सूरह साद के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है, इस में 88 आयतें हैं।
- इस में पहले अक्षर (साद) आया है जिस के कारण इस का नाम ((सूरह साद)) है।
- इस की आरंभिक आयतों में कुन के शिक्षाप्रद पुस्तक होने की चर्चा करते हुये यह चेतावनी दी गई है कि जो इसे नहीं मानेंगे वह अपने आप को बुरे परिणाम तक पहुँचायेंगे ।
- आयत 12 से 16 तक उन जातियों का बुरा अन्त बताया गया है जिन्होंने रसूलों को झुठलाया। फिर आयत 17 से 24 तक नबियों के, अल्लाह की ओर ध्यानमग्न होने की चर्चा की गई है। फिर अल्लाह की आज्ञा का पालन करने और न करने दोनों का परलोक में अलग-अलग परिणाम बताया गया है।
- आयत 65 से 85 तक में बताया है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) सावधान करने के लिये आये हैं। और आप के विरोध करने का वही फल होगा जो इब्लीस के अभिमान का हुआ।
- अन्तिम आयतों में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तथा कुन के सत्य होने तथा कुन की बताई हुयी बातों के अवश्य पूरी होने की ओर संकेत किये गये हैं।
सूरह स’आद | Surah Saad in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
ص ۚ وَالْقُرْآنِ ذِي الذِّكْرِ ﴾ 1 ﴿
सॉद् वल्-क़ुर्आनि ज़िज़्ज़िक्र
साद। शपथ है शिक्षाप्रद क़ुर्आन की!
بَلِ الَّذِينَ كَفَرُوا فِي عِزَّةٍ وَشِقَاقٍ ﴾ 2 ﴿
बलिल्लज़ी-न क-फ़रू फ़ी अिज़्ज़तिंव्-व शिक़ाक़
बल्कि, जो काफ़िर हो गये, वे एक गर्व तथा विरोध में ग्रस्त हैं।
كَمْ أَهْلَكْنَا مِن قَبْلِهِم مِّن قَرْنٍ فَنَادَوا وَّلَاتَ حِينَ مَنَاصٍ ﴾ 3 ﴿
कम् अह्लक्ना मिन् क़ब्लिहिम् मिन् क़र्रिनन् फ़नादव्-व ला-त ही-न मनास
हमने विनाश किया है इनसे पूर्व, बहुत-से समुदायों का। तो वे पुकारने लगे और नहीं होता वह बचने का समय।
وَعَجِبُوا أَن جَاءَهُم مُّنذِرٌ مِّنْهُمْ ۖ وَقَالَ الْكَافِرُونَ هَٰذَا سَاحِرٌ كَذَّابٌ ﴾ 4 ﴿
व अ़जिबू अन् जा-अहुम् मुन्ज़िरुम्-मिन्हुम् व क़ालल्-काफ़िरू-न हाज़ा साहिरुन् कज़्ज़ाब
तथा उन्हें आश्चर्य हुआ कि आ गया उनके पास, उन्हीं मेंसे एक सचेत करने[1] वाला! और कह दिया काफ़िरों ने कि ये तो बड़ा झूठा जादूगर है। 1. अर्थात मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)
أَجَعَلَ الْآلِهَةَ إِلَٰهًا وَاحِدًا ۖ إِنَّ هَٰذَا لَشَيْءٌ عُجَابٌ ﴾ 5 ﴿
अ-ज-अ़लल् आलि-ह-त इलाहंव्-वाहिदन् इन्-न हाज़ा लशैउन् अुजाब
क्या उसने बना दिया है सब पूज्यों को एक पूज्य? ये तो बड़े आश्चर्य का विषय है।
وَانطَلَقَ الْمَلَأُ مِنْهُمْ أَنِ امْشُوا وَاصْبِرُوا عَلَىٰ آلِهَتِكُمْ ۖ إِنَّ هَٰذَا لَشَيْءٌ يُرَادُ ﴾ 6 ﴿
वन्त-लक़ल्-म-ल उ मिन्हुम् अनिम्शू वस्बिरू अ़ला आलि-हतिकुम् इन्-न हाज़ा लशैउंय्-युराद
तथा चल दिये उनके प्रमुख, (ये) कहते हुए कि चलो, दृढ़ रहो अपने पूज्यों पर। इस बात का कुछ और ही लक्ष्य[1] है। 1. अर्थात एकेश्वरवाद की यह बात सत्य नहीं है और ऐसी बात अपने किसी स्वार्थ के लिये की जा रही है।
مَا سَمِعْنَا بِهَٰذَا فِي الْمِلَّةِ الْآخِرَةِ إِنْ هَٰذَا إِلَّا اخْتِلَاقٌ ﴾ 7 ﴿
मा समिअ्ना बिहाज़ा फ़िल्-मिल्लतल्-आख़िरति इन् हाज़ा इल्लख़्तिलाक़
हमने नहीं सुनी ये बात प्राचीन धर्मों में, ये तो बस मनघड़त बात है।
أَأُنزِلَ عَلَيْهِ الذِّكْرُ مِن بَيْنِنَا ۚ بَلْ هُمْ فِي شَكٍّ مِّن ذِكْرِي ۖ بَل لَّمَّا يَذُوقُوا عَذَابِ ﴾ 8 ﴿
अ-उन्ज़ि-ल अ़लैहिज़्ज़िक्-रु मिम्बैनिना, बल् हुम् फ़ी शक्किम् मिन् ज़िक्री बल् लम्मा यज़ूक़ू अ़ज़ाब
क्या उसीपर उतारी गई है ये शिक्षा हमारे बीच में से? बल्कि वे संदेह में हैं मेरी शिक्षा से। बल्कि उन्होंने अभी यातना नहीं चखी है।
أَمْ عِندَهُمْ خَزَائِنُ رَحْمَةِ رَبِّكَ الْعَزِيزِ الْوَهَّابِ ﴾ 9 ﴿
अम् इन्दहुम् ख़ज़ा-इनु रह्मति रब्बिकल्-अ़ज़ीज़िल्-वह्हाब
अथवा उनके पास हैं, आपके अत्यंत प्रभुत्वशाली प्रदाता पालनहार की दया के कोष?[1] 1. कि वह जिसे चाहें नबी बनायें?
