों में से था।
وَإِنَّ لُوطًا لَّمِنَ الْمُرْسَلِينَ ﴾ 133 ﴿
व इन्-न लूतल्-लमिनल्- मुर्सलीन
तथा निश्चय लूत नबियों में से था।
إِذْ نَجَّيْنَاهُ وَأَهْلَهُ أَجْمَعِينَ ﴾ 134 ﴿
इज़् नज्जैनाहु व अह्लहू अज्मईन
जब हमने मुक्त किया उसे तथा उसके सबपरिजनों को।
إِلَّا عَجُوزًا فِي الْغَابِرِينَ ﴾ 135 ﴿
इल्ला अ़जूज़न् फ़िल्-ग़ाबिरीन
एक बुढ़िया[1] के सिवा, जो पीछे रह जाने वालों में थी। 1. यह लूत (अलैहिस्सलाम) की काफ़िर पत्नि थी।
ثُمَّ دَمَّرْنَا الْآخَرِينَ ﴾ 136 ﴿
सुम्-म दम्मर्नलू-आख़रीन
फिर हमने अन्यों को तहस-नहस कर दिया।
وَإِنَّكُمْ لَتَمُرُّونَ عَلَيْهِم مُّصْبِحِينَ ﴾ 137 ﴿
व इन्नकुम् ल-तमुर्रु-न अ़लैहिम् मुस्बिहीन
तथा तुम[1] ग़ुज़रते हो उन (की निर्जीव बस्तियों) पर, प्रातः के समय। 1. मक्का वासियों को संबोधित किया गया है।
وَبِاللَّيْلِ ۗ أَفَلَا تَعْقِلُونَ ﴾ 138 ﴿
व बिल्लैलि, अ-फ़ला तअ्क़िलून
तथा रात्रि में। तो क्या तुम समझते नहीं हो?
وَإِنَّ يُونُسَ لَمِنَ الْمُرْسَلِينَ ﴾ 139 ﴿
व इन्-न यूनु-स लमिनल्- मुर्सलीन
तथा निश्चय यूनुस नबियों में से था।
إِذْ أَبَقَ إِلَى الْفُلْكِ الْمَشْحُونِ ﴾ 140 ﴿
इज़् अ-ब-क़ इलल्-फ़ुल्किल्-मश्हून
जब वह भाग[1] गया भरी नाव की ओर। 1. अल्लाह की अनुमति के बिना अपने नगर से नगर वासियों को यातना के आन की सूचना दे कर निकल गये। और नाव पर सवार हो गये। नाव सागर की लहरों में घिर गई। इस लिये बोझ कम करने के लिये नाम निकाला गया। तो यूनुस अलैहिस्सलाम का नाम निकला और उन्हें समुद्र में फेंक दिया गया।
فَسَاهَمَ فَكَانَ مِنَ الْمُدْحَضِينَ ﴾ 141 ﴿
फ़-सा-ह-म फ़का-न मिनल्-मुद्-हज़ीन
फिर नाम निकाला गया, तो वह हो गया फेंके हुओं में से।
فَالْتَقَمَهُ الْحُوتُ وَهُوَ مُلِيمٌ ﴾ 142 ﴿
फ़ल्त-क़-महुल्-हूतु व हु-व मुलीम
तो निगल लिया उसे मछली ने और वह निन्दित था।
فَلَوْلَا أَنَّهُ كَانَ مِنَ الْمُسَبِّحِينَ ﴾ 143 ﴿
फ़-लौ ला अन्नू का-न मिनल्-मुसब्बिहीन
तो यदि न होता अल्लाह की पवित्रता का वर्णन करने वालों में।
لَلَبِثَ فِي بَطْنِهِ إِلَىٰ يَوْمِ يُبْعَثُونَ ﴾ 144 ﴿
ल-लबि-स फ़ी बत्निही इला यौमि युब्अ़सून
तो वह रह जाता उसके उदर में उस दिन तक, जब सब पुनः जीवित किये[1] जायेंगे। 1. अर्थात प्रयल के दिन तक। (देखियेः सूरह अम्बिया, आयतः87)
