﴾ 1 ﴿ ता, सीन, मीम। ये क़ुर्आन तथा प्रत्यक्ष पुस्तक की आयतें हैं।
﴾ 2 ﴿ मार्गदर्शन तथा शुभ सूचना है, उन ईमान वालों के लिए।
﴾ 3 ﴿ जो नमाज़ की स्थापना करते तथा ज़कात देते हैं और वही हैं, जो अन्तिम दिन (परलोक) पर विश्वास रखते हैं।
﴾ 4 ﴿ वास्तव में, जो विश्वास नहीं करते परलोक पर, हमने शोभनीय बना दिया है उनके कर्मों को, इसलिए वे बहके जा रहे हैं।
﴾ 5 ﴿ यही हैं, जिनके लिए बुरी यातना है तथा परलोक में यही सर्वाधिक क्षतिग्रस्त रहने वाले हैं।
﴾ 6 ﴿ और (हे नबी!) वास्तव में, आपको दिया जा रहा है क़ुर्आन एक तत्वज्ञ, सर्वज्ञ की ओर से।
﴾ 7 ﴿ (याद करो) जब कहा[1] मूसा ने अपने परिजनों सेः मैंने आग देखी है, मैं तुम्हारे पास कोई सूचना लाऊँगा या लाऊँगा आग का कोई अंगार, ताकि तुम तापो।
1. यह उस समय की बात है जब मूसा (अलैहिस्सलाम) मद्यन से आ रहे थे। रात्रि के समय वह मार्ग भूल गये। और शीत से बचाव के लिये आग की आवश्यक्ता थी।
﴾ 8 ﴿ फिर जब आया वहाँ, तो पुकारा गयाः शुभ है वह, जो अग्नि में है और जो उसके आस-पास है और पवित्र है अल्लाह, सर्वलोक का पालनहार।
﴾ 9 ﴿ हे मूसा! ये मैं हूँ, अल्लाह, अति प्रभुत्वशाली, तत्वज्ञ।
﴾ 10 ﴿ और फेंक दे अपनी लाठी, फिर जब उसे देखा कि रेंग रही है, जैसे वह कोई सर्प हो, तो पीठ फेरकर भागा और पीछे फिरकर देखा भी नहीं। (हमने कहाः) हे मूसा! भय न कर, वास्तव में, नहीं भय करते मेरे पास रसूल।
﴾ 11 ﴿ उसके सिवा, जिसने अत्याचार किया हो, फिर जिसने बदल लिया अपना कर्म भलाई से बुराई के पश्चात्, तो निश्चय, मैं अति क्षमि, दयावान् हूँ।
﴾ 12 ﴿ और डाल दे अपना हाथ अपनी जेब में, वह निकलेगा उज्ज्वल होकर बिना किसी रोग के; नौ निशानियों में से है, फ़िरऔन तथा उसकी जाति की ओर (ले जाने के लिए) वास्तव में, वे उल्लंघनकारियों में हैं।
﴾ 13 ﴿ फिर जब आयीं उनके पास हमारी निशानियाँ, आँख खोलने वाली, तो कह दिया कि ये तो खुला जादू है।
﴾ 14 ﴿ तथा उन्होंने नकार दिया उन्हें, अत्याचार तथा अभिमान के कारण, जबकि उनके दिलों ने उनका विश्वास कर लिया, तो देखो कि कैसा रहा उपद्रवियों का परिणाम?