أَمْ لَهُم مُّلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا ۖ فَلْيَرْتَقُوا فِي الْأَسْبَابِ ﴾ 10 ﴿
अम्-लहुम् मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि व मा बैनहुमा, फ़ल्यर्तक़ू फ़िल्-अस्बाब
अथवा उन्हीं का है राज्य, आकाशों तथा धरती का और जो कुछ उन दोनों के मध्य है? तो उन्हें चाहिये कि चढ़ जायें (आकाशों में) रस्सियाँ तान[1] कर। 1. और मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर प्रकाशना के अवतरण को रोक दें।
جُندٌ مَّا هُنَالِكَ مَهْزُومٌ مِّنَ الْأَحْزَابِ ﴾ 11 ﴿
जुन्दुम्-मा हुनालि-क मह्ज़ूमुम् मिनल्-अह्ज़ाब
ये एक तुच्छ सेना है, यहाँ प्राजित सेनाओं[1] में से। 1. अर्थात इन मक्का वासियों के पराजित होने में देर नहीं लगेगी।
كَذَّبَتْ قَبْلَهُمْ قَوْمُ نُوحٍ وَعَادٌ وَفِرْعَوْنُ ذُو الْأَوْتَادِ ﴾ 12 ﴿
कज़्ज़बत् क़ब्लहुम् क़ौमु नूहिंव्-व आ़दुंव्-व फिर्-औ़नु ज़ुल्-औताद
झुठलाया इनसे पहले नूह़ तथा आद और शक्तिवान फ़िरऔन की जाति ने।
وَثَمُودُ وَقَوْمُ لُوطٍ وَأَصْحَابُ الْأَيْكَةِ ۚ أُولَٰئِكَ الْأَحْزَابُ ﴾ 13 ﴿
व समूदु व क़ौमु लूतिंव व अस्हाबुल्-ऐ-कति, उलाइ-कल्-अह्ज़ाब
तथा समूद और लूत की जाति एवं वन के वासियों[1] ने। यही सेनायें हैं। 1. इस से अभिप्राय शुऐब (अलैहिस्सलाम) की जाति है। (देखियेः सूरह शुअरा, आयतः176)
إِن كُلٌّ إِلَّا كَذَّبَ الرُّسُلَ فَحَقَّ عِقَابِ ﴾ 14 ﴿
इन् कुल्लुन् इल्ला कज़्ज़- बर्रुसु-ल फ़-हक़् क़ अिक़ाब
इन सभी ने झुठलाया रसूलों को, तो मेरी यातना सिध्द हो गयी।
وَمَا يَنظُرُ هَٰؤُلَاءِ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً مَّا لَهَا مِن فَوَاقٍ ﴾ 15 ﴿
व मा यन्ज़ुरु हा-उला-इ इल्ला सै-हतंव्वाहि-दतम् मा लहा मिन् फ़वाक़
और ये नहीं प्रतीक्षा कर रहे हैं, परन्तु एक कर्कश ध्वनि की जिसके लिए कुछ भी देर नहीं होगी।
وَقَالُوا رَبَّنَا عَجِّل لَّنَا قِطَّنَا قَبْلَ يَوْمِ الْحِسَابِ ﴾ 16 ﴿
व क़ालू रब्बना अ़ज्जिल्-लना क़ित्तना क़ब्-ल यौमिल्-हिसाब
तथा उन्होंने कहा कि हे हमारे पालनहार! शीघ्र प्रदान कर दे हमारे लिए हमारी (यातना का) भाग ह़िसाब के दिन से पहले।[1] 1. अर्थात वह उपहास स्वरूप कहते हैं कि प्रलय से पहले ही संसार में हमें यातना मिल जाये। अर्थ यह है कि हमें कोई यातना नहीं दी जायेगी।
اصْبِرْ عَلَىٰ مَا يَقُولُونَ وَاذْكُرْ عَبْدَنَا دَاوُودَ ذَا الْأَيْدِ ۖ إِنَّهُ أَوَّابٌ ﴾ 17 ﴿
इस्बिर् अ़ला मा यक़ूलू-न वज़्कुर् अ़ब्दना दावू-द ज़ल्ऐदि इन्नहू अव्वाब
आप सहन करें उसपर, जो वे कह रहे हैं तथा याद करें हमारे भक्त दावूद को, जो अत्यंत शक्तिशाली था। निश्चय वह ध्यानमग्न था।
إِنَّا سَخَّرْنَا الْجِبَالَ مَعَهُ يُسَبِّحْنَ بِالْعَشِيِّ وَالْإِشْرَاقِ ﴾ 18 ﴿
इन्ना सख़्ख़र्नल्-जिबा-ल म अ़हू युसब्बिहू-न बिल्-अ़शिय्यि वल्-इश्राक़
हमने वश्वर्ती कर दिया था पर्वतों को, जो उसके साथ पवित्रता गान करते थे, संध्या तथा प्रातः।
وَالطَّيْرَ مَحْشُورَةً ۖ كُلٌّ لَّهُ أَوَّابٌ ﴾ 19 ﴿
वत्तै-र मह्शू-रतन्, कुल्लुल्लहू अव्वाब
तथा पक्षियों को एकत्रित किये हुए, प्रत्येक उसके अधीन ध्यानमग्न रहते थे।
وَشَدَدْنَا مُلْكَهُ وَآتَيْنَاهُ الْحِكْمَةَ وَفَصْلَ الْخِطَابِ ﴾ 20 ﴿
व श-दद्ना मुल्कहू व आतैनाहुल्-हिक्म-त व फ़स्लल्-ख़िताब
और हमने दृढ़ किया उसके राज्य को और हमने प्रदान की उसे नबूवत तथा निर्णय शक्ति।
وَهَلْ أَتَاكَ نَبَأُ الْخَصْمِ إِذْ تَسَوَّرُوا الْمِحْرَابَ ﴾ 21 ﴿
व हल् अता-क न-बउल्-ख़स्मि. इज़ू तसव्वरुल्- मिह्-राब
तथा क्या आया आपके पास दो पक्षों का समाचार, जब वे दीवार फाँदकर मेह़राब (वंदना स्थल) में आ गये?