فَنَبَذْنَاهُ بِالْعَرَاءِ وَهُوَ سَقِيمٌ ﴾ 145 ﴿
फ़-नबज़्नाहु बिल्अ़रा-इ व हु-व सक़ीम
तो हमने फेंक दिया उसे खुले मैदान में और वह रोगी[1] था। 1. अर्थात निर्बल नवजात शिशु के समान।
وَأَنبَتْنَا عَلَيْهِ شَجَرَةً مِّن يَقْطِينٍ ﴾ 146 ﴿
व अम्बत्ना अ़लैहि श-ज-रतम् मिंय्यक़्तीन
और उगा दिया उस[1] पर लताओं का एक वृक्ष। 1. रक्षा के लिये।
وَأَرْسَلْنَاهُ إِلَىٰ مِائَةِ أَلْفٍ أَوْ يَزِيدُونَ ﴾ 147 ﴿
व अर्सल्नाहु इला मि-अति अल्फ़िन् औ यज़ीदून
तथा हमने उसे रसूल बनाकर भेजा एक लाख, बल्कि अधिक की ओर।
فَآمَنُوا فَمَتَّعْنَاهُمْ إِلَىٰ حِينٍ ﴾ 148 ﴿
फ़-आमनू फ़-मत्तअ्नाहुम् इला हीन
तो वे ईमान लाये। फिर हमने उन्हें सुख-सुविधा प्रदान की एक समय[1] तक। 1. देखियेः सूरह यूनुस।
فَاسْتَفْتِهِمْ أَلِرَبِّكَ الْبَنَاتُ وَلَهُمُ الْبَنُونَ ﴾ 149 ﴿
फ़स्तफ़्तिहिम् अ-लिरब्बिकल्-बनातु व लहुमुल्-बनून
तो (हे नबी!) आप उनसे प्रश्न करें कि क्या आपके पालनहार के लिए तो पुत्रियाँ हों और उनके लिए पुत्र?
أَمْ خَلَقْنَا الْمَلَائِكَةَ إِنَاثًا وَهُمْ شَاهِدُونَ ﴾ 150 ﴿
अम् ख़लक़्नल्-मलाइ-क-त इनासंव्-व हुम् शाहिदून
अथवा किया हमने पैदा किया है फ़रिश्तों को नारियाँ और वे उस समय उपस्थित[1] थे? 1. इस में मक्का के मिश्रणवादियों का खण्डन किया जा रहा है जो फ़रिश्तों को देवियाँ तथा अल्लाह की पुत्रियाँ कहते थे। जब कि वह स्वयं पुत्रियों के जन्म को अप्रिय मानते थे।
أَلَا إِنَّهُم مِّنْ إِفْكِهِمْ لَيَقُولُونَ ﴾ 151 ﴿
अला इन्नहुम् मिन् इफ़्किहिम् ल-यक़ूलून
सावधान! वास्तव में, वे अपने मन से बनाकर ये बात कह रहे हैं।
وَلَدَ اللَّهُ وَإِنَّهُمْ لَكَاذِبُونَ ﴾ 152 ﴿
व-लदल्लाहु व इन्नहुम् ल-काज़िबून
कि अल्लाह ने संतान बनाई है और निश्चय ये मिथ्या भाषी हैं।
أَصْطَفَى الْبَنَاتِ عَلَى الْبَنِينَ ﴾ 153 ﴿
अस्त-फ़ल्-बनाति अ़लल्-बनीन
क्या अल्लाह ने प्राथमिक्ता दी है पुत्रियों को, पुत्रों पर?
مَا لَكُمْ كَيْفَ تَحْكُمُونَ ﴾ 154 ﴿
मा लकुम्, कै-फ़ तह्कुमून
तुम्हें क्या हो गया है, तुम कैसा निर्णय दे रहे हो?
أَفَلَا تَذَكَّرُونَ ﴾ 155 ﴿
अ-फ़ला तज़क्करून
तो क्या तुम शिक्षा ग्रहण नहीं करते?