﴾ 15 ﴿ और हमने प्रदान किया दावूद तथा सुलैमान को ज्ञान[1] और दोनों ने कहाः प्रशंसा है, उस अल्लाह के लिए, जिसने हमें प्रधानता दी अपने बहुत-से ईमान वाले भक्तों पर।
1. अर्थात विशेष ज्ञान जो नबूवत का ज्ञान है जैसे मूसा अलैहिस्सलाम को प्रदान किया और इसी प्रकार अन्तिम रसूल मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को इस क़ुर्आन द्वारा प्रदान किया है।
﴾ 16 ﴿ और उत्तराधिकारी हुआ सुलैमान दावूद का तथा उसने कहाः हे लोगो! हमें सिखाई गयी है पक्षियों की बोली तथा हमें प्रदान की गयी है, सब चीज़ से कुछ। वास्तव में, ये प्रत्यक्ष अनुग्रह है।
﴾ 17 ﴿ तथा एकत्र कर दी गयी सुलैमान के लिए उसकी सेनायें; जिन्नों तथा मानवों और पक्षी की और वे व्यवस्थित रखे जाते थे।
﴾ 18 ﴿ यहाँ तक कि वे (एक बार) जब पहुँचे च्युंटियों की घाटी पर, तो एक च्युंटी ने कहाः हे च्युटियो! प्रवेश कर जाओ अपने घरों में, ऐसा न हो कि तुम्हें कुचल दे सुलैमान तथा उसकी सेनायें और उन्हें ज्ञान न हो।
﴾ 19 ﴿ तो वह (सुलैमान) मुस्कुराकर हँस पड़ा उसकी बात पर और कहाः हे मेरे पालनहार! मुझे क्षमता प्रदानकर कि मैं कृतज्ञ रहूँ तेरे उस पुरस्कार का, जो पुरस्कार तूने मुझपर तथा मेरे माता-पिता पर किया है तथा ये कि मैं सदाचार करता रहूँ, जिससे तू प्रसन्न रहे और मुझे प्रवेश दे अपनी दया से, अपने सदाचारी भक्तों में।
﴾ 20 ﴿ और उसने निरीक्षण किया पक्षियों का, तो कहाः क्या बात है कि मैं नहीं देख रहा हूँ हुदहुद को या वह अनुपस्थितों में है?
﴾ 21 ﴿ मैं उसे कड़ी यातना दूँगा या उसे वध कर दूँगा या मेरे पास कोई खुला प्रमाण लाये।
﴾ 22 ﴿ तो कुछ अधिक समय नहीं बीता कि उसने (आकर) कहाः मैंने ऐसी बात का ज्ञान प्राप्त किया है, जो आपके ज्ञान में नहीं आयी है और मैं लाया हूँ, आपके पास “सबा”[1] से एक विश्वसनीय सूचना।
1. सबा यमन का एक नगर है।
﴾ 23 ﴿ मैंने एक स्त्री को पाया, जो उनपर राज्य कर रही है और उसे प्रदान किया गया है कुछ न कुछ प्रत्येक वस्तु से तथा उसके पास एक बड़ा भव्य सिंहासन है।
﴾ 24 ﴿ मैंने उसे तथा उसकी जाति को पाया कि सज्दा करते हैं सूर्य को अल्लाह के सिवा और शोभनीय बना दिया है, उनके लिए शैतान ने उनके कर्मों को और उन्हें रोक दिया है सुपथ से, अतः, वे सुपथ पर नहीं आते।
﴾ 25 ﴿ (शैतान ने शोभनीय बना दिया है उनके लिए) कि उस अल्लाह को सज्दा न करें, जो निकालता है गुप्त वस्तु को[1] आकाशों तथा धरती में तथा जानता है वह सब कुछ, जिसे तुम छुपाते हो तथा जिसे व्यक्त करते हो।
1. अर्थात वर्षा तथा पौधों को।
﴾ 26 ﴿ अल्लाह जिसके अतिरिक्त कोई वंदनीय नहीं, जो महा सिंहासन का स्वामी है।
﴾ 27 ﴿ (सुलैमान ने) कहाः हम देखेंगे कि तू सत्यवादी है अथवा मिथ्यावादियों में से है।
﴾ 28 ﴿ जाओ, ये मेरा पत्र लेकर और इसे डाल दो उनकी ओर, फिर वापस आ जाओ उनके पास से, फिर देखो कि वे क्या उत्तर देते हैं?
