सूरह यासीन के संक्षिप्त विषय
यह सूरह मक्की है, इस में 83 आयतें हैं।
- सूरह के प्रथम दो शब्दों से इस को यह नाम दिया गया है।
- इस में रसूल के सत्य होने पर कुआन की गवाही से यह बताया गया है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अचेत लोगों को जगाने के लिये भेजा गया है। और इस में उस का एक उदाहरण दिया गया है।
- तौहीद की निशानियाँ बता कर विरोधियों का खण्डन किया गया है। और इस प्रकार सावधान किया गया है जिस से लगता है कि प्रलय आ गई है। रिसालत, तौहीद तथा दूसरे जीवन के संबंध में विरोधियों की अपत्तियों का जवाब दिया गया है।
Surah Yaseen in Hindi
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
وَالْقُرْآنِ الْحَكِيمِ ﴾ 2 ﴿
वल कुर आनिल हकीम
शपथ है सुदृढ़ क़ुर्आन की!
إِنَّكَ لَمِنَ الْمُرْسَلِينَ ﴾ 3 ﴿
इन्नका लमिनल मुरसलीन
वस्तुतः, आप रसूलों में से हैं।
عَلَىٰ صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ ﴾ 4 ﴿
अला सिरातिम मुस्तकीम
सुपथ पर हैं।
تَنزِيلَ الْعَزِيزِ الرَّحِيمِ ﴾ 5 ﴿
तनजीलल अजीज़िर रहीम
(ये क़ुर्आन) प्रभुत्वशाली, अति दयावान् का अवतरित किया हुआ है।
لِتُنذِرَ قَوْمًا مَّا أُنذِرَ آبَاؤُهُمْ فَهُمْ غَافِلُونَ ﴾ 6 ﴿
लितुन ज़िरा कौमम मा उनज़िरा आबाउहुम फहुम गाफिलून
ताकि आप सावधान करें उस जाति[1] को, नहीं सावधान किये गये हैं जिनके पूर्वज। इस लिए वे अचेत हैं। 1. मक्का वासियों को, जिन के पास इस्माईल (अलैहिस्सलाम) के पश्चात् कोई नबी नहीं आया।
لَقَدْ حَقَّ الْقَوْلُ عَلَىٰ أَكْثَرِهِمْ فَهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ ﴾ 7 ﴿
लकद हक कल कौलु अला अकसरिहिम फहुम ला युअ’मिनून
सिध्द हो चुका है वचन[1] उनमें से अधिक्तर लोगों पर। अतः, वे ईमान नहीं लायेंगे। 1. अर्थात अल्लाह का यह वचन कि ((मैं जिन्नों तथा मनुष्यों से नरक को भर दूँगा।)) (देखियेः सूरह सज्दा, आयतः13)
إِنَّا جَعَلْنَا فِي أَعْنَاقِهِمْ أَغْلَالًا فَهِيَ إِلَى الْأَذْقَانِ فَهُم مُّقْمَحُونَ ﴾ 8 ﴿
इन्ना जअल्ना फी अअ’ना किहिम अगलालन फहिया इलल अजक़ानि फहुम मुक़महून
तथा हमने डाल दिये हैं तौक़ उनके गलों में, जो हड्डियों तक[1] हैं। इसलिए वे सिर ऊपर किये हुए हैं। 1. इस से अभिप्राय अन का कुफ़्र पर दुराग्रह तथा ईमान न लाना है।
وَجَعَلْنَا مِن بَيْنِ أَيْدِيهِمْ سَدًّا وَمِنْ خَلْفِهِمْ سَدًّا فَأَغْشَيْنَاهُمْ فَهُمْ لَا يُبْصِرُونَ ﴾ 9 ﴿
व जअल्ना मिम बैनि ऐदी हिम सद्दव वमिन खलफिहिम सद्दन फअग शैनाहुम फहुम ला युबसिरून
तथा हमने बना दी है उनके आगे एक आड़ और उनके पीछे एक आड़। फिर ढाँक दिया है उनको, तो[1] वे देख नहीं रहे हैं। 1. अर्थात सत्य की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं, और न उस से लाभान्वित हो रहे हैं।
وَسَوَاءٌ عَلَيْهِمْ أَأَنذَرْتَهُمْ أَمْ لَمْ تُنذِرْهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ ﴾ 10 ﴿
वसवाउन अलैहिम अअनजर तहुम अम लम तुनजिरहुम ला युअ’मिनून
तथा समान है उनपर कि आप उन्हें सावधान करें अथवा सावधान न करें, वे ईमान नहीं लायेंगे।
إِنَّمَا تُنذِرُ مَنِ اتَّبَعَ الذِّكْرَ وَخَشِيَ الرَّحْمَـٰنَ بِالْغَيْبِ ۖ فَبَشِّرْهُ بِمَغْفِرَةٍ وَأَجْرٍ كَرِيمٍ ﴾ 11 ﴿
इन्नमा तुन्ज़िरू मनित तब अज़ ज़िकरा व खशियर रहमान बिल्गैब फबश्शिर हु बिमग फिरतिव व अजरिन करीम