إِذْ دَخَلُوا عَلَىٰ دَاوُودَ فَفَزِعَ مِنْهُمْ ۖ قَالُوا لَا تَخَفْ ۖ خَصْمَانِ بَغَىٰ بَعْضُنَا عَلَىٰ بَعْضٍ فَاحْكُم بَيْنَنَا بِالْحَقِّ وَلَا تُشْطِطْ وَاهْدِنَا إِلَىٰ سَوَاءِ الصِّرَاطِ ﴾ 22 ﴿
इज़् द-ख़लू अ़ला दावू-द फ़-फ़ज़ि-अ़ मिन्हुम् क़ालू ला तख़फ़् ख़स्मानि बग़ा बअ्ज़ुना अ़ला बअ्ज़िन् फ़ह्कुम् बैनना बिल्हक़्क़ि व ला तुश्तित् वह्दिना इला सवा-इस्सिरात
जब उन्होंने प्रवेश किया दावूद पर, तो वह घबरा गया उनसे। उन्होंने कहाः डरिये नहीं। हम दो पक्ष हैं, अत्याचार किया है, हममें से एक ने, दूसरे पर। तो आप निर्णय कर दें हमारे बीच सत्य (न्याय) के साथ तथा अन्याय न करें तथा हमें दर्शा दें सीधी राह।
إِنَّ هَٰذَا أَخِي لَهُ تِسْعٌ وَتِسْعُونَ نَعْجَةً وَلِيَ نَعْجَةٌ وَاحِدَةٌ فَقَالَ أَكْفِلْنِيهَا وَعَزَّنِي فِي الْخِطَابِ ﴾ 23 ﴿
इन्-न हाज़ा अख़ी, लहू तिस्अुंव-व तिस्अु-न नअ्-जतंव्-व लि-य नअ्-जतुंव्-वाहि-दतुन्, फ़क़ा-ल अक्फ़िल्नीहा व अ़ज़्ज़नी फ़िल्- ख़िताब
ये मेरा भाई है, इसके पास निन्नान्वे भेड़ हैं और मेरे पास भेड़ है। ये कहता है कि वह (भी) मुझे दे दो और ये प्रभावशाली हो गया मुझपर बात करने में।
قَالَ لَقَدْ ظَلَمَكَ بِسُؤَالِ نَعْجَتِكَ إِلَىٰ نِعَاجِهِ ۖ وَإِنَّ كَثِيرًا مِّنَ الْخُلَطَاءِ لَيَبْغِي بَعْضُهُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ إِلَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ وَقَلِيلٌ مَّا هُمْ ۗ وَظَنَّ دَاوُودُ أَنَّمَا فَتَنَّاهُ فَاسْتَغْفَرَ رَبَّهُ وَخَرَّ رَاكِعًا وَأَنَابَ ۩ ﴾ 24 ﴿
क़ा-ल ल-क़द् ज़-ल-म-क बिसुआलि-नअ्जति-क इला निआ़जिही, व इन्- न कसीरम् मिनल्-ख़ु-लता-इ ल-यब्ग़ी बअ्ज़ुहुम् अ़ला बअ्ज़िन् इल्लल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्- सालिहाति व क़लीलुम्-मा हुम् व ज़न्-न दावूदु अन्नमा फ़तन्नाहु फ़स्तग़्फ़-र रब्बहू व ख़र्-र राकिअंव् व अनाब *सज्दा*
दावूद ने कहाः उसने तुमपर अवश्य अत्याचार किया, तुम्हारी भेड़ को (मिलाने की) माँग करके अपनी भेड़ों में तथा बहुत-से साझी एक-दूसरे पर एत्याचार करते हैं, उनके सिवा, जो ईमान लाये तथा सदाचार किये और बहुत थोड़े हैं ऐसे लोग और दावूद ने भाँप ली कि हमने उसकी परीक्षा ली है, तो सहसा उसने क्षमा याचना कर ली और गिर गया सज्दे में तथा ध्यानमग्न हो गया।
فَغَفَرْنَا لَهُ ذَٰلِكَ ۖ وَإِنَّ لَهُ عِندَنَا لَزُلْفَىٰ وَحُسْنَ مَآبٍ ﴾ 25 ﴿
फ़-ग़फ़र्ना लहू ज़ालि-क, व इन्-न लहू अिन्दना ल-ज़ुल्फा व हुस्-न मआब
तो हमने क्षमा कर दिया उसके लिए वह तथा उसके लिए हमारे पास निश्चय सामिप्य है तथा अच्छा स्थान।
يَا دَاوُودُ إِنَّا جَعَلْنَاكَ خَلِيفَةً فِي الْأَرْضِ فَاحْكُم بَيْنَ النَّاسِ بِالْحَقِّ وَلَا تَتَّبِعِ الْهَوَىٰ فَيُضِلَّكَ عَن سَبِيلِ اللَّهِ ۚ إِنَّ الَّذِينَ يَضِلُّونَ عَن سَبِيلِ اللَّهِ لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ بِمَا نَسُوا يَوْمَ الْحِسَابِ ﴾ 26 ﴿
या दावूदु इन्ना जअ़ल्ना-क ख़ली-फ़तन् फ़िल्अर्ज़ि फ़ह्कुम् बैनन्नासि बिल्हक़्क़ि व ला तत्तबिअिल्हवा फ़युज़िल्ल-क अ़न् सबीलिल्लाहि, इन्नल्लज़ी-न यज़िल्लू-न अ़न् सबीलिल्लाहि लहुम् अ़ज़ाबुन् शदीदुम्-बिमा नसू यौमल्-हिसाब
हे दाऊद! हमने तुझे राज्य दिया है धरती में। अतः, निर्णय कर, लोगों के बीच सत्य (न्याय) के साथ तथा अनुसरण न कर आकांक्षा का। अन्यथा, वह कुपथ कर देगी तुझे अल्लाह की राह से। निःसंदेह, जो कुपथ हो जायेंगे अल्लाह की राह[1] से, तो उन्हीं के लिए घोर यातना है, इस कारण कि वे भूल गये ह़िसाब का दिन। 1. अल्लाह की राह से अभिप्राय उस का धर्म विधान है।