﴾ 29 ﴿ उसने कहाः हे प्रमुखो! मेरी ओर एक महत्वपूरण पत्र डाला गया है।
﴾ 30 ﴿ वह सुलैमान की ओर से है और वह अत्यंत कृपाशील दयावान् के नाम से (आरंभ) है।
﴾ 31 ﴿ (उसमें लिखा है) कि तुम मुझपर अभिमान न करो तथा आ जाओ मेरे पास, आज्ञाकारी होकर।
﴾ 32 ﴿ उसने कहाः हे प्रमुखो! मुझे प्रामर्श दो मेरे विषय में, मैं कोई निर्णय करने वाला नहीं हूँ, जब तक तुम उपस्थित न रहो।
﴾ 33 ﴿ सबने उत्तर दिया कि हम शक्तिशाली तथा बड़े याध्दा हैं, आप स्वयं देख लें कि आपको क्या आदेश देना है।
﴾ 34 ﴿ उसने कहाः राजा जब प्रवेश करते हैं, किसी बस्ती में, तो उसे उजाड़ देते हैं और उसके आदरणीय वासियों को अपमानित बना देते हैं और वे ऐसा ही करेंगे।
﴾ 35 ﴿ और मैं भेजने वाली हूँ उनकी ओर एक उपहार, फिर देखती हूँ कि क्या लेकर आते हैं दूत?
﴾ 36 ﴿ तो जब वह (दूत) आया सुलैमान के पास, तो कहाः क्या तुम मेरी सहायता धन से करते हो? मुझे अल्लाह ने जो दिया है, उससे उत्तम है, जो तुम्हें दिया है, बल्कि तुम्हीं अपने उपहार से प्रसन्न हो रहे हो।
﴾ 37 ﴿ वापस हो जाओ उनकी ओर, हम लायेंगे उनके पास ऐसी सेनाएँ, जिनका वे सामना नहीं कर सकेंगे और हम अवश्य उन्हें उस (बस्ती) से निकाल देंगे, अपमानित करके और वे तुच्छ (हीन) होकर रहेंगे।
﴾ 38 ﴿ सुलैमान ने कहाः हे प्रमुखो! तुममें से कौन लायेगा[1] उसका सिंहासन, इससे पहले कि वह आ जाये, आज्ञाकारा होकर।
1. जब सुलैमान ने उपहार वापिस कर दिया और धमकी दी तो रानी ने स्वयं सुलैमान (अलैहिस्सलाम) की सेवा में उपस्थित होना उचित समझा। और उपने सेवकों के साथ फ़लस्तीन के लिये प्रस्थान किया, उस समय उन्हों ने राज्यसदस्यों से यह बात कही।
﴾ 39 ﴿ कहा एक अतिकाय ने, जिन्नों में सेः मैं ला दूँगा, आपके पास उसे, इससे पूर्व कि आप खड़े हों अपने स्थान से और इसपर मुझे शक्ति है, मैं विश्वसनीय हूँ।
﴾ 40 ﴿ कहा उसने, जिसके पास पुस्तक का ज्ञान थाः मैं ले आऊँगा उसे, आपके पास इससे पहले कि आपकी पलक झपके और जब देखा उसने उसे, अपने पास रखा हुआ, तो कहाः ये मेरे पालनहार का अनुग्रह है, ताकि मेरी परीक्षा ले कि मैं कृतज्ञता दिखाता हूँ या कृतघ्नता और जो कृतज्ञ होता है, वह अपने लाभ के लिए होता है तथा जो कृतघ्न हो, तो निश्चय मेरा पालनहार निस्पृह, महान है।
﴾ 41 ﴿ कहाः परिवर्तन कर दो उसके लिए उसके सिंहासन में, हम देखेंगे कि वह उसे पहचान जाती है या उनमें से हो जाती है, जो पहचानते न हों।
﴾ 42 ﴿ तो जब वह आई, तो कहा गयाः क्या ऐसा ही तेरा सिंहासन है? उसने कहाः वह तो मानो वही है और हम तो जान गये थे इससे पहले ही और आज्ञाकारी हो गये थे।