आप तो बस उसे सचेत कर सकेंगे, जो माने इस शिक्षा (क़ुर्आन) को तथा डरे अत्यंत कृपाशील से, बिन देखे। तो आप शुभ सूचना सुना दें उसे, क्षमा की तथा सम्मानित प्रतिफल की।
إِنَّا نَحْنُ نُحْيِي الْمَوْتَىٰ وَنَكْتُبُ مَا قَدَّمُوا وَآثَارَهُمْ ۚ وَكُلَّ شَيْءٍ أَحْصَيْنَاهُ فِي إِمَامٍ مُّبِينٍ ﴾ 12 ﴿
इन्ना नहनु नुहयिल मौता वनकतुबु मा क़द्दमु व आसारहुम वकुल्ला शयइन अहसैनाहु फी इमामिम मुबीन
निश्चय हम ही जीवित करेंगे मुर्दों को तथा लिख रहे हैं, जो कर्म उन्होंने किया है और उनके पद् चिन्हों[1] को तथा प्रत्येक वस्तु को हमने गिन रखा है, खुली पुस्तक में। 1. अर्थात पुण्य अथवा पाप करने के लिये आते-जाते जो उन के पद्चिन्ह धरती पर बने हैं उन्हें भी लिख रखा है। इसी में उन के अच्छे-बुरे वह कर्म भी आते हैं जो उन्हों ने किये हैं। और जिन का अनुसरण उन के पश्चात् किया जा रहा है।
وَاضْرِبْ لَهُم مَّثَلًا أَصْحَابَ الْقَرْيَةِ إِذْ جَاءَهَا الْمُرْسَلُونَ ﴾ 13 ﴿
वज़ रिब लहुम मसलन असहाबल करयह इज़ जा अहल मुरसळून
तथा आप उन्हें[1] एक उदाहरण दीजिये नगर वासियों का। जब आये उसमें कई रसूल। 1. अपने आमंत्रण के विरोधियों को।
إِذْ أَرْسَلْنَا إِلَيْهِمُ اثْنَيْنِ فَكَذَّبُوهُمَا فَعَزَّزْنَا بِثَالِثٍ فَقَالُوا إِنَّا إِلَيْكُم مُّرْسَلُونَ ﴾ 14 ﴿
इज़ अरसलना इलयहिमुस नैनि फकज जबूहुमा फ अज़ ज़ज्ना बिसा लिसिन फकालू इन्ना इलैकुम मुरसळून
जब हमने भेजा उनकी ओर दो को। तो उन्होंने झुठला दिया उन दोनों को। फिर हमने समर्थन दिया तीसरे के द्वारा। तो तीनों ने कहाः हम तुम्हारी ओर भेजे गये हैं।
قَالُوا مَا أَنتُمْ إِلَّا بَشَرٌ مِّثْلُنَا وَمَا أَنزَلَ الرَّحْمَـٰنُ مِن شَيْءٍ إِنْ أَنتُمْ إِلَّا تَكْذِبُونَ ﴾ 15 ﴿
कालू मा अन्तुम इल्ला बशरुम मिसळूना वमा अनजलर रहमानु मिन शय इन इन अन्तुम इल्ला तकज़िबुन
उन्होंने कहाः तुम सब तो मनुष्य ही हो, हमारे[1] समान और नहीं अवतरित किया है अत्यंत कृपाशील ने कुछ भी। तुम सब तो बस झूठ बोल रहे हो। 1. प्राचीन युग से मुश्रिकों तथा कुपथों ने अल्लाह के रसूलों को इसी कारण नहीं माना कि एक मनुष्य पुरुष अल्लाह का रसूल कैसे हो सकता है? यह तो खाता-पीता तथा बाज़ारों में चलता-फिरता है। (देखियेः सूरह फ़ुर्क़ान, आयतः7-20, सूरह अम्बिया, आयतः3,7,8, सूरह मूमिनून, आयतः24-33-34, सूरह इब्राहीम, आयतः 10-11, सूरह इस्रा, आयतः94-95, और सूरह तग़ाबुन, आयतः6)
قَالُوا رَبُّنَا يَعْلَمُ إِنَّا إِلَيْكُمْ لَمُرْسَلُونَ ﴾ 16 ﴿
क़ालू रब्बुना यअ’लमु इन्ना इलैकुम लमुरसळून
उन रसूलों ने कहाः हमारा पालनहार जानता है कि वास्तव में हम तुम्हारी ओर रसूल बनाकर भेजे गये हैं।
وَمَا عَلَيْنَا إِلَّا الْبَلَاغُ الْمُبِينُ ﴾ 17 ﴿
वमा अलैना इल्लल बलागुल मुबीन
तथा हमारा दायित्व नहीं है खुला उपदेश पहुँचा देने के सिवा।
قَالُوا إِنَّا تَطَيَّرْنَا بِكُمْ ۖ لَئِن لَّمْ تَنتَهُوا لَنَرْجُمَنَّكُمْ وَلَيَمَسَّنَّكُم مِّنَّا عَذَابٌ أَلِيمٌ ﴾ 18 ﴿
कालू इन्ना ततैयरना बिकुम लइल लम तनतहू लनरजु मन्नकूम वला यमस सन्नकुम मिन्ना अज़ाबुन अलीम
उन्होंने कहाः हम तुम्हें अशुभ समझ रहे हैं। यदि तुम रुके नहीं, तो हम तुम्हें अवश्य पथराव करके मार डालेंगे और तुम्हें अवश्य हमारी ओर से पहुँचेगी दुःखदायी यातना।
قَالُوا طَائِرُكُم مَّعَكُمْ ۚ أَئِن ذُكِّرْتُم ۚ بَلْ أَنتُمْ قَوْمٌ مُّسْرِفُونَ ﴾ 19 ﴿
कालू ताइरुकुम म अकुम अइन ज़ुक्किरतुम बल अन्तुम क़ौमूम मुस रिफून
