सूरह अल-हज | Surah Hajj Hindi Translation
بِسْمِ اللَّـهِ الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ
बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम
अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُوا رَبَّكُمْ ۚ إِنَّ زَلْزَلَةَ السَّاعَةِ شَيْءٌ عَظِيمٌ ﴾ 1 ﴿
या अय्युहन्नासुत्तकू रब्बकुम् इन् – न जल्ज़ लतस्सा – अति शैउन् अ़ज़ीम
हे मनुष्यो! अपने पालनहार से डरो, वास्तव में, क़्यामत (प्रलय) का भूकम्प बड़ा ही घोर विषय है।
يَوْمَ تَرَوْنَهَا تَذْهَلُ كُلُّ مُرْضِعَةٍ عَمَّا أَرْضَعَتْ وَتَضَعُ كُلُّ ذَاتِ حَمْلٍ حَمْلَهَا وَتَرَى النَّاسَ سُكَارَىٰ وَمَا هُم بِسُكَارَىٰ وَلَٰكِنَّ عَذَابَ اللَّهِ شَدِيدٌ ﴾ 2 ﴿
यौ – म तरौनहा तज़्हलु कुल्लु मुर्जि – अ़तिन् अ़म्मा – अरज़ – अ़त् व त – ज़ अु कुल्लु ज़ाति – हम्लिन् हम्लहा व तरन्ना – स सुकारा व मा हुम् बिसुकारा व लाकिन् – न अ़ज़ाबल्लाहि शदीद
जिस दिन, तुम उसे देखोगे, सुध न होगी प्रत्येक दूध पिलाने वाली को अपने दूध पीते शिशु की और गिरा देगी प्रत्येक गर्भवती अपना गर्भ तथा तुम देखोगे लोगों को मतवाले, जबकि वे मतवाले नहीं होंगे, परन्तु अल्लाह की यातना बहुत कड़ी[1] होगी। 1. नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया कि अल्लाह प्रलय के दिन कहेगाः हे आदम! वह कहेंगेः मैं उपस्थित हूँ। फिर पुकारा जायेगा कि अल्लाह आदेश देता है कि अपनी संतान में से नरक में भेजने के लिये निकालो। वह कहेंगेः कितने? वह कहेगाः हज़ार में से नौ सो निन्नानवे। तो उसी समय गर्भवती अपना गर्भ गिरा देगी और शिशु के बाल सफ़ेद हो जायेंगे। और तुम लोगों को मतवाले समझोगे। जब कि वे मतवाले नहीं होंगे किन्तु अल्लाह की यातना कड़ी होगी। यह बात लोगों को भारी लगी और उन के चेहरे बदल गये। तब आप ने कहाः याजूज और माजूज में से नौ सौ निन्नानवे होंगे और तुम में एक। (संक्षिप्त ह़दीस, बुख़ारीः4741)
وَمِنَ النَّاسِ مَن يُجَادِلُ فِي اللَّهِ بِغَيْرِ عِلْمٍ وَيَتَّبِعُ كُلَّ شَيْطَانٍ مَّرِيدٍ ﴾ 3 ﴿
व मिनन्नासि मंय्युजादिलु फ़िल्लाहि बिग़ैरि अिल्मिंव् – व यत्तबिअु कुल् – ल शैतानिम् – मरीदव मिनन्नासि मंय्युजादिलु फ़िल्लाहि बिग़ैरि अिल्मिंव् – व यत्तबिअु कुल् – ल शैतानिम् – मरीद
और कुछ लोग विवाद करते हैं, अल्लाह के विषय में, बिना किसी ज्ञान के तथा अनुसरण करते हैं प्रत्येक उध्दत शैतान का।
كُتِبَ عَلَيْهِ أَنَّهُ مَن تَوَلَّاهُ فَأَنَّهُ يُضِلُّهُ وَيَهْدِيهِ إِلَىٰ عَذَابِ السَّعِيرِ ﴾ 4 ﴿
कुति – ब अ़लैहि अन्नहू मन् तवल्लाहु फ़ – अन्नहू युज़िल्लुहू व यह्दीहि इला अ़ज़ाबिस्स ईरकुति – ब अ़लैहि अन्नहू मन् तवल्लाहु फ़ – अन्नहू युज़िल्लुहू व यह्दीहि इला अ़ज़ाबिस्स ईर
जिसके भाग में लिख दिया गया है कि जो उसे मित्र बनायेगा, वह उसे कुपथ कर देगा और उसे राह दिखायेगा नरक की यातना की ओर।
يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِن كُنتُمْ فِي رَيْبٍ مِّنَ الْبَعْثِ فَإِنَّا خَلَقْنَاكُم مِّن تُرَابٍ ثُمَّ مِن نُّطْفَةٍ ثُمَّ مِنْ عَلَقَةٍ ثُمَّ مِن مُّضْغَةٍ مُّخَلَّقَةٍ وَغَيْرِ مُخَلَّقَةٍ لِّنُبَيِّنَ لَكُمْ ۚ وَنُقِرُّ فِي الْأَرْحَامِ مَا نَشَاءُ إِلَىٰ أَجَلٍ مُّسَمًّى ثُمَّ نُخْرِجُكُمْ طِفْلًا ثُمَّ لِتَبْلُغُوا أَشُدَّكُمْ ۖ وَمِنكُم مَّن يُتَوَفَّىٰ وَمِنكُم مَّن يُرَدُّ إِلَىٰ أَرْذَلِ الْعُمُرِ لِكَيْلَا يَعْلَمَ مِن بَعْدِ عِلْمٍ شَيْئًا ۚ وَتَرَى الْأَرْضَ هَامِدَةً فَإِذَا أَنزَلْنَا عَلَيْهَا الْمَاءَ اهْتَزَّتْ وَرَبَتْ وَأَنبَتَتْ مِن كُلِّ زَوْجٍ بَهِيجٍ ﴾ 5 ﴿
या अय्युहन्नासु इन् कुन्तुम् फी रैबिम् मिनल – बअ्सि फ़ -इन्ना ख़लक़्नाकुम् मिन् तुराबिन् सुम् – म मिन् नुत्फ़तिन् सुम् – म मिन् अ – ल – क़तिन् सुम् – म मिम् मुज् – ग़तिम् मुख़ल्ल – क़तिंव् – व ग़ैरि मुख़ल्ल – क़तिल लिनुबय्यि – न लकुम्, व नुकिरू फिल् अरहामि मा नशा – उ इला अ – जलिम् – मुसम्मन् सुम् – म नुखरिजुकुम् तिफ़्लन् सुम्म लितब्लुगू अशुद्दकुम् व मिन्कुम् मंय्यु – तवफ़्फा व मिन्कुम् मंय्युरद्दु इला अरज़लिल् -अुमुरि लिकैला यअ्ल – म मिम् – बअ्दि अिल्मिन् शैअन्, व तरल् अर्-ज़ हामि-दतन् फ़-इज़ा अन्ज़ल्ना अ़लैहल् मा – अह्तज़्ज़त् व रबत् व अम्ब – तत् मिन् कुल्लि ज़ौजिम् बहीज
हे लोगो! यदि तुम किसी संदेह में हो, पुनः जीवित होने के विषय में, तो (सोचो कि) हमने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर वीर्य से, फिर रक्त के थक्के से, फिर मांस के खण्ड से, जो चित्रित तथा चित्र विहीन होता है[1], ताकि हम उजागर कर[2] दें तुम्हारे लिए और स्थिर रखते हैं गर्भाशयों में जब तक चाहें; एक निर्धारित अवधि तक, फिर तुम्हें निकालते हैं शिशु बनाकर, फिर ताकि तुम पहुँचों अपने योवन को और तुममें से कुछ, पहले ही मर जाते हैं और तुममें से कुछ, जीर्ण आयु की ओर फेर दिये जाते हैं ताकि उसे कुछ ज्ञान न रह जाये, ज्ञान के पश्चात् तथा तुम देखते हो धरती को सूखी, फिर जब, हम उसपर जल-वर्षा करते हैं, तो सहसा लहलहाने और उभरने लगी तथा उगा देती है प्रत्येक प्रकार की सुदृश्य वनस्पतियाँ। 1. अर्थात यह वीर्य चालीस दिन के बाद गाढ़ी रक्त बन जाता है। फिर गोश्त का लोथड़ा बन जाता है। फिर उस से सह़ीह़ सलामत बच्चा बन जाता है। और ऐसे बच्चे में जान फूँक दी जाती है। और अपने समय पर उस की पैदाइश हो जाती है। और -अल्लाह की इच्छा से- कभी कुछ कारणों फलस्वरूप ऐसा भी होता है कि खून का वह लोथड़ा अपना सह़ीह़ रूप नहीं धार पाता। और उस में रूह़ भी नहीं फूँकी जाती। और वह अपने पैदाइश के समय से पहले ही गिर जाता है। सह़ीह़ ह़दीसों में भी माँ के पेट में बच्चे की पैदाइश की इन अवस्थाओं की चर्चा मिलती है। उदाहरण स्वरूप, एक ह़दीस में है कि वीर्य चालीस दिन के बाद गाढ़ी खून बन जाता है। फिर चालीस दिन के बाद लोथड़ा अथवा गोश्त की बोटी बन जाता है। फिर अल्लाह की ओर से एक फ़रिश्ता चार शब्द ले कर आता हैः वह संसार में क्या काम करेगा, उस की आयु कितनी होगी, उस को क्या और कितनी जीविका मिलेगी और वह शुभ होगा अथवा अशुभ। फिर वह उस में जान डाल देता है। (देखियेः सह़ीह़ बुख़ारीः 3332) अर्थात चार महीने के बाद उस में जान डाली जाती है। और बच्चा एक सह़ीह़ रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार आज जिस को वैज्ञानिकों ने बहुत दौड़ धूप के बाद सिध्द किया है उस को क़ुर्आन ने चौदह सौ साल पूर्व ही बता दिया था। यह इस बात का प्रमाण है कि यह किताब (क़ुर्आन) किसी मानव की बनाई हुई नहीं है, बल्कि अल्लाह की ओर से है। 2. अर्थात् अपनी शक्ति तथा सामर्थ्य को।