وَمَا خَلَقْنَا السَّمَاءَ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا بَاطِلًا ۚ ذَٰلِكَ ظَنُّ الَّذِينَ كَفَرُوا ۚ فَوَيْلٌ لِّلَّذِينَ كَفَرُوا مِنَ النَّارِ ﴾ 27 ﴿
व मा ख़लक़्नस्समा-अ वल्अर्-ज़ व मा बैनहुमा बातिलन्, ज़ालि-क ज़न्नुल्लज़ी-न क-फ़रू फ़वैलुल्-लिल्लज़ी- न क- फ़रू मिनन्नार
तथा नहीं पैदा किया है हमने आकाश और धरती को तथा जो कुछ उनके बीच है, व्यर्थ। ये तो उनका विचार है, जो काफ़िर हो गये। तो विनाश है उनके लिए, जो काफ़िर हो गये अग्नि से।
أَمْ نَجْعَلُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ كَالْمُفْسِدِينَ فِي الْأَرْضِ أَمْ نَجْعَلُ الْمُتَّقِينَ كَالْفُجَّارِ ﴾ 28 ﴿
अम् नज्अ़लुल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति कल्-मुफ़्सिदी-न फ़िल्अर्ज़ि अम् नज्अ़लुल्-मुत्तक़ी-न कल्फ़ुज्जार
क्या हम कर देंगे उन्हें, जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, उनके समान, जो उपद्रवी हैं धरती में? या कर देंगे आज्ञाकारियों को उल्लंघनकारियों के समान?[1] 1. यह प्रश्न नकारात्मक है और अर्थ यह है कि दोनों का परिणाम समान नहीं होगा।
كِتَابٌ أَنزَلْنَاهُ إِلَيْكَ مُبَارَكٌ لِّيَدَّبَّرُوا آيَاتِهِ وَلِيَتَذَكَّرَ أُولُو الْأَلْبَابِ ﴾ 29 ﴿
किताबुन् अन्ज़ल्नाहु इलै-क मुबारकुल्-लियद्-दब्बरू आयातिही व लि-य-तज़क्क-र उलुल्-अल्बाब
ये (क़ुर्आन) एक शूभ पुस्तक है, जिसे हमने अवतरित किया है आपकी ओर, ताकि लोग विचार करें उसकी आयतों पर और ताकि शिक्षा ग्रहण करें मतिमान।
وَوَهَبْنَا لِدَاوُودَ سُلَيْمَانَ ۚ نِعْمَ الْعَبْدُ ۖ إِنَّهُ أَوَّابٌ ﴾ 30 ﴿
व व-हब्ना लिदावू-द सुलैमा-न, निअ्मल्-अ़ब्दु इन्नहू अव्वाब
जब प्रस्तुत किये गये उसके समक्ष संध्या के समय सधे हुए वेगगामी घोड़े।
إِذْ عُرِضَ عَلَيْهِ بِالْعَشِيِّ الصَّافِنَاتُ الْجِيَادُ ﴾ 31 ﴿
इज़् अुरि-ज़ अ़लैहि बिल्अ़शिय्यिस्-साफ़िनातुल्-जियाद
जब प्रस्तुत किये गये उसके समक्ष संध्या के समय सधे हुए वेगगामी घोड़े।
فَقَالَ إِنِّي أَحْبَبْتُ حُبَّ الْخَيْرِ عَن ذِكْرِ رَبِّي حَتَّىٰ تَوَارَتْ بِالْحِجَابِ ﴾ 32 ﴿
फ़क़ा-ल इन्नी अह्बब्तु हुब्बल्-ख़ैरि अ़न् ज़िक्रि रब्बी हत्ता तवारत् बिल्-हिजाब
तो कहाः मैंने प्राथमिक्ता दी इन घोड़ों के प्रेम को अपने पालनहार के स्मरण पर। यहाँ तक कि वे ओझल हो गये।
رُدُّوهَا عَلَيَّ ۖ فَطَفِقَ مَسْحًا بِالسُّوقِ وَالْأَعْنَاقِ ﴾ 33 ﴿
रुद्दूहा अ़लय्-य फ़-तफ़ि-क़ मस्हम्-बिस्सूक़ि वल्-अअ्नाक़
उन्हें वापिस लाओ मेरे पास। फिर हाथ फेरने लगे उनकी पिंडलियों तथा गर्दनों पर।
وَلَقَدْ فَتَنَّا سُلَيْمَانَ وَأَلْقَيْنَا عَلَىٰ كُرْسِيِّهِ جَسَدًا ثُمَّ أَنَابَ ﴾ 34 ﴿
व ल-क़द् फ़तन्ना सुलैमा-न व अल्क़ैना अ़ला कुर्सिय्यिही ज-सदन् सुम्- म अनाब
और हमने परीक्षा[1] ली सुलैमान की तथा डाल दिया उसके सिंहासन पर एक धड़। फिर वह ध्यानमग्न हो गया। 1. ह़दीस से भाष्यकारों ने लिखा है कि सुलैमान अलैहिस्सलाम ने एक बार कहा कि मैं आज रात अपनी सभी पत्नियों जितनी संख्या 70 अथवा 90 थी, से संभोग करूँगा। जिन से योध्दा घुड़सवार पैदा होंगे जो अल्लाह की राह मे जिहाद करेंगे। तथा उन्हों ने यह नहीं कहाः यदि अल्लाह ने चाहा। जिस का परिणाम यह हुआ कि केवल एक ही पत्नि गर्भवति हुई। और उस ने भी अधूरे शिशु को जन्म दिया। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहाः वह ((यदि अल्लाह ने चाहा)) कह देते तो सब योध्दा पैदा होते। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस संख्याः6639, सह़ीह़ मुस्लिम, ह़दीस संख्याः1656)