﴾ 43 ﴿ और रोक रखा था उसे (ईमान से) उन (पूज्यों) ने जिनकी वह इबादत ( वंदना) कर रही थी अल्लाह के सिवा। निश्चय वह काफ़िरों की जाति में से थी।
﴾ 44 ﴿ उससे कहा गया कि भवन में प्रवेश कर। तो जब उसे देखा, तो उसे कोई जलाशय (हौद) समझी और खोल दीं[1] अपनी दोनों पिंडलियाँ, (सुलैमान ने) कहाः ये शीशे से निर्मित भवन है। उसने कहाः मेरे पालनहार! मैंने अत्याचार किया अपने प्राण[2] पर और (अब) मैं इस्लाम लाई सुलैमान के साथ अल्लाह सर्वलोक के पालनहार के लिए।
1. पानी से बचाव के लिये कपड़े पाईंचे ऊपर कर लिये। 2. अर्थात अन्य की पूजा-उपासना कर के।
﴾ 45 ﴿ और हमने भेजा समूद की ओर उनके भाई सालेह़ को कि तुम सब इबादत (वंदना) करो अल्लाह की, तो अकस्मात् वे दो गिरोह होकर लड़ने लगे।
﴾ 46 ﴿ उसने कहाः हे मेरी जाति! क्यों तुम शीघ्र चाहते हो बुराई को[1] भलाई से पहले? क्यों तुम क्षमा नहीं माँगते अल्लाह से, ताकि तुमपर दया की जाये?
1. अर्थात ईमान लाने के बजाय इन्कार क्यों कर रहे हो?
﴾ 47 ﴿ उन्होंने कहाः हमने अपशकुन लिया है तुमसे तथा उनसे, जो तेरे साथ हैं। (सालेह़ ने) कहाः तुम्हारा अपशकुन अल्लाह के पास[1] है, बल्कि तुम लोगों की परीक्षा हो रही है।
1. अर्थात तुम पर जो अकाल पड़ा है वह अल्लाह की ओर से है जिसे तुम्हारे कुकर्मों के कारण अल्लाह ने तुम्हारे भाग्य में लिख दिया है। और यह अशुभ मेरे कारण नहीं बल्कि तुम्हारे कुफ़्र के कारण है। (फ़त्ह़ुल क़दीर)
﴾ 48 ﴿ और उस नगर में नौ व्यक्तियों का एक गिरोह था, जो उपद्रव करते थे धरती में और सुधार नहीं करते थे।
﴾ 49 ﴿ उन्होंने कहाः आपस में शपथ लो अल्लाह की कि हम अवश्य रात्रि में छापा मार देंगे सालेह़ तथा उसके परिवार पर, फिर कहेंगे उस (सालेह़) के उत्तराधिकारी से, हम उपस्थित नहीं थे, उसके परिवार के विनाश के समय और निःसंदेह, हम सत्यवादी ( सच्चे) हैं।
﴾ 50 ﴿ और उन्होंने एक षड्यंत्र रचा और हमने भी एक उपाय किया और वे समझ नहीं रहे थे।
﴾ 51 ﴿ तो देखो कैसा रहा उनके षड्यंत्र का परिणाम? हमने विनाश कर दिया उनका तथा उनकी पूरी जाति का।
﴾ 52 ﴿ तो ये उनके घर हैं, उजाड़ पड़े हुए, उनके अत्याचार के कारण, निश्चय इसमें एक बड़ी निशानी है, उन लोगों के लिए, जो ज्ञान रखते हैं।
﴾ 53 ﴿ तथा हमने बचा लिया उन्हे, जो ईमान लाये और (अल्लाह) से डर रहे थे।
﴾ 54 ﴿ तथा लूत को (भेजा), जब उसने अपनी जाति से कहाः क्या तुम कुकर्म कर रहे हो, जबकि तुम[1] आँखें रखते हो?
