सूरह तवीर के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है, इस में 29 आयतें हैं।
- इस में प्रलय के दिन सूर्य के लपेट दिये जाने के लिये ((कुव्विरत)) शब्द आया है। इस लिये इस का नाम सूरह तवीर है। जिस का अर्थ लपेटना है।
- इस की आयत 1 से 6 तक प्रलय की प्रथम घटना और आयत 7 से 14 तक में दूसरी घटना का चित्रण किया गया है।
- आयत 15 से 25 तक में यह बताया गया है कि कुन और नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जो सूचना दे रहे है वह सत्य पर आधारित है।
- आयत 26 से 29 तक में इन्कार करने वालों को चेतावनी दी गई है कि कुन को न मानना सत्य का इन्कार है।
सूरह अत-तक्वीर | Surah Takwir in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
إِذَا الشَّمْسُ كُوِّرَتْ ﴾ 1 ﴿
इज़श्शम्सु कुव्विरत
जब सूर्य लपेट दिया जायेगा।
وَإِذَا النُّجُومُ انكَدَرَتْ ﴾ 2 ﴿
व इज़न्नुजूमुन क दरत
और जब तारे धुमिल हो जायेंगे।
وَإِذَا الْجِبَالُ سُيِّرَتْ ﴾ 3 ﴿
व इज़ल जिबालु सुय्यिरत
जब पर्वत चलाये जायेंगे।
وَإِذَا الْعِشَارُ عُطِّلَتْ ﴾ 4 ﴿
व इज़ल अिशारु अुत्तिलत
और जब दस महीने की गाभिन ऊँटनियाँ छोड़ दी जायेंगी।
وَإِذَا الْوُحُوشُ حُشِرَتْ ﴾ 5 ﴿
व इज़ल वुहूशु हुशिरत्
और जब वन् पशु एकत्र कर दिये जायेंगे।
وَإِذَا الْبِحَارُ سُجِّرَتْ ﴾ 6 ﴿
व इज़ल – बिहारु सुज्जिरत
और जब सागर भड़काये जायेंगे।[1] 1. (1-6) इन में प्रलय के प्रथम चरण में विश्व में जो उथल पुथल होगी उस को दिखाया गया है कि आकाश, धरती और पर्वत, सागर तथा जीव जन्तुओं की क्या दशा होगी। और माया मोह में पड़ा इन्सान इसी संसार में अपने प्रियवर धन से कैसा बेपरवाह हो जायेगा। वन पशु भी भय के मारे एकत्र हो जायेंगे। सागरों के जल-पलावन से धरती जल थल हो जायेगी।
وَإِذَا النُّفُوسُ زُوِّجَتْ ﴾ 7 ﴿
व इज़न्नुफूसु जुव्विजत
और जब प्राण जोड़ दिये जायेंगे।
وَإِذَا الْمَوْءُودَةُ سُئِلَتْ ﴾ 8 ﴿
व इज़ल मौऊ दतु सुअिलत्
और जब जीवित गाड़ी गयी कन्या से प्रश्न किया जायेगाः
بِأَيِّ ذَنبٍ قُتِلَتْ ﴾ 9 ﴿
बिअय्यि ज़मबिन् कुतिलत
कि वह किस अपराध के कारण वध की गयी।
وَإِذَا الصُّحُفُ نُشِرَتْ ﴾ 10 ﴿
व इज़स्सुहुफु नुशिरत्
तथा जब कर्मपत्र फैला दिये जायेंगे।
وَإِذَا السَّمَاءُ كُشِطَتْ ﴾ 11 ﴿
व इज़स्समा उ कुशितत्
और जब आकाश की खाल उतार दी जायेगी।
وَإِذَا الْجَحِيمُ سُعِّرَتْ ﴾ 12 ﴿
व इज़ल जहीम सुअ्अ़िरत्
और जब नरक दहकाई जायेगी।
وَإِذَا الْجَنَّةُ أُزْلِفَتْ ﴾ 13 ﴿
व इज़ल जन्नतु उज़्लिफ़त्
और जब स्वर्ग समीप लाई जायेगी।
عَلِمَتْ نَفْسٌ مَّا أَحْضَرَتْ ﴾ 14 ﴿
अ़लिमत् नफ़्सुम् – मा अह् – ज़रत्