قَالَ رَبِّ اغْفِرْ لِي وَهَبْ لِي مُلْكًا لَّا يَنبَغِي لِأَحَدٍ مِّن بَعْدِي ۖ إِنَّكَ أَنتَ الْوَهَّابُ ﴾ 35 ﴿
क़ा-ल रब्बिग़्फ़िर ली व हब् ली मुल्कल्-ला यम्बग़ी लि-अ-हदिम् मिम्बअ्दी इन्न-क अन्तल्-वह्हाब
उसने प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! मुझे क्षमा कर दे तथा मुझे प्रदान कर ऐसा राज्य, जो उचित न हो किसी के लिए मेरे पश्चात्। वास्तव में, तू ही अति प्रदाता है।
فَسَخَّرْنَا لَهُ الرِّيحَ تَجْرِي بِأَمْرِهِ رُخَاءً حَيْثُ أَصَابَ ﴾ 36 ﴿
फ़-सख़्ख़र्ना लहुर्-री-ह तज्री बिअम्रिही रुख़ाअन् हैसु असाब
तो हमने वश में कर दिया उसके लिए वायु को, जो चल रही थी धीमी गति से उसके आदेश से, वह जहाँ चाहता।
وَالشَّيَاطِينَ كُلَّ بَنَّاءٍ وَغَوَّاصٍ ﴾ 37 ﴿
वश्शयाती-न कुल्-ल बन्नाइंव् व ग़व्वास
तथा शैतानों को प्रत्येक प्रकार के निर्माता तथा ग़ोता ख़ोर को।
وَآخَرِينَ مُقَرَّنِينَ فِي الْأَصْفَادِ ﴾ 38 ﴿
व आख़री न मुक़र्रनी-न फिल्-अस्फ़ाद
तथा दूसरों को बंधे हुए बेड़ियों में।
هَٰذَا عَطَاؤُنَا فَامْنُنْ أَوْ أَمْسِكْ بِغَيْرِ حِسَابٍ ﴾ 39 ﴿
हाज़ा अ़ता-उना फ़म्-नुन् औ अम्सिक् बिग़ैरि हिसाब
ये हमारा प्रदान है। तो उपकार करो अथवा रोक लो, कोई ह़िसाब नहीं।
وَإِنَّ لَهُ عِندَنَا لَزُلْفَىٰ وَحُسْنَ مَآبٍ ﴾ 40 ﴿
व इन्-न लहू अिन्दना ल-ज़ुल्फ़ा व हुस्-न मआब
और वास्तव में, उसके लिए हमारे पास सामिप्य तथा उत्तम स्थान है।
وَاذْكُرْ عَبْدَنَا أَيُّوبَ إِذْ نَادَىٰ رَبَّهُ أَنِّي مَسَّنِيَ الشَّيْطَانُ بِنُصْبٍ وَعَذَابٍ ﴾ 41 ﴿
वज़्कुर् अ़ब्दना अय्यू-ब. इज़् नादा रब्बहू अन्नी मस्सनि-यश्शैतानु बिनुस्बिंव्-व अ़ज़ाब
तथा याद करो हमारे भक्त अय्यूब को। जब उसने पुकारा अपने पालनहार को कि शैतान ने मुझे पहुँचाया[1] है दुःख तथा यातना। 1. अर्थात मेरे दुःख तथा यातना के कारण मुझे शैतान उकसा रहा है तथा वह मुझे तेरी दया से निराश करना चाहता है।
ارْكُضْ بِرِجْلِكَ ۖ هَٰذَا مُغْتَسَلٌ بَارِدٌ وَشَرَابٌ ﴾ 42 ﴿
उर्कुज़् बिरिज्लि-क हाज़ा मुग़्-त-सलुम् बारिदुंव्-व शराब
अपना पाँव (धरती पर) मार। ये है शीतल स्नान तथा पीने का जल।
وَوَهَبْنَا لَهُ أَهْلَهُ وَمِثْلَهُم مَّعَهُمْ رَحْمَةً مِّنَّا وَذِكْرَىٰ لِأُولِي الْأَلْبَابِ ﴾ 43 ﴿
व व हब्ना लहू अह्लहू व मिस्लहुम् म-अ़हुम् रह्म – तम् – मिन्ना व ज़िक्रा लि – उलिल – अल्बाब
और हमने प्रदान किया उसे उसका परिवार तथा उनके साथ और उनके समान, अपनी दया से और मतिमानों की शिक्षा के लिए।
وَخُذْ بِيَدِكَ ضِغْثًا فَاضْرِب بِّهِ وَلَا تَحْنَثْ ۗ إِنَّا وَجَدْنَاهُ صَابِرًا ۚ نِّعْمَ الْعَبْدُ ۖ إِنَّهُ أَوَّابٌ ﴾ 44 ﴿
व ख़ुज़् बि-यदि-क जिग़्सन् फ़ज़्रिब् बिही व ला तह्नस्, इन्ना वजद्नाहु साबिरन्, निअ्मल्-अ़ब्दु, इन्नहू अव्वाब
तथा ले अपने हाथ में तीलियों की एक झाड़ तथा उससे मार और अपनी शपथ भंग न कर। वास्तव[1] में, हमने उसे पाया धैर्यवान। निश्चय, वह बड़ा ध्यानमग्न था। 1. अय्यूब (अलैहिस्सलाम) की पत्नी से कुछ चूक हो गई जिस पर उन्हों ने उसे सौ कोड़े मारने की शपथ ली थी।
وَاذْكُرْ عِبَادَنَا إِبْرَاهِيمَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ أُولِي الْأَيْدِي وَالْأَبْصَارِ ﴾ 45 ﴿
वज़्कुर् अिबा-दना इब्राही-म व इस्हा-क़ व यअ्क़ू-ब उलिल्-ऐदी वल्-अब्सार
तथा याद करो हमारे भक्त इब्राहीम, इस्ह़ाक़ एवं याक़ूब को, जो कर्म शक्ति तथा ज्ञानचक्षू[1] वाले थे। 1. अर्थात आज्ञा पालन में शक्तिवान तथा धर्म का बोध रखते थे।
إِنَّا أَخْلَصْنَاهُم بِخَالِصَةٍ ذِكْرَى الدَّارِ ﴾ 46 ﴿
इन्ना अख़लस्नाहुम् बिख़ालि-सतिन् ज़िक्रद्दार
हमने उसे विशेष कर लिया बड़ी विशेषता, परलोक (आख़िरत) की याद के साथ।