उन्होंने कहाः तुम्हारा अशुभ तुम्हारे साथ है। क्या यदि तुम्हें शिक्षा दी जाये (तो अशुभ समझते हो)? बल्कि तुम उल्लंघनकारी जाति हो।
وَجَاءَ مِنْ أَقْصَى الْمَدِينَةِ رَجُلٌ يَسْعَىٰ قَالَ يَا قَوْمِ اتَّبِعُوا الْمُرْسَلِينَ ﴾ 20 ﴿
व जा अमिन अक्सल मदीनति रजुलुय यसआ काला या कौमित त्तबिउल मुरसलीन
तथा आया नगर के अन्ति किनारे से, एक पुरुष दौड़ता हुआ। उसने कहाः हे मेरी जाति के लोगो! अनुसरण करो रसूलों का।
اتَّبِعُوا مَن لَّا يَسْأَلُكُمْ أَجْرًا وَهُم مُّهْتَدُونَ ﴾ 21 ﴿
इत तबिऊ मल ला यस अलुकुम अजरौ वहुम मुहतदून
अनुसरण करो उनका, जो तुमसे नहीं माँगते कोई पारिश्रमिक (बदला) तथा वे सुपथ पर हैं।
وَمَا لِيَ لَا أَعْبُدُ الَّذِي فَطَرَنِي وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ ﴾ 22 ﴿
वमालिया ला अअ’बुदुल लज़ी फतरनी व इलैहि तुरजऊन
तथा मुझे क्या हुआ है कि मैं उसकी इबादत (वंदना) न करूँ, जिसने मुझे पैदा किया है? और तुमसब उसी की ओर फेरे जाओगे।[1] 1. अर्थात मैं तो उसी की वंदना करता हूँ। और करता रहूँगा। और उसी की वंदना करनी भी चाहिये। क्यों कि वही वंदना किये जाने के योग्य है। उस के अतिरिक्त कोई वंदना के योग्य हो ही नहीं सकता।
أَأَتَّخِذُ مِن دُونِهِ آلِهَةً إِن يُرِدْنِ الرَّحْمَـٰنُ بِضُرٍّ لَّا تُغْنِ عَنِّي شَفَاعَتُهُمْ شَيْئًا وَلَا يُنقِذُونِ ﴾ 23 ﴿
अ अत्तखिज़ु मिन दुनिही आलिहतन इय युरिदनिर रहमानु बिजुर रिल ला तुगनि अन्नी शफ़ा अतुहुम शय अव वला यूनकिजून
क्या मैं बना लूँ उसे छोड़कर बहुत-से पूज्य? यदि अत्यंत कृपाशील मुझे कोई हानि पहुँचाना चाहे, तो नहीं लाभ पहूँचायेगी मुझे उनकी अनुशंसा (सिफ़ारिश) कुछ और न वे मुझे बचा सकेंगे।
إِنِّي إِذًا لَّفِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ ﴾ 24 ﴿
इन्नी इज़ल लफी ज़लालिम मुबीन
वास्तव में, तब तो मैं खुले कुपथ में हूँ।
إِنِّي آمَنتُ بِرَبِّكُمْ فَاسْمَعُونِ ﴾ 25 ﴿
इन्नी आमन्तु बिरब बिकुम फसमऊन
निश्चय, मैं ईमान लाया तुम्हारे पालनहार पर, अतः, मेरी सुनो।
قِيلَ ادْخُلِ الْجَنَّةَ ۖ قَالَ يَا لَيْتَ قَوْمِي يَعْلَمُونَ ﴾ 26 ﴿
कीलद खुलिल जन्नह काल यालैत क़ौमिय यअ’लमून
(उससे) कहा गयाः तुम प्रवेश कर जाओ स्वर्ग में। उसने कहाः काश मेरी जाति जानती!
بِمَا غَفَرَ لِي رَبِّي وَجَعَلَنِي مِنَ الْمُكْرَمِينَ ﴾ 27 ﴿
बिमा गफरली रब्बी व जअलनी मिनल मुकरमीन
जिसकारण क्षमा[1] कर दिया मुझे मेरे पालनहार ने और मुझे सम्मिलित कर दिया सम्मानितों में। 1. अर्थात एकेश्वरवाद तथा अल्लाह की आज्ञा के पालन पर धैर्य के कारण।
وَمَا أَنزَلْنَا عَلَىٰ قَوْمِهِ مِن بَعْدِهِ مِن جُندٍ مِّنَ السَّمَاءِ وَمَا كُنَّا مُنزِلِينَ ﴾ 28 ﴿
वमा अन्ज़लना अला क़ौमिही मिन बअ’दिही मिन जुन्दिम मिनस समाइ वमा कुन्ना मुनजलीन
तथा हमने नहीं उतारी उसकी जाति पर उसके पश्चात् कोई सेना[1] आकाश से और न हमें उतारने की आवश्यक्ता थी। 1. अर्थात यातना देने के लिये सेनायें नहीं उतारते।
إِن كَانَتْ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً فَإِذَا هُمْ خَامِدُونَ ﴾ 29 ﴿
इन कानत इल्ला सैहतौ वाहिदतन फइज़ा हुम् खामिदून
वह तो बस एक कड़ी ध्वनि थी। फिर सहसा सबके सब बुझ गये।[1] 1. अर्थात एक चीख़ ने उन को बुझी हुई राख के समान कर दिया। इस से ज्ञात होता है कि मनुष्य कितना निर्बल है।