1. (देखियेः सूरह आराफ़ः84, और सूरह हूदः82-83)। इस्लाम में स्त्री से भी अस्वभाविक संभोग वर्जित है। (सुनन नसाई ह़दीस संख्याः8985, और सुनन इब्ने माजा ह़दीस संख्याः1924)
﴾ 55 ﴿ क्या तुम पुरुषों के पास जाते हो, काम वासना की पूर्ति के लिए? तुम लोग बड़े नासमझ हो।
﴾ 56 ﴿ तो उसकी जाति का उत्तर बस ये था कि उन्होंने कहाः लूत के परिजनों को निकाल दो अपने नगर से, वास्तव में, ये लोग बड़े पवित्र बन रहे हैं।
﴾ 57 ﴿ तो हमने बचा लिया उसे तथा उसके परिवार को, उसकी पत्नी के सिवा, जिसे हमने नियत कर दिया पीछे रह जाने वालों में।
﴾ 58 ﴿ और हमने उनपर बहुत अधिक वर्षा कर दी। तो बुरी हो गयी सावधान किये हुए लोगों की वर्षा।
﴾ 59 ﴿ आप कह दें: सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है और सलाम है उसके उन भक्तों पर, जिन्हें उसने चुन लिया। क्या अल्लाह उत्तम है या वह, जिसे वे साझी बनाते हैं?
﴾ 60 ﴿ ये वो है, जिसने उत्पत्ति की है आकाशों तथा धरती की और उतारा है तुम्हारे लिए आकाश से जल, फिर हमने उगा दिया उसके द्वारा भव्य बाग़, तुम्हारे बस में न था कि उगा देते उसके वृक्ष, तो क्या कोई पूज्य है अल्लाह के साथ? बल्कि यही लोग (सत्य से) कतरा रहे हैं।
﴾ 61 ﴿ या वो है, जिसने धरती को रहने योगय्य बनाया तथा उसके बीच नहरें बनायीं और उसके लिए पर्वत बनाये और बना दी, दो सागरों के बीच एक रोक। तो क्या कोई पूज्य है अल्लाह के साथ? बल्कि उनमें से अधिक्तर ज्ञान नहीं रखते।
﴾ 62 ﴿ या वो है, जो व्याकुल की प्रार्थना सुनता है, जब उसे पुकारे और दूर करता है दुःख तथा तुम्हें बनाता है धरती का अधिकारी, क्या कोई पूज्य है अल्लाह के साथ? तुम बहुत कम ही शिक्षा ग्रहण करते हो।
﴾ 63 ﴿ या वो है, जो तुम्हें राह दिखाता है सूखे तथा सागर के अंधेरों में तथा भेजता है वायुओं को शुभ सूचना देने के लिए अपनी दया (वर्षा) से पहले, क्या कोई और पूज्य है अल्लाह के साथ? उच्च है अल्लाह उस शिर्क से, जो वे कर रहे हैं।
﴾ 64 ﴿ या वो है, जो आरंभ करता है उत्पत्ति का, फिर उसे दुहरायेगा तथा जो तुम्हें जीविका देता है आकाश तथा धरती से, क्या कोई पूज्य है अल्लाह के साथ? आप कह दें कि अपना प्रमाण लाओ, यदि तुम सच्चे[1] हो।
1. आयत संख्या 60 से यहाँ तक का सारांश यह है कि जब अल्लाह ने ही पूरे विश्व की उत्पत्ति की है और सब की व्यवस्था वही कर रहा है, और उस का कोई साझी नहीं तो फिर यह मिथ्या पूज्य अल्लाह के साथ कहाँ से आ गये? यह तो ज्ञान और समझ में आने की बात नहीं और न इस का कोई प्रमाण है।
﴾ 65 ﴿ आप कह दें कि नहीं जानता है, जो आकाशों तथा धरती में है, परोक्ष को अल्लाह के सिवा और वे नहीं जानते कि कब फिर जीवित किये जायेंगे।
﴾ 66 ﴿ बल्कि समाप्त हो गया है उनका ज्ञान आख़िरत (परलोक) के विषय में, बल्कि वे द्विधा में हैं, बल्कि वे उससे अंधे हैं।
﴾ 67 ﴿ और कहा काफ़िरों नेः क्या जब हम हो जायेंगे मिट्टी तथा हमारे पूर्वज, तो क्या हम अवश्य निकाले[1] जायेंगे?
