सूरह फील के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है, इस में 5 आयतें हैं।
- इस सूरह में ((फ़ील)) शब्द आया है जिस का अर्थ हाथी है। इसी लिये इस का यह नाम है।
यह सूरह भी मक्की है। इस में अल्लाह की शक्ति और अपने घर “काबा” को “अबरहा” से सुरक्षित रखने और उसे उस की सेना सहित नाश कर देने की ओर संकेत किया गया है जिस की संक्षिप्त कथा यह है कि यमन के राजा “अबरहा” ने अपनी राजधानी “सन्आ” में एक कलीसा (गिर्जा घर) बनाया। और लोगों को कॉबा के हज्ज से रोकने की घोषणा कर दी| और 570 या 571 ई. में 60 हजार सेना के साथ जिस में 13 या हाथी थे काबा पर आक्रमण करने के इरादे से चल पड़ा। और जब मक्का से तीन कोस रह गया तो “महस्सर” नामी स्थान पर पड़ाव किया, और उस की सेना ने कुछ ऊँट पकड़ लिये जिन में दो सौ ऊँट रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दादा अब्दुल मुत्तलिब के थे जो कॉबा के पुरोहित और नगर के मुख्या थे| वह अबहा के पास गये जिन से वह बड़ा प्रभावित हुआ और उन्होंने अपने ऊंट मांगे| अबरहा ने कहाः तुम ऊंट माँगते हो और कॉबा के बारे में जो तुम्हारा धर्म स्थल है कुछ नहीं कहते? अब्दुल मुत्तलिब ने कहाः मैं अपने ऊंटों का मालिक हूँ। रहा यह घर तो उस का स्वामी उस की रक्षा स्वयं करेगा। अबरहा ने उन को ऊंट वापस कर दिये और उन्होंने नागरिकों से आ कर कहा किः अपने परिवार को लेकर (पर्वत) पर चले जायें| फिर उन्होंने करैश के कुछ प्र मुखों के साथ काबा के द्वार का कड़ा पकड़ कर दुआ (प्रार्थना) की और कहाः हे अल्लाह। अपने घर और इस के सेवकों की रक्षा कर दूसरे दिन अब्रहा ने मक्का में प्रवेश का प्रयास किया परन्तु उस का अपना हाथी बैठ गया और ऑकुस पड़ने पर भी नहीं हिला और दूसरी दशा में फेरा जाता तो दौड़ने लगता था। इतने में पक्षियों का एक झुंड चोंचों और पंजों में कंकरिया लिये हुये आया और इस सेना पर कंकरियों की वर्षा कर दी, जिन से उनका शरीर गलने लगा, और अबरहा सहित उसकी सेना का विनाश कर दिया गया। - इस पूरी सूरह में एक शिक्षाप्रद ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत है।
- आयत 1 में कहा गया है कि अबरहा जिस की सेना काबा को ढहाने आई थी उस का अल्लाह ने कैसा सत्यानाश कर दिया? उस पर विचार करो।
- आयत 2 में बताया गया है कि कैसे उस की चाल असफल हो गई।
- आयत 3,4 में अल्लाह के अपने घर की रक्षा करने और आयत 5 में आक्रमणकारियों के बुरे अन्त की चर्चा है।
Surah Al Feel in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
أَلَمْ تَرَ كَيْفَ فَعَلَ رَبُّكَ بِأَصْحَٰبِ ٱلْفِيلِ ﴾ 1 ﴿
अलम तरा कैफा फअला रब्बुका बि अस हाबिल फील
क्या तुम नहीं जानते कि तेरे पालनहार ने हाथी वाले के साथ क्या किया?
أَلَمْ يَجْعَلْ كَيْدَهُمْ فِى تَضْلِيلٍ ﴾ 2 ﴿
अलम यज अल कैदहूम फ़ी तजलील
क्या उसने उनकी चाल को विफल नहीं कर दिया?
وَأَرْسَلَ عَلَيْهِمْ طَيْرًا أَبَابِيلَ ﴾ 3 ﴿
व अरसला अलैहिम तैरन अबाबील
और उनपर पंक्षियों के दल भेजे।
تَرْمِيهِم بِحِجَارَةٍ مِّن سِجِّيلٍ ﴾ 4 ﴿
तरमीहिम बि हिजारतिम मिन सिज्जील
जो उनपर पकी कंकरी के पत्थर फेंक रहे थे।
فَجَعَلَهُمْ كَعَصْفٍ مَّأْكُولٍۭ ﴾ 5 ﴿
फजा अलहुम का अस्फिम माकूल
तो उन्हें ऐसा कर दिया, जैसे खाने का भूसा।[1]
1. (1-5) इस सूरह का लक्ष्य यह बताना है कि काबा को आक्रमण से बचाने के लिये तुम्हारे देवी देवता कुछ काम न आये। क़ुरैश के प्रमुखों ने अल्लाह ही से दुआ की थी और उन पर इस का इतना प्रभाव पड़ा था कि कई वर्षों तक साधारण नागरिकों तक ने भी अल्लाह के सिवा किसी की पुजा नहीं की थी। यह बात नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पैदाइश से कुछ पहले की थी और वहाँ बहुत सारे लोग अभी जीवित थे जिन्होंने यह चित्र अपने नेत्रों से देखा था। अतः उन से यह कहा जा रहा है कि मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जो आमंत्रण दे रहे हैं वह यही तो है कि अल्लाह के सिवाय किसी की पूजा न की जाये, और इस को दबाने का परिणाम वही हो सकता है जो हाथी वालों का हुआ। (इब्ने कसीर)