يَا حَسْرَةً عَلَى الْعِبَادِ ۚ مَا يَأْتِيهِم مِّن رَّسُولٍ إِلَّا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ ﴾ 30 ﴿
या हसरतन अलल इबाद मा यअ’तीहिम मिर रसूलिन इल्ला कानू बिही यस तहज़िउन
हाय संताप है[1] भक्तों पर! नहीं आया उनके पास रसूल, परन्तु वे उसका उपहास करते रहे। 1. अर्थात प्रलय के दिन रसूलों का उपहास भक्तों के लिये संताप का कारण होगा।
أَلَمْ يَرَوْا كَمْ أَهْلَكْنَا قَبْلَهُم مِّنَ الْقُرُونِ أَنَّهُمْ إِلَيْهِمْ لَا يَرْجِعُونَ ﴾ 31 ﴿
अलम यरौ कम अहलकना क़ब्लहुम मिनल कुरूनि अन्नहुम इलैहिम ला यर जिउन
क्या उन्होंने नहीं देखा कि उनसे पहले विनाश कर दिया बहुत-से समुदायों का। वे उनकी ओर दोबारा फिरकर नहीं आयेंगे।
وَإِن كُلٌّ لَّمَّا جَمِيعٌ لَّدَيْنَا مُحْضَرُونَ ﴾ 32 ﴿
वइन कुल्लुल लम्मा जमीउल लदैना मुह्ज़रून
तथा सबके सब हमारे समक्ष उपस्थित किये[1] जायेंगे। 1. प्रलय के दिन ह़िसाब तथा प्रतिकार के लिये।
وَآيَةٌ لَّهُمُ الْأَرْضُ الْمَيْتَةُ أَحْيَيْنَاهَا وَأَخْرَجْنَا مِنْهَا حَبًّا فَمِنْهُ يَأْكُلُونَ ﴾ 33 ﴿
व आयतुल लहुमूल अरज़ुल मैतह अह ययनाहा व अखरजना मिन्हा हब्बन फमिनहु यअ कुलून
तथा उन[1] के लिए एक निशानी है निर्जीव (सूखी) धरती। जिसे हमने जीवित कर दिया और हमने निकाले उससे अन्न, तो तुम उसीमें से खाते हो। 1. यहाँ एकेश्वरवाद तथा आख़िरत (परलोक) के विषय का वर्णन किया जा रहा है। जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तथा मक्का के काफ़िरों के बीच विवाद का कारण था।
وَجَعَلْنَا فِيهَا جَنَّاتٍ مِّن نَّخِيلٍ وَأَعْنَابٍ وَفَجَّرْنَا فِيهَا مِنَ الْعُيُونِ ﴾ 34 ﴿
व जअलना फीहा जन्नातिम मिन नखीलिव व अअ’नाबिव व फज्जरना फीहा मिनल उयून
तथा पैदा कर दिये उसमें बाग़ खजूरों तथा अंगूरों के और फाड़ दिये उसमें जल स्रोत।
لِيَأْكُلُوا مِن ثَمَرِهِ وَمَا عَمِلَتْهُ أَيْدِيهِمْ ۖ أَفَلَا يَشْكُرُونَ ﴾ 35 ﴿
लियअ’ कुलु मिन समरिही वमा अमिलत हु अयदीहिम अफला यशकुरून
ताकि वे खायें उसके फल और नहीं बनाया है उसे उनके हाथों ने। तो क्या वे कृतज्ञ नहीं होते?
سُبْحَانَ الَّذِي خَلَقَ الْأَزْوَاجَ كُلَّهَا مِمَّا تُنبِتُ الْأَرْضُ وَمِنْ أَنفُسِهِمْ وَمِمَّا لَا يَعْلَمُونَ ﴾ 36 ﴿
सुब्हानल लज़ी ख़लक़ल अज़वाज कुल्लहा मिम मा तुमबितुल अरज़ू वमिन अनफुसिहिम वमिम मा ला यअलमून
पवित्र है वह, जिसने पैदा किये प्रत्येक जोड़े, उसके जिसे उगाती है धरती तथा स्वयं उनकी अपनी जाति के और उसके, जिसे तुम नहीं जानते हो।
وَآيَةٌ لَّهُمُ اللَّيْلُ نَسْلَخُ مِنْهُ النَّهَارَ فَإِذَا هُم مُّظْلِمُونَ ﴾ 37 ﴿
व आयतुल लहुमूल लैल नसलखु मिन्हुन नहारा फइज़ा हुम् मुजलिमून
तथा एक निशानी (चिन्ह) है उनके लिए रात्रि। खींच लेते हैं हम जिससे दिन को, तो सहसा वह अंधेरों में हो जाते हैं।
وَالشَّمْسُ تَجْرِي لِمُسْتَقَرٍّ لَّهَا ۚ ذَٰلِكَ تَقْدِيرُ الْعَزِيزِ الْعَلِيمِ ﴾ 38 ﴿
वश शमसु तजरि लिमुस्त कररिल लहा ज़ालिका तक़्दी रूल अज़ीज़िल अलीम
तथा सूर्य चला जा रहा है अपने निर्धारित स्थान की ओर। ये प्रभुत्वशाली सर्वज्ञ का निर्धारित किया हुआ है।
وَالْقَمَرَ قَدَّرْنَاهُ مَنَازِلَ حَتَّىٰ عَادَ كَالْعُرْجُونِ الْقَدِيمِ ﴾ 39 ﴿
वल कमर कद्दरनाहु मनाज़िला हत्ता आद कल उरजुनिल क़दीम
तथा चन्द्रमा के हमने निर्धारित कर दिये हैं गंतव्य स्थान। यहाँतक कि फिर वह हो जाता है पुरानी खजूर की सूखी शाखा के समान।