1. अर्थात प्रलय के दिन अपनी समाधियों से जीवित निकाले जायेंगे।
﴾ 68 ﴿ हमें इसका वचन दिया जा चुका है तथा हमारे पूर्वजों को इससे पहले, ये तो बस अगलों की बनायी हुई कथाएँ हैं।
﴾ 69 ﴿ (हे नबी!) आप कह दें कि चलो-फिरो धरती में, फिर देखो कि कैसा हुआ अपराधियों का परिणाम!
﴾ 70 ﴿ और आप शोक न करें उनपर और न किसी संकीर्णता में रहें उससे, जो चालें वे चल रहे हैं।
﴾ 71 ﴿ तथा वे कहते हैं: कब ये धमकी पूरी होगी, यदि तुम सच्चे हो?
﴾ 72 ﴿ आप कह दें: संभव है कि तुम्हारे समीप हो उसमें से कुछ, जिसे तुम शीघ्र चाहते हो।
﴾ 73 ﴿ तथा निःसंदेह, आपका पालनहार बड़ा दयालु है लोगों[1] पर। परन्तु, उनमें से अधिक्तर कृतज्ञ नहीं होते।
1. अर्थात लोगों को अपने अनुग्रह से अवसर देता रहता है।
﴾ 74 ﴿ और वास्तव में, आपका पालनहार जानता है उसे, जो छुपाते हैं उनके दिल तथा जो व्यक्त करते हैं।
﴾ 75 ﴿ और कोई छुपी चीज़ नहीं है आकाश तथा धरती में, परन्तु वह खुली पुस्तक में[1] है।
1. इस से तात्पर्य (लौह़े मह़फ़ूज़) सुरक्षित पुस्तक है जिस में सब कुछ अंकित है।
﴾ 76 ﴿ निःसंदेह, ये क़ुर्आन वर्णन कर रहा है इस्राईल की संतान के समक्ष, उन अधिक्तर बातों को जिनमें वे विभेद कर रहे हैं।
﴾ 77 ﴿ और वास्तव में, वह मार्गदर्शन तथा दया है, ईमान वालों के लिए।
﴾ 78 ﴿ निःसंदेह, आपका पालनहार[1] निर्णय कर देगा उनके बीच अपने आदेश से तथा वही प्रबल, सबकुछ जानने वाला है।
1. अर्थात प्रलय के दिन। और सत्य तथा असत्य को अलग कर के उस का बदला देगा।
﴾ 79 ﴿ अतः, आप भरोसा करें अल्लाह पर, वस्तुतः, आप खुले सत्य पर हैं।
﴾ 80 ﴿ वास्तव में, आप नहीं सुना सकेंगे मुर्दौं को और न सुना सकेंगे बहरों को अपनी पुकार, जब वे भागे जा रहे हों पीठ फेर[1] कर।
1. अर्थात जिन की अंतरात्मा मर चुकी हो, और जिन की दुराग्रह ने सत्य और असत्य का अन्तर समझने की क्षमता खो दी हो।
﴾ 81 ﴿ तथा आप अंधे को मार्गदर्शन नहीं दे सकते उनके कुपथ से, आप तो बस उसी को सुना सकते हैं, जो ईमान रखता हो हमारी आयतों पर, फिर वह आज्ञाकारी हो।
﴾ 82 ﴿ और जब आ जायेगा बात पूरी होने का समय उनके ऊपर[1], तो हम निकालेंगे उनके लिए एक पशु धरती से, जो बात करेगा उनसे[2] कि लोग हमारी आयतों पर विश्वास नहीं करते थे।
1. अर्थात प्रलय होने का समय। 2. यह पशु वही है जो प्रलय के समीप होने का एक लक्षण है जैसा कि ह़दीस में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कथन है कि प्रलय उस समय तक नहीं होगी जब तक तुम दस लक्षण न देख लो, उन में से एक पशु का निकालना है। (देखियेः सह़ीह़ मुस्लिम ह़दीस संख्याः2901) आप का दूसरा कथन यह है कि सर्व प्रथम जो लक्षण होगा वह सूर्य का पश्चिम से निकलना होगा। तथा पूर्वान्ह से पहले पशु का निकलना इन में से जो भी पहले होगा शीघ्र ही दूसरा उस के पश्चात होगा। (देखियेः सह़ीह़ मुस्लिम ह़दीस संख्याः2941) और यह पशु मानव भाषा में बात करेगा जो अल्लाह के सामर्थ्य का एक चिन्ह होगा।
﴾ 83 ﴿ तथा जिस दिन हम घेर लायेंग प्रत्येक समुदाय से एक गिरोह, उनका, जो झुठलाते रहे हमारी आयतों को, फिर वे सब (एकत्र किये जाने के लिए) रोक दिये जायेंगे।
﴾ 84 ﴿ यहाँतक कि जब सब आ जायेंगे, तो अल्लाह उनसे कहेगाः क्या तुमने मेरी आयतों को झुठला दिया, जबकि तुमने उनका पूरा ज्ञान नहीं किया, अन्यथा तुम और क्या कर रहे थे?