ذَٰلِكَ بِأَنَّ اللَّهَ هُوَ الْحَقُّ وَأَنَّهُ يُحْيِي الْمَوْتَىٰ وَأَنَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ ﴾ 6 ﴿
ज़ालि-क बिअन्नल्ला-ह हुवल्-हक़्कु व अन्नहू युह़्यिल्-मौता व अन्नहू अ़ला कुल्लि शैइन् क़दीर
ये इसलिए है कि अल्लाह ही सत्य है तथा वही जीवित करता है मुर्दों को तथा वास्तव में, वह जो चाहे, कर सकता है।
وَأَنَّ السَّاعَةَ آتِيَةٌ لَّا رَيْبَ فِيهَا وَأَنَّ اللَّهَ يَبْعَثُ مَن فِي الْقُبُورِ ﴾ 7 ﴿
व अन्नस्सा-अ़-त आति-यतुल्-ला रै-ब फ़ीहा व अन्नल्ला-ह यब् अ़सु मन फ़िल्कुबूर
ये इस कारण है कि क़्यामत (प्रलय) अवश्य आनी है, जिसमें कोई संदेग नहीं और अल्लाह ही उन्हें पुनः जीवित करेगा, जो समाधियों (क़ब्रों) में हैं।
وَمِنَ النَّاسِ مَن يُجَادِلُ فِي اللَّهِ بِغَيْرِ عِلْمٍ وَلَا هُدًى وَلَا كِتَابٍ مُّنِيرٍ ﴾ 8 ﴿
व मिनन्नासि मंय्युजादिलु फ़िल्लाहि बिग़ैरि अिल्मिंव- व ला हुदंव्-व ला किताबिम्-मुनीर
तथा लोगों में वह (भी) है, जो विवाद करता है अल्लाह के विषय में बिना किसी ज्ञान और मार्गदर्शन एवं बिना किसी ज्योतिमय पुस्तक के।
ثَانِيَ عِطْفِهِ لِيُضِلَّ عَن سَبِيلِ اللَّهِ ۖ لَهُ فِي الدُّنْيَا خِزْيٌ ۖ وَنُذِيقُهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ عَذَابَ الْحَرِيقِ ﴾ 9 ﴿
सानि-य अित्फ़िही लियुज़िल्-ल अन् सबीलिल्लाहि, लहू फिद्दुन्या ख़िज्युंव- व नुज़ीकुहू यौमल कियामति अ़ज़ाबल-हरीक़
अपना पहलू फेरकर ताकि अल्लाह की राह[1] से कुपथ कर दे। उसी के लिए संसार में अपमान है और हम उसे प्रलय के दिन दहन की यातना चखायेंगे। 1. अर्थात अभीमान करते हुये।
ذَٰلِكَ بِمَا قَدَّمَتْ يَدَاكَ وَأَنَّ اللَّهَ لَيْسَ بِظَلَّامٍ لِّلْعَبِيدِ ﴾ 10 ﴿
ज़ालि- क बिमा कद्द-मत् यदा-क व अन्नल्ला-ह लै-स बिज़ल्लामिल लिल्अ़बीद *
ये उन कर्मों का परिणाम है, जिन्हें तेरे हाथों ने आगे भेजा है और अल्लाह अत्याचारी नहीं है (अपने) भक्तों के लिए।
وَمِنَ النَّاسِ مَن يَعْبُدُ اللَّهَ عَلَىٰ حَرْفٍ ۖ فَإِنْ أَصَابَهُ خَيْرٌ اطْمَأَنَّ بِهِ ۖ وَإِنْ أَصَابَتْهُ فِتْنَةٌ انقَلَبَ عَلَىٰ وَجْهِهِ خَسِرَ الدُّنْيَا وَالْآخِرَةَ ۚ ذَٰلِكَ هُوَ الْخُسْرَانُ الْمُبِينُ ﴾ 11 ﴿
व मिनन्नासि मंय्य अ्बुदुल्ला-ह अ़ला हरफिन् फ-इन् असा – बहू ख़ैरू नित्म अन् न बिही व इन् असाबत्हु फ़ितनतु – निन्क़ – ल – ब अ़ला वज्हिही, ख़सिरद् दुन्या वल्आख़िर-त, ज़ालि-क हुवल खुस्रानुल मुबीन
तथा लोगों में वह (भी) है जो इबादत (वंदना) करता है अल्लाह की, एक किनारे पर होकर[1] , फिर यदि उसे कोई लाभ पहुँचता है, तो वह संतोष हो जाता है और यदि उसे कोई परीक्षा आ लगे, तो मुँह के बल फिर जाता है। वह क्षति में पड़ गया लोक तथा परलोक की और यही खुली क्षति है। 1. अर्थात संदिग्ध हो कर।
يَدْعُو مِن دُونِ اللَّهِ مَا لَا يَضُرُّهُ وَمَا لَا يَنفَعُهُ ۚ ذَٰلِكَ هُوَ الضَّلَالُ الْبَعِيدُ ﴾ 12 ﴿
यद्अूमिन् दूनिल्लाहि मा ला यजुर्रुहू व मा ला यन्फअहू, ज़ालि- क हुवज़्ज़लालुल – बईद
वह पुकारता है अल्लाह के अतिरिक्त उसे, जो न हानि पहुँचा सके उसे और न लाभ, यही दूर[1] का कुपथ है। 1. अर्थात कोई दुःख होने पर अल्लाह के सिवा दूसरों को पुकारना।
يَدْعُو لَمَن ضَرُّهُ أَقْرَبُ مِن نَّفْعِهِ ۚ لَبِئْسَ الْمَوْلَىٰ وَلَبِئْسَ الْعَشِيرُ ﴾ 13 ﴿
यद्अू ल – मन् ज़र्रूहू अक़रबु मिन् नफ़अिही, लबिअ्सल्- मौला व लबिअ्सल्- अ़शीर
वह उसे पुकारता है, जिसकी हानि अधिक समीप है उसके लाभ से, वास्तव में, वह बुरा संरक्षक तथा बुरा साथी है।
إِنَّ اللَّهَ يُدْخِلُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ ۚ إِنَّ اللَّهَ يَفْعَلُ مَا يُرِيدُ ﴾ 14 ﴿
इन्नल्ला-ह युद्खिलुल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति जन्नातिन् तज्री मिन् तह्तिहल – अन्हारू, इन्नल्ला-ह यफ़अलु मा युरीद
निश्चय अल्लाह उन्हें प्रवेश देगा, जो ईमान लाये तथा सत्कर्म किये, ऐसे स्वर्गों में, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं। वास्तव में, अल्लाह करता है, जो चाहता है।
مَن كَانَ يَظُنُّ أَن لَّن يَنصُرَهُ اللَّهُ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ فَلْيَمْدُدْ بِسَبَبٍ إِلَى السَّمَاءِ ثُمَّ لْيَقْطَعْ فَلْيَنظُرْ هَلْ يُذْهِبَنَّ كَيْدُهُ مَا يَغِيظُ ﴾ 15 ﴿
मन् का-न यजुन्नु अल्लंय्यन्सु – रहुल्लाहु फ़िद्दुन्या वल्-आख़िरति फ़ल्यम्दुद् बि-स-बबिन् इलस्समा-इ सुम्मल्-यक्त फ़ल्यन्जुर् हल् युज्हिबन्-न कैदुहू मा यगीज़
जो सोचता है कि उस[1] की सहायता नहीं करेगा अल्लाह लोक तथा प्रलोक में, तो उसे चाहिए कि तान ले कोई रस्सी आकाश की ओर, फिर फाँसी देकर मर जाये। फिर देखे कि क्या दूर कर देती है उसका उपाय, उसके रोष (क्रोध)[2] को? 3. अर्थात अपने रसूल की। 2. अर्थ यह है कि अल्लाह अपने नबी की सहायता अवश्य करेगा।
وَكَذَٰلِكَ أَنزَلْنَاهُ آيَاتٍ بَيِّنَاتٍ وَأَنَّ اللَّهَ يَهْدِي مَن يُرِيدُ ﴾ 16 ﴿
व कज़ालि-क अन्ज़ल्नाहु आयातिम्-बय्यिनातिंव्-व अन्नल्ला ह यह्दी मंय्युरीद
तथा इसी प्रकार हमने इस (क़ुर्आन) को खुली आयतों में अवतरित किया है और अल्लाह सुपथ दर्शा देता है, जिसे चाहता है।
إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَالَّذِينَ هَادُوا وَالصَّابِئِينَ وَالنَّصَارَىٰ وَالْمَجُوسَ وَالَّذِينَ أَشْرَكُوا إِنَّ اللَّهَ يَفْصِلُ بَيْنَهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ ﴾ 17 ﴿
इन्नल्लज़ी-न आमनू वल्लज़ी-न हादू वस्साबिई-न वन्नसारा वल्मजू-स वल्लज़ी-न अश्रकू इन्नल्ला-ह यफ़्सिलु बैनहुम् यौमल् कियामति, इन्नल्ला-ह अ़ला कुल्लि शैइन्, शहीद
जो ईमान लाये, जो यहूदी हुए, जो साबी तथा ईसाई हैं, जो मजूसी हैं तथा जिन्होंने शिर्क किया है, अल्लाह निर्णय[1] कर देगा उनके बीच प्रलय के दिन। निश्चय अल्लाह प्रत्येक वस्तु पर साक्षी है। 1. अर्थात प्रत्येक को अपने कर्म की वास्तविक्ता का ज्ञान हो जायेगा।
أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ يَسْجُدُ لَهُ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَمَن فِي الْأَرْضِ وَالشَّمْسُ وَالْقَمَرُ وَالنُّجُومُ وَالْجِبَالُ وَالشَّجَرُ وَالدَّوَابُّ وَكَثِيرٌ مِّنَ النَّاسِ ۖ وَكَثِيرٌ حَقَّ عَلَيْهِ الْعَذَابُ ۗ وَمَن يُهِنِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِن مُّكْرِمٍ ۚ إِنَّ اللَّهَ يَفْعَلُ مَا يَشَاءُ ۩ ﴾ 18 ﴿
अलम् त – र अन्नल्ला – ह यस्जुदु लहू मन् फ़िस्समावाति व मन् फ़िल्अर्ज़ि वश्शम्सु वल्क़ – मरू वन्नुजूमु वल्जिबालु वश्श-जरू वद्दवाब्बु व कसीरूम मिनन्-नासि, व कसीरून् हक् – क़ अलैहिल – अ़ज़ाबु, व मंय्युहिनिल्लाहु फ़मा लहू मिम्-मुक्रिमिन्, इन्नल्ला-ह यफ्अलु मा यशा-उ *सज़्दा*
(हे नबी!) क्या आप नहीं जानते कि अल्लाह ही को सज्दा[1] करते हैं, जो आकाशों तथा धरती में हैं, सूर्य और चाँद, तारे और पर्वत, वृक्ष और पशु, बहुत-से मनुष्य और बहुत-से वे भी हैं, जिनपर यातना सिध्द हो चुकी है। और जिसे अल्लाह अपमानित कर दे, उसे कोई सम्मान देने वाला नहीं है। निःसंदेह अल्लाह करता है, जो चाहता है। 1. इस आयत में यह बताया जा रहा है कि अल्लाह ही अकेला पूज्य है, उस का कोई साझी नहीं। क्यों कि इस विश्व की सभी उत्पत्ति उसी के आगे झुक रही है और बहुत से मनुष्य भी उस के आज्ञाकारी हो कर उसी को सज्दा कर रहे हैं। अतः तुम भी उस के आज्ञाकारी हो कर उसी के आगे झुको। क्यों कि उस की अवैज्ञा यातना को अनिवार्य कर देती है। और ऐसे व्यक्ति को अपमान के सिवा कुछ हाथ नहीं आयेगा।
هَٰذَانِ خَصْمَانِ اخْتَصَمُوا فِي رَبِّهِمْ ۖ فَالَّذِينَ كَفَرُوا قُطِّعَتْ لَهُمْ ثِيَابٌ مِّن نَّارٍ يُصَبُّ مِن فَوْقِ رُءُوسِهِمُ الْحَمِيمُ ﴾ 19 ﴿
हाज़ानि ख़स्मानिख़्त समू फ़ी रब्बिहिम्, फ़ल्लज़ी-न क-फरू कुत्तिअ़त् लहुम् सियाबुम् – मिन् नारिन्, युसब्बु मिन् फ़ौकि-रूऊसिहिमुल- हमीम
ये दो पक्ष हैं, जिन्होंने विभेद किया[1] अपने पालनहार के विषय में, तो इनमें से काफ़िरों के लिए ब्योंत दिये गये हैं अग्नि के वस्त्र, उनके सिरों पर धारा बहायी जायेगी खोलते हुए पानी की। 1. अर्थात संसार में कितने ही धर्म क्यों न हों वास्तव में दो ही पक्ष हैं: एक सत्धर्म का विरोधी और दूसरा सत्धर्म का अनुयायी, अर्थात काफ़िर और मोमिन। और प्रत्येक का परिणाम बताया जा रहा है।
يُصْهَرُ بِهِ مَا فِي بُطُونِهِمْ وَالْجُلُودُ ﴾ 20 ﴿
युस्हरू बिही मा फी बुतूनिहिम् वल्जुलूद
जिससे गला दी जायेँगी उनके पेटों के भीतर की वस्तुएँ और उनकी खालें।
وَلَهُم مَّقَامِعُ مِنْ حَدِيدٍ ﴾ 21 ﴿
व लहुम् मक़ामिअु मिन् हदीद
और उन्हीं के लिए लोहे के आँकुश हैं।
كُلَّمَا أَرَادُوا أَن يَخْرُجُوا مِنْهَا مِنْ غَمٍّ أُعِيدُوا فِيهَا وَذُوقُوا عَذَابَ الْحَرِيقِ ﴾ 22 ﴿
कुल्लमा अरादू अंय्यख़रूजू मिन्हा मिन् ग़म्मिन् उईदू फ़ीहा, व जूकू अ़ज़ाबल – हरीक़*
जबभी उस (अग्नि) से निकलना चाहेंगे व्याकूल होकर, तो उसीमें फेर दिये जायेंगे तथा (कहा जायेगा कि) दहन की यातना चखो।
إِنَّ اللَّهَ يُدْخِلُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ يُحَلَّوْنَ فِيهَا مِنْ أَسَاوِرَ مِن ذَهَبٍ وَلُؤْلُؤًا ۖ وَلِبَاسُهُمْ فِيهَا حَرِيرٌ ﴾ 23 ﴿
इन्नल्ला – ह युद्खिलुल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस् – सालिहाति जन्नातिन् तज्री मिन् तह्तिहल् – अन्हारू युहल्लौ-न फ़ीहा मिन् असावि-र मिन् ज़ – हबिंव् व लुअ्लुअन्, व लिबासुहुम् फ़ीहा हरीर
निश्चय अल्लाह प्रवेश देगा उन्हें, जो ईमान लाये तथा सत्कर्म किये, ऐसे स्वर्गों में, जिनमें नहरें प्रवाहित होंगी, उनमें उन्हें सोने के कंगन पहनाये जायेंगे तथा मोती और उनका वस्त्र उसमें रेशम का होगा।
وَهُدُوا إِلَى الطَّيِّبِ مِنَ الْقَوْلِ وَهُدُوا إِلَىٰ صِرَاطِ الْحَمِيدِ ﴾ 24 ﴿
व हुदू इलत्तय्यिबि मिनल् – कौलि व हुदू इला सिरातिल् – हमीद
तथा उन्हें मार्ग दर्शा दिया गया पवित्र बात[1] का और उन्हें दर्शा दिया गया प्रशंसित (अल्लाह) का[2] मार्ग। 1. अर्थात स्वर्ग का, जहाँ पवित्र बातें ही होंगी, वहाँ व्यर्थ पाप की बातें नहीं होंगी। 2. अर्थात संसार में इस्लाम तथा क़ुर्आन का मार्ग।
الَّذِينَ كَفَرُوا وَيَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ اللَّهِ وَالْمَسْجِدِ الْحَرَامِ الَّذِي جَعَلْنَاهُ لِلنَّاسِ سَوَاءً الْعَاكِفُ فِيهِ وَالْبَادِ ۚ وَمَن يُرِدْ فِيهِ بِإِلْحَادٍ بِظُلْمٍ نُّذِقْهُ مِنْ عَذَابٍ أَلِيمٍ ﴾ 25 ﴿
इन्नल्लज़ी -न क-फ़रू व यसुद्दू -न अ़न् सबीलिल्लाहि वल्मस्जिदिल् हरामिल्लज़ी जअ़ल्नाहु लिन्नासि सवा-अ-निल्-आ़किफु फ़ीहि वल्बादि, व मंय्युरिद् फ़ीहि बिअल्लाहइल्हादिम्-बिजुल्मिन् नुज़िक़्हु मिन् अ़ज़ाबिन् अलीम*
जो काफ़िर हो गये[1] और रोकते हैं अल्लाह की राह से और उस मस्जिदे ह़राम से, जिसे सबके लिए हमने एक जैसा बना दिया है; उसके वासी हों अथवा प्रवासी तथा जो उसमें अत्याचार से अधर्म का विचार करेगा, हम उसे दुःखदायी यातना चखायेंगे[1]। 1. इस आयत में मक्का के काफ़िरों को चेतावनी दी गई है, जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और इस्लाम के विरोधी थे और उन्हों ने आप को तथा मुसलमानों को "ह़ुदैबिया" के वर्ष मस्जिदे ह़राम से रोक दिया था।2. यह मक्का की मुख्य विशेष्ताओं में से है कि वहाँ रहने वाला अगर कुफ़्र और शिर्क या किसी बिद्अत का विचार भी दिल में लाये तो उस के लिये घोर यातना है।
وَإِذْ بَوَّأْنَا لِإِبْرَاهِيمَ مَكَانَ الْبَيْتِ أَن لَّا تُشْرِكْ بِي شَيْئًا وَطَهِّرْ بَيْتِيَ لِلطَّائِفِينَ وَالْقَائِمِينَ وَالرُّكَّعِ السُّجُودِ ﴾ 26 ﴿
व इज् बव्वअ्ना लिइब्राही-म मकानल् बैति अल्ला तुश्रिक् बी शैअंव् – व तह्हिर बैति -य लित्ताइफ़ी – न वल्काइमी -न वर्रूक्कअिस् – सुजूद
तथा वह समय याद करो, जब हमने निश्चित कर दिया इब्राहीम के लिए इस घर (काबा) का स्थान[1] (इस प्रतिबंध के साथ) कि साझी न बनाना मेरा किसी चीज़ को तथा पवित्र रखना मेरे घर को परिकर्मा करने, खड़े होने, रुकूअ (झुकने) और सज्दा करने वालों के लिए। 1. अर्थात उस का निर्माण करने के लिये। क्यों कि नूह़ (अलैहिस्सलाम) के तूफ़ान के कारण सब बह गया था इस लिये अल्लाह ने इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के लिये बैतुल्लाह का वास्तविक स्थान निर्धारित कर दिया। और उन्हों ने अपने पुत्र इस्माईल (अलैहिस्सलाम) के साथ उसे दोबारा स्थापित किया।