لَا الشَّمْسُ يَنبَغِي لَهَا أَن تُدْرِكَ الْقَمَرَ وَلَا اللَّيْلُ سَابِقُ النَّهَارِ ۚ وَكُلٌّ فِي فَلَكٍ يَسْبَحُونَ ﴾ 40 ﴿
लश शम्सु यमबगी लहा अन तुद रिकल कमरा वलल लैलु साबिकुन नहार वकुल्लुन फी फलकिय यसबहून
न तो सूर्य के लिए ही उचित है कि चन्द्रमा को पा जाये और न रात अग्रगामी हो सकती है दिन से। सब एक मण्डल में तैर रहे हैं।
وَآيَةٌ لَّهُمْ أَنَّا حَمَلْنَا ذُرِّيَّتَهُمْ فِي الْفُلْكِ الْمَشْحُونِ ﴾ 41 ﴿
व आयतुल लहुम अन्ना हमलना ज़ुररिय यतहूम फिल फुल्किल मशहून
तथा उनके लिए एक निशानी (लक्षण) (ये भी) है कि हमने सवार किया उनकी संतान को भरी हुई नाव में।
وَخَلَقْنَا لَهُم مِّن مِّثْلِهِ مَا يَرْكَبُونَ ﴾ 42 ﴿
व खलकना लहुम मिम मिस्लिही मा यरकबून
तथा हमने पैदा किया उनके लिए उसके समान वह चीज़, जिसपर वे सवार होते हैं।
وَإِن نَّشَأْ نُغْرِقْهُمْ فَلَا صَرِيخَ لَهُمْ وَلَا هُمْ يُنقَذُونَ ﴾ 43 ﴿
व इन नशअ नुगरिक हुम फला सरीखा लहुम वाला हुम युन्क़जून
और यदि हम चाहें, तो उन्हें जलमगन कर दें। तो न कोई सहायक होगा उनका और न वे निकाले (बचाये) जायेंगे।
إِلَّا رَحْمَةً مِّنَّا وَمَتَاعًا إِلَىٰ حِينٍ ﴾ 44 ﴿
इल्ला रहमतम मिन्ना व मताअन इलाहीन
परन्तु, हमारी दया से तथ लाभ देने के लिए एक समय तक।
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ اتَّقُوا مَا بَيْنَ أَيْدِيكُمْ وَمَا خَلْفَكُمْ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ ﴾ 45 ﴿
व इजा कीला लहुमुत तकू मा बैना ऐदीकुम वमा खल्फकुम लअल्लकुम तुरहमून
और[1] जब उनसे कहा जाता है कि डरो उस (यातना) से, जो तुम्हारे आगे तथा तुम्हारे पीछे है, ताकि तुमपर दया की जाये। 1. आयत संख्या 33 से यहाँ तक एकेश्वरवाद तथा प्रलोक के प्रमाणों, जिन्हें सभी लोग देखते तथा सुनते हैं, और जो सभी इस विश्व की व्यवस्था तथा जीवन के संसाधनों से संबंधित हैं, उन का वर्णन करने के पश्चात् अब मिश्रणवादियों तथा काफ़िरों की दशा और उन के आचरण का वर्णन किया जा रहा है।
وَمَا تَأْتِيهِم مِّنْ آيَةٍ مِّنْ آيَاتِ رَبِّهِمْ إِلَّا كَانُوا عَنْهَا مُعْرِضِينَ ﴾ 46 ﴿
वमा तअ’तीहिम मिन आयतिम मिन आयाति रब्बिहिम इल्ला कानू अन्हा मुअ रिजीन
तथा नहीं आती उनके पास कोई निशानी उनके पालनहार की निशानियों में से, परन्तु वे उससे मुँह फेर लेते हैं।
وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ أَنفِقُوا مِمَّا رَزَقَكُمُ اللَّـهُ قَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلَّذِينَ آمَنُوا أَنُطْعِمُ مَن لَّوْ يَشَاءُ اللَّـهُ أَطْعَمَهُ إِنْ أَنتُمْ إِلَّا فِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ ﴾ 47 ﴿
व इज़ा कीला लहुम अन्फिकू मिम्मा रजका कुमुल लाहु क़ालल लज़ीना कफरू लिल लज़ीना आमनू अनुत इमू मल लौ यशाऊल लाहू अत अमह इन अन्तुम इल्ला फ़ी ज़लालिम मुबीन
तथा जब उनसे कहा जाता है कि दान करो उसमें से, जो प्रदान किया है अल्लाह ने तुम्हें, तो कहते हैं जो काफ़िर हो गये उनसे, जो ईमान लाये हैं: क्या हम उसे खाना खिलायें, जिसे यदि अल्लाह चाहे, तो खिला सकता है? तुमतो खुले कुपथ में हो।
وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَـٰذَا الْوَعْدُ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ ﴾ 48 ﴿
व यकूलूना मता हाज़ल व’अदू इन कुनतुम सादिक़ीन
और वे कहते हैं कि कब ये (प्रलय) का वचन पूरा होगा, यदि तुम सत्यवादी हो?