وَإِنَّهُمْ عِندَنَا لَمِنَ الْمُصْطَفَيْنَ الْأَخْيَارِ ﴾ 47 ﴿
व इन्नहुम् अिन्दना लमिनल् मुस्तफ़ैनल्-अख़्यार
वास्तव में, वह हमारे यहाँ उत्तम निर्वाचितों में से थे।
وَاذْكُرْ إِسْمَاعِيلَ وَالْيَسَعَ وَذَا الْكِفْلِ ۖ وَكُلٌّ مِّنَ الْأَخْيَارِ ﴾ 48 ﴿
वज़्कुर् इस्माई-ल वल्य-स-अ़ व ज़ल्किफ़्लि, व कुल्लुम् मिनल् – अख़्यार
तथा आप चर्चा करें इस्माईल, यसअ एवं ज़ुल्किफ़्ल की और ये सभी निर्वाचितों में से थे।
هَٰذَا ذِكْرٌ ۚ وَإِنَّ لِلْمُتَّقِينَ لَحُسْنَ مَآبٍ ﴾ 49 ﴿
हाज़ा ज़िक्रुन्, व इन्-न लिल्-मुत्तक़ी-न लहुस्-न मआब
ये (क़ुर्आन) एक शिक्षा है तथा निश्चय आज्ञाकारियों के लिए उत्तम स्थान है।
جَنَّاتِ عَدْنٍ مُّفَتَّحَةً لَّهُمُ الْأَبْوَابُ ﴾ 50 ﴿
जन्नाति अनिम् – मुफत्त-ह- तल् लहुमुल् – अब्वाब
स्थायी स्वर्ग, खुले हुए हैं उनके लिए (उनके) द्वार।
مُتَّكِئِينَ فِيهَا يَدْعُونَ فِيهَا بِفَاكِهَةٍ كَثِيرَةٍ وَشَرَابٍ ﴾ 51 ﴿
मुत्तकिई-न फ़ीहा यद्अू-न फ़ीहा बिफ़ाकि- हतिन् कसी-रतिंव्-व शराब
वे तकिये लगाये होंगे उनमें। माँगेंगे उनमें बहुत-से फल तथा पेय पदार्थ।
وَعِندَهُمْ قَاصِرَاتُ الطَّرْفِ أَتْرَابٌ ﴾ 52 ﴿
व इन्दिहुम् क़ासिरातुत्तर्फ़ि अत्-राब
तथा उनके पास आँखे सीमित रखनी वाली समायु पत्नियाँ होंगी।
هَٰذَا مَا تُوعَدُونَ لِيَوْمِ الْحِسَابِ ﴾ 53 ﴿
हाज़ा मा तू अ़दू-न लियौमिल्-हिसाब
ये है जिसका वचन दिया जा रहा था तुम्हें, ह़िसाब के दिन।
إِنَّ هَٰذَا لَرِزْقُنَا مَا لَهُ مِن نَّفَادٍ ﴾ 54 ﴿
इन्-न हाज़ा ल-रिज़्कुना मा लहू मिन्-नफ़ाद
ये है हमारी जीविका, जिसका कोई अन्त नहीं है।
هَٰذَا ۚ وَإِنَّ لِلطَّاغِينَ لَشَرَّ مَآبٍ ﴾ 55 ﴿
हाज़ा व इन्-न लित्ताग़ी-न लशर्-र मआब
ये है और अवज्ञाकारियों के लिए निश्चय बुरा स्थान है।
جَهَنَّمَ يَصْلَوْنَهَا فَبِئْسَ الْمِهَادُ ﴾ 56 ﴿
जहन्न म यस्लौनहा फ़बिअ्सल्-मिहाद
नरक है, जिसमें वे जायेंगे, क्या ही बुरा आवास है।
هَٰذَا فَلْيَذُوقُوهُ حَمِيمٌ وَغَسَّاقٌ ﴾ 57 ﴿
हाज़ा फ़ल्यज़ूक़ूहु हमीमुंव-व ग़स्साक
ये है। तो तुम चखो, खौलता पानी तथा पीप।
وَآخَرُ مِن شَكْلِهِ أَزْوَاجٌ ﴾ 58 ﴿
व आ-ख़रु मिन् शक्लिही अज़्वाज
तथा कुछ अन्य इसी प्रकार की विभिन्न यातनायें।
هَٰذَا فَوْجٌ مُّقْتَحِمٌ مَّعَكُمْ ۖ لَا مَرْحَبًا بِهِمْ ۚ إِنَّهُمْ صَالُو النَّارِ ﴾ 59 ﴿
हाज़ा फ़ौजुम्-मुक़्तहिमुम् म-अ़कुम् ला मर्-हबम् बिहिम्, इन्नहुम् सालुन्नार
ये[1] एक और जत्था है, जो घुसा आ रहा है तुम्हारे साथ। कोई स्वागत नहीं है उनका। वास्तव में, वे नरक में प्रवेश करने वाले हैं। 1. यह बात काफ़िरों के प्रमुख जो पहले से नरक में होंगे अपने उन अनुयायियों से कहेंगे जो संसार में उन के अनुयायी बने रहे उस समय जब उन के अनुयायियों का गिरोह नरक में आने लगेगा।
قَالُوا بَلْ أَنتُمْ لَا مَرْحَبًا بِكُمْ ۖ أَنتُمْ قَدَّمْتُمُوهُ لَنَا ۖ فَبِئْسَ الْقَرَارُ ﴾ 60 ﴿
क़ालू बल् अन्तुम्, ला मर्-हबम् बिकुम्, अन्तुम् क़द्दम्तुमूहु लना फ़बिअ्सल्- क़रार
वे उत्तर देंगेः बल्कि तुम। तुम्हारा कोई स्वागत नहीं। तुम ही आगे लाये हो इस (यातना) को हमारे। तो ये बुरा निवास है।
قَالُوا رَبَّنَا مَن قَدَّمَ لَنَا هَٰذَا فَزِدْهُ عَذَابًا ضِعْفًا فِي النَّارِ ﴾ 61 ﴿
क़ालू रब्बना मन क़द्दमा लना हाज़ा फ़ज़िद्हु अज़ाबन ज़िअफ़न फ़िन्नार
(फिर) वे कहेंगेः हमारे पालनहार! जो हमारे आगे लाया है इसे, उसे दुगनी यातना दे नरक में।
وَقَالُوا مَا لَنَا لَا نَرَىٰ رِجَالًا كُنَّا نَعُدُّهُم مِّنَ الْأَشْرَارِ ﴾ 62 ﴿
व क़ालू मा लना ला नरा रिजालन् कुन्ना नअुदुहुम्-मिनल्-अश्-रार