وَأَذِّن فِي النَّاسِ بِالْحَجِّ يَأْتُوكَ رِجَالًا وَعَلَىٰ كُلِّ ضَامِرٍ يَأْتِينَ مِن كُلِّ فَجٍّ عَمِيقٍ ﴾ 27 ﴿
व अज्ज़िन् फ़िन्नासि बिल्हज्जि यअ्तू -क रिजालंव् -व अ़ला कुल्लि ज़ामिरिंय्यअ्ती – न मिन् कुल्लि फ़ज्जिन अ़मीक़
और घोषणा कर दो लोगों में ह़ज की, वे आयेंगे तेरे पास पैदल तथा प्रत्येक दुबली-पतली स्वारियों पर, जो प्रत्येक दूरस्थ मार्ग से आयेंगी।
لِّيَشْهَدُوا مَنَافِعَ لَهُمْ وَيَذْكُرُوا اسْمَ اللَّهِ فِي أَيَّامٍ مَّعْلُومَاتٍ عَلَىٰ مَا رَزَقَهُم مِّن بَهِيمَةِ الْأَنْعَامِ ۖ فَكُلُوا مِنْهَا وَأَطْعِمُوا الْبَائِسَ الْفَقِيرَ ﴾ 28 ﴿
लि – यश्हदू मनाफ़ि-अ़ लहुम् व यज़्कुरूस्मल्लाहि फ़ी अय्यामिम् मअ्लूमातिन् अला मा र-ज़-कहुम् मिम् – बहीमतिल-अन्आ़मि फ़कुलू मिन्हा व अत्अिमुल् – बाइसल् – फकीर
ताकि वह उपस्थित हों अपने लाभ प्राप्त करने के लिए और ताकि अल्लाह का नाम[1] लें निश्चित[2] दिनों में, उसपर, जो उन्हें प्रदान किया है पालतू चौपायों में से। फिर उसमें से स्वयं खाओ तथा भूखे निर्धन को खिलाओ।
ثُمَّ لْيَقْضُوا تَفَثَهُمْ وَلْيُوفُوا نُذُورَهُمْ وَلْيَطَّوَّفُوا بِالْبَيْتِ الْعَتِيقِ ﴾ 29 ﴿
सुम्मल यक़्जू त-फ़ सहुम् वल्यूफू नुजूरहुम् वल्यत्तव्वफू बिल्बैतिल-अ़तीक
फिर अपना मैल-कुचैल दूर[1] करें तथा अपनी मनौतियाँ पूरी करें और परिकर्मा करें प्राचीन घर[2] की। 1. अर्थात 10 ज़िल-ह़िज्जा को बड़े ((जमरे)) को जिस को लोग शैतान कहते हैं कंकरियाँ मारने के पश्चात् एहराम उतार दें। और बाल नाखुन साफ़ कर के स्नान करें। 2. अर्थात काबा का।
ذَٰلِكَ وَمَن يُعَظِّمْ حُرُمَاتِ اللَّهِ فَهُوَ خَيْرٌ لَّهُ عِندَ رَبِّهِ ۗ وَأُحِلَّتْ لَكُمُ الْأَنْعَامُ إِلَّا مَا يُتْلَىٰ عَلَيْكُمْ ۖ فَاجْتَنِبُوا الرِّجْسَ مِنَ الْأَوْثَانِ وَاجْتَنِبُوا قَوْلَ الزُّورِ ﴾ 30 ﴿
ज़ालि- क व मंय्युअ़ज्ज़िम् हुरूमातिल्लाहि फहु व ख़ैरुल्लहू अिन्-द रब्बिही, व उहिल्लत् लकुमुल्-अन्आ़मु इल्ला-मा युत्ला अलैकुम् फ़ज तनिबुर्रिज् स मिनल्-औसानि वज्तनिबू क़ौलज़्जूर
ये है (आदेश) और जो अल्लाह के निर्धारित किये प्रतिबंधों का आदर करे, तो ये उसके लिए अच्छा है, उसके पालनहार के पास और ह़लाल (वैध) कर दिये गये तुम्हारे लिए चौपाये, उनके सिवा जिनका वर्णन तुम्हारे समक्ष कर दिया[1] गया है, अतः मूर्तियों की गन्दगी से बचो तथा झूठ बोलने से बचो। 1. (देखियेः सूरह माइदा, आयतः3)
حُنَفَاءَ لِلَّهِ غَيْرَ مُشْرِكِينَ بِهِ ۚ وَمَن يُشْرِكْ بِاللَّهِ فَكَأَنَّمَا خَرَّ مِنَ السَّمَاءِ فَتَخْطَفُهُ الطَّيْرُ أَوْ تَهْوِي بِهِ الرِّيحُ فِي مَكَانٍ سَحِيقٍ ﴾ 31 ﴿
हु – नफ़ा – अ लिल्लाहि गै-र मुश्रिकी – न बिही, व मंय्युश्रिक् बिल्लाहि फ़-कअन्नमा ख़र्-र मिनस्समा इ फ़ – तख़्तफूहुत्तैरू औ तह़्वी बिहिर्रीहु फ़ी मकानिन् सहीक़
अल्लाह के लिए एकेश्वरवादी होतो हुए, उसका साझी न बनाते हुए और जो साझी बनाता हो अल्लाह का, तो मानो वह आकाश से गिर गया, फिर उसे पक्षी उचक ले जाये अथवा वायु का झोंका किसी दूर स्थान में फेंक[1] दे। 1. यह शिर्क के परिणाम का उदाहरण है कि मनुष्य शिर्क के कारण स्वभाविक ऊँचाई से गिर जाता है। फिर उसे शैतान पक्षियों के समान उचक ले जाते हैं, और वह नीच बन जाता है। फिर उस में कभी ऊँचा विचार उत्पन्न नहीं होता, और वह मांसिक तथा नैतिक पतन की ओर ही झुका रहता है।
ذَٰلِكَ وَمَن يُعَظِّمْ شَعَائِرَ اللَّهِ فَإِنَّهَا مِن تَقْوَى الْقُلُوبِ ﴾ 32 ﴿
ज़ालि-क व मंय्युअज्ज़िम् शआ-इरल्लाहि फ़ -इन्नहा मिन् तक़्वल – कुलूब
ये (अल्लाह का आदेश है), और जो आदर करे अल्लाह के प्रतीकों (निशानों)[1] का, तो ये निःसंदेह दिलों के आज्ञाकारी होने की बात है। 1. अर्थात भक्ति के लिये उस के निश्चित किये हुये प्रतीकों की।
لَكُمْ فِيهَا مَنَافِعُ إِلَىٰ أَجَلٍ مُّسَمًّى ثُمَّ مَحِلُّهَا إِلَى الْبَيْتِ الْعَتِيقِ ﴾ 33 ﴿
लकुम् फ़ीहा मनाफ़िअु इला अ – जलिम् मुसम्मन् सुम् – म महिल्लुहा इलल्-बैतिल-अ़तीक़*
तुम्हारे लिए उनमें बहुत-से लाभ[1] हैं, एक निर्धारित समय तक, फिर उनके वध करने का स्थान प्राचीन घर के पास है। 1. अर्थात क़ुर्बानी के पशु पर सवारी तथा उन के दूध और ऊन से लाभ प्राप्त करना उचित है।
وَلِكُلِّ أُمَّةٍ جَعَلْنَا مَنسَكًا لِّيَذْكُرُوا اسْمَ اللَّهِ عَلَىٰ مَا رَزَقَهُم مِّن بَهِيمَةِ الْأَنْعَامِ ۗ فَإِلَٰهُكُمْ إِلَٰهٌ وَاحِدٌ فَلَهُ أَسْلِمُوا ۗ وَبَشِّرِ الْمُخْبِتِينَ ﴾ 34 ﴿
व लिकुल्लि उम्मतिन् जअ्ल्ना मन् – सकल् लि – यज़्कुरूस्मल्लाहि अ़ला मा र-ज़ क़हुम् मिम् – बहीमतिल् – अन्आमि फ़- इलाहुकुम् इलाहुंव्वाहिदुन् फ़ – लहू अस्लिमु, व बश्शिरिल्- मुख्बितीन
तथा प्रत्येक समुदाय के लिए हमने क़ुर्बानी की विधि निर्धारित की है, ताकि वे अल्लाह का नाम लें उसपर, जो प्रदान किये हैं उन्हें पालतू चौपायों में से। अतः, तुम्हारा पूज्य एक ही पूज्य है, उसी के आज्ञाकारी रहो और (हे नबी!) आप शुभ सूचना सुना दें विनीतों को।
الَّذِينَ إِذَا ذُكِرَ اللَّهُ وَجِلَتْ قُلُوبُهُمْ وَالصَّابِرِينَ عَلَىٰ مَا أَصَابَهُمْ وَالْمُقِيمِي الصَّلَاةِ وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنفِقُونَ ﴾ 35 ﴿
अल्लज़ी – न इज़ा जुकिरल्लाहु वजिलत् कुलूबुहुम् वस्साबिरी – न अ़ला मा असा – बहुम् वल्मुक़ीमिस्सलाति व मिम्मा रज़क़्नाहुम् युन्फ़िकून
जिनकी दशा ये है कि जब अल्लाह की चर्चा की जाये, तो उनके दिल डर जाते हैं तथा धैर्य रखते हैं उस विपदा पर, जो उन्हें पहुँचे और नमाज़ की स्थापना करने वाले हैं तथा उसमें से जो हमने उन्हें दिया है, दान करते हैं।
وَالْبُدْنَ جَعَلْنَاهَا لَكُم مِّن شَعَائِرِ اللَّهِ لَكُمْ فِيهَا خَيْرٌ ۖ فَاذْكُرُوا اسْمَ اللَّهِ عَلَيْهَا صَوَافَّ ۖ فَإِذَا وَجَبَتْ جُنُوبُهَا فَكُلُوا مِنْهَا وَأَطْعِمُوا الْقَانِعَ وَالْمُعْتَرَّ ۚ كَذَٰلِكَ سَخَّرْنَاهَا لَكُمْ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ ﴾ 36 ﴿
वल्बुद् – न जअ़ल्नाहा लकुम् मिन् शआ़ – इरिल्लाहि लकुम् फ़ीहा ख़ैरून् फ़ज़्कुरूस्मल्लाहि अ़लैहा सवाफ् -फ़ फ़ -इज़ा व -जबत् जुनूबुहा फ़कुलू मिन्हा व अत्अिमुल् – क़ानि – अ़ वल् – मुअतर्र, कज़ालि- क सख़्ख़रनाहा लकुम् लअ़ल्लकुम् तश्कुरून