مَا يَنظُرُونَ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً تَأْخُذُهُمْ وَهُمْ يَخِصِّمُونَ ﴾ 49 ﴿
मा यन ज़ुरूना इल्ला सैहतव व़ाहिदतन तअ खुज़ुहुम वहुम यखिस सिमून
वह नहीं प्रतीक्षा कर रहे हैं, परन्तु एक कड़ी ध्वनि[1] की, जो उन्हें पकड़ लेगी और वह झगड़ रहे होंगे। 1. इस से अभिप्राय प्रथम सूर है जिस में फूंकते ही अल्लाह के सिवा सब विलय हो जायेंगे।
فَلَا يَسْتَطِيعُونَ تَوْصِيَةً وَلَا إِلَىٰ أَهْلِهِمْ يَرْجِعُونَ ﴾ 50 ﴿
फला यस्ता तीऊना तौ सियतव वला इला अहलिहिम यरजिऊन
तो न वह कोई वसिय्यत कर सकेंगे और न अपने परिजनों में वापस आ सकेंगे।
وَنُفِخَ فِي الصُّورِ فَإِذَا هُم مِّنَ الْأَجْدَاثِ إِلَىٰ رَبِّهِمْ يَنسِلُونَ ﴾ 51 ﴿
व नुफ़िखा फिस सूरि फ़इज़ा हुम मिनल अज्दासि इला रब्बिहिम यन्सिलून
तथा फूँका[1] जायेगा सूर (नरसिंघा) में, तो वह सहसा समाधियों से अपने पालनहार की ओर भागते हुए चलने लगेंगे। 1. इस से अभिप्राय दूसरी बार सूर फूँकना है जिस से सभी जीवित हो कर अपनी समाधियों से निकल पड़ेंगे।
قَالُوا يَا وَيْلَنَا مَن بَعَثَنَا مِن مَّرْقَدِنَا ۜ ۗ هَـٰذَا مَا وَعَدَ الرَّحْمَـٰنُ وَصَدَقَ الْمُرْسَلُونَ ﴾ 52 ﴿
कालू या वय्लना मम ब असना मिम मरक़दिना हाज़ा मा व अदर रहमानु व सदकल मुरसलून
वे कहेंगेः हाय हमारा विनाश! किसने हमें जगा दिया हमारे विश्राम गृह से? ये वो है, जिसका वचन दिया था अत्यंत कृपाशील ने तथा सच कहा था रसूलों ने।
إِن كَانَتْ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً فَإِذَا هُمْ جَمِيعٌ لَّدَيْنَا مُحْضَرُونَ ﴾ 53 ﴿
इन कानत इल्ला सयहतव वहिदतन फ़ इज़ा हुम जमीउल लदैना मुहज़रून
नहीं होगी वह, परन्तु एक कड़ी ध्वनि। फिर सहसा वे सबके सब, हमारे समक्ष उपस्थित कर दिये जायेंगे।
فَالْيَوْمَ لَا تُظْلَمُ نَفْسٌ شَيْئًا وَلَا تُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ ﴾ 54 ﴿
फल यौम ला तुज्लमु नफ्सून शय अव वला तुज्ज़व्ना इल्ला बिमा कुंतुम तअ’लमून
तो आज नहीं अत्याचार किया जायेगा किसी प्राणी पर कुछ और तुम्हें उसी का प्रतिफल (बदला) दिया जायेगा, जो तुम कर रहे थे।
إِنَّ أَصْحَابَ الْجَنَّةِ الْيَوْمَ فِي شُغُلٍ فَاكِهُونَ ﴾ 55 ﴿
इन्न अस हाबल जन्न्तिल यौमा फ़ी शुगुलिन फाकिहून
वास्तव में, स्वर्गीय आज अपने आनन्द में लगे हुए हैं।
هُمْ وَأَزْوَاجُهُمْ فِي ظِلَالٍ عَلَى الْأَرَائِكِ مُتَّكِئُونَ ﴾ 56 ﴿
हुम व अज्वा जुहूम फ़ी ज़िलालिन अलल अराइकि मुत्तकिऊन
वे तथा उनकी पत्नियाँ सायों में हैं, मस्नदों पर तकिये लगाये हुए।
لَهُمْ فِيهَا فَاكِهَةٌ وَلَهُم مَّا يَدَّعُونَ ﴾ 57 ﴿
लहुम फ़ीहा फाकिहतुव वलहुम मा यद् दऊन
उनके लिए उसमें प्रत्येक प्रकार के फल हैं तथा उनके लिए वो है, जिसकी वे माँग करें।
سَلَامٌ قَوْلًا مِّن رَّبٍّ رَّحِيمٍ ﴾ 58 ﴿
सलामुन कौलम मिर रब्बिर रहीम
(उन्हें) सलाम कहा गया है अति दयावान् पालनहार की ओर से।
وَامْتَازُوا الْيَوْمَ أَيُّهَا الْمُجْرِمُونَ ﴾ 59 ﴿
वम ताज़ुल यौमा अय्युहल मुजरिमून
तथा तुम अलग[1] हो जाओ आज, हे अपराधियो! 1. अर्थात ईमान वालों से।
أَلَمْ أَعْهَدْ إِلَيْكُمْ يَا بَنِي آدَمَ أَن لَّا تَعْبُدُوا الشَّيْطَانَ ۖ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُّبِينٌ ﴾ 60 ﴿
अलम अअ’हद इलैकुम या बनी आदम अल्ला तअ’बुदुश शैतान इन्नहू लकुम अदुववुम मुबीन
हे आदम की संतान! क्या मैंने तुमसे बल देकर नहीं कहा था कि इबादत (वंदना) न करना शैतान की? वास्तव में, वह तुम्हारा खुला शत्रु है। 1. भाष्य के लिये देखियेः सूरह आराफ़, आयतः172
وَأَنِ اعْبُدُونِي ۚ هَـٰذَا صِرَاطٌ مُّسْتَقِيمٌ ﴾ 61 ﴿
व अनिअ बुदूनी हज़ा सिरातुम मुस्तक़ीम
तथा इबादत (वंदना) करना मेरी ही, यही सीधी डगर है।
وَلَقَدْ أَضَلَّ مِنكُمْ جِبِلًّا كَثِيرًا ۖ أَفَلَمْ تَكُونُوا تَعْقِلُونَ ﴾ 62 ﴿
व लक़द अज़ल्ला मिन्कुम जिबिल्लन कसीरा अफलम तकूनू तअकिलून
तथा वह कुपथ कर चुका है, तुममें से बहुत-से समुदायों को, तो क्या तुम समझते नही हो?