﴾ 85 ﴿ और सिध्द हो जायेगा यातना का वचन, उनके ऊपर, उनके अत्याचार के कारण। तब वे बात नहीं कर सकेंगे।
﴾ 86 ﴿ क्या उन्होंने नहीं दखा कि हमने रात बनाई, ताकि वे शान्त रहें उसमें तथा दिन को दिखाने वाला[1]। वास्तव में, इसमें बड़ी निशानियाँ (लक्षण) हैं, उन लोगों के लिए, जो ईमान लाते हैं।
1. जिस के प्रकाश में वह देखें और अपनी जीविका के लिये प्रयास करें।
﴾ 87 ﴿ और जिस दिन फूँका जायेगा[1] सूर (नरसिंघा) में, तो घबरा जायेंगे वे, जो आकाशों तथा धरती में हैं। परन्तु वह, जिसे अल्लाह चाहे तथा सब उस (अल्लाह) के समक्ष आ जायेंगे, विवश होकर।
1. अर्थात प्रलय के दिन।
﴾ 88 ﴿ और तुम देखते हो पर्वतों को, तो उन्हें समझते हो स्थिर (अचल) हैं, जबकि वे उस दिन उड़ेंगे बादल के समान, ये अल्लाह की रचना है, जिसने सुदृढ़ किया है प्रत्येक चीज़ को, निश्चय वह भली-भाँति सूचित है उससे, जो तुम कर रहे हो।
﴾ 89 ﴿ जो भलाई[1] लायेगा, तो उसके लिए उससे उत्तम (प्रतिफल) है और वह उस दिन की व्यग्रता से निर्भय रहने वाले होंगे।
1. अर्थात एक अल्लाह के प्रति आस्था तथा तदानुसार कर्म ले कर प्रलय के दिन आयेगा।
﴾ 90 ﴿ और जो बुराई लायेगा, तो वही झोंक दिये जायेंगे औंधे मुँह नरक में, (तथा कहा जायेगाः) तुम्हें वही बदला दिया जा रहा है, जो तुम करते रहे हो।
﴾ 91 ﴿ मुझे तो बस यही आदेश दिया गया है कि इस नगर (मक्का) के पालनहार की इबादत (वंदना) करूँ, जिसने इसे आदरणीय बनाया है तथा उसी के अधिकार में है प्रत्येक चीज़ और मुझे आदेश दिया गया है कि आज्ञाकारियों में रहूँ।
﴾ 92 ﴿ तथा क़ुर्आन पढ़ता रहूँ, तो जिसने सुपथ अपनाया, तो वह अपने ही लाभ के लिए सुपथ अपनायेगा और जो कुपथ हो जाये, तो आप कह दें कि वास्तव में, मैं तो बस सावधान करने वालों में से हूँ।
﴾ 93 ﴿ तथा आप कह दें कि सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, वह शीघ्र तुम्हें दिखा देगा अपनी निशानियाँ, जिन्हें तुम पहचान[1] लोगे और तुम्हारा पालनहार उससे अचेत नहीं है, जो कुछ तुम कर रहे हो।
1. (देखियेः सूरह ह़ा, मीम, सज्दा, आयतः53)