और ऊँटों को हमने बनाया है तुम्हारे लिए अल्लाह की निशानियों में, तुम्हारे लिए उनमें भलाई है। अतः अल्लाह का नाम लो उनपर (वध करते समय) खड़े करके और जब धरती से लग जायें[1] उनके पहलू, तो स्वयं खाओ उनमें से और खिलाओ उनमें से संतोषी तथा भिक्षु को, इसी प्रकार, हमने उसे वश में कर दिया है तुम्हारे, ताकि तुम कृतज्ञ बनो। 1. अर्थात उस का प्राण पूरी तरह़ निकल जाये।
لَن يَنَالَ اللَّهَ لُحُومُهَا وَلَا دِمَاؤُهَا وَلَٰكِن يَنَالُهُ التَّقْوَىٰ مِنكُمْ ۚ كَذَٰلِكَ سَخَّرَهَا لَكُمْ لِتُكَبِّرُوا اللَّهَ عَلَىٰ مَا هَدَاكُمْ ۗ وَبَشِّرِ الْمُحْسِنِينَ ﴾ 37 ﴿
लंय्यनालल्ला – ह लुहूमुहा व ला दिमा-उहा व ला किंय्यनालुहुत् – तक़्वा मिन्कुम्, कज़ालि क सख़्ख़-रहा लकुम् लितुकब्बिरूल्ला -ह अ़ला मा हदाकुम्, व बश्शिरिल् – मुह्सिनीन
नहीं पहुँचते अल्लाह को उनके माँस और न उनके रक्त, परन्तु उसे पहुँचता है तुम्हारा आज्ञा पालन। इसी प्रकार, उस (अल्लाह) ने उन (पशुओं) को तुम्हारे वश में कर दिया है, ताकि तुम अल्लाह की महिमा का वर्णन करो,[1] उस मार्गदर्शन पर जो तुम्हें दिया है और आप सत्कर्मियों को शुभ सूचना सुना दें। 1. वध करते समय (बिस्मिल्लाहि अल्लाहु अक्बर) कहो।
إِنَّ اللَّهَ يُدَافِعُ عَنِ الَّذِينَ آمَنُوا ۗ إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ كُلَّ خَوَّانٍ كَفُورٍ ﴾ 38 ﴿
इन्नल्ला – ह युदाफिअु अ़निल्लज़ी – न आमनू, इन्नल्ला -ह ला युहिब्बु कुल्-ल ख़व्वानिन् कफूर *
निश्चय ही अल्लाह प्रतिरक्षा करता है उनकी ओर से, जो ईमान लाये हैं, वास्तव में अल्लाह किसी विश्वासघाती, कृतघ्न से प्रेम नहीं करता।
أُذِنَ لِلَّذِينَ يُقَاتَلُونَ بِأَنَّهُمْ ظُلِمُوا ۚ وَإِنَّ اللَّهَ عَلَىٰ نَصْرِهِمْ لَقَدِيرٌ ﴾ 39 ﴿
उज़ि-न लिल्लज़ी-न युक़ातलू-न बि-अन्नहुम् जुलिमू, व इन्नल्ला – ह अला नसरिहिम् ल – कदीर
उन्हें अनुमति दे दी गयी, जिनसे युध्द किया जा रहा है, क्योंकि उनपर अत्याचार किया गया है और निश्चय अल्लाह उनकी सहायता पर पूर्णतः सामर्थ्यवान है[1]। यह प्रथम आयत है जिस में जिहाद की अनुमति दी गयी है। और कारण यह बताया गया है कि मुसलमान शत्रु के अत्याचार से अपनी रक्षा करें। फिर आगे चल कर सूरह बक़रह, आयतः190 से 193 और 216 तथा 226 में युध्द का आदेश दिया गया है। जो (बद्र) के युध्द से कुछ पहले दिया गया है।
الَّذِينَ أُخْرِجُوا مِن دِيَارِهِم بِغَيْرِ حَقٍّ إِلَّا أَن يَقُولُوا رَبُّنَا اللَّهُ ۗ وَلَوْلَا دَفْعُ اللَّهِ النَّاسَ بَعْضَهُم بِبَعْضٍ لَّهُدِّمَتْ صَوَامِعُ وَبِيَعٌ وَصَلَوَاتٌ وَمَسَاجِدُ يُذْكَرُ فِيهَا اسْمُ اللَّهِ كَثِيرًا ۗ وَلَيَنصُرَنَّ اللَّهُ مَن يَنصُرُهُ ۗ إِنَّ اللَّهَ لَقَوِيٌّ عَزِيزٌ ﴾ 40 ﴿
अल्लज़ी-न उख़रिजू मिन् दियारिहिम् बिग़ैरि हक़्क़िन् इल्ला अंय्यकूलू रब्बुनल्लाहु, व लौ ला दफ़अुल्लाहिन्ना -स बअ्-ज़हुम् बिबअ्ज़िल्-लहुद्दिमत् सवामिअु व बि -यअुंव-व स-लवातुंव्- व मसाजिदु युज़्करू फ़ीहस्मुल्लाहि कसीरन्, व ल-यन्सुरन्नल्लाहु मंय्यन्सुरूहू, इन्नल्ला-ह ल-क़विय्युन अज़ीज़
जिन्हें उनके घरों से अकारण निकाल दिया गया, केवल इस बात पर कि वे कहते थे कि हमारा पालनहार अल्लाह है और यदि अल्लाह प्रतिरक्षा न कराता कुछ लोगों की, कुछ लोगों द्वारा, तो ध्वस्त कर दिये जाते आश्रम तथा गिरजे और यहूदियों के धर्म स्थल तथा मस्जिदें, जिनमें अल्लाह का नाम अधिक लिया जाता है और अल्लाह अवश्य उसकी सहायता करेगा, जो उस (के सत्य) की सहायता करेगा, वास्तव में, अल्लाह अति शक्तिशाली, प्रभुत्वशाली है।
الَّذِينَ إِن مَّكَّنَّاهُمْ فِي الْأَرْضِ أَقَامُوا الصَّلَاةَ وَآتَوُا الزَّكَاةَ وَأَمَرُوا بِالْمَعْرُوفِ وَنَهَوْا عَنِ الْمُنكَرِ ۗ وَلِلَّهِ عَاقِبَةُ الْأُمُورِ ﴾ 41 ﴿
अल्लज़ी – न इम् – मक्कन्नाहुम् फिल्अर्जि अक़ामुस्सला – त व आ तवुज् – ज़का-त व अ-मरू बिल्-मअ्-रूफि व नहौ अ़निल् – मुन्करि, व लिल्लाहि आ़कि – बतुल् – उमूर
ये[1] वो लोग हैं कि यदि हम इन्हें धरती में अधिपत्य प्रदान कर दें, तो नमाज़ की स्थापना करेंगे, ज़कात देंगे, भलाई का आदेश देंगे, बुराई से रोकेंगे और अल्लाह के अधिकार में है सब कर्मों का परिणाम। 1. अर्थात उत्पीड़ित मुसलमान।
وَإِن يُكَذِّبُوكَ فَقَدْ كَذَّبَتْ قَبْلَهُمْ قَوْمُ نُوحٍ وَعَادٌ وَثَمُودُ ﴾ 42 ﴿
व इंय्युकज़्ज़िबू -क फ़ -क़द् कज़्ज़ – बत् क़ब्लहुम् कौमु नूहिंव् – व आदुंव् – व समूद
और (हे नबी!) यदि वे आपको झुठलायें, तो इनसे पूर्व झुठला चुकी है नूह़ की जाति और (आद) तथा (समूद)
وَقَوْمُ إِبْرَاهِيمَ وَقَوْمُ لُوطٍ ﴾ 43 ﴿
व क़ौमु इब्राही-म व कौमु लूत
तथा इब्राहीम की जाति और लूत की (जाति)।
وَأَصْحَابُ مَدْيَنَ ۖ وَكُذِّبَ مُوسَىٰ فَأَمْلَيْتُ لِلْكَافِرِينَ ثُمَّ أَخَذْتُهُمْ ۖ فَكَيْفَ كَانَ نَكِيرِ ﴾ 44 ﴿
व अस्हाबु मद य-न व कुज़्ज़ि-ब मूसा फ़- अम्लैतु लिल्काफ़िरी- न सुम् – म अ – खज़्तुहुम् फ़कै-फ़ का-न नकीर
तथा मद्यन वाले[1] और मूसा (भी) झुठलाये गये, तो मैंने अवसर दिया काफ़िरों को, फिर उन्हें पकड़ लिया, तो मेरा दण्ड कैसा रहा? 1. अर्थात शोऐब अलैहिस्सलाम की जाति।
فَكَأَيِّن مِّن قَرْيَةٍ أَهْلَكْنَاهَا وَهِيَ ظَالِمَةٌ فَهِيَ خَاوِيَةٌ عَلَىٰ عُرُوشِهَا وَبِئْرٍ مُّعَطَّلَةٍ وَقَصْرٍ مَّشِيدٍ ﴾ 45 ﴿
फ़- कअय्यिम् – मिन् कर् – यतिन् अह़्लक्नाहा व हि – य ज़ालि- मतुन् फ़हि-य ख़ावि – यतुन् अ़ला उरूशिहा व बिअ्-रिम् मु अ़त्त लतिंव् – व कस्रिम् – मशीद
तो कितनी ही बस्तियाँ हैं, जिन्हें हमने ध्वस्त कर दिया, जो अत्याचारी थीं, वे अपनी छतों के समेत गिरी हुई हैं और बेकार कुएं तथा पक्के ऊँचे भवन।
أَفَلَمْ يَسِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَتَكُونَ لَهُمْ قُلُوبٌ يَعْقِلُونَ بِهَا أَوْ آذَانٌ يَسْمَعُونَ بِهَا ۖ فَإِنَّهَا لَا تَعْمَى الْأَبْصَارُ وَلَٰكِن تَعْمَى الْقُلُوبُ الَّتِي فِي الصُّدُورِ ﴾ 46 ﴿
अ- फलम् यसीरू फ़िल्अर्ज़ि फ़-तकू-न लहुम् कुलूबुंय् – यअ्किलू – न बिहा औ आज़ानुंय्यस्मअू-न बिहा फ़ – इन्नहा ला तअ्मल्-अब्सारू व लाकिन् तअ्मल् – कुलूबुल्लती फ़िस्सुदूर