هَـٰذِهِ جَهَنَّمُ الَّتِي كُنتُمْ تُوعَدُونَ ﴾ 63 ﴿
हाज़िही जहन्नमुल लती कुन्तुम तूअदून
यही नरक है, जिसका वचन तुम्हें दिया जा रहा था।
اصْلَوْهَا الْيَوْمَ بِمَا كُنتُمْ تَكْفُرُونَ ﴾ 64 ﴿
इस्लौहल यौमा बिमा कुन्तुम तक्फुरून
आज, प्रवेश कर जाओ उसमें, उस कुफ़्र के बदले, जो तुम कर रहे थे।
الْيَوْمَ نَخْتِمُ عَلَىٰ أَفْوَاهِهِمْ وَتُكَلِّمُنَا أَيْدِيهِمْ وَتَشْهَدُ أَرْجُلُهُم بِمَا كَانُوا يَكْسِبُونَ ﴾ 65 ﴿
अल यौमा नाख्तिमु अल अफ्वा हिहिम व तुकल लिमुना अयदीहिम व तशहदू अरजु लुहुम बिमा कानू यक्सिबून
आज, हम मुहर (मुद्रा) लगा देंगे उनके मुखों पर और हमसे बात करेंगे उनके हाथ तथा साक्ष्य (गवाही) देंगे उनके पैर, उनके कर्मों की, जो वे कर रहे थे।[1] 1. यह उस समय होगा जब मिश्रणवादी शपथ लेंगे कि वह मिश्रण (शिर्क) नहीं करते थे। देखियेः सूरह अन्आम, आयतः23
وَلَوْ نَشَاءُ لَطَمَسْنَا عَلَىٰ أَعْيُنِهِمْ فَاسْتَبَقُوا الصِّرَاطَ فَأَنَّىٰ يُبْصِرُونَ ﴾ 66 ﴿
व लौ नशाउ लता मसना अला अअ’युनिहिम फ़स तबकुस सिराता फ अन्ना युबसिरून
और यदि हम चाहते, तो उनकी आँखें अंधी कर देते। फिर वे दौड़ते संगार्ग की ओर, परन्तु कहाँ से देखते?
وَلَوْ نَشَاءُ لَمَسَخْنَاهُمْ عَلَىٰ مَكَانَتِهِمْ فَمَا اسْتَطَاعُوا مُضِيًّا وَلَا يَرْجِعُونَ ﴾ 67 ﴿
व लौ नशाउ ल मसखना हुम अला मका नतिहिम फमस तताऊ मुजिय यौ वला यर जिऊन
और यदि हम चाहते, तो विकृत कर देते उन्हें, उनके स्थान पर, तो न वे आगे जा सकते थे, न पीछे फिर सकते थे।
وَمَن نُّعَمِّرْهُ نُنَكِّسْهُ فِي الْخَلْقِ ۖ أَفَلَا يَعْقِلُونَ ﴾ 68 ﴿
वमन नुअम मिरहु नुनक किसहु फिल खल्क अफला यअ’ किलून
तथा जिसे हम अधिक आयु देते हैं, उसे उत्पत्ति में, प्रथम दशा[1] की ओर फेर देते हैं। तो क्या वे समझते नहीं हैं? 1. अर्थात वह शिशु की तरह़ निर्बल तथा निर्बोध हो जाता है।
وَمَا عَلَّمْنَاهُ الشِّعْرَ وَمَا يَنبَغِي لَهُ ۚ إِنْ هُوَ إِلَّا ذِكْرٌ وَقُرْآنٌ مُّبِينٌ ﴾ 69 ﴿
वमा अल्लम नाहुश शिअ’रा वमा यम्बगी लह इन हुवा इल्ला जिक रुव वकुर आनुम मुबीन
और हमने नहीं सिखाया नबी को काव्य[1] और न ये उनके लिए योग्य है। ये तो मात्र, एक शिक्षा तथा खुला क़ुर्आन है। मक्का के मूर्तिपूजक नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के संबंध में कई प्रकार की बातें कहते थे जिन में यह बात भी थी कि आप कवि हैं। अल्लाह ने इस आयत में इसी का खण्डन किया है।
لِّيُنذِرَ مَن كَانَ حَيًّا وَيَحِقَّ الْقَوْلُ عَلَى الْكَافِرِينَ ﴾ 70 ﴿
लियुन जिरा मन काना हय्यव व यहिक क़ल कौलु अलल काफ़िरीन
ताकि वो सचेत करें, उसे जो जीवित हो[1] तथा सिध्द हो जाये यातना की बात, काफ़िरों पर। 1. जीवित होने का अर्थ अंतरात्मा का जीवित होना और सत्य को समझने के योग्य होना है।
أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّا خَلَقْنَا لَهُم مِّمَّا عَمِلَتْ أَيْدِينَا أَنْعَامًا فَهُمْ لَهَا مَالِكُونَ ﴾ 71 ﴿
अव लम यरव अन्ना खलक्ना लहुम मिम्मा अमिलत अय्दीना अन आमन फहुम लहा मालिकून
क्या मनुष्य ने नहीं देखा कि हमने पैदा किये हैं उनके लिए उसमें से, जिसे बनाया है हमारे हाथों ने चौपाये। तो वे उनके स्वामी हैं?
وَذَلَّلْنَاهَا لَهُمْ فَمِنْهَا رَكُوبُهُمْ وَمِنْهَا يَأْكُلُونَ ﴾ 72 ﴿
व ज़ल लल नाहा लहुम फ मिन्हा रकू बुहुम व मिन्हा यअ’कुलून
तथा हमने वश में कर दिया उन्हें, उनके, तो उनमें से कुछ उनकी सवारी हैं तथा उनमें से कुछ को वे खाते हैं।
وَلَهُمْ فِيهَا مَنَافِعُ وَمَشَارِبُ ۖ أَفَلَا يَشْكُرُونَ ﴾ 73 ﴿
व लहुम फ़ीहा मनाफ़िउ व मशारिबु अफला यश्कुरून
तथा उनके लिए उनमें बहुत-से लाभ तथा पेय हैं। तो क्या (फिर भी) वे कृतज्ञ नहीं होते?