أَمْ لَكُمْ سُلْطَانٌ مُّبِينٌ ﴾ 156 ﴿
अम् लकुम् सुल्तानुम्-मुबीन
अथवा तुम्हारे पास कोई प्रत्यक्ष प्रमाण है?
فَأْتُوا بِكِتَابِكُمْ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ ﴾ 157 ﴿
फ़अ्तू बिकिताबिकुम् इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
तो अपनी पुस्तक लाओ, यदि तुम सत्यवादी हो?
وَجَعَلُوا بَيْنَهُ وَبَيْنَ الْجِنَّةِ نَسَبًا ۚ وَلَقَدْ عَلِمَتِ الْجِنَّةُ إِنَّهُمْ لَمُحْضَرُونَ ﴾ 158 ﴿
व ज-अ़लू बैनहू व बैनल्-जिन्नति न-सबन्, व ल-क़द् अ़लि-मतिल्-जिन्नतु इन्नहुम् ल-मुह्ज़रून
और उन्होंने बना दिया अल्लाह तथा जिन्नों के मध्य, वंश-संबंध। जबकि जिन्न स्वयं जानते हैं कि वे अल्लाह के समक्ष निश्चय उपस्थित किये[1] जायेंगे। 1. अर्थात यातना के लिये। तो यदि वे उस के संबंधी होते तो उन्हें यातना क्यों देता?
سُبْحَانَ اللَّهِ عَمَّا يَصِفُونَ ﴾ 159 ﴿
सुब्हानल्लाहि अ़म्मा यसिफ़ून
अल्लाह पवित्र है उन गुणों से, जिनका वे वर्णन कर रहे हैं।
إِلَّا عِبَادَ اللَّهِ الْمُخْلَصِينَ ﴾ 160 ﴿
इल्ला अिबादल्लाहिल्- मुख़्लसीन
परन्तु, अल्लाह के शुध्द भक्त।[1] 1. वह अल्लाह को ऐसे दुर्गुणों से युक्त नहीं करते।
فَإِنَّكُمْ وَمَا تَعْبُدُونَ ﴾ 161 ﴿
फ़-इन्नकुम् व मा तअ्बुदून
तो निश्चय तुम तथा तुम्हारे पूज्य।
مَا أَنتُمْ عَلَيْهِ بِفَاتِنِينَ ﴾ 162 ﴿
मा अन्तुम् अ़लैहि बिफ़ातिनीन
तुम सब किसी एक को भी कुपथ नहीं कर सकते।
إِلَّا مَنْ هُوَ صَالِ الْجَحِيمِ ﴾ 163 ﴿
इल्ला मन् हु-व सालिल्-जहीम
उसके सिवा, जो नरक में झोंका जाने वाला है।
وَمَا مِنَّا إِلَّا لَهُ مَقَامٌ مَّعْلُومٌ ﴾ 164 ﴿
व मा मिन्ना इल्ला लहू मक़ामुम् मअ्लूम
और नहीं है हम (फ़रिश्तों) में से कोई, परन्तु उसका एक नियमित स्थान है।
وَإِنَّا لَنَحْنُ الصَّافُّونَ ﴾ 165 ﴿
व इन्ना ल-नह्नुस्-साफ़्फ़ून
तथा हम ही (आज्ञापालन के लिए) पंक्तिवध्द हैं।
وَإِنَّا لَنَحْنُ الْمُسَبِّحُونَ ﴾ 166 ﴿
व इन्ना ल-नह्नुल्-मुसब्बिहून
और हम ही तस्बीह़ (पवित्रता गान) करने वाले हैं।
وَإِن كَانُوا لَيَقُولُونَ ﴾ 167 ﴿
व इन् कानू ल-यक़ूलून
तथा वे (मुश्रिक) तो कहा करते थे किः
لَوْ أَنَّ عِندَنَا ذِكْرًا مِّنَ الْأَوَّلِينَ ﴾ 168 ﴿
लौ अन्-न अिन्-दना ज़िक्रम् मिनल्-अव्वलीन
यदि हमारे पास कोई स्मृति (पुस्तक) होती, जो पहले लोगों में आई......