तो क्या वे धरती में फिरे नहीं? तो उनके ऐसे दिल होते, जिनसे समझते अथवा ऐसे कान होते, जिनसे सुनते, वास्तव में, आँखें अन्धी नहीं हो जातीं, परन्तु वो दिल अन्धे हो जाते हैं, जो सीनों में[1] हैं। 1. आयत का भावार्थ यह है कि दिल की सूझ बूझ चली जाती है तो आँखें भी अन्धी हो जाती हैं और देखते हुये भी सत्य को नहीं देख सकतीं।
وَيَسْتَعْجِلُونَكَ بِالْعَذَابِ وَلَن يُخْلِفَ اللَّهُ وَعْدَهُ ۚ وَإِنَّ يَوْمًا عِندَ رَبِّكَ كَأَلْفِ سَنَةٍ مِّمَّا تَعُدُّونَ ﴾ 47 ﴿
व यस्तअ्जिलून – क बिल् – अ़ज़ाबि व लंय्युख्लिफ़ल्लाहु वअ्दहू व इन् – न यौमन् अिन्- द रब्बि-क क-अल्फ़ि स-नतिम् मिम्मा तअुददून
तथा वे आपसे शीघ्र यातना की माँग कर रहे हैं और अल्लाह कदापि अपना वचन भंग नहीं करेगा और निश्चय आपके पालनहार के यहाँ एक दिन तुम्हारी गणना से हज़ार वर्ष के बराबर[1] है। 1. अर्थात वह शीघ्र यातना नहीं देता, पहले अवसर देता है जैसा कि इस के पश्चात् की आयत में बताया जा रहा है।
وَكَأَيِّن مِّن قَرْيَةٍ أَمْلَيْتُ لَهَا وَهِيَ ظَالِمَةٌ ثُمَّ أَخَذْتُهَا وَإِلَيَّ الْمَصِيرُ ﴾ 48 ﴿
व क – अय्यिम् मिन् कर् – यतिन् अम्लैतु लहा व हि – य ज़ालि – मतुन् सुम् – म अख़ज़्तुहा व इलय्यल् मसीर *
और बहुत-सी बस्तियाँ हैं, जिन्हें हमने अवसर दिया, जबकि वो अत्याचारी थीं, फिर मैंने उन्हें पकड़ लिया और मेरी ही ओर (सबको) वापस आना है।
قُلْ يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنَّمَا أَنَا لَكُمْ نَذِيرٌ مُّبِينٌ ﴾ 49 ﴿
कुल या अय्युहन्नासु इन्नमा अ-न लकुम् नज़ीरूम् – मुबीन
(हे नबी!) आप कह दें कि हे लोगो! मैंतो बस तुम्हें खुला सावधान करने वाला हूँ।
فَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَرِزْقٌ كَرِيمٌ ﴾ 50 ﴿
फ़ल्लज़ी – न आमनू व अमिलुस्सालिहाति लहुम् मग्फ़ि – रतुंव – व रिज्कुन करीम
तो जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, उन्हीं के लिए क्षमा और सम्मानित जीविका है।
وَالَّذِينَ سَعَوْا فِي آيَاتِنَا مُعَاجِزِينَ أُولَٰئِكَ أَصْحَابُ الْجَحِيمِ ﴾ 51 ﴿
वल्लज़ी-न सऔ़ फ़ी आयातिना मुआ़जिज़ी – न उलाइ-क अस्हाबुल् – जहीम
और जिन्होंने प्रयास किया हमारी आयतों में विवश करने का, तो वही नारकी हैं।
وَمَا أَرْسَلْنَا مِن قَبْلِكَ مِن رَّسُولٍ وَلَا نَبِيٍّ إِلَّا إِذَا تَمَنَّىٰ أَلْقَى الشَّيْطَانُ فِي أُمْنِيَّتِهِ فَيَنسَخُ اللَّهُ مَا يُلْقِي الشَّيْطَانُ ثُمَّ يُحْكِمُ اللَّهُ آيَاتِهِ ۗ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ ﴾ 52 ﴿
व मा अरसल्ना मिन् कब्लि-क मिर्रसूलिंव् – व ला नबिय्यिन् इल्ला इज़ा तमन्ना अल्क़श्शैतानु फ़ी उम्निय्यतिही फ़ – यन्सखुल्लाहु मा युल्किश्शैतानु सुम् – म युह्किमुल्लाहु आयातिही, वल्लाहु अ़लीमुन् हकीम
और (हे नबी!) हमने नहीं भेजा आपसे पूर्व किसी रसूल और न किसी नबी को, किन्तु जब, उसने (पुस्तक) पढ़ी, तो संशय डाल दिया शैतान ने उसके पढ़ने में। फिर निरस्त कर देता है अल्लाह शैतान के संशय को, फिर सुदृढ़ कर देता है अल्लाह अपनी आयतों को और अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वज्ञ[1] है। 1. आयत का अर्थ यह है कि जब नबी धर्म पुस्तक की आयतें सुनाते हैं तो शैतान लोगों को उस के अनुपालन से रोकने के लिये संशय उत्पन्न करता है।
لِّيَجْعَلَ مَا يُلْقِي الشَّيْطَانُ فِتْنَةً لِّلَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٌ وَالْقَاسِيَةِ قُلُوبُهُمْ ۗ وَإِنَّ الظَّالِمِينَ لَفِي شِقَاقٍ بَعِيدٍ ﴾ 53 ﴿
लि – यज्अ़ – ल मा युल्किश्शैतानु फ़ित्न – तल् – लिल्लज़ी – न फ़ी कुलूबिहिम् म- रजुंव्वल – क़ासि – यति कुलूबुहुम्, व इन्नज़्ज़ालिमी न लफ़ी शिकाकिम्-बईद
ये इसलिए, ताकि अल्लाह शैतानी संशय को उनके लिए परीक्षा बना दे, जिनके दिलों में रोग (द्विधा) है और जिनके दिल कड़े हैं और वास्तव में, अत्याचारी विरोध में बहुत दूर चले गये हैं।
وَلِيَعْلَمَ الَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ أَنَّهُ الْحَقُّ مِن رَّبِّكَ فَيُؤْمِنُوا بِهِ فَتُخْبِتَ لَهُ قُلُوبُهُمْ ۗ وَإِنَّ اللَّهَ لَهَادِ الَّذِينَ آمَنُوا إِلَىٰ صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ ﴾ 54 ﴿
व लियअ् ल-मल्लज़ी-न ऊतुल अिल्- म अन्नहुल् – हक़्कु मिर्रब्बि-क फयुअ्मिनू बिही फ़तुख़्बि-त लहू कुलूबुहुम्, व इन्नल्ला – ह लहादिल्लज़ी – न आमनू इला सिरातिम् – मुस्तक़ीम
और इसलिए (भी) ताकि विश्वास हो जाये उन्हें, जो ज्ञान दिये गये हैं कि ये (क़ुर्आन) सत्य है आपके पालनहार की ओर से और इसपर ईमान लायें और इसके लिए झुक जायें उनके दिल, और निःसंदेह अल्लाह ही पथ प्रदर्शक है उनका, जो ईमान लायें सुपथ की ओर।
وَلَا يَزَالُ الَّذِينَ كَفَرُوا فِي مِرْيَةٍ مِّنْهُ حَتَّىٰ تَأْتِيَهُمُ السَّاعَةُ بَغْتَةً أَوْ يَأْتِيَهُمْ عَذَابُ يَوْمٍ عَقِيمٍ ﴾ 55 ﴿
व ला यज़ालुल्लज़ी – न क-फरू फ़ी मिर् यतिम् मिन्हु हत्ता तअ्ति यहुमुस्सा- अ़तु बग्त – तन् औ यअ्ति – यहुम् अ़ज़ाबु यौमिन् अक़ीम
तथा जो काफ़िर हो गये, तो वे सदा संदेह में रहेंगे इस (क़ुर्आन) से, यहाँतक कि उनके पास सहसा प्रलय आ जाये अथवा उनके पास बाँझ[1] दिन की यातना आ जाये। 1. बाँझ दिन से अभिप्राय प्रलय का दिन है क्यों कि उस की रात नहीं होगी।
الْمُلْكُ يَوْمَئِذٍ لِّلَّهِ يَحْكُمُ بَيْنَهُمْ ۚ فَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ فِي جَنَّاتِ النَّعِيمِ ﴾ 56 ﴿
अल्मुल्कु यौमइज़िल् लिल्लाहि, यह्कुमु बैनहुम्, फ़ल्लज़ी -न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति फी जन्नातिन् -नईम
राज्य उस दिन अल्लाह ही का होगा, वही उनके बीच निर्णय करेगा, तो जो ईमान लाये और सदाचार किये, तो वे सुख के स्वर्गों में होंगे।
وَالَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِآيَاتِنَا فَأُولَٰئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ مُّهِينٌ ﴾ 57 ﴿
वल्लज़ी -न क -फ़रू व कज़्ज़बू बिआयातिना फ़ – उलाइ – क लहुम् अ़ज़ाबुम् – मुहीन *
और जो काफ़िर हो गये और हमारी आयतों को झुठलाया, उन्हीं के लिए अपमानकारी यातना है।
وَالَّذِينَ هَاجَرُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ ثُمَّ قُتِلُوا أَوْ مَاتُوا لَيَرْزُقَنَّهُمُ اللَّهُ رِزْقًا حَسَنًا ۚ وَإِنَّ اللَّهَ لَهُوَ خَيْرُ الرَّازِقِينَ ﴾ 58 ﴿