तथा (नारकी) कहेंगेः हमें क्या हुआ है कि हम कुछ लोगों को नहीं देख रहे हैं, जिनकी गणना हम बुरे लोगों में कर[1] रहे थे? 1. इस से उन का संकेत उन निर्धन-निर्बल मुसलमानों की ओर होगा जिन्हें वह संसार में उपद्रवी कह रहे थे।
أَتَّخَذْنَاهُمْ سِخْرِيًّا أَمْ زَاغَتْ عَنْهُمُ الْأَبْصَارُ ﴾ 63 ﴿
अत्त-ख़ज़्नाहुम् सिख़्-रिय्यन् अम् ज़ाग़त् अ़न्हुमुल्- अब्सार
क्या हमने उन्हें उपहास बना रखा था अथवा चूक रही हैं उनसे हमारी आँखें?
إِنَّ ذَٰلِكَ لَحَقٌّ تَخَاصُمُ أَهْلِ النَّارِ ﴾ 64 ﴿
इन्- न ज़ालि-क ल-हक़्क़ुन् तख़ासुमु अह्लिन्नार
निश्चय सत्य है नारकियों का आपस में झगड़ना।
قُلْ إِنَّمَا أَنَا مُنذِرٌ ۖ وَمَا مِنْ إِلَٰهٍ إِلَّا اللَّهُ الْوَاحِدُ الْقَهَّارُ ﴾ 65 ﴿
क़ुल् इन्नमा अ-न मुन्ज़िरूंव-व मा मिन् इलाहिन् इल्लल्लाहुल्-वाहिदुल्-क़ह्हार
हे नबी! आप कह दें: मैं तो मात्र सचेत करने वाला[1] हूँ तथा कोई ( सच्चा) पूज्य नहीं है, अकेले प्रभावशाली अल्लाह के सिवा। 1. क़ुर्आन ने इसे बहुत सी आयतों में दुहराया है कि नबियों का कर्तव्य मात्र सत्य को पहुँचाना है। किसी को बल पूर्वक सत्य को मनवाना नहीं है।
رَبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا الْعَزِيزُ الْغَفَّارُ ﴾ 66 ﴿
रब्बुस्समावाति वल्अर्ज़ि व मा बैनहुमल्-अ़ज़ीज़ुल ग़फ़्फ़ार
वह आकाशों तथा धरती का और जो कुछ उन दोनों के मध्य है, सबका पालनहार, अति प्रभावशाली, क्षमी है।
قُلْ هُوَ نَبَأٌ عَظِيمٌ ﴾ 67 ﴿
क़ुल् हु-व न-बउन् अ़ज़ीम
आप कह दें कि ये[1] बहुत बड़ी सूचना है। 1. परलोक की यातना तथा तौहीद (एकेश्वरवाद) की जो बातें तुम्हें बता रहा हूँ।
أَنتُمْ عَنْهُ مُعْرِضُونَ ﴾ 68 ﴿
अन्तुम् अ़न्हु मुअ्-रिज़ून
और तुम हो कि उससे मुँह फेर रहे हो।
مَا كَانَ لِيَ مِنْ عِلْمٍ بِالْمَلَإِ الْأَعْلَىٰ إِذْ يَخْتَصِمُونَ ﴾ 69 ﴿
मा का-न लि-य मिन् अिल्मिम्-बिल्म-लइल्-अअ्ला इज़् यख़्तसिमून
मुझे कोई ज्ञान नहीं है, उच्च सभा वाले (फ़रिश्ते) जब वाद-विवाद कर रहे थे।
إِن يُوحَىٰ إِلَيَّ إِلَّا أَنَّمَا أَنَا نَذِيرٌ مُّبِينٌ ﴾ 70 ﴿
इंय्यूहा इलय्-य इल्ला अन्नमा अ-न नज़ीरुम्-मुबीन
मेरी ओर तो मात्र इसलिए वह़्यी (प्रकाशना) की जा रही है कि मैं खुला सचेत करने वाला हूँ।
إِذْ قَالَ رَبُّكَ لِلْمَلَائِكَةِ إِنِّي خَالِقٌ بَشَرًا مِّن طِينٍ ﴾ 71 ﴿
इज़् क़ा-ल रब्बु-क लिल्मलाइ-कति इन्नी ख़ालिकुम् ब-शरम्-मिन् तीन
जबकि कहा आपके पालनहार ने फ़रिश्तों सेः मैं पैदा करने वाला हूँ एक मनुष्य, मिट्टी से।
فَإِذَا سَوَّيْتُهُ وَنَفَخْتُ فِيهِ مِن رُّوحِي فَقَعُوا لَهُ سَاجِدِينَ ﴾ 72 ﴿
फ़- इज़ा सव्वैतुहू व नफ़ख़्तु फ़ीहि मिर्रूही फ़-क़अू लहू साजिदीन
तो जब मैं उसे बराबर कर दूँ तथा फूँक दूँ उसमें, अपनी ओर से रूह़ (प्राण), तो गिर जाओ उसके लिए सज्दा करते हुए।
فَسَجَدَ الْمَلَائِكَةُ كُلُّهُمْ أَجْمَعُونَ ﴾ 73 ﴿
फ़-स-जदल् मलाइ-कतु कुल्लुहुम् अज्मअून
तो सज्दा किया सभी फ़रिश्तों ने एक साथ।
إِلَّا إِبْلِيسَ اسْتَكْبَرَ وَكَانَ مِنَ الْكَافِرِينَ ﴾ 74 ﴿
इल्ला इब्ली-स, इस्तक्ब-र व का-न मिनल्-काफ़िरीन
इब्लीस के सिवा, उसने अभिमान किया और हो गया काफ़िरों में से।
قَالَ يَا إِبْلِيسُ مَا مَنَعَكَ أَن تَسْجُدَ لِمَا خَلَقْتُ بِيَدَيَّ ۖ أَسْتَكْبَرْتَ أَمْ كُنتَ مِنَ الْعَالِينَ ﴾ 75 ﴿
क़ा-ल या इब्लीसु मा म-न-अ़-क अन् तस्जु-द लिमा ख़लक़्तु बि-यदय्-य, अस्तक्बर्-त अम् कुन्-त मिनल्-आ़लीन
अल्लाह ने कहाः हे इब्लीस! किस चीज़ ने तुझे रोक दिया सज्दा करने से उसके लिए, जिसे मैंने पैदा किया अपने हाथ से? क्या तू अभिमान कर गया अथवा वास्तव में तू ऊँचे लोगों में से है?