لَكُنَّا عِبَادَ اللَّهِ الْمُخْلَصِينَ ﴾ 169 ﴿
लकुन्ना अिबादल्लाहिल्-मुख़्लसीन
तो हम अवश्य अल्लाह के शुध्द भक्तों में हो जाते।
فَكَفَرُوا بِهِ ۖ فَسَوْفَ يَعْلَمُونَ ﴾ 170 ﴿
फ़-क-फ़रू बिही फ़सौ-फ़ यअ्लमून
(फिर जब आ गयी) तो उन्होंने क़ुर्आन के साथ कुफ़्र कर दिया, अतः, शीघ्र ही उन्हें ज्ञान हो जायेगा।
وَلَقَدْ سَبَقَتْ كَلِمَتُنَا لِعِبَادِنَا الْمُرْسَلِينَ ﴾ 171 ﴿
व ल-क़द् स-बक़त् कलि-मतुना लिअिबादिनल्-मुर्सलीन
और पहले ही हमारा वचन हो चुका है अपने भेजे हुए भक्तों के लिए।
إِنَّهُمْ لَهُمُ الْمَنصُورُونَ ﴾ 172 ﴿
इन्नहुम् लहुमुल्-मन्सूरून
कि निश्चय उन्हीं की सहायता की जायेगी।
وَإِنَّ جُندَنَا لَهُمُ الْغَالِبُونَ ﴾ 173 ﴿
व इन्-न जुन्दना लहुमुल्-ग़ालिबून
तथा वास्तव में हमारी सेना ही प्रभावशाली (विजयी) होने वाली है।
فَتَوَلَّ عَنْهُمْ حَتَّىٰ حِينٍ ﴾ 174 ﴿
फ़-तवल्-ल अ़न्हुम् हत्ता हीन
तो आप मुँह फेर लें उनसे, कुछ समय तक।
وَأَبْصِرْهُمْ فَسَوْفَ يُبْصِرُونَ ﴾ 175 ﴿
व अब्सिर्हुम् फ़सौ-फ़ युब्सिरून
तथा उन्हें देखते रहें। वे भी शीघ्र ही देख लेंगे।
أَفَبِعَذَابِنَا يَسْتَعْجِلُونَ ﴾ 176 ﴿
अ-फ़ बि-अ़ज़ाबिना यस्तअ्जिलून
तो क्या, वे हमारी यातना की शीघ्र माँग कर रहे हैं।
فَإِذَا نَزَلَ بِسَاحَتِهِمْ فَسَاءَ صَبَاحُ الْمُنذَرِينَ ﴾ 177 ﴿
फ़-इज़ा न-ज़-ल बिसा-हतिहिम् फ़सा-अ सबाहुल्-मुन्ज़रीन
तो जब वह उतर आयेगी उनके मैदानों में, तो बुरा हो जायेगा सावधान किये हुओं का सवेरा।
وَتَوَلَّ عَنْهُمْ حَتَّىٰ حِينٍ ﴾ 178 ﴿
व तवल्-ल अ़न्हुम् हत्ता हीन
और आप मुँह फेर लें उनसे, कुछ समय तक।
وَأَبْصِرْ فَسَوْفَ يُبْصِرُونَ ﴾ 179 ﴿
व अब्सिर फ़सौ-फ़ युब्सिरून
तथा देखते रहें, अन्ततः वे (भी) देख लेंगे।
سُبْحَانَ رَبِّكَ رَبِّ الْعِزَّةِ عَمَّا يَصِفُونَ ﴾ 180 ﴿
सुब्हा-न रब्बि-क रब्बिल्-अिज़्ज़ति अ़म्मा यसिफ़ून
पवित्र है आपका पालनहार, गौरव का स्वामी, उस बात से, जो वे बना रहे हैं।
وَسَلَامٌ عَلَى الْمُرْسَلِينَ ﴾ 181 ﴿
व सलामुन् अ़लल्-मुर्सलीन
तथा सलाम है रसूलों पर।