वल्लज़ी न हाजरू फ़ी सबीलिल्लाहि सुम्म कुतिलू औ मातू ल यरजुकन्न – हुमुल्लाहु रिज़्कन् ह – सनन्, व इन्नल्ला – ह लहु – व ख़ैरूर्- राज़िक़ीन
तथा जिन लोगों ने हिजरत (प्रस्थान) की अल्लाह की राह में, फिर मारे गये अथवा मर गये, तो उन्हें अल्लाह अवश्य उत्तम जीविका प्रदान करेगा और वास्तव में, अल्लाह ही सर्वोत्तम जीविका प्रदान करने वाला है।
لَيُدْخِلَنَّهُم مُّدْخَلًا يَرْضَوْنَهُ ۗ وَإِنَّ اللَّهَ لَعَلِيمٌ حَلِيمٌ ﴾ 59 ﴿
लयुद्द्खिलन्नहुम् मुद् – ख़लंय् – यरज़ौनहू, व इन्नल्ला – ह ल – अ़लीमुन् हलीम
वह उन्हें प्रवेश देगा, ऐसे स्थान में, जिससे वे प्रसन्न हो जायेंगे और वास्तव में अल्लाह सर्वज्ञ, सहनशील है।
ذَٰلِكَ وَمَنْ عَاقَبَ بِمِثْلِ مَا عُوقِبَ بِهِ ثُمَّ بُغِيَ عَلَيْهِ لَيَنصُرَنَّهُ اللَّهُ ۗ إِنَّ اللَّهَ لَعَفُوٌّ غَفُورٌ ﴾ 60 ﴿
ज़ालि- क व मन् आ़क- ब बिमिस्लि मा अूकि-ब बिही सुम्म बुग़ि- य अ़लैहि ल-यन्सुरन्नहुल्लाहु, इन्नल्ला-ह ल-अ़फुव्वुन् ग़फूर
ये वास्तविक्ता है और जिसने बदला लिया वैसा ही, जो उसके साथ किया गया, फिर उसके साथ अत्याचार किया जाये, तो अल्लाह उसकी अवश्य सहायता करेगा, वास्तव में, अल्लाह अति क्षान्त, क्षमाशील है।
ذَٰلِكَ بِأَنَّ اللَّهَ يُولِجُ اللَّيْلَ فِي النَّهَارِ وَيُولِجُ النَّهَارَ فِي اللَّيْلِ وَأَنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ بَصِيرٌ ﴾ 61 ﴿
ज़ालि-क बिअन्नल्ला-ह यूलिजुल्लै-ल फ़िन्नहारि व यूलिजुन्नहा-र फ़िल्लैलि व अन्नल्ला-ह समीअुम्-बसीर
ये इसलिए कि अल्लाह प्रवेश देता है, रात्रि को दिन में और प्रवेश देता है, दिन को रात्रि में और अल्लाह सब कुछ सुनने-देखने वाला[1] है। 1. अर्थात उस का नियम अन्धा नहीं है कि जिस के साथ अत्याचार किया जाये उस की सहायता न की जाये। रात्रि तथा दिन का परिवर्तन बता रहा है कि एक ही स्थिति सदा नहीं रहती।
ذَٰلِكَ بِأَنَّ اللَّهَ هُوَ الْحَقُّ وَأَنَّ مَا يَدْعُونَ مِن دُونِهِ هُوَ الْبَاطِلُ وَأَنَّ اللَّهَ هُوَ الْعَلِيُّ الْكَبِيرُ ﴾ 62 ﴿
ज़ालि-क बिअन्नल्ला-ह हुवल्-हक़्कु व अन्न मा यद्अू – न मिन् दूनिही हुवल्-बातिलु व अन्नल्ला-ह हुवल् – अ़लिय्युल्-कबीर
ये इसलिए कि अल्लाह ही सत्य है और जिसे वे अल्लाह के सिवा पुकारते हैं, वही असत्य है और अल्लाह ही सर्वोच्च, महान है।
أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ أَنزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَتُصْبِحُ الْأَرْضُ مُخْضَرَّةً ۗ إِنَّ اللَّهَ لَطِيفٌ خَبِيرٌ ﴾ 63 ﴿
अलम् त-र अन्नल्ला-ह अन्ज़-ल मिनस्समा इ मा-अन् फ़तुस्बिहुल्-अर्जु मुख़्ज़र्र तन्, इन्नल्ला-ह लतीफुन् ख़बीर
क्या आपने नहीं देखा कि अल्लाह अकाश से जल बरसाता है, तो भूमि हरी हो जाती है, वास्तव में, अल्लाह सुक्ष्मदर्शी, सर्वसूचित है।
لَّهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۗ وَإِنَّ اللَّهَ لَهُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيدُ ﴾ 64 ﴿
लहू मा फिस्समावाति व मा फिल्अर्जि व इन्नल्ला-ह लहुवल्-ग़निय्युल्-हमीद *
उसी का है, जो आकाशों तथा जो धरती में है और वास्तव में, अल्लाह ही निस्पृह, प्रशंसित है।
أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ سَخَّرَ لَكُم مَّا فِي الْأَرْضِ وَالْفُلْكَ تَجْرِي فِي الْبَحْرِ بِأَمْرِهِ وَيُمْسِكُ السَّمَاءَ أَن تَقَعَ عَلَى الْأَرْضِ إِلَّا بِإِذْنِهِ ۗ إِنَّ اللَّهَ بِالنَّاسِ لَرَءُوفٌ رَّحِيمٌ ﴾ 65 ﴿
अलम् त-र अन्नल्ला-ह सख़्ख़-र लकुम् मा फ़िल्अर्जि वल्फुल्-क तजरी फिल्बहरि बिअम्रिही, व युम्सिकुस्समा-अ अन् त-क़-अ अ़लल्-अर्जि इल्ला बि – इज्निही, इन्नल्ला-ह बिन्नासि ल रऊफुर्रहीम
क्या आपने नहीं देखा कि अल्लाह ने वश में कर दिया[1] है तुम्हारे, जो कुछ धरती में है तथा नाव को जो चलती है सागर में उसके आदेश से और रोकता है आकाश को धरती पर गिरने से, परन्तु उसकी अनुमति से? वास्तव में, अल्लाह लोगों के लिए अति करुणामय, दयान् है। 1. अर्थात तुम उन से लाभान्वित हो रहे हो।
وَهُوَ الَّذِي أَحْيَاكُمْ ثُمَّ يُمِيتُكُمْ ثُمَّ يُحْيِيكُمْ ۗ إِنَّ الْإِنسَانَ لَكَفُورٌ ﴾ 66 ﴿
व हुवल्लज़ी अह्याकुम् सुम्-म युमीतुकुम् सुम्-म युह़्यीकुम्, इन्नल्-इन्सा-न ल-कफूर
तथा वही है, जिसने तुम्हें जीवित किया, फिर तुम्हें मारेगा, फिर तुम्हे जीवित करेगा, वास्तव में, मनुष्य बड़ा ही कृतघ्न है।
لِّكُلِّ أُمَّةٍ جَعَلْنَا مَنسَكًا هُمْ نَاسِكُوهُ ۖ فَلَا يُنَازِعُنَّكَ فِي الْأَمْرِ ۚ وَادْعُ إِلَىٰ رَبِّكَ ۖ إِنَّكَ لَعَلَىٰ هُدًى مُّسْتَقِيمٍ ﴾ 67 ﴿
लिकुल्लि उम्मतिन् जअ़ल्ना मन्स-कन् हुम् नासिकूहु फ़ला युनाज़िअन्न-क फ़िल्अमरि वद्अु इला रब्बि-क, इन्न-क ल-अ़ला हुदम्-मुस्तक़ीम
(हे नबी!) हमने प्रत्येक समुदाय के लिए (इबादत की) विधि निर्धारित कर दी थी, जिसका वे पालन करते रहे, अतः उन्हें आपसे इस (इस्लाम के नियम) के संबन्ध में विवाद नहीं करना चाहिए और आप अपने पालनहार की ओर लोगों को बुलाएँ, वास्तव में, आप सीधी राह पर हैं[1]। 1. अर्थात जिस प्रकार प्रत्येक युग में लोगों के लिये धार्मिक नियम निर्धारित किये गये उसी प्रकार अब क़ुर्आन धर्म विधान तथा जीवन विधान है। इस लिये अब प्राचीन धर्मो के अनुयायियों को चाहिये कि इस पर ईमान लायें, न कि इस विषय में आप से विवाद करें। और आप निश्चिन्त हो कर लोगों को इस्लाम की ओर बुलायें क्यों कि आप सत्धर्म पर हैं। और अब आप के बाद सारे पुराने धर्म निरस्त कर दिये गये हैं।
وَإِن جَادَلُوكَ فَقُلِ اللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا تَعْمَلُونَ ﴾ 68 ﴿
व इन् जादलू-क फ़कुलिल्लाहु अअ्लमु बिमा तअ्मलून
और यदि वे आपसे विवाद करें, तो कह दें कि अल्लाह तुम्हारे कर्मों से भली-भाँति अवगत है।
اللَّهُ يَحْكُمُ بَيْنَكُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فِيمَا كُنتُمْ فِيهِ تَخْتَلِفُونَ ﴾ 69 ﴿
अल्लाहु यह्कुमु बैनकुम् यौमल्-क़ियामति फ़ीमा कुन्तुम् फ़ीहि तख़्तलिफून
अल्लाह ही तुम्हारे बीच निर्णय करेगा क़्यामत (प्रलय) के दिन, जिसमें तुम विभेद कर रहे हो।
أَلَمْ تَعْلَمْ أَنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ ۗ إِنَّ ذَٰلِكَ فِي كِتَابٍ ۚ إِنَّ ذَٰلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرٌ ﴾ 70 ﴿