قَالَ أَنَا خَيْرٌ مِّنْهُ ۖ خَلَقْتَنِي مِن نَّارٍ وَخَلَقْتَهُ مِن طِينٍ ﴾ 76 ﴿
का-ल अ-न ख़ैरुम्-मिन्हु ख़लक़्तनी मिन्-नारिंव्-व ख़लक़्तहू मिन् तीन
उसने कहाः मैं उससे उत्तम हूँ। तूने मुझे पैदा किया है अग्नि से तथा उसे पैदा किया मिट्टी से।
قَالَ فَاخْرُجْ مِنْهَا فَإِنَّكَ رَجِيمٌ ﴾ 77 ﴿
क़ा-ल फ़ख़्रुज् मिन्हा फ़-इन्न-क रजीम
अल्लाह ने कहाः तू निकल जा यहाँ से, तू वास्तव में धिक्कृत है।
وَإِنَّ عَلَيْكَ لَعْنَتِي إِلَىٰ يَوْمِ الدِّينِ ﴾ 78 ﴿
व इन्-न अ़लै-क लअ्नती इला यौमिद्दीन
तथा तुझपर मेरी दया से दूरी है, प्रलय के दिन तक।
قَالَ رَبِّ فَأَنظِرْنِي إِلَىٰ يَوْمِ يُبْعَثُونَ ﴾ 79 ﴿
क़ा-ल रब्बि फ़-अन्ज़िर्नी इला यौमि युब्अ़सून
उसने कहाः मेरे पालनहार! मुझे अवसर दे उस दिन तक, जब लोग पुनः जीवित किये जायेंगे।
قَالَ فَإِنَّكَ مِنَ الْمُنظَرِينَ ﴾ 80 ﴿
क़ा-ल फ़-इन्न-क मिनल्-मुन्ज़रीन
अल्लाह ने कहाः तुझे अवसर दे दिया गया।
إِلَىٰ يَوْمِ الْوَقْتِ الْمَعْلُومِ ﴾ 81 ﴿
इला यौमिल्-वक़्तिल्-मअ्लूम
निर्धारित समय के दिन तक।
قَالَ فَبِعِزَّتِكَ لَأُغْوِيَنَّهُمْ أَجْمَعِينَ ﴾ 82 ﴿
क़ा-ल फ़बिअिज़्ज़ति-क ल-उग़्वियन्नहुम् अज्मईन
उसने कहाः तो तेरे प्रताप की शपथ! मैं अवश्य कुपथ करके रहूँगा सबको।
إِلَّا عِبَادَكَ مِنْهُمُ الْمُخْلَصِينَ ﴾ 83 ﴿
इल्ला अिबा-द-क मिन्हुमुल् – मुख़्लसीन
तेरे शुध्द भक्तों के सिवा उनमें से।
قَالَ فَالْحَقُّ وَالْحَقَّ أَقُولُ ﴾ 84 ﴿
क़ा-ल फ़ल्-हक़्क़ु वल्-हक़्-क़ अक़ूल
अल्लाह ने कहाः तो ये सत्य है और मैं सत्य ही कहा करता हूँ:
لَأَمْلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنكَ وَمِمَّن تَبِعَكَ مِنْهُمْ أَجْمَعِينَ ﴾ 85 ﴿
ल-अम्ल-अन्-न जहन्न-म मिन्-क व मिम्-मन् तबि-अ़-क मिन्हुम् अज्मईन
कि अवश्य भर दूँगा नरक को तुझसे तथा जो तेरा अनुसरण करेंगे उनसबसे।
قُلْ مَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ وَمَا أَنَا مِنَ الْمُتَكَلِّفِينَ ﴾ 86 ﴿
क़ुल् मा अस्अलुकुम् अ़लैहि मिन् अज़्रिंवू व मा अ-न मिनल्-मु-त- कल्लिफ़ीन
(हे नबी!) कह दें कि मैं नहीं माँग करता हूँ तुमसे इसपर किसी पारिश्रमिक की तथा मैं नहीं हूँ अपनी ओर से कुछ बनाने वाला।
إِنْ هُوَ إِلَّا ذِكْرٌ لِّلْعَالَمِينَ ﴾ 87 ﴿
इन् हु-व इल्ला ज़िक्रुल्-लिल्आ़लमीन
नहीं है ये (क़ुर्आन), परन्तु एक शिक्षा, सर्वलोक वासियों के लिए।