وَاتَّخَذُوا مِن دُونِ اللَّـهِ آلِهَةً لَّعَلَّهُمْ يُنصَرُونَ ﴾ 74 ﴿
वत तखजू मिन दूनिल लाहि आलिहतल लअल्लहुम युन्सरून
और उन्होंने बना लिया अल्लाह के सिवा बहुत-से पूज्य कि संभवतः, वे उनकी सहायता करेंगे।
لَا يَسْتَطِيعُونَ نَصْرَهُمْ وَهُمْ لَهُمْ جُندٌ مُّحْضَرُونَ ﴾ 75 ﴿
ला यस्ता तीऊना नस रहुम वहुम लहुम जुन्दुम मुह्ज़रून
वे स्वयं अपनी सहायता नहीं कर सकेंगे तथा वे उनकी सेना हैं, (यातना) में[1] उपस्थित। 1. अर्थात वह अपने पूज्यों सहित नरक में झोंक दिये जायेंगे।
فَلَا يَحْزُنكَ قَوْلُهُمْ ۘ إِنَّا نَعْلَمُ مَا يُسِرُّونَ وَمَا يُعْلِنُونَ ﴾ 76 ﴿
फला यह्ज़ुन्का क़व्लुहुम इन्ना नअ’लमु मा युसिर रूना वमा युअ’लिनून
अतः, आपको उदासीन न करे उनकी बात। वस्तुतः, हम जानते हैं, जो वे मन में रखते हैं तथा जो बोलते हैं।
أَوَلَمْ يَرَ الْإِنسَانُ أَنَّا خَلَقْنَاهُ مِن نُّطْفَةٍ فَإِذَا هُوَ خَصِيمٌ مُّبِينٌ ﴾ 77 ﴿
अव लम यरल इंसानु अन्ना खलक्नाहू मिन नुत्फ़तिन फ़ इज़ा हुवा खासीमुम मुबीन
और क्या नहीं देखा मनुष्य ने कि पैदा किया हमने उसे वीर्य से? फिर भी वह खुला झगड़ालू है।
وَضَرَبَ لَنَا مَثَلًا وَنَسِيَ خَلْقَهُ ۖ قَالَ مَن يُحْيِي الْعِظَامَ وَهِيَ رَمِيمٌ ﴾ 78 ﴿
व ज़रबा लना मसलव व नसिया खल्कह काला मय युहयिल इजामा व हिय रमीम
और उसने वर्णन किया हमारे लिए एक उदाहरण, और अपनी उत्पत्ति को भूल गया। उसने कहाः कौन जीवित करेगा इन अस्थियों को, जबकि वे जीर्न हो चुकी होंगी?
قُلْ يُحْيِيهَا الَّذِي أَنشَأَهَا أَوَّلَ مَرَّةٍ ۖ وَهُوَ بِكُلِّ خَلْقٍ عَلِيمٌ ﴾ 79 ﴿
कुल युहयीहल लज़ी अनश अहा अव्वला मर्रह वहुवा बिकुलली खल किन अलीम
आप कह दें: वही, जिसने पैदा किया है प्रथम बार और वह प्रत्येक उत्पत्ति को भली-भाँति जानने वाला है।
الَّذِي جَعَلَ لَكُم مِّنَ الشَّجَرِ الْأَخْضَرِ نَارًا فَإِذَا أَنتُم مِّنْهُ تُوقِدُونَ ﴾ 80 ﴿
अल्लज़ी जअला लकुम मिनश शजरिल अख्ज़रि नारन फ़ इज़ा अन्तुम मिन्हु तूकिदून
जिसने बना दी तुम्हारे लिए हरे वृक्ष से अग्नि, तो तुम उससे आग[1] सुलगाते हो। 1. भावार्थ यह है कि जो अल्लाह जल से हरे वृक्ष पैदा करता है फिर उसे सुखा देता है जिस से तुम आग सुलगाते हो, तो क्या वह इसी प्रकार तुम्हारे मरने-गलने के पश्चात् फिर तुम्हें जीवित नहीं कर सकता?
أَوَلَيْسَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِقَادِرٍ عَلَىٰ أَن يَخْلُقَ مِثْلَهُم ۚ بَلَىٰ وَهُوَ الْخَلَّاقُ الْعَلِيمُ ﴾ 81 ﴿
अवा लैसल लज़ी खलक़स समावाती वल अरज़ा बिक़ादिरिन अला य यख्लुक़ा मिस्लहुम बला वहुवल खल्लाकुल अलीम
तथा क्या जिसने आकाशों तथा धरती को पैदा किया है वह सामर्थ्य नहीं रखता इसपर कि पैदा करे उसके समान? क्यों नहीं जबकि वह रचयिता, अति ज्ञाता है?
إِنَّمَا أَمْرُهُ إِذَا أَرَادَ شَيْئًا أَن يَقُولَ لَهُ كُن فَيَكُونُ ﴾ 82 ﴿
इन्नमा अमरुहू इज़ा अरादा शय अन अय यकूला लहू कुन फयकून
उसका आदेश, जब वह किसी चीज़ को अस्तित्व प्रदान करना चाहे, तो बस ये कह देना हैः हो जा। तत्क्षण वह हो जाती है।
فَسُبْحَانَ الَّذِي بِيَدِهِ مَلَكُوتُ كُلِّ شَيْءٍ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ ﴾ 83 ﴿
फसुब हानल लज़ी बियदिही मलकूतु कुल्ली शय इव व इलैहि तुरज उन
तो पवित्र है वह, जिसके हाथ में प्रत्येक वस्तु का राज्य है और तुमसब उसी की ओर फेरे[1] जाओगे। 1. प्रलय के दिन अपने कर्मों का प्रतिकार प्राप्त करने के लिये।