अलम् तअ्लम् अन्नल्ला-ह यअ्लमु मा फिस्समा-इ वल्अर्जि इन्-न ज़ालि- क फ़ी किताबिन, इन्-न ज़ालि क अ़लल्लाहि यसीर
(हे नबी!) क्या आप नहीं जानते कि अल्लाह जानता है, जो आकाश तथा धरती में है, ये सब एक किताब में (अंकित) है। वास्तव में, ये अल्लाह के लिए अति सरल है।
وَيَعْبُدُونَ مِن دُونِ اللَّهِ مَا لَمْ يُنَزِّلْ بِهِ سُلْطَانًا وَمَا لَيْسَ لَهُم بِهِ عِلْمٌ ۗ وَمَا لِلظَّالِمِينَ مِن نَّصِيرٍ ﴾ 71 ﴿
व यअ्बुदू – न मिन् दूनिल्लाहि मा लम् युनज़्ज़िल् बिही सुल्तानंव् – व मा लै – स लहुम् बिही अिल्मुन्, व मा लिज़्ज़ालिमी – न मिन् नसीर
और वे इबादत (वंदना) अल्लाह के अतिरिक्त उसकी कर रहे हैं, जिसका उसने कोई प्रमाण नहीं उतारा है और न उन्हें उसका कोई ज्ञान है और अत्याचारियों का कोई सहायक नहीं होगा।
وَإِذَا تُتْلَىٰ عَلَيْهِمْ آيَاتُنَا بَيِّنَاتٍ تَعْرِفُ فِي وُجُوهِ الَّذِينَ كَفَرُوا الْمُنكَرَ ۖ يَكَادُونَ يَسْطُونَ بِالَّذِينَ يَتْلُونَ عَلَيْهِمْ آيَاتِنَا ۗ قُلْ أَفَأُنَبِّئُكُم بِشَرٍّ مِّن ذَٰلِكُمُ ۗ النَّارُ وَعَدَهَا اللَّهُ الَّذِينَ كَفَرُوا ۖ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ ﴾ 72 ﴿
व इज़ा तुत्ला अ़लैहिम् आयातुना बय्यिनातिन् तअ्-रिफु फ़ी वुजूहिल्लज़ी-न क-फ़रूल् – मुन्क-र यकादू – न यस्तू – न बिल्लज़ी – न यत्लू – न अ़लैहिम् आयातिना, कुल् अ – फ़- उनब्बिउकुम् बिशर्रिम् – मिन् ज़ालिकुम्, अन्नारू, व-अ़-दहल्लाहुल्लज़ी-न क-फरू, व बिअ्सल् – मसीर *
और जब उन्हें सुनाई जाती हैं, हमारी खुली आयतें, तो आप पहचान लेते हैं, उनके चेहरों में, जो काफ़िर हो गये बिगाड़ को और लगता है कि वे आक्रमण कर देंगे उनपर, जो उन्हें हमारी आयतें सुनाते हैं। आप कह दें: क्या मैं तुम्हें इससे बुरी चीज़ बता दूँ? वह, अग्नि है, जिसका वचन अल्लाह ने काफ़िरों को दिया है और वह बहुत ही बुरा आवास है।
يَا أَيُّهَا النَّاسُ ضُرِبَ مَثَلٌ فَاسْتَمِعُوا لَهُ ۚ إِنَّ الَّذِينَ تَدْعُونَ مِن دُونِ اللَّهِ لَن يَخْلُقُوا ذُبَابًا وَلَوِ اجْتَمَعُوا لَهُ ۖ وَإِن يَسْلُبْهُمُ الذُّبَابُ شَيْئًا لَّا يَسْتَنقِذُوهُ مِنْهُ ۚ ضَعُفَ الطَّالِبُ وَالْمَطْلُوبُ ﴾ 73 ﴿
या अय्युहन्नासु जुरि – ब म-सलुन् फ़स्तमिअू लहू, इन्नल्लज़ी – न तद्अू – न मिन् दूनिल्लाहि लंय्यख़्लुकू जुबाबंव् व लविज्त-मअू लहू, व इंय्यस्लुब्हुमुज् – जुबाबु शैअल् – ला यस्तन्किजूहु मिन्हु, ज़अुफ़त्तालिबु वल्मत्लूब
हे लोगो! एक उदाहरण दिया गया है, इसे ध्यान से सुनो, जिन्हें तुम अल्लाह के अतिरिक्त पुकारते हो, वे सब एक मक्खी नहीं पैदा कर सकते, यद्यपि सब इसके लिए मिल जायें और यदि उनसे मक्खी कुछ छीन ले, तो उससे वापस नहीं ला सकते। माँगने वाले निर्बल और जिनसे माँगा जाये, वे दोनों ही निर्बल हैं।
مَا قَدَرُوا اللَّهَ حَقَّ قَدْرِهِ ۗ إِنَّ اللَّهَ لَقَوِيٌّ عَزِيزٌ ﴾ 74 ﴿
मा क-दरूल्ला-ह हक्-क़ क़द्रिही, इन्नल्ला – ह ल – क़विय्युन् अ़ज़ीज़
उन्होंने अल्लाह का आदर किया ही नहीं, जैसे उसका आदर करना चाहिये! वास्तव में, अल्लाह अति शक्तिशाली, प्रभुत्वशीली है।
اللَّهُ يَصْطَفِي مِنَ الْمَلَائِكَةِ رُسُلًا وَمِنَ النَّاسِ ۚ إِنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ بَصِيرٌ ﴾ 75 ﴿
अल्लाहु यस्तफ़ी मिनल् – मलाइ कति रूसुलंव् – व मिनन्नासि इन्नल्ला – ह समीअुम् – बसीर
अल्लाह ही निर्वाचित करता है फ़रिश्तों में से तथा मनुष्यों में से रसूलों को। वास्तव में, वह सुनने तथा देखने[1] वाला है। 1. अर्थात वही जानता है कि रसूल (संदेशवाहक) बनाये जाने के कौन योग्य है।
يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ ۗ وَإِلَى اللَّهِ تُرْجَعُ الْأُمُورُ ﴾ 76 ﴿
यअ्लमु मा बै- न ऐदीहिम् व मा ख़ल्क़हुम, व इलल्लाहि तुर्जअल- उमूर
वह जानता है, जो उनके सामने है और जो कुछ उनसे ओझल है और उसी की ओर सबकाम फेरे जाते हैं।
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا ارْكَعُوا وَاسْجُدُوا وَاعْبُدُوا رَبَّكُمْ وَافْعَلُوا الْخَيْرَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ ۩ ﴾ 77 ﴿
या अय्युहल्लज़ी-न आमनुर्कअू वस्जुदू वअ्बुदू रब्बकुम् वफ़अ़लुल् – ख़ै-र लअ़ल्लकुम् तुफ्लिहून *सज़्दा*
हे ईमान वालो! रुकूअ करो तथा सज्दा करो और अपने पालनहार की इबादत (वंदना) करो और भलाई करो, ताकि तुम सफल हो जाओ।
وَجَاهِدُوا فِي اللَّهِ حَقَّ جِهَادِهِ ۚ هُوَ اجْتَبَاكُمْ وَمَا جَعَلَ عَلَيْكُمْ فِي الدِّينِ مِنْ حَرَجٍ ۚ مِّلَّةَ أَبِيكُمْ إِبْرَاهِيمَ ۚ هُوَ سَمَّاكُمُ الْمُسْلِمِينَ مِن قَبْلُ وَفِي هَٰذَا لِيَكُونَ الرَّسُولُ شَهِيدًا عَلَيْكُمْ وَتَكُونُوا شُهَدَاءَ عَلَى النَّاسِ ۚ فَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ وَاعْتَصِمُوا بِاللَّهِ هُوَ مَوْلَاكُمْ ۖ فَنِعْمَ الْمَوْلَىٰ وَنِعْمَ النَّصِيرُ ﴾ 78 ﴿
व जाहिदू फ़िल्लाहि हक् क जिहादिही, हुवज्तबाकुम् व माज- अ- ल अलैकुम् फ़िद्दीनि मिन् ह – रजिन्, मिल्ल त अबीकुम् इब्राहीम, हु- व सम्माकुमुल मुस्लिमीन मिन् क़ब्लु व फ़ी हाज़ा लि – यकूनर्रसूलु शहीदन् अलैकुम् व तकूनू शु – हदा – अ अलन्नासि फ़ अक़ीमुस्सला त व आतुज़्ज़कात वस्तसिमू बिल्लाहि हु – व मौलाकुम् फ़ – निअमल् – मौला व निमन् – नसीर *
तथा अल्लाह के लिए जिहाद करो, जैसे जिहाद करना[1] चाहिए। उसीने तुम्हें निर्वाचित किया है और नहीं बनाई तुमपर धर्म में कोई संकीर्णता (तंगी)। ये तुम्हारे पिता इब्राहीम का धर्म है, उसीने तुम्हारा नाम मुस्लिम रखा है, इस (क़ुर्आन) से पहले तथा इसमें भी। ताकि रसूल गवाह हूँ तुमपर और तुम गवाह[2] बनो सब लोगों पर। अतः नमाज़ की स्थापना करो तथा ज़कात दो और अल्लाह को सुदृढ़ पकड़[3] लो। वही तुम्हारा संरक्षक है। तो वह क्या ही अच्छा संरक्षक तथा क्या ही अच्छा सहायक है। 1. एक व्यक्ति ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रश्न किया कि कोई धन के लिये लड़ता है, कोई नाम के लिये और कोई वीरता दिखाने के लिये। तो कौन अल्लाह के लिये लड़ता है? आप ने फ़रमायाः जो अल्लाह का शब्द ऊँचा करने के लिये लड़ता है। (सह़ीह़ बुख़ारीः 123, 2810) 2. व्याख्या के लिये देखियेः सूरह बक़रह, आयतः143 3. अर्थात उस की आज्ञा और धर्म विधान का पालन करो।