तो प्रत्येक प्राणी जान लेगा कि वह क्या लेकर आया है।[1] 1. (7-14) इन आयतों में प्रलय के दूसरे चरण की दशा को दर्शाया गया है कि इन्सानों की आस्था और कर्मों के अनुसार श्रेणियाँ बनेंगी। नृशंसितों (मज़लूमों) के साथ न्याय किया जायेगा। कर्म पत्र खोल दिये जायेंगे। नरक भड़काई जायेगी। स्वर्ग सामने कर दी जायेगी। और उस समय सभी को वास्तविक्ता का ज्ञान हो जायेगा। इस्लाम के उदय के समय अरब में कुछ लोग पुत्रियों को जन्म लेते ही जीवित गाड़ दिया करते थे। इस्लाम ने नारियों को जीवन प्रदान किया। और उन्हें जीवित गाड़ देने को घोर अपराध घोषित किया। आयत संख्या 8 में उन्हीं नृशंस अपराधियों को धिक्कारा गया है।
فَلَا أُقْسِمُ بِالْخُنَّسِ ﴾ 15 ﴿
फ़ला उक्सिमु बिल्खुन्नसिल्
मैं शपथ लेता हूँ उन तारों की, जो पीछे हट जाते हैं।
الْجَوَارِ الْكُنَّسِ ﴾ 16 ﴿
जवारिल कुन्नस
जो चलते-चलते छुप जाते हैं।
وَاللَّيْلِ إِذَا عَسْعَسَ ﴾ 17 ﴿
वल् लैलि इज़ा अ़स् अ़ स
और रात की (शपथ), जब समाप्त होने लगती है।
وَالصُّبْحِ إِذَا تَنَفَّسَ ﴾ 18 ﴿
वस्सुब्हि इज़ा त नफ़्फ़ स
तथा भोर की, जब उजाला होने लगता है।
إِنَّهُ لَقَوْلُ رَسُولٍ كَرِيمٍ ﴾ 19 ﴿
इन्नहू ल क़ौलु रसूलिन् करीम
ये (क़ुर्आन) एक मान्यवर स्वर्ग दूत का लाया हुआ कथन है।
ذِي قُوَّةٍ عِندَ ذِي الْعَرْشِ مَكِينٍ ﴾ 20 ﴿
ज़ी कुव्वतिन् अिन् द ज़िल् अ़र्शि मकीन
जो शक्तिशाली है। अर्श (सिंहासन) के मालिक के पास उच्च पद वाला है।
مُّطَاعٍ ثَمَّ أَمِينٍ ﴾ 21 ﴿
मुताअिन् सम् म अमीन
जिसकी बात मानी जाती है और बड़ा अमानतदार है।[1] 1. (15-21) तारों की व्यवस्था गति तथा अंधेरे के पश्चात् नियमित रूप से उजाला की शपथ इस बात की गवाही है कि क़ुर्आन ज्योतिष की बकवास नहीं। बल्कि यह ईश वाणी है। जिस को एक शक्तिशाली तथा सम्मान वाला फ़रिश्ता ले कर मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया। और अमानतदारी से इसे पहुँचाया।
وَمَا صَاحِبُكُم بِمَجْنُونٍ ﴾ 22 ﴿
व मा साहिबुकुम् बिमज्नून
और तुम्हारा साथी उन्मत नहीं है।
وَلَقَدْ رَآهُ بِالْأُفُقِ الْمُبِينِ ﴾ 23 ﴿
व ल क़द् रआहु बिल् उफुकिल मुबीन
उसने उसे आकाश में खुले रूप से देखा है।
وَمَا هُوَ عَلَى الْغَيْبِ بِضَنِينٍ ﴾ 24 ﴿
व मा हु व अ़लल् ग़ौबि बि ज़नीन
वह परोक्ष (ग़ैब) की बात बताने में प्रलोभी नहीं है।[1] 1. (22-24) इन में यह चेतावनी दी गई है कि महा ईशदूत (मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जो सुना रहे हैं, और जो फ़रिश्ता वह़्यी (प्रकाशना) लाता है उन्हों ने उसे देखा है। वह परोक्ष की बातें प्रस्तुत कर रहे हैं कोई ज्योतिष की बात नहीं, जो धिक्कारे शौतान ज्योतिषियों को दिया करते हैं।
وَمَا هُوَ بِقَوْلِ شَيْطَانٍ رَّجِيمٍ ﴾ 25 ﴿
व मा हु व बिक़ौलि शैतानिर् रजीम
ये धिक्कारी शैतान का कथन नहीं है।
فَأَيْنَ تَذْهَبُونَ ﴾ 26 ﴿
फ़ऐ न तज़्हबून
फिर तुम कहाँ जा रहे हो?
إِنْ هُوَ إِلَّا ذِكْرٌ لِّلْعَالَمِينَ ﴾ 27 ﴿
इन्हु व इल्ला ज़िक्रुल् लिल् आ़लमीन
ये संसार वासियों के लिए एक स्मृति (शास्त्र) है।
لِمَن شَاءَ مِنكُمْ أَن يَسْتَقِيمَ ﴾ 28 ﴿
लिमन् शा अ मिन्कुम् अंय्यस्तकीम
तुममें से उसके लिए, जो सुधरना चाहता हो।